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शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2009

अथर्ववेद के प्रेमगीत

‘‘अभी से चढ़ने लगा वेलेण्टाइन-डे का खुमार‘‘ पोस्ट में हमने जिक्र किया था कि अथर्ववेद में समाहित प्रेम गीत भला किसको न बांध पायेंगे। जो लोग प्रेम को पश्चिमी चश्मे से देखने का प्रयास करते हैंए वे इन प्रेम गीतों को महसूस करें और फिर सोचें कि भारतीय प्रेम और पाश्चात्य प्रेम का फर्क क्या है. इसी क्रम में अथर्ववेद में समाहित दो प्रेम गीतों का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत है-

प्रिया आ
मत दूर जा
लिपट मेरी देह से
लता लतरती ज्यों पेड़ से
मेरे तन के तने पर
तू आ टिक जा
अंक लगा मुझे
कभी न दूर जा
पंछी के पंख कतर
ज़मीं पर उतार लाते ज्यों
छेदन करता मैं तेरे दिल का
प्रिया आ, मत दूर जा।
धरती और अंबर को
सूरज ढक लेता ज्यों
तुझे अपनी बीज भूमि बना
आच्छादित कर लूंगा तुरंत
प्रिया आ, मन में छा
कभी न दूर जा
आ प्रिया!


हे अश्विन!
ज्यों घोड़ा दौड़ता आता
प्रिया-चित्त आए मेरी
ओर
ज्यों घुड़सवार कस
लगाम
रखता अश्व वश में
रहे तेरा मन
मेरे वश में
करे अनुकरण सर्वदा
मैं खींचता तेरा चित्त
ज्यों राजअश्व खींचता
घुड़सवार
अथित करूं तेरा हृदय
आंधी में भ्रमित तिनके जैसा
कोमल स्पर्श से कर
उबटन तन पर
मधुर औषधियों से
जो बना
थाम लूं मैं हाथ
भाग्य का कस के।

गुरुवार, 12 फ़रवरी 2009

राष्ट्रीय सहारा में ‘शब्द शिखर‘ ब्लॉग की चर्चा

'शब्द शिखर' पर 5 फरवरी 2009 को प्रस्तुत लेख 'अभी से चढ़ने लगा वेलेण्टाइन-डे का खुमार‘ को प्रतिष्ठित हिन्दी दैनिक पत्र ‘राष्ट्रीय सहारा‘ ने 11 फरवरी 2009 को अपने परिशिष्ट ‘आधी दुनिया‘ के ‘बिन्दास ब्लॉग' में स्थान दिया! इससे पूर्व इस ब्लाग को अमर उजाला एवं आई-नेक्स्ट जैसे प्रतिष्ठित दैनिक पत्रों ने भी स्थान दिया है। ....... आभार!!!

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2009

अभी से चढ़ने लगा वेलेण्टाइन-डे का खुमार


वसंत का मौसम आ गया है। मौसम में रूमानियत छाने लगी है। हर कोई चाहता है कि अपने प्यार के इजहार के लिए उसे अगले वसंत का इंतजार न करना पड़े। सारी तैयारियां आरम्भ हो गई हैं। प्यार में खलल डालने वाले भी डंडा लेकर तैयार बैठे हैं। भारतीय संस्कृति में ऋतुराज वसंत की अपनी महिमा है। वेदों में भी प्रेम की महिमा गाई गई है। यह अलग बात है कि हम जब तक किसी चीज पर पश्चिमी सभ्यता का ओढ़ावा नहीं ओढ़ा लेते, उसे मानने को तैयार ही नहीं होते। ‘योग‘ की महिमा हमने तभी जानी जब वह ‘योगा‘ होकर आयातित हुआ। ऋतुराज वसंत और इनकी मादकता की महिमा हमने तभी जानी जब वह ‘वेलेण्टाइन‘ के पंखों पर सवार होकर अपनी खुमारी फैलाने लगे।

प्रेम एक बेहद मासूम अभिव्यक्ति है। मशहूर दार्शनिक ख़लील जिब्रान एक जगह लिखते हैं-‘‘जब पहली बार प्रेम ने अपनी जादुई किरणों से मेरी आंखें खोली थीं और अपनी जोशीली अंगुलियों से मेरी रूह को छुआ था, तब दिन सपनों की तरह और रातें विवाह के उत्सव की तरह बीतीं।‘‘ अथर्ववेद में समाहित प्रेम गीत भला किसको न बांध पायेंगे। जो लोग प्रेम को पश्चिमी चश्मे से देखने का प्रयास करते हैं, वे इन प्रेम गीतों को महसूस करें और फिर सोचें कि भारतीय प्रेम और पाश्चात्य प्रेम का फर्क क्या है?

फिलहाल वेलेण्टाइन-डे का खुमार युवाओं पर चढ़कर बोल रहा है। कोई इसी दिन पण्डित से कहकर अपना विवाह-मुहूर्त निकलवा रहा है तो कोई इसे अपने जीवन का यादगार लम्हा बनाने का दूसरा बहाना ढूंढ रहा है। एक तरफ नैतिकता की झंडाबरदार सेनायें वेलेण्टाइन-डे का विरोध करने और इसी बहाने चर्चा में आने का बेसब्री से इंतजार कर रही हैं-‘करोगे डेटिंग तो करायेंगे वेडिंग।‘ यही नहीं इस सेना के लोग अपने साथ पण्डितों को लेकर भी चलेंगे, जिनके पास ‘मंगलसूत्र‘ और ‘हल्दी‘ होगी। तो अब वेलेण्टाइन डे के बहाने पण्डित जी की भी बल्ले-बल्ले है। जब सबकी बल्ले-बल्ले हो तो भला बहुराष्ट्रीय कम्पनियां कैसे पीछे रह सकती हैं। आर्थिक मंदी के इस दौर में ‘प्रेम‘ रूपी बाजार को भुनाने के लिए उन्होंने ‘वेलेण्टाइन-उत्सव‘ को बकायदा 11 दिन तक मनाने की घोषणा कर दी है। हर दिन को अलग-अलग नाम दिया है और उसी अनुरूप लोगों की जेब के अनुरूप गिट भी तय कर लिये हैं। यह उत्सव 5 फरवरी को ‘फ्रैगरेंस डे‘ से आरम्भ होगा तो 15 फरवरी को ‘फारगिव थैंक्स फारेवर योर्स डे‘ के रूप में खत्म होगा। यह भी अजूबा ही लगता है कि शाश्वत प्रेम को हमने दिनों की चहरदीवारी में कैद कर दिया है। खैर इस वर्ष ज्वैलरी पसंद लड़कियों के लिये बुरी खबर है कि मंहगाई के इस दौर में पिछले वर्ष का 12 फरवरी का ‘ज्वैलरी डे‘ और 13 फरवरी का ‘लविंग हार्टस डे‘ इस बार हटा दिया गया है। वेलेण्टाइन-डे के बहाने वसंत की मदमदाती फिजा में अभी से ‘फगुआ‘ खेलने की तैयारियां आरम्भ हो चुकी हैं।

5 फरवरी - फ्रैगरेंस डे
6 फरवरी - टैडीबियर डे
7 फरवरी - प्रपोज एण्ड स्माइल डे
8 फरवरी - रोज स्माइल प्रपोज डे
9 फरवरी - वेदर चॉकलेट डे
10 फरवरी - चॉकलेट मेक ए फ्रेंड टैडी डे
11 फरवरी - स्लैप कार्ड प्रामिस डे
12 फरवरी - हग चॉकलेट किस डे
13 फरवरी - किस स्वीट हर्ट हग डे
14 फरवरी - वैलेण्टाइन डे
15 फरवरी - फारगिव थैंक्स फारेवर योर्स डे

गुरुवार, 5 फ़रवरी 2009

अमर उजाला में 'शब्द-शिखर' ब्लॉग की चर्चा


''शब्द शिखर'' पर 3 फरवरी 2009 को प्रस्तुत लेख ''भारत में भी फैल रहा है वेडिंग-रिंग्स डे'' को प्रतिष्ठित हिन्दी दैनिक पत्र 'अमर उजाला' ने 5 फरवरी 2009 को अपने सम्पादकीय पृष्ठ पर 'ब्लॉग कोना' में स्थान दिया! ......... आभार!!!

मंगलवार, 3 फ़रवरी 2009

भारत में भी फैल रहा है ''वेडिंग-रिंग्स डे''



संसार में कई चीजें ऐसी होती हैं, जो हमें यूँ ही भाने लगती हैं। भारतीय संस्कृति में अधिकतर चीजें हमारे रीति-रिवाजों एवं संस्कारों से उद्गारित हैं तो पाश्चात्य संस्कृति में बाजार के प्रादुर्भाव से। ऋतुराज वसंत के आगमन के साथ ही चारो तरफ प्यार का खुमार चढ़ने लगता है। देवी सरस्वती की आराधना से लेकर होली की तैयारियों का इंतजाम देखते ही बनता है। पाश्चात्य संस्कृति का वैलेन्टाइन डे भी बहुत कुछ ऋतुराज वसंत से प्रभावित लगता है। फर्क मात्र इतना है कि भारतीय संस्कृति में जो चीजें संस्कारों के तहत होती हैं, पाश्चात्य संस्कृति में वही खुल्लम-खुल्ला होती हैं।

पाश्चात्य संस्कृति की ही देन है- सगाई की अंगूठी या इंगेजमेंट रिंग। किसी भी जोड़े के लिए इस रिंग का विशेष महत्व होता है। ईसाई धर्म में इस रिंग की खास पहचान होती है। वहाँ इसे मैरिज रिंग के तौर पर जाना जाता है और यह इस बात का परिचायक होता है कि विवाह हो चुका है। हिन्दू धर्म में रिंग पहनाना धार्मिक रिवाज तो नहीं है, पर रीति अवश्व बन चुकी है। ऐसी मान्यता है कि अनामिका उंगली में इंगेजमेंट/वेडिंग रिंग पहनने की शुरूआत मिस्र और रोम से हुई। मिस्र की सभ्यता में इसका चलन 4800 साल पहले से माना जाता है। तब अनामिका में पहनी जानी वाली इस रिंग को धार्मिक नजरिये से देखा जाता था। अनामिका के बारे में कहा जाता है कि यह दिल से जुड़ी होती है। यही वजह है कि दुनिया के कई देशों में अनामिका में इंगेजमेंट/वेडिंग रिंग पहनने का चलन है। कालान्तर में यह रिवाज भारत में आ गया। हिंदुओं में इंगेजमेंट के समय रिंग पहनाने का चलन है। शादी की अंगूठी अनामिका में ही पहने जाने के पीछे दिलचस्प मान्यता है कि अंगूठा माता-पिता, तर्जनी भाई-बहन, मध्यमा खुद का एवं अनामिका उंगली जीवनसाथी का प्रतिनिधित्व करती है। वैदिक धर्म में अनामिका सूर्य की उंगली मानी जाती है। इसमें सूर्य की रेखा होती है। अगर किसी की कुंडली में सूर्य कमजोर हो तो उसे इसमें सोने की अंगूठी पहनना चाहिए। सूर्य का रंग पीला होता है, इसलिए सोने से फायदा होता है। एक्यूप्रेशर विधि को अपनाने वालों के अनुसार वैवाहिक जीवन में मानसिक तनाव के दौरान भी यह रिंग फायदा देती है। इस उंगली में प्रेशर-प्वाइंट होता है, जिससे रिंग पहनने से आत्मविश्वास में बढ़ोत्तरी होती है।

फिलहाल देश और धर्म की बात छोड़ दे तो इंगेजमेंट/वेडिंग रिंग लोगों की भावनाओं और प्यार से जुड़ी होती है। यह प्यारा अहसास विवाहित लोगों की जिंदगी में ताउम्र बरकरार रहता है। इस रोचक अहसास को महसूस करने हेतु ही 3 फरवरी को प्रतिवर्ष ‘वेडिंग रिंग्स डे‘ मनाने का प्रचलन पाश्चात्य संस्कृति में रहा है, जो अब इण्टरनेट, टी0वी0 चैनलों एवं प्रिन्ट मीडिया के माध्यम से भारत में भी पाँव पसार रहा है। इस दिन एक-दूजे को फिर से रिंग पहनाकर उस अहसास को जीवंत रखने का पल होता है।