पिछले 15 दिनों तक अंडमान में आलू की किल्लत बनी रही. रोज न्यूज चैनलों पर हम देखते रहे कि देश के विभिन्न भागों में आलू सड़ रहे हैं, पर यहाँ अंडमान में सड़ना छोडिये, देखने को तरस गए. जेब में पैसे होकर भी क्या करेंगे, जब चीज मयस्सर ही न हो. आलू के अभाव में सब्जियों को लेकर रोज नए प्रयोग किये. दो-चार दिन तक तो आलू के बिना सब्जियाँ चल जाती हैं, पर उसके बाद कब तक पनीर, राजमा, छोले, सोयाबीन या भिन्डी, मटर, लौकी इत्यादि खाते रहेंगें. आलू की बजाय मटर के बने समोसे कई दिन तक स्वाद नहीं बना पते. आखिरकार आलू न चाहते हुए भी हमारे स्वाद का अभिन्न अंग बन चुका है. इसे तभी तो सब्जियों का राजा भी कहा जाता है.
खैर इसी बहाने पहली बार आलू की महिमा भी पता चली. कभी सोचा भी न था की आलू के बिना जीवन कैसा होगा क्योंकि आलू को तो सर्वत्र व्याप्त माना जाता है. घर में कुछ भी न हो तो आलू जरुर होता है. अधिकतर सब्जियाँ आलू के बिना सूनी हैं और फिर आलू के समोसे, आलू के भरते (चोखा) और आलू के पराठों के बिना तो स्वाद ही नहीं आता. पिछले 15 दिनों से अंडमान के लोग आलू के लिए तरस गए थे. रोज सुनाई देता कि मेन लैंड से जलयान द्वारा आलू चल चुका है, बस यहाँ पहुँचने भर की देरी है. सब्जियाँ और फल वैसे भी अंडमान में महँगे हैं. यहाँ के समुद्री खरे पानी द्वारा उनकी पैदाइश संभव भी नहीं. कई बार आश्चर्य होता है कि हर तरफ पानी ही पानी, पर वह किस काम का. न आप उसे पी सकते हैं, न उससे सिंचाई कर सकते हैं, न बिजली बना सकते हैं...!
फ़िलहाल, आज सुबह आलू महाराज के दर्शन हुए तो पहले तो उन्हें जी भरकर निहारा कि महाराज कहाँ चले गए थे. फिर सुबह नाश्ते में आलू के पराठे...शायद ही इतना स्वादिष्ट व चटपटा कभी लगा हो. वाकई जब चीजें हमें आसानी से मिलती हैं तो हमें उनकी महत्ता समझ में नहीं आती. जब हम लोग पढने जाते थे और किसी दिन सुबह कोई सब्जी घर में नहीं होती तो आलू की भुजिया या आलू के पराठों से उम्दा कुछ भी नहीं हो सकता था. ..पर यहाँ अंडमान में 20 रूपये किलो आलू भी अब सस्ता लगने लगा है.सब समय व जगह का फेर है !!
यहाँ अंडमान में 20 रूपये किलो आलू भी अब सस्ता लगने लगा है.सब समय व जगह का फेर है !!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति।
अंडमान से सीधा जीवंत प्रसारण..वहां की दुनिया भी अजीब है.
जवाब देंहटाएंअजी ये तो बहुत कष्टदायी रहा होगा..खैर इसी बहाने नई-नई सब्जियां...शानदार प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएं____________________
'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर हम प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती रचनाओं को प्रस्तुत कर रहे हैं. आपकी रचनाओं का भी हमें इंतजार है. hindi.literature@yahoo.com
इस जानकारी के लिए धन्यावाद
जवाब देंहटाएंवरना हमें पता ही नही लग पाता
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंखैर इसी बहाने पहली बार आलू की महिमा भी पता चली.
जवाब देंहटाएंganganagar me aa jao, narayan narayan
जवाब देंहटाएंजय हो आलू की , बढ़िया लगा आपको पढ़ना ।
जवाब देंहटाएंवाह जी बहुत सुंदर बात कही आलू के बारे मै,वेसे हमारे यहां भारतीया सब्जियां नही मिलती ओर हम ने स्थानिया सब्जियो को ही भारतिया रुप मे बनाना शुरु कर दिया
जवाब देंहटाएंफिर सुबह नाश्ते में आलू के पराठे...शायद ही इतना स्वादिष्ट व चटपटा कभी लगा हो.
जवाब देंहटाएंसुगम में स्वाद कहाँ
तो ये हालात है
अपना महत्त्व जताने के लिए ही आलू बाज़ार से गायब हुआ होगा वर्ना खुश फ़हमी बनी रहती कि आलू तो universal है
जवाब देंहटाएंएक अच्छी जानकारी के साथ आलू के पराठे की याद दिला दी ...शुक्रिया
जवाब देंहटाएंhttp://athaah.blogspot.com/
मन को छूती पोस्ट.......
जवाब देंहटाएंजब कोई चीज हमारे जीवन का अभिन्न हिस्सा बन जाती है और अचानक ही गायब हो जाये तभी हमें उसकी महत्ता पता चलती है। जय आलू !!!!
जवाब देंहटाएंनमस्कार, आलु की विशिश्टता बताती आपकी प्रस्तुति अच्छी लगी
जवाब देंहटाएंएक ही भारत में भिन्न-भिन्न स्थितियां..यही तो हमारी विविधता है.
जवाब देंहटाएंएक ही भारत में भिन्न-भिन्न स्थितियां..यही तो हमारी विविधता है.
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने..खैर वो दिन बीत गए.
जवाब देंहटाएंचलिए फ़िलहाल पराठे तो मिल गए...इतने दिन बाद बड़ा स्वादिष्ट लगा होगा.
जवाब देंहटाएंआलू के पराठे--यमी-यमी .
जवाब देंहटाएंis lekh se pata chalta hai ki hamare niti niyanta kitne laparvah hain
जवाब देंहटाएंचलिए देर से ही सही खाने को तो मिले. यही जीवन का आनंद है..कभी खट्टा तो कभी मीठा.
जवाब देंहटाएंएक बार हमारे साथ भी ऐसा हुआ था...
जवाब देंहटाएंकभी उन गरीबों की भी सोचें जिन्हें कभी भी दो जून की सब्जी मयस्सर नहीं होती....
जवाब देंहटाएंसब सरकार की लापरवाही है. कहीं आलू सड़ रहें हैं, कहीं आलू का अकाल.
जवाब देंहटाएंआलू की महिमा को कम न अंकिये..इनके बिना तो सब सूना है.
जवाब देंहटाएंआकांक्षा जी, भाषाओँ और बोलियों के सिमटते संसार पर आपका प्रभावी लेख नवनीत (मई २०१० अंक) में पढ़ा..सारगर्भित..बधाई.
जवाब देंहटाएंयही तो हैं अनुभवों की चांदी...संस्मरण लिखने के समय काम आयेंगें.
जवाब देंहटाएंये भी खूब रही...रोचक व दिलचस्प पोस्ट.
जवाब देंहटाएंआप सभी की टिप्पणियों एवं स्नेह के लिए आभार.
जवाब देंहटाएं@ Shahroz ji,
जवाब देंहटाएंधन्यवाद इस जानकारी के लिए.