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गुरुवार, 18 नवंबर 2010

खूब लड़ी मरदानी, अरे झांसी वारी रानी (जन्मतिथि 19 नवम्बर पर विशेष)

स्वतंत्रता और स्वाधीनता प्राणिमात्र का जन्मसिद्ध अधिकार है। इसी से आत्मसम्मान और आत्मउत्कर्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। भारतीय राष्ट्रीयता को दीर्घावधि विदेशी शासन और सत्ता की कुटिल-उपनिवेशवादी नीतियों के चलते परतंत्रता का दंश झेलने को मजबूर होना पड़ा था और जब इस क्रूरतम कृत्यों से भरी अपमानजनक स्थिति की चरम सीमा हो गई तब जनमानस उद्वेलित हो उठा था। अपनी राजनैतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक पराधीनता से मुक्ति के लिए क्रान्ति यज्ञ की बलिवेदी पर अनेक राष्ट्रभक्तों ने तन-मन जीवन अर्पित कर दिया था।

क्रान्ति की ज्वाला सिर्फ पुरुषों को ही नहीं आकृष्ट करती बल्कि वीरांगनाओं को भी उसी आवेग से आकृष्ट करती है। भारत में सदैव से नारी को श्रद्धा की देवी माना गया है, पर यही नारी जरूरत पड़ने पर चंडी बनने से परहेज नहीं करती। ‘स्त्रियों की दुनिया घर के भीतर है, शासन-सूत्र का सहज स्वामी तो पुरूष ही है‘ अथवा ‘शासन व समर से स्त्रियों का सरोकार नहीं‘ जैसी तमाम पुरूषवादी स्थापनाओं को ध्वस्त करती इन वीरांगनाओं के बिना स्वाधीनता की दास्तान अधूरी है, जिन्होंने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिया। 1857 की क्रान्ति में जहाँ रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, बेगम जीनत महल, रानी अवन्तीबाई, रानी राजेश्वरी देवी, झलकारी बाई, ऊदा देवी, अजीजनबाई जैसी वीरांगनाओं ने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिये, वहीं 1857 के बाद अनवरत चले स्वाधीनता आन्दोलन में भी नारियों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। इन वीरांगनाओं में से अधिकतर की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे किसी रजवाड़े में पैदा नहीं हुईं बल्कि अपनी योग्यता की बदौलत उच्चतर मुकाम तक पहुँचीं।

1857 की क्रान्ति की अनुगूँज में जिस वीरांगना का नाम प्रमुखता से लिया जाता है, वह झांसी में क्रान्ति का नेतृत्व करने वाली रानी लक्ष्मीबाई हैं। 19 नवम्बर 1835 को बनारस में मोरोपंत तांबे व भगीरथी बाई की पुत्री रूप मे लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था, पर प्यार से लोग उन्हंे मनु कहकर पुकारते थें। काशी में रानी लक्ष्मीबाई के जन्म पर प्रथम वीरांगना रानी चेनम्मा को याद करना लाजिमी है। 1824 में कित्तूर (कर्नाटक) की रानी चेनम्मा ने अंगेजों को मार भगाने के लिए ’फिरंगियों भारत छोड़ो’ की ध्वनि गुंजित की थी और रणचण्डी का रूप धर कर अपने अदम्य साहस व फौलादी संकल्प की बदौलत अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये थे। कहते हैं कि मृत्यु से पूर्व रानी चेनम्मा काशीवास करना चाहती थीं पर उनकी यह चाह पूरी न हो सकी थी। यह संयोग ही था कि रानी चेनम्मा की मौत के 6 साल बाद काशी में ही लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ।

बचपन में ही लक्ष्मीबाई अपने पिता के साथ बिठूर आ गईं। वस्तुतः 1818 में तृतीय मराठा युद्ध में अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय की पराजय पश्चात उनको 8 लाख रूपये की वार्षिक पंेशन मुकर्रर कर बिठूर भेज दिया गया। पेशवा बाजीराव द्वितीय के साथ उनके सरदार मोरोपंत तांबे भी अपनी पुत्री लक्ष्मीबाई के साथ बिठूर आ गये। लक्ष्मीबाई का बचपन नाना साहब के साथ कानपुर के बिठूर में ही बीता। लक्ष्मीबाई की शादी झांसी के राजा गंगाधर राव से हुई। 1853 में अपने पति राजा गंगाधर राव की मौत पश्चात् रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी का शासन सँभाला पर अंग्रेजों ने उन्हें और उनके दत्तक पुत्र को शासक मानने से इन्कार कर दिया। अंग्रेजी सरकार ने रानी लक्ष्मीबाई को पांच हजार रूपये मासिक पेंशन लेने को कहा पर महारानी ने इसे लेने से मना कर दिया। पर बाद में उन्होंने इसे लेना स्वीकार किया तो अंग्रेजी हुकूमत ने यह शर्त जोड़ दी कि उन्हें अपने स्वर्गीय पति के कर्ज को भी इसी पेंशन से अदा करना पड़ेगा, अन्यथा यह पेंशन नहीं मिलेगी। इतना सुनते ही महारानी का स्वाभिमान ललकार उठा और अंग्रेजी हुकूमत को उन्होंने संदेश भिजवाया कि जब मेरे पति का उत्तराधिकारी न मुझे माना गया और न ही मेरे पुत्र को, तो फिर इस कर्ज के उत्तराधिकारी हम कैसे हो सकते हैं। उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को स्पष्टतया बता दिया कि कर्ज अदा करने की बारी अब अंग्रेजों की है न कि भारतीयों की। इसके बाद घुड़सवारी व हथियार चलाने में माहिर रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश सेना को कड़ी टक्कर देने की तैयारी आरंभ कर दी और उद्घोषणा की कि-‘‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।”

रानी लक्ष्मीबाई द्वारा गठित सैनिक दल में तमाम महिलायें शामिल थीं। उन्होंने महिलाओं की एक अलग ही टुकड़ी ‘दुर्गा दल’ नाम से बनायी थी। इसका नेतृत्व कुश्ती, घुड़सवारी और धनुर्विद्या में माहिर झलकारीबाई के हाथों में था। झलकारीबाई ने कसम उठायी थी कि जब तक झांसी स्वतंत्र नहीं होगी, न ही मैं श्रृंगार करूंगी और न ही सिन्दूर लगाऊँगी। अंग्रेजों ने जब झांसी का किला घेरा तो झलकारीबाई जोशो-खरोश के साथ लड़ी। चूँकि उसका चेहरा और कद-काठी रानी लक्ष्मीबाई से काफी मिलता-जुलता था, सो जब उसने रानी लक्ष्मीबाई को घिरते देखा तो उन्हें महल से बाहर निकल जाने को कहा और स्वयं घायल सिहंनी की तरह अंग्रेजों पर टूट पड़ी और शहीद हो गई। रानी लक्ष्मीबाई अपने बेटे को कमर में बाॅंध घोडे़ पर सवार किले से बाहर निकल गई और कालपी पहॅंुची, जहाॅं तात्या टोपे के साथ मिलकर ग्वालियर के किले पर कब्जा कर लिया।....अन्ततः 18 जून 1858 को भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की इस अद्भुत वीरांगना ने अन्तिम सांस ली पर अंग्रेजों को अपने पराक्रम का लोहा मनवा दिया। तभी तो उनकी मौत पर जनरल ह्यूगरोज ने कहा- ‘‘यहाँ वह औरत सोयी हुयी है, जो व्रिदोहियों में एकमात्र मर्द थी।”

इतिहास अपनी गाथा खुद कहता है। सिर्फ पन्नों पर ही नहीं बल्कि लोकमानस के कंठ में, गीतों और किवदंतियों इत्यादि के माध्यम से यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रवाहित होता रहता है। वैसे भी इतिहास की वही लिपिबद्धता सार्थक और शाश्वत होती है जो बीते हुये कल को उपलब्ध साक्ष्यों और प्रमाणों के आधार पर यथावत प्रस्तुत करती है। बुंदेलखण्ड की वादियों में आज भी दूर-दूर तक लोक लय सुनाई देती है- ''खूब लड़ी मरदानी, अरे झाँसी वारी रानी/पुरजन पुरजन तोपें लगा दई, गोला चलाए असमानी/ अरे झाँसी वारी रानी, खूब लड़ी मरदानी/सबरे सिपाइन को पैरा जलेबी, अपन चलाई गुरधानी/......छोड़ मोरचा जसकर कों दौरी, ढूढ़ेहूँ मिले नहीं पानी/अरे झाँसी वारी रानी, खूब लड़ी मरदानी।'' माना जाता है कि इसी से प्रेरित होकर ‘झाँसी की रानी’ नामक अपनी कविता में सुभद्राकुमारी चैहान ने 1857 की उनकी वीरता का बखान किया हैं- ''चमक उठी सन् सत्तावन में/वह तलवार पुरानी थी/बुन्देले हरबोलों के मुँह/हमने सुनी कहानी थी/खूब लड़ी मर्दानी वह तो/झाँसी वाली रानी थी।''

26 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

रानी झांसी के जन्म दिवस पर उनको नमन!
निस्संदेह भारतीय स्वातंत्र्य समर में रानी लक्ष्मी बाई का महत्वपूर्ण एवं उल्लेखनीय योगदान रहा है.उनके बारे में वृहद् जानकारी देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.

vijai Rajbali Mathur ने कहा…

Bahaut -bahaut DHANYAVAD -janamdin ki poorv vela per RANI LAXMI BAI ka smran karane ke liye.Aapne apna kartavya poorn kiya ,ham sab ko bhee apne SVATANTRTA -SENANIYON ka anusaran karna chahiye tabhi unhe sachchee shrdhanjlee hogee.

VIJAY KUMAR VERMA ने कहा…

jhansee kee ranee LAXMI BAI ke janm divas par unhe shat-shat naman..laxmibai ke nam ke smran matr se hee man me ak josh sa aa jata hai..unke janm divas ko yad dilane ke liye aapko bhee dhanybad

महेन्‍द्र वर्मा ने कहा…

चमक उठी सन संतावन में, वह तलवार पुरानी थी,
खूब लड़ी मर्दानी वह तो, झांसी वाली रानी थी।

सुभद्रा कुमारी चौहान की यह रचना हमने कक्षा 4 में पढ़ी थी।
आज रानी लक्ष्मीबाई के जन्म दिवस की पूर्व संध्या पर आपने उनके और कुछ अन्य वीरांगनाओं के बारे में जानकारीपूर्ण अच्छा आलेख प्रस्तुत किया है आपने...धन्यवाद।

Bharat Bhushan ने कहा…

लक्ष्मी बाई का जीवनवृत्त और झलकारी बाई की जानकारी देने के लिए धन्यवाद. दोनों वीरांगनाओं को नमन.

Bharat Bhushan ने कहा…

अभी विकिपीडिया से देख कर लौटा हूँ. झलकारी बाई का वहाँ उल्लेख है. वे कोरी (मेघ) समुदाय से थीं.

adbiichaupaal ने कहा…

तीर चलाने वाले कर में भला चूड़ियाँ कब भाईं.........
रानी झांसी का तो ये देश सदा ऋणी रहेगा

प्रवीण पाण्डेय ने कहा…

खूब लड़ी मर्दानी....

anshumala ने कहा…

रानी लक्ष्मी बाई को मेरा नमन | लेख काफी अच्छा लगा सही तथ्यों, अच्छी और जोस पूर्ण भावना के साथ लिखा गया है | लेकिन टीवी पर जब झाँसी की रानी देखती हु तो काफी अफसोस होता है लगता ही नहीं की कोई ऐतिहासिक चरित्र को देख रही हु ना जाने कहा कहा से कहानिया बना कर दिखाते है | हम जैसे लोग जो थोडा बहुत उनके बारे में जानते है वो तो उन पर विश्वास नहीं करेंगे पर आज की पीढ़ी तो टीवी पर उनके बारे में जो दिखाया जा रहा है उसी को सच मान लेंगे वो कितना गलत है | ऐसा ही पृथ्वी राज चौहान के साथ भी था | फिल्म जोधा अकबर से लेकर अशोका तक पर बवाल करने वालो को क्या ये सब दिखाई नहीं देता है वो इन धारावाहिकों के खिलाफ क्यों नहीं कुछ करते है | लक्ष्मी बाई का जन्म दिवस याद दिलाने और उनके बारे में ढेर सारी जानकारी देने के लिए धन्यवाद |

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

रानी लक्ष्मीबाई के व्यक्तित्व को समकालीन परिप्रेक्ष्य में उकेरता महत्वपूर्ण आलेख...जयंती पर शत-शत नमन.

Ram Shiv Murti Yadav ने कहा…

आपकी 'बाल-दुनिया' में रानी लक्ष्मीबाई का असली चित्र देखकर मन भाव विह्वल हो गया. संग्रहणीय प्रयास.

उपेन्द्र नाथ ने कहा…

Rani laxmi bai par bahoot achchhi post. sunder prastuti.

Shah Nawaz ने कहा…

बहुत ही ज़बरदस्त रही यह पोस्ट, महारानी लक्ष्मी बाई का चित्र देख कर गौरान्वित महसूस कर रहा हूँ. बहुत-बहुत धन्यवाद!



प्रेमरस.कॉम

अनुपमा पाठक ने कहा…

is post hetu aabhar!
jhansi ki rani ko naman!!!

Dr. Zakir Ali Rajnish ने कहा…

सचमुच, वही तो असली रानी थी। हार्दिक नमन।

---------
वह खूबसूरत चुड़ैल।
क्‍या आप सच्‍चे देशभक्‍त हैं?

KK Yadav ने कहा…

‘‘यहाँ वह औरत सोयी हुयी है, जो व्रिदोहियों में एकमात्र मर्द थी।”...तभी तो कहा गया खूब लड़ी मर्दानी.

रानी लक्ष्मीबाई के जन्म दिवस पर उनको नमन!

Arvind Mishra ने कहा…

झांसी की रानी की कहानी एक साथ ही मन में अदम्य शौर्य ,करुणा ,असहायता का भाव संचारित करती है ....
इस वीरांगना को जन्मदिन पर याद करने के लिए इस पोस्ट पर आभार और मेरा पुण्य स्मरण !

विजय प्रकाश सिंह ने कहा…

जन्म दिवस पर महारानी लक्ष्मी बाई को कोटिश नमन | कुल बाईस वर्ष से कुछ कम ही उम्र में रानी ने वीरगति पायी थी | इस अल्प जीवन में रानी का अदम्य साहस उन्हें भारतीयों के दिलों पर युगों के लिए अमर कर गया | यह सत्य है कि तत्कालीन रजवाडों ने उनका साथ नहीं दिया , सिंधिया भी उनमें शामिल थे |

राजनीति ऐसी ही होती है , त्याग हर कोई नहीं करता | जीवन का त्याग तो और भी असम्भव होता है | रानी ने अपने अधिकार के लिए संघर्ष किया और आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा हैं |

उन्हें एक बार और नमन |

sanu shukla ने कहा…

उनके विरुद्ध लड़ रहे जनरल ह्यूज ने कहा था कि -"१८५७ के विद्रोहियों में एक मात्र मर्द थी रानी लक्ष्मीबाई" ऐसी महान वीर रानी लक्ष्मीबाई को शत शत नमन !!

Asha Joglekar ने कहा…

रानी झांसी का जीवन प्रेरणामय और तेजस्वी है । उन्हें शत शत नमन । आपका लेख और बुंदेलखंडी में कविता बहुत पसंद आई ।

Shahroz ने कहा…

किसी भी राष्ट्र की उन्नति उसके शूर-वीरों से ही होती है. रानी लक्ष्मीबाई का पराक्रमी व्यक्तित्व अनुकरणीय है. आपने उन्हें शब्दों में अच्छी तरह गूंथा है. शत शत नमन उस महान आत्मा को और आभार आपको इस लेख को पढ़ने का सौभाग्य प्रदान करने के लिए।

Shahroz ने कहा…

किसी भी राष्ट्र की उन्नति उसके शूर-वीरों से ही होती है. रानी लक्ष्मीबाई का पराक्रमी व्यक्तित्व अनुकरणीय है. आपने उन्हें शब्दों में अच्छी तरह गूंथा है. शत शत नमन उस महान आत्मा को और आभार आपको इस लेख को पढ़ने का सौभाग्य प्रदान करने के लिए।

Shahroz ने कहा…

तहे दिल से आपका शुक्रिया.
आपके कारण आज 'बाल-दुनिया' पर वीरांगना रानी लक्ष्मीबाई की दुर्लभ फोटो के दर्शन हुए !

Unknown ने कहा…

स्कूल में पढ़ा थाः

बुंदेले हरबोलो के मुँह हमने सुनी कहानी थी।
खूब लड़ी मर्दानी वह तो झाँसी वाली रानी थी॥

उन अमर वीरांगना के बारे में इस अनुपम पोस्ट के लिए अनेक धन्यवाद!

Amit Kumar Yadav ने कहा…

‘स्त्रियों की दुनिया घर के भीतर है, शासन-सूत्र का सहज स्वामी तो पुरूष ही है‘ अथवा ‘शासन व समर से स्त्रियों का सरोकार नहीं‘ जैसी तमाम पुरूषवादी स्थापनाओं को ध्वस्त करती इन वीरांगनाओं के बिना स्वाधीनता की दास्तान अधूरी है, जिन्होंने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिया।

Manav Mehta 'मन' ने कहा…

आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति ........