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मंगलवार, 13 दिसंबर 2016

नारी विमर्श के सवालों को उठाती पुस्तक "आधी आबादी के सरोकार"

नारी विमर्श आधुनिक समाज और साहित्य में एक ज्वलंत मुद्दा है। कभी हाशिये पर खड़ी स्त्री और कभी नेतृत्व के नए प्रतिमान गढ़ती, शायद इन दोनों के बीच ही कहीं आज का नारी विमर्श खड़ा है। नारी-सशक्तिकरण आज के दौर की एक सच्चाई है, पर इसका सामान्यीकरण नहीं किया जा सकता। आज भी नारी अपने अस्तित्व और अस्मिता के लिए तमाम प्रतिरोधों के बीच संघर्षरत है। गुलाबी सपनों के बीच आसमां को छूने की हसरत लिए 21वीं सदी की लड़कियाँ तमाम दकियानूसी परम्पराओं  और रूढ़ियों से टकराती नज़र आती हैं। ऐसे ही तमाम विषयों को उठाती मेरी पुस्तक "आधी आबादी के सरोकार" (लेखिका -आकांक्षा यादव) शीघ्र ही हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद से प्रकाशित होकर आने वाली है।  इसके लिए कवर पेज का रेखांकन प्रसिद्ध चित्रकार डॉ. लाल रत्नाकर ने किया है। फ़िलहाल, इस पोस्ट में  डॉ. लाल रत्नाकर के बनाये तमाम चित्रों और उनसे सुसज्जित आवरण पृष्ठ को आप सभी के साथ साझा करते हुए ख़ुशी का अनुभव हो रहा है। इनमें से ही किसी एक का उपयोग "आधी आबादी के सरोकार"  पुस्तक के लिए किया जायेगा !






(आधी आबादी के सरोकार : आकांक्षा यादव)