सोमवार, 5 जुलाई 2010

भारत बंद...पर किसके लिए ??

आज भारत बंद...पर किसके लिए ? इस बंद के बाद हमारे जीवन में क्या परिवर्तन होने जा रहा है. न तो इससे महंगाई घटने जा रही है, न ही अन्य समस्याएं कम होने जा रही हैं, इस भारत बंद के चलते सामान्य नागरिक को आज जरुर ढेरों परेशानियों का सामना करना पड़ेगा. किसी का आफिस छूटेगा तो किसी को इलाज नहीं मिल पायेगा. बच्चों का स्कूल प्रभावित होगा तो कईयों का रोजगार. फिर भी बंद पर बंद. कल नेताओं की फोटो अख़बारों के फ्रंट पेज पर होगी और आज दिन भर चैनलों की चांदी है. आखिरकार, बैठे-बिठाये मुद्दा जो मिल गया है. पर सवाल अभी भी वहीँ है, की इस बंद से क्या वाकई कुछ हासिल होगा. यदि इसका प्रतीकात्मक महत्त्व मात्र है तो इसे प्रतीक रूप में किसी स्थान विशेष पर ही क्यों नहीं किया जा सकता. क्या कोई लखपति-करोडपति संसद/विधायक/ राजनेता यह भी सोच रहा है कि बारिश न होने के चलते किसान बर्बादी के कगार पर हैं, भुखमरी बढ़ रही है, बेरोजगारी बढ़ रही है ...आखिर इनके प्रति कोई सचेत क्यों नहीं होता ?
बंदी कोई हल नहीं है, बल्कि यह पलायनवादी सोच है, जो मूल मुद्दों से लोगों को भटकाती है. ऐसे भारत बंद से देश का उद्धार नहीं बल्कि रसातल में ले जाने की तैयारी है. संसद में बायकाट कर चर्चा से भागने वाले लोगों के सड़क पर हुल्लड़ मचाने से न तो महंगाई कम होगी और न रोजमर्रा की समस्याएं. इन नेताओं को कौन समझाए कि जनता समझदार हो चुकी है. उसे एक ऐसा नेतृतव चाहिए जो उसे सही दिशा दिखा सके न कि खोखले वादों, नारों और प्रदर्शनों के दम पर गुमराह करने की कोशिश करे !!

17 टिप्‍पणियां:

  1. apni rajniti chamkane ke liye........bass!!.......:(
    koi samjhaye iss band se kya hota hai........desh kuchh din aur pichchhe chala jata hai........!!

    dhanyawad, aise post ke liye!

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  2. सब राजनीति का खेल है. जो सत्ता में नहीं होते, ऐसे ही अपनी राजनीति चमकाते हैं. उम्दा पोस्ट लिखा आपने.

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  3. बहुत सही लिखा आपने आकांक्षा जी...बधाई.

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  4. सही सवाल उठाया आपने.

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  5. यहाँ मै आपसे सहमत नहीं हूँ. महंगाई के विरोध में केवल बाते करने और टी वी पर बाते करने से सरकार सुनने वाली नहीं है , कुछ जबरदस्त विरोध प्रदर्शन होना ही चाहिए . मै तो कहता हूँ की ये विरोध राजनितिक पार्टियो के बजाय , आम आदमी , मजदुर, किसान और समाज के शोषित बर्ग की ओर से होना चाहिए था , आखिरकार महंगाई का सबसे ज्यादा असर तो इन्ही पर होता है .
    सरकार आज कहती है की salary बढ़ा दिया है इसलिए मूल्य वृधी जायज है पर उन organised sector जिसमे दिहाड़ी मजदुर आते है उनकी salary में कोई बदलाव नहीं आया है .

    आज से अस्सी साल पहले भगत सिंह ने विरोध के रूप में संसद में बम फेका था , आज उस धमाके की एक बार फिर जरुरत है ,

    बहरो को सुनाने के लिए धमाके की जरुरत होती है

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  6. आम जनता राजनीती के खेल का मोहरा बनी हुई है....जिस दिन खुद खिलाड़ी बनेगी तब कुछ परिवर्तन संभव है

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  7. यह पेंटिंग आपकी इस पोस्ट के लायक नहीं है! --
    किसी सरफिरे द्वारा बना दी गईं
    ऐसी पेंटिंग्स को बढ़ावा नहीं दिया जाना चाहिए!

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  8. इन नेताओं को कौन समझाए कि जनता समझदार हो चुकी है. उसे एक ऐसा नेतृतव चाहिए जो उसे सही दिशा दिखा सके न कि खोखले वादों, नारों और प्रदर्शनों के दम पर गुमराह करने की कोशिश करे....सही सोच-सार्थक बात !!

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  9. @ माधव,
    आज से अस्सी साल पहले भगत सिंह ने विरोध के रूप में संसद में बम फेका था , आज उस धमाके की एक बार फिर जरुरत है, बहरो को सुनाने के लिए धमाके की जरुरत होती है......यह बड़ा समावेशी तर्क है. इसी तर्क का इस्तेमाल तो नक्सली से लेकर आतंकवादी तक कर रहे हैं. पर उससे क्या हासिल हो जाता है. एक लोकतान्त्रिक प्रणाली में जब मंहगाई से लेकर धरना-बंद-हड़ताल की कीमत अंतत: जनता को ही चुकानी पड़े तो जरुर कहीं न कहीं कुछ खोट है. उस खोट को समझने की जरुरत है.

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  10. @ माधव,
    बातें तो ठीक हैं, पर बेटा तुम धमाके मत करने लगना. नहीं तो मुश्किल हो जाएगी.

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  11. @ रवि जी,
    आपकी भावनाओं का सम्मान करते हुए यह पेंटिंग हटा रही हूँ और दूसरा चित्र लगा रही हूँ.

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  12. तेरह हजार करोड़ का चूना लग गया, महंगाई जस की तस.

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  13. अब तो बंद भी तमाशा बन गया है. सब सत्ता का खेल है. Nice Post.

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  14. क्या कोई लखपति-करोडपति संसद/विधायक/ राजनेता यह भी सोच रहा है कि बारिश न होने के चलते किसान बर्बादी के कगार पर हैं, भुखमरी बढ़ रही है, बेरोजगारी बढ़ रही है ...आखिर इनके प्रति कोई सचेत क्यों नहीं होता ?...यही तो विडंबना है.

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  15. बेनामी08 जुलाई, 2010

    तमाशा है सब.

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