गुरुवार, 22 सितंबर 2011

महँगाई का हाल

मँहगी सब्जी, मँहगा आटा
भूल गए सब दाल
मँहगाई ने कर दिया
सबका हाल बेहाल।

दूध सस्ता, पानी मँहगा
पेप्सी-कोला का धमाल
रोटी छोड़ ब्रेड खाओ
बहुराष्ट्रीय कंपनियों का कमाल।

नेता-अफसर मौज उड़ाएं
चलें बगुले की चाल
गरीबी व भुखमरी बढ़े
ऐसा मँहगाई का जाल ।

संसद में होती खूब बहस
सेठ होते कमाकर लाल
नेता लोग खूब चिल्लायें
विपक्ष बनाए चुनावी ढाल।

जनता रोज पिस रही
धंस गए सबके गाल
मँहगाई का ऐसा कुचक्र
हो रहे सब हलाल।

- आकांक्षा यादव

13 टिप्‍पणियां:

  1. संसद में होती खूब बहस
    सेठ होते कमाकर लाल
    नेता लोग खूब चिल्लायें
    विपक्ष बनाए चुनावी ढाल।

    ...करार व्यंग्य..सच भी तो यही है..शानदार कविता..बधाई.

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  2. संसद में होती खूब बहस
    सेठ होते कमाकर लाल
    नेता लोग खूब चिल्लायें
    विपक्ष बनाए चुनावी ढाल।

    ...करार व्यंग्य..सच भी तो यही है..शानदार कविता..बधाई.

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  3. यही हाल है…………सुन्दर प्रस्तुति।

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  4. सच में मंहगाई दायाँ खाये जात है ...

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  5. न जाने कहाँ जा कर रुकेगी यह मँहगाई ..अच्छी प्रस्तुति

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  6. आपने तो सबके दिल का हाल लिख डाला. सुंदर प्रस्तुति के लिये आभार और शुभकामनायें.

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  7. व्यवस्था पर करार व्यंग्य बधाई और शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  8. व्यवस्था पर करार व्यंग्य बधाई और शुभकामनाएं

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  9. महंगाई नेताओं को कुछ नहीं कहती … :(

    आपको सपरिवार
    नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

    -राजेन्द्र स्वर्णकार

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  10. "मंहगाई का हाल "आज के सन्दर्भ में भी यह कविता खरी उतरती है |प्रशंस्निये |मेरे ब्लॉग पर आप का स्वागत है | http//kumar2291937.blogspot,com

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