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बुधवार, 18 मई 2011

मेघा रे मेघा...

गर्मी का प्रकोप जोरों पर है. तापमान 40-45 से ऊपर जा रहा है. यहाँ तक कि पहाड़ और समुद्र के किनारे बसे इलाके भी इसकी विभीषिका से जूझ रहे हैं. अंडमान में तो पहले अप्रैल से अक्तूबर तक घनघोर बारिश होती थी, पर सुनामी ने ऐसा कहर ढाया कि ऋतु-चक्र ही बदल गया. मई माह आधा बीतने वाला है, पर बमुश्किल 4-5 दिन बारिश हुई होगी. इसे पर्यावरण-प्रदूषण का प्रकोप कहें या पारिस्थितकीय असंतुलन। पर गर्मी की तपिश ने हर व्यक्ति को रूला कर रख दिया है. वरुण देवता तो मानो पृथ्वी से रूठे हुए हैं. मसूरी, शिमला, पचमढ़ी जैसी जिन जगहों को अनुकूल मौसम के लिए जाना जाता है, वहाँ भी गर्मी का प्रकोप दिखाई दे रहा है। पंखे छोडिये अब बिना ए. सी. के कम नहीं चलता.

ऐसे में रूठे बादलों को मनाने के लिए लोग तमाम परंपरागत नुस्खों को अपना रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि बरसात और देवताओं के राजा इंद्र इन तरकीबों से रीझ कर बादलों को भेज देते हैं और धरती हरियाली से लहलहा उठती है। इसमें कितनी सच्चाई है, यह तो इन्द्र देवता ही बता पायेंगें. इनमें सबसे प्रचलित नुस्खा मेंढक-मेंढकी की शादी है। मानसून को रिझाने के लिए देश के तमाम हिस्सों में चुनरी ओढ़ाकर बाकायदा रीति-रिवाज से मेंढक-मेंढकी की शादी की जाती है। इनमें मांग भरने से लेकर तमाम रिवाज आम शादियों की तरह होते हैं। एक अन्य प्रचलित नुस्खा महिलाओं द्वारा खेत में हल खींचकर जुताई करना है। कुछ अंचलों में तो महिलाए अर्धरात्रि को अर्धनग्न होकर हल खींचकर जुताई करतीं हैं। बच्चों के लिए यह अवसर काले मेघा को रिझाने का भी होता है और शरारतें करने का भी। वे नंगे बदन जमीन पर लोटते हैं और प्रतीकात्मक रूप से उन पर पानी डालकर बादलों को बुलाया जाता है। एक अन्य मजेदार परम्परा में गधों की शादी द्वारा इन्द्र देवता को रिझाया जाता है। इस अनोखी शादी में इंद्र देव को खास तौर पर निमंत्रण भेजा जाता है। मकसद साफ है इंद्र देव आएंगे तो साथ मानसून भी ले आएंगे। गधे और गधी को नए वस्त्र पहनाए जाते हैं और शादी के लिए बाकायदा मंडप सजाया जाता है, शादी खूब धूम-धाम से होती है। बरसात के अभाव में मनुष्य असमय दम तोड़ सकता है, इस बात से इन्द्र देवता को रूबरू कराने के लिए जीवित व्यक्ति की शव-यात्रा तक निकाली जाती है। इसमें बरसात के लिए एक जिंदा व्यक्ति को आसमान की तरफ हाथ जोड़े हुए अर्थी में लिटा दिया जाता है। तमाम प्रक्रिया ‘दाह संस्कार‘ की होती है। ऐसा करके इंद्र को यह जताने का प्रयास किया जाता है कि धरती पर सूखे से यह हाल हो रहा है, अब तो कृपा करो।

इन परम्पराओं से परे कुछेक परम्पराएँ वैज्ञानिक मान्यताओं पर भी खरी उतरती हैं। ऐसा माना जाता है कि पेड़-पौधे बरसात लाने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। इसी के तहत पेड़ों का लगन कराया जाता है। कर्नाटक के एक गाँव में इंद्र देवता को मनाने के लिए एक अनोखी परंपरा है। यहां नीम के पौधे को दुल्हन बनाया जाता है और अश्वत्था पेड़ को दूल्हा। पूरी हिंदू रीति रिवाज से शादी संपन्न की जाती है, जिसमें गाँव के सैकड़ों लोग हिस्सा हिस्सा लेते हैं. नीम के पेड़ को बाकायदा मंगलसूत्र भी पहनाया जाता है। लोगों का मानना है कि अलग-अलग प्रजाति के पेड़ों की शादी का आयोजन करने से झमाझम पानी बरसता है। इस सम्बन्ध में कई मान्यताएं भी हैं. मसलन, कहते हैं जब धूप भी हो और बारिस भी हो रही हो तो उस समय सियार का विवाह होता है. पर अब तो ऐसे दिन देखने को ऑंखें ही तरस गई हैं.


यह भी अजीब बात है कि, यह ईश्वरीय और कर्मकांडी आस्था भी तभी प्रबल होती है, जब आदमी पर मुसीबत पड़ती है. मनुष्य यह नहीं सोचता कि यदि बारिश नहीं हो रही तो इसका कारण वह स्वयं है और जरुरत उसके निवारण की है. जब तक मानव, प्रकृति से शादी (तदाद्मय) नहीं करेगा, बरसात के लिए तरसेगा ही. अब इसे परम्पराओं का प्रभाव कहें या मानवीय बेबसी, पर अंततः कुछ दिनों के लिए बारिश होती है लेकिन हर साल यह मनुष्य व जीव-जन्तुओं के साथ पेड़-पौधों को भी तरसाती हैं। बेहतर होता यदि हम मात्र एक महीने सोचने की बजाय साल भर विचार करते कि किस तरह हमने प्रकृति को नुकसान पहुँचाया है, उसके आवरण को छिन्न-भिन्न कर दिया है, तो निश्चिततः बारिश समय से होती और हमें व्यर्थ में परेशान नहीं होना पड़ता। अभी भी वक्त है, यदि हम चेत सके तो इस पारिस्थिकीय-प्रकोप से बचा जा सकता है अन्यथा हर वर्ष इसी तरह इन्द्र देवता को मानते रहेंगें और इन्द्र देवता यूँ ही नखरे दिखाते रहेंगें !!

सोमवार, 9 मई 2011

प्रिंट-मीडिया में 'शब्द-शिखर' की 25वीं चर्चा


'शब्द शिखर' पर 26 अप्रैल, 2011 को प्रस्तुत पोस्ट 'मानव ही बन गया है खतरा... ' को प्रतिष्ठित हिंदी दैनिक अख़बार जनसत्ता के नियमित स्तंभ ‘समांतर’ में आज 09 मई, 2011 को 'अस्तित्व का संकट' शीर्षक से स्थान दिया गया है. जनसत्ता में तीसरी बार मेरी किसी पोस्ट की चर्चा हुई है और इससे पूर्व 'शब्द शिखर' पर 21 अक्तूबर, 2010 को प्रस्तुत पोस्ट 'कहाँ गईं वो तितलियाँ' को जनसत्ता के ‘समांतर’ स्तम्भ में 7 दिसंबर, 2010 को 'गुम होती तितली' शीर्षक एवं अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस (8 मार्च, 2010) को प्रस्तुत पोस्ट 'महिला होने पर गर्व' को 12 मार्च, 2011 को 'किसका समाज' शीर्षक से स्थान दिया गया था. समग्र रूप में प्रिंट-मीडिया में 25वीं बार मेरी किसी पोस्ट की चर्चा हुई है.. आभार !!

इससे पहले शब्द-शिखर और अन्य ब्लॉग पर प्रकाशित मेरी पोस्ट की चर्चा दैनिक जागरण, जनसत्ता, अमर उजाला,राष्ट्रीय सहारा,राजस्थान पत्रिका, आज समाज, गजरौला टाईम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, दस्तक, आई-नेक्स्ट, IANS द्वारा जारी फीचर में की जा चुकी है. आप सभी का इस समर्थन व सहयोग के लिए आभार! यूँ ही अपना सहयोग व स्नेह बनाये रखें !!

चित्र साभार : http://blogsinmedia.com/

रविवार, 8 मई 2011

मदर्स डे पर कृष्ण कुमार यादव की कविता : माँ

आज सुबह कुछ पहले ही नींद खुल गई. मन किया कि बाहर जाकर बैठूं. अभी सूर्य देवता ने दर्शन नहीं दिए थे पर ढेर सारी चिड़िया कलरव कर रही थीं. मौसम में हलकी सी ठण्ड थी, शायद रात में बारिश हुई थी. अचानक दिमाग में ख्याल आया कि हम लोग भी घर से कितने दूर हैं. एक ऐसी जगह जहाँ सारे रिश्ते बेगाने हैं. एक-दो साल बाद हम लोग भी यहाँ से चले जायेंगे. इन सबके बीच घर की याद आई तो मम्मी का चेहरा आँखों के सामने घूम गया. कभी सोचा भी ना था की मम्मी से एक दिन इतने दूर जायेंगे, पर दुनिया का रिवाज है. शादी के बाद सबको अपनी नई दुनिया में जाना होता है, बस रह जाती हैं यादें. पर यादें जीवन भर नहीं छूटतीं , हमें अपने आगोश में लिए रहती हैं. ..पर आज पता नहीं क्यों सुबह-सुबह मम्मी की खूब याद आ रही थी. सोचा कि फोन करूँ तो याद आया कि वहाँ तो अभी सभी लोग सो रहे होंगे. सामने नजर दौडाई तो पतिदेव कृष्ण कुमार जी का काव्य-संग्रह 'अभिलाषा' दिखी. पहला पन्ना पलटते ही 'माँ' कविता पर निगाहें ठहर गईं. एक बार नहीं कई बार पढ़ा. वाकई यह कविता दिल के बहुत करीब लगी. अंतर्मन के मनोभावों को बखूबी संजोया गया है इस अनुपम कविता में. सौभाग्यवश आज मई माह का दूसरा रविवार है और इसे दुनिया में मदर्स डे के रूप में मनाया जाता है. तो आज इस विशिष्ट दिवस पर माँ को समर्पित यही कविता आप लोगों के साथ शेयर कर रही हूँ-


मेरा प्यारा सा बच्चा
गोद में भर लेती है बच्चे को
चेहरे पर नजर न लगे
माथे पर काजल का टीका लगाती है
कोई बुरी आत्मा न छू सके
बाँहों में ताबीज बाँध देती है।

बच्चा स्कूल जाने लगा है
सुबह से ही माँ जुट जाती है
चैके-बर्तन में
कहीं बेटा भूखा न चला जाये।
लड़कर आता है पड़ोसियों के बच्चों से
माँ के आँचल में छुप जाता है
अब उसे कुछ नहीं हो सकता।

बच्चा बड़ा होता जाता है
माँ मन्नतें माँगती है
देवी-देवताओं से
बेटे के सुनहरे भविष्य की खातिर
बेटा कामयाबी पाता है
माँ भर लेती है उसे बाँहों में
अब बेटा नजरों से दूर हो जायेगा।

फिर एक दिन आता है
शहनाईयाँ गूँज उठती हैं
माँ के कदम आज जमीं पर नहीं
कभी इधर दौड़ती है, कभी उधर
बहू के कदमों का इंतजार है उसे
आशीर्वाद देती है दोनों को
एक नई जिन्दगी की शुरूआत के लिए।

माँ सिखाती है बहू को
परिवार की परम्परायें व संस्कार
बेटे का हाथ बहू के हाथों में रख
बोलती है
बहुत नाजों से पाला है इसे
अब तुम्हें ही देखना है।

माँ की खुशी भरी आँखों से
आँसू की एक गरम बूँद
गिरती है बहू की हथेली पर।


( कृष्ण कुमार यादव जी के प्रथम काव्य-संग्रह "अभिलाषा" से साभार)

सोमवार, 2 मई 2011

हिंदी ब्लागिंग से आशाएं बढ़ा गया दिल्ली में हुआ ब्लागर्स सम्मलेन

ब्लागिंग को एक स्वतंत्र विधा के रूप में स्थापित करने में तमाम प्रक्रियाएं परिलक्षित हो रही हैं, इसी क्रम में हिंदी ब्लागिंग ने भी वर्ष 2003 में आरंभ होकर लगभग 8 वर्ष का सफ़र पूरा कार लिया है. आज 30,000 से ज्यादा लोग हिंदी ब्लागिंग से जुड़े हुए हैं. इनमें प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया से लेकर समाज के हर वर्ग, पेशे से जुड़े लोग अपनी भावनाओं को न सिर्फ चिट्ठों पर अभिव्यक्त कर रहे हैं, बल्कि उसे लोगों के साथ बाकायदा साझा करके नए विमर्शों को भी जन्म दे रहे हैं. ब्लागिंग और सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स का क्रेज इतना बढ़ चुका है कि वह तमाम देशों में चल रहे क्रांति और आंदोलनों को भी गंभीर धार दे रही है. हाल ही में भारत में अन्ना हजारे के आन्दोलन के दौरान भी इसकी प्रखर भूमिका देखने को मिली. ऐसे में ब्लागिंग से जुड़ा कोई भी कार्यक्रम अपने आप में महत्वपूर्ण हो जाता है.



हिंदी साहित्य निकेतन की स्वर्ण जयंती पर हिंदी साहित्‍य निकेतन, परिकल्‍पना डॉट कॉम और नुक्‍कड़ डॉट कॉम की त्रिवेणी द्वारा हिंदी भवन, नई दिल्ली में 30 अप्रैल, 2011 को आयोजित कार्यक्रम को इसी सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए. बतौर मुख्यमंत्री उत्‍तराखंड के मुख्‍यमंत्री डा0 रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने जब अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि, हिंदी भाषा जब चहुं ओर से तमाम थपेड़े खा रही हो, अपने ही घर में अपमानित हो रही हो और हिंदी में सृजन करने वाला अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहा हो, ऐसे में इस प्रकार के कार्यक्रम की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है, तो मुख्यमंत्री से परे वे एक साहित्यकार के रूप में ही अपना दुःख व्यक्त कर रहे थे. आखिर वे भी साहित्य में उसी भावभूमि के पोषक हैं, जिसका मानना है कि, कल्‍पना स्‍वर्ग की तरंगों का अहसास कराती है, वहीं सृजन हमारे सामाजिक सरोकार को मजबूती देता है। ऐसे में एक प्रभावी मंच से निशंक जी ने उक्त उद्गार व्यक्त कर हिंदी ब्लागिंग से नई आशाएं भी व्यक्त की हैं, जिनका कि सम्मान किया जाना चाहिए.




इस अवसर पर अविनाश वाचस्‍पति और रवीन्‍द्र प्रभात द्वारा संपादित हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की पहली मूल्‍यांकनपरक पुस्‍तक ‘हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग : अभिव्‍यक्ति की नई क्रांति’, का लोकार्पण जहाँ हिंदी ब्लागिंग को नए आयाम दिखता है, वहीँ यह भी सचेत करता है कि अभिव्यक्ति की इस नई क्रांति को अपने दलदलों से भी बचकर रहना होगा. क्योंकि इस विधा के उन्नयन के साथ ही इस पर हमले भी तेज हो रहे हैं. फ़िलहाल रवीन्द्र प्रभात जी की पुस्तक ''हिंदी ब्लागिंग का इतिहास'' का भी लोगों को इंतजार बना रहेगा, जिसके इस कार्यक्रम में दिखने की सम्भावना थी.



दो सत्रों में संपन्‍न इस कार्यक्रम का सशक्त पक्ष रहा, परिकल्‍पना डॉट कॉम की ओर से देश विदेश के 51 चर्चित और श्रेष्‍ठ तथा नुक्‍कड़ डॉट कॉम की ओर से हिंदी ब्‍लॉगिंग में विशिष्‍टता हासिल करने वाले 13 ब्‍लॉगरों को सारस्‍वत सम्‍मान प्रदान किया जाना. इससे यह कार्यक्रम और भी समावेशी और भागीदारीपूर्ण हो गया. जहाँ पहले सत्र की अध्‍यक्षता हास्‍य व्‍यंग्‍य के लोकप्रिय हस्‍ताक्षर एवं चर्चित ब्लागर अशोक चक्रधर ने की वहीँ मुख्‍य अतिथि का गुरुतर दायित्व संभाला वरिष्‍ठ साहित्‍यकार डॉ. रामदरश मिश्र ने और विशिष्‍ट अतिथि रहे प्रभाकर श्रोत्रिय। प्रमुख समाजसेवी विश्‍वबंधु गुप्‍ता और डायमंड बुक्‍स के संचालक नरेन्‍द्र कुमार वर्मा ने भी मंचासीन होकर कार्यक्रम की शोभा बढाई.



इस अवसर पर ब्लागिंग के बारे में भी गंभीर विमर्श हुआ. बकौल अशोक चक्रधर -''हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग ने सचमुच समाज में एक नई क्रांति का सूत्रपात किया है क्‍योंकि पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में साहित्‍य और संस्‍कृति के पेज संकुचित होते जा रहे हैं और उनकी अभिव्‍यक्ति को धार दे रही है हिन्‍दी ब्‍लॅगिंग। ऐसे कार्यक्रमों से निश्चित रूप से हिंदी का विकास होगा और हिन्‍दी अंतरराष्‍ट्रीय फलक पर अग्रणी भाषा के रूप में प्रतिस्‍थापित होगी।'' वहीँ डॉ. रामदरश मिश्र इस विधा के प्रति आशान्वित होते दिखे-''जब मैंने साहित्य सृजन करना शुरु किया था तो मैं यह महसूस करता था कि कलम सोचती है और आज़ हिन्दी ब्लोगिंग के इस महत्वपूर्ण दौर मे यह कहने पर विवश हो गया हूँ कि उंगलिया भी सोचती है।'' हिंदी के प्रखर साहित्यकार प्रभाकर श्रोत्रिय ने तो अभिव्यक्ति के इस नए माध्यम 'ब्लागिंग' को वर्तमान परिवेश और घटना क्रम में लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति से जोड़कर देखा और कहा कि हिंदी ब्लॉगिंग का तेजी से विकास हो रहा है, तमाम साधन और सूचना की न्यूनता के बावजूद यह माध्यम प्रगति पथ पर तीब्र गति से अग्रसर है, तकनीक और विचारों का यह साझा मंच कुछ बेहतर करने हेतु प्रतिबद्ध दिखाई दे रहा है । पूरे विमर्श के दौरान यह बात खुलकर सामने आई कि, हिंदी ब्‍लॉगिंग में सामाजिक स्‍वर और सरोकार पूरी तरह परिलक्षित हो रहा है। कई ऐसे ब्‍लॉगर हैं जो सामाजिक जनचेतना को हिंदी ब्‍लॉगिंग से जोड़ने का महत्‍वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। वस्तुत: यह दुनिया विचारों की दुनिया है और सभी ब्लागर्स की कोशिश होनी चाहिए कि विचार शून्य में नहीं, बल्कि आम आदमी से जुड़कर आगे आएं।

इस कार्यक्रम के लिए परिकल्पना और ब्लागोत्सव जैसी कल्पनाओं को मूर्त रूप देकर 'अनेक ब्लॉग नेक हृदय' की बात कहने वाले लखनऊ शहर के ब्लागर रवीन्द्र प्रभात और नुक्कड़ सहित तमाम ब्लॉगों के कर्ता-धर्ता अविनाश वाचस्पति और हिंदी साहित्य निकेतन के मालिक और 'शोध-दिशा' पत्रिका के संपादक डा. गिरिजा शरण अग्रवाल सहित उनकी पूरी टीम को साधुवाद ! आशा की जानी चाहिए कि इस तरह के कार्यक्रम/सम्मलेन भविष्य में भी होते रहेंगें और हिंदी ब्लागिंग को नए आयामों के साथ नई दिशा भी दिखाएंगें !!

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इस अवसर पर हिन्दी ब्लॉगिंग के उत्‍थान में अविस्मरणीय योगदान हेतु 51 हिंदी ब्लॉगरों को ''हिंदी साहित्य निकेतन परिकल्पना सम्मान-2010'' से सम्मानित किया गया, जिसके अंतर्गत स्मृति चिन्ह, सम्मान पत्र, पुस्तकें और एक निश्चित धनराशि भी दी गई.

1. वर्ष का श्रेष्ठ नन्हा ब्लॉगर – अक्षिता (पाखी), पोर्टब्लेयर
2. वर्ष के श्रेष्ठ कार्टूनिस्ट – श्री काजल कुमार, दिल्ली
3. वर्ष की श्रेष्ठ कथा लेखिका – श्रीमती निर्मला कपिला, नांगल (पंजाब)
4. वर्ष के श्रेष्ठ विज्ञान कथा लेखक – डॉ. अरविन्द मिश्र, वाराणसी
5. वर्ष की श्रेष्ठ संस्मरण लेखिका – श्रीमती सरस्वती प्रसाद, पुणे
6. वर्ष के श्रेष्ठ लेखक – श्री रवि रतलामी, भोपाल
7. वर्ष की श्रेष्ठ लेखिका (यात्रा वृतान्त) – श्रीमती शिखा वार्ष्णेय, लंदन
8. वर्ष के श्रेष्ठ लेखक (यात्रा वृतान्त) – श्री मनोज कुमार, कोलकाता
9. वर्ष के श्रेष्ठ चित्रकार – श्रीमती अल्पना देशपांडे, रायपुर
10. वर्ष के श्रेष्ठ हिन्दी प्रचारक – श्री शास्त्री जे.सी. फिलिप, कोच्ची, केरल
11. वर्ष की श्रेष्ठ कवयित्री – श्रीमती रश्मि प्रभा, पुणे
12. वर्ष के श्रेष्ठ कवि – श्री दिवि‍क रमेश, दिल्ली
13. वर्ष की श्रेष्ठ सह लेखिका – सुश्री शमा कश्यप, पुणे
14. वर्ष के श्रेष्ठ व्यंग्यकार – श्री अविनाश वाचस्पति, दिल्ली
15. वर्ष की श्रेष्ठ युवा गायिका – सुश्री मालविका, बैंगलोर
16. वर्ष के श्रेष्ठ क्षेत्रीय लेखक – श्री संजीव तिवारी, दुर्ग (म.प्र.)
17. वर्ष के श्रेष्ठ क्षेत्रीय कवि – श्री एम. वर्मा, वाराणसी
18. वर्ष के श्रेष्ठ गजलकार – श्री दिगम्बर नासवा, दुबई
19. वर्ष के श्रेष्ठ कवि (वाचन) – श्री अनुराग शर्मा, पिट्सबर्ग अमेरिका
20. वर्ष की श्रेष्ठ परिचर्चा लेखिका – श्रीमती प्रीति मेहता, सूरत
21. वर्ष के श्रेष्ठ परिचर्चा लेखक – श्री दीपक मशाल, लंदन
22. वर्ष की श्रेष्ठ महिला टिप्पणीकार – श्रीमती संगीता स्वरूप, दिल्ली
23. वर्ष के श्रेष्ठ टिप्पणीकार – श्री हिमांशु पाण्डेय, सकलडीहा (यू.पी.)
24-25-26. वर्ष की श्रेष्ठ उदीयमान गायिका – खुशबू/अपराजिता/इशिता, पटना (संयुक्त रूप से)
27. वर्ष के श्रेष्ठ बाल साहित्यकार – श्री जाकिर अली ‘रजनीश’, लखनऊ
28. वर्ष के श्रेष्ठ गीतकार (आंचलिक) – श्री ललित शर्मा, रायपुर
29. वर्ष के श्रेष्ठ गीतकार (गायन) – श्री राजेन्द्र स्वर्णकार, बीकानेर, राजस्थान
30-31. वर्ष के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार – डॉ. रूपचंद्र शास्त्री ‘मयंक’, खटीमा एवं आचार्य संजीव वर्मा सलिल, भोपाल (संयुक्त रूप से)
32. वर्ष की श्रेष्ठ देशभक्ति पोस्ट – कारगिल के शहीदों के प्रति ( श्री पवन चंदन)
33. वर्ष की श्रेष्ठ व्यंग्य पोस्ट – झोलाछाप डॉक्टर (श्री राजीव तनेजा)
34. वर्ष के श्रेष्ठ युवा कवि – श्री ओम आर्य, सीतामढ़ी बिहार
35. वर्ष के श्रेष्ठ विचारक – श्री जी.के. अवधिया, रायपुर
36. वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग विचारक – श्री गिरीश पंकज, रायपुर
37. वर्ष की श्रेष्ठ महिला चिन्तक – श्रीमती नीलम प्रभा, पटना
38. वर्ष के श्रेष्ठ सहयोगी – श्री रणधीर सिंह सुमन, बाराबंकी
39. वर्ष के श्रेष्ठ सकारात्मक ब्लॉगर (पुरूष) – डॉ. सुभाष राय, लखनऊ (उ0प्र0)
40. वर्ष की श्रेष्ठ सकारात्मक ब्लॉगर (महिला) – श्रीमती संगीता पुरी, धनबाद
41. वर्ष के श्रेष्ठ तकनीकी ब्लॉगर – श्री विनय प्रजापति, अहमदाबाद
42. वर्ष के चर्चित उदीयमान ब्लॉगर – श्री खुशदीप सहगल, दिल्ली
43. वर्ष के श्रेष्ठ नवोदित ब्लॉगर – श्री राम त्यागी, शिकागो अमेरिका
44. वर्ष के श्रेष्ठ युवा पत्रकार – श्री मुकेश चन्द्र, दिल्ली
45. वर्ष के श्रेष्ठ आदर्श ब्लॉगर – श्री ज्ञानदत्त पांडेय, इलाहाबाद
46. वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग शुभचिंतक – श्री सुमन सिन्हा, पटना
47. वर्ष की श्रेष्ठ महिला ब्लॉगर – श्रीमती स्वप्न मंजूषा ‘अदा’, अटोरियो कनाडा
48. वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉगर – श्री समीर लाल ‘समीर’, टोरंटो कनाडा
49. वर्ष की श्रेष्ठ विज्ञान पोस्ट – भविष्य का यथार्थ (लेखक – जिशान हैदर जैदी)
50. वर्ष की श्रेष्ठ प्रस्तुति – कैप्टन मृगांक नंदन एण्ड टीम, पुणे
51. वर्ष के श्रेष्ठ लेखक (हिन्दी चिट्ठाकारी विषयक पोस्ट) – श्री प्रमोद ताम्बट, भोपाल

इसके अलावा नुक्कड़ डाट काम की तरफ से भी 'हिन्‍दी ब्‍लॉग प्रतिभा सम्‍मान-2011' के अंतर्गत 13 विशिष्ट ब्लॉगरों को हिंदी ब्लॉगिंग में दिए जा रहे विशेष योगदान के लिए सम्मानित किया गया-

(1) श्री श्रीश शर्मा (ई-पंडित), तकनीकी विशेषज्ञ, यमुनानगर (हरियाणा)
(2) श्री कनिष्क कश्यप, संचालक ब्लॉगप्रहरी, दिल्ली
(3) श्री शाहनवाज़ सिद्दिकी, तकनीकी संपादक, हमारीवाणी, दिल्ली
(4) श्री जय कुमार झा, सामाजिक जन चेतना को ब्लॉगिंग से जोड़ने वाले ब्लॉगर, दिल्ली
(5) श्री सिद्दार्थ शंकर त्रिपाठी, महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा
(6) श्री अजय कुमार झा, मीडिया चर्चा से रूबरू कराने वाले ब्लॉगर, दिल्ली
(7) श्री रविन्द्र पुंज, तकनीकी विशेषज्ञ, यमुनानगर (हरियाणा)
(8) श्री रतन सिंह शेखावत, तकनीकी विशेषज्ञ, फरीदाबाद (हरियाणा )
(9) श्री गिरीश बिल्लौरे ‘मुकुल’, वेबकास्ट एवं पॉडकास्‍ट विशेषज्ञ, जबलपुर
(10) श्री पद्म सिंह, तकनीकी विशेषज्ञ, दिल्ली
(11) सुश्री गीताश्री, नारी विषयक लेखिका, दि‍ल्ली
(12) श्री बी एस पावला,ब्लॉग संरक्षक, भिलाई (म.प्र.)
(13) श्री अरविन्द श्रीवास्तव, समालोचना, मधेपुरा (बिहार)

................सभी सम्मानित ब्लॉगरों को बधाई !!

(चित्र में : वर्ष का श्रेष्ठ नन्हा ब्लॉगर के तहत बिटिया अक्षिता (पाखी) की तरफ से सम्मान ग्रहण करते उनके चाचू श्री अमित कुमार यादव, जो की 'युवा-मन' ब्लॉग के संयोजक भी हैं.पायलटों की हड़ताल के चलते ऐन वक़्त पर अंडमान से फ्लाईट कैंसिल हो जाने के चलते हम कार्यक्रम में शामिल न हो सके. अत: अक्षिता की तरफ से यह सम्मान उनके चाचू श्री अमित कुमार ने ग्रहण किया.)



(अन्य फोटोग्राफ का नजारा यहाँ लें)