tag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post3975023732166614127..comments2023-11-24T11:09:23.683+05:30Comments on शब्द-शिखर: किरण बेदी को क्यों छोड़ दिया अन्ना जी ??Akanksha Yadavhttp://www.blogger.com/profile/10606407864354423112noreply@blogger.comBlogger32125tag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-46676888946683010922011-04-27T16:40:01.323+05:302011-04-27T16:40:01.323+05:30@ अजय झा जी,
पहले ये देखिए कि आपने हमने क्या कर ...@ अजय झा जी, <br /><br />पहले ये देखिए कि आपने हमने क्या कर लिया अब तक इस देश के लिए ? <br /><br />*********************<br /><br /><br />अपने जीवन से इतनी भी कैसी असंतुष्टि. हर व्यक्ति अपना काम कर रहा है. देश के लिए बहुतों ने काम किया है और हर किसी का अपना योगदान है. एक अन्ना हजारे तो सब पर भारी नहीं पड़ सकते.Dr. Brajesh Swaroophttps://www.blogger.com/profile/17791749899067207963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-42331728408073848732011-04-27T16:36:11.550+05:302011-04-27T16:36:11.550+05:30@ अजय झा जी,
सोचा न था कि आप नेताओं की तरह अपनी ...@ अजय झा जी, <br /><br />सोचा न था कि आप नेताओं की तरह अपनी भाषा ही बदल देंगें. जब बात बिगड़ती नजर आई तो सोटे का अर्थ ही बदल दिया. <br /><br />खैर, जिन भूषण महाराज की आप तारीफ कर रहे थे, वे खुद ही कटघरे में हैं. ऐसे लोगों के बारे में क्या कहा जाय. जो ईमानदारी का पाठ पढ़ाने और भ्रष्टता के विरुद्ध लड़ने चले थे, वे खुद ही हमाम में नंगे निकले. अब झा साहब ऐसों का कितना भी आप पक्ष लें, पर सच्चाई मिट नहीं सकती भाई.Dr. Brajesh Swaroophttps://www.blogger.com/profile/17791749899067207963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-21735826268544297062011-04-20T06:16:49.074+05:302011-04-20T06:16:49.074+05:30Vicharneey post...aabharVicharneey post...aabharAmrita Tanmayhttps://www.blogger.com/profile/06785912345168519887noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-16205075250907667082011-04-12T01:47:23.448+05:302011-04-12T01:47:23.448+05:30किरण बेदी जी के साथ अन्याय हुआ है | उनको ड्राफ्टिं...किरण बेदी जी के साथ अन्याय हुआ है | उनको ड्राफ्टिंग कमिटी में रहनी चाहिए थी |<br />बहुत ही बढ़िया पोस्ट है<br />बहुत बहुत धन्यवाद|<br /><br />----------------------<br />एक मजेदार कविता के लिए यहाँ आयें |<br />www.akashsingh307.blogspot.comआकाश सिंहhttps://www.blogger.com/profile/17420922344485600342noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-14185617383819418112011-04-11T22:49:33.491+05:302011-04-11T22:49:33.491+05:30@आदरणीय शहरोज़ जी,
जिस तरह मैंने अपनी बात बिना ला...@आदरणीय शहरोज़ जी, <br />जिस तरह मैंने अपनी बात बिना लाग-लपेट के स्पष्ट की वैसे भी आपको भी कहने का हक है जो आपने की भी है. अच्छा लगा. <br />वैसे वहाँ असंयम वाली बात किरण बेदी को लेने ना लेने को लेकर नहीं कही गई, बात सिर्फ उस तरीके को लेकर कही गई थी जिससे कि उस पोस्ट में विभिन्न असहमत टिप्पणीकारों को जवाब दिया गया... मेरे ख्याल से वहाँ पर उससे कहीं ज्यादा विनम्र भाषा का इस्तेमाल हो सकता था. नहीं क्या?<br />''किरण जी को ना लेना तो देश के अन्य मुद्दों की तरह एक और बहस का मुद्दा बन ही गया है तो इसमें विरोध कैसा? वहाँ मुझे बस यही लगता है कि उस पैनल में होने के लिए सिर्फ ईमानदारी की ही नहीं बल्कि क़ानून की गहरी और परिपक्व समझ की आवश्यकता है. पता नहीं कैसे आपने बात नारी-पुरुष से जोड़ दी.''<br />आपको मेरी बात में कहीं विद्वेष लगा हो तो स्पष्ट करना चाहूंगा कि ऐसी कोई बात भी मेरे मन में नहीं थी. मुझे जो सिखाया गया है वह यही है कि सच कह कर अपमान पाना झूठ और चाटुकारिता करके सम्मान पाने से बेहतर है.दीपक 'मशाल'https://www.blogger.com/profile/00942644736827727003noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-38901979770511518552011-04-11T17:59:09.018+05:302011-04-11T17:59:09.018+05:30अन्ना हज़ारे पांच दिनों तक आमरण अनशन पर बैठे थे बि...अन्ना हज़ारे पांच दिनों तक आमरण अनशन पर बैठे थे बिना ये जाने सोचे समझे कि उन्हें कितने दिनों तक बैठना होगा और ये भी कि हो सकता था कि सरकार बात मानने में देर लगाती और अन्ना अपने जीवन से खेलने जैसा जोखिम उठा रहे थे । यहां बैठे हुए और अब खासकर जब इस आंदोलन पर सरकार तक झुक गई तो आप सबने उंगलियां तान दी हैं उस वृद्ध पर ..जो आपकी हमारी तरह ही एक आम इंसान है ? पहले ये देखिए कि आपने हमने क्या कर लिया अब तक इस देश के लिए ? <br /><br />प्रश्न उठाना , बहस करना , तर्क करना न सिर्फ़ जरूरी है बल्कि किसी के रोकने से रुकने वाला भी नहीं है और रुकेगा भी नहीं लेकिन आरोप पे आरोप जडके यूं कटघरे में खडा करना मेरी समझ से परे है ? और हां अगर आकांक्षा जी को भी यही लगता है कि आज असहमति जताने से अबसे पहले और अबके बाद उनके ब्लॉग पाठक के रूप में मेरी निष्ठा पर प्रश्न चिन्ह लग जाता है तो फ़िर ..क्षमा चाहूंगा अब भविष्य में कभी टिप्पणी करने का दु:साहस नहीं करूंगा निश्चिंत रहें । ज्यादा असुविधा हो तो मेरी टिप्पणी खुशी से मिटा दें । यकीन मानिए मुझे जरा भी अफ़सोस नहीं होगा कि जितना आजकल लोग एक पोस्ट पर नहीं लिखते हैं उतना मैं टिप्पणी कर दिया करता हूं । बहस को आगे बढाते रहें । ये सबसे जरूरी है । आप सबको शुभकामनाएंअजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-84320698203362771412011-04-11T17:51:10.266+05:302011-04-11T17:51:10.266+05:30इसी पोस्ट की टिपण्णी में में अजय झा की बात 'सो...इसी पोस्ट की टिपण्णी में में अजय झा की बात 'सोटे से ही मानते हैं लोग अब और उससे ही मानेंगे भी' में आपको असंयम नहीं दिखा और एक नारी ने वाजिब आवाज़ उठाई तो उसे संयम का पाठ पढ़ने लगे...इस दोहरे मानदंड की जगह निष्पक्षता से विश्लेषण करना सीखिए तो ज्यादा इज्जत पायेंगें...<br /><br />शहरोज जी "सोटे " शब्द का अर्थ तो मैंने जो समझा वो ऊपर बता दिया आपको अब एक बात , एक नारी ने , ..अब क्या टिप्पणी देने से पहले ये देखना पडेगा कि पोस्ट नारी ने लिखी है या पुरूष ने , लेकिन शायद आपने टिप्पणियां देखने की ज़हमत नहीं उठाई । गौर से देखिए जिन्होंने पहली टिप्पणी की है वे भी एक नारी ही हैं उनके लिए कुछ नहीं कहा आपने ?अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-22875016449368681432011-04-11T17:48:17.297+05:302011-04-11T17:48:17.297+05:30मेरी समझ में ये नहीं आ रहा कि आप सब लोग समिति में ...मेरी समझ में ये नहीं आ रहा कि आप सब लोग समिति में ही किरन बेदी को घुसवाने या नहीं आने को मुद्दा क्यों बना रहे हैं ? <br /><br />आप शायद भूल रहे हैं कि अभी तो जन लोकपाल चुनने का समय बांकी है । क्या किरन बेदी को आप सब जन लोकपाल के रूप में नहीं देखना चाहेंगे ? सोचिएगा <br /><br />अब जरा उनको जवाब जिन्होंने मुझसे प्रश्न किया है ।<br />डॉ ब्रजेश जी :- <br />डॉ साहब जरा पहले सोटे सोटे का फ़र्क जानिए सर जी । मेरे लिए सूचना का अधिकार , जन प्रतिनिधि वापस बुलाओ , जैसे कानून ही वो सोटे हैं जिनका इस्तेमाल आम आदमी कर सकता है । लेकिन आपका ईशारा शायद डंडा भांजने से था जो कि कई लोग ये खुशफ़हमी पाले भी हुए थे और ये पूरी भी हो जाती इसी बार अगर अन्ना हज़ारे को कुछ हो जाता तो फ़िर कुछ कहने सुनने की गुंजाईश नहीं रहती । <br /><br />अब बात दोनों अधिवक्ताओं की , मैं न तो उनका बहुत बडा फ़ैन हूं , न ही उनका अंधा भक्त , बस उनके काम के कारण उन्हें जानता हूं । सिर्फ़ नाक भौं सिकोड लेने से ही इतिश्री नहीं हो जाया करती है । विकल्प बताइए विकल्प और प्रमाणित करिए कि वे ही ज्यादा बेहतर होते ? किरन बेदी क्यों नहीं और वंशवाद जैसे प्रश्नों का उत्तर दे चुका हूं पहले ही हालांकि ऐसा करने का कोई ठेका मैंने नहीं उठाया था ।अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-69930686678978028922011-04-11T17:28:39.928+05:302011-04-11T17:28:39.928+05:30@ दीपक मशाल भाई जी,
मेरी समझ से आप एक अच्छे ब्ला...@ दीपक मशाल भाई जी, <br /><br />मेरी समझ से आप एक अच्छे ब्लागर हैं. यदि आप किसी को अपनी बात से संतुष्ट नहीं कर पा रहे हैं तो सब्र करना सीखिए न कि आरोप लगाना कि , ''आकांक्षा जी, वैसे आपके शीर्षक भड़काऊ और अनावश्यक से होते हैं, जैसे कि सिर्फ ध्यान आकर्षित करने के लिए हों. आकांक्षा जी सच यही है कि आपको संयम सीखने की आवश्यकता है'', <br /><br />मुझे तो लगता है मशाल जी कि आपको ज्यादा संयम की जरुरत है. अगर किरण बेदी को समिति में नहीं लिए जाने पर कोई वैचारिक विरोध करता है तो आप लोगों को उसमे असंयम क्यों नजर आने लगता है. शायद इसलिए कि आप चाहते हैं कि महिलाओं की आवाज़ दबा दी जाय. <br /><br />इसी पोस्ट की टिपण्णी में में अजय झा की बात 'सोटे से ही मानते हैं लोग अब और उससे ही मानेंगे भी' में आपको असंयम नहीं दिखा और एक नारी ने वाजिब आवाज़ उठाई तो उसे संयम का पाठ पढ़ने लगे...इस दोहरे मानदंड की जगह निष्पक्षता से विश्लेषण करना सीखिए तो ज्यादा इज्जत पायेंगें.Shahrozhttps://www.blogger.com/profile/09298590445316914641noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-21531325151679019872011-04-11T17:20:25.810+05:302011-04-11T17:20:25.810+05:30जन लोकपाल विधेयक कितना सफल होगा, यह तो दूर की बात ...जन लोकपाल विधेयक कितना सफल होगा, यह तो दूर की बात है. पर जिस तरह से अन्ना हजारे जी अभी से नेताओं की भाषा बोलने लगे हैं, संदेह से परे नहीं रहे. भाजपा नीत गठबंधन के नेता उन्हें अच्छे लगने लगे हैं. नरेन्द्र मोदी और नीतीश कुमार की वे प्रशंशा कर रहे हैं, शरद यादव को अपने मंच से बोलने का मौका देते हैं, अन्य को नहीं. उमा भारती से अगले दिन ही माफ़ी मांगते हैं, ,पर किरण बेदी को मात्र अपने स्वार्थ के लिए उपयोग करते हैं. भाजपा ने पहले बाबा रामदेव को इस्तेमाल किया, अब अन्ना हजारे को. ऐसे प्रपंच बहुत दिन तक नहीं चलने वाले. जिस देश में जनता ही राजा है वहाँ नागरिक समाज के नाम पर कुछ लोगों को दबाव की राजनीति कर अपने सियासी मकसद में सफल नहीं होने दिया जा सकता. यह बात कांग्रेस अच्छी तरह समझती है, इसीलिए अन्ना के लाख दबावों के बावजूद उसने समिति का अध्यक्ष नागरिक समाज से बनाने की बजाय एक मंत्री को बनाया. अन्ना की भी मज़बूरी थी कि वे इस आन्दोलन को लम्बे समय तक खींचने की स्थिति में नहीं थे, अत: चुपचाप सब मानकर एक अधिसूचना से खुश हो गए.Shahrozhttps://www.blogger.com/profile/09298590445316914641noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-12360113678765785312011-04-11T15:44:33.448+05:302011-04-11T15:44:33.448+05:30वक़्त ही बतायेगा कि क्या सही, क्या गलत.. पर अभी तक...वक़्त ही बतायेगा कि क्या सही, क्या गलत.. पर अभी तक तो मेरा भी यही मानना है कि शांति और प्रशांत जी कम से कम इस जगह पर किरण बेदी जी से अधिक उपयुक्त हैं.. कहते हैं ना कि जाको काम उसी को साजे. देखते हैं शायद आप सही निकलें. वैसे आपके शीर्षक भड़काऊ और अनावश्यक से होते हैं, जैसे कि सिर्फ ध्यान आकर्षित करने के लिए हों. आकांक्षा जी सच यही है कि आपको संयम सीखने की आवश्यकता है और पोस्ट से असहमति को सार्थक रूम में लेने की. यही एक अच्छे लेखक की निशानी है. वर्ना अपनी आलोचना पर तो एक अनपढ़ व्यक्ति भी भड़क उठता है. धैर्यपूर्वक उनकी भी बात सुननी चाहिए जो आपकी बात से सहमत नहीं, क्योंकि जरूरी नहीं कि हर बार हम ही सही हों. यह सब आत्ममुग्ध्ता की ओर ले जाता है जो कि कम से कम एक लेखक के लिए बहुत घातक सिद्ध हो सकता है. एक विचारधारा को अपनाना सही है लेकिन दूसरी की ओर ध्यान ही ना देना... वह भी तो सही नहीं है. उम्मीद है आप अकेले में बैठकर थोड़ी देर सोचेंगीं कि क्या लोग सच में सही कह रहे हैं?<br />'समय बड़ा बलवान' यह तो सभी को पता है. संभव है कि आपको बात थोड़ी कठोर लगे, उसके लिए अग्रिम क्षमायाचना करता हूँ.<br />इसके अलावा मुझे नहीं लगता कि भूषन द्वय से योग्य और ईमानदार अधिवक्ता इतनी जल्दी अन्ना जी को मिल सकते थे और सरकार को नाम बहुत जल्दी ही सुझाने थे. उनके पास नामांकन और फिर निर्वाचन का वक्त नहीं था.दीपक 'मशाल'https://www.blogger.com/profile/00942644736827727003noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-34321570676452072782011-04-11T15:40:53.077+05:302011-04-11T15:40:53.077+05:30किरण बेदी को शायद लोकपाल चुनने की प्रक्रिया में शा...किरण बेदी को शायद लोकपाल चुनने की प्रक्रिया में शामिल कर लिया जाए, जैसा कि जनलोकपाल बिल के प्रावधानों से लग रहा है।Srijan Shilpihttps://www.blogger.com/profile/09572653139404767167noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-35895166690832586822011-04-11T15:33:38.815+05:302011-04-11T15:33:38.815+05:30:):)Kajal Kumar's Cartoons काजल कुमार के कार्टूनhttps://www.blogger.com/profile/12838561353574058176noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-84833698922632697012011-04-11T15:07:05.070+05:302011-04-11T15:07:05.070+05:3015 अगस्त तक देश प्रतीक्षा में है।15 अगस्त तक देश प्रतीक्षा में है।प्रवीण पाण्डेयhttps://www.blogger.com/profile/10471375466909386690noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-61845888243596446632011-04-11T14:30:45.483+05:302011-04-11T14:30:45.483+05:30@ Mr. Jha,
लेकिन अब अपने आप ठीक नहीं होने वाला .....@ Mr. Jha,<br /><br />लेकिन अब अपने आप ठीक नहीं होने वाला ..सोटे से ही मानते हैं लोग अब और उससे ही मानेंगे भी ..वो कहते हैं न मार के डर से भूत भी भागता है ..हां तय बस ये करना है सबको कि वे सोटे चलाने वाले बनना चाहते हैं या खाने वाले । भ्रष्ट , बलात्कारियों , अपराधियों , /..किस किस से उम्मीद की जाए कि वे खुद को ठीक कर लें ..।<br /><br />**************<br />यह सलाह आपने अन्ना हजारे जी को दी की नहीं. काहे को समिति बनवा रहे हैं, सोटा लेकर कूद पड़ते. साथ में जनता-जनार्दन का गुस्सा भी निकल जाता. जब सोटा ही मारना है तो फिर ये गाँधीवादी प्रपंच क्यों. बंद कर दीजिये थाना-कचहरी. बस वहाँ सोटा वालों की तैनाती कर दीजिये, जो आये बिना पूछे दो लगाओ पहले और फिर गाँधी जी और अन्ना का नाम लेकर चुप करा दो. <br /><br /><br />जिन भूषण महोदय की कैफियत में आप इतना बखान रहे हैं, उनके बारे में आपको बताने की जरुरत पड़ रही है. पर किरण बेदी के बारे में किसी को बताने की जरुरत नहीं है. किरण बेदी को न शामिल करना वाकई कोई सुनियोजित चाल है. ..कहीं डर तो नहीं गए कि यदि किसी की पोल खुल गई तो किरण बेदी आपने पुलिसिया रौब में आकर सोटा न जड़ दें.Dr. Brajesh Swaroophttps://www.blogger.com/profile/17791749899067207963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-63876038929690447942011-04-11T14:18:20.310+05:302011-04-11T14:18:20.310+05:30कानूनों से भ्रष्टाचार नहीं ख़त्म होता, बल्कि इसके ...कानूनों से भ्रष्टाचार नहीं ख़त्म होता, बल्कि इसके लिए इच्छा शक्ति की जरुरत होती है. जरुरी है कि लोग स्वत: स्फूर्त प्रेरित हों और वास्तविक व्यवहार में भी वैसा ही आचरण करें. <br /><br />++++++++सार रूप में अच्छी बात कही आपने आकांक्षा जी, हर पहल आपने स्तर से हो तो फिर इस वितंडे की क्या जरुरत. यह पोस्ट काफी प्रभावशाली है..साधुवाद.Dr. Brajesh Swaroophttps://www.blogger.com/profile/17791749899067207963noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-77385943360792698732011-04-11T14:11:08.690+05:302011-04-11T14:11:08.690+05:30तेज-तर्रार महिला, उस पर से IPS आफिसर के रूप में क्...तेज-तर्रार महिला, उस पर से IPS आफिसर के रूप में क्रेन बेदी के रूप में चर्चित किरण बेदी के प्रखर व्यक्तित्व को लगता है अन्ना और उनकी टीम पचा नहीं पाई. तभी तो ऐन वक़्त पर उनकी जगह जूनियर भूषण का नाम शामिल कर लिया. बाद में अन्ना हज़ारे जी ने अपने अनशन के बाद किरन बेदी के घर जाकर उनको मनाया कि उनकी भी कुछ मजबूरियां थीं. (ठीक वैसे ही जैसे ईमानदार प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी की) . अन्ना के बहुत मनाने के बाद किरण बेदी जी ने उनका लिहाज करते हुए कहा कि वे तो समिति में आने की ही इच्छुक नहीं थीं, फिर जाकर इस मुद्दे पर अन्ना हजारे को अभयदान मिला. पर महिला समाज की उपेक्षा कर अन्ना जी खुद ही घेरे में आ गए. अब अन्ना और उनके समर्थक कुछ भी तर्क दें, पर अन्ना की यह गलती कईयों के लिए गलती का रास्ता खोलती है. कहते हैं न दूध का जला तो छाछ भी फूंक-फूंक कर पीता है, पर अन्ना जी तो यहीं वकीलों की बात में आ गए, जो अब समिति के सदस्य बनकर सारी सुख-सुविधाओं का लाभ उठाने को तत्पर हैं. अन्ना चाहते तो अपनी जगह किरण बेदी का नाम शामिल कराकर एक नजीर स्थापित कर सकते थे, पर उन्हें लगा कि प्रभाव बनाये रखने के लिए समिति की सदस्यता ज्यादा जरुरी है. अभी तो यह शुरुआत है, अभी देखिये आगे क्या-क्या होता है.raghavhttps://www.blogger.com/profile/02798957175847280091noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-69674239193213135092011-04-11T13:56:05.036+05:302011-04-11T13:56:05.036+05:30अन्ना ने यदि अलख जगाई तो उस आन्दोलन का प्रभाव तब द...अन्ना ने यदि अलख जगाई तो उस आन्दोलन का प्रभाव तब दिखता जब हर क्षेत्र -जनपद -राज्य में भ्रष्टाचार के विरोधी अन्ना के बिना भी इस मुहिम को आगे बढ़ाते. पर यहाँ तो राजनैतिक दलों की रैली की तरह अन्ना के उठते ही भीड़ अपना बोरिया-बिस्तर लेकर घर चले गए. यदि वाकई इस भीड़ में जन चेतना पैदा करने की ताकत होती तो वह रूकती नहीं बल्कि अन्ना की परंपरा को आगे बढ़ाते हुए समाज के निचले स्तर तक जाकर कार्य करती और जन-जागरूकता फैलाती. आन्दोलन के लिए निरंतरता चाहिए, न की तात्कालिकता...WEll said. 100% Agree.raghavhttps://www.blogger.com/profile/02798957175847280091noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-24509818876331389652011-04-11T13:46:22.884+05:302011-04-11T13:46:22.884+05:30@ संगीता जी,
आम जनता को तो फिर भी पुलिस पकड़ लेती...@ संगीता जी, <br />आम जनता को तो फिर भी पुलिस पकड़ लेती है ..पर उन नेताओं का क्या करें ..उन लोगों पर नकेल कसने के लिए जन लोकपाल बिल कुछ ज़रूर कारगर हो सकता है.<br />____________________<br /><br />इस देश में भ्रष्टाचार इत्यादि से लड़ने के लिए तमाम नियम-कानून-मशिनिरियां हैं, उनमें कोई कमी नहीं है. जरुरत बस उन्हें कायदे से लागू करने की है. यह कहना की जन लोकपाल के आते ही सब कुछ बदल जायेगा, ख्याली पुलाव के अलावा कुछ नहीं है.Shyamahttps://www.blogger.com/profile/15780650583480468092noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-27028145304611053042011-04-11T13:41:55.208+05:302011-04-11T13:41:55.208+05:30@ संगीता जी,
आपने कहा कि ड्राफ्टिंग में जो काम ए...@ संगीता जी, <br /><br />आपने कहा कि ड्राफ्टिंग में जो काम एक वकील कर सकता है वो शायद किरण बेदी नहीं कर सकतीं थीं. <br />_____________________<br />1-फिर अन्ना हजारे , केजरीवाल और अन्य लोग क्या वकील हैं ? <br />2-क्या इन बाप-बेटों के अलावा कोई वकील भारत में नहीं है ? <br />3-यदि अब वकीलों का काम ड्राफ्टिंग है, जैसा कि आपने इंगित किया है, फिर इससे पहले कि सारी ड्राफ्टिंग जिन्होंने की वह किसी काम की नहीं है.Shyamahttps://www.blogger.com/profile/15780650583480468092noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-1298720214932753562011-04-11T13:35:49.302+05:302011-04-11T13:35:49.302+05:30@ संगीता जी,
आपकी यह बात कुछ अजीब सी लगी कि किर...@ संगीता जी, <br /><br />आपकी यह बात कुछ अजीब सी लगी कि किरण बेदी तो खुद नहीं आना चाहतीं थीं <br />_________________________<br /><br />...यानी जो लोग समिति में गए हैं, उन्होंने कोई लिखितनामा दिया है कि हम आना चाहते हैं और किरण बेदी जी ने लिखकर दिया है कि मैं नहीं आना चाहती. इस प्रकार की गलतफहमी क्यों फैलाई जा रही है कि किरण बेदी नहीं आना चाहती थीं.Shyamahttps://www.blogger.com/profile/15780650583480468092noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-85393965897088195842011-04-11T13:31:45.343+05:302011-04-11T13:31:45.343+05:30आकांक्षा जी, आपने तो वाकई आपने धारदार पोस्टों से ल...आकांक्षा जी, आपने तो वाकई आपने धारदार पोस्टों से लोगों को उबलने पर मजबूर कर दिया. क्या करेंगीं, यहाँ लोग सच्चाई नहीं सुनना चाहते, बस जय-जयकार सुनना चाहते हैं. यह देश भगवानों का है, कभी सचिन भगवन बन जाते हैं तो कभी कोई दूसरा. सदियों से हम व्यक्ति के पुजारी रहे हैं, फिर अन्ना तो लाइम-लाइट में हैं. लोगों को लग रहा है कि अन्ना नहीं मानो भगवान राम साक्षात् धरती पर उतर आये हों और एक ही बाण से भ्रष्टाचार रूपी रावण को धराशायी कर हर जगह रामराज ला देंगें. <br /><br />जिस देश में एक दलित के कुर्सी से हटते ही उस कुर्सी, गाड़ी और उसके द्वारा प्रयुक्त हर चीज को गंगा जल से पवित्र किया जाता है, वहाँ समाज की प्रगति और विकास ढकोसला ही लगता है.Shyamahttps://www.blogger.com/profile/15780650583480468092noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-29403000821973456822011-04-11T13:18:32.961+05:302011-04-11T13:18:32.961+05:30राजनीति शास्त्र का अध्ययन करते समय पढ़ा था कि - ...राजनीति शास्त्र का अध्ययन करते समय पढ़ा था कि - ''इस देश का संविधान वकीलों द्वारा निर्मित है और हर जगह यह एक लूप-होल छोड़ जाता है'', अब फिर से वकीलों को ही तवज्जो और इस स्तर तक कि बाप-बेटे दोनों को समिति में रख लिया. जरुर दाल में कुछ काला है.Amit Kumar Yadavhttps://www.blogger.com/profile/13738311398018201654noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-22054768516437647492011-04-11T13:14:42.163+05:302011-04-11T13:14:42.163+05:30आपकी पोस्ट से पूर्णतया सहमत. अन्ना हजारे ने कहा कि...आपकी पोस्ट से पूर्णतया सहमत. अन्ना हजारे ने कहा कि, देश के लोगों ने जाति, धर्म और संप्रदाय से ऊपर उठकर विश्व के समक्ष इस आंदोलन के माध्यम से एकजुटता व्यक्त की है। काश यह एकजुटता चुनावों के समय भी ईमानदार लोगों के पक्ष में दिखती. पर यहीं असली जगह तो हम चूक कर जाते हैं, फिर भ्रष्टाचार कहाँ से रुके ?Amit Kumar Yadavhttps://www.blogger.com/profile/13738311398018201654noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-7291505309636252413.post-6675013650291721852011-04-11T13:04:58.439+05:302011-04-11T13:04:58.439+05:30आपने पूरी पोस्ट में बार बार जिक्र किया एक सज्जन ने...आपने पूरी पोस्ट में बार बार जिक्र किया एक सज्जन ने ये टिप्पणी की एक सज्जन ने ये टिप्पणी की ..एक ने ये फ़लाना सलाह दी ये कहा वो कहा और आखिरकार <br /><br />.ऐसी ही ढेर सारी प्रतिक्रियाएं मेरी पोस्ट पर आईं, पर सबमें हुजूम की हाँ में हाँ मिलाने वाला देशभक्त, अन्यथा देशद्रोही जैसी भावना ही चमकी. बिना बात को समझे किसी ने नकारात्मकवादी तो किसी ने सहमति जताने वालों की ही उथले सोच का दर्शाकर अपना गंभीर परिचय दे दिया. सवाल अभी भी है की हम अन्ना की व्यक्ति पूजा कर रहे हैं या विचारधारा पर जोर दे रहे हैं. अपने बारे में सुनने में इतने अ-सहिष्णु तो गाँधी जी भी नहीं थे, फिर ये अन्ना के समर्थक ??<br /><br /><br />तो क्या आपके पाठक आपके इस निष्कर्ष के हिसाब से या तो सिर्फ़ देशभक्त हैं या शायद देशद्रोही ...मैं किस श्रेणी में आता हूं ये जानने की इच्छा उत्कट हो गई है ..गांधी जी की तुलना अन्ना के समर्थकों से । और सिर्फ़ अन्ना के समर्थक ..ऐसा क्यों ? किरन बेदी , अरविंद केजरीवाल जैसे कर्मवीरों के कारण जो जुडे उनका क्या ? <br /><br />माफ़ करिएगा अगर ज्यादा तल्ख हो गया हो गया होऊं तो ..किंतु दोनों पोस्टों में सिर्फ़ ये कहा गया कि अगर खुद ही लोग अपने को सुधार लें तो सब ठीक हो जाएगा ...लेकिन अब अपने आप ठीक नहीं होने वाला ..सोटे से ही मानते हैं लोग अब और उससे ही मानेंगे भी ..वो कहते हैं न मार के डर से भूत भी भागता है ..हां तय बस ये करना है सबको कि वे सोटे चलाने वाले बनना चाहते हैं या खाने वाले । भ्रष्ट , बलात्कारियों , अपराधियों , /..किस किस से उम्मीद की जाए कि वे खुद को ठीक कर लें ..।अजय कुमार झाhttps://www.blogger.com/profile/16451273945870935357noreply@blogger.com