ओम् जग जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे, भक्त जनों के संकट, क्षण में दूर करें....पूजा-आराधना किसी भी देवता की की जा रही हो, ओम जय जगदीश हरे आरती हर अवसर पर गाई जाती है। करीब डेढ़ सौ वर्ष में मंत्र और शास्त्र की तरह लोकप्रिय हो गई इस भावपूर्ण गीत आरती के रचयिता पंडित श्रद्धाराम शर्मा के बारे में कम लोगों को ही पता है। पं0 श्रद्धाराम शर्मा का जन्म 1838 में पंजाब के लुधियाना के पास फुल्लौर में हुआ थां. पिता जयदयालु अच्छे ज्योतिषी और धार्मिक प्रवृत्ति के थे. ऐसे में बालक श्रद्धाराम को बचपन से ही धार्मिक संस्कार विरासत में मिले थे। पंडित श्रद्धाराम शर्मा हिंदी के ही नहीं बल्कि पंजाबी के भी श्रेष्ठ साहित्यकारों में थे, लेकिन उनका मानना था कि हिंदी के माध्यम से इस देश के ज्यादा से ज्यादा लोगों तक अपनी बात पहुंचाई जा सकती है। उन्होंने अपने साहित्य और व्याख्यानों से सामाजिक कुरीतियों और अंधविश्वासों के खिलाफ जबर्दस्त माहौल बनाया।
आज जिस पंजाब में सबसे ज्यादा कन्याओं की भ्रूण-हत्या होती है उसका अहसास पंडित श्रद्धाराम ने सौ साल पहले ही कर लिया था और इस विषय पर उन्होंने ‘भाग्यवती‘ उपन्यास लिखकर समाज को चेता दिया था।32 वर्ष की उम्र में पंडित श्रद्धाराम शर्मा ने 1870 में ''ओम जय जगदीश'' आरती की रचना की। पं0 श्रद्धाराम की विद्वता और भारतीय धार्मिक विषयों पर उनकी वैज्ञानिक दृष्टि के लोग कायल हो गए थे। जगह-जगह पर उनको धार्मिक विषयों पर व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया जाता था और हजारों की संख्या में लोग उनको सुनने आते थे। वे लोगों के बीच जब भी जाते अपनी लिखी ओम जय जगदीश की आरती गाकर सुनाते। यही नहीं धार्मिक कथाओं और आख्यानों का उद्धरण देते हुए उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ जनजागरण का ऐसा वातावरण तैयार कर दिया कि अंग्रेजी सरकार की नींद उड़ गई।
भारतीय सन्दर्भ में महाभारत का उल्लेख करते हुए वे ब्रिटिश सरकार को उखाड़ फेंकने का संदेश देते थे। पंडित श्रद्धाराम शर्मा की गतिविधियों से तंग आकर 1865 में ब्रिटिश सरकार ने उनको फुल्लौरी से निष्कासित कर दिया और आसपास के गाँवों तक में उनके प्रवेश पर पाबंदी लगा दी गई। जबकि उनकी लिखी किताबें स्कूलों में पढ़ाई जाती रही। पं0 श्रद्धाराम ने पंजाबी (गुरूमुखी) में ‘सिखों दे राज दी विथिया‘ और पंजाबी बातचीत जैसी किताबें लिखकर मानों क्रांति ही कर दी। अपनी पहली ही किताब से वे पंजाबी साहित्य में प्रतिष्ठित हो गए। इस पुस्तक में सिख धर्म की स्थापना और इसकी नीतियों के बारे में बहुत सारगर्भित ढंग से बताया गया था। अंग्रेज सरकार ने तब होने वाली आईसीएस परीक्षा के कोर्स में इस पुस्तक को शामिल किया था।एक ईसाई पादरी फादर न्यूअन जो पं0 श्रद्धाराम के विचारों से बेहद प्रभावित थे, के हस्तक्षेप पर अंग्रेज सरकार को कुछ ही दिनों में उनके निष्कासन का आदेश वापस लेना पड़ा। पंडित श्रद्धाराम ने पादरी के कहने पर बाइबिल के कुछ अंशों का गुरूमुखी में अनुवाद भी किया था। पं0 श्रद्धाराम का निधन 1881 में लाहौर में हुआ था। आज हर घर में "जय जगदीश हरे" आरती गई जाती है, यहाँ तक की युवा भी बड़ी तल्लीनता से इसे गाती है, पर अधिकतर को इसके रचयिता का नाम तक पता नहीं.
14 टिप्पणियां:
रोचक जानकारी के लिए आभार.
dhnya ho !
bahut mahatvapoorna jaankaari.......
aapka dhanyawad ye sawal kai mere man me bhi aya lekin mane kisi se poocha nhi or aaj bina pooche hi jawab mil gya dhanya hai aap apki vajah se itni bari jankari mili
bahut khas aur upyogi jaankari, main samajhta hun iskijaankari pratyek hindu ko honi chahiye.
जन जन की ज़ुबानी भगवान की यह आरती के रचयिता के बारें में जान कर बहुत बढ़िया लगा...अच्छी जानकारी..बहुत बहुत आभार आकांक्षा जी
जय हो. ज्ञानवर्धक जानकारी.
http://epankajsharma.blogspot.com/
ओम जय जगदीश हरे......... भजन गाते वक्त मेरे मन में यह विचार जरूर आया कि जानूं कि इस भजन के रचयिता कौन हैं
मगर जान नहीं पाया.. आज पं श्रद्धाराम शर्मा जी के बारे में जानकर बहुत प्रसन्नता हुई.
वाह ! युवाओं के लिए नई बात क्योंकि इस आरती के लेखक को अधिकतर लोग नहीं जानते.
वाह ! युवाओं के लिए नई बात क्योंकि इस आरती के लेखक को अधिकतर लोग नहीं जानते.
पंडित श्रद्धाराम जी ने वाकई नायब कार्य किया. आज हर कोई इस आरती को गाता है, पर आपने अपने ब्लॉग के माध्यम से उनके बारे में जानकारी देकर बेहतरीन कार्य किया है...बधाई.
आरती की महिमा अपरम्पार...स्वामी जय जगदीश हरे.
फ़िलहाल मेरे लिए नवीन जानकारी....आपका ब्लॉग बेहतरीन और दिलचस्प है.
पंडित श्रद्धाराम जी से परिचित करने के लिए आभार. दुर्भाग्य से ऐसी विभूतियों को समाज विस्मृत करता जा रहा है.
dhnya ho !
bahut mahatvapoorna jaankaari....
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