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शनिवार, 21 मार्च 2015

इतिहास की गलियों से गुजरते हुए मंडोर, जोधपुर में ....

वाकई बेहद खूबसूरत शहर है जोधपुर। 16 मार्च को इलाहाबाद से हम यहाँ आ गए और यहाँ आने के बाद तो हम रोज घूम ही रहे हैं। अक्षिता और अपूर्वा भी अपनी हॉलीडेज खूब इंजॉय कर रही हैं। इतिहास की किताबों में पढ़ी तमाम बातें यहाँ जीवंत रूप में सामने आती हैं।

आज सुबह हम मण्डोर घूमने गए। 15 वीं शताब्दी में जोधपुर नगर की स्थापना तक यह स्थान मारवाड़ राज्य की राजधानी रहा। यहाँ से उत्खनन में भी तमाम ऐतिहासिक महत्व की वस्तुएं प्राप्त हुईं, जिन्हें यहाँ म्यूजियम में सुरक्षित रखा गया है। 





  लम्बे समय तक मंडोर जोधपुर राजघराने का दाह-संस्कार  स्थल भी रहा।  फलत : राठौड़ घराने के अनेक महत्वपूर्ण शासकों के स्मृति स्मारक (देवल या छतरियाँ) यहाँ देखे जा सकते हैं। 







(मंडोर के बारे में ज्यादा जानकारी के लिए इसे भी पढ़ लें)






शुक्रवार, 24 जून 2011

भारत में एक द्वीप सिर्फ तोतों के लिए

अंडमान में बहुत सी ऐसी चीजें हैं, जो प्राय: बहुत कम ही लोगों को पता होती हैं. इन्हीं में से एक है-पैरट-आइलैंड. पोर्टब्लेयर से बाराटांग की यात्रा में बहुत कुछ देखने को मिलता है. रास्ते में पाषाण कालीन सभ्यता में रह रहे तीर-धनुष से लैस जारवा आदिवासी, बाराटांग में कीचड़ के ज्वालामुखी, लाइम स्टोन केव. चारों तरफ घने वृक्षों से आच्छादित हरे-भरे जंगल और समुद्र की अठखेलियाँ. समुद्र का सीना चीरते हमारी स्टीमर-बोट शाम को साढ़े चार बजे आगे बढती है, साथ में मेरा परिवार और कुछेक स्टाफ के लोग.


मैन्ग्रोव-क्रीक के बीच से गुजरते हुए शाम की समुद्री हवाएँ ठण्ड का अहसास कराती हैं. जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, आस-पास दसियों छोटे-छोटे द्वीप दिखने लगते हैं. मौसम सुहाना सा हो चला है. गंतव्य नजदीक है. आखिर हम पैरट-आइलैंड के करीब पहुँच ही जाते हैं. बोट को धीमे-धीमे वह किनारे लगाता है. उतरने की कोई जगह नहीं, बोट में बैठकर ही नजारा लेना है.



बिटिया पाखी चारों तरफ टक-टकी सी निगाह लगाए हुए है. बार-बार पूछती है कि तोते कब दिखेंगें. कानपुर में हमारे आवास-प्रांगन में एक विशाल वट वृक्ष था, शाम को उस पर अक्सर ढेर सारे तोते आते थे. तोतों की टें-टें सुनना मनोरंजक लगता था.



...चारों तरफ ठहरी हुई शांति, समुद्र भी मानो थक कर आराम कर रहो हो. एक-दो मछुहारे नाव के साथ मछली पकड़ते दिख जाते हैं. अचानक एक चीख सी पूरे माहौल का सन्नाटा तोड़ती है. हम चौंकते हैं कि क्या हुआ ? नाविक ने बताया कि जंगल में किसी ने हिरण का शिकार कर पकड़ लिया है. यद्यपि यहाँ हिरण को मारना जुर्म है, पर ये तथाकथित शिकारी जंगलों में कुत्तों के साथ जाते हैं और कुत्ते दौड़कर हिरण को पकड़ लेते हैं. अंडमान में अवैध रूप से हिरण के मांस की बिक्री कई बार सुनने को मिलती है. यह भी एक अजीब बात है की यहाँ के आदिवासी हिरणों को पवित्र आत्मा मानते हैं और उनका शिकार नहीं करते, पर बाहर से आकर बसे लोग हिरणों के शिकार में अवैध रूप से लिप्त हैं.



पैरट आईलैंड वास्तव में समुद्र के बीच मैंग्रोव की झाड़ियों पर अवस्थित है. यहाँ कोई जमीन नहीं, इसीलिए चाहकर भी बोट से नहीं उतर सकते. इन मैंग्रोव की झाड़ियों को तोतों ने कुतर-कुतर कर सम बना दिया है, ताकि उन्हें किसी प्रकार की असुविधा न हो. दूर से देखने पर यह हरे रंग का गलीचा लगता है. न तो एक पत्ती ऊपर, न एक पत्ती नीचे. वाकई, प्रकृति का अद्भुत नजारा.

...तभी एक तोते की टें-टें सुनाई दी. वह चारों तरफ एक चक्कर मरता है, फिर आवाज़ देता है-टें-टें. यह इशारा था सभी तोतों को बुलाने का. तभी दूसरी दिशा से आते दो तोते दिखाई दिए..टें-टें. फिर तो देखते ही देखते चारों तरफ से तोतों का झुण्ड दिखने लगा. बमुश्किल 15 मिनट के भीतर हजारों तोते आसमान में दिखने लगे. आसमान में कलाबाजियाँ करते, विभिन्न तरह की आकृति बनाते, एक झुण्ड से दुसरे झुण्ड में मिलते और फिर बड़ा झुण्ड बनाते तोते मानो अपनी एकता और कला का जीवंत प्रदर्शन कर रहे हों.

सबसे बड़ा अजूबा तो यह था कि कोई भी तोता मैंग्रोव पर नहीं बैठता, बस उसके चारों तरफ चक्कर लगाता और फिर आसमान में कलाबाजियाँ, मानो सब एक अनुशासन से बंधे हुए हों...और देखते ही देखते सारे तोते मैंग्रोव की झाड़ियों पर उतर गए. हरे रंग के मैंग्रोव पर हरे -हरे तोते, सब एकाकार से हो गए थे. चूँकि हमने उन्हें वहाँ उतरते देखा था, अत: उनकी उपस्थिति का भान हो रहा था. कोई सोच भी नहीं सकता कि मैंग्रोव की इन झाड़ियों पर हजारों तोते उपस्थित हैं. न जाने कितने द्वीपों से और दूर-दूर से ये तोते आते हैं और पूरी रात एक साथ बिताने के बाद फिर अगली सुबह मोती की तरह बिखरे द्वीपों की सैर पर निकल जाते हैं.

-कृष्ण कुमार यादव

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

जीवन पुन: अपने रौब में....

आखिरकार एक लम्बे अन्तराल पश्चात् पुन: सपरिवार पोर्टब्लेयर में. इस अन्तराल के दौरान जहाँ एक बार पुन: मत्रितव सुख का सौभाग्य प्राप्त हुआ, वहीँ हमारी शादी की छठवीं सालगिरह भी पूरी हो गई. 27 अक्तूबर, 2010 की रात्रि 11: 10 पर बनारस के हेरिटेज हास्पिटल में बिटिया का जन्म हुआ और 27 नवम्बर को वह एक माह की हो गई. ठीक उसके अगले दिन 28 नवम्बर को हमारी शादी की की सालगिरह थी और अब हमारी शादी के छ: साल पूरे हो गए। 28 नवम्बर को ही हम लोग आजमगढ़ से बनारस पहुंचे और फिर विमान द्वारा सीधे कोलकाता. यह भी एक सौभाग्य रहा की सालगिरह विमान में ही सेलिब्रेट हो गया. खैर अगले दिन, 29 नवम्बर की सुबह हम पोर्टब्लेयर में थे. इक सुखद और खुशनुमा एहसास. ठण्ड का नामलेवा नहीं, तापमान 32 डिग्री सेल्सियस. पर्यटकों के लिए अंडमान का यह समय किसी जन्नत से कम नहीं होता है. इस समय पोर्टब्लेयर में जितनी हलचल दिखती है, वह वाकई देखने लायक होती है. एक लम्बे अन्तराल पश्चात् जीवन पुन: अपने रौब में लौट कर आ गया है. इस बीच बिटिया के जन्म और शादी की सालगिरह पर आप सभी की शुभकामनाओं, बधाई और स्नेह के लिए हार्दिक आभार. अब ब्लॉग पर निरंतरता बनी रहेगी....!!

शनिवार, 16 जनवरी 2010

रानी लक्ष्मीबाई के झाँसी किले में एक दिन


(पतिदेव कृष्ण कुमार जी और पुत्री अक्षिता के साथ)
पिछले दिनों झाँसी जाने का मौका मिला, वही झाँसी जो रानी लक्ष्मीबाई के चलते मशहूर है. एक लम्बे समय से झाँसी का किला देखने की इच्छा थी, कि किस तरह उस मर्दानी ने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिए. जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते जाते, सारी घटनाएँ मानो जीवंत होकर आँखों के सामने छाने लगतीं. कुछ दृश्य आप लोगों के साथ बाँट रही हूँ, अपनी प्रतिक्रियाओं से अवश्य अवगत करियेगा-

(कड़क बिजली तोप पर सवार पुत्री अक्षिता)


(इसी स्थान से रानी लक्ष्मीबाई ने किले से अपने घोड़े पर बैठकर छलांग लगाई थी.)

(इस शिव-मंदिर में रानी लक्ष्मीबाई नित्य पूजा करती थीं)

(पुरोहित की वेदी के पास रखा रानी लक्ष्मीबाई का चित्र)