आपका समर्थन, हमारी शक्ति

शनिवार, 29 अगस्त 2015

रक्षाबंधन पर्व को नए परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत

रक्षाबंधन त्यौहार की परम्परा बहुत पुरानी है। भारतीय परम्परा में विश्वास का बन्धन ही मूल है और रक्षाबन्धन इसी विश्वास का बन्धन है। यह पर्व मात्र रक्षा-सूत्र के रूप में राखी बाँधकर रक्षा का वचन ही नहीं देता वरन् प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के जरिए हृदयों को बाँधने का भी वचन देता है। इसका आरम्भ पत्नी इन्द्राणी द्वारा पति इंद्र को रक्षा सूत्र बाँधने से हुआ। इस त्यौहार का दायरा काफी विस्तृत रहा है। आपत्ति आने पर अपनी रक्षा के लिए अथवा किसी की आयु और आरोग्य की वृद्धि के लिये किसी को भी रक्षा-सूत्र (राखी) बांधा या भेजा जाता था। कृष्ण-द्रौपदी, हुमांयू-कर्मवती या सिकंदर-पोरस की कहानी तो सभी ने सुनी होगी, पर आजादी के आन्दोलन में भी कुछ ऐसे उद्धरण आए हैं, जहाँ राखी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में जन जागरण के लिए भी इस पर्व का सहारा लिया गया। रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने बंग-भंग का विरोध करते समय रक्षाबंधन त्यौहार को बंगाल निवासियों के पारस्परिक भाईचारे तथा एकता का प्रतीक बनाकर इस त्यौहार का राजनीतिक उपयोग आरंभ किया।

राखी का सर्वप्रथम उल्लेख पुराणों में प्राप्त होता है जिसके अनुसार असुरों के हाथ देवताओं की पराजय पश्चात अपनी रक्षा के निमित्त सभी देवता इंद्र के नेतृत्व में गुरू वृहस्पति के पास पहुँचे तो इन्द्र ने दुखी होकर कहा- ‘‘अच्छा होगा कि अब मैं अपना जीवन समाप्त कर दूँ।’’ इन्द्र के इस नैराश्य भाव को सुनकर गुरू वृहस्पति के दिशा-निर्देश पर रक्षा-विधान हेतु इंद्राणी ने श्रावण पूर्णिमा के दिन इन्द्र सहित समस्त देवताओं की कलाई पर रक्षा-सूत्र बाँधा और अंतत: इंद्र ने युद्ध में विजय पाई। इस प्रकार कहा जा सकता है कि रक्षाबंधन की शुरुआत पत्नी द्वारा पति को राखी बाँधने से हुई। 

एक अन्य कथानुसार राजा बलि को दिये गये वचनानुसार भगवान विष्णु बैकुण्ठ छोड़कर बलि के राज्य की रक्षा के लिये चले गय। तब देवी लक्ष्मी ने ब्राह्मणी का रूप धर श्रावण पूर्णिमा के दिन राजा बलि की कलाई पर पवित्र धागा बाँधा और उसके लिए मंगलकामना की। इससे प्रभावित हो बलि ने देवी को अपनी बहन मानते हुए उसकी रक्षा की कसम खायी। तत्पश्चात देवी लक्ष्मी अपने असली रूप में प्रकट हो गयीं और उनके कहने से बलि ने भगवान विष्णु से बैकुण्ठ वापस लौटने की विनती की। 

त्रेता युग में रावण की बहन शूर्पणखा लक्ष्मण द्वारा नाक कटने के पश्चात रावण के पास पहुँची और रक्त से सनी साड़ी का एक छोर फाड़कर रावण की कलाई में बाँध दिया और कहा कि- ‘‘भैया! जब-जब तुम अपनी कलाई को देखोगे, तुम्हें अपनी बहन का अपमान याद आएगा और मेरी नाक काटनेवालों से तुम बदला ले सकोगे।’’ 

इसी प्रकार महाभारत काल में भगवान कृष्ण के हाथ में एक बार चोट लगने व फिर खून की धारा फूट पड़ने पर द्रौपदी ने तत्काल अपनी कंचुकी का किनारा फाड़कर भगवान कृष्ण के घाव पर बाँध दिया। कालांतर में दु:शासन द्वारा द्रौपदी-चीर-हरण के प्रयास को विफल कर उन्होंने इस रक्षा-सूत्र की लाज बचायी। द्वापर युग में ही एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि वह महाभारत के युद्ध में कैसे बचेंगे तो उन्होंने तपाक से जवाब दिया- ‘‘राखी का धागा ही तुम्हारी रक्षा करेगा।’’

ऐतिहासिक युग में भी सिंकदर व पोरस ने युद्ध से पूर्व रक्षा-सूत्र की अदला-बदली की थी। युद्ध के दौरान पोरस ने जब सिकंदर पर घातक प्रहार हेतु अपना हाथ उठाया तो रक्षा-सूत्र को देखकर उसके हाथ रूक गए और वह बंदी बना लिया गया। सिकंदर ने भी पोरस के रक्षा-सूत्र की लाज रखते हुए और एक योद्धा की तरह व्यवहार करते हुए उसका राज्य वापस लौटा दिया।

 मुगल काल के दौर में जब मुगल सम्राट हुमायूँ चितौड़ पर आक्रमण करने बढ़ा तो राणा सांगा की विधवा कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर अपनी रक्षा का वचन लिया। हुमायूँ ने इसे स्वीकार करके चितौड़ पर आक्रमण का ख्याल दिल से निकाल दिया और कालांतर में राखी की लाज निभाने के लिए चितौड़ की रक्षा हेतु गुजरात के बादशाह से भी युद्ध किया। इसी प्रकार न जाने कितनी मान्यतायें रक्षा बन्धन से जुड़ी हुयी हैं।

लोक परम्परा में रक्षाबन्धन के दिन परिवार के पुरोहित द्वारा राजाओं और अपने यजमानों के घर जाकर सभी सदस्यों की कलाई पर मौली बाँधकर तिलक लगाने की परम्परा रही है। पुरोहित द्वारा दरवाजों, खिड़कियों, तथा नये बर्तनों पर भी पवित्र धागा बाँधा जाता है और तिलक लगाया जाता है। यही नहीं बहन-भानजों द्वारा एवं गुरूओं द्वारा स्त्रियों को रक्षा सूत्र बाँधने की भी परम्परा रही है। 

राखी ने स्वतंत्रता-आन्दोलन में भी प्रमुख भूमिका निभाई। कई बहनों ने अपने भाइयों की कलाई पर राखी बाँधकर देश की लाज रखने का वचन लिया। 1905 में बंग-भंग आंदोलन की शुरूआत लोगों द्वारा एक-दूसरे को रक्षा-सूत्र बाँधकर हुयी। 









आज रक्षाबंधन पर्व को नए परिप्रेक्ष्य में देखने की जरूरत है। इसे भाई-बहन के संबंधों तक सीमित करके देखना और बहन को अशक्त मानते हुए भाई द्वारा रक्षा जैसी दकियानूसी बातों से जोड़ने का कोई औचित्य नहीं रहा। जो समाज बेटियों-बहनों को माँ की कोख में ही खत्म कर देता है, क्या वाकई वहाँ बहनों की रक्षा  का कोई अर्थ है ? आज जिस तरह से समाज में छेड़खानी और महिलाओं के साथ अत्याचार की घटनाएँ बढ़ रही हैं, वह यह सोचने पर विवश करती हैं कि क्या ऐसा करने वालों की अपनी बहनें नहीं हैं। रक्षाबंधन के दिन बहन की रक्षा का संकल्प उठाना और घर से बाहर निकलते ही बेटियों-बहनों को छेड़ना और उनके साथ बद्तमीजी करना .... यह दोहरापन रुकना चाहिए। अन्यथा हर बहन अपने भाई से यही कहेगी कि- "मुझ जैसा कोई रो रहा है।  क्योंकि, तुम जैसा कोई उसको छेड़ रहा है।  भैया ! क्या तुम ऐसा कर सकते हो कि हर नारी सुरक्षित रहे।  क्या हर नारी को सम्मान दे सकते हो ताकि वो बिना भय के खुली हवा में साँस ले सके।  तभी सही अर्थों में राखी की शान बढ़ेगी।"  

(चित्र में :  बदलते दौर में राखी का त्यौहार- प्यारी बेटियाँ अक्षिता और अपूर्वा एक दूसरे को राखी बाँधकर रक्षाबंधन पर्व सेलिब्रेट करती हुई। बहनों अक्षिता (पाखी) और अपूर्वा की शानदार राखी)






शनिवार, 22 अगस्त 2015

#100महिलाएं पहल : अब सोशल मीडिया पर बताएं भारत की सबसे प्रभावशाली महिलाओं के बारे में

हमारे जीवन में ऐसी महिलाएं आती रही हैं, जिन्‍होंने कुछ अलग हटकर किया है, जिन्‍होंने हमारा जीवन बदला है, जिन्‍होंने पूरे समाज में अपनी छाप छोड़ी है और बेहतरी के लिए इसमें बदलाव किया है, उनके लिए सिर्फ धन्‍यवाद शब्‍द ही काफी नहीं हैं, अब ऐसी महिलाओं को सम्‍मानित करने की आपकी बारी है, जिन्‍होंने समाज में कुछ अलग किया है। इसी सोच को लेकर केंद्रीय महिला और बाल विकास मंत्रालय ने फेसबुक के साथ '#100महिलाएं पहल' शुरू की है, जिसका उद्देश्‍य देश की उन महिलाओं को पहचान और स्‍वीकृति देना है, जिन्‍होंने समाज में अपनी अलग पहचान बनाई है। इसके लिए लोग 15 जुलाई से 30 सितंबर 2015 के बीच महिला और बाल विकास मंत्रालय के फेसबुक पन्‍ने पर जाकर अपने नामांकन दे सकते हैं और नामांकन फार्म पूरा कर सकते हैं, उन्‍हें अपनी नामित महिला की एक फोटो या वीडियो जमा कराना होगा, जिसमें वह समुदाय के लिए कार्य करती हुई दिखाई देती हो। विजेताओं की घोषणा दिसंबर 2015 में की जाएगी।

 '#100महिलाएं पहल' के अंतर्गत सोशल मीडिया के माध्‍यम से सार्वजनिक मनोनयन के जरिए 100 सफल महिलाओं का चयन करने के लिए एक प्रतियोगिता होगी। इसके लिए  महिला और बाल विकास मंत्रालय के फेसबुक पेज पर लॉग ऑन करना होगा और वीडियो शेयर करके बताना होगा कि जिस महिला को आपने चुना है, उसे भारत की 100 सबसे प्रभावशाली महिलाओं के रूप में क्‍यों सम्‍मानित किया जाना चाहिए। 15 जुलाई 2015 से 30 सितंबर 2015 तक लोग मंत्रालय के फेसबुक पृष्‍ठ http://www.facebook.com/ministryWCD पर जाकर  किसी ऐसी महिला को मनोनीत कर सकते हैं, जिसने समाज पर गहरा असर डाला हो और समाज को बेहतर बनाया हो। शीर्ष 200 प्रविष्टियों पर 7 नवंबर 2015 से वोटिंग शुरू होगी, जिस पर एक प्रतिष्ठित ज्‍यूरी निर्णय लेगी, विजेताओं को गणतंत्र दिवस के आस-पास मंत्रालय के स्‍वागत समारोह में आमंत्रित किया जाएगा।

 वाकई लोग रोजाना फेसबुक पर उन मुद्दों की चर्चा करते हैं, जो उनके लिए बेहद महत्‍व रखते हैं, ऐसे में यह एक अवसर है कि समाज में कुछ अलग करने वाली महिलाओं की प्रशंसा की जाए। इस पहल को  भारत में महिलाओं को पहचान दिलाने के अवसर रूप में भी देखा जाना चाहिए !!

शनिवार, 15 अगस्त 2015

हिंद देश का प्यारा झंडा, ऊँचा सदा रहेगा


आजादी के पर्व का जश्न आते ही यह गीत अनायास ही होठों पर आ जाता है।  स्कूली दिनों से ही यह राष्ट्र भक्ति गीत सुनते, सुनाते और गुनगुनाते आ रहे हैं। यह तो नहीं पता कि यह खूबसूरत गीत किसने लिखा, पर जिन्होंने भी लिखा लाजवाब।  आज एक बार फिर से इस गीत को आप सभी के साथ शेयर करते हुए प्रसन्नता हो रही है। इसके रचयिता का नाम पता हो तो जरूर लिखियेगा !!

हिन्द देश का प्यारा झंडा ऊँचा सदा रहेगा
तूफान और बादलों से भी नहीं झुकेगा
नहीं झुकेगा, नहीं झुकेगा, झंडा नहीं झुकेगा
हिंद देश का प्यारा झंडा, ऊँचा सदा रहेगा !!

केसरिया बल भरने वाला सदा है सच्चाई
हरा रंग है हरी हमारी धरती है अँगड़ाई
कहता है यह चक्र हमारा कदम कभी नहीं रुकेगा
हिंद देश का प्यारा झंडा, ऊँचा सदा रहेगा !!

शान नहीं ये झंडा है ये अरमान हमारा
ये बल पौरुष है सदियों का ये बलिदान हमारा
आसमान में फहराए या सागर में लहराए
जहाँ-जहाँ ये झंडा जाए यह सन्देश सुनाए
है आज़ाद हिन्द ये दुनिया को आज़ाद करेगा
हिंद देश का प्यारा झंडा, ऊँचा सदा रहेगा !!

नहीं चाहते हम दुनिया को अपना दास बनाना
नहीं चाहते हम औरों के मुँह की रोटी खा जाना
सत्य न्याय के लिए हमारा लहू सदा बहेगा
हिंद देश का प्यारा झंडा, ऊँचा सदा रहेगा !!

हम कितने सुख सपने लेकर इसको फहराते हैं
इस झंडे पर मर मिटने की कसम सभी खाते हैं
हिन्द देश का यह झंडा घर-घर में लहराएगा
हिंद देश का प्यारा झंडा, ऊँचा सदा रहेगा !!

- आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 






Sand artist Sudarsan Pattnaik creates a sand sculpture on Independence Day at Puri beach of Odisha on Thursday. (PTI Photo)

गुरुवार, 13 अगस्त 2015

नारी शक्ति ने पहुँचाया नासा के 'न्यू हॉरिजन' को प्लूटो के पास

महिलाएं समुद्र से लेकर अंतरिक्ष तक सफलता की नई इबारतें लिख रही हैं।  यह सिर्फ जुमला भर नहीं है बल्कि ठोस हकीकत है। पिछले जुलाई माह में अमेरिकी एजेंसी नासा के  न्यू हॉरिजन ने सौर मंडल के आखिरी ज्ञात बौने ग्रह के नजदीक से गुजर कर इतिहास रच दिया। यह घटना जुलाई माह में हुई लेकिन एक इतिहास जमीं पर भी रचा गया। यह पहला अंतरिक्ष मिशन था जिसमें सबसे अधिक महिलाओं की भागीदारी थी और उनकी वैज्ञानिक क्षमता से यह सफलता हाथ लगी। 

इस समय न्यू हॉरिजन की टीम में करीब 200 वैज्ञानिक काम कर रहे हैं। लेकिन विगत एक दशक में हजारों की संख्या में इंजीनियर, अंतिरिक्ष वैज्ञानिकों ने काम किया। लेकिन यान को प्लूटो के नजदीक ले जाने और ग्रह के साथ उसके पांच चंद्रमाओं को खंगालने का काम जो फ्लाईबाई टीम देख रही थी, उसकी एक चौथाई सदस्य महिलाएं थीं। एस्ट्रोफिजिस्ट किबर्ले इनिको जिन्होंने न्यू हॉरिजन मिशन के लिए कई उपकरणों को बनाया व संचालित किया कहती हैं कि लोग मानते हैं कि महिलाएं केवल सहयोगी की भूमिका में होंगी। लेकिन सच्चाई है कि कई बार नियंत्रण कक्ष में वह अकेली होती थी और मिशन से जुड़ी जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वाह करती थी।

मिशन से जुड़ी महिला वैज्ञानिकों को भरोसा है कि एक दिन वह इस तरह के मिशनों को अंजाम देने के मामले में बहुमत में होंगी। इनिको कहती है कि वह अब तक चार मिशनों का हिस्सा बन चुकी हैं। अपने अनुभव से कह सकती हैं कि महिलाओं की संख्या बढ़ रही है और इससे उनमें और आत्मविश्वास आएगा। उन्होंने कहा वह बेहतर स्थिति होगी जब पुरुषों से अधिक नहीं तो कम से कम बराबर महिलाएं नियंत्रण कक्ष में हो, क्योंकि एक या दो की संख्या में होने से वे खुद को सहज महसूस नहीं करती हैं। 

भेदभाव हकीकत 
इनिको ने स्वीकार किया है कि महिला वैज्ञानिकों को लेकर पूर्वाग्रह है। उन्होंने बताया कई बार उनसे सचिव जैसा व्यवहार करते हुए नोट तैयार करने को कहा गया। लेकिन इनिको ने पूरे आत्मविश्वास से इसका प्रतिकार करते हुए कहा कि वह अपने लिए नोट बना रही हैं ना कि उनके लिए। गौरतलब है कि वर्ष 2012 में प्रतिष्ठित येल यूनिवर्सिटी ने भी अपने शोध में पाया था कि महिला वैज्ञानिकों के साथ भेदभाव होता है और उन्हें पुरुषों के मुकाबले कम तनख्वाह दी जाती है। 

इनके हाथों में नेतृत्व 
- फ्रान बेगनल: पार्टिकल एवं प्लाजमा विज्ञान टीम की प्रमुख, वरिष्ठ अंतरिक्ष वैज्ञानिक होने के साथ यूनिवर्सिटी ऑफ कोलरेडो की सेवानिवृत्त प्रोफेसर 
- एलिस बाउमैन: मिशन संचालन प्रबंधन, न्यू हॉरिजन के सबसे जटिल समय में मिशन संचालन केंद्र की संभाली, पल-पल के आंकड़ों पर रखी नजर 
- टिफने फिनले: विज्ञान संचालन टीम की प्रबंधन, इस टीम की जिम्मेदारी यान द्वारा किए जाने वाले वैज्ञानिक शोधों की प्राथमिकता तैय करनी थी 
- यानपिंग ग्यू: मिशन डिजाइन की नेता, यान के रास्ते को तैय करना खासतौर पर बृहस्पति ग्रह के गुरुत्वाकर्षण से बचाकर यान को आगे भेजना बड़ी चुनौती