अपने देश में तेजी से बहुत सारे जीव-जंतुओं की संख्या कम होती जा रही है. पता नहीं आगामी पीढ़ियों को ये देखने को भी मिलें या नहीं. लगता है कि वे उन्हें सिर्फ पुस्तकों में पढ़ेंगें तथा खिलौने के रूप में खेलेंगें. 2008 में हुई गणना के अनुसार देश में 359 शेर, 1411 बाघ, 2,358 गैंडे और 27,694 हाथी हैं. इसके बाद तो आज 2010 तक इनकी संख्या और भी कम हो गई होगी. इस साल अब तक 05 बाघों की मौत हो चुकी है. यह बड़ी चिंता का विषय है कि यदि इसी तरह ये ख़त्म होते रहे तो लोग इन्हें कैसे देख पायेंगें और प्राकृतिक असंतुलन का क्या होगा. डायनासोर जैसे जानवरों का उदाहरण हमारे सामने है.
फ़िलहाल इन सबके बीच एक अच्छी खबर सामने आई है कि 1600 वर्ग किमी में फैले गुजरात के प्रसिद्ध गिर नेशनल पार्क में एशियाई मूल के शेरों की सख्या बढ़कर 411 हो गई है। गत पाँच वषों में इन शेरों की संख्या में 52 का इजाफा हुआ है। वाकई यह गिर के वन में शेरों के संरक्षण तथा संवर्द्धन के उपायों का बेहतर नतीजा है. यदि पूरे देश में लोग इसी तरह जागरूक हो जाएँ तो फिर क्या कहने. एक तरफ इससे पर्यटकों की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी, वहीँ राजस्व में भी वृद्धि होगी. गिरवन में हर साल डेढ़ से दो लाख पर्यटक घूमने आते है जिससे डेढ़ करोड़ रूपये से अधिक की आय प्राप्त होती है।
गुजरात सरकार की ओर से कराई गई शेरों की गणना के अनुसार, 5 साल पहले गिर में शेरों की सख्या 359 थी जो अब बढ़कर 411 हो गई है। इनमें नर शेर की संख्या 97 और मादा शेर की संख्या 162 है। इसके अलावा एक वर्ष की उम्र वाले सिंह के बच्चों की सख्या 77 है जबकि एक से तीन वर्ष के शेरों की संख्या 75 है। शेरों कि संख्या में बढ़ोत्तरी के अलावा एक रोचक पहलू यह भी है कि गिर में अब जंगल के राजा शेर के बजाए शेरनियों का राज चलता है। जंगल में शेरों की सख्या जहाँ 97 है वहीं शेरनियों की संख्या 162 है। ऐसे में कई बार शेरनियाँ बच्चों के मामले में शेरों की बात नहीं मानती हैं, संख्या अधिक होने के कारण कई बार शेरनियाँ झुण्ड में आकर शेरों को खदेड़ भी देती हैं।
अब आशा की जानी चाहिए कि शेरों के साथ-साथ तेजी से ख़त्म होते बाघों के दिन भी बहुरेंगे और न सिर्फ आगामी पीढ़ियाँ उन्हें देख सकेंगीं, बल्कि प्राकृतिक असंतुलन का प्रकोप भी ख़त्म होगा !!
अब आशा की जानी चाहिए कि शेरों के साथ-साथ तेजी से ख़त्म होते बाघों के दिन भी बहुरेंगे और न सिर्फ आगामी पीढ़ियाँ उन्हें देख सकेंगीं, बल्कि प्राकृतिक असंतुलन का प्रकोप भी ख़त्म होगा !!.....Bilkul sahi kahan hai aapka ....sabko es disha mein gambhirtapurvak sochne ke jarurat hai...
जवाब देंहटाएंSaarthak chintansheel prastuti hetu bahut dhanyavaad.
प्राकृतिक सन्तुलन के लिए शेरो का रहना आवश्यक है । जब जानवर ही नही रहेगे तो हम आने वाली पीढी को क्या बतायेगे । आप ने बहुत सी जानकरी दी
जवाब देंहटाएंबढ़िया जानकारी दी है ..रोचक प्रस्तुति..
जवाब देंहटाएंवाकई सभी शेरनियों को शतपुत्र-पुत्रीवती भव के मानवीय आशीर्वाद की अत्यंत आवश्यकता है।
जवाब देंहटाएंअच्छा आलेख. ईश्वर करे ऐसा ही हो.
जवाब देंहटाएंयह तो अच्छी खुशखबरी रही..नहीं तो फिर इन्हें किताबों व नेट पर ही देखना पड़ता.
जवाब देंहटाएंकल तक बाघों के कम होने की ख़बरें. अब शेरों की बढती जनसँख्या...सुकूनदायी.
जवाब देंहटाएंकल तक बाघों के कम होने की ख़बरें. अब शेरों की बढती जनसँख्या...सुकूनदायी.
जवाब देंहटाएंयदि पूरे देश में लोग इसी तरह जागरूक हो जाएँ तो फिर क्या कहने. एक तरफ इससे पर्यटकों की संख्या में बढ़ोत्तरी होगी, वहीँ राजस्व में भी वृद्धि होगी....बिलकुल सही कहा आपने.
जवाब देंहटाएंप्रकृति के नियम बदल रहे हैं. अब नर की जगह मादा ही राज करेंगी. यह तो अभी शुरुआत है. शानदार पोस्ट के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंअच्छी जानकारी. शेयर करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंअच्छा आलेख..........
जवाब देंहटाएं....शानदार पोस्ट के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंये तो बढ़िया रही...परिवर्तन प्रकृति का नियम है.
जवाब देंहटाएंचलिए अब शेर दिखेंगे तो सही. नहीं तो जिस तरह की ख़बरें आ रही थीं, वे विचलित कर देती थीं.
जवाब देंहटाएंकिसी भी प्रजाति के वास्तविक अनुपात में मादाओं की संख्या अधिक होना अच्छी बात है। इस से उस प्रजाति की प्रगति सुनिश्चित होती है।
जवाब देंहटाएंकाश सभी लोग इस बारे में सोचते, तो स्थिति बेहतर हो सकती..
जवाब देंहटाएंक्या बात कही. शेर नहीं शेरनियों का राज. तभी तो नेता लोग संसद में महिला आरक्षण बिल पास नहीं होने दे रहे हैं. नहीं तो सब उन्हें खदेड़ देंगीं.
जवाब देंहटाएंक्या बात कही. शेर नहीं शेरनियों का राज. तभी तो नेता लोग संसद में महिला आरक्षण बिल पास नहीं होने दे रहे हैं. नहीं तो सब उन्हें खदेड़ देंगीं.
जवाब देंहटाएंआप सभी को यह पोस्ट पसंद आई...आभार !!
जवाब देंहटाएंवाकई प्राकृतिक असंतुलन रोकने के लिए यह जरुरी कदम था. गिरि की कहानी अन्य जगह भी दुहराई जाएगी, ऐसा कहा जाना चाहिए.
जवाब देंहटाएंएक अच्छी पहल और उसके शानदार नतीजे...ख़ुशी देता है.
जवाब देंहटाएंनारी के बिना कुछ भी नहीं. अब शेरानियाँ आ गई हैं तो शेर तो बढेंगें ही.
जवाब देंहटाएंतो अब गिरि के वनों में घूमा जा सकता है..
जवाब देंहटाएंअच्छी बात बताई आपने..साधुवाद.
जवाब देंहटाएंsundar ati sundar
जवाब देंहटाएंवाह, अब मैं शेर देख सकूँगी...
जवाब देंहटाएंअण्डमान निकोबार का खूब आनन्द ले रहे हैं आप तो!
जवाब देंहटाएंआपकी चिंता जायज है,सही कह रही हैं आप.
जवाब देंहटाएंइस दिशा में यदि कुछ भी सकारात्मक सुनने को मिलता है तो सुखद ही लगता है ।अच्छी जानकारीपूर्ण पोस्ट है ।
जवाब देंहटाएंआपकी चिन्ता बिल्कुल जायज है , बहुत बढ़िया लगी आपकी पोस्ट । ऐसे ही लिखती रहें ।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया पोस्ट ...
जवाब देंहटाएंNice post with good news ...........
जवाब देंहटाएंअब आशा की जानी चाहिए कि शेरों के साथ-साथ तेजी से ख़त्म होते बाघों के दिन भी बहुरेंगे..
जवाब देंहटाएंआमीन