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सोमवार, 10 जुलाई 2023

भोजपुरी के शेक्सपीयर - भिखारी ठाकुर

भोजपुरी के समर्थ लोक कलाकार, रंगकर्मी, लोक जागरण के संदेश वाहक, लोक गीत तथा भजन कीर्तन के अनन्य साधक भिखारी ठाकुर बहुआयामी प्रतिभा के व्यक्तित्व थे। अपनी रचनात्मकता में अपनी माटी को प्रतिबिंबित करने वाले संस्कृति-पुत्र, प्रखर कवि, नाटककार व ‘बिहार के शेक्सपियर’ कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर जी ने कला-साहित्य के क्षेत्र में भोजपुरी भाषा को एक नई ऊँचाई दी। 

भिखारी ठाकुर (18 दिसम्बर,1887-10 जुलाई,1971) का जन्म बिहार के सारन जिले के कुतुबपुर (दियारा) गाँव में एक नाई परिवार में हुआ था। उनके पिताजी का नाम दल सिंगार ठाकुर व माताजी का नाम शिवकली देवी था। भोजपुरी गीतों एवं नाटकों की रचना के साथ अपने सामाजिक कार्यों के लिये भी प्रसिद्ध रहे। राहुल सांकृत्यायन ने उनको अनगढ़ हीरा कहा है और जगदीशचंद्र माथुर ने 'भरत मुनि की परंपरा का कलाकार'। 

वे एक ही साथ कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता थे। भिखारी ठाकुर की मातृभाषा भोजपुरी थी और उन्होंने भोजपुरी को ही अपने काव्य और नाटक की भाषा बनाया। आज भी बिहार की शादियों में भिखारी ठाकुर की मूल रचना के आधार पर रचित कई गीतों का वही स्थान है जो पूजा में मंत्रों का होता है-

चलनी के चालल दुलहा सूप के फटकारल हे, 

दिअका के लागल बर दुआरे बाजा बाजल हे।

आंवा के पाकल दुलहा झांवा के झारल हे

कलछुल के दागल, बकलोलपुर के भागल हे।

'भोजपुरी के शेक्सपीयर' कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर की पुण्य तिथि पर कोटिश: नमन।🙏


गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

भारत की सबसे लंबे बालों वाली महिला आकांक्षा यादव

बाल किसी महिला की खूबसूरती में चार चांद लगाने का काम करते हैं। जितने लंबे, घने बाल महिला उतनी ज्यादा खूबसूरत दिखती है, लेकिन ये तोहफा हर किसी को नहीं मिलता। दोस्तों, भारत ही नहीं दुनिया में ऐसी लाखों, करोड़ों महिलाएं हैं जो अपने बाल न बढ़ने की समस्या से परेशान हैं। महंगे तेल और अन्य तरह के प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करने पर भी उनकी यह समस्या जस की तस रहती है। लेकिन मुंबई  की रहने वाली आकांक्षा यादव के साथ ऐसा नहीं है। आकांक्षा के बाल 1,2,3...5 नहीं पूरे 9 फीट और 10.5 इंच लंबे हैं। मीटर में बात करें तो उनके बालों की लंबाई 3.01 मीटर है। जी हां दोस्तों। इतना ही नहीं अकांक्षा को भारत में सबसे लंबे बालों वाली महिला के रूप में चुना गया है। उनकी इस उपलब्धि के लिए उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया है।

2019 से कोई नहीं तोड़ पाया आकांक्षा का रिकॉर्ड 

मुंबई की आकांक्षा यादव को यह खिताब ऐसे ही नहीं मिला, इसके पीछे उनकी वर्षों की मेहनत है। लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्डस के 30वें संस्करण में उनका नाम भारत के सबसे लंबे बाल वाली महिला के रूप में दर्ज किया गया है। आकांक्षा अपनी इस उपलब्धि के लिए फूली नहीं समा रही हैं। लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स 2020-2022 के आधिकारिक पत्र के मुताबिक साल 2019 से आकांक्षा का सबसे लंबे बालों वाली महिला होने का रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ पाया है।

लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है नाम 

आकांक्षा यादव ने लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज होने पर खुशी जाहिर करते हुए  कहा कि इस राष्ट्रीय खिताब को पाना ही अपने आप में बड़ी बात है। यह खिताब हासिल कर में बहुत खुश हूं।

क्या है आकांक्षा के लंबे बालों का राज 

बता दें कि आकांक्षा यादव एक फार्मास्युटिकल और मैनेजमेंट प्रोफेसनल है। सबसे लंबे बालों के लिए उनका नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है। जब उनसे उनके लंबे बालों का राज पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह ईश्वर का आशीर्वाद है। आकांक्षा से जब पूछा गया कि वह इतने लंबे बालों की देखरेख कैसे करती हैं। तो आकांक्षा ने हैरानी भरा जबाव दिया। उन्होंने कहा कि वह पूरे दिन में अपने बालों को धोने से लेकर उन्हें कंघी करने तक केवल 20 मिनट का समय खर्च करती हैं।


(यूँ  ही गूगल पर सर्च करते हुए अपने नाम पर जाकर अटक गई, अपने हमनाम आकांक्षा यादव की उपलब्धि के बारे में जानकर अच्छा लगा....हार्दिक बधाई !! )

सोमवार, 6 अप्रैल 2020

Fight against Corona : प्रधानमंत्री के आह्वान पर जगमगाया दीप

भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी की अपील पर हमने भी सपरिवार 5 अप्रैल, 2020 को अपने आवास की बालकनी में खड़े होकर शाम को 9 बजे, 9 मिनट तक मोमबत्ती जलाकर रोशनी की। वैश्विक आपदा की इस घड़ी में कोरोना महामारी को  खत्म करने हेतु ईश्वर से प्रार्थना भी की।
(चित्र में : मैं आकांक्षा यादव, बेटियां अक्षिता व अपूर्वा, जीवन साथी कृष्ण कुमार यादव जी ( निदेशक डाक सेवाएँ, लखनऊ (मुख्यालय) परिक्षेत्र)





सोमवार, 23 मार्च 2020

कोरोना के कर्मवीरों को किया सलाम

कोरोना वायरस की इस आपदा में आज सारे राष्ट्र ने एक साथ उन कर्मवीरों को सलाम किया, जो अपनी जान की परवाह किये बने लोगों की सेवा में लगे हैं। इसी क्रम में हमने भी सपरिवार उन कर्मवीरों के जज्बे को नमन किया। अलीगंज, लखनऊ स्थित पोस्ट एंड टेलीग्राफ़स ऑफिसर्स संचार कॉलोनी में हमने अपने परिवार संग शाम 5 बजे बॉलकनी में खड़े होकर ताली, थाली और घंटी बजाकर आपात और आवश्यक सेवाओं में लगे लोगों के जज्बे को सलाम किया। देश के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू की अपील के साथ ही, कोरोना वायरस से लड़ने के इस मुश्किल वक़्त में मुस्तैदी से जुटे कर्मियों के जज्बे को सलाम करने की अपील की थी।






(चित्र में : मैं आकांक्षा यादव, बेटियां अक्षिता व अपूर्वा, जीवन साथी कृष्ण कुमार यादव जी ( निदेशक डाक सेवाएँ, लखनऊ (मुख्यालय) परिक्षेत्र)

मंगलवार, 5 जून 2018

विश्व पर्यावरण दिवस : एक पौधा ज़रूर लगाएं

विश्व पर्यावरण दिवस पर कोई बड़ा संकल्प भले न लें, पर एक पौधा ज़रूर लगाएं। ज़मीन में नहीं तो गमलों में ही सही..... और जो पहले लगाए थे, उनमें पानी भी दे आयें! 

यकीन मानिए, आने वाली पीढ़ियों के बेहतर भविष्य के लिए कल ये ही छाँव देंगे। 
अधिकांश लोग सोशल मीडिया पर पेड़ लगाने में इतने व्यस्त रहेंगे कि धरा पर पेड़-पौधे लगाना भूल जाएंगे।
 बात अगर वैश्व‍िक संकट की हो तो भले ही किसी एक व्यक्त‍ि का निर्णय बहुत छोटा लगता है, लेकिन जब अरबों लोग एक ही मकसद से आगे बढ़ते हैं, तो बड़ा परिवर्तन आता है। आज 'विश्व पर्यावरण दिवस' है, आइए संकल्प करें एक वृक्ष लगाने का ......विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर आने वाली पीढ़ियों के बेहतर भविष्य के लिए आइए हम सभी संकल्प लेते है कि हम सब अपने परिवेश को कचरा मुक्त,प्लास्टिक मुक्त,गंदगी मुक्त कर साफ-स्वच्छ और हरा-भरा बनायेंगें। आज की हमारी छोटी कोशिश भी आने वाले कल को स्वर्णिम बना सकती है।

 सांसे हो रही हैं कम
आओ पेड़ लगाएँ हम

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गुज़रो जो बाग़ से तो दुआ माँगते चलो
जिसमें खिले हैं फूल वो डाली हरी रहे।
-निदा फाजली



सोमवार, 7 मई 2018

गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर जी की जयंती

अंतर मम विकसित करो 
हे अंतरयामी! 
निर्मल करो, उज्ज्वल करो, 
सुंदर करो हे!
जाग्रत करो, उद्यत करो, 
निर्भय करो हे!


भारतीय साहित्य के अद्वितीय व्यक्तित्व, बहुमुखी प्रतिभा के धनी, आधुनिक भारत के असाधारण सृजनशील कलाकार,कवि, कहानीकार, गीतकार, संगीतकार, नाटककार, निबंधकार और चित्रकार एवं भारतीय राष्ट्रगान "जन-गण-मन" के रचयिता एवं नोबेल पुरस्कार से सम्मानित गुरुदेव रविन्द्र नाथ टैगोर जी (7  मई 1861-7 अगस्त 1941) की 157वीं  जयंती पर शत् शत् नमन।  

शनिवार, 5 मई 2018

अब जोधपुर में पर्यटकों के लिए बने सेल्फी प्वाइंट, दिखा सेल्फी का क्रेज

जोधपुर में शास्त्री सर्किल पार्क में लगे सेल्फी प्वाइंट का लुत्फ़। जोधपुर (राजस्थान) में आने वाले पर्यटकों  और यहाँ के यूथ्स को आकर्षित करने हेतु एक सप्ताह पूर्व 'शास्त्री सर्किल' और 'अशोक उद्यान' में सेल्फी प्वाइंट बनाये गए हैं। 
'शास्त्री सर्किल' में I Love Jodhpur तो अशोक उद्यान में I Love SunCity लिखा गया है। फ़िलहाल लोगों में इसके साथ अपनी सेल्फी और तस्वीर लेने का क्रेज खूब देखने को मिल रहा है !!







कुछेक तस्वीरें सपरिवार हमारी भीं...जीवन साथी कृष्ण कुमार यादव जी और प्यारी बेटियाँ अक्षिता (पाखी) और अपूर्वा ।


बुधवार, 1 नवंबर 2017

साहित्यकार युगल दम्पति आकांक्षा यादव और कृष्ण कुमार यादव 'शब्द निष्ठा सम्मान' से सम्मानित

हिंदी लघुकथा को समृद्धि प्रदान करने हेतु साहित्यकार युगल दम्पति आकांक्षा यादव और कृष्ण कुमार यादव को अजमेर में शब्द निष्ठा सम्मान-2017 से सम्मानित किया गया। यादव दम्पति एक लम्बे समय से साहित्य और लेखन में सक्रिय हैं। आकांक्षा यादव एक कॉलेज में प्रवक्ता के बाद अब विभिन्न  विधाओं में लेखन और ब्लॉगिंग में सक्रिय  हैं, वहीं राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर के निदेशक डाक सेवाएं पद पर पदस्थ श्री कृष्ण कुमार यादव, प्रशासन के साथ-साथ साहित्यिक और सामाजिक सरोकारों के लिए भी जाने जाते हैं। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होने के साथ-साथ, अब तक  कृष्ण कुमार यादव की 7 पुस्तकें और नारी सम्बन्धी मुद्दों पर प्रखरता से लिखने वालीं आकांक्षा यादव की 3 पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। देश-दुनिया में शताधिक सम्मानों से विभूषित यादव दम्पति एक लंबे समय से ब्लॉग और सोशल मीडिया के माध्यम से भी हिंदी साहित्य एवं विविध विधाओं में अपनी रचनाधर्मिता को प्रस्फुटित करते हुये अपनी व्यापक पहचान बना चुके हैं।

संयोजक डॉ. अखिलेश पालरिया ने बताया कि आचार्य रत्न लाल  'विद्यानुग' स्मृति अखिल भारतीय लघुकथा प्रतियोगिता हेतु देशभर के 17 राज्यों से 170 लघुकथाकारों  की कुल 850 लघुकथाएँ प्राप्त हुई थीं, जिनमें से श्रेष्ठ लघुकथाओं को चयनित कर लघुकथाकारों को सम्मानित किया गया।  यह सम्मान प्रतिवर्ष साहित्य की भिन्न-भिन्न विधाओं पर दिया जाता है। शब्द निष्ठा सम्मान 2017 श्रेष्ठ लघु कथाओं के लिए निर्धारित था। सम्मान के तहत चयनित लघुकथाकारों को मान पैलेस अजमेर में संपन्न अखिल भारतीय लघुकथा सम्मान समारोह  में प्रशस्ति पत्र, कथा संग्रह एवं सम्मान निधि देकर सम्मानित किया। 

डाक निदेशक कृष्ण कुमार यादव और पत्नी आकांक्षा यादव  को मिला 'शब्द निष्ठा सम्मान' 

यादव दंपती को 'शब्द निष्ठा सम्मान' 




गुरुवार, 7 सितंबर 2017

साहित्यकारों के नाम पर होंगे ट्रेनों के नाम

देश के साहित्यकारों को युवा पीढ़ी से जोड़ने और साहित्यकारों को ट्रेन के माध्यम से  देश भर में विस्तार देने हेतु रेलवे मंत्रालय ट्रेनों का नाम मशहूर साहित्यकारों के नाम पर रखने का विचार कर रहा है। इसमें न सिर्फ लेखक को, बल्कि वह जिस इलाके का है उसे भी तरजीह दी जाएगी। यदि ऐसा हुआ तो, पश्चिम बंगाल  जाने वाली ट्रेन का नाम  महाश्वेता देवी तो  बिहार जाने वाली ट्रेन का नाम रामधारी सिंह दिनकर जैसी मशहूर साहित्यिक हस्तियों के नाम पर होगा।
 रेलवे देश भर की सैर कराती है,  ऐेसे में ट्रेन अलग-अलग संस्कृतियों का शोकेस हो सकती हैं। ऐसे में रेलवे अलग-अलग इलाकों और अलग-अलग भाषाओं से आने वाले लेखकों के नाम पर ट्रेनों का नाम करने पर विचार कर रहा है। इसके तहत साहित्य एकेडमी अवॉर्ड जीतने वालों के नाम छांटने के साथ ही इस काम की शुरुआत  की जा चुकी  है। इससे विभिन्न संस्कृतियों को लोगों को जानने के लिए मिलेगा।
गौरतलब है कि इससे पहले भी साहित्यिक कृतियों और साहित्यिक व्यक्तित्व के नाम पर कुछेक ट्रेनों के नाम रखे जा चुके हैं। कैफी आजमी के गृह नगर आजमगढ़ जाने वाली ट्रेन का नाम "कैफियत" एक्सप्रेस है तो मुंशी प्रेमचंद की मशहूर कृति "गोदान" के नाम पर गोदान एक्सप्रेस संचालित हो रही है।

रविवार, 23 जुलाई 2017

आज ही के दिन शुरू हुआ था भारत में रेडियो प्रसारण

23 जुलाई को जब आप अपनी गाड़ी या घर में रेडियो सुनेंगे तो शायद आपको कुछ खास ना लगे पर ये दिन सुनहरे अक्षरों में लिखा गया है। 23 जुलाई को ही भारत में मुंबई से रेडियो प्रसारण की पहली स्‍वर लहरी गूंजी थी। 23 जुलाई को भारत में संगठित प्रसारण के 90 साल पूरे हो रहे हैं। प्रसारण की एक मोहक और ऐतिहासिक यात्रा में रेडियो ने सफलता के कई आयाम तय किए हैं। आज रेडियो भारतीय जनमानस के जीवन का एक अभिन्न अंग है। भारत में रेडियो से जुड़ी दो अनूठी बातें हैं, पहली तो यह कि यहां के रेडियो प्रसारण का नाम विश्व भर में विशिष्ट है ‘आकाशवाणी’ और उतनी ही अनूठी है इस ‘आकाशवाणी’ की ‘परिचय धुन’, जिसके साथ कुछ आकाशवाणी केंद्रों पर सभा सभा का आरंभ होता है हालांकि आकाशवाणी के बहुत सारे केंद्र अब अपना प्रसारण 24 घंटे करते हैं इसलिए वहां आकाशवाणी की संकेत ध्वनि सुनने नहीं मिल पाती है। ‘विविध भारती’ का प्रसारण 24 घंटे है तो वहां आकाशवाणी की संकेत धुन अब नहीं बज पाती।

यहां यह जानकारी देना जरूरी है कि इस नायाब धुन को सन 1936 में ‘इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी’ के संगीत विभाग के अधिकारी वॉल्टर कॉफमैन ने कंपोज़ किया था। ‘आकाशवाणी’ के इस अनूठे नाम की भी बड़ी दिलचस्प कहानी है। वैसे अपने देश में सन 1924 के आसपास कुछ रेडियो क्लबों ने प्रसारण आरंभ किया था लेकिन आर्थिक कठिनाइयों के चलते यह क्लब नहीं चल सके। आगे चलकर 23 जुलाई सन 1927 को मुंबई में ‘इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी’ ने अपनी रेडियो प्रसारण सेवा शुरू की। 26 अगस्त 1927 को कोलकाता में नियमित प्रसारण शुरू हो गया। रेडियो प्रसारण का उद्घाटन करते हुए तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन ने कहा था भारत वासियों के लिए प्रसारण का एक वरदान हो जायेगा। मनोरंजन और शिक्षा की दृष्टि से भारत में विद्यमान संभावना का हमें स्वागत करना होगा लेकिन 1930 तक आते-आते इंडियन ब्रॉडकास्टिंग कंपनी दिवालिया हो गई और 1 अप्रैल 1930 को ब्रिटिश सरकार ने ‘इंडियन स्टेट ब्रॉडकास्टिंग सर्विस’ का गठन किया। मजे की बात यह है कि तब रेडियो श्रम मंत्रालय के अंतर्गत रखा गया। बात चल रही थी ‘आकाशवाणी’ के नामकरण की, तो बता दिया जाए कि दरअसल उन दिनों कई रियासतों में रेडियो स्टेशन खोले गए थे जिनमें मैसूर रियासत के 30 वॉट के ट्रांसमीटर से डॉक्टर एम वी गोपालस्वामी ने रेडियो प्रसारण शुरू किया और उसे नाम दिया ‘आकाशवाणी’। आगे चलकर सन 1936 से भारत के तमाम सरकारी रेडियो प्रसारण को ‘आकाशवाणी’ के नाम से जाना गया।

शुरू से ही रेडियो के तीन महान लक्ष्य थे- सूचना, शिक्षा और मनोरंजन। सामने थी भारत की भौगोलिक विभिन्नताओं और कठिनाइयों की चुनौती। लोगों को यह जानकर अचरज होगा कि सन 1930 से 1936 के बीच मुंबई और कोलकाता जैसे केंद्रों से हर रोज दो समाचार बुलेटिन प्रसारित किए जाते थे। एक अंग्रेजी में और दूसरा बुलेटिन हिंदुस्तानी में। 1 जनवरी 1936 को आकाशवाणी के दिल्‍ली केंद्र के उद्घाटन के साथ ही वहां से भी समाचार बुलेटिन प्रसारित होने लगे। सबसे खास बात यह है कि उन दिनों चूंकि समाचार बुलेटिन शुरू ही हुए थे इसलिए खबरें किसी एजेंसी से खरीदी नहीं जाती थी बल्कि समाचार वाचक उस दिन के समाचार पत्र लेकर मुख्य समाचार पढ़ दिया करते थे। लेकिन सन 1935 में सेंट्रल न्यूज़ आर्गेनाईजेशन यानी केंद्रीय समाचार संगठन की स्थापना के बाद समाचार बुलेटिनों का सुनियोजित ढंग से विकास हुआ। स्वतंत्रता के समय आकाशवाणी के कुल 18 ट्रांसमीटर थे। आकाशवाणी के नेटवर्क में कुल 6 रेडियो स्टेशन और पांच देसी रियासतों के रेडियो स्टेशन थे।

सन 1951 में रेडियो के विकास को पंचवर्षीय योजना में शामिल कर लिया गया उसके बाद से आकाशवाणी ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। आकाशवाणी ने समाज के हर तबके को अपने परिवार में शामिल किया है, चाहे ग्रामीण श्रोता हो, चाहे श्रमिक, कामकाजी महिलाएं हों या बुजुर्ग और बच्चे या युवा। सबके लिए आकाशवाणी के रोचक कार्यक्रम प्रसारित होते हैं। आज देश की लगभग 98 प्रतिशत आबादी की पहुंच में है रेडियो।

21वीं सदी के इस तकनीकी युग में आकाशवाणी ने अपनी शक्ल बदली है। अब लोकल फ्रीक्वेंसी मॉड्यूलेशन यानी एफ एम केंद्रों का विस्तार हुआ है। और कार्यक्रमों की तकनीकी गुणवत्ता भी बढ़ी है। रेडियो आपके हाथ में है, आपके मोबाइल में है, इंटरनेट के जरिए पूरी दुनिया में इसकी पहुंच है। शुरुआती दौर से ही आकाशवाणी रचनात्मक पहल करती आ रही है। महत्‍वपूर्ण घटनाओं, समारोहों या खेलों की रेडियो कमेंट्री हो, रेडियो नाटक, रेडियो फीचर, फोन इन कार्यक्रम जैसी रचनात्मक विधाएं या फिर त्वरित प्रतिक्रिया वाले कार्यक्रम। sms का फरमाइशी कार्यक्रम हो या फिर शास्त्रीय संगीत का कार्यक्रम, साहित्यिक कृतियों के रेडियो रूपांतरण, गीतों भरी कहानियां, वार्ता, बाजार भाव, मौसम का हाल सब आकाशवाणी का हिस्‍सा हैं।

बदलते वक्‍त के साथ रेडियो ने अपनी नई विधाएं गढ़ी हैं। और इन्हें जनता के संस्कारों का हिस्सा बनाया है। 23 जुलाई 1969 को मनुष्य ने चंद्रमा पर कदम रखा और उसी दिन आकाशवाणी दिल्ली से आरंभ हुआ ‘युववाणी’ कार्यक्रम। उद्देश्य था छात्र वर्ग और युवा पीढ़ी को प्रसारण का भागीदार बनाना। आगे चलकर इस युववाणी ने रंगमंच, अभिनय, संगीत और मीडिया के अनेक क्षेत्रों की बहुत प्रतिभाओं को निखारा। आकाशवाणी के अत्यंत महत्वपूर्ण योगदानों में शास्त्रीय संगीत और लोक संगीत की अनमोल विरासत को सँजोना और लोकप्रिय करनास भी शामिल है। गुजरे जमाने के अनेक महत्वपूर्ण संगीतकार, शास्त्रीय संगीत के अनेक विद्वान, साहित्यकार और पत्रकार आकाशवाणी से जुड़े रहे हैं। आज भी आकाशवाणी के संग्रहालय में इनकी अनमोल रिकॉर्डिंग मौजूद है। महादेवी वर्मा जयशंकर प्रसाद, ‘निराला’, बच्‍चन जी, पं. रमानाथ अवस्थी वगैरह की अनमोल रचनाएं आकाशवाणी की लाइब्रेरी में मौजूद है। और अब तो प्रसार भारती ने सीडीज़ की शक्‍ल में इन्‍हें आपके लिए उपलब्‍ध भी करवा दिया है। इसे प्रसार भारती आर्काइव की वेबसाइट से खरीदा जा सकता है। इसमें वो रामचरित मानस गान भी शामिल है जो आपकी सुबहों का हिस्‍सा होती थी।

भारत में आकाशवाणी के लोकप्रियता का एक नया इतिहास तब रचा गया जब 3 अक्टूबर 1957 को ‘विविध भारती सेवा’ आरंभ हुई। ‘विविध भारती’ के फरमाइशी फिल्मी गीतों के कार्यक्रम घर घर में गूंजने लगे। फिल्मी कलाकारों से मुलाकात, फौजी भाइयों के लिए ‘जयमाला’, ‘हवा महल’ के नाटक और अन्य अनेक कार्यक्रम जन-जीवन का हिस्सा बन गए। सन 1967 में विविध भारती से प्रायोजित कार्यक्रमों की शुरुआत हुई। फिर तो रेडियो की लोकप्रियता शिखर पर पहुंच गई। अमीन सायानी की बिनाका गीतमाला आज भी हमारी यादों का हिस्‍सा है।

आकाशवाणी की ‘ध्वनि तरंगें’ सिर्फ भारत में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी गूंजा करती है। वैसे अक्टूबर 1939 में पश्तो भाषा विदेश प्रसारण की शुरुआत हुई थी। विदेश प्रसारण सेवा आज 25 से भी अधिक भाषाओं में कार्यक्रम करती है। इसके अलावा आकाशवाणी की वेबसाइट पर लाइव स्‍ट्रीमिंग और मोबाइल एपलीकेशन के ज़रिए विविध भारती, एफ एम गोल्‍ड, रेनबो, समाचार सेवा, शास्‍त्रीय संगीत के चौबीस घंटे चलने वाले रेडियो चैनल ‘रागम’ और अलग अलग क्षेत्रीय भाषाओं के मनोरंजक कार्यक्रम सारी दुनिया में सुने जा सकते हैं।

जिन दिनों में छोटा पर्दा नहीं था तब रेडियो कमेंट्री विभिन्न घटनाओं को शब्दचित्र अपने श्रोताओं के लिए खींच देती थी चाहे आजादी की पूर्व संध्या पर पंडित नेहरू ने अपना प्रसिद्ध भाषण ‘ट्रिस्ट विद डेस्टिनी’ (नियति से साक्षात्कार) संसद में दिया था। आकाशवाणी के माध्यम से इसे पूरे राष्ट्र में सुना था। आज भी प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी रेडियो के ज़रिये अपनी ‘मन की बात’ लोगों तक पहुंचाते हैं। आज भारत में अनेक प्राइवेट एफ एम चैनल श्रोताओं का मनोरंजन करते हुए रेडियो की परंपरा को समृद्ध कर रहे हैं।

आज आकाशवाणी प्रसारण के तीनों रुपों यानी शॉर्टवेव, मीडियम वेव और FM के जरिए देश-विदेश में उपलब्ध है। 90 साल पहले ध्वनि तरंगों ने भारत में एक नन्हा कदम रखा था और आज भारतीय प्रसारण ने एक परिपक्व उम्र को छुआ है। इस उम्र में भी सपनों के अंकुर हरे हैं। स्मृतियों के एल्बम भरे हैं। और तय करने को है एक लंबा सफर। प्रसारण के 90 बरस प्रसारकों और श्रोताओं के लिए उत्सव के क्षण हैं।

 ✍🏻 *ममता सिंह*
उदघोषिका विविध भारती, मुंबई

शुक्रवार, 24 फ़रवरी 2017

'शिव' और 'शक्ति' के मिलन का प्रतीक है महाशिवरात्रि पर्व, अर्द्धनारीश्वर की कल्पना लेती है मूर्त रूप

आज  'महाशिवरात्रि' का पर्व है। ऐसी मान्यता  है कि इसी दिन भगवान शिव का पार्वती संग शुभ-विवाह हुआ था। भगवान शिव का एक रूप अर्धनारीश्वर का भी है। पुरुष (शिव) एवं स्त्री (शक्ति) का एका होने के कारण शिव नर भी हैं और नारी भी, अतः वे अर्द्धनारीश्वर हैं।

जब ब्रह्मा ने सृजन का कार्य आरंभ किया तब उन्होंने पाया कि उनकी रचनायें अपने जीवनोपरांत नष्ट हो जायंगी तथा हर बार उन्हें नए सिरे से सृजन करना होगा। गहन विचार के उपरांत भी वो किसी भी निर्णय पर नहीं पहुँच पाये। तब समस्या सामाधान हेतु वे शिव की शरण में पहुँचे। उन्होंने शिव को प्रसन्न करने हेतु कठोर तप किया। ब्रह्मा की कठोर तप से शिव प्रसन्न हुए। ब्रह्मा की समस्या के समाधान हेतु भगवान शिव अर्धनारीश्वर स्वरूप में प्रकट हुए। अर्ध भाग में वे शिव थे तथा अर्ध में शिवा। अपने इस स्वरूप से शिव ने ब्रह्मा को प्रजननशील प्राणी के सृजन की प्रेरणा प्रदान की। साथ ही साथ उन्होंने पुरूष एवं स्त्री के समान महत्व का भी उपदेश दिया। 

शक्ति शिव की अविभाज्य अंग हैं। शिव नर के प्रतीक हैं तो शक्ति नारी की। वे एक दूसरे के पूरक हैं। शिव के बिना शक्ति का अथवा शक्ति के बिना शिव का कोई अस्तित्व ही नहीं है। शिव अकर्ता हैं। वो संकल्प मात्र करते हैं; शक्ति संकल्प सिद्धी करती हैं।

 ..... आप सभी को ''महाशिवरात्रि'' पर्व  की हार्दिक शुभकामनाएँ !!

आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 
Akanksha Yadav @ www.shabdshikhar.blogspot.com/ 


शनिवार, 21 जनवरी 2017

'आधी आबादी के सरोकार' पुस्तक में अपनी बात

अपनी पुस्तक को हाथ में देखने की सुखद अनुभूति ही कुछ और होती है। हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद द्वारा प्रकाशित हमारी पुस्तक "आधी आबादी के सरोकार" की 10 लेखकीय प्रतियाँ आज ही प्राप्त हुई, वाकई बहुत अच्छा लगा। वर्ष 2017 की हमारी पहली सृजनात्मक उपलब्धि रही ये पुस्तक। यह भी एक अजीब संयोग है कि इस बार प्रगति मैदान, नई दिल्ली में आयोजित विश्व पुस्तक मेला-2017 की थीम भी 'मानुषी' रही, जो महिलाओं द्वारा एवं महिलाओं के ऊपर लेखन को प्रस्तुत करती है। एकेडेमी द्वारा बताया गया है कि "आधी आबादी के सरोकार" पुस्तक को हिन्दुस्तानी एकेडेमी, इलाहाबाद के कार्यालय, स्टॉल के अलावा लोकभारती और राजकमल प्रकाशन की मार्फत भी प्राप्त किया जा सकता है, जो एकेडेमी के पुस्तकों के वितरक भी हैं। फ़िलहाल, इस पुस्तक में 'अपनी बात' के तहत लिखी गई मेरी भावनायें इसकी भावभूमि पर प्रकाश डालती हैं, जिसे यहाँ आप सभी के साथ शेयर कर रही हूँ -


साहित्य और समाज में अन्योन्याश्रित सम्बन्ध है। कई बार साहित्य समाज को पथदृष्टा बन कर राह दिखाता है तो कई बार समाज में चल रही उथल-पुथल साहित्य में कुछ नया रचने की प्रेरणा देती है। तभी तो कहते हैं कि साहित्य अपने समकालीन समाज का आईना होता है।  लेकिन कई बार आईना भी हमें सिर्फ वही दिखाता है जो हम देखना चाहतेहैं। यही कारण है किसमय के साथ साहित्य में तमाम विमर्शों का जन्म हुआ,जैसे- नारी विमर्श, बाल विमर्श, विकलांग विमर्श, दलित विमर्श, आदिवासी विमर्श इत्यादि। ये विमर्श साहित्य को बौना नहीं बनाते बल्कि उसे विस्तार देते हैं। समाज की मुख्यधारा से वंचित तमाम ऐसे आयाम हैं जिनका लिपिबद्ध होकर सामने आना बहुत जरूरी है,ताकि आने वाली पीढ़ियाँ उनकी भाव भूमि पर अपने को खड़ी कर सकें। 

दुनिया की लगभग आधी जनसंख्या नारियों की है और इस रूप में इन्हें आधी आबादी माना जाता है। एक ऐसी आधी आबादी जो शेष आधी आबादी को जन्मती है,पल्लवित-पुष्पित करती है। ऐसे में जरूरी हैकि आधी आबादी से जुड़े सरोकारों पर गहन विमर्श किया जाए। “आधी आबादी के विमर्श” नामक इस पुस्तक में मैंने ऐसे ही विषयों को अपनी लेखनी के माध्यम से प्रस्तुत करने का प्रयास किया है। 

21वीं सदी की नारी के सामने उसके अपने सपने, महत्वाकांक्षायें, और उन्मुक्त उड़ान भरने की अभिलाषा है। इसके साथ ही उसे परिवार व समाज की परंपराओं और संस्कारों को भी निभाना है। इन सबके बीचस्वाभाविक रूप से उसपर जिम्मेदारियाँ बढ़ती हैं, और कई बार नारी अपने को दोराहे पर खड़ा पाती है। आज की नारी अपने पुरातन दृष्टिकोण को तिलांजलि देकर अपने विवेक और नूतन दृष्टि से एक नई भूमिका लिखना चाहती है। वह अपनी सोच को नई उड़ान देना चाहती है, साथ ही वह अपनी अस्मिता और अस्तित्व को लेकर भी सजग हुई है। 
आज का दौर परिवर्तन का दौर है। बदलाव या परिवर्तन अपनी गतिशीलता का परिणाम है, जो यह दिखाता है कि अमुक समाज, या सोच जड़ नहीं है। परिवर्तन के इस माहौल में  नारी नई इबारत लिखने को तैयार है।आज के इस दौर में नारी का स्वावलंबी होना अति आवश्यक भी हो गया है क्योंकि वह एक ऐसी धुरी है जिसका उत्थान न सिर्फ परिवार का बल्कि समाज और  राष्ट्र का भी उत्थान है। राजनीति, प्रशासन, कॉरपोरेट, सैन्य सेवाओं, आई.टी., खेलकूद, साहित्य, कला, संस्कृति, फिल्म जगत से लेकर तमाम क्षेत्रों में नारी आज नए मुकाम स्थापित कर रही है। कई बार इसे ऐसे भी प्रदर्शित किया जाता है मानो किआधी आबादी ने अपनी ऊँचाइयों को प्राप्त कर लिया है,परजमीनी हकीकत ऐसी नहीं हैं। ये तो एक शुरुआत मात्र है,अभी नारी को एक लंबा सफर तय करना है, उसे पग–पग पर संघर्षों के बीच स्वयं को सिद्ध करना है। 

नारी संबंधित सरोकारों पर मैं एक लंबे समय से लिख रही हूँ, और इस बीच तमाम लेख देश–विदेश की विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं से लेकर इंटरनेट के संजाल पर प्रकाशित हुए। ये वो विषय हैं जो पारंपरिक से लेकर आधुनिक नारी तक को प्रभावित करते हैं। सिर्फ लेखन के स्तर पर ही नहीं व्यक्तिगत जीवन में भी मैंने उन्हीं संस्कारों को जिया है जो मेरे लेखन में समाहित है। तभी तो आज हमारे आँगन में दो प्यारी बेटियाँ अक्षिता (पाखी) और  अपूर्वा खेल रही हैं। निश्चितत: मैं इनमें आने वाले समय में होने वाले परिवर्तनों का आगाज देखती हूँ और यह महसूस करती हूँ कि किस तरह आज की बेटियाँ, भावी जीवन की नई इबारत लिखने को तत्पर हैं। अपनी यह पुस्तक मैं अपनी इन दोनों प्यारी बेटियों को समर्पित करती हूँ।  

इस पुस्तक के लेखन व प्रकाशन में सबसे बड़ा योगदान मेरे जीवन-साथी कृष्ण कुमार यादव जी का है, जिन्होंने हर पल दाम्पत्य जीवन के साथ साहित्य के क्षेत्र में भी मेरे साथ युगलबंदी की है। इन्होंने विभिन्न मुददों पर मेरे विचारों को और भी प्रखर किया।इनसे प्राप्त प्यार और अनुरागसे मैं सदैव अभिभूत हूँ। 

इस पुस्तक के लिए मैं अपने मम्मी–पापा (श्रीमती सावित्री देवी जी-श्री राजेंद्र प्रसाद जी) की ऋणी हूँ जिन्होंने मुझे वो शिक्षा, संस्कार एवं मूल्य दिये जिसके कारण मैं आज इस रूप में अपने को अभिव्यक्त कर पा रही हूँ। 

मैं डॉ. चम्पा श्रीवास्तव जी की हार्दिक आभारी हूँ जिन्होंने इस पुस्तक का प्राक्कथन लिखकर मेरा हौसला बढ़ाया। हिन्दुस्तान एकेडमी, इलाहाबाद का मैं विशेष आभार व्यक्त करना चाहती हूँ,जिसने इस पुस्तक को प्रकाशित करने का निर्णय लिया और इस रूप में आप सभी के समक्ष प्रस्तुत किया। 

यद्यपि मैंने पूर्ण कोशिश की है कि पुस्तक में तथ्यों को सही रूप मेंप्रस्तुत किया जाए एवं वैचारिकता के पहलू पर आंकते हुए तर्कसंगत रूप में प्रस्तुत किया जाए, लेकिन इसके बावजूद भी यदि किसी प्रकार से त्रुटि रह जाती है तो पाठकगण कृपया उसे मेरे संज्ञान में अवश्य लायें, ताकि इनमें सुधार किया जा सके। 

आशा करती हूँ कि यह पुस्तक आपको अवश्य पसंद आएगी और मेरी लेखनी को आपका स्नेह प्राप्त होगा। 

अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस                                (आकांक्षा यादव)
08 मार्च 2016
 
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'आधी आबादी के सरोकार' पुस्तक की विषय सूची 

1. समकालीन परिवेश में नारी विमर्श
2 . आजादी के आंदोलन में भी अग्रणी रही नारी
3 . शिक्षा और साहित्य के विकास में नारी की भागीदारी
4 . सोशल मीडिया और आधी आबादी के सरोकार 
5 . हिन्दी ब्लाॅगिंग को समृद्ध करती महिलाएं
6 . माँ का रिश्ता सबसे अनमोल
7 . घरेलू हिंसा बनाम अस्तित्व की लड़ाई
8 . नारी सशक्तिकरण बनाम अशक्तिकरण
9 . आर्थिक सशक्तिकरण की दिशा में नारी 
10 . राजनीति में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की जरूरत


पुस्तक का नाम : आधी आबादी के सरोकार 
लेखिका : आकांक्षा यादव 
प्रकाशक : हिन्दुस्तानी एकेडेमी, 12-डी, कमला नेहरू मार्ग, इलाहाबाद (उप्र) - 211001
कवर डिजाइन : डॉ. रत्नाकर लाल 
संस्करण : प्रथम, प्रकाशन वर्ष : 2017, पृष्ठ-112, मूल्य : रु. 110/- (एक सौ दस रुपए मात्र)
आईएसबीएन (ISBN) : 978-93-85185-05-2