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सोमवार, 3 फ़रवरी 2025

देश-विदेश में मोहब्बतों से पढ़े जाने वाले युगल साहित्यकार आकांक्षा एवं कृष्ण कुमार यादव पर 'सरस्वती सुमन' का शानदार संग्रहणीय विशेषांक

'सरस्वती सुमन' का दिसम्बर- 2024 में प्रकाशित "आकांक्षा-कृष्ण युगल अंक" देखने का सुअवसर प्राप्त हुआ। यूँ तो देश में अनेक पत्रिकाएं विशेषांक प्रकाशित करती रहती हैं, लेकिन जिस खूबसूरत अंदाज़ से यह विशेषांक मंज़र ए आम पर आया है वो हर पाठक के दिलो-दिमाग में दस्तक देने के लिए काफी है। कवर पेज पर प्रकाशित युगल ख़ूबसूरत फोटो वाकई उम्दा है। इसमें प्रकाशित विभिन्न विधाओं की रचनाएं- कविताएं, लघुकथाएं, कहानियां, आलेख विशेषांक को एक नायाब दस्तावेज़ के रूप में परिवर्तित करते हैं। सामाजिक और समसामयिक विषयों को उठाते हुये जो आलेख लिखे गये हैं वो भविष्य में शोधकर्ताओं के लिए बेहद उपयोगी साबित होंगे।  


दुनिया का हर सच्चा और अच्छा साहित्यकार अपनी क़लम की नोक़ से  वक़्त के माथे पर सच्चाइयों के सितारे टांकता है जिसकी रौशनी सारी इंसानियत को रौशन करती रहती है। इस विशेषांक की सभी रचनाओं में बदलते हुये परिवेश में अपने आसपास घटित समाज की तल्ख़ियों को शब्दों की  जादूगरी किये बिना बहुत ही सादगी और सरलता से शब्दों में गूंथा गया है। साहित्यकार युगल दम्पति के दिल से जो बेबाक आवाज़ निकलती है वो समाज को झकझोर देने वाली है और बहुत कुछ सोचने पर मजबूर करती है। इंसानी ज़िंदगियों के मुख्तलिफ़ पहलुओं को अपने दामन में समेटकर जो रचनाधर्म कृष्ण कुमार यादव जी एवं आकांक्षा यादव जी द्वारा निभाया गया है वह क़ाबिल-ए-तारीफ़ है। हर क़दम पर साहित्य साधना इनको नई ताक़त देती है।

भारत सरकार में वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी रहते हुये कृष्ण कुमार जी द्वारा एवं उनकी जीवन संगिनी आकांक्षा जी द्वारा लगातार साहित्य के विभिन्न विषयों पर सफलतापूर्वक शानदार सारगर्भित सृजन करना इस युगल की अद्भुत साहित्य साधना को दर्शाता है और साहित्य के आसमान में रौशन सितारों की तरह नुमायां करता है। 


सरस्वती सुमन (Saraswati Suman Hindi Monthely Magazine) पत्रिका देश की उन अग्रणी पत्रिकाओं में से एक है जो किसी वाद से परे साहित्यिक निष्पक्षता के लिए जानी जाती है। सरस्वती सुमन के प्रधान संपादक डॉ. आनन्द सुमन सिंह जी को दिल से साधुवाद कि उन्होंने  देश-विदेश में मोहब्बतों से पढ़े जाने वाले युगल साहित्यकार आकांक्षा जी एवं कृष्ण कुमार यादव जी पर जो शानदार संग्रहणीय विशेषांक प्रकाशित किया है, वह देश से निकलने वाली तमाम हिन्दी पत्रिकाओं के लिए एक प्रेरणास्रोत का काम करेगा।

(यूनुस अदीब)
(पूर्व संभागीय समन्वयक म.प्र. उर्दू अकादमी संस्कृति विभाग, संस्कृति परिषद भोपाल)
2898,  स्टेट बैंक ऑफ इंडिया के सामने, गढ़ा बाज़ार, जबलपुर, मध्य प्रदेश-482003, मो.-9826647735

पत्रिका - सरस्वती सुमन/ मासिक हिंदी पत्रिका/ प्रधान सम्पादक-डॉ. आनंद सुमन सिंह/ सम्पादक-किशोर श्रीवास्तव/संपर्क -'सारस्वतम', 1-छिब्बर मार्ग, आर्य नगर, देहरादून, उत्तराखंड -248001, मो.-7579029000, ई-मेल :saraswatisuman@rediffmail.com

 






गुरुवार, 30 जनवरी 2025

Special Issue of Hindi Magazine Saraswati Suman : संग्रहणीय है 'सरस्वती सुमन' का 'आकांक्षा-कृष्ण युगल' अंक

प्रतिष्ठित हिंदी मासिक पत्रिका 'सरस्वती सुमन' का 'आकांक्षा-कृष्ण युगल' अंक, दिसंबर-2024 (वर्ष 23, अंक 110) प्राप्त हुआ जो देहरादून, उत्तराखंड से प्रकाशित होती है। वर्तमान अंक का आकर्षण एक साहित्यकार दंपत्ति के रूप में स्थापित आकांक्षा यादव और कृष्ण कुमार यादव के साहित्य पर विशेषांक के रूप में प्रकाशित हुआ है। इस पत्रिका के प्रधान संपादक डॉ. आनंद सुमन सिंह और संपादक श्री किशोर श्रीवास्तव हैं। पत्रिका का कवर पेज साहित्य साधना में रत युगल जोड़ी के खूबसूरत छायाचित्र से बहुत कुछ कहता प्रतीत होता है। पत्रिका की अनुक्रमणिका पर दृष्टि डालने से यह बात और भी पुष्ट होती नजर आती है। साहित्य एवं संस्कृति का सारस्वत अभियान के तहत प्रकशित पत्रिका के इस अंक को कुल सात भागों में विभक्त करके कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव की साहित्यिक रचनाधर्मिता को समेटने की कोशिश की गई है। 

प्रथम भाग में कृष्ण कुमार यादव की कविताएं, द्वितीय भाग में आकांक्षा यादव की कविताएं, तृतीय भाग में कृष्ण कुमार यादव की लघु कथाएं, चतुर्थ भाग में आकांक्षा यादव की लघु कथाएं, पंचम भाग में कृष्ण कुमार यादव की कहानियाँ, षष्ठ भाग में आकांक्षा यादव के लेख और सप्तम भाग में कृष्ण कुमार यादव के लेख के साथ-साथ युगल आकांक्षा और कृष्ण कुमार यादव का परिचय व्यवस्थित तरीके से प्रकाशित किया गया है।


प्रथम भाग में कृष्ण कुमार यादव की कविताएं जैसे - बदलती कविता, अंडमान के आदिवासी, सेलुलर जेल की आत्माएं, सभ्यताओं का संघर्ष, रिश्तों का अर्थशास्त्र, विज्ञापनों का गोरखधंधा, मांस का लोथड़ा, बिखरते शब्द, मां, बच्चे की निगाह, पॉलिश  ब्रेकिंग न्यूज़ आदि कविताएं पत्रिका के गौरव को बढ़ा रही हैं। द्वितीय भाग में आकांक्षा यादव की कविताएं जैसे- शब्दों की गति, हमारी बेटियां, नियति का प्रहार, वजूद, 21वीं सदी की बेटी,मैं अजन्मी, श्मशान, एहसास, सिमटता आदमी भी विशेष महत्व की कविताएं दिखतीं हैं। तृतीय भाग में कृष्ण कुमार यादव की लघु कथाएं जैसे - एन.जी.ओ, चिंता, व्यवहार, सर्कस, हिंदी सप्ताह, बेटा, एक राहगीर की मौत, खतरनाक, प्यार का अंजाम, रोशनी, दहेज, योग्यता, इन्वेस्टमेंट के साथ चतुर्थ भाग में आकांक्षा यादव की लघु कथाएं जैसे- अधूरी इच्छा, अरमान,बेटियाँ, चैट, अवार्ड का राज, काला आखर आदि प्रमुख आकर्षण हैं।

 
पंचम खंड में कृष्ण कुमार यादव की कहानियाँ  जैसे- आवरण, हकीकत, रिश्तों की नजाकत, शराफत इत्यदि प्रकाशित हैं। षष्ठ भाग में आकांक्षा यादव के लेख - लोक चेतना में स्वाधीनता की लय, भूमंडलीकरण के दौर में भाषाओं पर बढ़ता खतरा, समकालीन परिवेश में नारी विमर्श, मानव और पर्यावरण : सतत विकास और चुनौतियां प्रकाशित हैं। सप्तम खंड में कृष्ण कुमार यादव के लेख - शाश्वत है भारतीय संस्कृति और इसकी विरासत, भागो नहीं दुनिया को बदलो, राजनीति से दूर होता साहित्यिक व सांस्कृतिक विमर्श, कोई लौटा दे वो चिठ्ठियां प्रकाशित हैं।

कृष्ण कुमार यादव की कविताएं सीधे-सीधे जन मानस की आवाज बनी हुई दिखाई देती हैं। वही सुदूर अंडमान-निकोबार के आदिवासी भी उनकी लेखनी के माध्यम से आवाज पाते हैं। एक साहित्यकार की नजर में कृष्ण कुमार यादव सेलुलर जेल की आत्माओं को भी शब्द देते नजर आते हैं। कृष्ण कुमार यादव रिश्तों के अर्थशास्त्र को भी अपनी रचना में कम शब्दों में बेहतरीन तरीके से व्यक्त करते नजर आते हैं। आज का बाजार विज्ञापनों से भरा पड़ा है। ऐसे में उनकी 'विज्ञापनों का गोरखधंधा' कविता विज्ञापनों के खोखलेपन को उजागर करती नजर आती है। 'मांस का लोथड़ा' या 'बिखरते शब्द' पढ़ने से उनके अंदर की संवेदना और संस्कृति की झलक मिलती है। 'बिखरते शब्द' में वह लिखते हैं- "शब्द है तो सृजन है/साहित्य है संस्कृति है/पर लगता है/शब्द को लग गई किसी की बुरी नजर।" इसी तरह 'मां' कविता में कृष्ण कुमार यादव मां के जीवनी के हर पहलू को मां और बेटे के भावनात्मक जुड़ाव के माध्यम से शब्दों में पिरोते हैं। 'पालिश' कविता में उनके जो शब्द हैं वह जमीनी एहसास कराते हैं। कविता की शुरुआत ही एक बालक के जूता पॉलिश करने के शब्द से होती है। जिस शब्द से जूता पॉलिश करने वाला बच्चा जूता पॉलिश कराने वाले को स्नेह के साथ अपने पास बुलाता है-'साहब पॉलिश करा लो' इस एक लाइन में ही उनकी पूरी कविता का विमर्श सामने आ जाता है और उनकी रचना बाल विमर्श के नए अध्याय को खोलती है। 'ब्रेकिंग न्यूज़' कविता में वे आज की मीडिया पर करारा प्रहार करते नजर आते हैं।

आकांक्षा यादव की कविताएं संवेदना की धरातल पर तो लिखी ही गई हैं, साथ ही साथ वह नारी अस्मिता और सशक्तिकरण की बात को भी बहुत सलीके के साथ अपनी कविता में रखती नजर आती हैं। वह लिखती है - 'मुझे नहीं चाहिए/ प्यार भरी बातें/ चांद की चांदनी/ चांद से तोड़कर लाए हुए सितारे/ मुझे चाहिए बस अपना वजूद/ जहां किसी दहेज, बलात्कार,भ्रूण हत्या/का भय नहीं सताए मुझे।' अपनी कविताओं में वे स्त्री विमर्श को सशक्त करती नजर आती हैं।

 



कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव लगातार विभिन्न विधाओं में सक्रियता के साथ लिख रहे हैं और खूब प्रकाशित भी हो रहे हैं। इस युगल की कविताएं कम शब्दों में अपनी बात को व्यक्त करने में सक्षम हैं। दोनों अपने-अपने नजरिये से लघु कथाएं लिखते हैं। दोनों के कैनवास अलग-अलग हैं पर दोनों की दृष्टि लगभग समान है। कृष्ण कुमार यादव की कहानियों का कैनवास बड़ा है और उनकी कहानी एक से बढ़कर एक हैं। आकांक्षा यादव के लेख एक तरफ जहां स्त्री विमर्श के नए आयाम स्थापित करने की कोशिश करते हैं, वही भूमंडलीकरण के दौर में भाषाओं पर बढ़ता खतरा और प्रकृति व पर्यावरण भी उनके लिए पसंदीदा लेखन का विषय है। कृष्ण कुमार यादव का लेख 'भागो नहीं दुनिया को बदलो' राहुल सांकृत्यायन पर एक शोधपरक लेख है, जो कि उनके अपने ही जिले आज़मगढ़ के एक महँ दार्शनिक, यायावर रहे हैं। 'कोई लौटा दे वो चिट्ठियाँ' लेख में कृष्ण कुमार यादव ने बड़ी खूबसूरती से चिट्ठी-पत्री में छुपी भावनाओं और सोशल मीडिया के दौर में उनकी प्रासंगिकता को रेखांकित किया है। लेख पढ़ने के दौरान व्यक्ति उन चिट्ठियों की दुनिया में खो जाता है जिनमें हम सभी के बचपन गुजरे हैं। पत्र लेखन साहित्य की भी एक विधा है और संयोगवश कृष्ण कुमार डाक सेवाओं और साहित्य दोनों से ही गहराई से जुड़े हुए हैं। 


निश्चितत: प्रतिष्ठित हिंदी मासिक पत्रिका सरस्वती सुमन का 'आकांक्षा-कृष्ण युगल' अंक एक संग्रहणीय अंक है। इस तरह का दांपत्य अंक विरले ही देखने को मिलता है। साहित्य समाज का दर्पण है। इस दर्पण में पति-पत्नी के साहित्य को समाज के सामने लाकर 'सरस्वती सुमन' के संपादक ने एक नया विमर्श भी खोला है। साहित्य का अनुराग होने के कारण इस तरह का एक प्रयास हमने भी अपने साहित्य लेखन के दौरान 'सहचर मन' (काव्य संग्रह) 2010 में प्रकाशित कराया था, जिसमें आधी कविताएं मेरी और आधी कविताएं मेरे जीवन साथी प्रोफेसर अखिलेश चंद्र की हैं। इस तरह का प्रयास न केवल साहित्य में बल्कि दांपत्य जीवन में भी खूबसूरत स्थापना का स्वरूप रखते हैं ।

समीक्ष्य पत्रिका - सरस्वती सुमन/ मासिक हिंदी पत्रिका/ प्रधान सम्पादक -डॉ. आनंद सुमन सिंह/ सम्पादक - किशोर श्रीवास्तव/संपर्क -'सारस्वतम', 1-छिब्बर मार्ग, आर्य नगर, देहरादून, उत्तराखंड-248001, मो.-7579029000, ई-मेल :saraswatisuman@rediffmail.com 


समीक्षक : प्रोफेसर (डॉ.) गीता सिंह, अध्यक्ष-स्नातकोत्तर हिन्दी विभाग, डी.ए.वी  पी.जी कॉलेज, आजमगढ़ (उ.प्र.), मो.-9532225244
प्रोफेसर (डॉ.) अखिलेश चन्द्र, शिक्षा संकाय, श्री गांधी पी.जी कॉलेज, मालटारी, आजमगढ़ (उ.प्र.), मो.-9415082614

सोमवार, 17 जनवरी 2022

विश्व हिंदी दिवस : तीन पीढ़ियों संग हिंदी के विकास में जुटा एक परिवार

हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिये जागरूकता पैदा करने और हिन्दी को अंतर्राष्ट्रीय भाषा के रूप में पेश करने हेतु प्रति वर्ष 'विश्व हिन्दी दिवस' 10 जनवरी को मनाया जाता है। हिंदी को लेकर तमाम संस्थाएँ, सरकारी विभाग व विद्वान अपने स्तर पर कार्य कर रहे हैं। इन सबके बीच उत्तर प्रदेश में वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव का अनूठा परिवार ऐसा भी है, जिसकी तीन पीढ़ियाँ हिंदी की अभिवृद्धि के लिए  न सिर्फ प्रयासरत हैं, बल्कि वैश्विक स्तर पर भी कई देशों में सम्मानित हैं।

वाराणसी परिक्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव के परिवार में उनके पिता श्री राम शिव मूर्ति यादव के साथ-साथ पत्नी सुश्री आकांक्षा यादव और दोनों बेटियाँ अक्षिता व अपूर्वा भी हिंदी को अपने लेखन से लगातार नए आयाम दे रही हैं। देश-दुनिया की तमाम पत्रिकाओं में प्रकाशन के साथ श्री कृष्ण कुमार यादव की 7 और पत्नी आकांक्षा की 3 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। हिंदी ब्लॉगिंग के क्षेत्र में इस परिवार का नाम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी अग्रणी है।

'दशक के श्रेष्ठ ब्लॉगर दम्पति' सम्मान से विभूषित यादव दम्पति को नेपाल, भूटान और श्रीलंका में आयोजित 'अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लॉगर सम्मेलन' में 'परिकल्पना ब्लॉगिंग सार्क शिखर सम्मान' सहित अन्य सम्मानों से नवाजा जा चुका है। जर्मनी के बॉन शहर में ग्लोबल मीडिया फोरम (2015) के दौरान 'पीपुल्स चॉइस अवॉर्ड' श्रेणी में सुश्री आकांक्षा यादव के ब्लॉग 'शब्द-शिखर' को हिंदी के सबसे लोकप्रिय ब्लॉग के रूप में भी सम्मानित किया जा चुका है।

सनबीम स्कूल, वरुणा, वाराणसी में अध्ययनरत इनकी दोनों बेटियाँ अक्षिता (पाखी) और अपूर्वा भी इसी राह पर चलते हुए अंग्रेजी माध्यम की पढ़ाई के बावजूद हिंदी में सृजनरत हैं। अपने ब्लॉग 'पाखी की दुनिया' हेतु अक्षिता को भारत सरकार द्वारा सबसे कम उम्र में 'राष्ट्रीय बाल पुरस्कार' से सम्मानित किया जा चुका है, वहीं अंतर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लॉगर सम्मेलन, श्रीलंका (2015) में भी अक्षिता को “परिकल्पना कनिष्ठ सार्क ब्लॉगर सम्मान” से सम्मानित किया गया। अपूर्वा ने भी कोरोना महामारी के दौर में अपनी कविताओं से लोगों को सचेत किया।

पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव का कहना है कि, सृजन एवं अभिव्यक्ति की दृष्टि से हिंदी दुनिया की अग्रणी भाषाओं में से एक है। डिजिटल क्रान्ति के इस युग में हिन्दी में विश्व भाषा बनने की क्षमता है। वहीं, सुश्री आकांक्षा यादव का मानना है कि हिन्दी भाषा भारतीय संस्कृति की अभिव्यक्ति का माध्यम होने के साथ-साथ भारत की भावनात्मक एकता को मजबूत करने का सशक्त माध्यम है। आप विश्व में कहीं भी हिन्दी बोलेगें तो आप एक भारतीय के रूप में ही पहचाने जायेंगे।  









Live Vns : विश्व हिंदी दिवस : तीन पीढ़ियों से हिंदी के विकास में लगा है पोस्टमास्टर जनरल कृष्ण कुमार यादव का परिवार

पत्रिका : विश्व हिंदी दिवस : तीन पीढ़ियों संग हिंदी के विकास में जुटा है पोस्टमास्टर जनरल का परिवार

हिंदुस्तान : आदर्श हिंदी सेवक है पोस्टमास्टर जनरल का परिवार

बुधवार, 1 नवंबर 2017

साहित्यकार युगल दम्पति आकांक्षा यादव और कृष्ण कुमार यादव 'शब्द निष्ठा सम्मान' से सम्मानित

हिंदी लघुकथा को समृद्धि प्रदान करने हेतु साहित्यकार युगल दम्पति आकांक्षा यादव और कृष्ण कुमार यादव को अजमेर में शब्द निष्ठा सम्मान-2017 से सम्मानित किया गया। यादव दम्पति एक लम्बे समय से साहित्य और लेखन में सक्रिय हैं। आकांक्षा यादव एक कॉलेज में प्रवक्ता के बाद अब विभिन्न  विधाओं में लेखन और ब्लॉगिंग में सक्रिय  हैं, वहीं राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर के निदेशक डाक सेवाएं पद पर पदस्थ श्री कृष्ण कुमार यादव, प्रशासन के साथ-साथ साहित्यिक और सामाजिक सरोकारों के लिए भी जाने जाते हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के साथ-साथ, अब तक  कृष्ण कुमार यादव की 7 पुस्तकें और नारी सम्बन्धी मुद्दों पर प्रखरता से लिखने वालीं आकांक्षा यादव की 3 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। देश-दुनिया में शताधिक सम्मानों से विभूषित यादव दम्पति एक लंबे समय से ब्लॉग और सोशल मीडिया के माध्यम से भी हिंदी साहित्य एवं विविध विधाओं में अपनी रचनाधर्मिता को प्रस्फुटित करते हुये अपनी व्यापक पहचान बना चुके हैं।

संयोजक डॉ. अखिलेश पालरिया ने बताया कि आचार्य रत्न लाल  'विद्यानुग' स्मृति अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता हेतु देशभर के 17 राज्यों से 170 लघुकथाकारों  की कुल 850 लघुकथाएँ प्राप्त हुई थीं, जिनमें से श्रेष्ठ लघुकथाओं को चयनित कर लघुकथाकारों को सम्मानित किया गया।  यह सम्मान प्रतिवर्ष साहित्य की भिन्न-भिन्न विधाओं पर दिया जाता है। शब्द निष्ठा सम्मान 2017 श्रेष्ठ लघु कथाओं के लिए निर्धारित था। सम्मान के तहत चयनित लघुकथाकारों को मान पैलेस अजमेर में संपन्न अखिल भारतीय लघुकथा सम्मान समारोह  में प्रशस्ति पत्र, कथा संग्रह एवं सम्मान निधि देकर सम्मानित किया। 

डाक निदेशक कृष्ण कुमार यादव और पत्नी आकांक्षा यादव  को मिला 'शब्द निष्ठा सम्मान' 

यादव दंपती को 'शब्द निष्ठा सम्मान' 




गुरुवार, 23 फ़रवरी 2017

साहित्य जगत के चमकते सितारे @ शेरगढ़ एक्सप्रेस, जोधपुर


राजस्थान में जोधपुर से प्रकाशित मासिक हिंदी पत्रिका "शेरगढ़ एक्सप्रेस" ने 'साहित्य जगत के चमकते सितारे' शीर्षक से अपना फरवरी-2017 अंक हमारे ( कृष्ण कुमार यादव, आकांक्षा यादव, अक्षिता पाखी) व्यक्तित्व - कृतित्व पर केंद्रित कर प्रकाशित किया है। इसे आप भी यहाँ पढ़ सकते हैं ..... 





युवा पंखों की ऊँची उड़ान : आकांक्षा यादव 
(लेखिका : डॉ. कमल कपूर, अध्यक्षा : नारी अभिव्यक्ति मंच ’पहचान’ फरीदाबाद, हरियाणा)


प्रशासन और साहित्य के ध्वजवाहक : कृष्ण कुमार यादव 
(लेखक : डॉ. बद्री नारायण तिवारी, संयोजक- राष्ट्रभाषा प्रचार समिति-वर्धा, उत्तर प्रदेश, 
पूर्व अध्यक्ष-उ0प्र0 हिन्दी साहित्य सम्मेलन/संयोजक-मानस संगम,  शिवाला, कानपुर, उत्तर प्रदेश)


                            आँगन की रंगोली से क्षितिज तक : कृष्णाकांक्षा                        
( लेखक : यतीन्द्र नाथ ‘राही‘, रजत विहार, भोपाल (म.प्र.)


भारत की सबसे कम उम्र की राष्ट्रीय बाल पुरस्कार विजेता  
नन्ही ब्लॉगर अक्षिता यादव (पाखी) 


पत्रिका का नाम : शेरगढ़ एक्सप्रेस (हिंदी मासिक)
प्रधान संपादक : मनोज जैन 
अंक : फरवरी, 2017  (वर्ष -5, अंक -09)
(साहित्य जगत के चमकते सितारे : कृष्ण कुमार यादव, आकांक्षा यादव, अक्षिता पाखी)
पृष्ठ - 32,     मूल्य : रूपये 20 /-
संपर्क : शेरगढ़ एक्सप्रेस कार्यालय, बस स्टैंड, शेरगढ़, जिला-जोधपुर (राजस्थान)-342022 

बुधवार, 6 अप्रैल 2016

बिटिया आई, ऑफिस में नई रौनक लाई : बिटिया @ वर्क

बेटियां परिवार ही नहीं, समाज, देश और दुनिया के भी सुनहरे भविष्य की गंगोत्री हैं। आज स्कूल और कॉलेज में पढ़ रहीं बेटियों में से ही कुछ और मदर टेरेसा, इंदिरा गांधी, किरण बेदी, कल्पना चावला, सानिया मिर्जा निकलकर नई रोशनी बिखेरेंगी। इसी सद्भावना को ध्यान में रखकर राजस्थान पत्रिका समूह ने अपना अनूठा अभियान 'बिटिया@वर्क' आयोजित किया। इसके तहत 5 अप्रैल, 2016 को  कई अभिभावक 8 से 19 साल तक की अपनी बेटियों को लेकर अपने दफ्तर या कार्यस्थल पर लेकर पहुंचे। यह एक तरह से बेटी को आगे बढ़ाने, नया संसार दिखाने, अपने कर्मस्थल से परिचित कराने का दिन था।  अभिभावक के कामकाज से रू-ब-रू होना बेटियों के लिए नया अनुभव था। उनके चेहरों पर उत्साह था, रोमांच भी। बेटियों ने भी ये जाना कि मम्मी-पापा कितनी मेहनत करते हैं, तब जाकर उनका लालन-पालन कर पाते तरह से औपचारिक कार्यक्रमों, भाषणों से परे पत्रिका के इस अभियान ने बेटियों के लिए इस दिन को यादगार बना दिया। कुछ बेटियों ने तो अपने माता-पिता की तरह प्रशासनिक अधिकारी, डॉक्टर, इंजीनियर,  टीचर बनने तक का संकल्प लिया। माता-पिता के लिए भी बेटियों को अपने काम से रू-ब-रू कराने का अलग तरह का अनुभव था।

इसी क्रम में हमारी प्यारी बेटियाँ अक्षिता (9) और अपूर्वा (5) भी 'राजस्थान पत्रिका' की पहल बिटिया @ वर्क के तहत अपने पापा श्री कृष्ण कुमार यादव के साथ उनके ऑफिस पहुँचीं, जो कि राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर के निदेशक डाक सेवाएं हैं। इस अवसर पर राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित नन्ही ब्लॉगर अक्षिता ने राजस्थान पत्रिका को बताया कि पापा के ऑफिस जाकर और वहाँ की कार्य प्रणाली देखकर बहुत अच्छा और प्रेरणादायी लगा। मैं भी बड़ी होकर पापा जैसी ही आई.ए.एस. परीक्षा देकर ऑफिसर बनना चाहती हूँ।  पापा के ऑफिस में फाइलों के निपटान से लेकर तमाम प्रोजेक्ट्स की ऑनलाईन मॉनिटरिंग देखी। ऑफिस आकर देखा कि पापा कैसे लोगों की समस्या का समाधान करते हैं।  इस शानदार पहल के लिए पत्रिका का आभार। अपूर्वा की उम्र भले ही 5 वर्ष हो, पर यह भी अपना  रोमांच और उत्साह दिखाने से नहीं चूकी। 





-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 
Akanksha Yadav : http://shabdshikhar.blogspot.com/