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रविवार, 7 जून 2015

नारी सशक्तिकरण और नारी स्वातंत्र्य के हथियार के रूप में भी उभरकर सामने आया हिंदी ब्लॉग

हिंदी ब्लॉगिंग  ने महिलाओं को खुलकर अपनी बात रखने का व्यापक मंच दिया है। तभी तो ब्लाॅगिंग का दायरा परदे की ओट से बाहर निकल रहा है। इनमें प्रशासक, डाक्टर, इंजीनियर, अध्यापक, विद्यार्थी, पर्यावरणविद, वैज्ञानिक, शिक्षाविद्, समाजसेवी, साहित्यकार, कलाकार, संस्कृतिकर्मी, रेडियो जाकी से लेकर सरकारी व कारपोरेट जगत तक की महिलाएं शामिल हैं। कामकाजी महिलाओं के साथ-साथ गृहिणियां भी इसमें खूब हाथ आजमा रही हैं। महिलाओं में हिन्दी ब्लागिंग आरम्भ करने का श्रेय इन्दौर की पद्मजा को है, जिन्होंने वर्ष 2003 में ‘कही अनकही‘ ब्लाग के माध्यम से इसकी शुरूआत की। पद्मजा उस समय ‘वेब दुनिया‘ में कार्यरत थीं। उक्त उद्गार चर्चित हिंदी ब्लॉगर लेखिका आकांक्षा यादव ने कोलम्बो (श्री लंका) के कॉनकॉर्ड ग्रैंड होटल में 25 मई, 2015  को हुए अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन में "हिंदी ब्लॉगिंग की समृद्धि में महिलाओं का योगदान" विषय पर आयोजित परिचर्चा में  व्यक्त किये। 


परिचर्चा में विषय-प्रवर्तन करते हुए आकांक्षा यादव ने  कहा कि 21वीं सदी नारी-सशक्तिकरण की है, बेटियों की है।  हर क्षेत्र में नारियाँ बुलंदियों को छू रही हैं, नए आयाम गढ़ रही हैं, फिर भला ब्लॉगिंग का क्षेत्र कैसे अछूता रह जाता।  आज एक चौथाई से ज्यादा हिंदी ब्लॉग महिलाओं द्वारा संचालित हैं। आज की महिला यदि संस्कारों और परिवार की बात करती है तो अपने हक के लिए लड़ना भी जानती है।
ऐसे में नारियों के ब्लॉग पर स्त्री की कोमल भावनाएं हैं तो दहेज, भ्रूण हत्या, घरेलू हिंसा, आनर किलिंग, सार्वजनिक जगहों पर यौन उत्पीड़न, लिव-इन-रिलेशनशिप, महिला आरक्षण, सेना में महिलाओं के लिए कमीशन, न्यायपालिका में महिला न्यायधीशों की अनदेखी, फिल्मों-विज्ञापनों इत्यादि में स़्त्री को एक ‘आबजेक्ट‘ के रूप में पेश करना, साहित्य में नारी विमर्श के नाम पर देह-विमर्श का बढ़ता षडयंत्र, नारी द्वारा रुढि़यों की जकड़बदी को तोड़ आगे बढ़ना....जैसे तमाम विषयों के बहाने स्त्री के ‘स्व‘ और ‘अस्मिता‘ को तलाशता व्यापक स्पेस भी है। साहित्य की विभिन्न विधाओं से लेकर प्रायः हर विषय पर सशक्त लेखन और संवाद स्थापित करती महिला हिंदी ब्लागर, ब्लागिंग जगत में काफी प्रभावी हैं। आकांक्षा यादव ने जोर देकर कहा कि आज  ब्लॉग स्त्री आन्दोलन, स्त्री विमर्श, महिला सशक्तिकरण और नारी स्वातंत्र्य के हथियार के रूप में भी उभरकर सामने आया है। यहाँ महिला की उपलब्धि भी है, कमजोरी भी और बदलते दौर में उसकी बदलती भूमिका भी। 


इस अवसर पर लखनऊ से प्रकाशित रेवांत पत्रिका की संपादक डॉ. अनीता श्रीवास्तव ने कहा कि महिलाएँ ब्लॉगिंग के क्षेत्र में मुखरता के साथ लिख रही हैं और वे पुरुषों के वर्चस्व को तोड़ रही हैं | हिन्दी ब्लागिंग में महिलाओं की सक्रियता सिर्फ भारत तक ही नहीं बल्कि विदेशों तक विस्तारित है। 


कवयित्री और ब्लॉगर सुनीता प्रेम यादव (औरंगाबाद) ने अपने वक्तव्य में कहा कि आज भारत ही नहीं दुनिया के हर कोने में महिलाओं द्वारा हिंदी में बड़ी सक्रियता से साथ ब्लॉग लिखे जा रहे हैं। उन्होंने ब्लॉगिंग और हिंदी साहित्य को जोड़ते हुए यह भी चेताया कि  आज मूल्य आधारित लेखन की जरूरत है, जिसके अभाव में ब्लॉगिंग अपनी प्रासंगिकता खो देगा। 

रायपुर (छतीसगढ़) से आयी डॉ. उर्मिला शुक्ल ने ब्लॉगिंग और सोशल मिडिया की  विसंगतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि हम हजारों मील  दूर बैठे मित्रों से तो बात कर लेते है किन्तु अपने घर बैठे सदस्यों से संवाद नहीं स्थापित कर पाते |

डॉ अर्चना श्रीवास्तव, (प्राचार्य, स्नातकोत्तर महाविद्यालय, चंदौली) ने अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कहा कि हर महिला-ब्लागर का अपना अनूठा अंदाज है, अपनी विशिष्ट प्रस्तुति है। ब्लागिंग में हर क्षेत्र में काम करने वाली महिलाएं अपनी अभिव्यक्तियों को विस्तार दे रही हैं, अतः इनका दायरा भी व्यापक है। आज महिलाएँ हर विधा मसलन कविता, कहानी, लघुकथा, संस्मरण, यात्रा-वृतांत, आप-बीती, निबंध इत्यादि में लिख रही हैं। इन ब्लॉगों की  श्रेणियाँ भी विवध हैं और सन्दर्भ विषय भी राजनैतिक, सामाजिक, साहित्यिक आदि सभी को समेटे हुए हैं। 












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