नेता-अभिनेता दोनों
हो गए एक समान
मंचों पर बैठकर गायें
एक दूजे का गान।
चिकनी चुपडी़ बातें करें
खूब करें अपना बखान
जनता का धन खूब लूटें
गायें मेरा भारत महान।
मँहगाई, बेरोजगारी खूब फैले
नेताजी सोते चद्दर तान
खुद खाएं मुर्ग मुसल्लम
जनता भुखमरी से परेशान।
कभी आंतक, कभी नक्सलवाद
ये लेते सबकी जान
नेताजी बस भाषण देते
शहीद होते जाबांज जवान।
चुनाव आया तो लंबे भाषण
खडे़ हो गए सबके कान
वायदों की पोटली से
जनता हो रही हैरान ।
स्ंसद में पहुँच नेताजी
बघारते अपना ज्ञान
अगला चुनाव कैसे जीतें
बस यही रहता अरमान ।
आकांक्षा यादव : Akanksha Yadav
चित्र साभार : मोनिका गुप्ता
हा..हा..हा..मजेदार !!
जवाब देंहटाएंव्यंग्यात्मक रूप में बहुत सही बात कही आपने...सशक्त रचना के लिए बधाई.
जवाब देंहटाएंमोनिका जी ने सुन्दर चित्र बनाया है..उन्हें भी बधाई.
जवाब देंहटाएंAchha chitran
जवाब देंहटाएंवाह वाह ... बहुत खूब ... जय हो !
जवाब देंहटाएंइस पोस्ट के लिए आपका बहुत बहुत आभार - आपकी पोस्ट को शामिल किया गया है 'ब्लॉग बुलेटिन' पर - पधारें - और डालें एक नज़र - दा शो मस्ट गो ऑन ... ब्लॉग बुलेटिन
बहुत बड़ा सच है, दोनों एक दूसरे का कार्य कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति!
जवाब देंहटाएंस्ंसद में पहुँच नेताजी
जवाब देंहटाएंबघारते अपना ज्ञान
अगला चुनाव कैसे जीतें
बस यही रहता अरमान ।
सार्थक और सुन्दर व्यंग्य कविता..बधाई.