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सोमवार, 22 अप्रैल 2013

न्यू मीडिया 'हिंदी ब्लागिंग' के दस साल : प्रिंट मीडिया ने लिया हाथों-हाथ

न्यू मीडिया के रूप में तेजी से उभरी हिन्दी ब्लागिंग के एक दशक पूरा होने पर प्रिंट मीडिया ने भी इसे हाथों-हाथ लिया। इलाहाबाद के तमाम पत्रकारों ने अन्य ब्लागर्स के साथ हम लोगों  से भी संपर्क किया और इस विधा के बारे में अपनी जानकारी में इजाफा करते हुए हिंदी ब्लागिंग के दस साल पूरे होने पर व्यापक और बेहतर कवरेज भी दी। इनमें 'शब्द-शिखर' के अलावा कृष्ण कुमार यादव जी के 'शब्द-सृजन की ओर' व 'डाकिया डाक लाया', अक्षिता के 'पाखी की दुनिया' के साथ-साथ हिंदी में ब्लागिंग कर रहे सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी, गौरव कृष्णा बंसल इत्यादि की भी चर्चा की गई है।

 सबसे रोचक तो यह रहा कि हिन्दी मीडिया के साथ-साथ इस अवसर को अंग्रेजी-मीडिया ने भी भरपूर स्थान दिया। टाइम्स आफ इण्डिया, हिंदुस्तान टाइम्स  जैसे प्रतिष्ठित अंग्रेजी समाचार पत्रों के अलावा नार्दर्न इण्डिया पत्रिका ने भी इस पर बखूबी कलम चलाई। इसे आप सभी लोगों के साथ शेयर कर रही हूँ।  


(जनसंदेश टाइम्स, ( वाराणसी संस्करण)22 अप्रैल 2013)

(दैनिक जागरण , 21 अप्रैल 2013)


(जनसंदेश टाइम्स, 21 अप्रैल 2013)



(i next, 21 अप्रैल 2013)


(Times of India, 22nd April 2013)


(Hindustan Times, 22nd April 2013)

(Northern India patrika, 22nd April 2013)

रविवार, 21 अप्रैल 2013

ब्लागिंग का बढ़ता जलवा : हिंदी ब्लागिंग के एक दशक पूरे


भूमंडलीकरण ने समग्र विश्व को एक ग्लोबल विलेज में परिवर्तित कर दिया, जहाँ सूचना-प्रौद्योगिकी के बढ़ते कदमों के साथ सारी जानकारियाँ एक क्लिक मात्र पर उपलब्ध होने लगीं। वास्तविक दुनिया की बजाय लोग आभासी दुनिया में ज्यादा विचरण करने लगे। भूमंडलीकरण, उदारीकृत अर्थव्यवस्था, संचार क्रांति, सूचना का बढ़ता दायरा एवं इस क्षेत्र में प्रविष्ट होती नवीनतम प्रौद्योगिकियों ने पूरी दुनिया को और करीब ला दिया और इसी के साथ एक नए प्रकार के मीडिया का भी जन्म हुआ। एक ऐसा मीडिया जहाँ न तो खबरों के लिए अगले दिन के अखबार का इंतजार करना पड़ता है और न ही इलेक्ट्रानिक मीडिया की भूलभुलैया में दौड़ना होता है। आलमारियों की बंद किताबों से अलग इसे दुनिया के किसी भी कोने में बैठकर किसी भी समय पढ़ा-देखा जा सकता है। यह दौर है नित्य अपडेट होती वेबसाइट्स का, सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स का और ब्लागिंग का। वेबसाइट्स के लिए प्रोफेशनलिज्म व धन की जरूरत है, वहीं सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स की अपनी शाब्दिक सीमाएं हैं। इससे परे ब्लाग या चिट्ठा एक ऐसा स्पेस देता है, जहाँ लोग अपनी अनुभूतियाँ को न सिर्फ अन-सेंसर्ड रूप में  अभिव्यक्त करते हैं बल्कि पाठकों से अंतहीन खुला संवाद भी स्थापित करते हैं। आज ब्लागिंग (चिट्ठाकारी) का आकर्षण दिनों-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। जहाँ वेबसाइट में सामान्यतया एकतरफा सम्प्रेषण होता है, वहीं ब्लाग में यह लेखकीय-पाठकीय दोनों स्तर पर होता है। ब्लाग सिर्फ जानकारी देने का माध्यम नहीं बल्कि संवाद, प्रतिसंवाद, सूचना विचार और अभिव्यक्ति का भी सशक्त ग्लोबल मंच है। ब्लागिंग को कुछ लोग खुले संवाद का तरीका मानते हैं तो कुछेक लोग इसे निजी डायरी मात्र। ब्लाग को आक्सफोर्ड डिक्शनरी में कुछ इस प्रकार परिभाषित किया गया है-‘‘एक इंटरनेट वेबसाइट जिसमें किसी की लचीली अभिव्यक्ति का चयन संकलित होता है और जो हमेशा अपडेट होती रहती है।‘‘

        वर्ष 1999 में आरम्भ हुआ ब्लाग वर्ष 2013 में 14 साल का सफर पूरा कर चुका है। वर्ष 2003 में यूनीकोड हिंदी में आया और तद्नुसार हिन्दी ब्लाग का भी आरम्भ हुआ। यद्यपि इससे पूर्व विनय जैन ने 19 अक्टूबर 2002 को अंगे्रजी ब्लाग पर हिन्दी की कड़ी सर्वप्रथम आरंभ कर इसका आगाज किया था, पर पूर्णतया हिन्दी में ब्लागिंग आरंभ करने का श्रेय आलोक को जाता है, जिन्होंने 21 अप्रैल 2003 को हिंदी के प्रथम ब्लॉग ’नौ दो ग्यारह’ से इसका आगाज किया। यहाँ तक कि ‘ब्लाग‘ के लिए ‘चिट्ठा‘ शब्द भी उन्हीं का दिया हुआ है।

      ब्लागिंग का क्रेज पूरे विश्व में छाया हुआ है। भारत के  राजनेताओं में लालू प्रसाद यादव, लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, नरेन्द्र मोदी, नीतीश कुमार, शिवराज चैहान, फारूक अब्दुल्ला, अमर सिंह, उमर अब्दुल्ला तो फिल्म इण्डस्ट्री में अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, आमिर खान, मनोज वाजपेयी, प्रकाश झा, शिल्पा शेट्टी, सेलिना जेटली, विक्रम भट्ट, शेखर कपूर, अक्षय कुमार, अरबाज खान, नंदिता दास इत्यादि के ब्लाग मशहूर हैं। चर्चित सोशलाइट लेखिका शोभा डे से लेकर प्रथम आई0पी0एस0 अधिकारी किरण बेदी तक ब्लागिंग से जुड़ी हैं। सेलिबे्रटी के लिए ब्लाग तो बड़ी काम की चीज है। फिल्मी हस्तियाँ अपनी फिल्मों के प्रचार  और फैन क्लब में इजाफा हेतु ब्लागिंग का बखूबी इस्तेमाल कर रही हैं। फिल्में रिलीज बाद में होती हैं, उन पर प्रतिक्रियाएं पहले आने लगती हैं। पर अधिकतर फिल्मी हस्तियों के ब्लाग अंग्रेजी में ही लिखे जा रहे हैं। अभिनेता मनोज वाजपेयी बकायदा हिन्दी में ही ब्लागिंग करते हैं और गंभीर लेखन करते हैं। अमिताभ बच्चन ने भी हिन्दी में ब्लागिंग की इच्छा जाहिर की है। एक तरफ ये हस्तियाँ अपनी जीवन की छोटी-मोटी बातें लोगों से शेयर कर रही हैं, वहीं अपने ब्लाग के जरिए तमाम गंभीर व सामाजिक मुद्दों पर अपनी राय व्यक्त कर रही हैं। परम्परागत मीडिया उनकी बातों को नमक-मिर्च लगाकर पेश करता रहा है, पर ब्लागिंग के माध्यम से वे अपनी वास्तुस्थिति से लोगों को अवगत करा सकते हैं।

      ब्लागिंग में भाषा की वर्जनाएं टूट रही हैं, तभी तो हिन्दी देश-विदेश व उत्तर-दक्षिण की सीमाओं से परे सरपट दौड़ रही है। इंटरनेट पर हिन्दी का विकास तेजी से हो रहा है। गूगल से हिन्दी में जानकारियाँ धड़ल्ले से खोजी जा रही हैं। 21 वीं सदी में इंटरनेट एक ऐसे महत्वपूर्ण हथियार के रूप में उभरा, जहाँ अभिव्यक्तियों के तौर-तरीके बदलते नजर आए। किसने सोचा था कि कभी निजी डायरी माना जाने वाला ब्लॉग देखते-देखते राजनैतिक व समसायिक विषयों, साहित्य, समाज के साथ-साथ फोटो ब्लॉग, म्यूजिक ब्लॉग, पोडकास्ट, वायस ब्लॉग, वीडियो ब्लॉग, सामुदायिक ब्लॉग, प्रोजेक्ट ब्लॉग, कारपोरेट ब्लॉग, वेब कास्टिंग इत्यादि के साथ जीवन की जरूरतों में शामिल हो जायेगा। आज हिंदी ब्लागिंग भी इसका अपवाद नहीं रही, यहाँ भी यह सभी बखूबी चीजें दिखने लगी हैं। महत्वपूर्ण किताबों के ई प्रकाशन के साथ-साथ इंटरनेट के इस दौर में तमाम हिन्दी पत्र-पत्रिकाएं भी अपना ई-संस्करण जारी कर रही हैं, जिससे हिन्दी भाषा व साहित्य को नए आयाम मिले हैं। इंटरनेट पर उपलब्ध प्रमुख हिन्दी पत्रिकाएं हैं- हिंदी का पहला पोर्टल वेब दुनिया, अनुभूति, अभिव्यक्ति, सृजनगाथा, हिन्दयुग्म, रचनाकार, साहित्य कुंज, साहित्य शिल्पी, लघुकथा डाट काम, स्वर्गविभा, हिंदी नेस्ट, हिंदी चेतना, हिंदीलोक, कथाचक्र, काव्यालय, काव्यांजलि, कवि मंच, कृत्या, कलायन, आर्यावर्त, नारायण कुञ्ज, हंस, अक्षरपर्व, अन्यथा, आखर (अमर उजाला), उदन्ती, उद्गम, कथाक्रम, कादम्बिनी, कथादेश, गर्भनाल, जागरण, तथा, तद्भव, तहलका, ताप्तिलोक, दोआबा, नया ज्ञानोदय, नया पथ, परिकथा, पाखी, दि संडे पोस्ट, प्रतिलिपि, प्रेरणा, बहुवचन, भारत दर्शन, भारतीय पक्ष, मधुमती, रचना समय, लमही, लेखनी, लोकरंग, वागर्थ, शोध दिशा, संवेद, संस्कृति, समकालीन जनमत, समकालीन साहित्य, समयांतर, प्रवक्ता, अरगला, तरकश, अनुरोध, एक कदम आगे, पुरवाई, प्रवासी टुडे, अन्यथा, भारत दर्शन, सरस्वती पत्र, पांडुलिपि, हिंदी भाषी, हिंदी संसार, हिंदी समय, हिमाचल मित्र इत्यादि। इसी कड़ी में ‘कविता कोश‘ और ‘गद्य कोश‘ ने भी हिन्दी साहित्य के लिए मुक्ताकाश दिया है। यहाँ तमाम पुराने और प्रतिष्ठित साहित्यकारों की विभिन्न विधाओं में रचनाओं के संचयन के साथ-साथ नवोदित रचनाकारों की रचनाएँ भी पढ़ी जा सकती हैं। 

       आज हिन्दी ब्लागिंग में हर कुछ उपलब्ध है, जो आप देखना चाहते हैं। हर ब्लॉग का अपना अलग जायका है। राजनीति, धर्म, अर्थ, मीडिया, स्वास्थ्य, खान-पान, साहित्य, कला, शिक्षा, संस्कार, पर्यावरण, संस्कृति, विज्ञान-तकनीक, सेक्स, खेती-बाड़ी, ज्योतिषी, समाज सेवा, पर्यटन, वन्य जीवन, नियम-कानूनों की जानकारी सब कुछ अपने पन्नों पर समेटे हुए है। यहाँ खबरें हैं, सूचनाएं हैं, विमर्श हैं, आरोप-प्रत्यारोप हैं और हर किसी का अपना सोचने का नजरिया है। तमाम तकनीकी ब्लॉग लोगों को इससे जोड़ने और नित्य नई-नई जानकारियों के संग्रहण और विजेट्स से रूबरू कराने में अग्रसर हैं। सामुदायिक ब्लाग पर जीवन के विविध रंग देखे जा सकते हैं। हर सामुदायिक ब्लाग के अपने ब्लाग्र्स-लेखक हैं तो कुछ ब्लाग्र्स कई सामुदायिक ब्लाॅगों से जुड़े हुए हैं। कुछ ब्लाग्र्स का अपना स्वतंत्र ब्लाग नहीं है बल्कि वे इन सामुदायिक ब्लाग¨ के माध्यम से ही ब्लागिंग से जुड़े हुए हैं। इन सामुदायिक ब्लाग पर गंभीर वैचारिक बहसों से लेकर खरी-खोटी तक कही जाती है और कई बार ऐसी बातें/खबरें भी जो महत्वपूर्ण तो होती हैं पर किन्हीं कारणवश पत्र-पत्रिकाओं या टी0वी0 चैनल्स पर स्थान नहीं पातीं। इन ब्लागों पर स्थापित व उभर रह रचनाकारों की विभिन्न विधाओं में रचनाएं पढ़ी जा सकती हैं। कुछ ब्लाग तो नित्य-प्रतिदिन अपडेट होते हैं जबकि कुछ निश्चित अंतराल पश्चात। जाति-धर्म-क्षेत्र से ब्लागजगत भी अछूता नहीं रहा। हर कोई अपनी जाति से जुड़े महापुरुषों को लेकर गौरवान्वित हो रहा है। नेता, अभिनेता, प्रशासक, सैनिक, किसान, खिलाड़ी, पत्रकार, बिजनेसमैन, डाक्टर, इंजीनियर, पर्यावरणविद, ज्योतिषी, शिक्षक, साहित्यकार, कलाकार, कार्टूनिस्ट, वन्यजीव प्रेमी, पर्यटक, वैज्ञानिक, विद्यार्थी से लेकर बच्चे, युवा, वृद्ध, नारी-पुरुष व किन्नर तक ब्लागिंग में हाथ आजमा रहे हैं। ब्लागिंग ने पूरे विश्व में नई ऊर्जा का संचार किया है। देखते ही देखते हिन्दी को भी पंख लग गए और संपादकों की काट-छांट व खेद सहित वापस, प्रकाशकों की मनमानी व आर्थिक शोषण से परे हिन्दी ब्लागों पर पसरने लगी। हिंदी साहित्य, लेखन व पत्रकारिता से जुड़े तमाम चर्चित नाम भी अपने ब्लाग के माध्यम से पाठकों से नित्य रूबरू हो रहे हैं। विदेशों में रहकर भी हिन्दी ब्लागिंग को समृद्ध करने वालों की एक लम्बी सूची है।

      न्यू मीडिया के रूप में उभरी ब्लागिंग ने नारी-मन की आकांक्षाओं को मानो मुक्ताकाश दे दिया हो। वर्ष 2003 में यूनीकोड हिंदी में आया और तदनुसार तमाम महिलाओं ने हिंदी ब्लागिंग में सहजता महसूस करते हुए उसे अपनाना आरंभ किया। आज 50,000 से भी ज्यादा हिंदी ब्लाग हैं और इनमें लगभग एक चैथाई ब्लाग महिलाओं द्वारा संचालित हैं। ये महिलाएं अपने अंदाज में न सिर्फ ब्लागों पर सहित्य-सृजन कर रही हं बल्कि तमाम राजनैतिक-सामाजिक-आर्थिक मुददों से लेकर घरेलू समस्याओं, नारियों की प्रताड़ना से लेकर अपनी अलग पहचान बनाती नारियों को समेटते विमर्श, पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण से लेकर  पुरूष समाज की नारी के प्रति दृष्टि, जैसे तमाम विषय ब्लागों पर चर्चा का विषय बनते हैं। महिलाएं हिन्दी ब्लागिंग को न सिर्फ अपना रही हैं बल्कि न्यू मीडिया के इस अन्तर्राष्ट्रीय विकल्प के माध्यम से अपनी वैश्विक पहचान भी बनाने में सफल रही हैं। 

       ब्लाॅगिंग की दुनिया ने लोगों को एक ऐसा मंच मुहैया कराया है जहाँ वे बिना किसी खर्च और बंदिश के अपनी बात कह सकते हैं। ब्लाग के माध्यम से समाज का सुख-दुःख भी बाँटा जा सकता है। कई बार प्राकृतिक आपदाओं इत्यादि के समय सहायता के लिए ब्लाग का इस्तेमाल किया जाता है। आज ब्लाग तो विद्यालय हो गए हैं, जहाँ लिखने-पड़ने के अलावा चर्चा-परिचर्चा, सेमिनार जैसे आयोजन भी कर-देख सकते हैं। 50,000 से ज्यादा हिन्दी ब्लाग मानो ज्ञान व सूचना का खजाना हों। ब्लागर्स की गतिविधियाँ सिर्फ वर्चुअल-स्पेस तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि उससे परे भी कभी ब्लागर संगोष्ठी तो कभी ब्लागर मिलन के माध्यम से ब्लागर्स की गहमागहमी बनी रहती है। इनके माध्यम से ब्लागिंग के सम्बन्ध में बहुत कुछ शेयर करने के साथ-साथ व्यक्तिगत अनुभवों को भी साझा किया जा रहा है। निश्चिततः इन सब गतिविधियों से ब्लॉगिंग को न सिर्फ एक स्वतंत्र विधा में स्थापित करने में मदद मिलेगी बल्कि आने वाले दिनों में तमाम लोग भी इससे जुडेंगे। तमाम विश्वविद्यालय-कालेज-संस्थाओं के तत्वावधान में राष्ट्रीय ब्लागर संगोष्ठी के आयोजन जैसे कदम ब्लागिंग के बढ़ते प्रभाव का ही अहसास करा रहे हैं। ब्लागिंग पर कुछेक पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी हैं- हिंदी ब्लागिंग: अभिव्यक्ति की नई क्रांति (सं. अविनाश वाचस्पति, रवीन्द्र प्रभात), हिंदी ब्लागिंग का इतिहास (रवीन्द्र प्रभात), हिंदी ब्लागिंग : स्वरुप, व्याप्ति और संभावनाएं (स. डा. मनीष कुमार मिश्र) । यह पुस्तकें जहाँ ब्लागिंग के परंपरागत स्वरूप से लेकर बदलते दौर में ब्लागिंग के आयामों को परिलक्षित करती हैं, वहीं इसे शोध का विषय भी बनाती हैं। वैसे भी हिंदी ब्लागिंग अब शोध का विषय बन चुकी है। केवल राम, चिराग जैन, सुषमा सिंह जैसे ब्लागॅर्स बकायदा इस पर विभिन्न विश्वविद्यालयों से शोध कर रहे हैं, जो कि हिंदी ब्लागिंग के लिए एक अच्छा संकेत है।

         ब्लागिंग का एक अन्य महत्वपूर्ण पक्ष यह भी है कि किसी विषय पर एक ही साथ भिन्न-भिन्न पीढि़यों के नजरिए स्पष्ट होते हैं। ब्लागिंग से कुछ भी अछूता नहीं है, फिर चाहे वह किसी महान व्यक्तित्व को याद करना हो या किसी विशेष दिवस को। एक विषय पर एक ही साथ कई पोस्ट प्रकाशित होती हैं, बस जरूरत है इन्हें हाथी के विभिन्न अंगों की तरह समेटकर आत्मसात् करने की। जैसे-जैसे ब्लागिंग का दायरा बढ़ता गया, इसमें ब्लागर्स एसोसिएशन से लेकर पुरस्कारों तक की परंपरा भी आरंभ हो गई। कवि, लेखक, साहित्यकार इत्यादि उपाधियों से परे ब्लागर स्वयं में एक उपाधि बन चुकी है। हिंदी ब्लागिंग की सक्रियता का आलम ही है कि अब तो साहित्य अकादमी की तरह ब्लागिंग अकादमी की भी आवाज उठने लगी है। कुछ लोगों का मानना है कि जिस तरह ग्रामीण एवं अहिन्दी भाषी क्षेत्रों से प्रकाशित होने वाले हिन्दी प्रकाशनों को विशेष मदद मिलती है उसी तर्ज पर दूरदराज तथा अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के ब्लागर्स को भी विशेष सहायता मिलनी  चाहिए। ब्लाग सिर्फ राजनैतिक-साहित्यिक-सांस्कृतिक-कला-सामाजिक गतिविधियों के लिए ही नहीं जाना जाता बल्कि, तमाम कारपोरेट ग्रुप इसके माध्यम से अपने उत्पादों के संबंध में सर्वे और प्रचार भी करा रहे हैं। वास्तव में देखा जाय तो ब्लाग एक प्रकार की समालोचना है, जहाँ पाठक गुण-दोष दोनों को अभिव्यक्त करते हैं। ब्लागिंग का एक बहुत बड़ा फायदा प्रिंट मीडिया को हुआ है। अब उन्हें किसी के पत्रों एवं विचारों की दरकार महसूस नहीं होती। ब्लाग के माध्यम से वे पाठकों को समसामयिक एवं चर्चित विषयों पर जानकारी परोस रहे हैं। आज ब्लाग परम्परागत मीडिया का न सिर्फ एक विकल्प बन चुका है बल्कि ’नागरिक पत्रकार’ की भूमिका भी निभा रहा है। 

     ब्लाग बनाने हेतु मात्र तीन कदम चलने की जरूरत है, फिर अपनी सुविधानुसार उसे रंग-रूप दे सकते हैं। यहाँ ब्लागर ही लेआउट और साज सज्जा की जिम्मेदारी से लेकर सामग्री तक मुहैया कराता है अर्थात संपादक और प्रकाशक से लेकर रिपोर्टर व लेखक तक का कार्य करता है। ब्लागिंग आरम्भ करने हेतु ब्लागस्पाट.काम ; ब्लागर ; वर्डप्रेस ; तथा माईस्पेस ; चर्चित नाम हैं। इनके अलावा ब्लाग.काम, बिगअड्डा, माई वेब दुनिया, याहू ;याहू 360द्, रेडिफ आईलैण्ड, माइक्रोसाफ्ट स्पेसेजद्ध, टाइपपैड, पिटास, रेडियो यूजरलैंड इत्यादि भी ब्लागिंग की सुविधा उपलब्ध कराते हैं। ब्लागिंग की बढ़ती महत्ता देखकर तमाम अखबार भी ब्लागिंग के क्षेत्र में कूद पड़े हैं-दैनिक जागरण, हिंदुस्तान, नवभारत टाइम्स इत्यादि। आज ट्विटर द्वारा 140 शब्दों तक माइक्रो-ब्लागिंग भी की जा रही है। ऐसे में कोई भी नेट-यूजर आसानी से ब्लागिंग आरम्भ कर सकता है और अपनी अभिव्यक्तियों को सूचना-संजाल के इस दौर में हर किसी तक पहुँचा सकता है। निश्चिततः भूमंडलीकरण के इस दौर में ब्लागिंग ने न सिर्फ भाषाओं और उनके साहित्य को समृद्ध किया है, बल्कि विस्तृत संवाद का एक सशक्त हथियार भी मुहैया कराया है और हिन्दी भी इसकी अपवाद नहीं है।

- आकांक्षा यादव @ www.shabdshikhar.blogspot.com/ 





रविवार, 14 अप्रैल 2013

डा0 भीमराव अम्बेडकर के प्रति दीवानगी ने रचा ' ‘भीमायनम्’'


आधुनिक भारत के निर्माताओं में डा0 भीमराव अम्बेडकर का नाम प्रमुखता से लिया जाता है पर स्वयं डा0 अम्बेडकर को इस स्थिति तक पहुँचने के लिये तमाम सामाजिक कुरीतियों और भेदभाव का सामना करना पड़ा। डा0 अम्बेडकर मात्र एक साधारण व्यक्ति नहीं थे वरन् दार्शनिक, चिंतक, विचारक, शिक्षक, सरकारी सेवक, समाज सुधारक, मानवाधिकारवादी, संविधानविद और राजनीतिज्ञ इन सभी रूपों में उन्होंने विभिन्न भूमिकाओं का निर्वाह किया। अंबेडकर के पिता रामजी की यह बेहद दिली इच्छा थी कि उनका पुत्र संस्कृत पढ़े। इसी के मद्देनजर, जब अंबेडकर ने मुंबई के एलफिंस्टन हाई स्कूल में संस्कृत विषय का विकल्प लिया तो वह यह देखकर हैरान हो गए कि स्कूल के शिक्षकों ने उन्हें संस्कृत विषय देने से इसलिए इन्कार कर दिया कि वह एक दलित थे। उन दिनों “निचली जाति” के लोगों को संस्कृत का ज्ञान देना एक ऐसी बात थी जिससे लोग बचते थे। हाल ही में दृष्टि दोष से संघर्षरत 84 वर्षीय एक वैदिक विद्वान प्रभाकर जोशी ने जब डा॰ अंबेडकर के जीवन के विषय में पढ़ना शुरू किया तो उन्हें यह एक विडंबना लगी और इसी के बाद उन्होंने संस्कृत में डा॰ अंबेडकर की जीवनी ‘भीमायनम्’ लिखने का फैसला किया। प्रभाकर जोशी ने भारतीय संविधान के निर्माता डा॰ भीमराव अंबेडकर की जीवनी संस्कृत श्लोकों में लिखी है। डा॰ अंबेडकर की संस्कृत में लिखी संभवतः यह पहली जीवनी है। इस किताब में संस्कृत के 1577 श्लोक हैं और इन श्लोकों में डा॰ अंबेडकर के जीवन की विभिन्न घटनाओं का जिक्र किया गया है। 



      संस्कृत शिक्षक रहे प्रभाकर जोशी पिछड़ों के कल्याण के लिए डा॰ अंबेडकर के अभियान  से बेहद प्रभावित हैं। वे उन्हें ‘महामानव’ कहते हैं। महाराष्ट्र सरकार के महाकवि कालिदास पुरस्कार से सम्मानित प्रभाकर जोशी मोतियाबिंद से पीडि़त हैं।  गौरतलब है कि 2004 में शुरू हुए इस काम के दौरान प्रभाकर जोशी की नेत्र ज्योति पूरी तरह चली गई, फिर भी उन्होंने अपना प्रयास निरंतर जारी रखा। लेखन के दौरान अक्सर कम दिखाई देने की वजह से उनके अक्षर गड्डमड्ड हो जाते थे। उनकी दृष्टि तेजी से धुंधलाती जा रही थी लेकिन इसके बावजूद अपने काम को पूरा करने की उनकी अदम्य इच्छाशक्ति बढ़ती जा रही थी।’ उनके लिखने के बाद उनकी पत्नी उन पंक्तियों को पढ़ती थी और उन्हें बाद में टाइप आदि किए जाने के लिए पठनीय बनाती थीं। कई बार प्रभाकर जोशी के मन में शब्द अचानक आ जाते थे और वे रात में ही उन्हें लिख लेने के लिए उठ जाते थे हालांकि उन्हें यह मालूम ही नहीं होता था कि स्याही सूख गई है। यहाँ एक अन्य प्रसंग का जिक्र करना उचित होगा कि 2 मार्च 1930 को नासिक के कालाराम मन्दिर के प्रमुख पुरोहित की हैसियत से डा0 अम्बेडकर को दलित होने के कारण मन्दिर में प्रवेश करने से रोकने वाले रामदासबुवा पुजारी के पौत्र और विश्व हिन्दू परिषद के मार्गदर्शक मंडल के महंत सुधीरदास पुजारी ने भी अपने दादा की भूल का प्रायश्चित करने की इच्छा व्यक्त की थी। यह दर्शाता है कि डा॰ अंबेडकर के विचार व कार्य चिरंतन हैं और आज भी लोग उन्हें समझने की कोशिश कर रहे हैं। पं0 जवाहरलाल नेहरू ने उनके लिए यूं ही नहीं कहा था कि-‘‘डा0 अम्बेडकर हिन्दू समाज के सभी दमनात्मक संकेतों के विरूद्ध विद्रोह के प्रतीक थे। बहुत मामलों में उनके जबरदस्त दबाव बनाने तथा मजबूत विरोध खड़ा करने से हम मजबूरन उन चीजों के प्रति जागरूक और सावधान हो जाते थे तथा सदियों से दमित वर्ग की उन्नति के लिये तैयार हो जाते थे।’’

मंगलवार, 9 अप्रैल 2013

'दैनिक जागरण' और 'जनसत्ता' में भी फुदकी 'शब्द-शिखर' की गौरैया


'विश्व गौरैया दिवस' पर पर 20 मार्च, 2013 को 'शब्द-शिखर' पर लिखी गई मेरी पोस्ट 'लौट आओ नन्ही गौरैया'  को 9 अप्रैल, 2013 को जनसत्ता के नियमित स्तम्भ 'समांतर' में 'लौट आओ गौरैया' शीर्षक से स्थान दिया है. 

 इसी पोस्ट को दैनिक जागरण के राष्ट्रीय संस्करण में 21  मार्च, 2013 को  ' 'लौट आओ नन्ही गौरैया' शीर्षक से स्थान दिया है...आभार.

 समग्र रूप में प्रिंट-मीडिया में 33 वीं बार मेरी किसी पोस्ट की चर्चा हुई है.. आभार !!

इससे पहले शब्द-शिखर और अन्य ब्लॉग पर प्रकाशित मेरी पोस्ट की चर्चा दैनिक जागरण, जनसत्ता, अमर उजाला,राष्ट्रीय सहारा,राजस्थान पत्रिका, आज समाज, गजरौला टाईम्स, जन सन्देश, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, दस्तक, आई-नेक्स्ट, IANS द्वारा जारी फीचर में की जा चुकी है. आप सभी का इस समर्थन व सहयोग के लिए आभार! यूँ ही अपना सहयोग व स्नेह बनाये रखें !!