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मंगलवार, 26 अगस्त 2014

असली जीवन की 'मर्दानी'


'मर्दानी' फिल्म आजकल चर्चा में है। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के ऊपर लिखी सुभद्रा कुमारी चौहान की पंक्तियाँ  'खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसी वाली रानी थी' भला किसे न याद होंगी। बदलते वक़्त और परिप्रेक्ष्य के साथ इस प्रकार की तमाम घटनाएँ सामने आती हैं तो अनायास ही लोगों के मुँह से निकला पड़ता है -खूब लड़ी मर्दानी।


अपने देश भारत के तमाम अंचलों  में महिलाओं पर हो रहे जुल्म-ओ-सितम के बीच भय और आतंक के साए में सांस ले रही महिलाओं ने खुद पर भरोसा करना सीख लिया है। इन सबके बीच मेरठ की एक दिलेर महिला ममता यादव नई मिसाल बनकर उभरी हैं। मेरठ के  सिविल लाइन क्षेत्र में 19 अगस्त, 2014 को कचहरी पुल के पास  अपनी अस्मिता और पति की रक्षा के लिए ममता ने हमलावर युवकों की पिटाई कर डाली थी। इस दौरान पुलिस  तमाशबीन बनी रही तो कुछ लोग नैतिकता का प्रवचन झाड़ रहे थे। जब वह लोगों से अपील कर रही थी, तो इन युवकों में से कुछ युवक अश्लील टिप्पणियां भी कर रहे थे और कुछ उनकी फोटो और वीडियो उतारने में लगे हुए थे।  

वस्तुत:  कार में सवार कुछ मनचले, बाइक पर पति के साथ जा रही युवती ममता यादव पर छींटाकशी करते चल रहे थे। इसी दौरान मनचलों ने कार बाइक में भिड़ा दी। जब बाइक सवार पति-पत्नी ने इसका विरोध किया तो मनचलों ने गाली- गलौज करते हुए पति पर हमला बोल दिया। यह सब देख युवती असहज हो गई। आसपास नजर घुमाकर देखा, तो पूरी भीड़ बेजान नजर आई। बुजदिल जमाने में उसे कोई अपना नहीं लगा। पास में खड़े पुलिस के जवानों में भी कोई हरकत नहीं हुई। लफंगों के हाथ से पिट रहे अधेड़ व्यक्ति को छुड़ाने के लिए कोई हाथ आगे नहीं बढ़ा। बेशर्मी की हद तो तब पार हो गई जब कइयों ने मारपीट सीन पर अपने मोबाइल के कैमरे की फ्लैश डालनी शुरू कर दी। ऐसे में भय की आबोहवा में कायर होते जा रहे समाज का घिनौने चेहरे ने युवती के अंदर हौसला भर दिया। उसने ताल ठोंकी और आधा दर्जन लड़कों से अकेले मुकाबला करते हुए उन्हें भागने पर मजबूर किया। लफंगे युवाओं ने ममता यादव  पर काबू जमाने की भरपूर कोशिश की, किंतु नारी की शक्ति और स्वाभिमान ने उनके पैर उखाड़ दिए। मामला बिगड़ता देख जब भी युवाओं ने भागने का प्रयास किया तो ममता  ने उनका रास्ता रोक लिया। तमाशबीन व जड़ हो चुकी भीड़ भी दृश्य को देख शर्मसार हो गई। कइयों ने बाद में ममता  के समर्थन में आवाज ऊंची करने की कोशिश की, जिसे उन्होंने  ने डांटकर चुप करा दिया। तमाशबीन लोगों के बीच घायल अवस्था में ही वे घर लौट आए। ममता ने कहा कि वे विक्टोरिया पार्क स्थित बिजली विभाग कार्यालय में बिल जमा कराने के लिए 23 हजार रुपये लेकर जा रहीं थीं। पैसे तो बच गए, लेकिन पति को बचाने की जद्दोजहद में उनकी चेन टूट गई। ममता यादव एलआइसी की एजेंट है और उनके पति कपड़े का व्यवसाय करते हैं। बहरहाल, लफंगों के आतंक से भयभीत भीड़ को ममता ने बहादुरी से अन्याय के खिलाफ लडऩे का संदेश दिया। लगे हाथ पुलिस को आइना दिखाया।

इस घटना के समय ममता ने हिम्मत तो दिखाई, पर इससे  वह बेहद घबराई भी हुई थीं। उन्हें  डर था कि उनके सामने आने के बाद हमलावर उनके घर तक नहीं पहुंच जाए। इसलिए वह तीन दिन से घर में चुप बैठी थीं। ममता की बड़ी बहन शशि यादव को जब पूरी घटना का पता चला तो वे दिल्ली से मेरठ पहुंचीं और ममता को मीडिया के सामने आने व पुलिस में अपनी ओर से शिकायत देने के लिए तैयार कराया। घटना के तीन दिन बाद 23 अगस्त को अंतत : तमाम झिझक को ताक पर रखकर ममता  मीडिया से मुखातिब हुई और पूरे वाकये को दोहराया। ऐसे में  अकेले दम कई युवाओं को धूल चटाने वाली ममता यादव के जज्बे की खबर राष्ट्रीय स्तर पर अख़बारों और तमाम  टीवी चैनलों की सुर्खियां बन गई।  ममता ने इस मामले की लिखित शिकायत पुलिस में की है। सामान्य सी जिंदगी जी रही ममता हाल-फिलहाल कैमरे की चकाचौंध और अखबारनवीसों के सवालों से घिरी हैं। यहाँ तक कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के आदेश पर जिले के आला अफसरान ने ममता यादव के घर जाकर उन्हें एक लाख रुपये का चेक सौंपा। ममता का कहना है कि वह चाहती है कि हमलावरों को कड़ी से कड़ी सजा मिले, जिससे समाज में संदेश जाए कि ऐसे बदमाशों के सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने की बजाए उनका सामना करना चाहिए।

हमलावरों के ग्रुप से अकेली लड़ने वाली साहसी महिला ममता यादव ने रविवार को साफ कहा है कि मुझे इनाम नहीं, न्याय चाहिए।ममता ने कहा कि मैं किसी व्यक्ति या पार्टी विशेष नहीं बल्कि व्यवस्था के खिलाफ बोल रही हूं। रविवार को महिला की तरफ से भी पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर ली है और उसका मेडिकल भी करा दिया है। ममता ने कहा कि यदि मुझे तीन दिनों में न्याय नहीं मिला तो जान देने से भी नहीं हिचकूंगी। मीडिया से बातचीत में  ममता यादव ने पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा कि तीन दिन के बाद रविवार शाम को उनकी तहरीर रिसीव की गई। इसके बाद सीओ ने उनका मेडिकल परीक्षण कराया जिसमें उनके हाथ में फैक्चर आया है।ममता ने कहा कि मैं और मेरा परिवार खौफ में जी रहे हैं। चार आरोपियों में से अभी केवल एक ही आरोपी गिरफ्तार हुआ है।  ऐसे में मैं कैसे खुद को सुरक्षित महसूस कर सकती हूं। ममता ने कहा कि मैं किसी भी पार्टी पर अंगुली नहीं उठा रही हूं। बस न्याय मांग रही हूं। ममता ने कहा कि मेरे पति की जिंदगी पर खतरा मंडराया तो मैं हमलावरों से जा भिड़ी। मैंने भीड़ से मदद मांगी लेकिन कोई आगे नहीं आया था। मुझे सरकारी इनाम नहीं बल्कि न्याय चाहिए।अपने सम्मान की रक्षा करना अपराध नहीं है। ममता ने कहा कि मैंने जो किया, वह वक्त की नजाकत थी। हर इज्जतदार महिला को वही करना चाहिए जो मैंने किया। 

 .............पर यह लड़ाई तो अभी अधूरी है क्योंकि अब ममता यादव इंसाफ के लिए व्यवस्था से लड़ रही हैं !!


  

सोमवार, 18 अगस्त 2014

कृष्ण की बाँसुरी की मिठास


प्रेम की बाँसुरी की मिठास वाकई बहुत सुरीली और अनुपम होती है। बांसुरी भगवान श्री कृष्ण को अति प्रिय है, क्योंकि बांसुरी में तीन गुण हैं :

पहला
बांसुरी में गांठ नहीं है।
जो संकेत देता है
कि
अपने अंदर
किसी भी प्रकार की
गांठ मत रखो।
मन में
बदले की भावना मत रखो।

दूसरा गुण
बिना बजाये ये बजती नहीं है।
मानो बता रही है कि
जब तक ना कहा जाए
तब तक
मत बोलो।
और

तीसरा
जब भी बजती है
मधुर ही बजती है।
अर्थात
जब भी बोलो, मीठा ही बोलो।

जय श्रीकृष्ण !!
कृष्ण जन्माष्टमी पर हार्दिक बधाइयाँ !!

मुरलीधर मथुराधिपति माधव मदनकिशोर. 
मेरे मन मन्दिर बसो मोहन माखनचोर. 

कृष्ण जन्माष्टमी पर हार्दिक बधाइयाँ !!

शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले से उठाई भारत में बेटियों की व्यथा

स्वतंत्रता दिवस पर  प्रधानमंत्री मोदी जी ने लालकिले से अपने भाषण में राजनैतिक कम, सामाजिक मुद्दों को ज्यादा तरजीह दी। समाज और परिवार पर  कटाक्ष करते हुए उन्होंने एक अहम  बात कही कि आखिर सवालों और बंदिशों के घेरे  में बेटियाँ ही क्यों, बेटे क्यों नहीं रखे जाते ? बेटा-बेटी  के प्रति समाज का  दोहरापन ही तमाम बुराईयों की जड़ है और जिसका प्रतिबिम्ब आज नारी से दुर्व्यवहार और रेप जैसी घटनाओं  में साफ दिख रहा है। आखिर बेटों से यह सवाल क्यों नहीं पूछे जाते कि उनके दोस्त कौन हैं, वे कहाँ जा रहे हैं, उनकी गतिविधियाँ क्या हैं जबकि बेटियों से ये सारे सवाल बार-बार पूछे जाते हैं। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सारे फरमान भी बेटियों पर ही बंदिश लगाते हैं। रेप जैसी घटनाओं के लिए सिर्फ बेटों ही नहीं उनके माँ-बाप भी उतने ही जिम्मेदार हैं।  मोदी जी ने जोर देकर कहा कि बलात्कार की घटनाओं के बारे में सुनकर सिर शर्म से झुक जाता है। माता-पिता बेटियों पर बंधन डालते हैं, लेकिन उन्हें बेटों से भी पूछना चाहिए, वे कहां जा रहे हैं, क्या करने जा रहे हैं ? कानून के साथ समाज को भी जिम्मेदार बनना होगा। 

भ्रूण हत्या पर मोदी जी ने बेहद तल्खी से कहा कि,  हमने हमारा लिंगानुपात देखा है...? समाज में यह असंतुलन कौन बना रहा है...? भगवान नहीं बना रहे...! मैं डॉक्टरों से अपील करता हूं कि वे अपनी तिजोरियां भरने के लिए किसी मां की कोख में पल रही बेटी को न मारें... बेटियों को मत मारो, यह 21वीं सदी के भारत के माथे पर कलंक है। 

मोदी जी ने कहा कि ऐसे परिवार देखे हैं, जहां बड़े मकानों में रहने वाले पांच-पांच बेटों के बावजूद बूढ़े मां-बाप वृद्धाश्रम में रहते हैं... और ऐसे भी परिवार हैं, जहां इकलौती बेटी ने माता-पिता की देखभाल करने के लिए शादी तक नहीं की... सो, एक बेटी पांच-पांच बेटों से भी ज़्यादा सेवा कर सकती है...

मोदी जी ने लाल किले से इस बात को उठाया है तो आवाज़ भी दूर तक जानी चाहिये। 

लाल किले की प्राचीर से जब तिरंगा बुलंदी से फहरा रहा था तो इसी के साथ लोगों की आशाएं भी जगीं। आने वाले दिनों में विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के मुखिया से आधी आबादी सकारात्मक और सख्त क़दमों की आशा तो कर ही सकती है, आखिर इसके बिना तो भारत को सुदृढ़, सशक्त और विकसित नहीं बनाया जा सकता  !!

रविवार, 10 अगस्त 2014

पत्नी द्वारा पति को रक्षासूत्र बाँधने से आरम्भ हुआ रक्षाबंधन का

भारतीय संस्कृति में त्यौहारों का आदि काल से ही महत्व रहा है। हर त्यौहार के साथ धार्मिक मान्यताओं, मिथकों, सामाजिक व ऐतिहासिक घटनाओं और परम्परागत विश्वासों का अद्भुत संयोग प्रदर्शित होता है। त्यौहार सिर्फ एक अनुष्ठान मात्र नहीं हैं, वरन् इनके साथ सामाजिक समरसता, सांस्कृतिक तारतम्य, सभ्यताओं की खोज एवं अपने अतीत से जुडे रहने का सुखद अहसास भी जुड़ा होता है। त्यौहारों को मनाने के तरीके अलग हो सकते हैं पर उद्देश्य अंतत: एक ही है। यहाँ तक कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी अपनी बात लोगों तक पहुँचाने के लिए त्यौहारों व मेलों का एक मंच के रूप में प्रयोग होता था।

रक्षाबन्धन भारतीय सभ्यता का एक प्रमुख त्यौहार है जो कि श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहन अपनी रक्षा के लिए भाई को राखी बाँधती है। भारतीय परम्परा में विश्वास का बन्धन ही मूल है और रक्षाबन्धन इसी विश्वास का बन्धन है। यह पर्व मात्र रक्षा-सूत्र के रूप में राखी बाँधकर रक्षा का वचन ही नहीं देता वरन् प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के जरिए हृदयों को बाँधने का भी वचन देता है। पहले रक्षा बन्धन बहन-भाई तक ही सीमित नहीं था, अपितु आपत्ति आने पर अपनी रक्षा के लिए अथवा किसी की आयु और आरोग्य की वृद्धि के लिये किसी को भी रक्षा-सूत्र (राखी) बांधा या भेजा जाता था। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि- ‘मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव’- अर्थात ‘सूत्र’ अविच्छिन्नता का प्रतीक है, क्योंकि सूत्र (धागा) बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनाता है। माला के सूत्र की तरह रक्षा-सूत्र (राखी) भी लोगों को जोड़ता है। गीता में ही लिखा गया है कि जब संसार में नैतिक मूल्यों में कमी आने लगती है, तब ज्योतिर्लिंगम भगवान शिव प्रजापति ब्रह्मा द्वारा धरती पर पवित्र धागे भेजते हैं, जिन्हें बहनें मंगलकामना करते हुए भाइयों को बाँधती हैं और भगवान शिव उन्हें नकारात्मक विचारों से दूर रखते हुए दुख और पीड़ा से निजात दिलाते हैं।

राखी का सर्वप्रथम उल्लेख पुराणों में प्राप्त होता है जिसके अनुसार असुरों के हाथ देवताओं की पराजय पश्चात अपनी रक्षा के निमित्त सभी देवता इंद्र के नेतृत्व में गुरू वृहस्पति के पास पहुँचे तो इन्द्र ने दुखी होकर कहा- ‘‘अच्छा होगा कि अब मैं अपना जीवन समाप्त कर दूँ।’’ इन्द्र के इस नैराश्य भाव को सुनकर गुरू वृहस्पति के दिशा-निर्देश पर रक्षा-विधान हेतु इंद्राणी ने श्रावण पूर्णिमा के दिन इन्द्र सहित समस्त देवताओं की कलाई पर रक्षा-सूत्र बाँधा और अंतत: इंद्र ने युद्ध में विजय पाई। इस प्रकार कहा जा सकता है कि रक्षाबंधन की शुरुआत पत्नी द्वारा पति को राखी बाँधने से हुई। एक अन्य कथानुसार राजा बलि को दिये गये वचनानुसार भगवान विष्णु बैकुण्ठ छोड़कर बलि के राज्य की रक्षा के लिये चले गय। तब देवी लक्ष्मी ने ब्राह्मणी का रूप धर श्रावण पूर्णिमा के दिन राजा बलि की कलाई पर पवित्र धागा बाँधा और उसके लिए मंगलकामना की। इससे प्रभावित हो बलि ने देवी को अपनी बहन मानते हुए उसकी रक्षा की कसम खायी। तत्पश्चात देवी लक्ष्मी अपने असली रूप में प्रकट हो गयीं और उनके कहने से बलि ने भगवान विष्णु से बैकुण्ठ वापस लौटने की विनती की। त्रेता युग में रावण की बहन शूर्पणखा लक्ष्मण द्वारा नाक कटने के पश्चात रावण के पास पहुँची और रक्त से सनी साड़ी का एक छोर फाड़कर रावण की कलाई में बाँध दिया और कहा कि- ‘‘भैया! जब-जब तुम अपनी कलाई को देखोगे, तुम्हें अपनी बहन का अपमान याद आएगा और मेरी नाक काटनेवालों से तुम बदला ले सकोगे।’’ इसी प्रकार महाभारत काल में भगवान कृष्ण के हाथ में एक बार चोट लगने व फिर खून की धारा फूट पड़ने पर द्रौपदी ने तत्काल अपनी कंचुकी का किनारा फाड़कर भगवान कृष्ण के घाव पर बाँध दिया। कालांतर में दु:शासन द्वारा द्रौपदी-चीर-हरण के प्रयास को विफल कर उन्होंने इस रक्षा-सूत्र की लाज बचायी। द्वापर युग में ही एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि वह महाभारत के युद्ध में कैसे बचेंगे तो उन्होंने तपाक से जवाब दिया- ‘‘राखी का धागा ही तुम्हारी रक्षा करेगा।’’

ऐतिहासिक युग में भी सिंकदर व पोरस ने युद्ध से पूर्व रक्षा-सूत्र की अदला-बदली की थी। युद्ध के दौरान पोरस ने जब सिकंदर पर घातक प्रहार हेतु अपना हाथ उठाया तो रक्षा-सूत्र को देखकर उसके हाथ रूक गए और वह बंदी बना लिया गया। सिकंदर ने भी पोरस के रक्षा-सूत्र की लाज रखते हुए और एक योद्धा की तरह व्यवहार करते हुए उसका राज्य वापस लौटा दिया। मुगल काल के दौर में जब मुगल सम्राट हुमायूँ चितौड़ पर आक्रमण करने बढ़ा तो राणा सांगा की विधवा कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर अपनी रक्षा का वचन लिया। हुमायूँ ने इसे स्वीकार करके चितौड़ पर आक्रमण का ख्याल दिल से निकाल दिया और कालांतर में राखी की लाज निभाने के लिए चितौड़ की रक्षा हेतु गुजरात के बादशाह से भी युद्ध किया। इसी प्रकार न जाने कितनी मान्यतायें रक्षा बन्धन से जुड़ी हुयी हैं।

लोक परम्परा में रक्षाबन्धन के दिन परिवार के पुरोहित द्वारा राजाओं और अपने यजमानों के घर जाकर सभी सदस्यों की कलाई पर मौली बाँधकर तिलक लगाने की परम्परा रही है। पुरोहित द्वारा दरवाजों, खिड़कियों, तथा नये बर्तनों पर भी पवित्र धागा बाँधा जाता है और तिलक लगाया जाता है। यही नहीं बहन-भानजों द्वारा एवं गुरूओं द्वारा स्त्रियों को रक्षा सूत्र बाँधने की भी परम्परा रही है। राखी ने स्वतंत्रता-आन्दोलन में भी प्रमुख भूमिका निभाई। कई बहनों ने अपने भाइयों की कलाई पर राखी बाँधकर देश की लाज रखने का वचन लिया। 1905 में बंग-भंग आंदोलन की शुरूआत लोगों द्वारा एक-दूसरे को रक्षा-सूत्र बाँधकर हुयी। राखी से जुड़ी एक मार्मिक घटना क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के जीवन की है। आजाद एक बार तूफानी रात में शरण लेने हेतु एक विधवा के घर पहुँचे। पहले तो उसने उन्हें डाकू समझकर शरण देने से मना कर दिया पर यह पता चलने पर कि वह क्रांतिकारी आजाद है, ससम्मान उन्हें घर के अंदर ले गई। बातचीत के दौरान आजाद को पता चला कि उस विधवा को गरीबी के कारण जवान बेटी की शादी हेतु काफी परेशानियाँ उठानी पड़ रही हैं तो उन्होंने द्रवित होकर उससे कहा- “मेरी गिरफ्तारी पर 5000 रूपये का इनाम है, तुम मुझे अंग्रेजों को पकड़वा दो और उस इनाम से बेटी की शादी कर लो।” यह सुन विधवा रो पड़ी व कहा- “भैया! तुम देश की आजादी हेतु अपनी जान हथेली पर रखकर चल रहे हो और न जाने कितनी बहू-बेटियों की इज्जत तुम्हारे भरोसे है। अत: मै ऐसा हरगिज नहीं कर सकती।” यह कहते हुए उसने एक रक्षा-सूत्र आजाद के हाथों में बाँधकर देश-सेवा का वचन लिया। सुबह जब विधवा की आँखें खुली तो आजाद जा चुके थे और तकिए के नीचे 5000 रूपये पड़े थे। उसके साथ एक पर्ची पर लिखा था- “अपनी प्यारी बहन हेतु एक छोटी सी भेंट- आजाद।”

देश के विभिन्न अंचलों में राखी पर्व को भाई-बहन के त्यौहार के अलावा भी भिन्न-भिन्न तरीकों से मनाया जाता है। मुम्बई के कई समुद्री इलाकों में इसे नारियल-पूर्णिमा या कोकोनट-फुलमून के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन विशेष रूप से समुद्र देवता पर नारियल चढ़ाकर उपासना की जाती है और नारियल की तीन आँखों को शिव के तीन नेत्रों की उपमा दी जाती है। बुन्देलखण्ड में राखी को कजरी-पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन कटोरे में जौ व धान बोया जाता है तथा सात दिन तक पानी देते हुए माँ भगवती की वन्दना की जाती है। उत्तरांचल के चम्पावत जिले के देवीधूरा में राखी-पर्व पर बाराही देवी को प्रसन्न करने के लिए पाषाणकाल से ही पत्थर युद्ध का आयोजन किया जाता रहा है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘बग्वाल’ कहते हैं। सबसे आश्चर्यजनक तो यह है कि इस युद्ध में आज तक कोई भी गम्भीर रूप से घायल नहीं हुआ और न ही किसी की मृत्यु हुई। इस युद्ध में घायल होने वाला योद्धा सर्वाधिक भाग्यवान माना जाता है एवं युद्ध समाप्ति के पश्चात पुरोहित पीले वस्त्र धारण कर रणक्षेत्र में आकर योद्धाओं पर पुष्प व अक्षत् की वर्षा कर आशीर्वाद देते हैं। इसके बाद युद्ध बन्द हो जाता है और योद्धाओं का मिलन समारोह होता है। एक रोचक घटनाक्रम में हरियाणा राज्य में अवस्थित कैथल जनपद के फतेहपुर गाँव में सन् 1857 में एक युवक गिरधर लाल को रक्षाबन्धन के दिन अंग्रेजों ने तोप से बाँधकर उड़ा दिया, इसके बाद से गाँव के लोगों ने गिरधर लाल को शहीद का दर्जा देते हुए रक्षाबन्धन पर्व मनाना ही बंद कर दिया। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के 150 वर्ष पूरे होने पर सन् 2006 में जाकर इस गाँव के लोगों ने इस पर्व को पुन: मनाने का संकल्प लिया।

रक्षाबन्धन हमारे सामाजिक परिवेश एवं मानवीय रिश्तों का अंग है। आज जरुरत है कि आडम्बर की बजाय इस त्यौहार के पीछे छुपे हुए संस्कारों और जीवन मूल्यों को अहमियत दी जाए तभी व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र सभी का कल्याण सम्भव होगा।


( जीवन साथी कृष्ण कुमार यादव जी द्वारा लिखित आलेख, डेली न्यूज एक्टिविस्ट ( 10  अगस्त, 2014) में भी पढ़ सकते हैं )

रविवार, 3 अगस्त 2014

फ्रेण्डशिप-डे : ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे


मित्रता किसे नहीं भाती। यह अनोखा रिश्ता ही ऐसा है जो जाति, धर्म, लिंग, हैसियत कुछ नहीं देखता, बस देखता है तो आपसी समझदारी और भावों का अटूट बन्धन। इस जहां में हर रिश्तों पर भारी है मित्रता का रिश्ता। बशर्ते मित्र सच्चा हो। वैसे इस भौतिकवादी युग में सच्चे मित्रों को तलाश पाना टेढ़ी खीर है। जब दिन अच्छे होते है तो मित्रों की भारी-भरकम फौज साथ होती है, दिन खराब हुए तो यह फौज गायब हो जाती है। जो बुरे दिनों में काम आए वही सच्चा मित्र है। उसी पर भरोसा किया जा सकता है। लोग आज भी प्रभु कृष्ण व सुदामा की दोस्ती नहीं भूलते। त्रेता युग के प्रभु राम व सुग्रीव की दोस्ती लोगों को आज भी याद है। ऐसे ही तमाम उदाहरण हमारे सामने हैं जहाँ मित्रता ने हार जीत के अर्थ तक बदल दिये। सिकन्दर-पोरस का संवाद इसका जीवंत उदाहरण है। मित्रता या दोस्ती का दायरा इतना व्यापक है कि इसे शब्दों में बाँंधा नहीं जा सकता। दोस्ती वह प्यारा सा रिश्ता है जिसे हम अपने विवेक से बनाते हैं। अगर दो दोस्तों के बीच इस जिम्मेदारी को निभाने में जरा सी चूक हो जाए तो दोस्ती में दरार आने में भी ज्यादा देर नहीं लगती। सच्चा दोस्त जीवन की अमूल्य निधि होता है। दोस्ती को लेकर तमाम फिल्में भी बनी और कई गाने भी मशहूर हुए-

                                   ये तेरी मेरी यारी
                                   ये दोस्ती हमारी
                                   भगवान को पसन्द है
                                   अल्लाह को है प्यारी।

     ऐसा ही एक अन्य गीत है-

                                ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे
                                छोड़ेंगे दम मगर
                                तेरा साथ न छोड़ेंगे।

    हाल ही में रिलीज हुई एक अन्य फिल्म के गीतों पर गौर करें-

                               आजा मैं हवाओं में बिठा के ले चलूँ
                               तू ही-तू ही मेरा दोस्त है।

दोस्ती की बात पर याद आया कि आजकल ‘फ्रेण्डशिप-डे‘ मनाने का चलन भी जोरों पर है। यद्यपि इस बात से इत्तफाक नहीं रखा जा सकता कि किसी संबंध को दिन विशेष के लिए निर्धारित कर दिया जाय, पर उस दिन का आनन्द लेने में कोई हर्ज भी नहीं दिखता। फ्रेण्डशिप कार्ड, क्यूट गिफ्ट्स और फ्रेण्डशिप बैण्ड से इस समय सारा बाजार पटा पड़ा है। हर कोई एक अदद अच्छे दोस्त की तलाश में है, जिससे वह अपने दिल की बातें शेयर कर सके। पर अच्छा दोस्त मिलना वाकई एक मुश्किल कार्य है। दोस्ती की कसमें खाना तो आसान है पर निभाना उतना ही कठिन। आजकल तो लोग दोस्ती में भी गिरगिटों की तरह रंग बदलते रहते हैं। पर किसी शायर ने भी खूब लिखा है-

                              दुश्मनी जमकर करो
                              लेकिन ये गुंजाइश रहे
                              कि जब कभी हम दोस्त बनें
                              तो शर्मिन्दा न हों।


मित्रों के बिना जीवन की कल्पना ही अधूरी है। कोई मित्र यूंँ ही नहीं बन जाता, बल्कि उसके पीछे तमाम बातें होती  हैं।  अब तो वैज्ञानिक भी इस पर शोध कर रहे हैं। यूनिवर्सिटी आॅफ कैलिफोर्निया और येल यूनिवर्सिटी में हुए एक शोध की मानें तो मित्रों की सिर्फ आदतें  या सोचने का तरीका ही एक जैसा नहीं होता बल्कि उनका डीएनए भी समान होता है। अब तक सिर्फ पारिवारिक सदस्यों के डीएनए ही एक जैसे होने की बात कही जाती रही है, पर अब तो दोस्तों का डीएनए भी तकरीबन उतना ही मिलता है, जितना दूर के रिश्तेदारों का।

फिलहाल, फ्रेण्डशिप-डे की बात करें तो भारत सहित दुनिया के अनेक देशों में परंपरानुसार यह अगस्त माह के प्रथम रविवार को मनाया जाता है। अमेरिकी कांग्रेस द्वारा 1935 में अगस्त माह के प्रथम रविवार को दोस्तों के सम्मान में ‘राष्ट्रीय मित्रता दिवस‘ के रूप में मनाने का फैसला लिया गया था। इस अहम दिन की शुरूआत का उद्देश्य प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान उपजी कटुता को खत्म कर सबके साथ मैत्रीपूर्ण भाव कायम करना था। पर कालांतर में यह सर्वव्यापक होता चला गया। दोस्ती का दायरा समाज और राष्ट्रों के बीच ज्यादा से ज्यादा बढ़े, इसके मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र संघ ने बकायदा 1997 में लोकप्रिय कार्टून कैरेक्टर विन्नी और पूह को पूरी दुनिया के लिए दोस्ती के राजदूत के रूप में पेश किया। 


इस फ्रेण्डशिप-डे पर बस यही कहना उचित होगा कि सच्चा दोस्त वही होता है जो अपने दोस्त का सही मायनों में विश्वासपात्र होता है। अगर आप सच्चे दोस्त बनना चाहते हैं तो अपने दोस्त की तमाम छोटी-बड़ी, अच्छी-बुरी बातों को उसके साथ तो शेयर करें लेकिन लोगों के सामने उसकी कमजोरी या कमी का बखान कभी न करें , नहीं तो आपके दोस्त का विश्वास उठ जाएगा क्योंकि दोस्ती की सबसे पहली शर्त होती है विश्वास। हाँ, एक बात और। उन पुराने दोस्तों को विश करना न भूलें जो हमारे दिलों के तो करीब हैं, पर रहते दूरियों पर हैं।

एक बात और भी महत्वपूर्ण है कि आजकल लड़के-लड़कियाँ भी अच्छे दोस्त होते हैं, लेकिन इस दोस्ती की मर्यादा को ध्यान में रखते हुए इसकी गरिमा बनाए रखना जरूरी है। सच्चा मित्र जीवन के लिए वरदान जैसा होता है। ऐसे में आज जरूरत है सच्चे दोस्तों की।

फ्रेण्डशिप-डे : ये दोस्ती हम नहीं तोड़ेंगे 
(डेली न्यूज एक्टिविस्ट, 3 अगस्त 2014 में आकांक्षा यादव का फ्रेण्डशिप-डे पर आलेख)


- आकांक्षा यादव


सच्चा मित्र जीवन के लिए वरदान जैसा 
(जनसंदेश टाइम्स, 3 अगस्त 2014 में आकांक्षा यादव का फ्रेण्डशिप-डे पर आलेख)