(यूँ ही डायरी में अपने मनोभावों को लिखना मेरा शगल रहा है। ऐसे ही किसी क्षण में इन मनोभावों ने कब कविता का रूप ले लिया, पता ही नहीं चला। पर यह शगल डायरी तक ही सीमित रहा, कभी इनके प्रकाशन की नहीं सोची। फिलहाल तो देश की तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में मेरी कविताएं प्रकाशित हो रही हैं, पर मेरी प्रथम कविता कादम्बिनी पत्रिका में ‘‘युवा बेटी‘‘ शीर्षक ‘नये पत्ते‘ स्तम्भ के अन्तर्गत दिसम्बर 2005 में प्रकाशित हुई थी। आज उसे ही यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ-)
जवानी की दहलीज पर
कदम रख चुकी बेटी को
माँ ने सिखाये उसके कर्तव्य
ठीक वैसे ही
जैसे सिखाया था उनकी माँ ने
पर उन्हें क्या पता
ये इक्कीसवीं सदी की बेटी है
जो कर्तव्यों की गठरी ढोते-ढोते
अपने आँसुओं को
चुपचाप पीना नहीं जानती है
वह उतनी ही सचेत है
अपने अधिकारों को लेकर
जानती है
स्वयं अपनी राह बनाना
और उस पर चलने के
मानदण्ड निर्धारित करना।
-आकांक्षा यादव
happy Doughters day
जवाब देंहटाएंcongrts to Pakhi
वाऊ दोबारा पढना अच्छा लगा 2007 तक कादिम्बनी (HT मीडिया) की एजेसी हमारे पास थी तब खूब पढा करते थे(फ्री मे मिल जाती थी :)) अब तो कादिम्बनी को देखे सालो हो गये...वॆसे सुना हॆ कि वो पहले वाली बात भी नही रही..
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी प्रस्तुति ..
जवाब देंहटाएंवह उतनी ही सचेत है
अपने अधिकारों को लेकर
जानती है
स्वयं अपनी राह बनाना
और उस पर चलने के
मानदण्ड निर्धारित करना।
पर २१वीं सदी में भी कितने प्रतिशत लड़कियां जानती हैं ...
sundar rachna!
जवाब देंहटाएंit is so nice to visit ur blog....
regards,
वह उतनी ही सचेत है
जवाब देंहटाएंअपने अधिकारों को लेकर
जानती है
स्वयं अपनी राह बनाना
बहुत ही सुन्दर एवं भावमय प्रस्तुति ।
इक्कीसवीं सदी की बेटी की आवाज बुलंद करती एक भावपूर्ण कविता. इस भावपूर्ण कविता हेतु आकांक्षा जी को बधाई.
जवाब देंहटाएंइक्कीसवीं सदी की बेटी की आवाज बुलंद करती एक भावपूर्ण कविता. इस भावपूर्ण कविता हेतु आकांक्षा जी को बधाई.
जवाब देंहटाएंये इक्कीसवीं सदी की बेटी है
जवाब देंहटाएंजो कर्तव्यों की गठरी ढोते-ढोते
अपने आँसुओं को
चुपचाप पीना नहीं जानती है.....
बहुत सुन्दर...आज की नारी को अपने अधिकारों के संघर्ष के लिए एक अच्छी प्रेरणा...बधाई....
सही कहा आकांक्षा जी आपने...वक़्त के साथ लड़कियों कि सोच में काफी परिवर्तन आ रहा है. इस परिवर्तन को ही आपकी यह कविता भली-भांति परिलक्षित कर रही है...जितनी भी बड़ाई करूँ कम है.
जवाब देंहटाएं@ माधव,
जवाब देंहटाएंआज डाटर्स डे है, यह तो हमें पता ही नहीं...अच्छा बताया.
@ Ashish,
जवाब देंहटाएंबहुत खूब कही...कादम्बिनी तो प्राय: सभी बुक-स्टाल्स पर उपलब्ध हो जाती है. कभी-कभी खरीदकर भी पढने का अपना मजा है.
@ संगीता जी,
जवाब देंहटाएंसराहने के लिए आभार. रुढियों को तोड़ने का दम अभी बहुत कम लड़कियों में है, पर वक़्त के साथ परिवर्तन भी खूब आये हैं. अब तो दहेज़ के लिए बारातें लौटने कि घटनाएँ खूब सुनाई देती हैं.
@ अनुपमा,
जवाब देंहटाएंआप पहली बार मेरे ब्लॉग पर आईं, आभार.
@ Sada,
@ Dr. Brajesh,
मेरी इस कविता की सराहना के लिए आभार.
@ Kailash Sharma,
जवाब देंहटाएंआप पहली बार मेरे ब्लॉग पर आये, आभार. मेरी रचना आपको पसंद आई, जानकर अच्छा लगा.
बहुत ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने! बधाई!
जवाब देंहटाएंikkiswin sadi ke beti ko salam...:)
जवाब देंहटाएंस्त्री-मन की सुन्दर अभिव्यक्ति...काश हर कोई ऐसा सोचे तो नारी को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता....शानदार कविता के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंआकांक्षा जी, आपके प्रोफाइल पर लिखी यह पंक्तियाँ आप पर सटीक बैठती हैं-
जवाब देंहटाएंएक रचनाधर्मी के रूप में रचनाओं को जीवंतता के साथ सामाजिक संस्कार देने का प्रयास. बिना लाग-लपेट के सुलभ भाव-भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें, यही मेरी लेखनी की शक्ति है !!
२१ वीं सदी में बदलती नारी-शक्ति की महत्ता को उजागर करती सशक्त रचना...बधाई.
जवाब देंहटाएं@ Bhanwar Singh,
जवाब देंहटाएं@ Mukesh,
मेरी इस कविता की सराहना के लिए आभार.
@ Shahroz,
जवाब देंहटाएंआपके शब्द मुझे हौसला देते हैं, कुछ नया रचने का..आभार.
@ Ratnesh ,
जवाब देंहटाएंसही कहा आपने की काश हर कोई ऐसा सोचे तो नारी को आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता..Thanks.प्रोफाइल पर लिखी पंक्तियाँ आपको पसंद आईं, लिखना सार्थक हो गया.
आकांक्षा जी सुलतानपुर मे हम नही तो कोई नही..बसस्टाप पर खन्ना जी थे वो अब भी मगाते थे...कुल 25 कापी आती थी जिसमे 8-10 कापी वापसी भेज देते थे ...हाल में खन्ना जी का स्वर्गवास हो गया हॆ...अब देखते हॆ कि कादिम्बिनी का जिम्मा कॊन उठाता हॆ...[बात खरीद कर पढने की बात नही हॆ..दरअसल कादिम्बिनी मे वो बात नही रही..नही तो हमे क्या हम तो खरीद कर पढ भी लेगे ऒर वापस अपनी स्टाल पर लगवा देगें, एक मॆगजीन मे कमीशन ना ही सही ;)]
जवाब देंहटाएं@ Ashish,
जवाब देंहटाएंInteresting...!!
वह उतनी ही सचेत है
जवाब देंहटाएंअपने अधिकारों को लेकर
जानती है
स्वयं अपनी राह बनाना
और उस पर चलने के
मानदण्ड निर्धारित करना।
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प्रगतिशील विचारों को रेखांकित करती विलक्षण प्रस्तुति...बधाइयाँ.
फिलहाल तो देश की तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में मेरी कविताएं प्रकाशित हो रही हैं, पर मेरी प्रथम कविता कादम्बिनी पत्रिका में ‘‘युवा बेटी‘‘ शीर्षक ‘नये पत्ते‘ स्तम्भ के अन्तर्गत दिसम्बर 2005 में प्रकाशित हुई थी।....पहली कविता की बात ही अनूठी होती है...इसे शेयर करने के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंपर उन्हें क्या पता
जवाब देंहटाएंये इक्कीसवीं सदी की बेटी है
जो कर्तव्यों की गठरी ढोते-ढोते
अपने आँसुओं को
चुपचाप पीना नहीं जानती है
...जैसे-जैसे समाज बदल रहा है, वैसे-वैसे नारी भी मुखर हो रही है और यही समय की मांग भी है...बेहतरीन अभिव्यक्ति.
गुफ्तगू में प्रकाशनार्थ आपकी कविताओं का स्वागत है.
जवाब देंहटाएंआपकी कवितायेँ अक्सर पढता रहता हूँ..आपकी पहली कविता पढ़कर मन पुलकित हो गया. आपकी लेखनी को सलाम.
जवाब देंहटाएंवाह वाह ! क्या खूब कहा , चाहते तो हम भी वही हैं कि ........मगर इक्कीसवीं सदी की अनुपमाओं को जब मरता/कत्ल होता देखते हैं तो लगता है कि ...अभी माओं का काम बांकी है ..इतना प्रखर कर दें बेटियों को ..बांकी सब कुछ ..उसके आवेग के आगे तिनके जैसा लगे ..और इसके लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं
जवाब देंहटाएंआपकी कवितायेँ अक्सर पढता रहता हूँ..आपकी पहली कविता पढ़कर मन पुलकित हो गया. आपकी लेखनी को सलाम.
जवाब देंहटाएंइक्कीसवीं सदी की बेटी चुपचाप तो नहीं सह पायेगी.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना है
डायरी-लेखन से लेकर तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं तक का रचनात्मक सफ़र बड़ा निराला लगा....आप यूँ ही उन्नति के पथ पर अग्रसर हों.
जवाब देंहटाएंआपके प्रगतिशील विचार देखकर अच्छा लगा...बधाई.
जवाब देंहटाएंपुत्री-दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनाएँ!
जवाब देंहटाएंआपने सही तो कहा है पर फिर अत्यंत जागरूक(पश्चिमी संस्कृति की ओर) होना भी कितना सही और कितना गलत साबित हो रहा है, इस पर विचार करना भी आवश्यक है..
जवाब देंहटाएंलेकिन कोन सी लडकियां ज्यादा खुश थी आज की या पहले की? कितने तलाक पहले होते थे ? ओर कितने आज?
जवाब देंहटाएंआज डाटर्स डे है ?? मुझे भी पता नहीं था
जवाब देंहटाएंकल ही सही लेकिन... एक पोस्ट तो बनानी पड़ेगी
रचना बहुत अच्छी लगी
इस वर्ष यह दिन 26 सितंबर (रविवार) को पड़ रहा है।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर भाव संजोये हैं।
जवाब देंहटाएंइस २१ वि सदी की पदचाप उस हर लडकी के कानो तक पहुंचे जिसने अभी अभी इस दुनिया में कदम रखा है |
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी कविता |
आत्मविश्वास से स्पंदित शब्द।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा और सही लिखा है .............
जवाब देंहटाएंआप सभी की प्रतिक्रियाओं के लिए आभार. अपना स्नेह यूँ ही बनाये रहें.
जवाब देंहटाएं21 वीं सदी की बेटी अपने अधिकारों के प्रति भी सजग है ....
जवाब देंहटाएंयही है ...होना भी चाहिए ...
अच्छी कविता !
खूबसूरत अभिव्यक्ति, आज की बेटियां जीवन के हर सोपान पर श्रेष्ठता का परचम लहरा रही है . इस अनुपम रचना के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंसुन्दर कविता के साथ डाटर्स डे की बधाइयाँ , और होती हैं माँ की परछाइयाँ बेटियां ।
जवाब देंहटाएंआप बहुत सुंदर लिखती हैं. भाव मन से उपजे मगर ये खूबसूरत बिम्ब सिर्फ आपके खजाने में ही हैं ....डाटर्स-डे पर बधाई.
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर और भावपूर्ण रचना! बहुत बढ़िया लगा आपका ये पोस्ट !
जवाब देंहटाएंपर उन्हें क्या पता
जवाब देंहटाएंये इक्कीसवीं सदी की बेटी है
...Adbhut !!
आज की बेटियां तो बेटों से काफी आगे हैं...शानदार प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंधन्यवाद...आप सभी को यह कविता पसंद आई. ..आभार !!
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