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गुरुवार, 7 मार्च 2013

मेरा भी स्वतंत्र अस्तित्व है...




मुझे नहीं चाहिए
प्यार भरी बातें
चाँद की चाँदनी
चाँद से तोड़कर
लाए हुए सितारे।
मुझे नहीं चाहिए
रत्नजडि़त उपहार
मनुहार कर लाया
हीरों का हार
शरीर का श्रृंगार।
मुझे चाहिए
बस अपना वजूद
जहाँ किसी दहेज, बलात्कार
भ्रूण हत्या का भय
नहीं सताए मुझे।
मैं उन्मुक्त उड़ान
भर सकूँ अपने सपनों की
और कह सकूँ
मेरा भी स्वतंत्र अस्तित्व है।
-आकांक्षा यादव-

7 टिप्‍पणियां:

HARSHVARDHAN ने कहा…

शानदार अभिव्यक्ति। :)

नये लेख :- समाचार : दो सौ साल पुरानी किताब और मनहूस आईना।
एक नया ब्लॉग एग्रीगेटर (संकलक) : ब्लॉगवार्ता।

रेखा श्रीवास्तव ने कहा…

har prabuddh varg yahi chahta hai aur nari to bichari isakee kamana men na jaane kitne janma le rahi hai aur ja rahi hai.
sundar abhivyakti ke liye aabhar !

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

ससम्मान जीने का अधिकार..सबको भाता है।

mridula pradhan ने कहा…

bahut achcha likhi hain aakanchajee.....

Anita ने कहा…

सचमुच हर नारी के दिल की बात कह दी आपने..

Shahroz ने कहा…

मैं उन्मुक्त उड़ान
भर सकूँ अपने सपनों की
और कह सकूँ
मेरा भी स्वतंत्र अस्तित्व है।
..बहुत खूब आकांक्षा जी। आपने तो हमारे दिल की बात कह दी।

Akshitaa (Pakhi) ने कहा…

प्यारी सी कविता। ममा को ढेर सारा प्यार और बधाई।