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मंगलवार, 5 जून 2018

विश्व पर्यावरण दिवस : एक पौधा ज़रूर लगाएं

विश्व पर्यावरण दिवस पर कोई बड़ा संकल्प भले न लें, पर एक पौधा ज़रूर लगाएं। ज़मीन में नहीं तो गमलों में ही सही..... और जो पहले लगाए थे, उनमें पानी भी दे आयें! 

यकीन मानिए, आने वाली पीढ़ियों के बेहतर भविष्य के लिए कल ये ही छाँव देंगे। 
अधिकांश लोग सोशल मीडिया पर पेड़ लगाने में इतने व्यस्त रहेंगे कि धरा पर पेड़-पौधे लगाना भूल जाएंगे।
 बात अगर वैश्व‍िक संकट की हो तो भले ही किसी एक व्यक्त‍ि का निर्णय बहुत छोटा लगता है, लेकिन जब अरबों लोग एक ही मकसद से आगे बढ़ते हैं, तो बड़ा परिवर्तन आता है। आज 'विश्व पर्यावरण दिवस' है, आइए संकल्प करें एक वृक्ष लगाने का ......विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आने वाली पीढ़ियों के बेहतर भविष्य के लिए आइए हम सभी संकल्प लेते है कि हम सब अपने परिवेश को कचरा मुक्त,प्लास्टिक मुक्त,गंदगी मुक्त कर साफ-स्वच्छ और हरा-भरा बनायेंगें। आज की हमारी छोटी कोशिश भी आने वाले कल को स्वर्णिम बना सकती है।

 सांसे हो रही हैं कम
आओ पेड़ लगाएँ हम

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गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे।
-निदा फाजली



रविवार, 27 मई 2018

सीबीएसई (CBSE) बोर्ड के नतीज़ों में बेटियाँ अव्वल, पर कैरियर में क्यों नहीं ??

सीबीएसई (CBSE) बोर्ड के कक्षा 12 वीं के नतीज़ों में बेटियाँ फिर से अव्वल। यही साल क्यों, प्रायः हर साल इन रिजल्ट्स में बेटियाँ अव्वल रहती हैं। बेटियाँ लगातार छठवें साल अव्वल रहीं। 
लड़कियों ने इस बार भी लड़कों से बेहतर प्रदर्शन किया। इनका उत्तीर्ण प्रतिशत 88.31 वहीं लड़कों का उत्तीर्ण प्रतिशत 78.99 रहा। 
नोएडा के स्टेप बाई स्टेप स्कूल से मानविकी विषय की छात्रा मेघना श्रीवास्तव ने 99.8 प्रतिशत अंक हासिल कर टॉप किया है। उन्हें 500 अंकों में से 499 मिले हैं।  मेघना ने अंग्रेजी (कोर) में 99, इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र और मनोविज्ञान में 100-100 अंक हासिल किए हैं। गाजियाबाद की अनुष्का चंद्रा ने 500 में से 498 नंबर हासिल कर दूसरे नंबर पर बाज़ी मारी है। 

 कमाल की बात यह है कि तीसरे नम्बर पर 1 या 2 नहीं इस बार 7 बच्चे हैं, जिन्होंने 500 में से 497 नंबर प्राप्त किए।  इन सात में से पांच लड़कियां हैं।  इन सबके नाम हैं चाहत बोधराज, आस्था बंबा, तनुजा कपरी, सुप्रिया कौशिक और अनन्या सिंह, वहीं दो लड़कों के नाम हैं नकुल गुप्ता और क्षितिज आनंद। 

एक तरफ यह रिजल्ट देखकर बेहद ख़ुशी होती है।  "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" से लेकर बालिका-सशक्तिकरण जैसे तमाम दावों के बावजूद कक्षा 12 के बाद ये बेटियाँ कहाँ चली जाती हैं ? यह एक अजीब विडंबना है कि शैक्षणिक (Academics) में बहुत अच्छा परफार्म करने वाली ये बेटियाँ कैरियर बनाने में पीछे रह जाती हैं या कैरियर की ऊंचाइयों पर नहीं पहुँच पाती। मां-बाप के लिए उनके कैरियर से ज्यादा उनकी शादी अहम हो जाती है। 

आख़िर, इस समाज में रोज बेटियों को अपने अस्तित्व की दुहाई देनी पड़ती है। समाज के नजरिये में आज उस बदलाव की भी जरूरत है जहाँ ये बेटियाँ पढ़ाई पूरी होने के बाद अपना मनचाहा कैरियर बना सकें और वहाँ भी सर्वोच मुकाम हासिल कर सकें।

-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

मंगलवार, 1 मई 2018

क्या वाकई श्रमिक दिवस को ये महिलाएँ सेलिब्रेट करती होंगी...

क्या वाकई श्रमिक दिवस को ये महिलाएँ सेलिब्रेट करती होंगी। सिर्फ महिलाएँ ही क्यों हमारे आस-पास काम करते बाल श्रमिक से लेकर पुरुष श्रमिक तक क्या इस खास दिवस का कोई लुत्फ़ उठा पाते होंगे। 

क्या जितनी कवायद इस दिन अख़बारों के पन्ने भरने से लेकर इलेक्ट्रानिक मीडिया या सोशल मीडिया तक पर होती है, उसका एक भी अंश इन मजदूरों/ श्रमिकों के पास पहुँचता होगा। 

....... किसी कवि की पंक्तियाँ याद आ रही हैं-

मजदूर दिवस की छुट्टी मुबारक,
आप घर पर हैं और मजदूर काम पर.

मंगलवार, 5 सितंबर 2017

शिक्षक दिवस : देश-समाज के लिए प्रकाश स्तंभ की भांति हैं शिक्षक

शिक्षक दिवस पर सभी को बधाईयाँ। जिस विभूति के नाम पर यह दिवस मनाया जाता है, उन डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने शिक्षा को एक मिशन माना था और उनके मत में शिक्षक होने का हकदार वही है, जो लोगों से अधिक बुद्धिमान व विनम्र हो। अच्छे अध्यापन के साथ-साथ शिक्षक का अपने छात्रों से व्यवहार व स्नेह उसे योग्य शिक्षक बनाता हैै। मात्र शिक्षक होने से कोई योग्य नहीं हो जाता बल्कि यह गुण उसे अर्जित करना होता है। उनका मानना था कि शिक्षक वह नहीं जो छात्र के दिमाग में तथ्यों को जबरन ठूंसे, बल्कि वास्तविक शिक्षक तो वह है जो उसे आने वाले कल की चुनौतियों के लिए तैयार करे। उनके यह शब्द समाज में शिक्षकों की सही भूमिका को दिखाते हैं- ’’शिक्षक का काम सिर्फ किताबी ज्ञान देना ही नहीं बल्कि सामाजिक परिस्थितियों से छात्र को परिचित कराना भी होता है।’’ ..... आज जरूरत है उस भावना को आत्मसात करने की, तभी शिक्षक दिवस फलीभूत होगा !! -आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

शिक्षक  दिवस पर लेख : गुरु-शिष्य की बदलती परंपरा (आकांक्षा यादव)

शिक्षक  दिवस पर लेख : गुरु-शिष्य की बदलती परंपरा (आकांक्षा यादव)

शिक्षक  दिवस पर लेख : प्रकाश स्तंभ  हैं शिक्षक (आकांक्षा यादव)

शिक्षक  दिवस पर लेख : शिक्षकों की भूमिका व कर्तव्यों पर पुनर्विचार जरूरी  (आकांक्षा यादव)

शिक्षक  दिवस पर लेख :देश-समाज के लिए प्रकाश स्तंभ की भांति हैं शिक्षक (आकांक्षा यादव)

रविवार, 3 सितंबर 2017

इंदिरा गांधी के बाद पहली महिला रक्षामंत्री बनीं निर्मला सीतारमण

देश की रक्षा मंत्री बनीं निर्मला सीतारमण। इंदिरा गांधी के बाद पहली महिला रक्षामंत्री बनीं निर्मला सीतारमण और स्वतंत्र रूप में देश की पहली महिला रक्षा मंत्री। गौरतलब है कि श्रीलंका में 1960 में श्रीमावो भंडारनायको को रक्षा मंत्रालय की कमान सौंप कर इसकी शुरुआत की गई, वहीं 1980 में प्रधानमंत्री रहते हुए इंदिरा गांधी भी देश की रक्षा मंत्री रह चुकी है। इसके अलावा मौजूदा समय में फ्रांस, इटली, जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया समेत 15 देशों में महिला रक्षा मंत्री मौजूद हैं।

जिस देश में महिलाओं की भूमिका को 'गृह' तक सीमित करके देखा जाता है, उनके पहनावे से लेकर बाहर निकलने तक पर बंदिशें थोपी जाती हैं ताकि वे सुरक्षित रहीं......ऐसे में वहाँ एक महिला देश की रक्षा की कमान संभालेगी, विदेश मंत्री के रूप में नारी-शक्ति का नेतृत्व पहले से ही है, देखकर अच्छा लगता है।  काश कि यह सोच समाज में भी निचले स्तर तक व्याप्त हो !!

बुधवार, 5 जुलाई 2017

राजस्थान की बालिका वधू रूपा यादव अब बनेगी डॉक्टर

जब मन में लगन हो तो परिस्थितियाँ भी रास्ता दिखाने को मजबूर हो जाती हैं।  ऐसा ही हुआ राजस्थान की बालिका वधू रूपा यादव के साथ। जयपुर के करेरी गांव की रहने वाली रूपा यादव की कहानी दिलचस्प और प्रेरणादायक है। भारत में बाल विवाह पर कानूनी प्रतिबंध है, लेकिन राजस्थान समेत देश के कई अन्य राज्यों में आज भी बच्चों की शादी काफी कम उम्र में कर दी जाती है।  जब रूपा  महज आठ साल की थी और तीसरी कक्षा में पढ़ रही थी तभी उसकी शादी सातवीं में पढ़ने वाले शंकर लाल से कर दी गई। इतना ही नहीं उसी समारोह में उसकी बड़ी बहन की शादी शंकर के बड़े भाई से कर दी गई। 

जिस उम्र में रूपा को शादी का मतलब भी नहीं पता था, उस उम्र में वह शादी के बंधन में बंध गईं। जब वह दसवीं कक्षा में पहुंची तो उसका गौना हुआ। यानी वह  अपने माता-पिता का घर छोड़कर अपनी ससुराल आ गई। लेकिन रूपा की मेहनत और लगन ने अंतत: रंग दिखाया और 21 साल पूरा करने से पहले ही अब वह राजस्थान के एक सरकारी मेडिकल कॉलेज से डॉक्टर बनने की पढ़ाई करेगी। 

सीबीएसई की ओर से आयोजित राष्ट्रीय प्रवेश-सह-पात्रता परीक्षा (NEET) की परीक्षा में रूपा ने सफलता हासिल की है। कोटा में मेडिकल प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने वाली रूपा ने तीसरे प्रयास में इस सफलता को हासिल किया है।  रूपा बताती हैं कि कोटा में एक साल मेहनत करके मैं मेरे लक्ष्य के बहुत करीब पहुंच गई।  एक साल तैयारी के बाद मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ।  अब आगे पढ़ने में फिर फीस की दिक्कत सामने आने लगी।  इस पर पारिवारिक हालात बताने पर संस्थान ने मेरी 75 प्रतिशत फीस माफ कर दी। अब वह डॉक्टरी की पढ़ाई कर समाज सेवा करने के साथ लड़कियों के लिए प्रेरणा बनना चाहती है। हालांकि इस बेटी को इस मुकाम तक पहुंचाने में उसके ससुराल वालों का भी बड़ा हाथ है।  ससुराल वालों ने मदद की तो रूपा ऐसा काम कर दिखाया है, जिसके बाद शायद दुनिया के कोई मां-बाप अपनी बेटी का बाल विवाह करने से पहले हजार बार सोचेंगे। 


रूपा का सफर आसान नहीं था। उसे और उसके परिवार को पिछड़ी मानसिकता के लोगों के खूब ताने सुनने पड़े थे । गांव के लोग रूपा के ससुराल वालों को कहते थे इसे पढ़ने के बजाय घर में रखो और रसोई का काम करवाओ। पढ़ाई-लिखाई में कुछ नहीं रखा, लेकिन रूपा के पति को उसकी मेहनत और लगन पर पूरा भरोसा था। पति और ससुराल वालों ने देखा कि रूपा पढ़ने में मेधावी है, तो उन्होंने उसे भरोसा दिलाया कि वह अपनी पढ़ाई जारी रखे वे हरसंभव उसकी मदद करेंगे।  फिर पति व जीजा बाबूलाल ने रूपा का एडमिशन गांव से करीब 6 किलोमीटर दूर प्राइवेट स्कूल में कराया।  रूपा की सास अनपढ़ हैं, लेकिन किसी की परवाह न करते हुए उन्होंने भी अपनी बहू  को स्कूल जाने दिया जाए और पढ़ाई आगे जारी रखने दिया। 10वीं में रूपा ने  84 फीसदी अंक प्राप्त किए, तो हौसले में और भी वृद्धि हुई। 

रूपा के डॉक्टर बनने के पीछे भी एक दर्दनाक कहानी छुपी हुई है।  पढ़ाई के दौरान ही उसके चाचा भीमाराम यादव की हार्ट अटैक से मौत हो गई।  इसके बाद तो रूपा ने ठान लिया  कि वह डॉक्टर बनेगी, क्योंकि उन्हें समय पर उपचार नहीं मिल पाया था। लेकिन इसके लिए रूपा और उसके परिवार को काफी संघर्ष करना पड़ा। इस सफलता को हासिल करने के बाद रूपा कहती हैं, 'मेरे ससुराल वाले मेरे घरवालों की तरह छोटे किसान हैं, खेती से इतनी आमदनी नहीं हो पा रही थी कि वे मेरी उच्च शिक्षा का खर्च उठा सकें।  फिर मेरे पति ने टैक्सी चलानी शुरू और अपनी कमाई से मेरी पढ़ाई का खर्च जुटाने लगे। '

नारी सशक्तिकरण का अनूठा उदाहरण पेश करते हुये आज रूपा यादव उन तमाम लड़कियों के लिए प्रेरणा स्रोत के रूप में उभरी हैं, जो प्रतिभावान होते हुए भी चूल्हे-चौकी में अपना पूरा जीवन गँवा देती हैं। रूपा भाग्यशाली हैं कि उन्हें अपने ससुराल पक्ष से पूरा सपोर्ट मिला और उसके बाद उनके जज्बे ने वो कर दिखाया की आज वह एक अद्भुत मिसाल बन गई हैं। 

रविवार, 21 मई 2017

रेवाड़ी की धाकड़ बेटियों ने शिक्षा और सुरक्षा हेतु अनशन कर समाज को दी एक नई दिशा

इक्कीसवीं सदी में भी जब अपने देश की बेटियों को शिक्षा के लिए गुहार लगानी पड़ती है, और वह भी उस राज्य में जहाँ से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने "बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ" का नारा बुलंद किया था, तो यह घटना समाज को आइना दिखाती नज़र आती है।  

शिक्षा का हमारे जीवन में कितना महत्वपूर्ण स्थान है, इस बात को साबित कर दिखाया है हरियाणा के रेवाड़ी जिले के गोठड़ा गांव की बेटियों ने। धरना-प्रदर्शन का नाम सामने आते ही हमारे सामने राजनेताओं या सामाजिक कार्यकर्ताओं के चेहरे सामने घूमने लगते हैं, पर भारत के इतिहास में इस तरह की ये पहली घटना है, जब किसी स्कूल की 80 से ज्यादा छात्राएं धरने पर बैठ गई, और 13 छात्राएं आमरण अनशन पर रहीं । इनकी मांग थी  कि इनके गांव के स्कूल को 12 वीं तक कर दिया जाएं, जिससे इन्हें आगे की  पढ़ाई के लिए दूसरे गांव न जाने पड़े। इसके पीछे एक बहुत बड़ी वजह है सुरक्षा। 10वीं के बाद यदि छात्राएं दूसरे गांव 12वीं की पढ़ाई के लिए जाती हैं  तो उन्हें छेड़छाड़ जैसी हरकतों का सामना करना पड़ता है। इसीलिए इन छात्राओं की माँग थी  कि उनके गांव के स्कूल को ही 12वीं तक कर दिया जाए। 

दरअसल, गोठड़ा गांव की छात्राओं के दूसरे गांव तक जाकर बारहवीं की पढ़ाई के लिए जाने वाले रास्ते पर कई परेशानियां हैं। जिसमें सबसे पहला तो इस रास्ते में हर तरफ शराब का ठेका है, जिस वजह से घर के लोग तैयार ही नहीं होते है अपनी लड़कियों को भेजने के लिए। बाहर जाने वाली लड़कियों के साथ आए दिन छेड़छाड़ होती रहती है, और उन पर भद्दे कमेंट किए जाते हैं।

अपने हक और अपनी सुरक्षा के लिए 8 दिन से भूख हड़ताल पर बैठी छात्राएं जब अस्पताल पहुंच गई और मीडिया ने भी इसका संज्ञान लेना आरम्भ किया तो  उसके बाद सरकार मानी। हरियाणा सरकार ने इन छात्राओं के स्कूल को अपग्रेड करके 10वीं से 12वीं तक करने की घोषणा कर दी है। वहीं मनचलों पर लगाम लगाने के लिए  विशेष प्रयास करने हेतु भी  पुलिस को सख्त निर्देश दे दिए गए हैं। इसके बाद तो कहा गया कि, रंग लाया रेवाड़ी की बेटियों का संघर्ष, झुक गई हरियाणा सरकार। पर वास्तव देखा जाये तो भारत के ग्रामीण अंचल के तमाम स्कूलों में ऐसा ही माहौल देखने को मिलता है। जब लड़कियां घर वालों से शिकायत करती हैं तो या तो उन्हें चुप करा दिया जाता है या उनकी पढाई छुड़वाकर घर में बिठा दिया जाता है। तमाम सरकारी वायदों और क़ायदे-कानूनों के बावजूद बालिका-शिक्षा की स्थिति देश में दयनीय है। लड़कियाँ तो पढ़कर आगे बढ़ना चाहती हैं,पर आड़े आती हैं तमाम मुसीबतें। 

खैर, रेवाड़ी की लड़कियों के इस आंदोलन ने समाज को एक नई दिशा दी है। अनशन तो कई होते हैं, पर इस तरह का अनशन देश के लिए नया है। यह देश के जनप्रतिनिधियों के लिए भी एक सबक है कि अब बच्चे भी अपने हक़ के लिए जागरूक हो रहे हैं, उन्हें बहुत दिन तक लॉलीपॉप देकर बरगलाया नहीं जा सकता। शिक्षा, स्वास्थ्य और सुरक्षा जैसी आधारभूत आवश्यकताओं को समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुँचाकर ही समाज को समृद्ध बनाया जा सकता है। 


शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

गरीबों, वंचितों, दलितों और महिलाओं के जीवन में सकारात्मक बदलाव के लिए सतत संघर्ष करते रहे डॉ. भीमराव अम्बेडकर


मैं एक समुदाय की प्रगति का माप महिलाओं द्वारा हासिल प्रगति की डिग्री द्वारा करता हूँ 
-बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर 

हमारे देश का सौभाग्य है कि हमें एक से बढ़कर एक महापुरुष मिले हैं। बाबा साहेब डॉ. भीम राव अम्बेडकर ऐसे ही महान और प्रभावशाली महापुरुषों में हैं। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर गरीबों, वंचितों, दलितों और महिलाओं के जीवन में सकारात्मक बदलाव के लिए सतत संघर्ष करते रहे और अपना जीवन इस काम में समर्पित कर दिया। डॉ. अम्बेडकर ने संविधान शिल्पी के रूप में  जितनी बड़ी संख्या में गरीबों और खासकर वंचित तबके को समाज में ऊपर उठाने का काम किया है, इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता कि किसी एक काम ने इतना असर दिखाया हो। बाबा साहेब का कमजोर लोगों को सशक्त बनाना अनुकरणीय था। 

गरीबों और वंचितों को साथ ले चलने पर उनका जोर हमारे लिए प्रेरणादायी है। सतत संघर्ष, निरंतर कठिन परिश्रम, श्रमशील अध्ययन, सामाजिक समरसता, एकजुट संगठन, सर्व धर्म संभाव, सर्व जाति प्रेमभाव और प्रबुद्ध समाज का विकास बहुत कुछ  सिखा गये बाबा साहेब । 

विश्व के सबसे बड़े संविधान  के निर्माता,  प्रथम विधि मंत्री, सामाजिक समरसता की स्थापना के लिए जीवनपर्यन्त  संघर्ष करने वाले  डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जयंती के अवसर पर बधाई। 


It's day of Celebrations, a day to value a special person who taught world the lesson of Self Confidence and Dignity, who turned the Wheel of Justice towards Social justice of all. Its Bharat Ratna, Dr. B. R. Ambedkar, first Law Minister of India, Architect of Indian Constitution. Our politicians should learn from Baba Ambedkar Ji. We are enjoying our freedom under our great constitution provided by him. Nation Salutes you...!!

-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

'शिव' और 'शक्ति' के मिलन का प्रतीक है महाशिवरात्रि पर्व, अर्द्धनारीश्वर की कल्पना लेती है मूर्त रूप

आज  'महाशिवरात्रि' का पर्व है। ऐसी मान्यता  है कि इसी दिन भगवान शिव का पार्वती संग शुभ-विवाह हुआ था। भगवान शिव का एक रूप अर्धनारीश्वर का भी है। पुरुष (शिव) एवं स्त्री (शक्ति) का एका होने के कारण शिव नर भी हैं और नारी भी, अतः वे अर्द्धनारीश्वर हैं।

जब ब्रह्मा ने सृजन का कार्य आरंभ किया तब उन्होंने पाया कि उनकी रचनायें अपने जीवनोपरांत नष्ट हो जायंगी तथा हर बार उन्हें नए सिरे से सृजन करना होगा। गहन विचार के उपरांत भी वो किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँच पाये। तब समस्या सामाधान हेतु वे शिव की शरण में पहुँचे। उन्होंने शिव को प्रसन्न करने हेतु कठोर तप किया। ब्रह्मा की कठोर तप से शिव प्रसन्न हुए। ब्रह्मा की समस्या के समाधान हेतु भगवान शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रकट हुए। अर्ध भाग में वे शिव थे तथा अर्ध में शिवा। अपने इस स्वरूप से शिव ने ब्रह्मा को प्रजननशील प्राणी के सृजन की प्रेरणा प्रदान की। साथ ही साथ उन्होंने पुरूष एवं स्त्री के समान महत्व का भी उपदेश दिया। 

शक्ति शिव की अविभाज्य अंग हैं। शिव नर के प्रतीक हैं तो शक्ति नारी की। वे एक दूसरे के पूरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव अकर्ता हैं। वो संकल्प मात्र करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी करती हैं।

 ..... आप सभी को ''महाशिवरात्रि'' पर्व  की हार्दिक शुभकामनाएँ !!

आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 
Akanksha Yadav @ www.shabdshikhar.blogspot.com/ 


शनिवार, 21 जनवरी 2017

'आधी आबादी के सरोकार' पुस्तक में अपनी बात

अपनी पुस्तक को हाथ में देखने की सुखद अनुभूति ही कुछ और होती है। हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित हमारी पुस्तक "आधी आबादी के सरोकार" की 10 लेखकीय प्रतियाँ आज ही प्राप्त हुई, वाकई बहुत अच्छा लगा। वर्ष 2017 की हमारी पहली सृजनात्मक उपलब्धि रही ये पुस्तक। यह भी एक अजीब संयोग है कि इस बार प्रगति मैदान, नई दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेला-2017 की थीम भी 'मानुषी' रही, जो महिलाओं द्वारा एवं महिलाओं के ऊपर लेखन को प्रस्तुत करती है। एकेडेमी द्वारा बताया गया है कि "आधी आबादी के सरोकार" पुस्तक को हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद के कार्यालय, स्टॉल के अलावा लोकभारती और राजकमल प्रकाशन की मार्फत भी प्राप्त किया जा सकता है, जो एकेडेमी के पुस्तकों के वितरक भी हैं। फ़िलहाल, इस पुस्तक में 'अपनी बात' के तहत लिखी गई मेरी भावनायें इसकी भावभूमि पर प्रकाश डालती हैं, जिसे यहाँ आप सभी के साथ शेयर कर रही हूँ -


साहित्य और समाज में अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। कई बार साहित्य समाज को पथदृष्टा बन कर राह दिखाता है तो कई बार समाज में चल रही उथल-पुथल साहित्य में कुछ नया रचने की प्रेरणा देती है। तभी तो कहते हैं कि साहित्य अपने समकालीन समाज का आईना होता है।  लेकिन कई बार आईना भी हमें सिर्फ वही दिखाता है जो हम देखना चाहतेहैं। यही कारण है किसमय के साथ साहित्य में तमाम विमर्शों का जन्म हुआ,जैसे- नारी विमर्श, बाल विमर्श, विकलांग विमर्श, दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श इत्यादि। ये विमर्श साहित्य को बौना नहीं बनाते बल्कि उसे विस्तार देते हैं। समाज की मुख्यधारा से वंचित तमाम ऐसे आयाम हैं जिनका लिपिबद्ध होकर सामने आना बहुत जरूरी है,ताकि आने वाली पीढ़ियाँ उनकी भाव भूमि पर अपने को खड़ी कर सकें। 

दुनिया की लगभग आधी जनसंख्या नारियों की है और इस रूप में इन्हें आधी आबादी माना जाता है। एक ऐसी आधी आबादी जो शेष आधी आबादी को जन्मती है,पल्लवित-पुष्पित करती है। ऐसे में जरूरी हैकि आधी आबादी से जुड़े सरोकारों पर गहन विमर्श किया जाए। “आधी आबादी के विमर्श” नामक इस पुस्तक में मैंने ऐसे ही विषयों को अपनी लेखनी के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। 

21वीं सदी की नारी के सामने उसके अपने सपने, महत्वाकांक्षायें, और उन्मुक्त उड़ान भरने की अभिलाषा है। इसके साथ ही उसे परिवार व समाज की परंपराओं और संस्कारों को भी निभाना है। इन सबके बीचस्वाभाविक रूप से उसपर जिम्मेदारियाँ बढ़ती हैं, और कई बार नारी अपने को दोराहे पर खड़ा पाती है। आज की नारी अपने पुरातन दृष्टिकोण को तिलांजलि देकर अपने विवेक और नूतन दृष्टि से एक नई भूमिका लिखना चाहती है। वह अपनी सोच को नई उड़ान देना चाहती है, साथ ही वह अपनी अस्मिता और अस्तित्व को लेकर भी सजग हुई है। 
आज का दौर परिवर्तन का दौर है। बदलाव या परिवर्तन अपनी गतिशीलता का परिणाम है, जो यह दिखाता है कि अमुक समाज, या सोच जड़ नहीं है। परिवर्तन के इस माहौल में  नारी नई इबारत लिखने को तैयार है।आज के इस दौर में नारी का स्वावलंबी होना अति आवश्यक भी हो गया है क्योंकि वह एक ऐसी धुरी है जिसका उत्थान न सिर्फ परिवार का बल्कि समाज और  राष्ट्र का भी उत्थान है। राजनीति, प्रशासन, कॉरपोरेट, सैन्य सेवाओं, आई.टी., खेलकूद, साहित्य, कला, संस्कृति, फिल्म जगत से लेकर तमाम क्षेत्रों में नारी आज नए मुकाम स्थापित कर रही है। कई बार इसे ऐसे भी प्रदर्शित किया जाता है मानो किआधी आबादी ने अपनी ऊँचाइयों को प्राप्त कर लिया है,परजमीनी हकीकत ऐसी नहीं हैं। ये तो एक शुरुआत मात्र है,अभी नारी को एक लंबा सफर तय करना है, उसे पग–पग पर संघर्षों के बीच स्वयं को सिद्ध करना है। 

नारी संबंधित सरोकारों पर मैं एक लंबे समय से लिख रही हूँ, और इस बीच तमाम लेख देश–विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से लेकर इंटरनेट के संजाल पर प्रकाशित हुए। ये वो विषय हैं जो पारंपरिक से लेकर आधुनिक नारी तक को प्रभावित करते हैं। सिर्फ लेखन के स्तर पर ही नहीं व्यक्तिगत जीवन में भी मैंने उन्हीं संस्कारों को जिया है जो मेरे लेखन में समाहित है। तभी तो आज हमारे आँगन में दो प्यारी बेटियाँ अक्षिता (पाखी) और  अपूर्वा खेल रही हैं। निश्चितत: मैं इनमें आने वाले समय में होने वाले परिवर्तनों का आगाज देखती हूँ और यह महसूस करती हूँ कि किस तरह आज की बेटियाँ, भावी जीवन की नई इबारत लिखने को तत्पर हैं। अपनी यह पुस्तक मैं अपनी इन दोनों प्यारी बेटियों को समर्पित करती हूँ।  

इस पुस्तक के लेखन व प्रकाशन में सबसे बड़ा योगदान मेरे जीवन-साथी कृष्ण कुमार यादव जी का है, जिन्होंने हर पल दाम्पत्य जीवन के साथ साहित्य के क्षेत्र में भी मेरे साथ युगलबंदी की है। इन्होंने विभिन्न मुददों पर मेरे विचारों को और भी प्रखर किया।इनसे प्राप्त प्यार और अनुरागसे मैं सदैव अभिभूत हूँ। 

इस पुस्तक के लिए मैं अपने मम्मी–पापा (श्रीमती सावित्री देवी जी-श्री राजेंद्र प्रसाद जी) की ऋणी हूँ जिन्होंने मुझे वो शिक्षा, संस्कार एवं मूल्य दिये जिसके कारण मैं आज इस रूप में अपने को अभिव्यक्त कर पा रही हूँ। 

मैं डॉ. चम्पा श्रीवास्तव जी की हार्दिक आभारी हूँ जिन्होंने इस पुस्तक का प्राक्कथन लिखकर मेरा हौसला बढ़ाया। हिन्दुस्तान एकेडमी, इलाहाबाद का मैं विशेष आभार व्यक्त करना चाहती हूँ,जिसने इस पुस्तक को प्रकाशित करने का निर्णय लिया और इस रूप में आप सभी के समक्ष प्रस्तुत किया। 

यद्यपि मैंने पूर्ण कोशिश की है कि पुस्तक में तथ्यों को सही रूप मेंप्रस्तुत किया जाए एवं वैचारिकता के पहलू पर आंकते हुए तर्कसंगत रूप में प्रस्तुत किया जाए, लेकिन इसके बावजूद भी यदि किसी प्रकार से त्रुटि रह जाती है तो पाठकगण कृपया उसे मेरे संज्ञान में अवश्य लायें, ताकि इनमें सुधार किया जा सके। 

आशा करती हूँ कि यह पुस्तक आपको अवश्य पसंद आएगी और मेरी लेखनी को आपका स्नेह प्राप्त होगा। 

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस                                (आकांक्षा यादव)
08 मार्च 2016
 
                                                         *******************************

'आधी आबादी के सरोकार' पुस्तक की विषय सूची 

1. समकालीन परिवेश में नारी विमर्श
2 . आजादी के आंदोलन में भी अग्रणी रही नारी
3 . शिक्षा और साहित्य के विकास में नारी की भागीदारी
4 . सोशल मीडिया और आधी आबादी के सरोकार 
5 . हिन्दी ब्लाॅगिंग को समृद्ध करती महिलाएं
6 . माँ का रिश्ता सबसे अनमोल
7 . घरेलू हिंसा बनाम अस्तित्व की लड़ाई
8 . नारी सशक्तिकरण बनाम अशक्तिकरण
9 . आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में नारी 
10 . राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत


पुस्तक का नाम : आधी आबादी के सरोकार 
लेखिका : आकांक्षा यादव 
प्रकाशक : हिन्दुस्तानी एकेडेमी, 12-डी, कमला नेहरू मार्ग, इलाहाबाद (उप्र) - 211001
कवर डिजाइन : डॉ. रत्नाकर लाल 
संस्करण : प्रथम, प्रकाशन वर्ष : 2017, पृष्ठ-112, मूल्य : रु. 110/- (एक सौ दस रुपए मात्र)
आईएसबीएन (ISBN) : 978-93-85185-05-2


मंगलवार, 13 दिसंबर 2016

नारी विमर्श के सवालों को उठाती पुस्तक "आधी आबादी के सरोकार"

नारी विमर्श आधुनिक समाज और साहित्य में एक ज्वलंत मुद्दा है। कभी हाशिये पर खड़ी स्त्री और कभी नेतृत्व के नए प्रतिमान गढ़ती, शायद इन दोनों के बीच ही कहीं आज का नारी विमर्श खड़ा है। नारी-सशक्तिकरण आज के दौर की एक सच्चाई है, पर इसका सामान्यीकरण नहीं किया जा सकता। आज भी नारी अपने अस्तित्व और अस्मिता के लिए तमाम प्रतिरोधों के बीच संघर्षरत है। गुलाबी सपनों के बीच आसमां को छूने की हसरत लिए 21वीं सदी की लड़कियाँ तमाम दकियानूसी परम्पराओं  और रूढ़ियों से टकराती नज़र आती हैं। ऐसे ही तमाम विषयों को उठाती मेरी पुस्तक "आधी आबादी के सरोकार" (लेखिका -आकांक्षा यादव) शीघ्र ही हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद से प्रकाशित होकर आने वाली है।  इसके लिए कवर पेज का रेखांकन प्रसिद्ध चित्रकार डॉ. लाल रत्नाकर ने किया है। फ़िलहाल, इस पोस्ट में  डॉ. लाल रत्नाकर के बनाये तमाम चित्रों और उनसे सुसज्जित आवरण पृष्ठ को आप सभी के साथ साझा करते हुए ख़ुशी का अनुभव हो रहा है। इनमें से ही किसी एक का उपयोग "आधी आबादी के सरोकार"  पुस्तक के लिए किया जायेगा !






(आधी आबादी के सरोकार : आकांक्षा यादव)