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बुधवार, 23 मार्च 2016

हर रंग में प्यार अपार..

रंग - गुलाल से रंग दे तन - मन !
ऐसी होली हो मन - भावन !!


हर रंग में प्यार अपार।
रंगो का त्यौहार है होली
इसमें रंग हजार।
प्रेम का रंग है सबसे पक्का
कैसे भी न छूटे।
एक बार रंग जाय संग फिर
जीवन भर न टूटे।
तुम्हे मुबारक प्रेम रंग की
छैल छबीली होली।
खेलो रंग पिया से अपने
जी भर के करो ठिठोली।
हम सब की ओर से
मुबारक आप सभी को होली !!





रंग रंग राधा हुई, कान्हा हुए गुलाल
वृंदावन होली हुआ सखियाँ रचें धमाल
होली राधा श्याम की और न होली कोय
जो मन रांचे श्याम रंग, रंग चढ़े ना कोय
नंदग्राम की भीड़ में गुमे नंद के लाल
सारी माया एक है क्या मोहन क्या ग्वाल
आसमान टेसू हुआ धरती सब पुखराज
मन सारा केसर हुआ तन सारा ऋतुराज
बार बार का टोंकना बार बार मनुहार
धूम धुलेंडी गाँव भर आँगन भर त्योहार
फागुन बैठा देहरी कोठे चढ़ा गुलाल
होली टप्पा दादरा चैती सब चौपाल
सरसों पीली चूनरी उड़ी़ हवा के संग
नई धूप में खुल रहे मन के बाजूबंद
महानगर की व्यस्तता मौसम घोले भंग
इक दिन की आवारगी छुट्टी होली रंग
अंजुरी में भरपूर हों सदा रूप रस गंध
जीवन में अठखेलियाँ करता रहे बसंत।।।
...होली के पावन अवसर पर शुभकामनाएँ !!


होली वही जो  परिवार  को पास लाए,
होली  वही  जो  दोस्त  को साथ  लाए, 
होली  वही  जो  शत्रु को  मित्र  बनाए, 
होली  वही  जो  बुरी  आदतों  को  जलाए,
 होली  वही  जो सकारात्मक  विचार  लाए, 
होली  वही  जो  रंग  भी लगाए,  
होली वही  जो  पानी  भी  बचाए,
 होली  वही  जो  शिक्षा  का प्रकाश  फैलाए, 
होली  वही  जो  संकल्पों  की  याद  दिलाए, 
होली  वही  जो  मस्ती  में  रहकर  भी  
अपने  कर्तव्यों  का एहसास  दिलाए।
होली के पावन पर्व पर रंग भरी शुभकामनाये।

(ये सन्देश  वाट्सअप पर प्राप्त हुये, अच्छा लगा सो आप सभी के साथ शेयर कर रही हूँ)

रंगों के पर्व होली के शुभ अवसर पर आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएँ !! 

सोमवार, 21 मार्च 2016

'दैनिक नवज्योति' हिन्दी समाचार पत्र (राजस्थान) का अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर शर्मनाक कारनामा

''नारी तू नारायणी'' सुनना अच्छा लगता है, पर जब इसकी आड़ में नारी की रचनाधर्मिता पर ही चोट की जाय, तो बड़ा अजीब लगता है।  राजस्थान से प्रकाशित ''दैनिक नवज्योति'' अख़बार ने 8 मार्च 2016 को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हमारे एक आलेख ''बदलते दौर में महिला'' को भिन्न-भिन्न खण्डों में चोरी से कट-पेस्ट कर दूसरी महिलाओं  के नाम से प्रकाशित किया है। जिन महिलाओं  के नाम से इसे खण्डवार रूप में प्रकाशित किया गया है, उनके नाम हैं -शिवानी पुरोहित (कवयित्री व लेखिका), रुचिका शर्मा (व्याख्याता), संजू सोलंकी, अल्का बोहरा, इंजि मुक्ता चौधरी, कविता शर्मा (अध्यापिका), डा. मनोरमा उपाध्याय, प्राचार्य, महिला महाविद्यालय, शोभा सोनी (गृहिणी)। ''दैनिक नवज्योति'' समाचार पत्र के जोधपुर संस्करण में पृष्ठ संख्या 10 और 13 पर लेख के अधिकतर हिस्से को काट-छाँट कर इन महिलाओं के नाम से अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर प्रकाशित किया गया है। यह आलेख इंटरनेट पर भी उपलब्ध है और शायद इसीलिए इसके संपादक या संबंधित पेज  के संयोजक ने मेहनत करने की बजाय इसे सीधे कट-पेस्ट कर दूसरों  के नाम से प्रकाशित कर दिया। वाह रे ''अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस'' मनाने का अखबारी और कागजी जज्बा।  

समाचार पत्र का इतिहास खंगाला तो पता चला कि राजस्थान के स्वाधीनता सेनानी कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी जी  द्वारा संस्थापित दैनिक नवज्योति जयपुर, जोधपुर, अजमेर और कोटा, राजस्थान से प्रकाशित होने वाला एक दैनिक हिन्दी समाचार पत्र है। इसका प्रथम संस्करण 1936  में प्रकाशित हुआ था। ...... पता नहीं अब यह दैनिक समाचार पत्र कप्तान दुर्गाप्रसाद चौधरी जी की परम्परा को छोड़कर इस प्रकार की साहित्यिक और लेखकीय चौर्य वृत्ति को क्यों प्रवृत्त कर रहा है।  नाम तो नव ''ज्योति' पर दीपक तले अँधेरा वाली कहावत पूरी चरितार्थ कर रहा है। 


यह तो संयोग था कि एक साहित्यकार ने ही फोन द्वारा इस बात की तरफ हमारा ध्यान आकृष्ट किया ......पर वाकई ये शर्मनाक वाकया है। अपने पूरे लेख को यहाँ पोस्ट करने के साथ के साथ-साथ जिन अंशों को दैनिक नवज्योति ने दूसरी महिलाओं  के नाम से उद्धृत किया है, उन्हें बोल्ड भी कर रही हूँ ताकि प्रत्यक्षम् किम प्रमाणम् की तर्ज पर आप लोग भी नीर-क्षीर अवलोकन कर सकें। 

(हमारे इस आलेख को आप यहाँ पढ़ सकते हैं -   बदलते दौर में महिला

(इस पोस्ट का मूल उद्देश्य इंटरनेट पर ब्लॉग, वेब पत्रिकाओं जैसे तमाम माध्यमों पर लिख रहे रचनाकारों को सतर्क करना है, जिनकी रचनाओं को कुछेक चौर्य प्रवृत्ति वाले लोग कट-पेस्ट करके अपने या दूसरों के नाम से प्रकाशित कर रहे हैं।)



भारतीय संस्कृति में नारी को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। वह शिव भी है और शक्ति भी, तभी तो भारतीय संस्कृति में सनातन काल से अर्धनारीश्वर की कल्पना सटीक बैठती है। इतिहास गवाह है कि भारतीय समाज ने कभी मातृशक्ति के महत्व का आकलन कम नहीं किया और जब भी ऐसा करने की कोशिश की तो समाज में कुरीतियाँ और कमजोरियांँ ही पनपीं। हमारे वेद और ग्रंथ नारी शक्ति के योगदान से भरे पड़े हैं। विश्ववरा, अपाला, लोमशा, लोपामुद्रा तथा घोषा जैसी विदुषियों ने ऋग्वेद के अनेक सूक्तों की रचना करके और मैत्रेयी, गार्गी, अदिति इत्यादि विदुषियों ने अपने ज्ञान से तब के तत्वज्ञानी पुरूषों को कायल बना रखा था। नारी को आरंभ से ही सृजन, सम्मान और शक्ति का प्रतीक माना गया है। शास्त्र से लेकर साहित्य तक नारी की महत्ता को स्वीकार किया गया है- “यत्र नार्यस्तु पूजयन्ते, रमन्ते तत्र देवता।“ 
सिंधु संस्कृति में भी मातृदेवी की पूजा का प्रचलन परिलक्षित होता है। नारी का कार्यक्षेत्र न केवल घर बल्कि सारा संसार है। प्रकृति ने वंश वृद्धि की जो जिम्मेदारी नारी को दे रखी है, वह न केवल एक दायित्व है अपितु एक चमत्कार और अलौकिक सुख भी। इन सबके बीच नारी आरंभ से ही अपनी भूमिकाओं के प्रति सचेत रही है।




नारी को आरंभ से ही कोमलता, भावकुता, क्षमाशीलता, सहनशीलता की प्रतिमूर्ति माना जाता रहा है पर यही नारी आवश्यकता पड़ने पर रणचंडी बनने से भी परहेज नहीं करती क्योंकि वह जानती है कि यह कोमल भाव मात्र उन्हें सहानुभूति और सम्मान की नजरों से देख सकता है, पर समानांतर खड़ा होने के लिए अपने को एक मजबूत, स्वावलंबी, अटल स्तंभ बनाना ही होगा। इतिहास गवाह है कि आजादी के दौर में तमाम महिलाओं ने स्वतंत्रता-आंदोलन में बढ़-चढकर हिस्सा लिया। एक तरफ इन्होंने स्त्री-चेतना को प्रज्वलित किया, वहीं आजादी के आंदोलन में पुरुषों के साथ कंधा से कंधा मिलाकर आगे बढ़ीं। कईयों ने तो अपनी जान भी गँवा दी, फिर भी महिलाओं के हौसले कम नहीं हुए। रानी चेनम्मा, रानी लक्ष्मीबाई, झलकारीबाई, बेगम हजरत महल, ऊदा देवी जैसी तमाम वीरांगनाओं का उदाहरण हमारे सामने है, पर जब आजादी का ज्वार तेजी से फैला तो तमाम महिलाएं इसमें शामिल होती गईं। इस क्रम में सरोजिनी नायडू, सावित्रीबाई फुले, स्वामी श्रद्धानन्द की पुत्री वेद कुमारी और आज्ञावती, नेली सेनगुप्त, नागा रानी गुइंदाल्यू, प्रीतीलता वाडेयर, कल्पनादत्त, शान्ति घोष, सुनीति चौधरी, बीना दास, सुहासिनी अली, रेणुसेन, दुर्गा देवी बोहरा, सुशीला दीदी, अरुणा आसफ अली, सुचेता कृपलानी, ऊषा मेहता, कस्तूरबा गाँधी, डॉ0 सुशील नैयर, विजयलक्ष्मी पण्डित, कैप्टन लक्ष्मी सहगल, राजकुमारी अमृत कौर, इन्दिरा गाँधी, एनी बेसेंट, मैडम भीकाजी कामा, मारग्रेट नोबुल (भगिनी निवेदिता), मैडेलिन ‘मीरा बहन’ इत्यादि महिलाओं ने न सिर्फ आजादी बल्कि समानांतर रूप में नारी हकों की लड़ाई भी लड़ी। आखिर तभी तो महात्मा गाँधी ने कहा था कि-”भारत में ब्रिटिश राज मिनटों में समाप्त हो सकता है, बशर्ते भारत की महिलाएं ऐसा चाहें और इसकी आवश्यकता को समझें।“
आज नारी जीवन के हर क्षेत्र में कदम बढ़ा रही है। आज की नारी अपने कर्तव्यों को गृहकार्यों की इतिश्री ही नहीं समझती है, अपितु अपने सामाजिक दायित्वों के प्रति भी सजग है। वह अब स्वयं के प्रति सचेत होते हुए अपने अधिकारों के प्रति आवाज उठाने का माद्दा रखती है। कोई सिर्फ यह कहकर उनके आत्मविश्वास को तनिक भी नहीं हिला सकता कि वह एक ‘नारी‘ है। शिक्षा के चलते नारी जागरूक हुई और इस जागरूकता ने नारी के कार्यक्षेत्र की सीमा को घर की चहरदीवारी से बाहर की दुनिया तक फैला दिया। शिक्षा के बढ़ते प्रभाव के चलते आज नारी भी अपने कैरियर के प्रति संजीदा है। इससे जहाँ नारी अपने पैरों पर खड़ी हो सकी, वहीं आर्थिक आत्मनिर्भरता ने उसे रचनात्मक कार्यों हेतु भी प्रेरित किया। आज जरूरत इस बात की भी है कि जी.डी.पी. में महिलाओं के कार्य की गणना हो और घरेलू कार्यों को हवा में न उड़ाया जाय। इस अवधारणा को बदलने की जरुरत है कि बच्चों का लालन-पोषण और गृहस्थी चलाना सिर्फ नारी का काम है। यह एक पारस्परिक जिम्मेदारी है, जिसे पति-पत्नी दोनों को उठाना चाहिए। इस बदलाव का कारण महिलाओं में आई जागरूकता है, जिसके चलते महिलायें अपने को दोयम नहीं मानतीं और कैरियर के साथ-साथ पारिवारिक-सामाजिक परम्पराओं के क्षेत्र में भी बराबरी का हक चाहती हैं।

एक तरफ लड़कियाँ हाईस्कूल व इंटर की परीक्षाओं में बाजी मार रही हैं, वहीं तमाम प्रतियोगी परीक्षाओं के साथ देश की सर्वाधिक प्रतिष्ठित सिविल सेवाओं में भी उनका नाम हर साल बखूबी जगमगा रहा है।


अब जागरूक नारी समाज की अवहेलना करना आसान नहीं रहा। आज एक महिला घर में अकेले जितना कार्य करती है, उसका मोल कोई नहीं समझता। पुरुष इसे महिला की ड्यूटी मानकर निश्चिन्त हो जाता है। यह उस स्थिति में भी है जबकि महिला भी कमा रही होती है।




वक्त के साथ नारी का स्वभाव और चरित्र भी बदला है एवं अपने अधिकारों के प्रति वह बखूबी जागरूक हुई है। राजनीति, प्रशासन, समाज, उद्योग, व्यवसाय, विज्ञान-प्रौद्योगिकी, फिल्म, संगीत, साहित्य, मीडिया, चिकित्सा, इंजीनियरिंग, वकालत, कला-संस्कृति, शिक्षा, आई॰ टी॰, खेल-कूद, सैन्य से लेकर अंतरिक्ष तक नारी ने छलांग लगाई है। नारी की नाजुक शारीरिक संरचना के कारण यह माना जाता रहा है कि वे सुरक्षा जैसे कार्यों का निर्वहन नहीं कर सकतीं। पर बदलते वक्त के साथ यह मिथक टूटा है। महिलाएं आज पुलिस, सेना, और अर्द्वसैनिक बलों में बेहतरीन तैनाती पा रही हैं। यही नहीं श्मशान में जाकर आग देने से लेकर महिलाएं वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच पुरोहिती का कार्य करती हैं और विवाह के साथ-साथ शांति यज्ञ, गृह प्रवेश, मंुडन, नामकरण और यज्ञोपवीत भी करा रही हैं। वस्तुतः समाज की यह पारंपरिक सोच कि महिलाओं के जीवन का अधिकांश हिस्सा घर-परिवार के मध्य व्यतीत हो जाता है और बाहरी जीवन से संतुलन बनाने में उन्हें समस्या आएगी, बेहद दकियानूसी लगती है। रुढ़ियों को धता बताकर महिलाएं जमीं से लेकर अंतरिक्ष तक हर क्षेत्र में नित नई नजीर स्थापित कर रही हैं। कल्पना चावला व सुनीता विलियम्स ने तो अंतरिक्ष तक की सैर की। पंचायतों में मिले आरक्षण का उपयोग करते हुए नारी जहाँ नए आयाम रच रही है, वहीं विधायिका, कार्यपालिका एवं न्यायपालिका में भी महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ा है। आज देश की राष्ट्रपति, लोकसभा की अध्यक्ष, विपक्ष की नेता, सत्ताधारी कांग्रेस की अध्यक्ष, सर्वाधिक शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका में भारत की राजदूत से लेकर तीन राज्यों की मुख्यमंत्री रूप में महिला पदासीन हैं तो यह नारी सशक्तीकरण का ही उदाहरण है। 
महिलाओं को सम्पत्ति में बेटे के बराबर हक देने हेतु हिन्दू उत्तराधिकार अधिनियम में संशोधन, घरेलू महिला हिंसा अधिनियम, सार्वजनिक जगहों पर यौन उत्पीड़न के विरूद्ध नियम एवं लैंंगिक भेदभाव के विरूद्ध उठती आवाज नारी को मुखर कर रही है। दहेज प्रथा, कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह, शराबखोरी, लिंग विभेद जैसी तमाम बुराईयों के विरुद्ध नारी आगे आ रही है और दहेज लोभियों को बैरंग लौटाने, और शराब के ठेकों को बंद कराने जैसी कदमों को प्रोत्साहित कर रही है। ये सभी घटनाएं अधिकारों से वंचित नारी की उद्धिग्नता को प्रतिबिंबित कर रही हैं। आज वह स्वयं को सामाजिक पटल पर दृढ़ता से स्थापित करने को व्याकुल है। 

शर्मायी-सकुचायी सी खड़ी महिला अब रुढ़िवादिता के बंधनों को तोड़कर अपने अस्तित्व का आभास कराना चाहती है। वर्तमान समय में नारी अपनी सम्पूर्णता को पाने की राह पर निरंतर बढ़ रही है, ताकि समाज के नारी विषयक अधूरे ज्ञान को अपने आत्मविश्वास की लौ से प्रकाशित कर सके।
नारी की जागरूकता ने नारी को अपनी अभिव्यक्तियों के विस्तार का सुनहरा मौका भी दिया है। साहित्य व लेखन के क्षेत्र में भी नारी का प्रभाव बढ़ा है। सरोजिनी नायडू, महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमारी चौहान, साहित्य अकादमी पुरस्कार विजेता (1956) प्रथम महिला साहित्यकार अमृता प्रीतम, प्रथम भारतीय ज्ञानपीठ महिला विजेता (1976) आशापूर्णा देवी, इस्मत चुगतई, शिवानी, चंद्रकांता, कुर्रतुल हैदर, महाश्वेता देवी, मन्नू भंडारी, मैत्रेयी पुष्पा, प्रभा खेतान, ममता कलिया, मृणाल पाण्डे, चित्रा मुदगल, कृष्णा सोबती, निर्मला जैन, उषा प्रियंवदा, मृदुला गर्ग, राजी सेठ, पुष्पा भारती, नासिरा शर्मा, सूर्यबाला, सुनीता जैन, रमणिका गुप्ता, अलका सरावगी, मालती जोशी, डॉ० कृष्णा अग्निहोत्री, मेहरुन्निसा परवेज, ज्योत्सना मिलन, डॉ० सरोजनी प्रीतम, गगन गिल, सुषम बेदी, पद्मा सचदेव, क्षमा शर्मा, अनामिका, अरुधंती राय इत्यादि नामों की एक लंबी सूची है, जिन्होंने साहित्य की विभिन्न विधाओं को ऊँचाईयों तक पहुँचाया। उनका साहित्य आधुनिक जीवन की जटिल परिस्थितियों को अपने में समेटे, समय के साथ परिवर्तित होते मानवीय सम्बन्धों का जीता-जागता दस्तावेज है। भारतीय समाज की सांस्कृतिक और दार्शनिक बुनियादों को समकालीन परिप्रेक्ष्य में विश्लेषित करते हुये उन्होंने अपनी वैविध्यपूर्ण रचनाशीलता का एक ऐसा आकर्षक, भव्य और गम्भीर संसार निर्मित किया, जिसका चमत्कार सारे साहित्यिक जगत महसूस करता है।
साहित्य के माध्यम से नारी ने जहाँ पुराने समय से चली आ रही कु-प्रथाओं पर चोट किया, वहीं समाज को नए विचार भी दिए। अपनी विशिष्ट पहचान के साथ नारी साहित्यिक व सांस्कृतिक गरिमा को नई ऊँचाईयाँ दे रही है। उसके लिये चीजें जिस रूप में वाह्य स्तर पर दिखती हैं, सिर्फ वही सच नहीं होतीं बल्कि उनके पीछे छिपे तत्वों को भी वह बखूबी समझती है। साहित्य व लेखन के क्षेत्र में सत्य अब स्पष्ट रूप से सामने आ रहा है। समस्यायें नये रूप में सामने आ रही हैं और उन समस्याओं के समाधान में नारी साहित्यकार का दृष्टिकोण उन प्रताड़नाओं के यथार्थवादी चित्रांकन से भिन्न समाधान की दशाओं के निरूपण की मंजिल की ओर चल पड़ा है। जहाँ कुछ पुरुष साहित्यकारों ने नारी-लेखन के नाम पर उसे परिवार की चहरदीवारियों में समेट दिया या ‘देह‘ को सैंडविच की तरह इस्तेमाल किया, वहाँ ‘नारी विमर्श‘ ने नए अध्याय खोले हैं। अस्तित्ववादी विचारों की पोषक सीमोन डी बुआ ने ‘सेकेण्ड सेक्स’ में स्त्रियों के विरूद्ध होने वाले अत्याचारों और अन्यायों का विश्लेषण करते हुए लिखा था कि-“पुरूष ने स्वयं को विशुद्ध चित्त (ठमपदह.वित. पजेमस िरू स्वयं में सत्) के रूप में परिभाषित किया है और स्त्रियों की स्थिति का अवमूल्यन करते हुए उन्हें “अन्य” के रूप में परिभाषित किया है व इस प्रकार स्त्रियों को “वस्तु” रूप में निरूपित किया गया है।’’ ऐसे में स्त्री की यौनिकता पर चोट करने वालों को नारी साहित्यकारों ने करारा जवाब दिया है। वे नारी देह की बजाय उसके दिमाग पर जोर देती हैं। उनका मानना है कि दिमाग पर बात आते ही नारी पुरुष के समक्ष खड़ी दिखायी देती है, जो कि पुरुषों को बर्दाश्त नहीं। इसी कारण पुरुष नारी को सिर्फ देह तक सीमित रखकर उसे गुलाम बनाये रखना चाहता है। यहाँ पर अमृता प्रीतम की रचना ष्दिल्ली की गलियाँष् याद आती है, जब कामिनी नासिर की पेंटिग देखने जाती है तो कहती है-श्तुमने वूमेन विद फ्लॉवर, वूमेन विद ब्यूटी या वूमेन विद मिरर को तो बड़ी खूबसूरती से बनाया पर वूमेन विद माइंड बनाने से क्यों रह गए।श् निश्चिततः यह कथ्य पुरुष वर्ग की उस मानसिकता को दर्शाता है जो नारी को सिर्फ भावों का पुंज समझता है, एक समग्र व्यक्तित्व नहीं। नारी को ‘मर्दवादी यौनिकता’ से परे एक स्वतंत्र व समग्र व्यक्तित्व के रुप में देखने की जरुरत है। कभी रोती-बिलखती और परिस्थितियों से हर पल समझौता कर अपना ‘स्व‘ मिटाने को मजबूर नारी आज की कविता, कहानी, उपन्यासों में अपना ‘स्व‘ न सिर्फ तलाश रही हैं, बल्कि उसे ऊँचाईयों पर ले जाकर नए आयाम भी दे रही है। उसका लेखन परम्पराओं, विमर्शों, विविध रूचियों एवं विशद अध्ययन को लेकर अंततः संवेदनशील लेखन में बदल जाता है।
वर्तमान दौर में नारी का चेहरा बदला है। नारी पूज्या नहीं समानता के स्तर पर व्यवहार चाहती है। सदियों से समाज ने नारी को पूज्या बनाकर उसकी देह को आभूषणों से लाद कर एवं आदर्शों की परंपरागत घुट्टी पिलाकर उसके दिमाग को कुंद करने का कार्य किया, पर नारी आज कल्पना चावला, सुनीता विलियम्स, पी0टी0 उषा, किरण बेदी, कंचन चौधरी भट्टाचार्य, इंदिरा नूई, शिखा शर्मा, किरण मजूमदार शॉ, वंदना शिवा, चंदा कोचर, ऐश्वर्या राय, सुष्मिता सेन, फ्लाइंग ऑफिसर सुषमा मुखोपाध्याय, कैप्टन दुर्गा बैनर्जी, ले0 जनरल पुनीता अरोड़ा, सायना नेहवाल, संतोष यादव, निरुपमा राव, कृष्णा पूनिया, कुंजारानी देवी, इरोम शर्मिला, मेघा पाटेकर, अरुणा राय, जैसी शक्ति बनकर समाज को नई राह दिखा रही है और वैश्विक स्तर पर नाम रोशन कर रही हैं। नारी की शिक्षा-दीक्षा और व्यक्तित्व विकास के क्षितिज दिनों-ब-दिन खुलते जा रहे हैं, जिससे तमाम नए-नए क्षेत्रों का विस्तार हो रहा हैं। कभी अरस्तू ने कहा कि -“स्त्रियाँ कुछ निश्चित गुणों के अभाव के कारण स्त्रियाँ हैं” तो संत थॉमस ने स्त्रियों को “अपूर्ण पुरूष” की संज्ञा दी थी, पर वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ऐसे तमाम सतही सिद्वान्तों का कोई अर्थ नहीं रह गया एवं नारी अपनी जीवटता के दम पर स्वयं को विशुद्ध चित्त (ठमपदह.वित. पजेमस िरू स्वयं में सत् ) के रूप में देख रही है। नारी आज न सिर्फ सशक्त हो रही है, बल्कि लोगों को भी सशक्त बना रही है। इस बात को अंततः स्वीकार करने की जरुरत है कि नारी को बढ़ावा देकर न सिर्फ नारी समृद्ध होगी बल्कि अंततः परिवार, समाज और राष्ट्र भी सशक्त और समृद्ध बनेंगे। नारी उत्कर्ष आज सिर्फ एक जरूरत नहीं बल्कि विकास और प्रगति का अनिवार्य तत्व है।
http://shabdshikhar.blogspot.com/

रविवार, 20 मार्च 2016

''विश्व गौरेया दिवस' पर विशेष : लौट आओ नन्ही गौरेया


याद कीजियेअंतिम बार आपने गौरैया को अपने आंगन या आसपास कब चीं-चीं करते देखा था। कब वो आपके पैरों के पास फुदक कर उड़ गई थी। सवाल जटिल हैपर जवाब तो देना ही पड़ेगा। गौरैया व तमाम पक्षी हमारी संस्कृति और परंपराओं का हिस्सा रहे हैंलोकजीवन में इनसे जुड़ी कहानियां व गीत लोक साहित्य में देखने-सुनने को मिलते हैं। कभी सुबह की पहली किरण के साथ घर की दालानों में ढेरों गौरैया के झुंड अपनी चहक से सुबह को खुशगंवार बना देते थे। नन्ही गौरैया के सानिध्य भर से बच्चों को चेहरे पर मुस्कान खिल उठती थी, पर अब वही नन्ही गौरैया विलुप्त होती पक्षियों में शामिल हो चुकी है और उसका कारण भी हमीं ही हैं। गौरैया का कम होना संक्रमण वाली बीमारियों और परिस्थितिकी तंत्र बदलाव का संकेत है। बीते कुछ सालों से बढ़ते शहरीकरणरहन-सहन में बदलावमोबाइल टॉवरों से निकलने वाले रेडिएशनहरियाली कम होने जैसे कई कारणों से गौरैया की संख्या कम होती जा रही है।
बचपन में घर के बड़ों द्वारा चिड़ियों के लिए दाना-पानी रखने की हिदायत सुनी थीपर अब तो हमें उसकी फिक्र ही नहीं। नन्ही परी गौरैया अब कम ही नजर आती है। दिखे भी कैसेहमने उसके घर ही नहीं छीन लिए बल्कि उसकी मौत का इंतजाम भी कर दिया। हरियाली खत्म कर कंक्रीट के जंगल खड़े किएखेतों में कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल कर उसका कुदरती भोजन खत्म कर दिया और अब मोबाइल टावरों से उनकी जान लेने पर तुले हुए हैं। फिर क्यों गौरैया हमारे आंगन में फुदकेगीक्यों वह मां के हाथ की अनाज की थाली से अधिकार के साथ दाना चुराएगी?
कुछेक साल पहले तक गौरेया घर-परिवार का एक अहम हिस्सा होती थी। घर के आंगन में फुदकती गौरैयाउनके पीछे नन्हे-नन्हे कदमों से भागते बच्चे। अनाज साफ करती मां के पहलू में दुबक कर नन्हे परिंदों का दाना चुगना और और फिर फुर्र से उड़कर झरोखों में बैठ जाना। ये नजारे अब नगरों में ही नहीं गांवों में भी नहीं दिखाई देते।
भौतिकवादी जीवन शैली ने बहुत कुछ बदल दिया है। फसलों में कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से परिंदों की दुनिया ही उजड़ गई है। गौरैया का भोजन अनाज के दाने और मुलायम कीड़े हैं। गौरैया के चूजे तो केवल कीड़ों के लार्वा खाकर ही जीते हैं। कीटनाशकों से कीड़ों के लार्वा मर जाते हैं। ऐसे में चूजों के लिए तो भोजन ही खत्म हो गया है। फिर गौरैया कहाँ से आयेगी ?
गौरैया आम तौर पर पेड़ों पर अपने घोंसले बनाती है। पर अब तो वृक्षों की अंधाधुंध कटाई के चलते पेड़-पौधे लगातार कम होते जा रहे हैं। गौरैया घर के झरोखों में भी घोंसले बना लेती है। अब घरों में झरोखे ही नहीं तो गौरैया घोंसला कहां बनाए। मोबाइल टावर से निकलने वाली तरंगेंअनलेडेड पेट्रोल के इस्तेमाल से निकलने वाली जहरीली गैस भी गौरैयों और अन्य परिंदों के लिए जानलेवा साबित हो रही है। ऐसे में गौरैया की घटती संख्या पर्यावरण प्रेमियों के लिए चिंता और चिंतन दोनों का विषय है। इधर कुछ वर्षों से पक्षी वैज्ञानिकों एंव सरंक्षणवादियों का ध्यान घट रही गौरैया की तरफ़ गया। नतीजतन इसके अध्ययन व सरंक्षण की बात शुरू हुईजैसे की पूर्व में गिद्धों व सारस के लिए हुआ। गौरैया के संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करने हेतु तमाम कदम उठाये जा रहे हैं।

जैव-विविधता के संरक्षण के लिए भी गौरैया का होना निहायत जरुरी है। हॉउस स्पैरो के नाम से मशहूर गौरैया परिवार की चिड़िया हैजो विश्व के अधिकांशत: भागों में पाई जाती है। इसके अलावा सोमालीसैक्सुएलस्पेनिशइटेलियनग्रेटपेगुडैड सी स्पैरो इसके अन्य प्रकार हैं। भारत में असम घाटीदक्षिणी असम के निचले पहाड़ी इलाकों के अलावा सिक्किम और देश के प्रायद्वीपीय भागों में बहुतायत से पाई जाती है। गौरैया पूरे वर्ष प्रजनन करती हैविशेषत: अप्रैल से अगस्त तक। दो से पांच अंडे वह एक दिन में अलग-अलग अंतराल पर देती है। नर और मादा दोनों मिलकर अंडे की देखभाल करते हैं। अनाजबीजोंबैरीफलचैरी के अलावा बीटल्सकैटरपीलर्सदिपंखी कीटसाफ्लाइबग्स के साथ ही कोवाही फूल का रस उसके भोजन में शामिल होते हैं। गौरैया आठ से दस फीट की ऊंचाई परघरों की दरारों और छेदों के अलावा छोटी झाड़ियों में अपना घोसला बनाती हैं।
गौरैया को बचाने के लिए भारत की 'नेचर्स फोरएवर सोसायटी ऑफ इंडियाऔर 'इको सिस एक्शन फाउंडेशन फ्रांसके साथ ही अन्य तमाम अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने मिलकर 20 मार्च को 'विश्व गौरैया दिवसमनाने की घोषणा की और वर्ष 2010 में पहली बार 'विश्व गौरैया दिवसमनाया गया। इस दिन को गौरैया के अस्तित्व और उसके सम्मान में रेड लेटर डे (अति महत्वपूर्ण दिन) भी कहा गया। इसी क्रम में भारतीय डाक विभाग ने जुलाई 2010 को गौरैया पर डाक टिकट जारी किए। कम होती गौरैया की संख्या को देखते हुए अक्टूबर 2012 में दिल्ली सरकार ने इसे राज्य पक्षी घोषित किया। वहीं गौरैया के संरक्षण के लिए 'बम्बई नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटीने इंडियन बर्ड कंजरवेशन नेटवर्क के तहत ऑन लाइन सर्वे भी आरंभ किया हुआ है। कई एनजीओ गौरैया को सहेजने की मुहिम में जुट गए हैंताकि इस बेहतरीन पक्षी की प्रजातियों से आने वाली पीढियाँ भी रूबरू हो सके। देश के ग्रामीण क्षेत्र में गौरैया बचाओ के अभियान के बारे जागरूकता फैलाने के लिए रेडियोसमाचारपत्रों का उपयोग किया जा रहा है। कुछेक संस्थाएं गौरैया के लिए घोंसले बनाने के लिए भी आगे आई हैं। इसके तहत हरे नारियल में छेद करअख़बार से नमी सोखकर उस पर कूलर की घास लगाकर बच्चों को घोसला बनाने का हुनर सिखाया जा रहा है । ये घोसले पेड़ों के वी शेप वाली जगह पर गौरैया के लिए लगाए जा रहे हैं।
वाकई आज समय की जरुरत है कि गौरैया के संरक्षण के लिए हम अपने स्तर पर ही प्रयास करें। कुछेक पहलें गौरैया को फिर से वापस ला सकती हैं। मसलनघरों में कुछ ऐसे झरोखे रखेंजहां गौरैया घोंसले बना सकें। छत और आंगन पर अनाज के दाने बिखेरने के साथ-साथ गर्मियों में अपने घरों के पास पक्षियों के पीने के लिए पानी रखनेउन्हें आकर्षित करने हेतु आंगन और छतों पर पौधे लगाने, जल चढ़ाने में चावल के दाने डालने की परंपरा जैसे कदम भी इस नन्ही पक्षी को सलामत रख सकते हैं। इसके अलावा जिनके घरों में गौरैया ने अपने घोसलें बनाए हैंउन्हें नहीं तोड़ने के संबंध में आग्रह किया जा सकता है। फसलों में कीटनाशकों का उपयोग नहीं करने और वाहनों में अनलेडेड पेट्रोल का इस्तेमाल न करने जैसी पहलें भी आवश्यक हैं।

गौरैया सिर्फ एक चिड़िया का नाम नहीं हैबल्कि हमारे परिवेशसाहित्यकलासंस्कृति से भी उसका अभिन्न सम्बन्ध रहा है। आज भी बच्चों को चिड़िया के रूप में पहला नाम गौरैया का ही बताया जाता है। साहित्यकला के कई पक्ष इस नन्ही गौरैया को सहेजते हैंउसके साथ तादात्म्य स्थापित करते हैं। गौरैया की कहानीबड़ों की जुबानी सुनते-सुनते आज उसे हमने विलुप्त पक्षियों में खड़ा कर दिया है। नई पीढ़ी गौरैया और उसकी चीं-चीं को इंटरनेट पर खंगालती नजर आती हैऐसा लगता है जैसे गौरैया रूठकर कहीं दूर चली गई हो। जरुरत है कि गौरैया को हम मनाएँउसके जीवनयापन के लिए प्रबंध करें और एक बार फिर से उसे अपनी जीवन-शैली में शामिल करेंताकि हमारे बच्चे उसके साथ किलकारी मार सकें और वह उनके साथ फुदक सके !!

आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 
Akanksha Yadav @ http://shabdshikhar.blogspot.com/
(साभार : डेली न्यूज एक्टिविस्ट, लखनऊ, 19  मार्च 2016) 


(साभार : दैनिक युगपक्ष, बीकानेर, 20 मार्च 2016) 

मंगलवार, 8 मार्च 2016

मिलिए ब्लॉगिंग क्वीन्स से


किसी ने सोचा नहीं होगा कि ब्लाॅगिंग या चिट्ठाकारी भी शोहरत और दौलत दिला सकती है, लेकिन अब ऐसा हकीकत में हो रहा है। केवल एक ब्लाॅग आपको ब्लाॅगिंग किंग या क्वीन बना सकता है। ब्लाॅगिंग में जहाँ पुरूष सक्रिय हैं, वही महिलाएं भी अब इसमें नाम व धन कमा रही हैं। महिलाएं कुकिंग, लाइफस्टाइल, इंटीरियर, फैशन, बाॅलीवुड, इंस्पिरेशनल आदि कई तरह के ब्लाॅग्स के जरिए प्रसिद्धि पा रही हैं और उन्होंने इसे कैरियर बना लिया है, जो उन्हें शोहरत की बुलंदियों पर पहुंचा रहा है। आइए मिलते हैं कुछ ऐसी ही महिला ब्लाॅगर्स से.......

सबसे कम उम्र की ब्लाॅगर : अक्षिता यादव

25 मार्च 2007 को कानपुर में जन्मी पाखी यानी अक्षिता यादव भारत की सबसे कम उम्र की ब्लाॅगर के रूप में राष्ट्रीय बाल पुरस्कार विजेता का सम्मान पा चुकी हैं । अक्षिता की ब्लाॅगर मां ने 24 जून 2009 को पाखी की दुनिया (http://www.pakhi-akshita.blogspot.in)  नाम से अक्षिता का ब्लाॅग बनाया। इस ब्लाॅग पर तमाम प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई और 100 से ज्यादा देशों में इसे देखा-पढ़ा जाता है। अक्षिता और उसका ब्लाॅग पाखी की दुनिया फेसबुक (https://www.facebook.com/AkshitaaSingh) पर भी उपलब्ध है। 

ब्लाॅगिंग को दे रहीं नए मुकाम : आकांक्षा यादव

एक साहित्यकार और ब्लाॅगर है आकांक्षा । वह मूलतः उत्तर प्रदेश  की हैं  लेकिन राजस्थान से भी उनका नाता है। उन्हें हिन्दी में ब्लाॅग लिखने वाली शुरूआती महिलाओं में गिना जाता है। इनके ब्लाॅग को अब तक लाखों लागों ने पढ़ा है और करीब सौ से ज्यादा देशों में इन्हें देखा-पढ़ा जाता है। उनके ब्लाॅग 'शब्द-शिखर' (http://shabdshikhar.blogspot.com) को वर्ष 2015 में हिन्दी का सबसे लोकप्रिय ब्लाॅग चुना गया।

प्रस्तुति : मधुलिका सिंह 

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'अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस' पर राजस्थान पत्रिका (8 मार्च, 2016) में 'मिलिए ब्लॉगिंग क्वीन्स से' के तहत हमारी चर्चा - सबसे कम उम्र की ब्लॉगर : अक्षिता यादव और ब्लॉगिंग को दे रहीं नए मुकाम : आकांक्षा यादव .... आभार !!

Courtesy : http://epaper.patrika.com/742854/Pariwar/08-03-2016#dual/4/1

सोमवार, 7 मार्च 2016

'अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस' और शिव का अर्द्धनारीश्वर रूप

 यह अजीब संयोग है कि 'अन्तर्राष्ट्रीय महिला दिवस' से ठीक एक दिन पूर्व 'महाशिवरात्रि' का पर्व है। ऐसी मान्यता  है कि इसी दिन भगवान शिव का विवाह हुआ था। भगवान शिव का एक रूप अर्धनारीश्वर का भी है। पुरुष (शिव) एवं स्त्री (शक्ति) का एका होने के कारण शिव नर भी हैं और नारी भी, अतः वे अर्धनरनारीश्वर हैं।

जब ब्रह्मा ने सृजन का कार्य आरंभ किया तब उन्होंने पाया कि उनकी रचनायें अपने जीवनोपरांत नष्ट हो जायंगी तथा हर बार उन्हें नए सिरे से सृजन करना होगा। गहन विचार के उपरांत भी वो किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँच पाये। तब समस्या सामाधान हेतु वे शिव की शरण में पहुँचे। उन्होंने शिव को प्रसन्न करने हेतु कठोर तप किया। ब्रह्मा की कठोर तप से शिव प्रसन्न हुए। ब्रह्मा की समस्या के समाधान हेतु भगवान शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रकट हुए। अर्ध भाग में वे शिव थे तथा अर्ध में शिवा। अपने इस स्वरूप से शिव ने ब्रह्मा को प्रजननशील प्राणी के सृजन की प्रेरणा प्रदान की। साथ ही साथ उन्होंने पुरूष एवं स्त्री के समान महत्व का भी उपदेश दिया। 

शक्ति शिव की अविभाज्य अंग हैं। शिव नर के प्रतीक हैं तो शक्ति नारी की। वे एक दूसरे के पूरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव अकर्ता हैं। वो संकल्प मात्र करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी करती हैं।

 ..... आप सभी को ''महाशिवरात्रि'' और ''अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस'' की हार्दिक शुभकामनाएँ !!

आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 
Akanksha Yadav @ www.shabdshikhar.blogspot.com