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शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

नव वर्ष के विविध रूप

मानव इतिहास की सबसे पुरानी पर्व परम्पराओं में से एक नववर्ष है। नववर्ष के आरम्भ का स्वागत करने की मानव प्रवृत्ति उस आनन्द की अनुभूति से जुड़ी हुई है जो बारिश की पहली फुहार के स्पर्श पर, प्रथम पल्लव के जन्म पर, नव प्रभात के स्वागतार्थ पक्षी के प्रथम गान पर या फिर हिम शैल से जन्मी नन्हीं जलधारा की संगीत तरंगों से प्रस्फुटित होती है। विभिन्न विश्व संस्कृतियाँ इसे अपनी-अपनी कैलेण्डर प्रणाली के अनुसार मनाती हैं। वस्तुतः मानवीय सभ्यता के आरम्भ से ही मनुष्य ऐसे क्षणों की खोज करता रहा है, जहाँ वह सभी दुख, कष्ट व जीवन के तनाव को भूल सके। इसी के तद्नुरुप क्षितिज पर उत्सवों और त्यौहारों की बहुरंगी झांकियाँ चलती रहती हैं।

इतिहास के गर्त में झांकें तो प्राचीन बेबिलोनियन लोग अनुमानतः 4000 वर्ष पूर्व से ही नववर्ष मनाते रहे हैं, उस समय नव वर्ष का ये त्यौहार 21 मार्च को मनाया जाता था जो कि वसंत के आगमन की तिथि भी मानी जाती थी। प्राचीन रोमन कैलेण्डर में मात्र 10 माह होते थे और वर्ष का शुभारम्भ 1 मार्च से होता था। बहुत समय बाद 713 ई0पू0 के करीब इसमें जनवरी तथा फरवरी माह जोड़े गये। सर्वप्रथम 153 ई0पू0 में 1 जनवरी को वर्ष का शुभारम्भ माना गया एवं 45 ई0पू0 में जब रोम के तानाशाह जूलियस सीजर द्वारा जूलियन कैलेण्डर का शुभारम्भ हुआ, तो यह सिलसिला बरकरार रहा। ऐसा करने के लिए जूलियस सीजर को पिछला साल, यानि, ईसा पूर्व 46 ई0 को 445 दिनों का करना पड़ा था। 1 जनवरी को नववर्ष मनाने का चलन 1582 ई0 के ग्रेगेरियन कैलेण्डर के आरम्भ के बाद ही बहुतायत में हुआ। दुनिया भर में प्रचलित ग्रेगेरियन कैलेंडर को पोप ग्रेगरी अष्टम ने 1582 में तैयार किया था। ग्रेगरी ने इसमें लीप ईयर का प्रावधान भी किया था। ईसाईयों का एक अन्य पंथ ईस्टर्न आर्थोडाॅक्स चर्च रोमन कैलेंडर को मानता है। इस कैलेंडर के अनुसार नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है। यही वजह है कि आर्थोडाॅक्स चर्च को मानने वाले देशों रुस, जार्जिया, येरुशलम और सर्बिया में नया साल 14 जनवरी को मनाया जाता है।

आज विभिन्न विश्व संस्कृतियाँ नव वर्ष अपनी-अपनी कैलेण्डर प्रणाली के अनुसार मनाती हैंै। हिब्रू मान्यताओं के अनुसार भगवान द्वारा विश्व को बनाने में सात दिन लगे थे। इस सात दिन के संधान के बाद नया वर्ष मनाया जाता है। यह दिन ग्रेगेरियन कैलेण्डर के मुताबिक 5 सितम्बर से 5 अक्टूबर के बीच आता है। इसी तरह इस्लाम के कैलेंडर को हिजरी साल कहते हैं। इसका नव वर्ष मोहर्रम माह के पहले दिन होता है। इस्लामी कैलेण्डर एक पूर्णतया चन्द्र आधारित कैलेंडर है, जिसके कारण इसके बारह मासों का चक्र 33 वर्षों में सौर कैलेण्डर को एक बार घूम लेता है। इसके कारण नर्व वर्ष प्रचलित ग्रेगेरियन कैलेण्डर में अलग-अलग महीनों में पड़़ता है। चीन का भी कैलेण्डर चन्द्र गणना पर आधारित है। चीनी कैलेण्डर के अनुसार प्रथम मास का प्रथम चन्द्र दिवस नव वर्ष के रूप में मनाया जाता है। यह प्रायः 21 जनवरी से 21 फरवरी के बीच पड़ता है।

भारत के भी विभिन्न हिस्सों में नव वर्ष अलग-अलग तिथियों को मनाया जाता है। भारत में नव वर्ष का शुभारम्भ वर्षा का संदेशा देते मेघ, सूर्य और चंद्र की चाल, पौराणिक गाथाओं और इन सबसे ऊपर खेतों में लहलहाती फसलों के पकने के आधार पर किया जाता है। इसे बदलते मौसमों का रंगमंच कहें या परम्पराओं का इन्द्रधनुष या फिर भाषाओं और परिधानों की रंग-बिरंगी माला, भारतीय संस्कृति ने दुनिया भर की विविधताओं को संजो रखा है। असम में नववर्ष बीहू के रुप में मनाया जाता है, केरल में पूरम विशु के रुप में, तमिलनाडु में पुत्थंाडु के रुप में, आन्ध्र प्रदेश में उगादी के रुप में, महाराष्ट्र में गुड़ीपड़वा के रुप में तो बांग्ला नववर्ष का शुभारंभ वैशाख की प्रथम तिथि से होता है।

भारतीय संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यहाँ लगभग सभी जगह नववर्ष मार्च या अप्रैल माह अर्थात चैत्र या बैसाख के महीनों में मनाये जाते हैं। पंजाब में नव वर्ष बैशाखी नाम से 13 अप्रैल को मनाई जाती है। सिख नानकशाही कैलेण्डर के अनुसार 14 मार्च होला मोहल्ला नया साल होता है। इसी तिथि के आसपास बंगाली तथा तमिल नव वर्ष भी आता है। तेलगू नव वर्ष मार्च-अप्रैल के बीच आता है। आंध्र प्रदेश में इसे उगादी (युगादि=युग$आदि का अपभ्रंश) के रूप मंे मनाते हैं। यह चैत्र महीने का पहला दिन होता है। तमिल नव वर्ष विशु 13 या 14 अप्रैल को तमिलनाडु और केरल में मनाया जाता है। तमिलनाडु में पोंगल 15 जनवरी को नव वर्ष के रुप में आधिकारिक तौर पर भी मनाया जाता है। कश्मीरी कैलेण्डर नवरेह 19 मार्च को आरम्भ होता है। महाराष्ट्र में गुडी पड़वा के रुप में मार्च-अप्रैल के महीने में मनाया जाता है, कन्नड़ नव वर्ष उगाडी कर्नाटक के लोग चैत्र माह के पहले दिन को मनाते हैं, सिंधी उत्सव चेटी चंड, उगाड़ी और गुडी पड़वा एक ही दिन मनाया जाता है। मदुरै में चित्रैय महीने में चित्रैय तिरुविजा नव वर्ष के रुप में मनाया जाता है। मारवाड़ी और गुजराती नव वर्ष दीपावली के दिन होता है, जो अक्टूबर या नवंबर में आती है। बंगाली नव वर्ष पोहेला बैसाखी 14 या 15 अप्रैल को आता है। पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में इसी दिन नव वर्ष होता है। वस्तुतः भारत वर्ष में वर्षा ऋतु की समाप्ति पर जब मेघमालाओं की विदाई होती है और तालाब व नदियाँ जल से लबालब भर उठते हैं तब ग्रामीणों और किसानों में उम्मीद और उल्लास तरंगित हो उठता है। फिर सारा देश उत्सवों की फुलवारी पर नववर्ष की बाट देखता है। इसके अलावा भारत में विक्रम संवत, शक संवत, बौद्ध और जैन संवत, तेलगु संवत भी प्रचलित हैं, इनमें हर एक का अपना नया साल होता है। देश में सर्वाधिक प्रचलित विक्रम और शक संवत हैं। विक्रम संवत को सम्राट विक्रमादित्य ने शकों को पराजित करने की खुशी में 57 ईसा पूर्व शुरू किया था।

नववर्ष आज पूरे विश्व में एक समृद्धशाली पर्व का रूप अख्तियार कर चुका है। इस पर्व पर पूजा-अर्चना के अलावा उल्लास और उमंग से भरकर परिजनों व मित्रों से मुलाकात कर उन्हें बधाई देने की परम्परा दुनिया भर में है। अब हर मौके पर ग्रीटिंग कार्ड भेजने का चलन एक स्वस्थ परंपरा बन गयी है पर पहला ग्रीटिंग कार्ड भेजा था 1843 में हेनरी कोल ने। हेनरी कोल द्वारा उस समय भेजे गये 10,000 कार्ड में से अब महज 20 ही बचे हैं। आज तमाम संस्थायंे इस अवसर पर विशेष कार्यक्रम आयोजित करती हैं और लोग दुगुने जोश के साथ नववर्ष में प्रवेश करते हैं। पर इस उल्लास के बीच ही यही समय होता है जब हम जीवन में कुछ अच्छा करने का संकल्प लें, सामाजिक बुराईयों को दूर करने हेतु दृढ़ संकल्प लें और मानवता की राह में कुछ अच्छे कदम और बढ़ायें।

नव-वर्ष 2012 की आप सभी को अग्रिम शुभकामनाएं..!!
-आकांक्षा यादव

रविवार, 25 दिसंबर 2011

नव वर्ष के आगमन तक क्रिसमस उत्सव का माहौल

क्रिसमस त्यौहार बड़ा अलबेला है। यहाँ अंडमान में तो इसे खूब धूम धाम के साथ मनाया जाता है. यहाँ रहकर इस त्यौहार को इतने नजदीक से महसूस कर सकती हूँ. पूरी दुनिया में धूमधाम से मनाया जाने वाला क्रिसमस प्रभु ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में हर साल 25 दिसंबर को मनाया जाने वाला पर्व है। यह ईसाइयों के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है। इस दिन को बड़ा दिन भी कहते हैं. दुनिया भर के अधिकतर देशों में यह 25 दिसम्बर को मनाया जाता है, पर नव वर्ष के आगमन तक क्रिसमस उत्सव का माहौल कायम रखता है. उत्सवी परंपरा के अनुसार क्रिसमस से 12 दिन के उत्सव क्रिसमसटाइड की भी शुरुआत होती है। एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म, 7 से 2 ई.पू. के बीच हुआ था। विभिन्न देश इसे अपनी परम्परानुसार मानते हैं. जर्मनी तथा कुछ अन्य देशों में क्रिसमस की पूर्व संध्या यानि 24 दिसंबर को ही इससे जुड़े समारोह शुरु हो जाते हैं जबकि ब्रिटेन और अन्य राष्ट्रमंडल देशों में क्रिसमस से अगला दिन यानि 26 दिसंबर बॉक्सिंग डे के रूप में मनाया जाता है। कुछ कैथोलिक देशों में इसे सेंट स्टीफेंस डे या फीस्ट ऑफ़ सेंट स्टीफेंस भी कहते हैं। आर्मीनियाई अपोस्टोलिक चर्च 6 जनवरी को क्रिसमस मनाता है, वहीँ पूर्वी परंपरागत गिरिजा जो जुलियन कैलेंडर को मानता है वो जुलियन वेर्सिओं के अनुसार 25 दिसम्बर को क्रिसमस मनाता है, जो ज्यादा काम में आने वाले ग्रेगोरियन कैलेंडर में 7 जनवरी का दिन होता है क्योंकि इन दोनों कैलेंडरों में 13 दिनों का अन्तर होता है।

क्रिसमस शब्द का जन्म क्राईस्टेस माइसे अथवा ‘क्राइस्टस् मास’ शब्द से हुआ है। ऐसी मान्यता है कि पहला क्रिसमस रोम में 336 ई. में मनाया गया था। क्राइस्ट के जन्म के संबंध में नए टेस्टामेंट के अनुसार व्यापक रूप से स्वीकार्य ईसाई पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार प्रभु ने मैरी नामक एक कुंवारी लड़की के पास गैब्रियल नामक देवदूत भेजा। गैब्रियल ने मैरी को बताया कि वह प्रभु के पुत्र को जन्म देगी तथा बच्चे का नाम जीसस रखा जाएगा। वह बड़ा होकर राजा बनेगा, तथा उसके राज्य की कोई सीमाएं नहीं होंगी। देवदूत गैब्रियल, जोसफ के पास भी गया और उसे बताया कि मैरी एक बच्चे को जन्म देगी, और उसे सलाह दी कि वह मैरी की देखभाल करे व उसका परित्याग न करे। जिस रात को जीसस का जन्म हुआ, उस समय लागू नियमों के अनुसार अपने नाम पंजीकृत कराने के लिए मैरी और जोसफ बेथलेहेम जाने के लिए रास्ते में थे। उन्होंने एक अस्तबल में शरण ली, जहां मैरी ने आधी रात को जीसस को जन्म दिया तथा उसे एक नांद में लिटा दिया। इस प्रकार प्रभु के पुत्र जीसस का जन्म हुआ।

आजकल क्रिसमस पर्व धर्म की बंदिशों से परे पूरी दुनिया में बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है.क्रिसमस के दौरान एक दूसरे को आत्मीयता के साथ उपहार देना, चर्च में समारोह, और विभिन्न सजावट करना शामिल है। सजावट के दौरान क्रिसमस ट्री, रंग बिरंगी रोशनियाँ, बंडा, जन्म के झाँकी और हॉली आदि शामिल हैं। क्रिसमस ट्री तो अपने वैभव के लिए पूरे विश्व में लोकप्रिय है। लोग अपने घरों को पेड़ों से सजाते हैं तथा हर कोने में मिसलटों को टांगते हैं। चर्च मास के बाद, लोग मित्रवत् रूप से एक दूसरे के घर जाते हैं तथा दावत करते हैं और एक दूसरे को शुभकामनाएं व उपहार देते हैं। वे शांति व भाईचारे का संदेश फैलाते हैं।

सेंट बेनेडिक्ट उर्फ सान्ता क्लाज़, क्रिसमस से जुड़ी एक लोकप्रिय पौराणिक परंतु कल्पित शख्सियत है, जिसे अक्सर क्रिसमस पर बच्चों के लिए तोहफे लाने के साथ जोड़ा जाता है. मूलत: यह लाल व सफेद ड्रेस पहने हुए, एक वृद्ध मोटा पौराणिक चरित्र है, जो रेन्डियर पर सवार होता है, तथा समारोहों में, विशेष कर बच्चों के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह बच्चों को प्यार करता है तथा उनके लिए चाकलेट, उपहार व अन्य वांछित वस्तुएं लाता है, जिन्हें वह संभवत: रात के समय उनके जुराबों में रख देता है।

आप सभी लोगों को क्रिसमस पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !!

गुरुवार, 15 दिसंबर 2011

आकांक्षा यादव को भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा 'डा. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011‘

भारतीय दलित साहित्य अकादमी ने युवा कवयित्री, साहित्यकार एवं चर्चित ब्लागर आकांक्षा यादव को ‘’डा0 अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान-2011‘‘ से सम्मानित किया है। आकांक्षा यादव को यह सम्मान साहित्य सेवा एवं सामाजिक कार्यों में रचनात्मक योगदान के लिए प्रदान किया गया है। उक्त सम्मान भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा 11-12 दिसंबर को दिल्ली में आयोजित 27 वें राष्ट्रीय दलित साहित्यकार सम्मलेन में केंद्रीय मंत्री फारुख अब्दुल्ला द्वारा प्रदान किया गया.

गौरतलब है कि आकांक्षा यादव की रचनाएँ देश-विदेश की शताधिक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से प्रकाशित हो रही हैं. नारी विमर्श, बाल विमर्श एवं सामाजिक सरोकारों सम्बन्धी विमर्श में विशेष रूचि रखने वाली आकांक्षा यादव के लेख, कवितायेँ और लघुकथाएं जहाँ तमाम संकलनो / पुस्तकों की शोभा बढ़ा रहे हैं, वहीँ आपकी तमाम रचनाएँ आकाशवाणी से भी तरंगित हुई हैं. पत्र-पत्रिकाओं के साथ-साथ अंतर्जाल पर भी सक्रिय आकांक्षा यादव की रचनाएँ इंटरनेट पर तमाम वेब/ई-पत्रिकाओं और ब्लॉगों पर भी पढ़ी-देखी जा सकती हैं. व्यक्तिगत रूप से ‘शब्द-शिखर’ और युगल रूप में ‘बाल-दुनिया’ , ‘सप्तरंगी प्रेम’ ‘उत्सव के रंग’ ब्लॉग का संचालन करने वाली आकांक्षा यादव न सिर्फ एक साहित्यकार के रूप में प्रतिष्ठित हैं, बल्कि सक्रिय ब्लागर के रूप में भी उन्होंने अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है. 'क्रांति-यज्ञ: 1857-1947 की गाथा‘ पुस्तक का कृष्ण कुमार यादव के साथ संपादन करने वाली आकांक्षा यादव के व्यक्तित्व-कृतित्व पर वरिष्ठ बाल साहित्यकार डा0 राष्ट्रबन्धु जी ने ‘बाल साहित्य समीक्षा‘ पत्रिका का एक अंक भी विशेषांक रुप में प्रकाशित किया है।

मूलत: उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और गाजीपुर जनपद की निवासी आकांक्षा यादव वर्तमान में अपने पतिदेव श्री कृष्ण कुमार यादव के साथ अंडमान-निकोबार में रह रही हैं और वहां रहकर भी हिंदी को समृद्ध कर रही हैं. श्री यादव भी हिंदी की युवा पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं और सम्प्रति अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के निदेशक डाक सेवाएँ पद पर पदस्थ हैं. एक रचनाकार के रूप में बात करें तो सुश्री आकांक्षा यादव ने बहुत ही खुले नजरिये से संवेदना के मानवीय धरातल पर जाकर अपनी रचनाओं का विस्तार किया है। बिना लाग लपेट के सुलभ भाव भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें यही आपकी लेखनी की शक्ति है। उनकी रचनाओं में जहाँ जीवंतता है, वहीं उसे सामाजिक संस्कार भी दिया है।

इससे पूर्व भी आकांक्षा यादव को विभिन्न साहित्यिक-सामाजिक संस्थानों द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। जिसमें भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’भारती ज्योति’, ‘‘एस0एम0एस0‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार, इन्द्रधनुष साहित्यिक संस्था, बिजनौर द्वारा ‘‘साहित्य गौरव‘‘ व ‘‘काव्य मर्मज्ञ‘‘, श्री मुकुन्द मुरारी स्मृति साहित्यमाला, कानपुर द्वारा ‘‘साहित्य श्री सम्मान‘‘, मथुरा की साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था ‘‘आसरा‘‘ द्वारा ‘‘ब्रज-शिरोमणि‘‘ सम्मान, मध्यप्रदेश नवलेखन संघ द्वारा ‘‘साहित्य मनीषी सम्मान‘‘ व ‘‘भाषा भारती रत्न‘‘, छत्तीसगढ़ शिक्षक-साहित्यकार मंच द्वारा ‘‘साहित्य सेवा सम्मान‘‘, देवभूमि साहित्यकार मंच, पिथौरागढ़ द्वारा ‘‘देवभूमि साहित्य रत्न‘‘, राजेश्वरी प्रकाशन, गुना द्वारा ‘‘उजास सम्मान‘‘, ऋचा रचनाकार परिषद, कटनी द्वारा ‘‘भारत गौरव‘‘, अभिव्यंजना संस्था, कानपुर द्वारा ‘‘काव्य-कुमुद‘‘, ग्वालियर साहित्य एवं कला परिषद द्वारा ‘‘शब्द माधुरी‘‘, महिमा प्रकाशन, दुर्ग-छत्तीसगढ द्वारा ’महिमा साहित्य भूषण सम्मान’ , अन्तर्राष्ट्रीय पराविद्या शोध संस्था, ठाणे, महाराष्ट्र द्वारा ‘‘सरस्वती रत्न‘‘, अन्तज्र्योति सेवा संस्थान गोला-गोकर्णनाथ, खीरी द्वारा श्रेष्ठ कवयित्री की मानद उपाधि. जीवी प्रकाशन, जालंधर द्वारा 'राष्ट्रीय भाषा रत्न' इत्यादि शामिल हैं.

दुर्गविजय सिंह 'दीप'
उपनिदेशक- आकाशवाणी (समाचार)
पोर्टब्लेयर, अंडमान-निकोबार द्वीप समूह.


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(अक्षर पर्व, दिसंबर 2011 )
 
                                             (अंडमान-निकोबार द्वीप समाचार, 20  दिसंबर 2011)

(The Daily Telegrams, Andaman-Nicobar Islands, 25 December 2011)
 
 
(Aspect, Andaman-Nicobar Islands, 20 December 2011)
 
 
(विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित समाचार भी आप पढ़ सकते हैं,जो कि समय-समय पर इस पोस्ट में जोड़े गए हैं. )

रविवार, 4 दिसंबर 2011

देवानंद साहब का जाना...

देवानंद साहब नहीं रहे। वह सही मायने में बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे और अभिनेता, निर्देशक तथा निर्माता के रूप में उन्होंने विभिन्न भूमिकाएं निभाईं. भारतीय सिनेमा के सदाबहार अभिनेता देवानंद ने 1946 में फ़िल्मी दुनिया में क़दम रखा था और 88 साल की उम्र में इस सदाबहार नौजवान का ग्लैमर की दुनिया में 65 साल काम करने के बाद लंदन में दिल का दौरा पड़ने से इंतकाल हो गया.देवानंद के बारे में कहा जाता है कि वो कभी हार न मानने वाले लोगों में से थे और 88 वर्ष की उम्र में पूरे जोश के साथ नई फ़िल्म बनाने की तैयारी में लगे हुए थे. उनका सबसे बड़ा सशक्त पक्ष यह रहा कि उनकी उम्र कुछ भी रही हो, उन्होंने खुद को हमेशा युवा ही माना.सामाजिक मुद्दों के प्रति उनकी प्रतिबद्धता का कोई मुकाबला नहीं था तथा सिनेमा में भी उन्होंने जिन मुद्दों को उठाया उनसे समाज में नए मापदंड स्थापित करने में मदद मिली। देवानंद हमेशा अपनी शर्तों पर जिए. देवानंद ने जिंदगी को कितनी खूबसूरती के साथ जिया, इसका अंदाजा उनकी आत्मकथा के शीर्षक 'रोमांसिंग विद लाइफ' से पता चलता है। 438 पृष्ठों की उनकी इस आत्मकथा का विमोचन खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किया था। देवानंद का मानना था की उनकी आत्मकथा रोमांसिंग विद लाइफ में उससे भी ज्यादा है जितना जमाना जानता है। पुस्तक में देवानंद ने अपनी युवावस्था, लाहौर, गुरदासपुर, फिल्मी दुनिया के संघर्ष, गुरुदत्त के साथ मित्रवत रिश्तों और सुरैया के साथ अपने संबंधों का उल्लेख किया है। इसके अलावा देवानंद ने अपने भाई विजय आनंद और चेतन आनंद के संबंध में भी इस किताब में लिखा है। एक बार उन्होंने कहा था कि रोमांस का मतलब महिलाओं के साथ हमबिस्तर होने से ही क्यों लगाया जाता है। इसके मायने किसी के हाथ को अपने हाथ में लेना और बात करना भी हो सकते हैं। यह उनकी जिन्दादिली ही थी.

देवानंद का जन्म पंजाब के गुरदासपुर ज़िले में 26 सितंबर, 1923 को हुआ था. उनका बचपन का नाम देवदत्त पिशोरीमल आनंद था. बचपन से ही उनका झुकाव अपने पिता के पेशे वकालत की ओर न होकर अभिनय की ओर था. उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में अपनी स्नातक की शिक्षा 1942 में लाहौर के मशहूर गवर्नमेंट कॉलेज से पूरी की. इस कॉलेज ने फिल्म और साहित्य जगत को बलराज साहनी, चेतन आनंद, बी.आर.चोपड़ा और खुशवंत सिंह जैसे शख्सियतें दी हैं. देव आनंद को अपनी पहली नौकरी मिलिट्री सेन्सर ऑफिस में एक लिपिक के तौर पर मिली जहां उन्हें सैनिकों द्वारा लिखी चिट्ठियों को उनके परिवार के लोगों को पढ़ कर सुनाना पड़ता था. इस काम के लिए देव आनंद को 165 रूपये मासिक वेतन के रूप में मिला करता था जिसमें से 45 रूपये वह अपने परिवार के खर्च के लिए भेज दिया करते थे. लगभग एक वर्ष तक मिलिट्री सेन्सर में नौकरी करने के बाद वह अपने बड़े भाई चेतन आनंद के पास मुंबई आ गए. चेतन आनंद उस समय भारतीय जन नाटय संघ इप्टा से जुड़े हुए थे. उन्होंने देव आनंद को भी अपने साथ इप्टा में शामिल कर लिया.

देवानंद ने 1946 में फ़िल्मी दुनिया में क़दम रखा था और फ़िल्म थी -प्रभात स्टूडियो की 'हम एक हैं'. दुर्भाग्यवश यह फिल्म असफल ही रही. वर्ष 1948 में प्रदर्शित फिल्म “जिद्दी” देव आनंद के फिल्मी कॅरियर की पहली हिट फिल्म साबित हुई. इस फिल्म से वो बड़े अभिनेता के रुप में स्थापित हो गए. इसके बाद उन्हें कई फ़िल्में मिलीं. इस फिल्म की कामयाबी के बाद उन्होंने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में कदम रख दिया और नवकेतन बैनर की स्थापना की. नवकेतन के बैनर तले उन्होंने वर्ष 1950 में अपनी पहली फिल्म 'अफसर' का निर्माण किया जिसके निर्देशन की जिम्मेदारी उन्होंने अपने बड़े भाई चेतन आनंद को सौंपी. इस फिल्म के लिए उन्होंने उस जमाने की जानी मानी अभिनेत्री सुरैया का चयन किया जबकि अभिनेता के रूप में देव आनंद खुद ही थे. इसके बाद देवानंद ने कई बेहतरीन फ़िल्में की और अपने अभिनय का लोहा मनवाया. इन फ़िल्मों में पेइंग गेस्ट, बाज़ी, ज्वेल थीप, सीआईडी, जॉनी मेरा नाम, टैक्सी ड्राइवर,फंटुश, नौ दो ग्यारह, काला पानी, अमीर गरीब, हरे रामा हरे कृष्णा और देस परदेस का नाम लिया जा सकता है. देवानंद केवल अभिनेता ही नहीं थे. उन्होंने फ़िल्मों का निर्देशन किया, फ़िल्में प्रोड्यूस भी कीं. नवकेतन फ़िल्म प्रोडक्शन के बैनर तले उन्होंने 35 से अधिक फ़िल्मों का निर्माण किया.

देवानंद प्रख्यात उपन्यासकार आर.के. नारायण से काफी प्रभावित थे और उनके उपन्यास गाइड पर फिल्म बनाना चाहते थे. आर.के.नारायणन की स्वीकृति के बाद देव आनंद ने फिल्म गाइड का निर्माण किया जो देव आनंद के सिने कॅरियर की पहली रंगीन फिल्म थी. इस फिल्म के लिए देव आनंद को उनके जबर्दस्त अभिनय के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार भी दिया गया. देवानंद को दो फ़िल्मफेयर पुरस्कार मिले. 1958 में फ़िल्म काला पानी के लिए और फिर 1966 में गाइड के लिए.गाइड ने फ़िल्मफेयर अवार्ड में पांच अवार्डों का रिकार्ड भी बनाया. इतना ही नहीं गाइड 1966 में भारत की तरफ से ऑस्कर के लिए नामांकित भी हुई थी। आगे चलकर देवानंद ने नोबल पुरस्कार विजेता पर्ल बक के साथ मिलकर अंग्रेज़ी में भी गाइड का निर्माण किया था.

देवानंद अपने काले कोट की वजह से भी काफी चर्चा में रहे. देवानंद अपने अलग अंदाज और बोलने के तरीके के लिए काफी मशहूर थे. उनके सफेद कमीज और काले कोट के फैशन को तो युवाओं ने जैसे अपना ही बना लिया था और इसी समय एक ऐसा वाकया भी देखने को मिला जब न्यायालय ने उनके काले कोट को पहन कर घूमने पर पाबंदी लगा दी. वजह थी कुछ लडकियों का उनके काले कोट के प्रति आसक्ति के कारण आत्महत्या कर लेना. दीवानगी में दो-चार लडकियों ने जान दे दी.देवानंद के जानदार और शानदार अभिनय की बदौलत परदे पर जीवंत आकार लेने वाली प्रेम कहानियों ने लाखों युवाओं के दिलों में प्रेम की लहरें पैदा कीं लेकिन खुद देवानंद इस लिहाज से जिंदगी में काफी परेशानियों से गुजरे। देवानंद सुरैया को कभी भुला नहीं पाए और अक्सर उन्होंने सुरैया को अपनी जिंदगी का प्यार कहा है। वह भी इस हकीकत के बावजूद कि उन्होंने बाद में अभिनेत्री कल्पना कार्तिक से विवाह कर लिया था। वर्ष 2005 में जब सुरैया का निधन हुआ तो देवानंद उन लोगों में से एक थे जो उनके जनाजे के साथ थे। अपनी आत्मकथा में भी देवानंद ने सुरैया के साथ अपने संबंधों का उल्लेख किया है। जीनत अमान के साथ भी उनके प्यार के चर्चे खूब रहे. देवानंद ने 'हरे रामा हरे कृष्णा' के ज़रिए ज़ीनत अमान की खोज की.अपनी आत्मकथा ‘रोमांसिंग विद लाइफ’ में उन्होंने लिखा कि वे जीनत अमान से बेहद प्यार करते थे और इसीलिए उन्हें अपनी फिल्म ‘हरे रामा हरे कृष्णा’ में अभिनेत्री बनाया था। लेकिन देवानंद का यह प्यार परवान चढ़ने से पहले ही टूट गया, क्योंकि उन्होंने जीनत अमान को एक पार्टी में राजकपूर की बाहों में देख लिया था। गौरतलब है कि देवानंद ने कल्पना कार्तिक के साथ शादी की थी लेकिन उनकी शादी अधिक समय तक सफल नहीं हो सकी. दोनों साथ रहे लेकिन बाद में कल्पना ने एकाकी जीवन को गले लगा लिया.कई अभिनेत्रियों से उनके संबंधों को लेकर बातें उड़ीं, पर देवानंद अपनी ही धुन में मस्त व्यक्ति थे. टीना मुनीम,नताशा सिन्हा व एकता जैसी तमाम अभिनेत्रियों को मैदान में उतारने का श्रेय भी देवानंद को ही जाता है.

वर्ष 1970 में फिल्म प्रेम पुजारी के साथ देवानंद ने निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रख दिया. हालांकि यह फिल्म बॉक्स ऑफिस पर बुरी तरह से नकार दी गई बावजूद इसके उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. उन पर फिल्माया गया गीत- 'मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया, हर फिक्र को धुंए में उड़ाता चला गया' उनके जीवन के भी बहुत करीब था.इसके बाद वर्ष 1971 में फिल्म हरे रामा हरे कृष्णा का भी निर्देशन किया जिसकी कामयाबी के बाद उन्होंने अपनी कई फिल्मों का निर्देशन भी किया. अभी सितम्बर 2011 में देवानंद जी की फिल्म चार्जशीट रिलीज हुई थी. फ़िल्मों में देवानंद के योगदान को देखते हुए उन्हें 1993 में फिल्मफेयर लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड दिया गया. उन्हें 2001 में पद्म भूषण और 2002 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार से भी नवाजा गया।


देवानंद साहब के जाने से हिंदी फिल्म जगत का एक महत्वपूर्ण युग ख़त्म हो गया....श्रद्धांजलि !!

- कृष्ण कुमार यादव