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बुधवार, 8 सितंबर 2010

हिंदी के नाम पर तमाशा...


हिंदी पखवाड़े की धूम आरंभ हो चुकी है. 1 सितम्बर से सभी सरकारी दफ्तरों में हिन्दी पखवाड़ा मनाया जा रहा है, तो कुछ में यह 14 सितम्बर से आरंभ होगा. यानी पूरा महीना ही हिंदी के नाम पर चाँदी. कुछ लोग तो तैयार बैठे रहते हैं कि कब किसी सरकारी प्रतिष्ठान से बुलावा आए और वहाँ अपना हिंदी-ज्ञान बघारने के लिए पहुँच जाएँ. बड़े-बड़े बैनर, शानदार बुके, शाल और उपहार, मौका मिला तो रचनाओं के पाठ और कवि सम्मेलनों के लिए अलग से चेक का इंतजाम. फिर बढ़िया नाश्ता तो मिलना तय है. कई बार तो देखकर हंसी आती है कि यह हिंदी को बढ़ावा देने के लिए हो रहा है या सरकारी अधिकारी/ बाबुओं और हिंदी के नाम पर व्यवसाय करने वालों को बढ़ावा दिया जा रहा है. यही हाल हिंदी किताबों की खरीद का भी है. सरकारी खरीद के चक्कर में प्रकाशक भी हिंदी किताबों के दाम औने-पौने बढ़ाये जा रहे हैं, आखिर कमीशन भी तो देना है. फिर हम हिंदी में पाठकों का रोना रोयेंगें या फिर हिंदी साहित्य की स्तरीयता पर प्रश्नचिंह लगायेंगें. दुर्भाग्यवश हिंदी के नाम पर तमाम उत्सव, पखवाड़े, दिवस और समितियाँ कार्य कर रही हैं, पर हिंदी का वास्तविक भला कोई नहीं कर रहा है. सभी लोग सिर्फ अपना भला कर रहे हैं. कृष्ण कुमार जी की पंक्तियाँ गौरतलब हैं-

सरकारी बाबू ने कुल खर्च की फाइल
धीरे-धीरे अधिकारी तक बढ़ायी
अधिकारी महोदय ने ज्यों ही
अंग्रेजी में अनुमोदन लिखा
बाबू ने धीमे से टोका
अधिकारी महोदय ने नजरें उठायीं
और झल्लाकर बोले
तुम्हें यह भी बताना पड़ेगा
कि हिन्दी पखवाड़ा बीत चुका है .


..या फिर चन्द्रभाल सुकुमार जी के इस दोहे पर गौर करें-

अंग्रेज़ी हँसने लगी, सुन हिन्दी का हाल,
कैसे बहन समेट लूँ, इतनी जल्दी जाल .

Akanksha Yadav आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर : http://shabdshikhar.blogspot.com/

14 टिप्‍पणियां:

Majaal ने कहा…

बात भाषा विशेष की नहीं है. अक्सर हिंदी वाले भाई लोग दोसरों के द्वारा अंग्रेजी या कोई और प्रादेशिक भाषा बोलने पर उसे हिंदी का तिरस्कार मान लेतें है, जबकि ज्यादातर मामलों में स्तिथि बड़ी ही स्वभावक होती है. सामने वाला अपनी भाषा ही बोलेगा, क्योकि उसकी परवरिश और आस पास का मौहौल ही ऐसा है. हम लोग हिंदी इसलिए बोलते है क्योकि हमारी प्रादेशिक भाषा भी यही है. दूसरा बंदा उसकी मात्रभाषा ही बोलेगा. हिंदी तभी बोलेगा जब जरूरत हो, या फिर उसको भाषा के प्रति रूचि हो. बात है लोगों की पसंद कीम किसी पे थोप तो नहीं सकते है न ...
ये भाषा प्रचार का तरीका तो मुझे कभी समझ में नहीं आया. 'ये बोले, ये भाषा हमारी है ...' सामने वाला जब आपसे इत्तेफाक ही नहीं रखता तो क्या खाक आपकी बात को तवोज्जो देगा. मजेदार बात ये है की हिंदी को सबसे ज्यादा प्रोत्साहन मिला है हिंदी फिल्मों के द्वारा, और उन्होंने कभी भी नहीं कहा की 'बोलो' ! लोगों को पसंद है संग्गेत और फिल्मे देखना इसलिये कितनों ने ही हिंदी को सिखा, वो भी बड़े सभाविक तरीके से और मन से .. जबरदस्ती से क्या हासिल किया जा सकता है, सिर्फ अपना उल्लू सीधा कर सकते है ...

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

सही बात है, दुख भी इसी बात का ही है।

shikha varshney ने कहा…

सही कहा है ..दुर्भाग्यपूर्ण है ...

राज भाटिय़ा ने कहा…

अजी पागल पन है, लेकिन इन हिन्दी पखवाडा मनाने बालो के पोस्ट्र भी कभी कभी अग्रेजी मै लिखे होते है, तो कभी कभी इन के भाषाण भी अग्रेजी मै ही होते है:)

'साहिल' ने कहा…

भाषा से लेकर खेलों तक, हर क्षेत्र मैं भर्ष्टाचार व्यापित है..........सचमुच दुर्भाग्यपूर्ण

KK Yadav ने कहा…

अरे वाह मेरी कविता के अंश...अच्छा लगा पढ़कर..!!

KK Yadav ने कहा…

हिंदी की स्थिति पर बहुत सुन्दर और सटीक लिखा...साधुवाद.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

अंग्रेज़ी हँसने लगी, सुन हिन्दी का हाल,
कैसे बहन समेट लूँ, इतनी जल्दी जाल ...Bahut khub.

Amit Kumar Yadav ने कहा…

आज हिंदी दिवस है. अपने देश में हिंदी की क्या स्थिति है, यह किसी से छुपा नहीं है. हिंदी को लेकर तमाम कवायदें हो रही हैं, पर हिंदी के नाम पर खाना-पूर्ति ज्यादा हो रही है. जरुरत है हम हिंदी को लेकर संजीदगी से सोचें और तभी हिंदी पल्लवित-पुष्पित हो सकेगी...! ''हिंदी-दिवस'' की बधाइयाँ !!

Amit Kumar Yadav ने कहा…

आज हिंदी दिवस है. अपने देश में हिंदी की क्या स्थिति है, यह किसी से छुपा नहीं है. हिंदी को लेकर तमाम कवायदें हो रही हैं, पर हिंदी के नाम पर खाना-पूर्ति ज्यादा हो रही है. जरुरत है हम हिंदी को लेकर संजीदगी से सोचें और तभी हिंदी पल्लवित-पुष्पित हो सकेगी...! ''हिंदी-दिवस'' की बधाइयाँ !!

Unknown ने कहा…

...बड़ी महत्वपूर्ण बात उठाई आकांक्षा जी आपने..इस ओर सोचने की जरुरत है.

Unknown ने कहा…

राजभाषा -मातृभाषा हिंदी के प्रति आपकी भावनाएं उत्तम हैं.

Shahroz ने कहा…

कई बार तो देखकर हंसी आती है कि यह हिंदी को बढ़ावा देने के लिए हो रहा है या सरकारी अधिकारी/ बाबुओं और हिंदी के नाम पर व्यवसाय करने वालों को बढ़ावा दिया जा रहा है...सहमत हूँ आपसे. विचारोत्तेजक पोस्ट...बधाई.

raghav ने कहा…

सच है अब हिंदी केवल हिंदी पखवारे या हिंदी दिवस तक ही सिमिट कर रह गयी है. ऑफिस में हिंदी दिवस पर फंड को खर्च करना ही मकसद रह गया है
महत्वपूर्ण बात उठाई आपने.