मंगलवार, 1 जून 2010

प्रति व्यक्ति आय 44345 रुपये...सोचिये जरा ??

केंद्र सरकार के एक साल पूरे हो गए. आज के दौर में यह अपने आप में उपलब्धि है. खैर उसके पीछे न जाने कितने समझौते और ब्लैकमेलिंग छिपी होती हैं, कोई न जाने. अँधेरी राह में एक जुगनू की चमक भी किसी को नव-जीवन दे जाती है. शायद अब मिली-जुली सरकारों का यही सच है.

जिस देश की एक तिहाई आबादी गरीबी रेखा से नीचे रहती हो. जहाँ रोज बीस रूपये पर जीने वालों कि आबादी अच्छी तादाद में हो वहाँ यह सुनना कितना कर्णप्रिय लगता है कि भारत में वर्ष 2009-10 में प्रति व्यक्ति आय 10.5 प्रतिशत बढ़कर 44345 रुपये पहुँच गई. पिछले वित्त वर्ष से करीब चार हजार ज्यादा. गौरतलब है कि प्रति व्यक्ति आय का अर्थ प्रत्येक भारतीय की आय से है। राष्ट्रीय आय को देश की 117 करोड़ लोगों की आबादी में समान रूप से बांटकर प्रति व्यक्ति आय निकाला जाता है। सोमवार को जारी सरकारी आंकड़ों के मुताबिक प्रति व्यक्ति केंद्रीय सांख्यिकी संगठन [सीएसओ] के अनुमान से थोड़ी ज्यादा है। सीएसओ ने अपने अग्रिम अनुमान में प्रति व्यक्ति आय 43749 रुपये रहने की गणना की थी। हालांकि अगर प्रति व्यक्ति आय की गणना 2004-05 के आधार पर की जाए तो बीते वित्त वर्ष में यह 5.6 प्रतिशत बढ़ी। वर्ष 2004-05 में कीमतों के आधार पर बीते वित्त वर्ष में प्रति व्यक्ति आय 33588 रुपये रही, जबकि इससे पूर्व वर्ष 2008-9 में यह 31821 रुपये थी। गौरतलब है कि वर्ष 2009-10 में अर्थव्यवस्था का आकार बढ़कर 6231171 करोड़ रुपये पर पहुंच गया जो इससे पूर्व वित्त वर्ष के 5574449 करोड़ रुपये के आकार की तुलना में 11.8 प्रतिशत अधिक है।

ये सब आंकड़े पढने जितने दिलचस्प लगते हैं, उनका सच उतना ही भद्दा होता है. बिजनेस मैन और नौकरी वालों को निकाल दीजिये तो शायद यह प्रति व्यक्ति आय हजार और सैकड़े में भी न बैठे. पर यही देश का दुर्भाग्य है आंकड़ों के इस खेल में हम अपनी तीन चौथाई जनता को भुलाये बैठे हैं. कृषि दिनों-ब-दिन घटे का सौदा होती जा रही है, किसान मौत को गले लगा रहे हैं, बिचौलियों की चाँदी है. मॉल संस्कृति ने तो रही-सही कसर ही पूरी कर दी. फिर एक बार अपनी अंतरात्मा पर हाथ रखकर पुच्चिये की क्या वाकई इस देश में प्रति व्यक्ति आय 10.5 प्रतिशत बढ़कर 44345 रुपये पहुँच गई है...सोचियेगा !!

26 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत विचारणीय पोस्ट....ये आंकड़े भी क्या गुल खिलाते हैं ?

    जवाब देंहटाएं
  2. आईये, मन की शांति का उपाय धारण करें!
    आचार्य जी

    जवाब देंहटाएं
  3. satya hai jis desh main hazaro log bhukh se mer rehe ho vahan prati vaktiमासिक आय 3695 सुनने मे ही अच्छी है

    जवाब देंहटाएं
  4. ये सरकारी आँकड़े हैं
    यही तो हर विकास की राह में
    आकर के खड़े हैं

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत विचारणीय पोस्ट

    जवाब देंहटाएं
  6. आपका आलेख गहरे विचारों से परिपूर्ण होता है।

    जवाब देंहटाएं
  7. यही तो विडंबना है. अच्छी जानकारी दी अपने आकांक्षा जी.

    जवाब देंहटाएं
  8. सरकार सिर्फ़ नेताओ ओर उन के रिश्ते दारो को ही गिन्ती होगी, कभी किसी गरीब को देखा,बेचारा घटिया आटे की सुखी रोटी हाथ पर ले कर रुखी खा रहा होता है... उस के लिये तो "प्रति व्यक्ति आय 44345 रुपये नही पैसे ही होगी ना???
    झुठ बोलना पाप है

    जवाब देंहटाएं
  9. आंकड़ों के इस खेल में हम अपनी तीन चौथाई जनता को भुलाये बैठे हैं. कृषि दिनों-ब-दिन घटे का सौदा होती जा रही है, किसान मौत को गले लगा रहे हैं, बिचौलियों की चाँदी है....सटीक विश्लेषण !

    जवाब देंहटाएं
  10. 100 में से 80 बेईमान,
    फिर भी मेरा देश महान .

    यह आंकड़े तो सरकार की इसी नीति को दर्शाते हैं.

    जवाब देंहटाएं
  11. अजी इसकी व्यथा हम बेरोजगारों से पूछिये ...

    जवाब देंहटाएं
  12. सब आंकड़ों की बाजीगरी है. छठवें वेतन योग ने इतना फासला पैदा कर दिया है कि क्या कहा जाय ??

    जवाब देंहटाएं
  13. अब किसे सच कहें- सरकार को या जो दिखता है. मनमोहन सिंह जी तो वैसे भी अर्थशास्त्री हैं, आंकड़ों की हेर फेर अच्छी तरह जानते हैं.

    जवाब देंहटाएं
  14. वाकई सोचनीय है..सटीक आंकड़े, पर सरकारी.

    जवाब देंहटाएं
  15. सरकार के सतरंगी सुहाने सपनों की ताबीर...

    सोनिया-मनमोहन की जय हो.
    हर जगह आतंकवाद व नक्सलवाद का भय हो.

    जवाब देंहटाएं
  16. बहुत सही लिखा आपने..बेबाक.

    जवाब देंहटाएं
  17. बेनामी01 जून, 2010

    बहुत सधी हुई बात आपने कही आकांक्षा जी..सच को आइना दिखाया.

    जवाब देंहटाएं
  18. ये आम आदमी की सेकुलर सरकारों की उन नितीयों का परिणाम है जिन पर 50 वर्ष अमल किया गया।
    आपने बहुत सही प्रशन उठाया।

    जवाब देंहटाएं
  19. अच्छे आँकड़े प्रस्तुत किये हैं,,,
    विचारणीय है ..परन्तु है तो ये सरकारी आंकड़े ,,,,कुछ कहना मुश्किल है ?

    जवाब देंहटाएं
  20. इन आंकड़ों की पैमाइश में ही तो सरकारें शुतुरमुर्ग जैसा अपना चेहरा छुपाती हैं...अच्छी पोस्ट.

    जवाब देंहटाएं
  21. ये आंकड़े तो वाकई कमाल के हैं...

    जवाब देंहटाएं
  22. इन आंकड़ों का सटीक व सार्थक विश्लेषण किया है आपने..आभार.

    जवाब देंहटाएं
  23. तब भी देश में इतना पिछड़ापन है.

    जवाब देंहटाएं