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रविवार, 3 अक्तूबर 2010

राष्ट्रमंडल खेल, गाँधी जी और जनकवि नागार्जुन....

आज से राष्ट्रमंडल खेल आरंभ हो रहे हैं. कुछ लोग इसका विरोध कर रहे हैं तो कुछ पक्ष में. विरोध का कारण खेल नहीं बल्कि इन खेलों के पीछे छुपे गुलामी के अवशेष हैं. हम सभी ने देख की किस तरह भारत की राष्ट्रपति क्वींस-बैटन को लेने लन्दन पहुँची. आज भारत एक संप्रभु राष्ट्र है, हमें किसी भी आयोजन के लिए किसी की रहनुमाई की जरुरत नहीं है. मणिशंकर अय्यर, शिवराज सिंह चौहान के विरोध राजनैतिक हो सकते हैं, पर तमाम ऐसे भारतीय हैं, जो इन खेलों को गुलामी के प्रतीक रूप में देखते हैं. गुलामी के प्रतीकों को जितना जल्दी उतार दिया जाय, किसी राष्ट्र के लिए बेहतर ही होगा. वैसे भी राष्ट्रपिता गाँधी जी की जयंती के ठीक अगले दिन राष्ट्रमंडल खेलों की शुरुआत कहीं उस अंग्रेजी मानसिकता का परिचायक तो नहीं है, जो गाँधी जी के सपनों को भुला देनी चाहती है. यहाँ याद आती हैं जनकवि नागार्जुन की एक विलक्षण कविता, जो उन्होंने वर्ष 1961 में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय के भारत दौरे को इंगित करते हुए लिखी थी.इसमें एक पंक्ति गौरतलब है- बापू को मत छेड़ो, अपने पुरखों से उपहार लो।...कहीं गाँधी जी के नाम पर सत्ता का स्वाद चखती कांग्रेस सरकार 'गाँधी जयंती' के अगले दिन इस आयोजन का उद्घाटन करवाकर बापू को छेड़ तो नहीं रही है। सौभाग्यवश यह नागार्जुन जी का जन्म -शताब्दी अवसर भी है, अत: यह कविता और भी प्रासंगिक हो जाती है-

आओ रानी,

आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी,

यही हुई है राय जवाहरलाल की,

रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की,

यही हुई है राय जवाहरलाल की,

आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !


आओ शाही बैण्ड बजायें,

आओ बन्दनवार सजायें,

खुशियों में डूबे उतरायें,

आओ तुमको सैर करायें...

उटकमंड की, शिमला-नैनीताल की,

आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !


तुम मुस्कान लुटाती आओ,

तुम वरदान लुटाती जाओ,

आओ जी चांदी के पथ पर,

आओ जी कंचन के रथ पर,

नज़र बिछी है, एक-एक दिकपाल की,

छ्टा दिखाओ गति की लय की ताल की,

आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !


सैनिक तुम्हें सलामी देंगे,

लोग-बाग बलि-बलि जायेंगे,

दॄग-दॄग में खुशियाँ छ्लकेंगी,

ओसों में दूबें झलकेंगी।

प्रणति मिलेगी नये राष्ट्र के भाल की,

आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !


बेबस-बेसुध, सूखे-रुखडे़,

हम ठहरे तिनकों के टुकडे़,

टहनी हो तुम भारी-भरकम डाल की,

खोज खबर तो लो अपने भक्तों के खास महाल की !

लो कपूर की लपट,

आरती लो सोने की थाल की,

आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !


भूखी भारत-माता के सूखे हाथों को चूम लो।

प्रेसिडेन्ट की लंच-डिनर में स्वाद बदल लो, झूम लो।

पद्म-भूषणों, भारत-रत्नों से उनके उद्गार लो,

पार्लियामेंट के प्रतिनिधियों से आदर लो, सत्कार लो।

मिनिस्टरों से शेकहैण्ड लो, जनता से जयकार लो।

दायें-बायें खडे हज़ारी आफ़िसरों से प्यार लो।

धनकुबेर उत्सुक दीखेंगे उनके ज़रा दुलार लो।

होंठों को कम्पित कर लो, रह-रह के कनखी मार लो।

बिजली की यह दीपमालिका, फिर-फिर इसे निहार लो।

यह तो नयी नयी दिल्ली है, दिल में इसे उतार लो।

एक बात कह दूं मलका, थोडी-सी लाज उधार लो।

बापू को मत छेडो, अपने पुरखों से उपहार लो।

जय ब्रिटेन की जय हो इस कलिकाल की !

आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !


रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की,

यही हुई है राय जवाहरलाल की,

आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी !

29 टिप्‍पणियां:

Shyama ने कहा…

बड़ी खूबसूरती से आपने चीजों का विश्लेषण करते हुए पेश किया है, यही एक लेखक की विशेषता होती है...साधुवाद.

Shyama ने कहा…

शायद गाँधी जी आज जिन्दा होते तो इस तमाशे का समर्थन नहीं करते. एक तरफ खादी के कपड़ों पर दी जा रही सब्सिसी हटाई जा रही है, वहीँ गाँधी-जयंती के अगले दिन ही यह तमाशा....

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

लहरे सदा तिरंगा,
हम ढोयेंगे डंडा।

Akanksha Yadav ने कहा…

@ Sanjay Bhaskar,

Thanks a lot.

Akanksha Yadav ने कहा…

@ Shyama,

सराहना के लिए आभार. सही कहा आपने. यही तो देश का दुर्भाग्य है.

Akanksha Yadav ने कहा…

@ प्रवीन पाण्डेय जी,
..शायद हमारी भूमिका डंडा ढोने वालों जैसी ही हो गई है...दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र जब खुद निर्णय लेने की बजाय दूसरों का मुंह देखता है तो यही होता है.

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

नागार्जुन कि कविता बहुत अच्छी लगी ...राष्ट्र मंडल खेलों के आयोजन को लेकर गुलामी कि भावना क्यों पनप रही है समझ से बाहर है ...देश विश्व में अपनी छवि बना रहा है ...गौरव करना चाहिए ...

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

शताब्दी वर्ष में नागार्जुन जी की कविता पढना समसामयिक लगा.

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

शताब्दी वर्ष में नागार्जुन जी की कविता पढना समसामयिक लगा.

राज भाटिय़ा ने कहा…

राष्ट्रमंडल( कामंन बेल्थ) कोन कोन से राष्ट्र इस मै शामिल है, सिर्फ़ गुलाम ओर गुलाम या वो जिन्होने हमारे बुजुर्गो को पांव तले रोंदा, ओर आज हम उन्हे ही सम्मान दे रहे है? इस से बडी गुलामो की मानसिकता ओर क्या होगी, इस रानी की बच्ची को तो कभी भारत की तरफ़ देखने की हिम्मत नही होनी चाहिये थी,लेकिन हम ही आज भू गुलाम है मान्सिकाता तॊर पर अब इसे कुछ भी नाम दे दो

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

राष्ट्रमंडल का पूरा आधार ही रेसिज्म पर खडा है. ये बनाया गया था कि पूर्व ब्रिटेन_ गुलाम देश आपसी सौहार्द से रहते हुये अपनी आवाज विश्व पटल पर एक साथ मजबूती से रख सके. मगर जिस तरह एक महत्वपूर्ण देश होते हुये आस्ट्रेलिया भारत की फजीहत पर उतारू हुआ तथा भारत में इस खेल के होने पर ही सवाल उठाया उसे देखते हुये इसके आैचित्य पर ही सवाल खडा होता है. जहां आस्ट्रेलिया के कई खिलाडी दिल्ली की गन्दगी व डेंगूं के डर से भारत नहीं आये वही उनकी क्रिकेट टीम भारत में खुशी से खेल रही है. बद इन्तजामी का आरोप लगाने वाले इस देश के क्रिकेट खिलाडियों को अगर किसी गली में कूडे के ढेर पर IPL मैच कराया जाय तो भी वह पैसे के लिये खेल सकते है. इस मानसकिता वाले देशों से भरे इस संगठन से पार पाना इस देश की कमजोर राजनीतिक इच्छा शक्ति के वश मे शायद नहीं.
बहरहाल नागार्जुन जी की कविता ने मन मोह लिया.अच्दी प्रस्तुति.........

शरद कोकास ने कहा…

बहुत बढ़िया कविता है यह बाबा की । हम इसे पढ़कर भी नही सुधरे ।

www.dakbabu.blogspot.com ने कहा…

कब तक हम रानी की पालकी ढोयेंगे...गुलामी के अवसेष जल्दी नहीं जाते हैं, कामनवेल्थ गेम्स उन्हीं की निशानी है...बाबा नागार्जुन जी की कविता ने मन मोह लिया .

Udan Tashtari ने कहा…

बाबा की यह कविता अभी कुछ ही दिन पहले भी पढ़ी थी..बहुत बढ़िया प्रस्तुति.

Amit Chandra ने कहा…

akanksha ji subse pahle to ehsas par tippni karne ke liye dhanyad. aasha karta hu ki aage bhi apni bahumulya tippniyo se hamara marg darshan karti rahengi.

Amit Chandra ने कहा…

pata nahi aap ye kyon soch rahi hai ki ye gulami ka parichayak hai.
hamara desh vishwa me ek shakti ke roop me subke samne khada hai. halaki mai bhi cwg ke saath nahi hu. kayonki jitna paisa aur samay sarkar ne isme barbad kiya hai agar wo janta ke upar kiya jata to desh ki tasvir kuch aur hi hoti.

जयकृष्ण राय तुषार ने कहा…

bahut sundar prastuti aknkshaji badhai

Dr. Brajesh Swaroop ने कहा…

गुलामी के प्रतीकों पर सुन्दर पोस्ट...नागार्जुन जी की कविता का कोई जवाब नहीं...नमन.

Akanksha Yadav ने कहा…

@ Sangeeta ji,

नागार्जुन जी की कविता को सराहने के लिए आभार. ..देश विश्व में अपनी छवि बना रहा है ..पर सवाल है की यह छवि नकारात्मक क्यों बन रही है.

Akanksha Yadav ने कहा…

@ Bhatiya ji,

@ Upendra ji,


..इस विमर्श को आपने आगे बढाया..आभार.

Akanksha Yadav ने कहा…

@ Sharad ji,

...सुधर जाते तो फिर बाबा को फिर से उद्धृत करने की जरुरत ही कहाँ पड़ती.

@ ehsas ji,
..आपने स्वयं जवाब दे दिया. जब हमारी प्राथमिकता हम नहीं हों, अन्य हों तो गुलामी के अवसेश लाजिमी हैं.

Akanksha Yadav ने कहा…

इस पोस्ट पर टिप्पणियों और विमर्श को बढ़ने के लिए के लिए आप सभी का आभार. अपना स्नेह यूँ ही बनाये रखें.

raghav ने कहा…

भूखी भारत-माता के सूखे हाथों को चूम लो।
प्रेसिडेन्ट की लंच-डिनर में स्वाद बदल लो, झूम लो।...bahut khub...

raghav ने कहा…

नवरात्र की शुभकामनायें..

शरद कुमार ने कहा…

विरोध का कारण खेल नहीं बल्कि इन खेलों के पीछे छुपे गुलामी के अवशेष हैं....Sahmat hoon.

शरद कुमार ने कहा…

नवरात्र के पावन अवसर पर आपको और आपके परिवार के सभी सदस्यों को हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई!

editor : guftgu ने कहा…

आकांक्षा जी ,

दिलचस्प पोस्ट. आपकी हर पोस्ट सुन्दर होती है और जानकारीपरक भी..मुबारकवाद

Akanksha Yadav ने कहा…

@ Raghav,
@ Sharad,
@ Ghazi,


धन्यवाद...आपको यह पोस्ट पसंद आई. आपको भी नवरात्र की शुभकामनायें.

Tausif Hindustani ने कहा…

बहुत ही अतुलनीय एवं सराहनीय कार्य आपने ये किया है ऐसे हमारे सामने रखा , वरना ऐसे कविताओं को तो आज
धुल फांकने के लिए रख दिय जाता है
dabirnews.blogspot.com