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शुक्रवार, 25 दिसंबर 2015

निर्भया का कातिल अभी जिन्दा है

निर्भया को 3 साल बाद भी इंसाफ नहीं मिला । कानून की आड़ में नाबालिग बलात्कारी जेल से रिहा हो गया । मोमबत्तियां जलती रहीं, बयानबाजी होती रही, न्यायिक सक्रियता से लेकर मन की बात होती रही, बेटी बचाओ जैसे जुमले हवा में तैरते रहे....पर सब मिलकर भी एक बलात्कारी को जेल के अंदर नहीं रख सके। और जब तक संसद ने कानून पास किया, तब तक काफी देर हो चुकी थी। ....निर्भया की माँ ने बहुत सही कहा कि जब बलात्कार करने वाला यह नहीं देखता कि सामने 5 साल की बच्ची है या 65 साल की बूढ़ी औरत...तो फिर कानून रेप करने वाले की उम्र क्यों देखता है ?


इसी बात पर पतिदेव कृष्ण कुमार जी के फेसबुक वाल से भी कुछेक प्रासंगिक बातें -

सहिष्णुता-असहिष्णुता के नाम पर सैकड़ों सम्मान लौटा दिए गए, पर एक बिटिया निर्भया का गुनहगार छूट गया, किसी ने सरकारी सम्मान लौटाने की जहमत नहीं जुटाई। आख़िर कैसी संवेदनशीलता है यह।

सहमी सी हैं तितलियां सभी 
खौफ में हर परिन्दा है
नकाब इन्सां का चेहरे पे 
यहां हर शख्स दरिन्दा है
निर्भया माफ कर देना 
कि हम बहुत शर्मिन्दा हैं
बेटियों घर से जरा 
संभलकर निकलना 
कि अभी निर्भया का 
कातिल जिन्दा है !!

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2015

फेसबुक के CEO मार्क जुकरबर्ग बेटी के जन्म की ख़ुशी में दान करेंगे अपने 99% शेयर्स

बेटियाँ अपने यहाँ लक्ष्मी का रूप मानी जाती हैं।  अपने देश भारत में यह बात भले ही लोगों को किताबी लगती हो पर दुनिया की सबसे मशहूर  सोशल नेटवर्किंग साइट फेसबुक के को-फाउंडर और सीईओ मार्क जुकरबर्ग इसे पूरी तरह मानते और पालन करते हैं।  तभी तो अपनी बेटी मैक्स के जन्म लेने की खुशी में उन्होंने  बड़ी चैरिटी का एलान किया है । यानी फेसबुक में अपने और पत्नी प्रिसिला चान के नाम जितने शेयर हैं, उसका 99 फीसदी हिस्सा आने वाले वर्षों में वे डोनेट करेंगे।

जुकरबर्ग अपनी बेटी के लिए दुनिया को बेहतर जगह बनाने के मकसद से शेयर डोनेट करना चाहते हैं। इस चैरिटी का नाम होगा चान-जुकरबर्ग इनिशिएटिव। जुकरबर्ग ने यह एलान अपने फेसबुक पेज पर किया। इस मैसेज को अब तक 3.60 लाख से ज्यादा लाइक मिल चुके हैं। बता दें कि जुकरबर्ग ने पहले ही ‘गिविंग प्लेज’ साइन किया था। ‘गिविंग प्लेज’ यानी दुनिया के अमीर लोगों की वह प्रतिबद्धता जिसके तहत वे अपनी आधी से ज्यादा दौलत दान करेंगे।
वर्तमान में  फेसबुक की कुल पूंजी 303 अरब डॉलर यानी 19 लाख करोड़ रुपए है। इनमें से जुकरबर्ग के पास 54 फीसदी शेयर हैं। इन 54 फीसदी में से 99 फीसदी शेयर अर्थात 45 अरब डॉलर यानि 2.85 लाख करोड़ रूपये वे डोनेट करने वाले हैं। गौरतलब है कि यह रकम  नेपाल, अफगानिस्तान और साइप्रस जैसे देशों की जीडीपी का दोगुना है।  तीनों देशों की जीडीपी 20 अरब डॉलर के आसपास है। जुकरबर्ग अपने शेयरों का उतना हिस्सा डोनेट करेंगे, जितना दुनिया के 106 देशों की जीडीपी भी नहीं है। आईएमएफ वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक की एक रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया के 106 देशों की जीडीपी 45 अरब डॉलर से कम है।

फेसबुक के मार्क जकरबर्ग अपनी इस अनूठी पहल से  दुनिया के सबसे कम उम्र के दानदाता बन गए हैं। वे मात्र 31 साल के हैं। उनसे पहले बर्कशायर हैथवे के वॉरेन बफेट ने 2006 में गेट्स फाउंडेशन को 31 अरब डॉलर का डोनेशन देने का फैसला किया था। तब बफेट 76 साल के थे। इसी प्रकार माइक्रोसॉफ्ट के को-फाउंडर बिल गेट्स ने 2000 में जब बिल एंड मिलिंडा गेट्स फाउंडेशन की शुरुआत की थी, तब उनकी उम्र 45 साल थी।



फेसबुक में ऐसा नियम है कि यहां काम करने वाला कोई भी अमेरिकी कर्मचारी मैटरनिटी और पैटरनिटी के लिए चार महीने का अवकाश ले सकता है। पत्नी प्रिसिला के गर्भवती होने के बाद जुकरबर्ग ने भी दो महीने की छुट्टी लेने का फैसला किया था। हालांकि, कंपनी के नियम के मुताबिक, वे चार महीने की छुट्टी भी ले सकते थे।

फ़िलहाल, अपनी बेटी के जन्म की जानकारी  जुकरबर्ग ने वाइफ प्रिसिला और बेटी मैक्स के साथ फेसबुक पर फोटो शेयर करके की। उन्होंने बेटी के नाम एक प्यारा सा पत्र भी लिखा। उसका हिंदी रूपांतरण कुछ यूँ होगा -


डियर मैक्स,
तुम्हारी मां और मेरे पास यह बताने के लिए लफ्ज नहीं हैं कि तुमने हमारे फ्यूचर के लिए कितनी उम्मीदें दे दी हैं। तुम्हारी नई जिंदगी वादों से भरी है। हमें उम्मीद है कि तुम खुश रहोगी, सेहतमंद रहोगी, ताकि दुनिया को पूरी तरह एक्सप्लोर कर सकोगी। तुमने हमें दुनिया को उम्मीद के साथ देखने की एक वजह दे दी है।

सभी पेरेंट्स की तरह हम भी चाहते हैं कि तुम हमसे ज्यादा बेहतर तरीके से जिंदगी बिताओ। सुर्खियां भले ही ये बताती हों कि क्या-कुछ गलत हो रहा है, लेकिन दुनिया बेहतर होती जा रही है। हेल्थ सुधर रही है। गरीबी कम हो रही है। नॉलेज बढ़ रहा है। लोग आपस में जुड़ रहे हैं। हर फील्ड में हो रही टेक्नोलॉजी की प्रोग्रेस यह बताती है कि तुम्हारी जिंदगी आज की हमारी जिंदगी से कहीं बेहतर होगी।

हम इसके लिए अपनी तरफ से पूरी कोशिश करेंगे। और यह सिर्फ इसलिए नहीं होगा कि हम तुम्हें प्यार करते हैं, बल्कि यह इसलिए हाेगा, क्योंकि अगली जनरेशन के सभी बच्चों की मॉरल रिस्पॉन्सिबिलिटी हम पर है।

हम मानते हैं कि सभी की जिंदगी एक जैसी है। हमारी सोसाइटी की जिम्मेदारी है कि वह सिर्फ अभी जी रहे लोगों के लिए नहीं, बल्कि इस दुनिया में आने वाले लोगों की जिंदगी सुधारने के लिए इन्वेस्ट करे।
- मार्क
-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 
Akanksha Yadav@ http://shabdshikhar.blogspot.in/

सोमवार, 30 नवंबर 2015

ईश्वर के दरवाजे पर अभी भी महिलाओं से भेदभाव क्यों

21वीं सदी में जब हम लिंग-समता, नारी-सशक्तिकरण, मानवीय सौहार्द और सहिष्णुता की बात करते हैं और दूसरी तरफ कुछेक मन्दिरों में अभी भी महिलाओं के प्रवेश और पूजा-पाठ करने पर तमाम बंदिशें देखते हैं तो सवाल उठना लाजिमी है कि ईश्वर के दरवाजे पर अभी भी भेदभाव और छुआछूत क्यों ? देश के सबसे बड़े शनि मंदिर शिंगणापुर धाम में एक महिला द्वारा शनिदेव को तेल चढाने के बाद शुद्धिकरण किया गया. आखिर यह दोहरापन क्यों ? ऐसा नहीं है कि यह अकेला मंदिर है जो महिलाओं  में प्रवेश और पूजा-पाठ करने पर तमाम बंदिशें लगाता है, बल्कि देश में तमाम ऐसे मंदिर हैं, जहाँ इस प्रकार की रोक है.

वस्तुत: महाराष्ट्र के शनि शिं‍गणापुर मंदिर में एक महिला के शनिदेव को तेल चढ़ाने से विवाद शुरू हो गया है. खबरों के मुताबिक, 400 वर्षों से इस मंदिर के भीतर महिला के पूजा की परंपरा नहीं रही है, ऐसे में महिला द्वारा मंदिर के चबूतरे पर चढ़कर शनि महाराज को तेल चढ़ाने पर पुजारियों ने मूर्ति को अपवित्र घोषि‍त कर दिया. मंदिर प्रशासन ने 6 सेवादारों को निलंबित कर दिया है और मूर्ति का शुद्धि‍करण किया गया है.जानकारी के मुताबिक, महिला द्वारा पूजा करने की तस्वीरें सीसीटीवी में कैद हैं, जिसे देखने के बाद मंदिर में जमकर हंगामा हुआ. बढ़ते विवाद को देखते हुए जहां पूजा करने वाली महिला ने यह कहते हुए प्रशासन से माफी मांगी है कि उसे परंपरा की जानकारी नहीं थी, वहीं मूर्ति को अपवित्र मानते हुए मंदिर प्रशासन ने शनिदेव का दूध से प्रतिमा का अभिषेक किया है. यही नहीं, पवित्रता के लिए पूरे मंदिर को भी धुला गया है.ट्रस्ट का दावा है कि मुंबई हाई कोर्ट ने भी पहले इस परंपरा को सही ठहराया था.गौरतलब है कि 15 साल पहले भी शनि शिंगणापुर मंदिर में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी का विरोध हुआ था, तब जानेमाने रंगकर्मी डॉ. श्रीराम लागू भी महिलाओं के पक्ष में मुहिम से जुड़े थे. मंदिर प्रशासन के ताजा कदम की तमाम बुद्धिजीवियों ने निंदा की है. अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति की सदस्य रंजना गवांदे ने कहा कि महिला की हिम्मत का हम स्वागत करते हैं. उन्होंने कहा, 'जब देश में महिला-पुरुषों को बराबरी हासिल है तो कई मंदिरों में महिलाओं के प्रवेश पर पाबंदी क्यों है? शनि शिंगणापुर में यह क्रांतिकारी घटना हुई है. इस पर राजनीति न हो और मंदिर को महिलाओं के लिए खोला जाए.'

यह विचारणीय है कि एक तरफ हमारे धर्मग्रन्थ 'यत्र नारी पूजयंते रमंते तत्र देवता' की बात कहते हैं, वहीँ उसी नारी  के प्रवेश से मंदिर और मूर्तियाँ अपवित्र हो जाती हैं, भला ऐसे कैसे सम्भव है. इस प्रकार के दोहरे मानदंडों को ख़त्म  करने की जरूरत है. अन्यथा नारी-समता और  नारी-सशक्तिकरण जैसी बातें पन्नों में ही रह जाएँगी।

-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

शनिवार, 28 नवंबर 2015

पहला प्यार

पहली बार
इन आँखों ने महसूस किया
हसरत भरी निगाहों को

ऐसा लगा
जैसे किसी ने देखा हो
इस नाजुक दिल को
प्यार भरी आँखों से

न जाने कितनी
कोमल और अनकही भावनायें
उमड़ने लगीं दिल में

एक अनछुये अहसास के
आगोश में समाते हुए
महसूस किया प्यार को

कितना अनमोल था
वह अहसास
मेरा पहला प्यार !!









वक्त बदला, तारीखें बदली
ना बदला वो एहसास व प्यार !!
...... बस 11 साल ही तो हुए उस दिन को, जब हम बँधे थे इक बंधन में।  




फेसबुक पर रत्नेश कुमार मौर्य जी ने कुछ इस तरह से दुआएँ दीं -

इस सफर में आप दोनों के लिए बस एक ही दुआ। 
आगे के सफर में भी यूँ ही प्रीति बनाये रहना सदा। 
...... खूबसूरत जोड़ी को किसी की नजर न लगे !!



आप सभी की शुभकामनाओं और स्नेह के लिए आभार !!


मंगलवार, 10 नवंबर 2015

पावन पर्व दीवाली का



पावन पर्व दीवाली का,
दीपों की बारात लाए।
तारों सी टिमटिमाती रोशनी,  
खुशियों की सौगात लाए।

तोरण द्वार पर सजे अल्पना,
ज्योति का पुंज-हार लाए।
खील-लड्डू का चढ़े प्रसाद,
दिलों में सबके प्यार लाए।

है शुभ मंगलकारी पर्व यह,
इस दिन अयोध्या राम आए।
जल उठी दीपों की बाती,
पुलकित मन पैगाम लाए।

अमावस्या का तिमिर चीरकर,
रोशनी का उपहार लाए।
चारों तरफ सजे रंगोली,
लक्ष्मी-गणेश भी द्वार आए।



दीपावली पर एक सन्देश बिटिया पाखी की तरफ से भी -
ऐसे मनाएं दीवाली : गरीबी और अशिक्षा का अँधियारा मिटायें 

दीपावली रोशनी का त्यौहार है, न कि पटाखों का। इस मौके पर हम खूब दीये जलाएंगे और परिवार के साथ इसका आनंद उठाएंगे। पटाखों से तो बिलकुल दूर रहूँगी। पटाखों से निकली चिंगारी से तो कई बार लोगों की आँखों की रोशनी भी चली जाती है। इससे प्रदूषण भी बहुत फैलता है। ऐसे में मैंने संकल्प लिया है कि इस दीपावली पर पटाखों से दूर रहूँगी। जो पैसे हम पटाखों पर खर्च करते हैं, उनसे किसी गरीब या जरूरतमंद की सहायता कर उनके जीवन में रोशनी फैलाएंगे। 

- अक्षिता (पाखी)
(राष्ट्रीय बाल पुरस्कार विजेता)

प्रकाश का पर्व दीपावली आप सभी के जीवन में ढेर सारी खुशियाँ लाये। 
अँधेरे से अँधेरे माहौल में भी दिल में आशा की एक लौ जलती रहे।
 दीपोत्सव पर्व की सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं !!

गुरुवार, 5 नवंबर 2015

अब भगवान भी दौरे पर

अब भगवान जी भी दौरे करने लगे हैं।  विश्वास नहीं हो रहा न, पर यह सच है। 50 हजार करोड़ से ज्यादा की संपत्ति के साथ देश के सबसे अमीर भगवान तिरुपति बालाजी इन दिनों दिल्ली दौरे पर हैं। ये पहला मौका है जब वे अपने पूरे दलबल के साथ आंध्रप्रदेश से बाहर किसी दूसरे राज्य में पहुंचे हैं। दरअसल, दिल्ली के नेहरू स्टेडियम में 8 नवंबर तक ‘वैभवोत्सम’का आयोजन किया जा रहा है। यहां भगवान बालाजी की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा की गई है। यद्यपि मुख्य कार्यक्रम 7 नवंबर को है। लेकिन हर दिन यहां उसी तरह पूजा पाठ हो रहा है, जैसी तिरुपति बालाजी में होता है। मंदिर और दर्शन को विश्वसनीय बनाने के लिए तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) कोई कमी नहीं छोड़ रहा है। टीटीडी ही श्री वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर के प्रबंधन की जिम्मेदारी उठाता है।

 पूजा पाठ का सामान 25 ट्रकों में भरकर दिल्ली लाया गया है। पूजा-अनुष्ठानों के लिए 35 पुजारियों सहित 250 मंदिर स्टाफ भी भगवान बालाजी के साथ आए हैं। मंदिर को सजाने वाले कारीगर भी तिरुमला से ही आए हैं। भगवान की मूर्तियों के अलावा, पर्दे भी तिरुमला मंदिर से लाए गए हैं। तिरुपति भोग का मशहूर लड्डू और प्रसाद तैयार करने की सामग्री भी तिरुमला से ही मंगवाई जा रही है। यहाँ तक कि भगवान की मूर्तियों के लिए फूल भी तिरुमला और बेंगलुरु से मंगवाए गए हैं। ‘वैभवोत्सम’को इस तरह मंदिर परिसर से बाहर आयोजित करने की योजना स्वर्ण भारत ट्रस्ट की मैनेजिंग ट्रस्टी और भाजपा नेता वेंकैया नायडू की बेटी दीपा वैंकट की है। दिल्ली दौरे के दौरान न केवल सर्वदर्शन मुफ्त हैं बल्कि सभी दैनिक सेवाएं व सोमवार की विशेष पूजा से लेकर पूराभिषेकम तक सभी वारोत्सव नेहरू स्टेडियम में खुले में आयोजित किए जा रहे हैं। यहां कुर्सी से लेकर जमीन में बैठने की व्यवस्था की गई है। किसी भी दर्शन के लिए कोई फीस नहीं है। यहां तक कि यदि पुरुष धोती और महिलाएं साड़ी या सलवार सूट पहने हैं तो उन्हें बालाजी के बिल्कुल करीब जाने का मौका भी मिल रहा है। हर शाम को प्रांगण में ही निकलने वाली शोभायात्रा में भी सब शामिल हो सकते हैं और पालकी को श्रद्धा से छू भी सकते हैं। ऐसा तिरुपति में कतई संभव नहीं हो पाता है।

उत्सव के लिए तिरुपति बालाजी की मूर्ति को तिरुपति बालाजी से विशेष गरुड़ वाहन से लाया गया है। मूल प्रतिमा वहीं विराजमान है। टीडीडी की योजना है कि सभी राज्यों की राजधानियों में एक-एक देवस्थानम स्थापित किया जाए। ताकि जो लोग तिरुपति नहीं जा सकते, उन तक बालाजी पहुंच जाएं। इसकी योजना बनाई जा रही है।

शनिवार, 31 अक्तूबर 2015

राजनीति में बढ़ती महिलाओं की भागीदारी : विद्या भंडारी बनीं नेपाल की पहली महिला राष्ट्रपति

भारतीय उपमहाद्वीप में विद्या भंडारी के नेपाल की राष्ट्रपति निर्वाचित होते ही एक नया रिकार्ड बन गया। राजशाही वाले भूटान को छोड़ दें तो यहाँ के हर देश में राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के रूप में महिलाएँ नेतृत्व के शीर्ष पर विराजमान होने का सौभाग्य प्राप्त कर चुकी। इनमें भारत में  इंदिरा गांधी (प्रधानमंत्री), प्रतिभा पाटील (राष्ट्रपति),  पाकिस्तान में  बेनजीर भुट्टो (प्रधानमंत्री), बांग्लादेश में  शेख हसीना वाजेद, खालिदा जिया (दोनों प्रधानमंत्री) श्रीलंका में  सिरिमाओ भंडारनायके (प्रधानमंत्री), चंद्रिका कुमारतुंगा (प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति) और अब नेपाल में विद्या देवी भंडारी (राष्ट्रपति) हैं। 

कौन हैं विद्या भंडारी : 

नेपाल की संसद ने बुधवार को CPN-UML पार्टी की लीडर विद्या भंडारी को अपना नया राष्ट्रपति चुना। देश में राजशाही खत्म होने के बाद भंडारी लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गईं दूसरी राष्ट्रपति हैं, जबकि नया संविधान लागू होने के बाद वह देश की पहली राष्ट्रपति हैं। किसी समय हिंदू राष्ट्र नेपाल में महिला अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करने वाली विद्या देवी का जन्म जून 1961 में भोजपुर के पांडे परिवार में हुआ। भंडारी कम्युनिस्ट लीडर मदन भंडारी की विधवा हैं। मदन की 1993 में संदिग्ध हालात में एक रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई थी। भंडारी CPN-UML पार्टी की डिप्टी लीडर हैं। नेपाल के नए प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली पार्टी के अध्यक्ष हैं। गौरतलब है कि नेपाल के लोकतंत्र की राह पर बढ़ने के बाद यह दूसरा राष्ट्रपति चुनाव था। इससे पहले 2008 में संविधान सभा के चुनाव के बाद राम बरन यादव राष्ट्रपति चुने गए थे।


दुनिया की महाशक्तियों की बात करें तो आज तक अमेरिका, रूस, फ्रांस में कोई महिला राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री नहीं बनी। ब्रिटन में मार्गरेट थैचर लौह महिला के रूप में प्रधानमंत्री रहीं, जबकि चीन में 1981 में केवल 12 दिन के लिए सोंग किंगलिंग मानद राष्ट्रपति रहीं। अमेरिका के 226 साल के इतिहास में कोई महिला राष्ट्रपति नहीं रही।  हिलेरी क्लिंटन 2008 में राष्ट्रपति पद का टिकट हासिल करने में नाकाम रहीं, वे 2016 में फिर टिकट पाने की दौड़ में हैं।

दुनिया के अन्य देशों की बात करें तो, अभी ये हैं कुछ प्रमुख महिला राष्ट्रपति - 

दक्षिण कोरिया: पार्क गुन हे
मॉरीशस: बीवी अमीना गरीब
क्रोएशिया: कोलिंडा ग्रैबर
माल्टा: मैरी लुइसी कोलेरो
चिली: मिशेल ब्लैंचेट
ब्राजील: डिल्मा रूसेफ
मध्य अफ्रीकी गणराज्य: कैथरीन सैंबा पेंजा
लाइबेरिया: एलन जॉनसन सरलीफ
कोसोवो: अतीफेत जहजागा

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

करवा चौथ के बहाने...

करवाचौथ तो बहाना है,
असली मकसद तो पति को याद दिलाना है...

कि कोई है,
जो उसके इंतजार में दरवाजे पर
टकटकी लगाए रहती है,
पति के इंतज़ार में.
सदा आँखें बिछाए रहती है...

वैलेंटाईन ड़े, रोज़ ड़े
इन सब को वो समझ नहीं पाती है....
प्यार करती है दिल की गहराईयों से,
पर कह नहीं पाती है....

सुबह से भूखी है,
उसका गला भी सूखा जाता है....
इस पर उसका कोई ज़ोर नहीं,
उसे प्यार जताने का
बस यही तरीका आता है....

खुलेआम किस करना हमारी संस्कृति में नहीं,
'आई लव यू' कहने में वो शर्माती है....
वो चाहती है बहुत कुछ कहना,
पर 'जल्दी घर आ जाना'
बस यही कह पाती है....

फेसबुक, ट्वीटर से मतलब नहीं उसे,
ना फोन पे वाट्सैप चलाना आता है....
यूँ तो कोई जिद नहीं करती,
पर प्यार से रूठ जाना आता है...

उसका समर्पण,
और हमारे परिवार पर लुटाया हुआ प्यार....
ऐसी प्रिया को,
है सम्मान का, प्यार का अधिकार !!

-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर : Akanksha Yadav @ www.shabdshikhar.blogspot.com/

करवा चौथ के मर्म और मूल को समझने की जरूरत

करवा चौथ का पर्व हर साल आता है और पूरे जोशो खरोश के साथ सेलिब्रेट किया जाता है। करवा चौथ  सिर्फ एक त्यौहार ही नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक सन्देश भी छिपा हुआ है।  आज समाज में जब रिश्तों के मायने बदलते जा रहे हैं, भौतिकता की चकाचौंध में हमारे पर्व और त्यौहार भी उपभोक्तावादी संस्कृति तक सिमट गए हैं, ऐसे में करवा चौथ के मर्म और मूल को समझने की जरूरत है। 

करवा चौथ (करक चतुर्थी) अर्थात भारतीय नारी के समर्पण, शीलता, सहजता, त्याग, महानता एवं पतिपरायणता  को व्यक्त करता एक पर्व। दिन भर स्वयं भूखा प्यासा रहकर रात्रि को जब मांगने का अवसर आया तो अपने पति देव के मंगलमय, सुखमय और दीर्घायु जीवन की ही याचना करना यह नारी का त्याग और समर्पण नहीं  तो और क्या है ?

करवा चौथ का वास्तविक संदेश दिन भर भूखे रहना ही नहीं अपितु यह है नारी अपने पति की प्रसन्नता के लिए, सलामती के लिए इस हद तक जा सकती है कि पूरा दिन भूखी - प्यासी भी रह सकती है। करवा चौथ नारी के लिए एक व्रत है और पुरुष के लिए एक शर्त। 

-शर्त केवल इतनी कि जो नारी आपके लिए इतना कष्ट सहती है उसे कष्ट न दिया जाए। जो नारी आपके लिए समर्पित है उसको और संतप्त न किया जाए। जो नारी प्राणों से बढ़कर आपका सम्मान करती है जीवन भर उसके सम्मान की रक्षा का प्रण आप भी लो। उसे उपहार नहीं आपका प्यार चाहिए !!

सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

हैप्पी बर्थ-डे टू यू


हमारी प्यारी बिटिया अपूर्वा 27 अक्टूबर को पूरे पाँच साल की हो जाएँगी।
 इनके हैप्पी बर्थ-डे पर आप सबका आशीष, स्नेह और प्यार तो मिलना ही चाहिये !!








रविवार, 25 अक्तूबर 2015

अब महिलाएं भी उड़ाएंगी लड़ाकू विमान

महिलाओं ने एक और उपलब्धि की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। वायुसेना में अब महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर होंगी। वह भी लड़ाकू विमान उड़ा सकेंगी। रक्षा मंत्रालय ने 24 अक्टूबर, 2015 को इस संबंध में प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। पहली बार सशस्त्र सेनाओं में महिलाओं को युद्धक भूमिकाओं में रखा जाएगा। 

मंत्रालय के फैसले के मुताबिक लड़ाकू विमान उड़ाने वाली पायलटों का चयन वायुसेना अकादमी में प्रशिक्षण ले रही अधिकारियों में से होगा। प्रारंभिक प्रशिक्षण के बाद इन्हें जून-2016 में लड़ाकू दस्ते में कमीशन दिया जाएगा। एक और वर्ष का गहन प्रशिक्षण देने के बाद जून-2017 से महिला अधिकारी भी लड़ाकू विमान उडाना शुरू करेंगी। वायुसेना में लड़ाकू दस्ते को छोड़कर सभी शाखाओं में 1,500 महिलाएं हैं। इनमें 94 पायलट हैं, जो परिवहन विमान हेलिकॉप्टर उड़ा रही हैं। अन्य में करीब 14 महिला नेविगेटर्स हैं। हाल ही में वायुसेना दिवस पर वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अरूप राहा ने कहा था कि महिलाओं को लड़ाकू विमान उड़ाने की मंजूरी देने पर विचार चल रहा है। इसके बाद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने भी कहा था कि जल्द ही इस पर फैसला होगा। उन्होंने तो आईएसआईएस के ठिकानों पर निशाना साध रही यूएई की एयरफोर्स की महिला पायलटों का जिक्र भी किया था। 

गौरतलब है कि महिलाओं के लिए वायुसेना का दरवाजा जून 1993 में पहली बार खुला था। पूरे 24 साल बाद जून 2017 में लड़ाकू विमानों का कॉकपिट भी खुलेगा। 1993 में जब पहली बार महिलाओं की भर्ती वायुसेना में हुई थी, तब पांच साल के लिए प्रायोगिक तौर पर नॉन-टेक्निकल ग्राउंड ड्यूटी दी गई थी। प्रयोग सफल रहा। अब लड़ाकू विमानों को छोड़कर वायुसेना की सभी शाखाओं में शॉर्ट सर्विस कमीशन में महिलाएं भर्ती होती हैं। वायुसेना की तर्ज पर नौसेना और सेना में भी महिलाओं को युद्धक भूमिकाएं देने की मांग है। इस पर भी जल्द फैसला हो सकता है। 

अभी सेना में महिलाएं सिग्नल्स, इंजीनियर्स, आर्मी एविएशन (एयर ट्रैफिक कंट्रोल), आर्मी एयर डिफेंस, इलेक्ट्रॉनिक्स और मैकेनिकल इंजीनियर्स, आर्मी सर्विस कॉर्प्स, आर्मी ऑर्डिनेंस कॉर्प्स, इंटेलीजेंस कॉर्प्स, आर्मी एजुकेशन कॉर्प्स और जज एडवोकेट जनरल्स ब्रांच/कैडर में हैं, युद्धक भूमिकाओं में नहीं। नौसेना में महिलाएं जज एडवोकेट जनरल, लॉजिस्टिक्स, ऑब्जर्वर, एयर ट्रैफिक कंट्रोलर, नेवल कंस्ट्रक्टर और एजुकेशन ब्रांच/कैडर में काम कर रही हैं। हालांकि, हाल ही में महिला पायलटों को निगरानी विमानों के बेड़े में रखने का प्रस्ताव बना है। वायुसेना में महिलाएं फ्लाइंग ब्रांच की ट्रांसपोर्ट और हेलिकॉप्टर स्ट्रीम के साथ ही नेविगेशन, एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग, एडमिनिस्ट्रेशन, लॉजिस्टिक्स, अकाउंट्स, एजुकेशन और मौसम से जुड़ी शाखाओं में काम कर रही हैं। 

भारतीय वायुसेना इससे पहले महिलाओं को लड़ाकू विमान पायलट बनाने से ये कहते हुए मना करती रही थी कि लड़ाई के दौरान विमान मार गिराने की सूरत में पकड़े जाने पर उन्हें प्रताड़ना और उत्पीड़न का शिकार बनाया जा सकता है। 

वायुसेना में महिलाओं को लड़ाकू विमान उड़ाने हेतु मंजूरी देने के बाद अब सेना और नौसेना के लिए भी  फैसला जल्द होने की सम्भावना है। रक्षा मंत्रालय ने सशस्त्र सेनाओं में महिलाओं की नियुक्ति की समीक्षा करने का फैसला किया है। शॉर्ट सर्विस कमीशन और परमानेंट कमीशन दोनों में ही अन्य शाखाओं को भी महिलाओं के लिए खोला जाएगा। वायुसेना की तर्ज पर नौसेना और सेना में भी महिलाओं को युद्धक भूमिकाएं देने की मांग कई बरस पुरानी है। इस पर भी जल्द फैसला हो सकता है। 

- आकांक्षा यादव : Akanksha Yadav @ शब्द-शिखर : http://shabdshikhar.blogspot.com/

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015

मैं उदास हूँ स्त्री अस्मिता के लिए...

मर चुका है रावण का शरीर
स्तब्ध है सारी लंका
सुनसान है किले का परकोटा
कहीं कोई उत्साह नहीं
किसी घर में नहीं जल रहा है दिया
विभीषण के घर को छोड़ कर।

सागर के किनारे बैठे हैं विजयी राम
विभीषण को लंका का राज्य सौंपते हुए
ताकि सुबह हो सके उनका राज्याभिषेक
बार-बार लक्ष्मण से पूछते हैं
अपने सहयोगियों की कुशल-क्षेम
चरणों के निकट बैठे हैं हनुमान !

मन में क्षुब्ध हैं लक्ष्मण
कि राम क्यों नहीं लेने जाते हैं सीता को
अशोक वाटिका से
पर कुछ कह नहीं पाते हैं ।

धीरे-धीरे सिमट जाते हैं सभी काम
हो जाता है विभीषण का राज्याभिषेक
और राम प्रवेश करते हैं लंका में
ठहरते हैं एक उच्च भवन में।

भेजते हैं हनुमान को अशोक-वाटिका
यह समाचार देने के लिए
कि मारा गया है रावण
और अब लंकाधिपति हैं विभीषण ।

सीता सुनती हैं इस समाचार को
और रहती हैं ख़ामोश
कुछ नहीं कहती
बस निहारती है रास्ता।

रावण का वध करते ही
वनवासी राम बन गए हैं सम्राट ?
लंका पहुँच कर भी भेजते हैं अपना दूत
नहीं जानना चाहते एक वर्ष कहाँ रही सीता
कैसे रही सीता ?
नयनों से बहती है अश्रुधार
जिसे समझ नहीं पाते हनुमान
कह नहीं पाते वाल्मीकि।

राम अगर आते तो मैं उन्हें मिलवाती
इन परिचारिकाओं से
जिन्होंने मुझे भयभीत करते हुए भी
स्त्री की पूर्ण गरिमा प्रदान की
वे रावण की अनुचरी तो थीं
पर मेरे लिए माताओं के समान थीं।

राम अगर आते तो मैं उन्हें मिलवाती
इन अशोक वृक्षों से
इन माधवी लताओं से
जिन्होंने मेरे आँसुओं को
ओस के कणों की तरह सहेजा अपने शरीर पर
पर राम तो अब राजा हैं
वह कैसे आते सीता को लेने ?

विभीषण करवाते हैं सीता का शृंगार
और पालकी में बिठा कर पहुँचाते है राम के भवन पर
पालकी में बैठे हुए सीता सोचती हैं
जनक ने भी तो उसे विदा किया था इसी तरह !

वहीं रोक दो पालकी,
गूँजता है राम का स्वर
सीता को पैदल चल कर आने दो मेरे समीप !

ज़मीन पर चलते हुए काँपती है भूमिसुता
क्या देखना चाहते हैं
मर्यादा पुरुषोत्तम, कारावास में रह कर
चलना भी भूल जाती हैं स्त्रियाँ ?

अपमान और उपेक्षा के बोझ से दबी सीता
भूल जाती है पति-मिलन का उत्साह
खड़ी हो जाती है किसी युद्ध-बन्दिनी की तरह !

कुठाराघात करते हैं राम
सीते! कौन होगा वह पुरुष
जो वर्ष भर पर-पुरुष के घर में रही स्त्री को
करेगा स्वीकार ?

मैं तुम्हें मुक्त करता हूँ,
तुम चाहे जहाँ जा सकती हो ।
उसने तुम्हें अंक में भर कर उठाया
और मृत्युपर्यंत तुम्हें देख कर जीता रहा
मेरा दायित्व था तुम्हें मुक्त कराना
पर अब नहीं स्वीकार कर सकता
तुम्हें पत्नी की तरह !

वाल्मीकि के नायक तो राम थे
वे क्यों लिखते सीता का रुदन
और उसकी मनोदशा ?
उन क्षणों में क्या नहीं सोचा होगा सीता ने
कि क्या यह वही पुरुष है
जिसका किया था मैंने स्वयंवर में वरण
क्या यह वही पुरुष है जिसके प्रेम में
मैं छोड़ आई थी अयोध्या का महल
और भटकी थी वन-वन !

हाँ, रावण ने उठाया था मुझे गोद में
हाँ, रावण ने किया था मुझसे प्रणय निवेदन
वह राजा था चाहता तो बलात ले जाता अपने रनिवास में
पर रावण पुरुष था,
उसने मेरे स्त्रीत्व का अपमान कभी नहीं किया
भले ही वह मर्यादा पुरुषोत्तम न कहलाए इतिहास में !

यह सब कहला नहीं सकते थे वाल्मीकि
क्योंकि उन्हें तो रामकथा ही कहनी थी !
आगे की कथा आप जानते हैं
सीता ने अग्नि-परीक्षा दी
कवि को कथा समेटने की जल्दी थी
राम, सीता और लक्ष्मण अयोध्या लौट आए
नगरवासियों ने दीपावली मनाई
जिसमें शहर के धोबी शामिल नहीं हुए।

आज इस दशहरे की रात
मैं उदास हूँ उस रावण के लिए
जिसकी मर्यादा
किसी मर्यादा पुरुषोत्तम से कम नहीं थी ।
मैं उदास हूँ कवि वाल्मीकि के लिए
जो राम के समक्ष सीता के भाव लिख न सके।
आज इस दशहरे की रात
मैं उदास हूँ स्त्री अस्मिता के लिए
उसकी शाश्वत प्रतीक जानकी के लिए!
-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर : www.shabdshikhar.blogspot.com/
(वाट्सएप पर यह सन्देश मिला। मन को छू गया, सो आप सब के साथ शेयर कर रही हूँ)

बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

नवरात्र और बेटियाँ

नवरात्र हर साल आता है।  इस पर्व के बहाने बहुत सी बातें होती हैं, संकल्प उठाये जाते हैं।   इन नौ दिनों में हम मातृ शक्ति की आराधना करते। नवरात्र मातृ-शक्ति और नारी-सशक्तिकरण का प्रतीक है। आदिशक्ति को पूजने वाले भारत में नारी को शक्तिपुंज के रूप में माना जाता है। नारी सृजन की प्रतीक है. हमारे यहाँ साहित्य और कला में नारी के 'कोमल' रूप की कल्पना की गई है. कभी उसे 'कनक-कामिनी' तो कभी 'अबला' कहकर उसके रूपों को प्रकट किया गया है. पर आज की नारी इससे आगे है. वह न तो सिर्फ 'कनक-कामिनी' है और न ही 'अबला', इससे परे वह दुष्टों की संहारिणी भी बनकर उभरी है. यह अलग बात है कि समाज उसके इस रूप को नहीं पचा पता. वह उसे घर की छुई-मुई के रूप में ही देखना चाहता है. बेटियाँ कितनी भी प्रगति कर लें, पुरुषवादी समाज को संतोष नहीं होता. उसकी हर सफलता और ख़ुशी बेटों की सफलता और सम्मान पर ही टिकी होती है. तभी तो आज भी गर्भवती स्त्रियों को ' बेटा हो' का ही आशीर्वाद दिया जाता है. पता नहीं यह स्त्री-शक्ति के प्रति पुरुष-सत्तात्मक समाज का भय है या दकियानूसी सोच. 

नवरात्र पर देवियों की पूजा करने वाले समाज में यह अक्सर सुनने को मिलता है कि 'बेटा' न होने पर बहू की प्रताड़ना की गई. विज्ञान सिद्ध कर चुका है कि बेटा-बेटी का पैदा होना पुरुष-शुक्राणु पर निर्भर करता है, न कि स्त्री के अन्दर कोई ऐसी शक्ति है जो बेटा या बेटी क़ी पैदाइश करती है. पर पुरुष-सत्तात्मक समाज अपनी कमजोरी छुपाने के लिए हमेशा सारा दोष स्त्रियों पर ही मढ़ देता है. ऐसे में सवाल उठाना वाजिब है क़ी आखिर आज भी महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह से क्यों ग्रस्त है पुरुष मानसिकता ? कभी लड़कियों के जल्दी ब्याह क़ी बात, कभी उन्हें जींस-टॉप से दूर रहने क़ी सलाह, कभी रात्रि में बाहर न निकलने क़ी हिदायत, कभी सह-शिक्षा को दोष तो कभी मोबाईल या फेसबुक से दूर रहने क़ी सलाह....ऐसी एक नहीं हजार बिन-मांगी सलाहें हैं, जो समाज के आलमबरदार रोज सुनाते हैं. उन्हें दोष महिलाओं क़ी जीवन-शैली में दिखता है, वे यह स्वीकारने को तैयार ही नहीं हैं कि दोष समाज की मानसिकता में है.

'नवरात्र' के दौरान अष्टमी के दिन नौ कन्याओं को भोजन कराने की परंपरा रही है. लोग उन्हें ढूढ़ने के लिए गलियों की खाक छानते हैं, पर यह कोई नहीं सोचता कि अन्य दिनों में लड़कियों के प्रति समाज का क्या व्यवहार होता है। आश्चर्य होता है कि यह वही समाज है जहाँ भ्रूण-हत्या, दहेज हत्या, बलात्कार जैसे मामले रोज सुनने को मिलते है पर नवरात्र की बेला पर लोग नौ कन्याओं का पेट भरकर, उनके चरण स्पर्श कर अपनी इतिश्री कर लेना चाहते हैं। आखिर यह दोहरापन क्यों? इसे समाज की संवेदनहीनता माना जाय या कुछ और? आज बेटियां धरा से आसमां तक परचम फहरा रही हैं, पर उनके जन्म के नाम पर ही समाज में लोग नाकभौं सिकोड़ने लगते हैं। यही नहीं लोग यह संवेदना भी जताने लगते हैं कि अगली बार बेटा ही होगा। इनमें महिलाएं भी शामिल होती हैं। वे स्वयं भूल जाती हैं कि वे स्वयं एक महिला हैं। आखिर यह दोहरापन किसके लिए ?

समाज बदल रहा है। अभी तक बेटियों द्वारा पिता की चिता को मुखाग्नि देने के वाकये सुनाई देते थे, हाल के दिनों में पत्नी द्वारा पति की चिता को मुखाग्नि देने और बेटी द्वारा पितृ पक्ष में श्राद्ध कर पिता का पिण्डदान करने जैसे मामले भी प्रकाश में आये हैं। फिर पुरूषों को यह चिन्ता क्यों है कि उनकी मौत के बाद मुखाग्नि कौन देगा। अब तो ऐसा कोई बिन्दु बचता भी नहीं, जहाँ महिलाएं पुरूषों से पीछे हैं। फिर भी समाज उनकी शक्ति को क्यों नहीं पहचानता? समाज इस शक्ति की आराधना तो करता है पर वास्तविक जीवन में उसे वह दर्जा नहीं देना चाहता। ऐसे में नवरात्र पर नौ कन्याओं को भोजन मात्र कराकर क्या सभी के कर्तव्यों की इतिश्री हो गई ....??

बुधवार, 14 अक्तूबर 2015

नवरात्रि का पर्व और मेहरानगढ़ स्थित चामुण्डा देवी का मंदिर


नवरात्रि का पर्व समाज में मातृ-शक्ति और नारी-सशक्तिकरण का प्रतीक है। इन नौ दिनों में माँ के विभिन्न रूपों की पूजा-आराधना की जाएगी।  इस बार हम लोग नवरात्रि का  त्यौहार जोधपुर में मना रहे हैं।  यहाँ पर मेहरानगढ़ स्थित चामुण्डा देवी का मंदिर काफी प्रसिद्ध है, जो किले के दक्षिणी भाग में सबसे ऊंची प्राचीर पर स्थित है। श्री चामुंडा देवी का यह मंदिर जोधपुर राज परिवार का इष्ट देवी मंदिर तो है ही, पर लगभग सारा जोधपुर ही इस मंदिर की देवी को अपनी इष्ट अथवा कुल देवी मानता है।

मेहरानगढ़ किले की छत पर विराजमान यह मंदिर अपनी मूर्ति कला तथा उत्तम भवन निर्माण कला की एक अनूठी मिसाल है।  यहाँ से सारे शहर का विहंगम दृश्य साफ नजर आता है। मेहरानगढ़ किले में प्रवेश मार्ग से सूर्य की आभा का आभास देते श्री चामुंडा देवी मंदिर में प्रवेश करने का मार्ग आसपास बनी आकर्षक मूर्तियों से सुसज्जित है। मंदिर में स्थापित मां भवानी की मूर्ति मगन बैठी मुद्रा की बजाय चलने की मुद्रा में नजर आती है। मां चामुंडा देवी को अब से करीब 550 साल पहले मंडोर के परिहारों की कुल देवी के रूप में पूजा जाता था |

इस मंदिर में देवी की मूर्ति 1460 ई. में चामुंडा देवी के एक परमभक्त मंडोर के तत्कालीन राजपूत शासक राव जोधा द्वारा अपनी नवनिर्मित राजधानी जोधपुर में बनाए गए किले में ही स्थापित की गई। पहले मां चामुंडा को जोधपुर और आस-पास के लोग ही मानते थे और इनकी पूजा अर्चना किया करते थे | लेकिन मां चामुंडा में लोगों का विश्वास 1965 के युद्ध के बाद बढ़ता चला गया | लोगों की आस्था बढ़ने के पीछे की वजह के बारे में कहा जाता है कि जब 1965 का युद्ध हुआ था, तब सबसे पहले जोधपुर को टारगेट बनाया गया था और मां चामुंडा ने चील के रूप में प्रकट होकर जोधपुरवासियों की जान बचाई थी और किसी भी तरह का कोई नुकसान जोधपुर को नहीं होने दिया था। तब से जोधपुर वासियों में मां चामुंडा के प्रति अटूट विश्वास है। शत्रुओं से अपने भक्तों की रक्षा करने वाली देवी का यह रौद्र रूप है जो सांसारिक शत्रुओं से उनकी रक्षा के साथ-साथ उनके भौतिक (शारीरिक) दुखों तथा मानसिक त्रासदियों को दूर करके उनमें आत्मविश्वास एवं वीरता का संचार कर जीवन को एक गति प्रदान करता है। नवरात्रों में तो सारे प्रदेश से यहां भक्तों का आवागमन होता है। 30 सितम्बर 2008  को नवरात्रि के पहले दिन इस मंदिर-परिसर में भगदड़ मचने से काफी लोगों की मौत हुई थी और लोग घायल हुए थे।  उस समय चामुण्डा देवी का यह मंदिर राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्ख़ियों में रहा था। 


चामुण्डा देवी के प्रताप व वैभव का वर्णन श्री मत्स्य पुराण तथा श्री मार्कंडेय पुराण में भी मिलता है। महाभारत के वन पर्व तथा श्री विष्णु पुराण के धर्मोत्तर में भी आदिशक्ति की स्तुति की गई है। एक पौराणिक मान्यता के अनुसार देवासुर संग्राम में जब शिवा (मां शक्ति) ने राक्षस सेनापति चंड तथा मुंड नामक दो शक्तिशाली असुरों का वध कर दिया तो मां दुर्गा द्वारा देवी के इस ‘शत्रु नाशिनी’ रूप को चामुंडा का नाम दिया गया। जैन धर्म में भी देवी मां चामुंडा को मान्यता प्राप्त है तथा मां देवी का यह रूप पूर्णत: सात्विक रूप में पूजा जाता है। 

Akanksha Yadav आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

गुरुवार, 24 सितंबर 2015

समाज के निर्माण में भाषा और साहित्य की भूमिका


'समाज के निर्माण में भाषा और साहित्य की भूमिका' जगजाहिर है। इस विषय को लेकर तमाम पुस्तकें लिखी/सम्पादित की गई हैं। हाल ही में इस विषय पर एक पुस्तक डॉ. गीता सिंह (रीडर एवं अध्यक्ष, स्नाकोत्तर हिंदी विभाग, दयानंद स्नाकोत्तर महाविद्यालय, आज़मगढ़) के सम्पादन में युगांतर प्रकाशन, दिल्ली द्वारा प्रकाशित हुई है। साहित्य में चल रहे विमर्श, संक्रमण और सौंदर्यकामी सभी प्रक्रियाओं को समेटती यह पुस्तक हिंदी साहित्य के बहाने तमाम छुए-अनछुए पहलुओं को समेटती है। 225 पृष्ठों की इस पुस्तक में विभिन्न लेखकों के 61 लेख शामिल किये गए हैं। सौभाग्यवश, इसमें "बदलते परिवेश में बाल साहित्य" शीर्षक से कृष्ण कुमार यादव जी का  और "भूमंडलीकरण के दौर में भाषाओं पर बढ़ता ख़तरा" शीर्षक से हमारा भी लेख शामिल है। साधुवाद और हार्दिक आभार !!

पुस्तक : समाज के निर्माण में भाषा और साहित्य की भूमिका
संपादक :डॉ. गीता सिंह (रीडर एवं अध्यक्ष, स्नाकोत्तर हिंदी विभाग, दयानंद स्नाकोत्तर महाविद्यालय, आज़मगढ़) 
प्रकाशक : युगांतर प्रकाशन, दिल्ली 
पृष्ठ -225,  प्रथम संस्करण - 2015 

मंगलवार, 22 सितंबर 2015

समकालीन महिला साहित्यकार


महिलाओं की रचनाधर्मिता को लेकर आजकल तमाम पुस्तकें प्रकाशित हो रही हैं।  इन्हीं में से एक है - 'समकालीन महिला साहित्यकार'।  निरुपमा प्रकाशन, (506/13 शास्त्री नगर, मेरठ, उत्तर प्रदेश) द्वारा रश्मि अग्रवाल के संपादन में प्रकाशित इस पुस्तक (ISBN -978-93-81050-46-0) में 12 महिला साहित्यकारों की कविताओं को सपरिचय स्थान दिया गया है।  इन महिला साहित्यकारों में आकांक्षा यादव, सुशीला गोयल, रश्मि अग्रवाल, सुमन अग्रवाल, कामिनी वशिष्ठ, करुणा दिनेश, अंजू जैन प्राची, पूनम अग्रवाल, शुभम त्यागी, शुभा द्धिवेदी, गरिमा शर्मा और शिक्षा यादव के नाम शामिल हैं। मुकेश नादान  ने बड़ी ही खूबसूरती से इस 128 पृष्ठीय पुस्तक को प्रकाशित किया है।

पुस्तक : समकालीन महिला साहित्यकार (ISBN -978-93-81050-46-0)
संपादक :रश्मि अग्रवाल
प्रकाशक : निरुपमा प्रकाशन, 506/13 शास्त्री नगर, मेरठ, उत्तर प्रदेश
पृष्ठ -128   मूल्य -240 रूपये  प्रथम संस्करण - 2015


गुरुवार, 17 सितंबर 2015

आदि देव के साथ-साथ प्रथम लिपिकार भी हैं श्री गणेश



भारतीय संस्कृति में गणेश जी को आदि देव माना गया है। कोई भी धार्मिक उत्सव हो, यज्ञ, पूजन इत्यादि सत्कर्म हो या फिर विवाहोत्सव हो, निर्विध्न कार्य सम्पन्न हो इसलिए शुभ के रूप में गणेश जी  की पूजा सबसे पहले की जाती है। गणेश जी को प्रथम लिपिकार भी माना जाता है उन्होंने ही देवताओं की प्रार्थना पर वेद व्यास जी द्वारा रचित महाभारत को लिपिबद्ध किया था। गणेश की प्रतिष्ठा सम्पूर्ण भारत में समान रूप में व्याप्त है। महाराष्ट्र इसे मंगलकारी देवता के रूप में व मंगलपूर्ति के नाम से पूजता है। दक्षिण भारत में इनकी विशेष लोकप्रियता ‘कला शिरोमणि’ के रूप में है। मैसूर तथा तंजौर के मंदिरों में गणेश की नृत्य-मुद्रा में अनेक मनमोहक प्रतिमाएं हैं। अनंतकाल से अनेक नामों से गणेश दुख, भय, चिन्ता इत्यादि विघ्न के हरणकर्ता के रूप में पूजित होकर मानवों का संताप हरते रहे हैं। शास्त्रों में गणेश जी के स्वरूप का वर्णन करते हुए लिखा गया है-



वक्रतुंड महाकाय। सूर्यकोटि सम प्रभ।
निर्विघ्न कुरु मे देव। सर्व कार्येषु सर्वदा॥

अर्थात् जिनकी सूँड़ वक्र है, जिनका शरीर महाकाय है, जो करोड़ों सूर्यों के समान तेजस्वी हैं, ऐसे सब कुछ प्रदान करने में सक्षम शक्तिमान गणेश जी सदैव मेरे विघ्न हरें।

श्री गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर सभी को हार्दिक शुभकामनाएं !!



बुधवार, 9 सितंबर 2015

विश्व हिंदी सम्मेलन, भोपाल में हिंदी जगत के विस्तार और संभावनाओं पर होगा मंथन


भारत में 32 साल बाद फिर से विश्व हिन्दी सम्मेलन का आयोजन, 10-12  सितंबर को भोपाल में। वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती साख ने कई देशों को हिंदी जानने व समझने पर विवश कर दिया है। आज दुनिया के 150 से अधिक विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जा रही है। 50 करोड़ से अधिक लोग हिंदी बोलते हैं और लगभग 80 करोड़ लोग इसे बखूबी समझते हैं।  इस सम्मेलन में लगभग 39  देशों के प्रतिनिधि  हिस्सा ले रहे हैं।


देश विदेश में हिन्दी के प्रचार प्रसार में अहम भूमिका निभाने वाले बॉलीवुड के सितारों से आम तौर पर परहेज करने वाले वि हिन्दी सम्मेलन में इस बार मशहूर अभिनेता अमिताभ बच्चन को न सिर्फ आमंत्रित किया गया है बल्कि वह अच्छी हिन्दी कैसे बोलें विषय पर व्याख्यान भी देंगे.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सम्मेलन के सफल होने की कामना करते हुए अपने शुभकामना संदेश में आशा प्रकट की कि इसमें भाग ले रहे विद्वान हिंदी के माध्यम से भारतीय संस्कृति के मूलमंत्र वसुधैव कुटुम्बकम की भावना को आगे बढ़ाएंगे और हिंदी जगत के विस्तार की संभावनाओं को चरम पर पंहुचाने के उपायों पर चर्चा करेंगे.

इस बार विश्व हिंदी सम्मेलन के महाकुंभ के दसवें पड़ाव को व्यापकता प्रदान करते हुए और इसकी परिधि का विस्तार करके मुख्य विषय ‘हिंदी जगत : विस्तार एवं संभावनाएं’ के साथ बारह विषयों पर विचार-विमर्श किया जाएगा. सम्मेलन में चर्चा के निर्धारित मुख्य विषय हैं : विदेश नीति में हिंदी, प्रशासन में हिंदी, विज्ञान में हिंदी, विधि एवं न्याय क्षेत्र में हिंदी और भारतीय भाषाएं, अन्य भाषा भाषी राज्यों में हिंदी और गिरमिटिया देशों में हिंदी आदि.

 विश्व हिंदी सम्मेलनों की परंपरा 1975 में नागपुर में आयोजित प्रथम विश्व हिंदी सम्मेलन से शुरू हुई. तब से इन सम्मेलनों ने एक वैश्विक स्वरूप और गति प्राप्त की. अब तक ऐसे नौ सम्मेलन विश्व के विभिन्न देशों में आयोजित किए जा चुके हैं. इससे पूर्व विश्व हिन्दी सम्मेलन दो-दो बार मॉरीशस और भारत में और एक-एक बार ट्रिनिदाद और टोबैगो, ब्रिटेन, सूरीनाम, अमेरिका और दक्षिण अफ्रीका में आयोजित हुए हैं. इन सम्मेलनों ने हमेशा से ही हिंदी स्नेही व्यक्तियों और प्रख्यात विद्वानों को आकर्षित किया है... फ़िलहाल, इस सम्मेलन पर सबकी निगाह लगी है कि आखिर मंथन से क्या निकलता है !!


रविवार, 6 सितंबर 2015

पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार हिंदी में एमफिल की डिग्री

हिंदी के चाहने वाले सिर्फ भारत  ही नहीं बल्कि दुनिया भर में हैं। कभी भारत से अलग होकर पाकिस्तान बना, पर हिंदी की जड़ें वहाँ भी मौजूद हैं।   पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार एक विश्वविद्यालय ने हिंदी में एमफिल की डिग्री प्रदान की है। सेना की ओर से संचालित नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ मॉडर्न लैंग्वेजेज (एनयूएमएल) यह डिग्री प्रदान करने वाला पाकिस्तान का पहला विश्वविद्यालय बन गया है।

देश में हिदी में एमफिल की डिग्री हासिल करने वाली पहली छात्रा होने का ख़िताब एनयूएमएल की छात्रा शाहीन जफर को मिला। डॉन न्यूज की खबर के अनुसार “स्वतंत्र्योत्तर हिंदी उपन्यासों में नारी चित्रण (1947-2000)” विषयक यह शोध उन्होंने प्रोफेसर इफ्तिखार हुसैन की देखरेख में किया है।

उच्च शिक्षा आयोग ने इसे अपनी मंजूरी दी थी। विश्वविद्यालय के प्रवक्ता ने बताया कि पाकिस्तान में हिदी विशेषज्ञों की कमी होने के कारण भारत के अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के दो विशेषज्ञों ने जफर के शोध का मूल्यांकन किया।

शुक्रवार, 4 सितंबर 2015

युवा लेखिका आकांक्षा यादव को 'आगमन' साहित्य सम्मान

प्रसिद्ध साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था ’आगमन’ ने युवा लेखिका, ब्लॉगर व साहित्यकार  आकांक्षा यादव को इस वर्ष के 'आगमन साहित्य सम्मान -2015'  के लिए चयनित किया है। उक्त सम्मान सुश्री यादव को दिल्ली में आयोजित आगमन वार्षिक सम्मान समारोह में प्रदान किया जायेगा। आकांक्षा यादव राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर के  निदेशक डाक सेवाएं  श्री कृष्ण कुमार यादव की पत्नी हैं, जो की स्वयं चर्चित ब्लॉगर और साहित्यकार हैं। उक्त जानकारी संस्था के संस्थापक श्री पवन जैन ने दी।

देश-विदेश की तमाम पत्र-पत्रिकाओं और इंटरनेट पर वेब पत्रिकाओं और ब्लॉग पर निरंतर प्रकाशित होने वाली आकांक्षा यादव की दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  नारी विमर्श, बाल विमर्श एवं सामाजिक सरोकारों सम्बन्धी विमर्श में विशेष रुचि रखने वाली आकांक्षा यादव की रचनाओं में नारी-सशक्तीकरण बखूबी झलकता है। एक रचनाधर्मी के रूप में रचनाओं को जीवंतता के साथ सामाजिक संस्कार देने का प्रयास करने वाली आकांक्षा यादव अपनी रचनाओं में बिना लाग-लपेट के सुलभ भाव-भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उकेरने के लिए जानी जाती हैं।  

गौरतलब है कि आकांक्षा यादव को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर इससे पूर्व भी  तमाम प्रतिष्ठित सम्मान प्राप्त हो चुके हैं। इनमें साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, राजस्थान द्वारा ”हिंदी भाषा भूषण”,  विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार द्वारा डाॅक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की मानद उपाधि, भारतीय दलित साहित्य अकादमी, नई दिल्ली  द्वारा ‘डाॅ. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान‘ व ‘‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘,  “दशक के श्रेष्ठ ब्लॉगर दम्पति“ का सम्मान, “परिकल्पना  ब्लॉग विभूषण सम्मान“, परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’भारती ज्योति’, निराला स्मृति संस्थान, रायबरेली द्वारा मनोहरादेवी स्मृति सम्मान सहित विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु दर्जनाधिक सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त हैं।

  साभार : दैनिक नव ज्योति, जोधपुर, राजस्थान, 4 सितम्बर, 2015 
साभार : दैनिक राज पथ, रेवाड़ी, हरियाणा , 4 सितम्बर, 2015