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सोमवार, 28 जनवरी 2013

लघु भारत का अहसास : कुंभ की बेला में

ब्रह्मा ने किया प्रथम यज्ञ,
सब कहते प्रयागराज हैं ।
गंगा-यमुना-सरस्वती का संगम
तीर्थों का राजा तीर्थराज हैं।
 
कुंभ की बेला में उमड़ता,
जन-आस्था का सैलाब है।
संगम तट पर बसता शहर,
चमचमाता इसका रूआब है।
 
सनातन धर्म की अक्षुण्ण धारा,
निरंतर होती विराजमान है।
साधु, सन्यासी, संतों का डेरा,
आस्था प्रबल प्रवाहमान है।
 
सज रही देवों की पालकी,
रज-रज में बसे भगवान हैं ।
धर्म-ध्वजा फहराती रहे,
सनातन धर्म की शान है।
 
देश-दुनिया से जुटते लोग,
करते यहाँ कल्पवास हैं।
संस्कृतियों का अद्भुत संगम,
’लघु भारत’ का अहसास है।
 
(26 जनवरी, 2013 को अमर उजाला में 'रचना कुंभ'
के हत प्रकाशित मेरी कविता)
 
-आकांक्षा यादव-
 

5 टिप्‍पणियां:

HARSHVARDHAN ने कहा…

बहुत ही अच्छी कविता। धन्यवाद आपका।

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

लघु विश्व सिमट आया है..

Shahroz ने कहा…

देश-दुनिया से जुटते लोग,
करते यहाँ कल्पवास हैं।
संस्कृतियों का अद्भुत संगम,
’लघु भारत’ का अहसास है।
..sab kuchh samet liya apne..badhai.

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

Kumbh to wakai bahut sundar parv tha..pyari si kavita ke liye badhai to my Great Muma.

Dr PB Singh ने कहा…

Kavita is good. For good flow, write a poem or text in full. keep it for a week or fortnight and then look for improvement. Do it 3 times and then release for publication. Side by side you can show to other competent person (s). I think it will improve the writing a lot.