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गुरुवार, 30 जनवरी 2025

Special Issue of Hindi Magazine Saraswati Suman : संग्रहणीय है 'सरस्वती सुमन' का 'आकांक्षा-कृष्ण युगल' अंक

प्रतिष्ठित हिंदी मासिक पत्रिका 'सरस्वती सुमन' का 'आकांक्षा-कृष्ण युगल' अंक, दिसंबर-2024 (वर्ष 23, अंक 110) प्राप्त हुआ जो देहरादून, उत्तराखंड से प्रकाशित होती है। वर्तमान अंक का आकर्षण एक साहित्यकार दंपत्ति के रूप में स्थापित आकांक्षा यादव और कृष्ण कुमार यादव के साहित्य पर विशेषांक के रूप में प्रकाशित हुआ है। इस पत्रिका के प्रधान संपादक डॉ. आनंद सुमन सिंह और संपादक श्री किशोर श्रीवास्तव हैं। पत्रिका का कवर पेज साहित्य साधना में रत युगल जोड़ी के खूबसूरत छायाचित्र से बहुत कुछ कहता प्रतीत होता है। पत्रिका की अनुक्रमणिका पर दृष्टि डालने से यह बात और भी पुष्ट होती नजर आती है। साहित्य एवं संस्कृति का सारस्वत अभियान के तहत प्रकशित पत्रिका के इस अंक को कुल सात भागों में विभक्त करके कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव की साहित्यिक रचनाधर्मिता को समेटने की कोशिश की गई है। 

प्रथम भाग में कृष्ण कुमार यादव की कविताएं, द्वितीय भाग में आकांक्षा यादव की कविताएं, तृतीय भाग में कृष्ण कुमार यादव की लघु कथाएं, चतुर्थ भाग में आकांक्षा यादव की लघु कथाएं, पंचम भाग में कृष्ण कुमार यादव की कहानियाँ, षष्ठ भाग में आकांक्षा यादव के लेख और सप्तम भाग में कृष्ण कुमार यादव के लेख के साथ-साथ युगल आकांक्षा और कृष्ण कुमार यादव का परिचय व्यवस्थित तरीके से प्रकाशित किया गया है।


प्रथम भाग में कृष्ण कुमार यादव की कविताएं जैसे - बदलती कविता, अंडमान के आदिवासी, सेलुलर जेल की आत्माएं, सभ्यताओं का संघर्ष, रिश्तों का अर्थशास्त्र, विज्ञापनों का गोरखधंधा, मांस का लोथड़ा, बिखरते शब्द, मां, बच्चे की निगाह, पॉलिश  ब्रेकिंग न्यूज़ आदि कविताएं पत्रिका के गौरव को बढ़ा रही हैं। द्वितीय भाग में आकांक्षा यादव की कविताएं जैसे- शब्दों की गति, हमारी बेटियां, नियति का प्रहार, वजूद, 21वीं सदी की बेटी,मैं अजन्मी, श्मशान, एहसास, सिमटता आदमी भी विशेष महत्व की कविताएं दिखतीं हैं। तृतीय भाग में कृष्ण कुमार यादव की लघु कथाएं जैसे - एन.जी.ओ, चिंता, व्यवहार, सर्कस, हिंदी सप्ताह, बेटा, एक राहगीर की मौत, खतरनाक, प्यार का अंजाम, रोशनी, दहेज, योग्यता, इन्वेस्टमेंट के साथ चतुर्थ भाग में आकांक्षा यादव की लघु कथाएं जैसे- अधूरी इच्छा, अरमान,बेटियाँ, चैट, अवार्ड का राज, काला आखर आदि प्रमुख आकर्षण हैं।

 
पंचम खंड में कृष्ण कुमार यादव की कहानियाँ  जैसे- आवरण, हकीकत, रिश्तों की नजाकत, शराफत इत्यदि प्रकाशित हैं। षष्ठ भाग में आकांक्षा यादव के लेख - लोक चेतना में स्वाधीनता की लय, भूमंडलीकरण के दौर में भाषाओं पर बढ़ता खतरा, समकालीन परिवेश में नारी विमर्श, मानव और पर्यावरण : सतत विकास और चुनौतियां प्रकाशित हैं। सप्तम खंड में कृष्ण कुमार यादव के लेख - शाश्वत है भारतीय संस्कृति और इसकी विरासत, भागो नहीं दुनिया को बदलो, राजनीति से दूर होता साहित्यिक व सांस्कृतिक विमर्श, कोई लौटा दे वो चिठ्ठियां प्रकाशित हैं।

कृष्ण कुमार यादव की कविताएं सीधे-सीधे जन मानस की आवाज बनी हुई दिखाई देती हैं। वही सुदूर अंडमान-निकोबार के आदिवासी भी उनकी लेखनी के माध्यम से आवाज पाते हैं। एक साहित्यकार की नजर में कृष्ण कुमार यादव सेलुलर जेल की आत्माओं को भी शब्द देते नजर आते हैं। कृष्ण कुमार यादव रिश्तों के अर्थशास्त्र को भी अपनी रचना में कम शब्दों में बेहतरीन तरीके से व्यक्त करते नजर आते हैं। आज का बाजार विज्ञापनों से भरा पड़ा है। ऐसे में उनकी 'विज्ञापनों का गोरखधंधा' कविता विज्ञापनों के खोखलेपन को उजागर करती नजर आती है। 'मांस का लोथड़ा' या 'बिखरते शब्द' पढ़ने से उनके अंदर की संवेदना और संस्कृति की झलक मिलती है। 'बिखरते शब्द' में वह लिखते हैं- "शब्द है तो सृजन है/साहित्य है संस्कृति है/पर लगता है/शब्द को लग गई किसी की बुरी नजर।" इसी तरह 'मां' कविता में कृष्ण कुमार यादव मां के जीवनी के हर पहलू को मां और बेटे के भावनात्मक जुड़ाव के माध्यम से शब्दों में पिरोते हैं। 'पालिश' कविता में उनके जो शब्द हैं वह जमीनी एहसास कराते हैं। कविता की शुरुआत ही एक बालक के जूता पॉलिश करने के शब्द से होती है। जिस शब्द से जूता पॉलिश करने वाला बच्चा जूता पॉलिश कराने वाले को स्नेह के साथ अपने पास बुलाता है-'साहब पॉलिश करा लो' इस एक लाइन में ही उनकी पूरी कविता का विमर्श सामने आ जाता है और उनकी रचना बाल विमर्श के नए अध्याय को खोलती है। 'ब्रेकिंग न्यूज़' कविता में वे आज की मीडिया पर करारा प्रहार करते नजर आते हैं।

आकांक्षा यादव की कविताएं संवेदना की धरातल पर तो लिखी ही गई हैं, साथ ही साथ वह नारी अस्मिता और सशक्तिकरण की बात को भी बहुत सलीके के साथ अपनी कविता में रखती नजर आती हैं। वह लिखती है - 'मुझे नहीं चाहिए/ प्यार भरी बातें/ चांद की चांदनी/ चांद से तोड़कर लाए हुए सितारे/ मुझे चाहिए बस अपना वजूद/ जहां किसी दहेज, बलात्कार,भ्रूण हत्या/का भय नहीं सताए मुझे।' अपनी कविताओं में वे स्त्री विमर्श को सशक्त करती नजर आती हैं।

 



कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव लगातार विभिन्न विधाओं में सक्रियता के साथ लिख रहे हैं और खूब प्रकाशित भी हो रहे हैं। इस युगल की कविताएं कम शब्दों में अपनी बात को व्यक्त करने में सक्षम हैं। दोनों अपने-अपने नजरिये से लघु कथाएं लिखते हैं। दोनों के कैनवास अलग-अलग हैं पर दोनों की दृष्टि लगभग समान है। कृष्ण कुमार यादव की कहानियों का कैनवास बड़ा है और उनकी कहानी एक से बढ़कर एक हैं। आकांक्षा यादव के लेख एक तरफ जहां स्त्री विमर्श के नए आयाम स्थापित करने की कोशिश करते हैं, वही भूमंडलीकरण के दौर में भाषाओं पर बढ़ता खतरा और प्रकृति व पर्यावरण भी उनके लिए पसंदीदा लेखन का विषय है। कृष्ण कुमार यादव का लेख 'भागो नहीं दुनिया को बदलो' राहुल सांकृत्यायन पर एक शोधपरक लेख है, जो कि उनके अपने ही जिले आज़मगढ़ के एक महँ दार्शनिक, यायावर रहे हैं। 'कोई लौटा दे वो चिट्ठियाँ' लेख में कृष्ण कुमार यादव ने बड़ी खूबसूरती से चिट्ठी-पत्री में छुपी भावनाओं और सोशल मीडिया के दौर में उनकी प्रासंगिकता को रेखांकित किया है। लेख पढ़ने के दौरान व्यक्ति उन चिट्ठियों की दुनिया में खो जाता है जिनमें हम सभी के बचपन गुजरे हैं। पत्र लेखन साहित्य की भी एक विधा है और संयोगवश कृष्ण कुमार डाक सेवाओं और साहित्य दोनों से ही गहराई से जुड़े हुए हैं। 


निश्चितत: प्रतिष्ठित हिंदी मासिक पत्रिका सरस्वती सुमन का 'आकांक्षा-कृष्ण युगल' अंक एक संग्रहणीय अंक है। इस तरह का दांपत्य अंक विरले ही देखने को मिलता है। साहित्य समाज का दर्पण है। इस दर्पण में पति-पत्नी के साहित्य को समाज के सामने लाकर 'सरस्वती सुमन' के संपादक ने एक नया विमर्श भी खोला है। साहित्य का अनुराग होने के कारण इस तरह का एक प्रयास हमने भी अपने साहित्य लेखन के दौरान 'सहचर मन' (काव्य संग्रह) 2010 में प्रकाशित कराया था, जिसमें आधी कविताएं मेरी और आधी कविताएं मेरे जीवन साथी प्रोफेसर अखिलेश चंद्र की हैं। इस तरह का प्रयास न केवल साहित्य में बल्कि दांपत्य जीवन में भी खूबसूरत स्थापना का स्वरूप रखते हैं ।

समीक्ष्य पत्रिका - सरस्वती सुमन/ मासिक हिंदी पत्रिका/ प्रधान सम्पादक -डॉ. आनंद सुमन सिंह/ सम्पादक - किशोर श्रीवास्तव/संपर्क -'सारस्वतम', 1-छिब्बर मार्ग, आर्य नगर, देहरादून, उत्तराखंड-248001, मो.-7579029000, ई-मेल :saraswatisuman@rediffmail.com 


समीक्षक : प्रोफेसर (डॉ.) गीता सिंह, अध्यक्ष-स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, डी.ए.वी  पी.जी कॉलेज, आजमगढ़ (उ.प्र.), मो.-9532225244
प्रोफेसर (डॉ.) अखिलेश चन्द्र, शिक्षा संकाय, श्री गांधी पी.जी कॉलेज, मालटारी, आजमगढ़ (उ.प्र.), मो.-9415082614

शनिवार, 23 अप्रैल 2016

''शब्द-शिखर'' पर ब्लॉगिंग का सफरनामा : पाँच शतक का आँकड़ा पार

हिंदी ब्लॉगिंग ने अपना एक लम्बा सफर तय किया है। कभी दो-चार पंक्तियों से आरम्भ हुए हिंदी ब्लॉग ने वक़्त के साथ रफ़्तार पकड़ी और आम जन के साथ तमाम नामी-गिरामी लोगों के लिए अपनी बात कहने का माध्यम बन गया हिंदी ब्लॉग। यह संयोग ही हैं कि अभी 21 अप्रैल, 2016 को हिंदी ब्लॉग ने 13 साल पूरे किये हैं और ठीक उसके एक दिन बाद 22 अप्रैल, 2016 को हमने अपने ब्लॉग शब्द-शिखर पर प्रकाशित पोस्टों का पाँच शतक पूरा किया है अर्थात शब्द-शिखर पर पाँच सौ पोस्ट प्रकाशित हो चुकी हैं।  

20  नवंबर, 2008 को आरम्भ हुआ शब्द-शिखर ब्लॉग भी लगभग साढ़े सात साल का सफर तय कर चुका है।आज शब्द-शिखर ब्लॉग पर 500 पोस्ट प्रकाशित हैं, जिन पर 6,700 से ज्यादा प्रतिक्रियाएं प्राप्त हुई हैं। कुल पृष्ठ दृश्य 2 लाख से भी ज्यादा हैं। दुनिया के लगभग 100 से ज्यादा देशों से किसी न किसी रूप में लोगों ने शब्द-शिखर ब्लॉग को देखा-पढ़ा या विजिट किया है। शब्द-शिखर को  363 लोग फॉलो करते हैं और इसे और भी समृद्ध बनाते हैं।  इसमें कोई शक नहीं कि इस ब्लॉग ने हमें बहुत सम्मान दिया। उस दौर में जबकि फेसबुक के पदार्पण के बाद हर कोई हिंदी ब्लॉग को बीते हुए दौर की बात मानकर, इसका मोह छोड़ रहा था, उस दौर में भी हम इससे अपना मोह नहीं छुड़ा पाये। बीच में एक दौर ऐसा भी आया कि कुछेक पोस्टों पर प्रतिक्रियाएं लगभग शून्य ही थीं और ब्लॉग की पठनीयता भी घट रही थी। पर ज्यादा दिन नहीं बीता, और धीरे-धीरे सब कुछ सहज हो गया।



"शब्द-शिखर" ब्लॉग की तमाम पोस्टों को जहाँ दैनिक जागरण, जनसत्ता, अमर उजाला,राष्ट्रीय सहारा, राजस्थान पत्रिका, आज समाज, गजरौला टाईम्स, जन सन्देश, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, दस्तक, आई-नेक्स्ट, IANS द्वारा जारी फीचर में स्थान दिया गया, वहीं इस ब्लॉग से तमाम रचनाएँ लेकर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं ने प्रकाशित भी कीं। 

अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, लखनऊ (27 अगस्त, 2012) में हिंदी ब्लॉग के एक दशक पूरा होने पर परिकल्पना समूह द्वारा जहाँ ’दशक के श्रेष्ठ ब्लागर दम्पत्ति' के रूप में हमें (कृष्ण कुमार-आकांक्षा यादव) सम्मानित किया गया, वहीँ अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, काठमांडू, नेपाल (13-14 सितंबर 2013) में  ”परिकल्पना ब्लॉग विभूषण सम्मान” और श्री लंका में आयोजित पंचम अंतर्राष्ट्रीय ‪ब्लॉगर‬ सम्मेलन (23-27 मई 2015) में "परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान" से सम्मानित किया गया।  

‘न्यू मीडिया एवं ब्लागिंग’ में उत्कृष्टता के लिए  उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव ने 1 नवम्बर, 2012 को हमें ( आकांक्षा यादव-कृष्ण कुमार यादव) अवध सम्मान से विभूषित किया। जी न्यूज़ द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम का आयोजन ताज होटल, लखनऊ में किया गया था, जिसमें विभिन्न विधाओं में उत्कृष्ट कार्य करने वालों को सम्मानित किया गया, पर यह पहली बार हुआ जब किसी दम्पति को युगल रूप में यह प्रतिष्ठित सम्मान दिया गया। 


ब्लॉगिंग के चलते ही हमें हिंदुस्तान टाइम्स वुमेन अवार्ड के लिए भी नामांकित किया गया, जहाँ फिल्म अभिनेत्री शबाना आज़मी, संगीतकार वाजिद खान, सांसद डिम्पल यादव ने सम्मानित किया। 



इसी क्रम में डॉयचे वेले की बॉब्स - बेस्ट ऑफ ऑनलाईन एक्टिविज्म प्रतियोगिता-2015  में इंटरनेट यूजरों ने  'पीपुल्स चॉइस अवॉर्ड' श्रेणी में  'शब्द-शिखर' (www.shabdshikhar.blogspot.in/) ब्लॉग  को हिंदी के सबसे लोकप्रिय ब्लॉग के रूप में चुना। हिंदी सहित 14 भाषाओं में पीपुल्स चॉइस अवॉर्ड के तहत एक-एक सर्वश्रेष्ठ ब्लॉग चुना गया, जिसमे कुल मिला कर करीब 30,000 वोट डाले गए। ज्यूरी ने इसकी घोषणा करते हुए कहा कि, ''आकांक्षा यादव साहित्य, लेखन और ब्लॉगिंग के क्षेत्र में सक्रिय हैं।  उन्हें हिन्दी में ब्लॉग लिखने वाली शुरुआती महिलाओं में गिना जाता है।  आकांक्षा महिला अधिकारों पर लिखना पसंद करती हैं।  अपने ब्लॉग में वह अपने निजी अनुभव और कविताएं भी शामिल करती हैं।''  विजेताओं को 23 जून को जर्मनी के बॉन शहर में होने वाले ग्लोबल मीडिया फोरम के दौरान पुरस्कृत किया गया।  

निश्चितत:, यह आप सभी का स्नेह ही है जो कि "'शब्द-शिखर" ब्लॉग को जीवंत और समृद्ध बनाए हुए है। आज हम उन सभी लोगों को धन्यवाद देते हैं जिन्होंने हिंदी ब्लागिंग में शब्द-शिखर को इस मुकाम तक पहुँचाया !! 

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आज के दिन 20 नवंबर, 2008  को लिखी अपनी पहली पोस्ट 'ब्लागिंग' और 'एस.एम.एस.'  को पुन: प्रकाशित कर रही हूँ, जहाँ से हमने ब्लॉगिंग का शुभारम्भ किया था -

ब्लॉगिंग आज के दौर की विधा है. पत्र-पत्रिकाओं से परे ब्लॉग-जगत का अपना भरा-पूरा संसार है, रचनाधर्मिता है, पाठक-वर्ग है. कई बार बहुत कुछ ऐसा होता है, जो हम चाहकर भी पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से नहीं कह पाते, ब्लॉगिंग  उन्हें स्पेस देता है. कहते हैं ब्लॉगिंग एक निजी डायरी की भांति है, एक ऐसी डायरी जहाँ आप अपनी भावनाएं सबके समक्ष रखते हैं, उस पर तत्काल प्रतिक्रियाएँ प्राप्त करते हैं और फिर संवाद का दायरा बढ़ता जाता है. संवाद से साहित्य और सरोकारों में वृद्धि होती है. जरूरी नहीं कि हम जो कहें, वही सच हो पर कहना भी तो जरूरी है. यही तो लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया है. ब्लॉगिंग  भी उस लोकतंत्र की दिशा में एक कदम है, जहाँ हम अपने भाव बिना किसी सेंसर के, बिना किसी एडिटिंग के, बिना किसी भय के व्यक्त कर सकते हैं...पर साथ ही साथ यह भी जरूरी है कि इसका सकारात्मक इस्तेमाल हो. हर तकनीक के दो पहलू होते हैं- अच्छा और बुरा. जरुरत अच्छाई की हैं, अन्यथा अच्छी से अच्छी तकनीक भी गलत हाथों में पड़कर विध्वंसात्मक रूप धारण कर लेती है.

इसी क्रम में मैं आज ब्लॉगिंग  में कदम रख रही हूँ. मेरी कोशिश होगी कि एक रचनाधर्मी के रूप में रचनाओं को जीवंतता के साथ सामाजिक संस्कार देने का प्रयास करूँ. यहाँ बिना लाग-लपेट के सुलभ भाव-भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें, यही मेरी लेखनी और ब्लॉगधर्मिता की शक्ति होगी.

 मैंने अपने ब्लॉग का नाम 'शब्द-शिखर' रखा है, क्योंकि शब्दों में बड़ी ताकत है. ये शब्द ही हमें शिखर पर भी ले जाते हैं. शब्दों का सुन्दर चयन और उनका सुन्दर प्रयोग ही किसी रचना को महान बनता है. मेर इस ब्लॉग पर होंगीं साहित्यिक रचनाएँ, मेरे दिल की बात-जज्बात, सरोकार, वे रचनाएँ भी मैं यहाँ साभार प्रकाशित करना चाहूँगीं, जो मुझे अच्छी लगती हैं.

-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

बुधवार, 29 जुलाई 2015

जन्मदिन की ख़ुशी

 आखिर फिर से हमारा जन्मदिन आ गया.… 30 जुलाई।  साल में एक ही बार तो आता है, पर मजबूर कर जाता है एक गहन विश्लेषण के लिए कि क्या खोया-क्या पाया इस एक साल में...और फिर दुगुने उत्साह के साथ लग जाती हूँ आने वाले दिनों के लिए. न जाने कितनी जगहों पर अपना जन्मदिन सेलिब्रेट करने का सौभाग्य मिलेगा। जीवन साथी कृष्ण कुमार यादव जी, बेटियाँ अक्षिता (पाखी) और अपूर्वा मेरे हर जन्मदिन को यादगार बनाते हैं।  इनके बिना तो सब कुछ सूना है। 

गाजीपुर (उप्र) से आरम्भ हुआ यह सफर विवाह पश्चात लखनऊ, कानपुर, पोर्टब्लेयर, इलाहाबाद के बाद अब सपरिवार जोधपुर में। कभी समुद्र का किनारा, तो कभी गंगा-यमुना और अदृश्य सरस्वती का अद्भुत संगम और अब मरू स्थली कहे जाने वाले जोधपुर में। अब लगता है कि पहाड़ों पर भी जन्मदिन मना लेना चाहिए। ख़ैर, इसी बहाने पर्यटन के साथ-साथ विभिन्न जगहों की संस्कृति, लोकाचार और वहां के लोगों से भी रूबरू होने का मौका मिलता है।  हर पल हम कुछ सीखते हैं और कहीं-न-कहीं लोगों को सीखते भी हैं। 



ब्लागिंग जगत में आप सभी के स्नेह से सदैव अभिभूत रही हूँ. जीवन के हर पड़ाव पर आप सभी की शुभकामनाओं और स्नेह की धार बनी रहेगी, इसी विश्वास के साथ.... !!

शनिवार, 1 मार्च 2014

29 फरवरी को जन्मदिन : उस तारीख़ का इंतज़ार


मेरे पापा का जन्मदिन 29 फरवरी को पड़ता है। हमें इस दिन के लिए चार साल का लम्बा इंतज़ार  करना पड़ता है, क्योंकि  29 फरवरी हर चाल साल में एक बार आती  है और अब ये वर्ष 2016 में आएगा। पापा हर साल हम  सबको जन्मदिन की शुभकामनाएं और आशीर्वाद देते हैं, फिर हमें उन्हें बधाई देने के लिए चार साल का लम्बा इंतज़ार क्यों करें ? सो, 28 फरवरी के बाद अगले दिन हम उनका हैप्पी बर्थडे सेलिब्रेट करते हैं, सो आज उनका जन्मदिन है और इस जन्मदिन पर हम यही चाहेंगे कि पापा जी को जीवन की सारी खुशियां मिलें, वे स्वस्थ, सुखी, समृद्ध  व दीर्घायु जीवन जियें और हम लोगों को अपना प्यार, स्नेह और आशीर्वाद यूँ ही देते रहें !!


एक परिचय : स्वभाव से सहज, सौम्य एवं विनम्र श्री राजेन्द्र प्रसाद जी समाज सेवा के साथ-साथ सैदपुर में नगर पंचायत अध्यक्ष, जिला भाजपा अध्यक्ष, गाजीपुर एवं भाजपा के राष्ट्रीय परिषद सदस्य रहे, तो उनकी धर्मपत्नी श्रीमती सावित्री देवी जी ने भी नगर पंचायत अध्यक्ष, सैदपुर के पद को सुशोभित किया। दोनों जन वर्तमान में समाज सेवा में रत् हैं। 

भरे-पूरे परिवार में आपको तीन पुत्र-रत्न और दो पुत्री-मणियाँ प्राप्त हुईं। आप इन सबकी शिक्षा  के प्रति शुरू से ही सचेत रहे। आपके श्वसुर प्रो0 टुँअर प्रसाद जी अपने जमाने में इतिहास विषय के गोल्ड मेडलिस्ट थे। शिब्ली स्नाकोत्तर महाविद्यालय, आजमगढ़ में इतिहास विभाग के विभागाध्यक्ष रूप में उन्होंने  60-70 के दशक में काफी ख्याति अर्जित की। 

 आपके बड़े पुत्र पीयूष कुमार  आई0आई0टी0 रुड़की से शिक्षा प्राप्त करने के पश्चात श्री लंका में एक बहुराष्ट्रीय कम्पनी में  महाप्रबन्धक, मंझले पुत्र  समीर सौरभ  लखनऊ विश्वविद्यालय से एल0एल0बी0 करने के बाद उ0प्र0 में अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक एवं छोटे पुत्र अश्विनी कुमार आई0आई0टी0 कानपुर से शिक्षा प्राप्त करने के बाद गुजरात कैडर के 1997 बैच के आई0ए0एस0 अधिकारी के रुप में कार्यरत हैं। 

 बड़ी बेटी आकांक्षा कॉलेज में प्रवक्ता के बाद साहित्य, लेखन और ब्लाॅगिंग के क्षेत्र में प्रवृत्त हैं।  देश-विदेश की शताधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और इंटरनेट पर विभिन्न वेब पत्रिकाओं में नारी विमर्श, बाल विमर्श और सामाजिक मुद्दों से सम्बंधित विषयों पर प्रमुखता से लेखन करने वाली आकांक्षा की अब तक 2 कृतियाँ प्रकाशित- चाँद पर पानी (बाल-गीत संग्रह-2012) एवं ' क्रांति -यज्ञ : 1857-1947 की गाथा' (संपादित, 2007) हैं । उ.प्र. के मुख्यमंत्री द्वारा न्यू मीडिया ब्लाॅगिंग हेतु ’’अवध सम्मान’’, परिकल्पना समूह द्वारा ’’दशक के श्रेष्ठ हिन्दी ब्लाॅगर दम्पति’’ सम्मान, विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार द्वारा डाॅक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की मानद उपाधि, भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘डाॅ. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान‘ व ‘‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’भारती ज्योति’, साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, राजस्थान द्वारा ”हिंदी भाषा भूषण”, ‘‘एस.एम.एस.‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार सहित विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु दर्जनाधिक सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त हैं। 

आकांक्षा यादव के जीवन साथी कृष्ण कुमार यादव भारतीय डाक सेवा (2001) के अधिकारी के साथ-साथ साहित्य, लेखन और ब्लाॅगिंग के क्षेत्र में चर्चित नाम हैं। 

छोटी बेटी प्रेरणा  संस्कृत जैसे क्लिष्ट विषय में परास्नातक की उपाधि प्राप्त हैं। उनकी शादी भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी विश्वजीत सिंह से हुई है। 
















रविवार, 11 अगस्त 2013

हिंदी फिल्मों/धारावाहिकों में बढती नारी हिंसा बनाम नारी अधिकारों की खातिर सचिन तेंदुलकर का कविता-पाठ


आजकल जब भी पिक्चर हाल में फिल्म देखने जाइये, आरंभ में और मध्यांतर में धूम्रपान के प्रति सचेत करता एक विज्ञापन दिखाया जाता है। हर फिल्म में यह घोषणा की जाती है कि यह धूम्रपान का समर्थन नहीं करती। प्रतीकात्मक ही सही, इसका महत्व तो है ही और कुछेक लोग इससे सीख भी लेते होंगें। समाज में जिस  से नारियों के प्रति हिंसा फ़ैल रही है और कई बार फिल्मों-धारावाहिकों में भी जिस तरह से ऐसे दृश्यों को अतिरंजित करके दिखाया जाता है, क्या वह खतरनाक नहीं है।

मेरे मन में कई बार विचार आता है कि क्यों न सभी फिल्मों के प्रसारण से पूर्व भी नारी-हिंसा के प्रति सचेत करता विज्ञापन दिखाया जाय और फिल्मों/धारावहिकों  में ऐसे दृश्यों के साथ-साथ नीचे यह भी उद्घोषणा की जाय कि वह ऐसी किसी भी हिंसा का समर्थन नहीं करते।

  एक बार यह विचार मैंने अभिनेत्री और सोशल एक्टिविस्ट शबाना आज़मी के साथ भी एक कार्यक्रम में  शेयर किया था, पर उनका जवाब था कि हर फिल्म में ऐसे दृश्य नहीं होते, फिर इसे हर फिल्म के साथ कैसे दिखाया जा सकता है ? ...पर यही बात तो धूम्रपान पर भी लागू  होती है.  खैर, इस पर सहमति-असहमति के तमाम विचार हो सकते हैं ....।

 पर आज यह विचार फिर से  पुनर्जीवित हुआ, जब यह खबर पढ़ी कि मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर अब  महिला अधिकारों की खातिर मराठी में कविता पढेंगें। सचिन तेंदुलकर, निर्देशक और अभिनेता फरहान अख्तर के ‘बलात्कार और भेदभाव के खिलाफ पुरुष’ (मर्द) अभियान के लिए मराठी में कविता पढ़कर महिला अधिकारों के प्रति पुरुषों को जागरुक करने की कोशिश करेंगे. 'मर्द' ने बयान में कहा, ‘मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने महिलाओं के प्रति भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाने का फैसला किया है. वह महिलाओं का सम्मान करने के लिए पुरुषों में जागरुकता लाने और लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिये मराठी में विशेष कविता पाठ करेंगे.’

बयान में कहा गया है, ‘सचिन की देश में लोकप्रियता को देखते हुए उनके इस अभियान में शामिल होने से कई लोग इस नेक काम से जुड़ने के प्रति प्रेरित होंगे.’ यह कविता गीतकार और कवि जावेद अख्तर ने लिखी है. इसे मूल रूप से हिंदी में लिखा गया है और इसका तेलुगु, तमिल, पंजाबी और मराठी जैसी विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया गया है. तेलुगु में कविता पाठ टोलीवुड स्टार महेश बाबू करेंगे. तेंदुलकर कविता का मराठी संस्करण पढ़ेंगे जिसका अनुवाद जितेंद्र जोशी ने किया है.

निश्चितत: मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर को बल्ले से जोरदार शॉट्स लगाते हुए कई बार देख चुके हैं, लेकिन महिला अधिकारों के लिए उन्हें कविता पढ़ते हुए देखना अलग ही अनुभव होगा ....!!

बुधवार, 13 जुलाई 2011

250 पोस्ट, 200 फालोवर्स ...


आज जब 'शब्द-शिखर' पर 250 पोस्ट और 200 फालोवार्स का सफ़र पूरा हो चुका है, तो एक सुखद अनुभूति सी होती है. जब 20 नवम्बर, 2008 को जब पतिदेव कृष्ण कुमार जी की प्रेरणा से इस ब्लॉग की पहली पोस्ट लिखी थी तो सोचा भी न था कि ब्लागर्स और पाठकों का इतना स्नेह मिलेगा, पर भविष्य किसने देखा है. आप सबके स्नेह ने 'शब्द-शिखर' को यहाँ लाकर खड़ा किया है. इस बीच बिटिया अक्षिता (पाखी) ने भी शरारतों के साथ-साथ काफी सहयोग किया, ताकि मैं कुछ लिख सकूँ. 8 जुलाई, 2011 को ब्लॉग पर 'नश्तरे अहसास' नाम से एक टिप्पणी प्राप्त हुई- ''आपके 200 फालोवर्स होने पर बधाई...वैसे हम आपके 200 वें फालोवर्स बन रहे हैं..बधाई !"

जब इस लिंक पर जाकर देखा तो 'शब्द-शिखर' की यह 200 वीं फालोवर्स कानपुर की नेहा त्रिवेदी थीं. इनका परिचय देखना चाहा तो- ''कुछ खास नहीं बताने को अपने बारे में, बस इतना की ब्लॉगिंग की दुनिया में नयी-नयी आई हूँ. लिखने का तो शौक तो रखते थे,पर वह डायरी तक ही सीमित था. किसी दोस्त ने बताया ब्लॉग भी कुछ होता है, हमे लगा की क्यूँ न हम भी इस मंच पे जा कर अपनी रचनाओं को लोगों तक पहुंचाएं और ब्लॉग से जुड़े इतने बड़े-बड़े लेखकों को पढने का आनंद भी उठा सके. आप सभी बड़ों का आशीर्वाद चाहूंगी और हम-उम्र दोस्तों का प्रोत्साहन. यदि कुछ गलती हो जाये तो माफ़ कीजियेगा...............धन्यवाद!! :) नेहा त्रिवेदी.''

नेहा की एक पोस्ट पर भी नजर डाल लें तो पता चलेगा कि ये कितनी दिल्लगी से लिखती हैं-

मौसमें - सौगात

इस छोटी सी ज़िन्दगी में बहारे मौसम आ गई,
बहारे मौसम आँचल में समेटे इक सौगात ला गई,
तेरे इश्क का एहसास क्या हुआ
मेरे बेज़ार पड़े दिल में जीने की ललक छा गई !!

........नेहा जी, 'शब्द-शिखर' की 200 वीं फालोवर्स बनने के लिए आभार और बधाई भी !!

...इस 250 वीं पोस्ट के माध्यम से आप सभी के स्नेह और प्रोत्साहन के लिए आभार, जिन्होंने हमें इस मुकाम तक पहुँचाया. इस बीच 'शब्द-शिखर' ब्लॉग ने भी ढाई साल से ज्यादा का सफ़र पूरा कर लिया है.

........अभी तक प्रिंट-मिडिया में प्राप्त जानकारी के अनुसार 27 बार 'शब्द-शिखर' से जुडी पोस्टों की चर्चा हुई है. इनमें दैनिक जागरण, जनसत्ता, अमर उजाला,राष्ट्रीय सहारा,राजस्थान पत्रिका, आज समाज, गजरौला टाईम्स, जन सन्देश, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, दस्तक, आई-नेक्स्ट, IANS द्वारा जारी फीचर शामिल हैं. इस समर्थन व सहयोग के लिए आभार!

एक बार पुन: आप सभी के सहयोग, प्रोत्साहन के लिए आभार. यूँ ही अपना सहयोग व स्नेह बनाये रखें !!


(चित्र में : सपरिवार सेलुलर जेल के समक्ष)

-आकांक्षा यादव
अंडमान-निकोबार द्वीप समूह, पोर्टब्लेयर

शुक्रवार, 9 अप्रैल 2010

'शब्द-शिखर' के एक साथ दो शतक पूरे

आज कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या लिखूं. इसी उधेड़बुन में डैश बोर्ड पर गई तो मुझे आश्चर्य मिश्रित हैरानी हुई कि शब्द-शिखर पर मैंने 120 पोस्ट का सफ़र पूरा कर लिया है. यह शतक कब बन गया, पता ही नहीं चला. इस बीच चिटठा जगत पर भी शब्द-शिखर का सक्रियता क्रमांक 97 पर पहुँच गया है...तो एक ख़ुशी अपने ब्लॉग पर शतक पोस्ट मारने की व दूसरी ख़ुशी अपने इस चिट्ठे के 100 सक्रिय ब्लॉगों में पहुँचने की.

यह आप लोगों का स्नेह ही है की हम यहाँ तक पहुँचे. आपकी टिप्पणियाँ हमें सदैव प्रेरित करती हैं. विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में शब्द-शिखर की चर्चा ने भी हमारी हौसला आफजाई की. तो आज की पोस्ट में इसे ही आप लोगों के साथ सेलिब्रेट करते हैं...दोनों ही मामला शतक से ही जुड़ा हुआ है, यानी शब्द-शिखर ने दो शतकों को छुआ है...एक शतक पार करने की और दूसरी शतक में स्थान पाने की.आप लोगों का स्नेह यूँ ही बना रहा तो "शब्द-शिखर" यूँ ही तरक्की के पायदान चढ़ता रहेगा. आप सभी के सहयोग के लिए आभार !!

शनिवार, 29 अगस्त 2009

दस साल का हुआ ब्लॉग

ब्लागिंग का आकर्षण दिनो-ब-दिन बढ़ता जा रहा है। जहाँ वेबसाइट में सामान्यतया एकतरफा सम्प्रेषण होता है, वहीं ब्लाग में यह लेखकीय-पाठकीय दोनों स्तर पर होता है। ब्लाग सिर्फ जानकारी देने का साधन नहीं बल्कि संवाद का भी सशक्त माध्यम है। ब्लागिंग को कुछ लोग खुले संवाद का तरीका मानते हैं तो कुछेक लोग इसे निजी डायरी मात्र। ब्लाग को आक्सफोर्ड डिक्शनरी में कुछ इस प्रकार परिभाषित किया गया है-‘‘एक इंटरनेट वेबसाइट जिसमें किसी की लचीली अभिव्यक्ति का चयन संकलित होता है और जो हमेशा अपडेट होती रहती है।‘‘

वर्ष 1999 में आरम्भ हुआ ब्लाग वर्ष 2009 में 10 साल का सफर पूरा कर चुका है। गौरतलब है कि पीटर मर्होत्ज ने 1999 में ‘वी ब्लाग‘ नाम की निजी वेबसाइट आरम्भ की थी, जिसमें से कालान्तर में ‘वी‘ शब्द हटकर मात्र ‘ब्लाग‘ रह गया। 1999 में अमेरिका में सैनफ्रांसिस्को में इण्टरनेट में ऐसी अनुपम व्यवस्था का इजाद किया गया, जिसमें कई लोग अपनी अभिव्यक्तियां न सिर्फ लिख सकें बल्कि उन्हें नियमित रूप से अपडेट भी कर सकें। यद्यपि कुछ लोग ब्लाग का आरम्भ 1994 से मानते हैं जब एक युवा अमेरिकी ने अपनी अभिव्यक्तियाँ नियमित रूप से अपनी वेबसाइट में लिखना आरम्भ किया तो कुछ लोग इसका श्रेय 1997 में जान बारजन द्वारा आरम्भ की गई वेबलाग यानी इण्टरनेट डायरी को भी देते हैं। पर अधिकतर लोग ब्लाग का आरम्भ 1999 ही मानते हैं। ब्लाग की शुरूआत में किसी ने सोचा भी नहीं था कि एक दिन ब्लाग इतनी बड़ी व्यवस्था बन जायेगा कि दुनिया की नामचीन हस्तियां भी अपनी दिल की बात इसके माध्यम से ही कहने लगेंगी। आज पूरी दुनिया में 13.3 करोड़ से ज्यादा ब्लागर्स हैं तो भारत में लगभग 32 लाख लोग ब्लागिंग से जुड़े हुए हैं।

ब्लागिंग का क्रेज पूरे विश्व में छाया हुआ है। अमेरिका में सवा तीन करोड़ से ज्यादा लोग नियमित ब्लागिंग से जुडे़ हुए हैं, जो कि वहां के मतदाताओं का कुल 20 फीसदी हैं। इसकी महत्ता का अन्दाजा इसी से लगाया जा सकता है कि 2008 में सम्पन्न अमरीकी राष्ट्रपति के चुनाव के दौरान इस हेतु 1494 नये ब्लाग आरम्भ किये गये। तमाम देशों के प्रमुख ब्लागिंग के माध्यम से लोगों से रूबरू होते रहते हैं। इनमें फ्रांस के राष्ट्रपति सरकोजी और उनकी पत्नी कार्ला ब्रूनी से लेकर ईरान के राष्ट्रपति अहमदीनेजाद तक शामिल हैं। भारत में राजनेताओं में लालू प्रसाद यादव, लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, फारूक अब्दुल्ला, उमर अब्दुल्ला तो फिल्म इण्डस्ट्री में अभिताभ बच्चन, शाहरूख खान, आमिर खान, मनोज बाजपेई, प्रकाश झा इत्यादि के ब्लाग मशहूर हैं। साहित्य से जुड़ी तमाम हस्तियां-उदय प्रकाश, गिरिराज किशोर, विष्णु नागर अपने ब्लाग के माध्यम से पाठकों से रूबरू हो रहे हैं। सेलिबे्रटी के लिए ब्लाग तो बड़ी काम की चीज है। परम्परागत मीडिया उनकी बातों को नमक-मिर्च लगाकर पेश करता रहा है, पर ब्लागिंग के माध्यम से वे अपनी वास्तुस्थिति से लोगों को अवगत करा सकते हैं।
आज ब्लाग परम्परागत मीडिया का एक विकल्प बन चुका है। ब्लाग सिर्फ राजनैतिक-साहित्यिक-सांस्कृतिक-कला-सामाजिक गतिविधियों के लिए ही नहीं जाना जाता बल्कि, तमाम कारपोरेट ग्रुप इसके माध्यम से अपने उत्पादों के संबंध में सर्वे भी करा रहे हैं। वास्तव में देखा जाय तो ब्लाग एक प्रकार की समालोचना है, जहाँ पाठक आपके गुण-दोष दोनों को अभिव्यक्त करते हैं।
 
-आकांक्षा यादव

मंगलवार, 25 अगस्त 2009

511 साल का टूथब्रश

टूथब्रश मानव की दिनचर्या का अहम् हिस्सा है। बिना इसके तो दिन की शुरूआत भी नहीं होती। एक सर्वे की माने तो एक व्यक्ति पूरे जीवन में 38 दिन मात्र टूथब्रश करने में खर्च कर देता है। टूथब्रश को लेकर तमाम बातें कही जाती हैं। मसलन, 9 साल तक के बच्चों को कम से कम दो मिनट एवं उससे बड़े लोगों को 3-5 मिनट तक दांतों को ब्रश करना चाहिए। टूथब्रश को दांतों पर बहुत दबाकर नहीं इस्तेमाल करना चाहिए, बल्कि इसका शार्ट वाइब्रेटरी और सर्कुलर मूवमेन्ट होना चाहिए। टूथब्रश को ट्वायलेट सीट से करीब 6 फीट दूर रखना चाहिए ताकि ट्वायलेट फ्लश करने के पश्चात हवा में घुलने वाले तत्वों से टूथब्रश को संक्रमित होने से बचाया जा सके।

सभ्यता के विकास के साथ ही मानव ने दांतों को साफ करने के लिए तमाम तरीके इजाद किये। दांतों को साफ करने का प्रथम प्रमाण 3500 ईसा पूर्व बेबीलोन में मिलता है, जहां इसके लिए लोग च्विइंगस्टिक इस्तेमाल थे। ग्रीक और रोमन काल में टूथपिक नुमा चीज को चबाकर दांत साफ किये जाने के प्रमाण मिले हैं। कालांतर में सुगंधित और औषधीय पेड़ों की पतली टहनियों को दातुन रूप में इस्तेमाल किया जाने लगा। भारतीय गांवों में आज भी नीम व बबूल की दातून बहुतायत में इस्तेमाल होती है।

टूथब्रश का सफरनामा भी बड़ा रोमांचक है। सर्वप्रथम 1498 में चीन के राजा ने पहले टूथब्रश का निर्माण कराया था। यह टूथब्रश पतली हड्डी के एक सिरे पर सुअर का बाल लगाकर बनाया गया था। 16वीं शताब्दी के अंत तक इसी प्रकार के टूथब्रश इस्तेमाल होते रहे और यह मात्र राजा-महाराजा और धनी लोगों द्वारा ही इस्तेमाल होता था। 17वीं सदी में चीन यात्रा पर गये यूरोप के कुछ यात्रियों ने इस टूथब्रश को देखा और थोड़े फेरबदल के साथ इसे निर्मित कर इस्तेमाल में लाने लगे। इसी दौरान यूरोप में एक खास किस्म के कपड़े के टुकड़े से दांत साफ करने का चलन भी चला। सभ्यता के विकास के साथ ही जानवर के बालों से बने टूथब्रश में लगातार परिवर्तन होते रहे। 1780 में इंग्लैंड में विलियम एडीस ने बड़े स्तर पर टूथब्रश का निर्माण आरम्भ किया और इसी के साथ पश्चिमी देशों में इसका चलन बढ़ने लगा। वर्ष 1850 में अमेरिकी नागरिक एचएन वर्ड्सवर्थ ने टूथब्रश के डिजाइन का पेटेन्ट कराया और 1885 में अमेरिका में व्यवसायिक स्तर पर इसका उत्पादन आरम्भ हो गया।

जानवर के बाल की बजाय टूथब्रश में नायलाॅन ब्रिसिल का इस्तेमाल पहली बार 24 फरवरी 1938 को ड्यूपांट लेबोरेटरी ने किया और इसे नाम दिया- डाक्टर वेस्ट्स मिरैकल टूथब्रश। 1939 में स्विटजरलैंड में पहले इलेक्ट्रिक टूथब्रश का निर्माण हुआ पर इसका व्यावसायिक निर्माण 1960 में अमरीका में ‘ब्राक्सोडेन्ट‘ नाम से आरम्भ हुआ। 1961 में बाजार में रिचार्जेबल कार्डलेस टूथब्रश आये। 1987 में अमेरिकी बाजारों में रोटेटरी एक्शन इलेक्ट्रिक टूथब्रश की धूम रही। इस ब्रश की विशिष्टता यह है कि इसे दांतों पर घिसना-रगड़ना नहीं पड़ता बस दांतों पर स्पर्श करा कर बटन दबाना होता है और ब्रश खुद ही घूम-घूम कर दांतों को साफ कर देता है।

फिलहाल 1498 में इजाद हुआ टूथब्रश वर्ष 2009 में 511 साल का हो चुका है और वक्त के साथ इसकी संरचना में अनेक परिवर्तन आये तथा लगातार इसकी संरचना के साथ अभी भी नये प्रयोग हो रहे हैं। आज यह मानव के जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है और हममें से हर किसी की सुबह इसके बिना अधूरी होती है।

शुक्रवार, 7 अगस्त 2009

हैप्पी बर्थडे टू यू का सफर

30 जुलाई को मेरा जन्मदिन था। हर बार की तरह लोगों ने गाया कि-‘हैप्पी बर्थडे टू यू‘। कई बार उत्सुकता होती है कि आखिर ये प्यारी सी पैरोडी आरम्भ कहां से हुई। आखिरकार इस बार हमने इसका राज ढूंढ ही लिया। वस्तुतः ‘हैप्पी बर्थडे टू यू‘ की मधुर धुन ‘गुड मार्निंग टू आल‘ गीत से ली गयी है, जिसे दो अमेरिकन बहनों पैटी हिल तथा माइल्ड्रेड हिल ने 1993 में बनाया था। ये दोनों बहनें किंडर गार्टन स्कूल की शिक्षिकाएं थीं। इन्होंने ‘गुड मार्निंग टू आल‘ गीत की यह धुन इसलिए बनायी ताकि बच्चों को इसे गाने में आसानी हो और मजा आये। फिलहाल दुनिया भर में इस गीत का 18 भाषाओं में अनुवाद किया गया है। इस गाने की धुन और बोल पहली बार 1912 में लिखित रूप से प्रकाश में आये। इस गाने पर सुम्मी कंपनी चैपल ने इस कंपनी को 15 अमेरिकी मिलियन डाॅलर में खरीद लिया। उस वक्त इस धुन की कीमत करीब 5 अमेरिकी मिलियन डालर थी। गीत की सबसे प्रसिद्ध व भव्य प्रस्तुति मई 1962 में विख्यात हालीवुड अभिनेत्री मारिलियन मोनरोर्ड ने अमेरिकी राष्ट्रपति जान एफ केनेडी को समर्पित की थी। इस गीत को 8 मार्च 1969 को अपालो 9 दल के सदस्यों ने भी गया था। हजारों की संख्या में लोगों ने पोप बेनेडिक्ट सोलहवें के 81वें जन्मदिवस पर 16 अप्रैल 2008 को इसे व्हाइट हाउस में पेश किया था। 27 जून 2007 को लंदन के हाइड पार्क में सैकड़ों लोगों ने नेल्सन मंडेला के 90वें जन्मदिवस पर भी इसे गाया गया था। अब भी ‘हैप्पी बर्थडे टू यू‘ गीत प्रतिवर्ष 2 मिलियन डालर की कमाई कर रहा है। गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकार्ड के मुताबिक ‘हैप्पी बर्थडे टू यू‘ अंग्रेजी भाषा का सबसे परिचित गीत है।... तो आप भी गाइये- ‘हैप्पी बर्थडे टू यू‘।

शुक्रवार, 10 जुलाई 2009

दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में भी थी हाथ मिलाने की परम्परा

हाथ मिलाने को देश-दुनिया में एक सामाजिक परंपरा के रूप में देखा जाता है, लेकिन इस औपचारिक प्रक्रिया को अगर गहरे अर्थों में देखा जाए तो पता चलेगा कि यह वह संकेत है, जिससे आपसी विश्वास, आत्मीयता और आत्मविश्वास का आकलन होता है। हाथ मिलाना किसी को भी परखने का सांकेतिक परीक्षण है। बड़ी कंपनियों में साक्षात्कारकर्ता प्रत्याशी से हाथ मिला पर उसके आत्मविश्वास और कंपनी के प्रति उसके भावी रूख का आकलन करते हैं। इसलिए इस दौरान हाथ मिलाने में गर्मजोशी का प्रदर्शन होना चाहिए क्योंकि कई बार ऐसा भी होता है कि हर स्तर पर प्रत्याशी का प्रदर्शन अच्छा होने के बाद भी हाथ मिलाने के दौरान ठंडी प्रतिक्रिया देने के आधार पर खारिज किया जा सकता है।

इतिहास में हालांकि इस बात के ठीक-ठाक कोई प्रमाण उपलब्ध नहीं है कि हाथ मिलाने की प्रक्रिया की शुरूआत कब से हुई, लेकिन इस बात के सबूत हैं कि यह परंपरा दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में भी थी। कई शोधकर्ताओं ने अपने शोध में पाया कि पश्चिमी देशों में हाथ मिलाने की शुरूआत 16वीं शताब्दी में ब्रिटिश कोर्ट में सर वाल्टर रालेघ ने की। माना जाता है कि हाथ मिलाने की शुरूआत शांति के प्रतीक के रूप में हुई जिसका अर्थ था कि हाथ मिलाने वाले के पास कोई हथियार नहीं है और उस पर विश्वास किया जा सकता है।

साक्षात्कार और व्यावसायिक संबंधों के अलावा हाथ मिलाना राजनीतिक दृष्टिकोण से भी अहम है। राजनीति के क्षेत्र में हाथ मिलाने को दो देशों के बीच अनुबंध, शांति समझौते और मित्रता का प्रतीक माना जाता है। राजनीति में हाथ मिलाने का महत्व इस बात से ही समझा जा सकता है कि दुनिया भर में राजनेताओं की आपस में हाथ मिलाने की तस्वीरें अखबारों व चैनलों की ज्यादा सुर्खियांँ बटोरती हैं। ब्रिटेन और कई यूरोपीय देशों में हाथ मिलाने को सम्मान का भी प्रतीक माना जाता है। भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के दौरान अंग्रेज अधिकारी भारतीयों से हाथ मिलाना अपनी शान के खिलाफ समझते थे। ब्रिटेन की महारानी के बारे में आज भी कहा जाता है कि वे बहुत कम लोगों से हाथ मिलाना पसंद करती हैं। फिलहाल, हाथ मिलाना एक औपचारिक प्रक्रिया से जादा संबंधों की उष्णता, परस्पर संबंध एवं दुनियादारी का प्रतीक बना चुका है।

गुरुवार, 20 नवंबर 2008

'ब्लागिंग' और 'एस.एम.एस.'

ब्लागिंग आज के दौर की विधा है. पत्र-पत्रिकाओं से परे ब्लॉग-जगत का अपना भरा-पूरा संसार है, रचनाधर्मिता है, पाठक-वर्ग है. कई बार बहुत कुछ ऐसा होता है, जो हम चाहकर भी पत्र-पत्रिकाओं के माध्यम से नहीं कह पाते, ब्लागिंग उन्हें स्पेस देता है. कहते हैं ब्लागिंग एक निजी डायरी की भांति है, एक ऐसी डायरी जहाँ आप अपनी भावनाएं सबके समक्ष रखते हैं, उस पर तत्काल प्रतिक्रियाएँ प्राप्त करते हैं और फिर संवाद का दायरा बढ़ता जाता है. संवाद से साहित्य और सरोकारों में वृद्धि होती है. जरूरी नहीं कि हम जो कहें, वही सच हो पर कहना भी तो जरूरी है. यही तो लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया है. ब्लागिंग भी उस लोकतंत्र की दिशा में एक कदम है, जहाँ हम अपने भाव बिना किसी सेंसर के, बिना किसी एडिटिंग के, बिना किसी भय के व्यक्त कर सकते हैं...पर साथ ही साथ यह भी जरूरी है कि इसका सकारात्मक इस्तेमाल हो. हर तकनीक के दो पहलू होते हैं- अच्छा और बुरा. जरुरत अच्छाई की हैं, अन्यथा अच्छी से अच्छी तकनीक भी गलत हाथों में पड़कर विध्वंसात्मक रूप धारण कर लेती है. 

इसी क्रम में मैं आज ब्लागिंग में कदम रख रही हूँ. मेरी कोशिश होगी कि एक रचनाधर्मी के रूप में रचनाओं को जीवंतता के साथ सामाजिक संस्कार देने का प्रयास करूँ. यहाँ बिना लाग-लपेट के सुलभ भाव-भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें, यही मेरी लेखनी और ब्लॉगधर्मिता की शक्ति होगी.

 मैंने अपने ब्लॉग का नाम 'शब्द-शिखर' रखा है, क्योंकि शब्दों में बड़ी ताकत है. ये शब्द ही हमें शिखर पर भी ले जाते हैं. शब्दों का सुन्दर चयन और उनका सुन्दर प्रयोग ही किसी रचना को महान बनता है. मेर इस ब्लॉग पर होंगीं साहित्यिक रचनाएँ, मेरे दिल की बात-जज्बात, सरोकार, वे रचनाएँ भी मैं यहाँ साभार प्रकाशित करना चाहूँगीं, जो मुझे अच्छी लगती हैं.

मेरी एक कविता 'एस.एम्.एस.' प्रतिष्ठित हिंदी पत्र 'दैनिक जागरण' के साहित्य-पृष्ठ 'पुनर्नवा' में 29 सितम्बर, 2006 को प्रकाशित है. इस पर 'प्रभात प्रकाशन' द्वारा 1000 /- का पुरस्कार भी प्रोत्साहनस्वरूप प्राप्त हुआ. अपने ब्लॉग पर प्रथम पोस्ट के रूप में इसे ही प्रस्तुत कर रही हूँ. आशा है आप सभी का प्रोत्साहन, मार्गदर्शन, सहयोग और स्नेह मुझे मिलता रहेगा !

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अब नहीं लिखते वो ख़त
करने लगे हैं एस. एम. एस.
तोड़-मरोड़ कर लिखे शब्दों के साथ
करते हैं खुशी का इजहार.
मिटा देता है हर नया एस. एम. एस.
पिछले एस. एम. एस. का वजूद
एस. एम. एस. के साथ ही
शब्द छोटे होते गए
भावनाएं सिमटती गई
खो गई सहेज कर रखने की परम्परा
लघु होता गया सब कुछ
रिश्तों की क़द्र का अहसास भी।