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सोमवार, 10 जुलाई 2023

भोजपुरी के शेक्सपीयर - भिखारी ठाकुर

भोजपुरी के समर्थ लोक कलाकार, रंगकर्मी, लोक जागरण के संदेश वाहक, लोक गीत तथा भजन कीर्तन के अनन्य साधक भिखारी ठाकुर बहुआयामी प्रतिभा के व्यक्तित्व थे। अपनी रचनात्मकता में अपनी माटी को प्रतिबिंबित करने वाले संस्कृति-पुत्र, प्रखर कवि, नाटककार व ‘बिहार के शेक्सपियर’ कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर जी ने कला-साहित्य के क्षेत्र में भोजपुरी भाषा को एक नई ऊँचाई दी। 

भिखारी ठाकुर (18 दिसम्बर,1887-10 जुलाई,1971) का जन्म बिहार के सारन जिले के कुतुबपुर (दियारा) गाँव में एक नाई परिवार में हुआ था। उनके पिताजी का नाम दल सिंगार ठाकुर व माताजी का नाम शिवकली देवी था। भोजपुरी गीतों एवं नाटकों की रचना के साथ अपने सामाजिक कार्यों के लिये भी प्रसिद्ध रहे। राहुल सांकृत्यायन ने उनको अनगढ़ हीरा कहा है और जगदीशचंद्र माथुर ने 'भरत मुनि की परंपरा का कलाकार'। 

वे एक ही साथ कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता थे। भिखारी ठाकुर की मातृभाषा भोजपुरी थी और उन्होंने भोजपुरी को ही अपने काव्य और नाटक की भाषा बनाया। आज भी बिहार की शादियों में भिखारी ठाकुर की मूल रचना के आधार पर रचित कई गीतों का वही स्थान है जो पूजा में मंत्रों का होता है-

चलनी के चालल दुलहा सूप के फटकारल हे, 

दिअका के लागल बर दुआरे बाजा बाजल हे।

आंवा के पाकल दुलहा झांवा के झारल हे

कलछुल के दागल, बकलोलपुर के भागल हे।

'भोजपुरी के शेक्सपीयर' कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर की पुण्य तिथि पर कोटिश: नमन।🙏


गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

भारत की सबसे लंबे बालों वाली महिला आकांक्षा यादव

बाल किसी महिला की खूबसूरती में चार चांद लगाने का काम करते हैं। जितने लंबे, घने बाल महिला उतनी ज्यादा खूबसूरत दिखती है, लेकिन ये तोहफा हर किसी को नहीं मिलता। दोस्तों, भारत ही नहीं दुनिया में ऐसी लाखों, करोड़ों महिलाएं हैं जो अपने बाल न बढ़ने की समस्या से परेशान हैं। महंगे तेल और अन्य तरह के प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करने पर भी उनकी यह समस्या जस की तस रहती है। लेकिन मुंबई  की रहने वाली आकांक्षा यादव के साथ ऐसा नहीं है। आकांक्षा के बाल 1,2,3...5 नहीं पूरे 9 फीट और 10.5 इंच लंबे हैं। मीटर में बात करें तो उनके बालों की लंबाई 3.01 मीटर है। जी हां दोस्तों। इतना ही नहीं अकांक्षा को भारत में सबसे लंबे बालों वाली महिला के रूप में चुना गया है। उनकी इस उपलब्धि के लिए उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया है।

2019 से कोई नहीं तोड़ पाया आकांक्षा का रिकॉर्ड 

मुंबई की आकांक्षा यादव को यह खिताब ऐसे ही नहीं मिला, इसके पीछे उनकी वर्षों की मेहनत है। लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्डस के 30वें संस्करण में उनका नाम भारत के सबसे लंबे बाल वाली महिला के रूप में दर्ज किया गया है। आकांक्षा अपनी इस उपलब्धि के लिए फूली नहीं समा रही हैं। लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स 2020-2022 के आधिकारिक पत्र के मुताबिक साल 2019 से आकांक्षा का सबसे लंबे बालों वाली महिला होने का रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ पाया है।

लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है नाम 

आकांक्षा यादव ने लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज होने पर खुशी जाहिर करते हुए  कहा कि इस राष्ट्रीय खिताब को पाना ही अपने आप में बड़ी बात है। यह खिताब हासिल कर में बहुत खुश हूं।

क्या है आकांक्षा के लंबे बालों का राज 

बता दें कि आकांक्षा यादव एक फार्मास्युटिकल और मैनेजमेंट प्रोफेसनल है। सबसे लंबे बालों के लिए उनका नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है। जब उनसे उनके लंबे बालों का राज पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह ईश्वर का आशीर्वाद है। आकांक्षा से जब पूछा गया कि वह इतने लंबे बालों की देखरेख कैसे करती हैं। तो आकांक्षा ने हैरानी भरा जबाव दिया। उन्होंने कहा कि वह पूरे दिन में अपने बालों को धोने से लेकर उन्हें कंघी करने तक केवल 20 मिनट का समय खर्च करती हैं।


(यूँ  ही गूगल पर सर्च करते हुए अपने नाम पर जाकर अटक गई, अपने हमनाम आकांक्षा यादव की उपलब्धि के बारे में जानकर अच्छा लगा....हार्दिक बधाई !! )

शुक्रवार, 3 दिसंबर 2021

साहित्यकार एवं ब्लॉगर आकांक्षा यादव ‘वृक्ष रत्न’ सम्मान से सम्मानित

स्वदेशी समाज सेवा समिति के 11वें स्थापना दिवस पर अग्रणी महिला ब्लॉगर, लेखिका एवं साहित्यकार आकांक्षा यादव को 'वृक्ष रत्न' सम्मान से अलंकृत किया गया। संस्था के कार्यकारी अध्यक्ष एवं उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग, उत्तर प्रदेश के पूर्व सदस्य प्रो.अजब सिंह यादव और रुद्राक्ष मैन विवेक यादव के संयोजकत्व में फिरोजाबाद में आयोजित कार्यक्रम में उन्हें यह सम्मान पर्यावरण संबंधी लेखन और पर्यावरण संरक्षण व वृक्षारोपण को बढ़ावा देने के लिए दिया गया। कॉलेज में प्रवक्ता रहीं आकांक्षा यादव को इससे पूर्व भी देश के विभिन्न प्रांतों के अलावा जर्मनी, श्रीलंका, नेपाल तक में सम्मानित किया जा चुका है। आकांक्षा यादव वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव की पत्नी हैं, जो स्वयं साहित्य और ब्लॉगिंग के क्षेत्र में चर्चित नाम हैं।

गौरतलब है कि कालेज में प्रवक्ता रहीं आकांक्षा यादव फ़िलहाल साहित्यिक और सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई हैं। देश-विदेश की शताधिक प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित आकांक्षा यादव की आधी आबादी के सरोकार, चाँद पर पानी, क्रांति-यज्ञ: 1857-1947 की गाथा इत्यादि पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। देश के साथ-साथ विदेशों में भी सम्मानित आकांक्षा यादव को उ.प्र. के मुख्यमंत्री द्वारा ’’अवध सम्मान’’, परिकल्पना समूह द्वारा ’’दशक के श्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगर दम्पति’’ सम्मान, अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लॉगर सम्मेलन, काठमांडू में ’’परिकल्पना ब्लाग विभूषण’’ सम्मान, अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्री लंका में ’’परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान’’, विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार द्वारा डॉक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की मानद उपाधि, भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ’’ डॉ. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान’’, ‘‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘‘ व ’’भगवान बुद्ध राष्ट्रीय फेलोशिप अवार्ड’’, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ’’भारती ज्योति’’, साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, राजस्थान  द्वारा ”हिंदी भाषा भूषण”,  निराला स्मृति संस्थान, रायबरेली द्वारा ‘‘मनोहरा देवी सम्मान‘‘, साहित्य भूषण सम्मान, भाषा भारती रत्न, राष्ट्रीय भाषा रत्न सम्मान, साहित्य गौरव सहित विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक-साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और सतत् साहित्य सृजनशीलता हेतु 50 से ज्यादा सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त हैं । जर्मनी के बॉन शहर में ग्लोबल मीडिया फोरम (2015) के दौरान 'पीपुल्स चॉइस अवॉर्ड' श्रेणी में  आकांक्षा यादव के ब्लॉग 'शब्द-शिखर'  को हिंदी के सबसे लोकप्रिय ब्लॉग के रूप में भी सम्मानित किया जा चुका है।

11 पत्रकारों, समाजसेवी, साहित्यकार, पर्यावरणविदों को किया गया सम्मानित 

संत जानू बाबा डिग्री कॉलेज, फिरोजाबाद  में आयोजित  कार्यक्रम में आकांक्षा यादव के अलावा  संत जयकृष्ण दास, राष्ट्रीय अध्यक्ष यमुना रक्षक दल वृंदावन, उमाशंकर यादव, संस्थापक अहमदाबाद इंटरनेशनल लिटरेचर फेस्टिवल अहमदाबाद, डॉ आरएन सिंह, समाजसेवी फरीदाबाद, मुकेश नादान, संस्थापक प्रकृति फाउंडेशन मेरठ, ममता नोगरैया, अध्यक्षा महिला साहित्य मंच बदायूं, रमेश गोयल, राष्ट्रीय अध्यक्ष पर्यावरण प्रेरणा सिरसा, हरियाणा प्रताप सिंह पोखरियाल, पर्यावरण प्रेमी उत्तरकाशी उत्तराखंड, नंदकिशोर वर्मा, अध्यक्ष नीला जहान फाउंडेशन लखनऊ, प्रदीप सारंग, बाराबंकी, हरे कृष्ण शर्मा आजाद, अध्यक्ष वसुंधरा श्रृंगार युवा मंडल भिंड मध्यप्रदेश सहित कुल 11 लोगों को 'वृक्ष रत्न' से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता स्वामी हरिदास,  मुख्य अतिथि वरिष्ठ पत्रकार व लेखक डॉक्टर अरुण प्रकाश, संचालन डॉ मुकेश उपाध्याय और आभार ज्ञापन समिति के सचिव रुद्राक्ष मैन विवेक यादव ने किया।







सोमवार, 7 मई 2018

गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर जी की जयंती

अंतर मम विकसित करो 
हे अंतरयामी! 
निर्मल करो, उज्ज्वल करो, 
सुंदर करो हे!
जाग्रत करो, उद्यत करो, 
निर्भय करो हे!


भारतीय साहित्य के अद्वितीय व्यक्तित्व, बहुमुखी प्रतिभा के धनी, आधुनिक भारत के असाधारण सृजनशील कलाकार,कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार एवं भारतीय राष्ट्रगान "जन-गण-मन" के रचयिता एवं नोबेल पुरस्कार से सम्मानित गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर जी (7  मई 1861-7 अगस्त 1941) की 157वीं  जयंती पर शत् शत् नमन।  

बुधवार, 7 मार्च 2018

महिलाओं के सपनों को पंख लगा दिए फ्लाइंग ऑफिसर अवनी चतुर्वेदी ने

देश में महिलाओं का कद आसमान छू रहा है। अकेले फाइटर प्लेन उड़ाकर भारतीय वायुसेना की फ्लाइंग ऑफिसर अवनी चतुर्वेदी ने महिलाओं के सपने को पंख लगा दिए हैं। अकेले मिग-21 फाइटर प्लेन उड़ाने वाली अवनी देश की पहली महिला बन गईं हैं। अवनी ने यह इतिहास 19 फरवरी, 2018  की सुबह ही रच दिया। अवनी ने गुजरात के जामनगर एयरबेस से उड़ान भरी और सफलतापूर्वक अपना मिशन पूरा किया। यह भारतीय वायुसेना और पूरे देश के लिए एक विशेष उपलब्धि है।' दुनिया के चुनिंदा देशों जैसे ब्रिटेन, अमेरिका, इजरायल और पाकिस्तान में ही महिलाएं फाइटर पायलट बन सकीं हैं। 
अवनी चतुर्वेदी के इस मिशन से पहले ही पूरी तरह मिग-21 बाइसन एयरक्राफ्ट की जांच की। जिस समय अवनी मिग में सवार हुई अनुभवी फ्लायर्स और प्रशिक्षकों ने जामनगर एयरबेस के एयर ट्रैफिक कंट्रोल और रन-वे पर अपनी आंख गड़ाए रखी। 2016 में ही तीन भारतीय महिलाएं फाइटर पायलट बनने के अपने उद्देश्य पर निकली थीं। फाइटर पायलट बनने वाली यह महिला अधिकारी अवनी चतुर्वेदी, मोहना सिंह और भावना को वायुसेना में कमिशन किया गया था। अवनी का यह प्रयास इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि 'बाइसन' की तकनीकि लैंडिंग और टेक-ऑफ में काफी स्पीड रखती हैं। 

भारत में अक्टूबर 2015 में सरकार ने महिलाओं के फाइटर पायलट बनने की राह प्रशस्त कर दी थी। जिसके बाद अवनी, मोहना और भावना ने वो सीखा जिससे देश में महिलाओं की साख यकीनन आसमान छू रही है। 

मंगलवार, 6 मार्च 2018

पाकिस्तान में पहली हिन्दू दलित महिला सांसद बनीं कृष्णा कुमारी कोलही

पाकिस्तान में एक हिन्दू दलित किसान की बेटी ने उच्च सदन में सीनेटर (राज्य सभा सदस्य) का चुनाव जीतकर इतिहास रच दिया है। सिंध प्रान्त के थार में रहने वाली 39 वर्षीया कृष्णा कुमारी कोलही पाकिस्तानी संसद में चुने जाने वाली पहली हिन्दू-दलित महिला बनी हैं। कृष्णा बिलावल भुट्टो जरदारी के नेतृत्व वाले पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की तरफ से चुनी गई हैं। पीपीपी ने कोलही  को सिंध की अल्पसंख्यक आरक्षित सीट से टिकट दिया था, जिस पर वह सांसद चुनी गईं। उनका चुना जाना पाकिस्तान में महिलाओं और अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण मील के पत्थर का प्रतिनिधित्व करता है। 

कृष्णा कुमारी कोलही  सिंध प्रांत के नागरपारकर जिले के दूर-दराज के एक गांव से ताल्लुक रखती हैं। गरीब किसान जुग्नो कोल्ही के यहां फरवरी 1979 में जन्मी कोलही और उनके परिवार के लोगों को उमरकोट जिले के कुनरी के जमीदार के निजी जेल में करीब तीन साल गुजारने  पड़े थे। जब वह बंदी बनाई गई थीं तब कक्षा  3 की छात्रा थीं। 16 वर्ष की उम्र में जब वह 9वीं कक्षा  में पढ़ रही थीं तब लालचंद नाम के शख्स के साथ उनकी शादी हो गई। हालांकि उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और सिंध विश्वविद्यालय से 2013 में समाजशास्त्र विषय में मास्टर डिग्री की। उन्होंने अपने भाई के साथ एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को ज्वाइन किया था, जो कि बाद में यूनियन काउंसिल बेरानो के  चेयरमैन चुने गए। 

कृष्णा कुमारी कोलही ने थार और अन्य जगहों पर हाशिये पर रहने वाले दलित समुदाय के लोगों के अधिकारों के लिए सक्रिय तौर पर काम किया। वह बहादुर स्वतंत्रता सेनानी रूपलो कोल्ही के परिवार से हैं, जिन्होंने 1857 में नागरपारकर से सिंध में आक्रमणकारी ब्रिटिश उपनिवेशवादी बलों के हमला करने पर उनके खिलाफ युद्ध किया था। इसके बाद, 22 अगस्त 1858 को उन्हें अंग्रेजों के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी दे दी गई थी।

गौरतलब है कि पाकिस्तान की ‘पहली महिला हिन्दू’ मेंबर ऑफ़ नेशनल एसेंबली (लोकसभा सांसद) रीता ईश्वर लाल हैं, जो 2013 में महिलाओं के लिए रिज़र्व सिंध की NA-319 सीट से चुनी गईं। रत्ना भगवान दास चावला पाकिस्तान की पहली महिला हिन्दू सीनेटर (2006-2012) रह चुकी हैं पर वे दलित हिन्दू नहीं थीं।  इन्हें भी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी  ने ही सीनेटर बनाया था। 

सोमवार, 20 नवंबर 2017

भारत की मानुषी छिल्लर बनीं मिस वर्ल्ड 2017, भारत के पास 17 साल बाद आया यह खिताब

भारत की सुंदरियों ने दुनिया में एक बार फिर अपनी खूबसूरती का लोहा मनवा लिया है। चीन के सनाया में आयोजित की गई मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में भारत की मिस इंडिया मानुषी छिल्लर को मिस वर्ल्ड 2017 घोषित किया गया। इस प्रतियोगिता में दुनियाभर की 118 सुंदरियों ने हिस्सा लिया था जिसमें मानुषी ने सभी को पीछे छोड़ते हुए मिस वर्ल्ड का खिताब जीता। इस प्रतियोगिता में दूसरे नंबर पर मिस मेक्सिको रहीं जबकि तीसरे नंबर पर मिस इंग्लैंड रहीं है। 20 साल की मानुषी छिल्लर 67वीं मिस वर्ल्ड हैं। 
हरियाणा के सोनीपत की रहने वाली मानुषी  मेडिकल की छात्रा  हैं और कार्डिएक सर्जन बनना चाहती हैं। दिल्ली के सेंट थॉमस स्कूल से  पढ़ाई करने वाली मानुषी सोनीपत के भगत फूल सिंह गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज फॉर वूमन से पढ़ाई कर रही हैं। मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में हिस्सा लेने ले लिए नाम देते वक्त मानुषी मेडिसिन एंड सर्जरी में अपनी डिग्री पूरी कर रही थीं। मानुषी के पिता डॉ मित्रा बसु छिल्लर डीआरडीओ में वैज्ञानिक हैं और  मां नीलम छिल्लर इंस्टीट्यूट ऑफ ह्मूमन बिहेवियर एंड एलीड साइंस के डिपार्टमेंट की हेड हैं। 
मानुषी ने जाने माने डांसर राजा और राधा रेड्डी से कुचिपुड़ी डांस की ट्रेनिंग ली हुई है। छिल्लर ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से भी ट्रेनिंग ली है, उन्हें खाली वक्त में पैराग्लाइडिंग, बंजी जंपिंग और स्कूबा डाइविंग जैसे स्पोर्ट्सपसंद है। छिल्लर को कविता और चित्रकारी का भी शौक है। मानुषी की इंग्लिश काफी अच्छी है, 12वीं क्लास में वह इंग्लिश में ऑल इंडिया सीबीएसई टॉपर थीं।

 मिस इंडिया मानुषी छिल्लर से फाइनल राउंड में जूरी ने सवाल पूछा था कि किस प्रोफेशन में सबसे ज्यादा सैलरी मिलनी चाहिए और क्यों? इसके जवाब में मानुषी ने कहा, 'मां को सबसे ज्यादा सम्मान मिलना चाहिए। इसके लिए उन्हें कैश में सैलरी नहीं बल्कि सम्मान और प्यार मिलना चाहिए।' 
किसी भी एशियन महिला ने वर्ष  1966 तक मिस वर्ल्ड का खिताब नहीं जीता था। 1966 में  रीता फारिया भारत से पहली मिस वर्ल्ड बनीं थीं। उसके बाद ऐश्वर्या राय ने 1994, डायना हेडन ने 1997 में, युक्ता मुखी ने 1999 में और प्रियंका चोपड़ा ने साल 2000 में मिस वर्ल्ड का खिताब जीता था।  मानुषी छिल्लर से पहले वर्ष 2000 में बॉलिवुड और हॉलिवुड की सफल अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा भारत की तरफ से मिस वर्ल्ड बनीं थी। 
मिस वर्ल्ड बनना मानुषी के बचपन का सपना था। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, 'बचपन में, मैं हमेशा से इस कॉम्पिटिशन में हिस्सा लेना चाहती थी और मुझे यह कभी नहीं पता था कि मैं यहां तक पहुंच जाऊंगी। अब मिस वर्ल्ड का खिताब जीतना केवल मेरा ही नहीं बल्कि मेरे परिवार और दोस्तों का भी सपना बन गया था।' मिस वर्ल्ड में जाने से पहले मानुषी समाजसेवा के कार्यों से भी जुड़ी रही हैं। उन्होंने महिलाओं की माहवारी के दौरान हाइजीन से संबंधित एक कैंपेन में करीब 5,000 महिलाओं को जागरूक किया है। 

यह भी सोचने वाली बात  है कि मिस वर्ल्ड मानुषी उसी हरियाणा राज्य से हैं, जहाँ बेटियों के प्रति भेदभाव की स्थिति चलते लिंगानुपात चिंता का विषय है। पर उसी हरियाणा की बेटियाँ आज दुनिया भर में खेलों से लेकर सौंदर्य के क्षेत्र में अपना परचम फहरा रही हैं। आशा की जानी चाहिए कि इससे हरियाणा जैसे  राज्यों में बेटियों के प्रति लोगों के दृष्टिकोण में भी परिवर्तन आएगा। 

कृष्णा सोबती : ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाली हिंदी की 11वीं साहित्यकार


साहित्य के क्षेत्र में दिया जाने वाला देश का सर्वोच्च सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार वर्ष 2017 के लिए हिंदी की शीर्षस्थ कथाकार कृष्णा सोबती को प्रदान किया जाएगा. यह पुरस्कार साहित्य के क्षेत्र में उनके उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रदान किया जाएगा. पुरस्कार स्वरूप कृष्णा सोबती को 11 लाख रुपये, प्रशस्ति पत्र और वाग्देवी की कांस्य प्रतिमा प्रदान की जाएगी.ज्ञानपीठ के निदेशक लीलाधर मंडलोई ने बताया कि प्रो. नामवर सिंह की अध्यक्षता में हुई प्रवर परिषद की बैठक में वर्ष 2017 का 53वां ज्ञानपीठ पुरस्कार हिंदी साहित्य की सशक्त हस्ताक्षर कृष्णा सोबती को देने का निर्णय किया गया. 

18 फरवरी 1924 को गुजरात (वर्तमान पाकिस्तान) में जन्मी सोबती साहसपूर्ण रचनात्मक अभिव्यक्ति के लिए जानी जाती है. उनके रचनाकर्म में निर्भिकता, खुलापन और भाषागत प्रयोगशीलता स्पष्ट परिलक्षित होती है. 1950 में कहानी लामा से साहित्यिक सफर शुरू करने वाली सोबती स्त्री की आजादी और न्याय की पक्षधर हैं. उन्होंने समय और समाज को केंद्र में रखकर अपनी रचनाओं में एक युग को जिया है.
कृष्णा सोबती के कालजयी उपन्यासों सूरजमुखी अंधेरे के, दिलोदानिश, ज़िंदगीनामा, ऐ लड़की, समय सरगम, मित्रो मरजानी, जैनी मेहरबान सिंह, हम हशमत, बादलों के घेरे ने कथा साहित्य को अप्रतिम ताजगी और स्फूर्ति प्रदान की है. हाल में प्रकाशित ‘बुद्ध का कमंडल लद्दाख’ और ‘गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान’ भी उनके लेखन के उत्कृष्ट उदाहरण हैं. उनकी सबसे चर्चित रचनाओं में शुमार है 'मित्रो मरजानी'. इस उपन्यास में उन्होंने एक शादीशुदा महिला की कामुकता को दर्शाया है. इस उपन्यास का कथाशिल्प इस तरह का है कि लोगों को आकर्षित करता है. इससे पहले मित्रो जैसा किरदार साहित्य में नजर नहीं आया था. कृष्णा सोबती को हिंदी साहित्य में ‘फिक्शन’ राइटिंग के लिए जाना जाता है.
कृष्णा सोबती को उनके उपन्यास जिंदगीनामा के लिए वर्ष 1980 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था."जिंदगीनामा” उनका एक महाकाव्यात्मक उपन्यास  माना जाता है. इसी उपन्यास की बदौलत सोबती हिंदी में साहित्य अकादमी पाने वाली पहली महिला लेखिका बनीं. इस उपन्यास से जुड़ा ऐतिहासिक कॉपीराइट विवाद, उस दौर की नामचीन और वरिष्ठ लेखिका अमृता प्रीतम के खिलाफ अदालत तक खिंच गया था.  कृष्णा सोबती को  1996 में अकादमी के उच्चतम सम्मान साहित्य अकादमी फेलोशिप से नवाजा गया था. इसके अलावा कृष्णा सोबती को पद्मभूषण, व्यास सम्मान, शलाका सम्मान से भी नवाजा जा चुका है.

गौरतलब है कि पहला ज्ञानपीठ पुरस्कार 1965 में मलयालम के लेखक जी शंकर कुरूप को प्रदान किया गया था. सुमित्रानंदन पंत ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाले हिंदी के पहले रचनाकार थे. कृष्णा सोबती ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने वाली हिंदी की 11वीं साहित्यकार  हैं. इससे पहले हिंदी के 10 लेखकों को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिल चुका है. इनमें सुमित्रानंदन पंत, रामधारी सिंह दिनकर, सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय, महादेवी वर्मा, कुंवर नारायण आदि शामिल हैं.

गुरुवार, 7 सितंबर 2017

साहित्यकारों के नाम पर होंगे ट्रेनों के नाम

देश के साहित्यकारों को युवा पीढ़ी से जोड़ने और साहित्यकारों को ट्रेन के माध्यम से  देश भर में विस्तार देने हेतु रेलवे मंत्रालय ट्रेनों का नाम मशहूर साहित्यकारों के नाम पर रखने का विचार कर रहा है। इसमें न सिर्फ लेखक को, बल्कि वह जिस इलाके का है उसे भी तरजीह दी जाएगी। यदि ऐसा हुआ तो, पश्चिम बंगाल  जाने वाली ट्रेन का नाम  महाश्वेता देवी तो  बिहार जाने वाली ट्रेन का नाम रामधारी सिंह दिनकर जैसी मशहूर साहित्यिक हस्तियों के नाम पर होगा।
 रेलवे देश भर की सैर कराती है,  ऐेसे में ट्रेन अलग-अलग संस्कृतियों का शोकेस हो सकती हैं। ऐसे में रेलवे अलग-अलग इलाकों और अलग-अलग भाषाओं से आने वाले लेखकों के नाम पर ट्रेनों का नाम करने पर विचार कर रहा है। इसके तहत साहित्य एकेडमी अवॉर्ड जीतने वालों के नाम छांटने के साथ ही इस काम की शुरुआत  की जा चुकी  है। इससे विभिन्न संस्कृतियों को लोगों को जानने के लिए मिलेगा।
गौरतलब है कि इससे पहले भी साहित्यिक कृतियों और साहित्यिक व्यक्तित्व के नाम पर कुछेक ट्रेनों के नाम रखे जा चुके हैं। कैफी आजमी के गृह नगर आजमगढ़ जाने वाली ट्रेन का नाम "कैफियत" एक्सप्रेस है तो मुंशी प्रेमचंद की मशहूर कृति "गोदान" के नाम पर गोदान एक्सप्रेस संचालित हो रही है।

मंगलवार, 5 सितंबर 2017

शिक्षक दिवस : देश-समाज के लिए प्रकाश स्तंभ की भांति हैं शिक्षक

शिक्षक दिवस पर सभी को बधाईयाँ। जिस विभूति के नाम पर यह दिवस मनाया जाता है, उन डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने शिक्षा को एक मिशन माना था और उनके मत में शिक्षक होने का हकदार वही है, जो लोगों से अधिक बुद्धिमान व विनम्र हो। अच्छे अध्यापन के साथ-साथ शिक्षक का अपने छात्रों से व्यवहार व स्नेह उसे योग्य शिक्षक बनाता हैै। मात्र शिक्षक होने से कोई योग्य नहीं हो जाता बल्कि यह गुण उसे अर्जित करना होता है। उनका मानना था कि शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करे। उनके यह शब्द समाज में शिक्षकों की सही भूमिका को दिखाते हैं- ’’शिक्षक का काम सिर्फ किताबी ज्ञान देना ही नहीं बल्कि सामाजिक परिस्थितियों से छात्र को परिचित कराना भी होता है।’’ ..... आज जरूरत है उस भावना को आत्मसात करने की, तभी शिक्षक दिवस फलीभूत होगा !! -आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

शिक्षक  दिवस पर लेख : गुरु-शिष्य की बदलती परंपरा (आकांक्षा यादव)

शिक्षक  दिवस पर लेख : गुरु-शिष्य की बदलती परंपरा (आकांक्षा यादव)

शिक्षक  दिवस पर लेख : प्रकाश स्तंभ  हैं शिक्षक (आकांक्षा यादव)

शिक्षक  दिवस पर लेख : शिक्षकों की भूमिका व कर्तव्यों पर पुनर्विचार जरूरी  (आकांक्षा यादव)

शिक्षक  दिवस पर लेख :देश-समाज के लिए प्रकाश स्तंभ की भांति हैं शिक्षक (आकांक्षा यादव)

बुधवार, 5 जुलाई 2017

राजस्थान की बालिका वधू रूपा यादव अब बनेगी डॉक्टर

जब मन में लगन हो तो परिस्थितियाँ भी रास्ता दिखाने को मजबूर हो जाती हैं।  ऐसा ही हुआ राजस्थान की बालिका वधू रूपा यादव के साथ। जयपुर के करेरी गांव की रहने वाली रूपा यादव की कहानी दिलचस्प और प्रेरणादायक है। भारत में बाल विवाह पर कानूनी प्रतिबंध है, लेकिन राजस्थान समेत देश के कई अन्य राज्यों में आज भी बच्चों की शादी काफी कम उम्र में कर दी जाती है।  जब रूपा  महज आठ साल की थी और तीसरी कक्षा में पढ़ रही थी तभी उसकी शादी सातवीं में पढ़ने वाले शंकर लाल से कर दी गई। इतना ही नहीं उसी समारोह में उसकी बड़ी बहन की शादी शंकर के बड़े भाई से कर दी गई। 

जिस उम्र में रूपा को शादी का मतलब भी नहीं पता था, उस उम्र में वह शादी के बंधन में बंध गईं। जब वह दसवीं कक्षा में पहुंची तो उसका गौना हुआ। यानी वह  अपने माता-पिता का घर छोड़कर अपनी ससुराल आ गई। लेकिन रूपा की मेहनत और लगन ने अंतत: रंग दिखाया और 21 साल पूरा करने से पहले ही अब वह राजस्थान के एक सरकारी मेडिकल कॉलेज से डॉक्टर बनने की पढ़ाई करेगी। 

सीबीएसई की ओर से आयोजित राष्ट्रीय प्रवेश-सह-पात्रता परीक्षा (NEET) की परीक्षा में रूपा ने सफलता हासिल की है। कोटा में मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने वाली रूपा ने तीसरे प्रयास में इस सफलता को हासिल किया है।  रूपा बताती हैं कि कोटा में एक साल मेहनत करके मैं मेरे लक्ष्य के बहुत करीब पहुंच गई।  एक साल तैयारी के बाद मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ।  अब आगे पढ़ने में फिर फीस की दिक्कत सामने आने लगी।  इस पर पारिवारिक हालात बताने पर संस्थान ने मेरी 75 प्रतिशत फीस माफ कर दी। अब वह डॉक्टरी की पढ़ाई कर समाज सेवा करने के साथ लड़कियों के लिए प्रेरणा बनना चाहती है। हालांकि इस बेटी को इस मुकाम तक पहुंचाने में उसके ससुराल वालों का भी बड़ा हाथ है।  ससुराल वालों ने मदद की तो रूपा ऐसा काम कर दिखाया है, जिसके बाद शायद दुनिया के कोई मां-बाप अपनी बेटी का बाल विवाह करने से पहले हजार बार सोचेंगे। 


रूपा का सफर आसान नहीं था। उसे और उसके परिवार को पिछड़ी मानसिकता के लोगों के खूब ताने सुनने पड़े थे । गांव के लोग रूपा के ससुराल वालों को कहते थे इसे पढ़ने के बजाय घर में रखो और रसोई का काम करवाओ। पढ़ाई-लिखाई में कुछ नहीं रखा, लेकिन रूपा के पति को उसकी मेहनत और लगन पर पूरा भरोसा था। पति और ससुराल वालों ने देखा कि रूपा पढ़ने में मेधावी है, तो उन्होंने उसे भरोसा दिलाया कि वह अपनी पढ़ाई जारी रखे वे हरसंभव उसकी मदद करेंगे।  फिर पति व जीजा बाबूलाल ने रूपा का एडमिशन गांव से करीब 6 किलोमीटर दूर प्राइवेट स्कूल में कराया।  रूपा की सास अनपढ़ हैं, लेकिन किसी की परवाह न करते हुए उन्होंने भी अपनी बहू  को स्कूल जाने दिया जाए और पढ़ाई आगे जारी रखने दिया। 10वीं में रूपा ने  84 फीसदी अंक प्राप्त किए, तो हौसले में और भी वृद्धि हुई। 

रूपा के डॉक्टर बनने के पीछे भी एक दर्दनाक कहानी छुपी हुई है।  पढ़ाई के दौरान ही उसके चाचा भीमाराम यादव की हार्ट अटैक से मौत हो गई।  इसके बाद तो रूपा ने ठान लिया  कि वह डॉक्टर बनेगी, क्योंकि उन्हें समय पर उपचार नहीं मिल पाया था। लेकिन इसके लिए रूपा और उसके परिवार को काफी संघर्ष करना पड़ा। इस सफलता को हासिल करने के बाद रूपा कहती हैं, 'मेरे ससुराल वाले मेरे घरवालों की तरह छोटे किसान हैं, खेती से इतनी आमदनी नहीं हो पा रही थी कि वे मेरी उच्च शिक्षा का खर्च उठा सकें।  फिर मेरे पति ने टैक्सी चलानी शुरू और अपनी कमाई से मेरी पढ़ाई का खर्च जुटाने लगे। '

नारी सशक्तिकरण का अनूठा उदाहरण पेश करते हुये आज रूपा यादव उन तमाम लड़कियों के लिए प्रेरणा स्रोत के रूप में उभरी हैं, जो प्रतिभावान होते हुए भी चूल्हे-चौकी में अपना पूरा जीवन गँवा देती हैं। रूपा भाग्यशाली हैं कि उन्हें अपने ससुराल पक्ष से पूरा सपोर्ट मिला और उसके बाद उनके जज्बे ने वो कर दिखाया की आज वह एक अद्भुत मिसाल बन गई हैं। 

शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

गरीबों, वंचितों, दलितों और महिलाओं के जीवन में सकारात्मक बदलाव के लिए सतत संघर्ष करते रहे डॉ. भीमराव अम्बेडकर


मैं एक समुदाय की प्रगति का माप महिलाओं द्वारा हासिल प्रगति की डिग्री द्वारा करता हूँ 
-बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर 

हमारे देश का सौभाग्य है कि हमें एक से बढ़कर एक महापुरुष मिले हैं। बाबा साहेब डॉ. भीम राव अम्बेडकर ऐसे ही महान और प्रभावशाली महापुरुषों में हैं। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर गरीबों, वंचितों, दलितों और महिलाओं के जीवन में सकारात्मक बदलाव के लिए सतत संघर्ष करते रहे और अपना जीवन इस काम में समर्पित कर दिया। डॉ. अम्बेडकर ने संविधान शिल्पी के रूप में  जितनी बड़ी संख्या में गरीबों और खासकर वंचित तबके को समाज में ऊपर उठाने का काम किया है, इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता कि किसी एक काम ने इतना असर दिखाया हो। बाबा साहेब का कमजोर लोगों को सशक्त बनाना अनुकरणीय था। 

गरीबों और वंचितों को साथ ले चलने पर उनका जोर हमारे लिए प्रेरणादायी है। सतत संघर्ष, निरंतर कठिन परिश्रम, श्रमशील अध्ययन, सामाजिक समरसता, एकजुट संगठन, सर्व धर्म संभाव, सर्व जाति प्रेमभाव और प्रबुद्ध समाज का विकास बहुत कुछ  सिखा गये बाबा साहेब । 

विश्व के सबसे बड़े संविधान  के निर्माता,  प्रथम विधि मंत्री, सामाजिक समरसता की स्थापना के लिए जीवनपर्यन्त  संघर्ष करने वाले  डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जयंती के अवसर पर बधाई। 


It's day of Celebrations, a day to value a special person who taught world the lesson of Self Confidence and Dignity, who turned the Wheel of Justice towards Social justice of all. Its Bharat Ratna, Dr. B. R. Ambedkar, first Law Minister of India, Architect of Indian Constitution. Our politicians should learn from Baba Ambedkar Ji. We are enjoying our freedom under our great constitution provided by him. Nation Salutes you...!!

-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

संघर्षों से भरा रहा महाश्वेता देवी का जीवन

कुछ नाम किसी परिचय के मोहताज़ नहीं होते। उन्हीं में से एक नाम है - मशहूर लेखिका, साहित्यकार,  समाजसेविका और आंदोलनधर्मी और  महाश्‍वेता देवी का।  साहित्‍य अकादमी, ज्ञानपीठ अवार्ड, रेमन मैग्‍सेसे और पद्म विभूषण जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित महाश्‍वेता देवी को आदिवासी लोगों के लिए काम करने के लिए भी जाना जाता है। 

महाश्वेता देवी का जन्म 14 जनवरी  1926 को उस समय के पूर्वी  बंगाल (अब बांग्लादेश) के ढाका शहर में हुआ था। उनके पिता मनीष घटक भी कवि और उपन्यासकार थे। उनकी माँ धारित्री लेखिका और समाजसेविका थीं। तभी तो महाश्वेता देवी को साहित्य और समाज सेवा विरासत में मिली थी। 1944 में महाश्वेता देवी ने कोलकाता (तब कलकत्ता) के आशुतोष कॉलेज से इंटरमीडिएट किया। 1946 में  शांतिनिकेतन से अंग्रेजी में बीए (ऑनर्स) और कोलकाता यूनिवर्सिटी से एमए करने के बाद उन्होंने एक अध्यापक और पत्रकार के रूप में करियर शुरू किया। वे कोलकाता यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी की लेक्चरर रहीं। 1984 में उन्होंने यहां से इस्तीफा दे दिया और लेखन में सक्रिय हो गईं।

महाश्वेता देवी की पहली रचना 'झांसी की रानी' थी । उनकी शुरुआती तीन कृतियां स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित थीं। उनकी लघुकथाओं में मीलू के लिए, मास्टर साब, कहानियों में  स्वाहा, रिपोर्टर, वॉन्टेड, उपन्यास में नटी, अग्निगर्भ, झांसी की रानी, हजार चौरासी की मां, मातृछवि, जली थी अग्निशिखा, जकड़न
और आलेख विधा में अमृत संचय, घहराती घटाएं, भारत में बंधुआ मजदूर, ग्राम बांग्ला, जंगल के दावेदार कृतियाँ चर्चित हैं। 

महाश्वेता देवी को दौलत से जरा भी लगाव नहीं था। सम्मान में मिली राशि भी वे समाज सेवा के लिए ही खर्च करतीं। नेल्सन मंडेला के हाथों प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त करने के बाद इसके साथ मिले पांच लाख रुपए का चेक उन्होंने पुरुलिया आदिवासी समिति को दे दिया था। पश्चिम बंगाल की 'लोधास' और 'शबर' जनजातियों के लिए उन्होंने काफी काम किया। महाश्वेता देवी की नौ में से आठ कहानियां आदिवासियों पर ही लिखी गई हैं। झारखंड (पूर्व में बिहार का हिस्सा रहे) में बंधुआ मजूदरी के खिलाफ आवाज उठाने के लिए वे आदिवासी क्षेत्रों में बार-बार जाती थीं। झारखंड के आदिवासियों की हालत में सुधार दिखा तो उन्होंने पुरुलिया के आदिवासियों के लिए संघर्ष शुरू कर दिया। वहां उन्होंने कई गांवों में कम्युनिटी सेंटर और आदिवासी सेंटर बनाए। गुजरात के गणेश देवी और महाराष्ट्र के लक्ष्मण गायगवाड़ के साथ मिलकर देशभर में घुमंतू जनजाति के लिए DNT-RAG (डिनोटिफाइड एंड नोमेडिक ट्राइब्स राइट्स एंड एक्शन ग्रुप) बनाया।

महाश्वेता देवी को साहित्य और समाज सेवा के लिए तमाम पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें 1979 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1986 में पद्मश्री, 1996 में ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1997 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार और 2006 में पद्मविभूषण मिला। उनकी कई कृतियों पर फिल्मों का भी निर्माण हुआ। अमिताभ बच्चन और रेखा के साथ 1981 में रिलीज हुई 'सिलसिला' के 17 साल बाद जया बच्चन ने महाश्वेती देवी के उपन्यास 'हजार चौरासी की मां' पर बनी फिल्म  के जरिए ही बॉलीवुड में वापसी की थी। गौरतलब है कि  मार्च 1998 में जारी  हुई इस फिल्म का निर्देशन गोविंद निहलानी ने किया था। इसमें जया बच्चन के अलावा अनुपम खेर और नंदिता दास भी थे।

महाश्वेता देवी का खुद का जीवन भी झंझावतों और संघर्षों से भरा रहा।  की दो शादियाँ हुईं। 1947 में मशहूर रंगकर्मी विजन भट्टाचार्य से उनकी शादी हुई। विजन से शादी के बाद महाश्वेता देवी के परिवार को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। दरअसल, विजन कम्युनिस्ट थे और उस समय कम्युनिस्टों को रोजगार मुश्किल से मिलता था। तब 1948 में महाश्वेता देवी ने पदमपुकुर इंस्टीट्यूशन में अध्यापन  करके घर का खर्च चलाया। 1949 में महाश्वेता देवी को केंद्र सरकार के डिप्टी अकाउंटेंट जनरल, पोस्ट एंड टेलिग्राफ ऑफिस में अपर डिवीजन क्लर्क की नौकरी मिली, लेकिन पति कम्युनिस्ट थे, इसलिए उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। इसके बाद महाश्वेता देवी ने साबुन बेचकर और ट्यूशन पढ़ाकर घर का खर्च चलाया। बाद में 1957 में स्कूल में टीचर की नौकरी लगी।
शादी के 15 साल बाद 1962 में विजन भट्टाचार्य से उनका तलाक हो गया। विजन से उन्हें एक बेटा नवारुण भट्टाचार्य है। असीत गुप्त से दूसरी शादी हुई, लेकिन 1975 में उनसे भी तलाक हो गया।

इसमें कोई शक नहीं कि महाश्वेता देवी का पूरा जीवन ही संघर्षों से भरा रहा।  यही कारण था कि संघर्षों से वे कभी घबराई नहीं और समाज के निचले समाज के लिए सदैव संघर्षरत भी रहीं। 28 जुलाई, 2016  को उन्होंने अंतिम सास ली। अपने ही अंदाज में जीने वालीं महाश्वेता सिर्फ पन्नों पर ही शब्द नहीं उकेरती थीं बल्कि उसे आंदोलन की भावभूमि देने का सत्साहस भी रखती थीं। ऐसे में उनका जाना न सिर्फ साहित्य बल्कि समाज के लिए भी एक गहरी क्षति है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे .... विनम्र श्रद्धांजलि !!

बुधवार, 20 अप्रैल 2016

शाबास दीपा कर्माकर : ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय महिला जिमनास्ट बनीं

मन में हौसला हो तो सब कुछ सम्भव है। इसे चरितार्थ कर दिखाया है त्रिपुरा की 22 वर्षीया दीपा कर्माकर ने, जो ओलम्पिक के लिए क्वालिफाई करने वाली पहली भारतीय महिला जिमनास्ट बन गई हैं। अब वह रियो  डि जनेरियो ओलिंपिक में जिम्नास्टिक्स में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगी। पहली भारतीय महिला के अलावा वह 52 साल लंबे अंतराल बाद खेलों के महासमर के लिये क्वालीफाइंग करने वाली पहली भारतीय जिमनास्ट भी हैं। देश को स्वंतत्रता मिलने के बाद 11 भारतीय पुरुष जिमनास्ट ने ओलंपिक में शिरकत की थी, जिसमें से दो ने 1952, तीन ने 1956 और छह ने 1964 में भाग लिया था। लेकिन वह ओलंपिक के लिये क्वालीफाई करने वाली पहली भारतीय महिला जिमनास्ट हैं। 18 अप्रैल को इस इतिहास को रचने वाली दीपा को रियो ओलंपिक के लिये क्वालीफाई करने वाली महिला कलात्मक जिमनास्ट में व्यक्तिगत क्वालीफायर की सूची में 79वीं जिमनास्ट सूचित किया गया है।

ओलंपिक के लिए क्‍वालिफाई करने के कुछ ही घंटों बाद दीपा ने रियो ओलंपिक खेलों की परीक्षण प्रतियोगिता में वाल्टस फाइनल में गोल्ड मेडल जीता। 22 साल की दीपा 14.833 प्वॉइंट के अपने बेस्ट प्रदर्शन के साथ महिला वाल्टस फाइनल में टॉप पर रहीं। दीपा ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए कड़ी मेहनत की। दीपा के पिता दुलाल कर्माकर इस बात को लेकर परेशान थे कि दीपा को बंगाली मीडियम स्‍कूल में पढ़ाएं या फिर अंग्रेजी स्‍कूली में। उनकी इस दुविधा को भी दीपा ने ही दूर किया था। दीपा ने पिता से कहा था कि अंग्रेजी स्‍कूल में जाऊंगी तो जिम्‍नास्टिक की प्रेक्टिस नहीं कर पाऊंगी। उस समय दीपा की उम्र महज सात साल की थी। इस वजह यह थी कि बांग्‍ला स्‍कूल जिम्‍नास्टिक्‍स हॉल का उपयोग करने की इजाजत देती थी। दुलाल कर्माकर बताते हैं कि,’हम परेशान थे कि हम उसे अंग्रेजी से दूर रखकर सही कर रहें है या नहीं। लेकिन वह जिद पर अड़ी रही।’ उनके पिता के अनुसार अंग्रेजी सीखने का मोह छोड़कर दीपा ने सबसे बड़ा त्‍याग किया। 

अभी राजनीतिक विज्ञान में मास्‍टर्स कर रही दीपा  शुरुआत के दिनों में दीपा जिम्‍नास्‍ट को लेकर अनमनी थी। वह एक ही स्‍टेप बार-बार करके खुश नहीं थी लेकिन उसने खेल को नहीं छोड़ा। दीपा के पिता भारतीय खेल प्राधिकरण में वेटलिफ्टिंग के कोच हैं। वे कहते हैं’वह जिद्दी थी। अगर उसने ठान लिया कि कुछ पाना है तो उसे पाए बगैर वह बैठेगी नहीं। पहले नेशनल चैंपियनशिप, फिर इंडिया टीम, फिर कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स और अब ओल‍ंपिक।’ ओलंपिक के लिए क्‍वालिफाई करने के बाद दीपा ने घर पर मैसेज भेजा,’ हम क्‍वालिफाई हो गया।’ ओलंपिक क्‍वालिफिकेशन के लिए दीपा ने अक्‍टूबर और अप्रैल में हुए नेशनल चैंपियनशिप्‍स को भी छोड़ दिया। 2010 दिल्‍ली कॉमनवेल्‍थ गेम्‍स में पदक न जीत पाने के बाद दीपा कई दिनों तक रोती रही थी। 2014 में पदक जीतकर उसने पिछली बार की गलती की भरपाई की। 
-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

शनिवार, 9 अप्रैल 2016

फोर्ब्स एशिया की सूची में शीर्ष पर नीता अंबानी, अरुंधती भट्टाचार्य सहित आठ भारतीय महिलाएं

नारी सशक्तिकरण के लिए महिलाओं का आर्थिक सशक्तिकरण बहुत जरूरी है।  जब तक नारी अपने पैरों पर खड़ी होकर आर्थिक रूप से स्वावलम्बी नहीं होगी, समाज की मानसिकता जस की तस रहेगी। आज के दौर में तमाम महिलाएँ देश-दुनिया में कारपोरेट जगत, बैंकिंग जगत से लेकर विभिन्न आर्थिक समृद्धि वाले क्षेत्रों में न सिर्फ बखूबी कार्य कर रही हैं, बल्कि सफलता की नई इबारत भी लिख रही हैं। इसी क्रम में रिलायंस फाउंडेशन की प्रमुख नीता अंबनी को फोर्ब्स ने एशियाई की सबसे शक्तिशाली महिला कारोबारी करार दिया है जो इस क्षेत्र की 50 प्रमुख उद्यमियों की सूची में शीर्ष पर हैं। इस सूची में आठ भारतीय महिलाओं ने स्थान बनाया है।

स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की अध्यक्ष एवं प्रबंध निदेशक अरुंधती भटेटाचार्य को 2016 की एशिया की 50 शक्तिशाली महिला कारोबारी की सूची में दूसरा स्थान दिया गया है, जिसमें चीन, इंडोनेशिया, आस्ट्रेलिया, वियतनाम, थाइलैंड, हांगकांग, जापान, सिंगापुर, फिलिपीन और न्यूजीलैंड की प्रभावशाली महिलाएं शामिल हैं।

अंबानी और भट्टाचार्य के अलावा भारत की छह महिलाओं ने इसमें स्थान बनाया है जिनमें एमयू सिग्मा की मुख्य कार्यकारी अंबिगा धीरज (14), वेलस्पन इंडिया की मुख्य कार्यकारी दिपाली गोयनका (16), ल्यूपिन की मुख्य कार्यकारी विनीता गुप्ता (18), आईसीआईसीआई बैंक की प्रबंध निदेशक एवं मुख्य कार्यकारी चंदा कोचर (22), वीएलसीसी हेल्थकेयर की संस्थापक एवं उपाध्यक्ष वंदना लूथरा (25) और बायोकॉन की संस्थापक और चेयरमैन एवं प्रबंधन निदेशक किरण मजूमदार शॉ (28) शामिल हैं।

फोर्ब्स ने कहा, इस सूची में स्वीकार किया गया है कि कारोबारी दुनिया में महिलाएं अपनी जगह बना रही हैं लेकिन स्त्री-पुरुष असमानता बरकरार है। महिलाएं यह समझने की बेहतर स्थिति में हैं कि उन्हें नेतृत्व की स्थिति में आने और वहां बने रहने के लिए क्या करना होगा।

फोर्ब्स ने 52 वर्षीय नीता को भारतीय उद्योग जगत की प्रथम महिला करार देते हुए कहा कि वह राजगद्दी की सबसे करीबी ताकत है और उन्होंने रिलायंस इंडस्ट्रीज में अपनी बढ़ती हैसियत के कारण इस सूची में पहली बार स्थान बनाया है। रिलायंस इंडस्ट्रीज के प्रमुख उनके पति और भारत के सबसे अमीर व्यक्ति मुकेश अंबानी हैं।
-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर