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बुधवार, 19 फ़रवरी 2025

विवाह के झूठे वादों से दुष्कर्म के बढ़ते मामले

हाल के वर्षों में बलात्कार के ऐसे मामलों की संख्या में वृद्धि हुई है, जिनमें अभियुक्त पर बलात्कार का आरोप लगाया जाता है। इन मामलों में, एक पुरुष जिसने एक महिला से शादी करने का वादा किया है, उसके साथ यौन क्रियाकलाप और शारीरिक अंतरंगता में शामिल होता है, लेकिन बाद में अपने वादे से मुकर जाता है। अक्सर यह भूलकर कि उनके बीच सहमति से सम्बंध थे, महिला जो इससे ग़लत महसूस करती है, पुरुष पर बलात्कार का आरोप लगाती है। अतुल गौतम बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2025) में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के परिणाम हाल ही में एक ऐसे व्यक्ति को जमानत दे दी गई, जिस पर विवाह की शपथ के बदले में अपने सहवास करने वाले साथी के साथ बलात्कार करने का आरोप था। महिलाओं की स्वायत्तता ऐसे न्यायालय के निर्णयों से प्रभावित होती है, जो लैंगिक रूढ़ियों को भी क़ायम रखते हैं।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की नई रिपोर्ट में कहा गया है कि हर साल झूठी शादी की शपथ की आड़ में कई हज़ार बलात्कार के मामले दर्ज किए जाते है। इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा अतुल गौतम मामले में 2025 में दिए गए फैसले से यह सवाल उठता है कि न्यायिक व्याख्याएँ महिलाओं की स्वायत्तता और कानूनी सुरक्षा को कैसे प्रभावित करती हैं। बलात्कार और सेक्स के लिए सहमति देना स्पष्ट रूप से अलग-अलग हैं। इन स्थितियों में, न्यायालय को सावधानीपूर्वक विचार करना चाहिए कि क्या शिकायतकर्ता की पीड़िता से शादी करने की वास्तविक इच्छा थी या उसके कोई छिपे हुए उद्देश्य थे और उसने केवल अपनी वासना को शांत करने के लिए इस आशय का झूठा वादा किया था, क्योंकि बाद वाले को धोखा या छल माना जाता है। इसके अतिरिक्त, झूठा वादा न निभाने और उसे तोड़ देने में अंतर है। अभियुक्त द्वारा अभियोक्ता को यौन गतिविधि में शामिल होने के लिए लुभाने के इरादे के बिना किया गया वादा बलात्कार के रूप में मान्य नहीं होगा। अभियोक्ता अभियुक्त द्वारा बनाए गए झूठे प्रभाव के बजाय उसके प्रति अपने प्यार और जुनून के आधार पर अभियुक्त के साथ यौन सम्बंधों के लिए सहमति दे सकती है। वैकल्पिक रूप से, अप्रत्याशित या अनियंत्रित परिस्थितियों के कारण ऐसा करने का इरादा होने के बावजूद अभियुक्त उससे शादी करने में असमर्थ हो सकता है। इन स्थितियों को अलग तरीके से संभालने की आवश्यकता है। बलात्कार का मामला तभी स्पष्ट होता है जब शिकायतकर्ता का कोई दुर्भावनापूर्ण इरादा या गुप्त उद्देश्य हो।

अतुल गौतम बनाम इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फ़ैसला सर्वोच्च न्यायालय के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन करता है। यह फ़ैसला अपर्णा भट बनाम के विपरीत है। 2021 के मध्य प्रदेश राज्य के फैसले में आरोपी और पीड़ित को द्वितीयक आघात से बचने के लिए जमानत पर रहते हुए संवाद करने से मना किया गया है। सर्वोच्च न्यायालय ने फ़ैसला सुनाया कि निष्पक्ष सुनवाई की गारंटी के लिए, जमानत की आवश्यकताओं को आरोपी और उत्तरजीवी के बीच संचार के लिए बाध्य नहीं करना चाहिए। यह विचार कि विवाह बलात्कार के लिए एक उपाय है न कि अपराध के लिए सजा, ऐसी जमानत आवश्यकताओं द्वारा पुष्ट होता है, जो सामाजिक समझौते को कानून के शासन से आगे रखता है। रामा शंकर बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2022) में जमानत देते समय इसी तरह के शब्दों का इस्तेमाल किया गया था, जिसने प्रतिवादी के खिलाफ अभियोजन पक्ष के मामले को कमजोर कर दिया। उत्तरजीवी को जमानत प्राप्त करने के लिए आरोपी द्वारा विवाह के लिए मजबूर किया जा सकता है, जिसके परिणामस्वरूप कानूनी व्यवस्था के भीतर निरंतर दुर्व्यवहार हो सकता है। अभिषेक बनाम उत्तर प्रदेश राज्य (2024) ने न्याय की गारंटी देने के बजाय, अभियुक्त को विवाह के वादे के बदले में जमानत देकर एक दबावपूर्ण गतिशीलता बनाई। जो उत्तरजीवी को उचित पुनर्वास सहायता प्राप्त करने के बजाय अभियुक्त पर निर्भर रहने के लिए मजबूर करता है। किशोरों के निजता के अधिकार (2024) में न्यायालय द्वारा उत्तरजीवियों और बच्चों को आवास, शिक्षा और परामर्श प्रदान करने के राज्य के दायित्व पर प्रकाश डाला गया था। जमानत का उद्देश्य सामाजिक कर्तव्यों को लागू करना नहीं है, बल्कि मामला लंबित रहने तक अस्थायी स्वतंत्रता की गारंटी देना है।

महिलाओं की स्वायत्तता और "सम्मान" विचारधारा की निरंतरता इन न्यायिक निर्णयों से प्रभावित होती है, जो लैंगिक रूढ़ियों को भी मज़बूत करती है। ऐसे निर्णय बलात्कार को अपराध से कम और पवित्रता के नुक़सान को अधिक बनाते हैं, जो पितृसत्तात्मक धारणा को मज़बूत करते हैं कि एक महिला की गरिमा विवाह से जुड़ी होती है। न्यायालयों ने पिछले कई निर्णयों में एक पीड़ित के पुनर्वास को विवाह के बराबर माना है, बलात्कार को शारीरिक स्वायत्तता के उल्लंघन के रूप में स्वीकार करने में विफल रहे। न्यायालय महिलाओं की स्वायत्तता को कमजोर करते हुए अपराधियों के साथ विवाह करने के लिए पीड़ितों पर दबाव डालकर कानूनी संरक्षण के तहत दुर्व्यवहार और नियंत्रण को बढ़ावा देते हैं। विवाह को एक उपाय मानने वाली अदालतें पीड़ित की सहमति की कमी को नजरअंदाज करती हैं, जिसका अर्थ है कि जबरदस्ती को कानूनी रूप से उचित ठहराया जा सकता है। महिलाओं को लगातार आघात और सुरक्षा जोखिमों के बावजूद अक्सर अपने दुर्व्यवहार करने वालों के साथ "समझौता विवाह" में रहने के लिए मजबूर किया जाता है। अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करते हुए, जो महिलाओं की स्वायत्तता और गरिमा की रक्षा करता है, ऐसे निर्णय महिलाओं को उनकी इच्छा के विरुद्ध सम्बंधों में मजबूर करके उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार, जबरन विवाह अनुच्छेद 21 का उल्लंघन करते हैं, जिससे पीड़ितों को न्याय के बजाय अधिक शोषण का सामना करना पड़ता है।

ये निर्णय इस धारणा को बनाए रखते हैं कि विवाह यौन हिंसा को हल कर सकता है, इन घटनाओं को गंभीर अपराधों के बजाय नागरिक विवादों में बदल देता है। रूढ़िवादी ग्रामीण क्षेत्रों में पीड़ितों पर अक्सर अदालतों द्वारा आरोपी लोगों से विवाह करने का दबाव होता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि सामाजिक दबाव से न्याय से समझौता न हो, अदालतों को स्थापित नियमों का पालन करना चाहिए जो विवाह को जमानत की शर्त बनाने से रोकते हैं। अपर्णा भट केस (2021) में, सर्वोच्च न्यायालय ने फ़ैसला किया कि जमानत की ऐसी आवश्यकताएँ जो पीड़ितों को रिश्तों में मजबूर करती हैं या लैंगिक रूढ़िवादिता को बनाए रखती हैं, उनसे बचना चाहिए। राज्य को पीड़ितों को आत्मनिर्भर बनने में मदद करने के लिए मौद्रिक सहायता, परामर्श, कानूनी सहायता और कौशल-निर्माण पाठ्यक्रम प्रदान करके कल्याण कार्यक्रमों में सुधार करना चाहिए। वन स्टॉप सेंटर योजना द्वारा एकीकृत सहायता सेवाएँ प्रदान की जाती हैं; हालाँकि, अधिकतम प्रभाव के लिए, इसमें सुधार और विस्तार की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि न्यायिक विवेक से पीड़ितों के अधिकारों को ख़तरा न हो, विधायी संशोधनों को विशेष रूप से विवाह की शर्त पर ज़मानत देने की प्रथा को रोकना चाहिए। यह सुनिश्चित करने के लिए कि कानूनी व्याख्याएँ पितृसत्तात्मक पूर्वाग्रहों के बजाय संवैधानिक सिद्धांतों को बनाए रखें, न्यायाधीशों को लिंग-संवेदनशील प्रशिक्षण प्रदान करें। पीड़ितों के अधिकारों और लैंगिक न्याय को न्यायिक प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में शामिल किया जाना चाहिए, जैसे कि राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी द्वारा संचालित पाठ्यक्रम।

त्वरित न्याय सुनिश्चित करने के लिए, त्वरित परीक्षण पीड़ितों को समझौते के लिए मजबूर करने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई की आवश्यकता को समाप्त कर देंगे। हालाँकि 2019 निर्भया फंड को फास्ट-ट्रैक कोर्ट के लिए अलग रखा गया था, लेकिन उनमें से कई अभी भी संसाधनों की कमी और प्रशासनिक रुकावटों के परिणामस्वरूप कम उपयोग किए जाते हैं। ऐसे न्यायिक निर्णयों से महिलाओं के अधिकारों को कमजोर करने और इस तरह पितृसत्तात्मक मानदंडों को मज़बूत करने का जोखिम है। रिश्ते की जटिलता और धोखाधड़ी के इरादे के बीच अंतर करने के लिए एक अच्छी तरह से कानूनी रणनीति की आवश्यकता होती है। कानूनी सुरक्षा को मज़बूत करके और लिंग-संवेदनशील न्यायिक प्रशिक्षण प्रदान करके न्याय किया जा सकता है, जो लैंगिक समानता के लिए भारत की प्रतिबद्धता के अनुरूप है।

  -प्रियंका सौरभ, रिसर्च स्कॉलर इन पोलिटिकल साइंस, उब्बा भवन, आर्यनगर, हिसार (हरियाणा)-127045

गुरुवार, 16 दिसंबर 2021

भारत की सबसे लंबे बालों वाली महिला आकांक्षा यादव

बाल किसी महिला की खूबसूरती में चार चांद लगाने का काम करते हैं। जितने लंबे, घने बाल महिला उतनी ज्यादा खूबसूरत दिखती है, लेकिन ये तोहफा हर किसी को नहीं मिलता। दोस्तों, भारत ही नहीं दुनिया में ऐसी लाखों, करोड़ों महिलाएं हैं जो अपने बाल न बढ़ने की समस्या से परेशान हैं। महंगे तेल और अन्य तरह के प्रोडक्ट्स इस्तेमाल करने पर भी उनकी यह समस्या जस की तस रहती है। लेकिन मुंबई  की रहने वाली आकांक्षा यादव के साथ ऐसा नहीं है। आकांक्षा के बाल 1,2,3...5 नहीं पूरे 9 फीट और 10.5 इंच लंबे हैं। मीटर में बात करें तो उनके बालों की लंबाई 3.01 मीटर है। जी हां दोस्तों। इतना ही नहीं अकांक्षा को भारत में सबसे लंबे बालों वाली महिला के रूप में चुना गया है। उनकी इस उपलब्धि के लिए उनका नाम लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में शामिल किया गया है।

2019 से कोई नहीं तोड़ पाया आकांक्षा का रिकॉर्ड 

मुंबई की आकांक्षा यादव को यह खिताब ऐसे ही नहीं मिला, इसके पीछे उनकी वर्षों की मेहनत है। लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्डस के 30वें संस्करण में उनका नाम भारत के सबसे लंबे बाल वाली महिला के रूप में दर्ज किया गया है। आकांक्षा अपनी इस उपलब्धि के लिए फूली नहीं समा रही हैं। लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स 2020-2022 के आधिकारिक पत्र के मुताबिक साल 2019 से आकांक्षा का सबसे लंबे बालों वाली महिला होने का रिकॉर्ड कोई नहीं तोड़ पाया है।

लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है नाम 

आकांक्षा यादव ने लिम्का बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में नाम दर्ज होने पर खुशी जाहिर करते हुए  कहा कि इस राष्ट्रीय खिताब को पाना ही अपने आप में बड़ी बात है। यह खिताब हासिल कर में बहुत खुश हूं।

क्या है आकांक्षा के लंबे बालों का राज 

बता दें कि आकांक्षा यादव एक फार्मास्युटिकल और मैनेजमेंट प्रोफेसनल है। सबसे लंबे बालों के लिए उनका नाम इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी दर्ज है। जब उनसे उनके लंबे बालों का राज पूछा गया तो उन्होंने कहा कि यह ईश्वर का आशीर्वाद है। आकांक्षा से जब पूछा गया कि वह इतने लंबे बालों की देखरेख कैसे करती हैं। तो आकांक्षा ने हैरानी भरा जबाव दिया। उन्होंने कहा कि वह पूरे दिन में अपने बालों को धोने से लेकर उन्हें कंघी करने तक केवल 20 मिनट का समय खर्च करती हैं।


(यूँ  ही गूगल पर सर्च करते हुए अपने नाम पर जाकर अटक गई, अपने हमनाम आकांक्षा यादव की उपलब्धि के बारे में जानकर अच्छा लगा....हार्दिक बधाई !! )

मंगलवार, 16 अप्रैल 2019

साहित्यकार व ब्लॉगर आकांक्षा यादव "स्त्री अस्मिता सम्मान-2019" से सम्मानित

हिंदी साहित्य और लेखन के क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवाओं के लिए युवा साहित्यकार व ब्लॉगर आकांक्षा यादव को "रेयान स्त्री अस्मिता सम्मान-2019" से  सम्मानित किया गया। कैफ़ी आज़मी एकेडमी, लखनऊ में रेयान मंच एवं देव एक्सेल फाउंडेशन द्वारा आयोजित कार्यक्रम में आकांक्षा यादव को उक्त सम्मान आई.ए. एस. डॉ. हरिओम, लखनऊ परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं कृष्ण कुमार यादव, डॉ. मालविका हरिओम, कार्यक्रम की संयोजिका डॉ. अनीता श्रीवास्तव एवं अनीता राज ने 12 अप्रैल, 2019 को प्रदान किया। 
सामाजिक और साहित्यिक विषयों के साथ-साथ नारी-सशक्तिकरण पर प्रभावी लेखन करने वाली आकांक्षा यादव  की  तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लेखन के साथ वे ब्लॉग और सोशल मीडिया के माध्यम से भी अपनी रचनाधर्मिता को प्रस्फुटित करते हुये व्यापक पहचान बना चुकी  हैं। भारत के अलावा जर्मनी, श्रीलंका और नेपाल इत्यादि देशों में भी सम्मानित हो चुकी हैं। आकांक्षा यादव लखनऊ मुख्यालय परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएँ  कृष्ण कुमार यादव की पत्नी हैं, जो कि स्वयं चर्चित साहित्यकार और ब्लॉगर हैं।
कार्यक्रम के आरम्भ में अतिथियों ने दीप-प्रज्वलन कर कार्यक्रम का शुभारम्भ किया। इस अवसर पर सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति भी की गई, जिसने सबका मन मोह लिया। 




मंचासीन अतिथियों आई.ए. एस. डॉ. हरिओम, लखनऊ परिक्षेत्र के निदेशक डाक सेवाएं कृष्ण कुमार यादव और गायिका  डॉ. मालविका हरिओम को स्मृति चिन्ह देकर और शाल ओढ़ाकर कार्यक्रम की संयोजिका डॉ. अनीता श्रीवास्तव एवं अनीता राज ने सम्मानित  किया। 
दूसरे सत्र में बारह महिलाओं को रेयान स्त्री अस्मिता सम्मान-2019 सम्मान दिया गया। अलग-अलग क्षेत्रों से आने वाली महिलाओं में आकांक्षा यादव के अलावा  सरोज सिंह, माला चौबे, सीमा अग्रवाल, शशि सिंह, मधु सुभाष, विजय पुण्यम, ओम सिंह, वर्षा श्रीवास्तव, रूबी राज सिंह, अंतरा श्रीवास्तव, रोली शंकर और गृहिणी सम्मान कीर्ति अवस्थी को दिया गया। डॉ. अनीता श्रीवास्तव ने बताया कि समाज में अपने दम पर अलग मुकाम बनाने वाली व दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बनने वाली 12 महिलाओं को प्रतिवर्ष सम्मानित किया जाता है। 




इससे पूर्व भी उत्कृष्ट साहित्य लेखन हेतु आकांक्षा  यादव को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पचास से अधिक सम्मानों से विभूषित किया जा चुका है। इनमें उ.प्र. के मुख्यमंत्री  द्वारा ’’अवध सम्मान’’,  विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार द्वारा डाक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की मानद उपाधि, भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘’डॉ. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान‘‘, साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, राजस्थान द्वारा ”हिंदी भाषा भूषण”, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ‘‘भारती ज्योति‘‘, ’’दशक के श्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगर दम्पति’’ सम्मान, अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लॉगर सम्मेलन, काठमांडू में ’’परिकल्पना ब्लाग विभूषण’’ सम्मान,  अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्री लंका में ’’परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान’’,  ‘‘एस.एम.एस.‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार, निराला स्मृति संस्थान, रायबरेली द्वारा ‘‘मनोहरा देवी सम्मान‘‘, साहित्य भूषण सम्मान, भाषा भारती रत्न, राष्ट्रीय भाषा रत्न सम्मान, साहित्य गौरव इत्यादि शामिल हैं।












रविवार, 24 मार्च 2019

शब्दों में भावों की आकांक्षा : कलम और कला के अंतर्गत दैनिक जागरण में चर्चा

मैं मांस, मज्जा का पिंड नहीं
दुर्गा, लक्ष्मी और भवानी हूँ 
 भावों से पुंज से रची
 नित्य रचती सृजन कहानी हूँ ..
कॉलेज में प्रवक्ता और फिर साहित्य, लेखन और ब्लॉगिंग के क्षेत्र में प्रवृत्त आकांक्षा यादव बहुमुखी प्रतिभा की धनी हैं। नारी, बाल विमर्श और सामाजिक मुद्दों से सम्बंधित विषयों पर प्रमुखता से लेखन और साहित्य की विभिन्न विधाओं में उनकी रचनाओं का फलक उनके भावों और विचारों के वैविध्य का परिचायक है।  
जीवन में शुरू से ही कुछ अलग करने  की ख्वाहिश रखने वाली आकांक्षा यादव ने इसके लिए अपनी कलम को चुना। देश-विदेश की प्रायः अधिकतर प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं और इंटरनेट पर वेब पत्रिकाओं व ब्लॉग पर निरंतर प्रकाशित होने वाली आकांक्षा यादव की विभिन्न विधाओं में अब तक तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं- 'आधी आबादी के सरोकार' (2016), 'चाँद पर पानी' (बाल-गीत संग्रह-2012) एवं 'क्रांति-यज्ञ : 1857-1947 की गाथा' (संपादित, 2007), तो सोशल मीडिया पर एक पुस्तक प्रकाशनाधीन है । 60 से अधिक पुस्तकों/संकलनों  में रचनाएँ प्रकाशित होने के साथ-साथ आकाशवाणी से भी रचनाएँ, वार्ता आदि का  प्रसारण होता रहता है। 

ब्लॉग लेखन में सक्रिय :
स्त्री चेतना, समानता, न्याय और सामाजिक सरोकारों से जुड़ीं आकांक्षा यादव अग्रणी ब्लॉगर भी हैं। नवम्बर 2008 से हिंदी ब्लॉगिंग में सक्रिय हैं। व्यक्तिगत रूप से ‘शब्द-शिखर’ और युगल रूप में ‘बाल-दुनिया’, ‘सप्तरंगी प्रेम’ व ‘उत्सव के रंग’ ब्लॉगों का संचालन इनके द्वारा किया जाता है। जर्मनी के बॉन शहर में ग्लोबल मीडिया फोरम (2015) के दौरान 'पीपुल्स चॉइस अवॉर्ड' श्रेणी में  इनके ब्लॉग 'शब्द-शिखर' (http://shabdshikhar.blogspot.com) को हिंदी के सबसे लोकप्रिय ब्लॉग के रूप में भी सम्मानित किया जा चुका है। ’’दशक के श्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगर दंपती’’ सम्मान के अलावा  अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लॉगर सम्मेलन, काठमांडू में ’’परिकल्पना ब्लाग विभूषण’’ सम्मान और  अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्री लंका में ’’परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान’’ से सम्मानित हो चुकी  हैं। 


प्रतिभा का सम्मान :
विभिन्न प्रतिष्ठित सामाजिक, साहित्यिक संस्थाओं द्वारा विशिष्ट कृतित्व, रचनाधर्मिता और सतत् साहित्य सृजनशीलता के लिए आकांक्षा यादव को पचास से अधिक सम्मान और मानद उपाधियाँ प्राप्त हैं। इनमें उ.प्र. के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव द्वारा ’’अवध सम्मान’’, विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार द्वारा डाक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की मानद उपाधि, भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘’डॉ. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान‘‘, ‘‘वीरांगना सावित्रीबाई फुले फेलोशिप सम्मान‘‘ व ’’भगवान बुद्ध राष्ट्रीय फेलोशिप अवार्ड’’, साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, राजस्थान द्वारा ”हिंदी भाषा भूषण”, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ‘‘भारती ज्योति‘‘, ‘‘एस.एम.एस.‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार, निराला स्मृति संस्थान, रायबरेली द्वारा ‘‘मनोहरा देवी सम्मान‘‘, मौन तीर्थ सेवा फाउंडेशन, उज्जैन द्वारा "मानसश्री सम्मान", साहित्य भूषण सम्मान, भाषा भारती रत्न, राष्ट्रीय भाषा रत्न सम्मान, साहित्य गौरव सहित तमाम  सम्मान शामिल हैं।

लेखनी से कुप्रथाओं पर चोट :
आकांक्षा यादव की सृजनधर्मिता सिर्फ पन्नों तक सीमित  नहीं है, बल्कि इसने लोगों के जीवन को भी छुआ है। लेखनी से कुप्रथाओं पर चोट के साथ नए विचार भी दिए। बिना लाग-लपेट के सुलभ भाव-भंगिमा सहित जीवन के कठोर सत्य उभरें, यही इनकी  लेखनी की विशिष्टता है। 

लखनऊ का अहम स्थान :
वह कहती हैं, लखनऊ का मेरी जिंदगी में अहम स्थान है। नवंबर 2004 में शादी के बाद लखनऊ आना हुआ।  पति कृष्ण कुमार यादव लखनऊ में ही डाक विभाग में कार्यरत थे। लिखने-पढ़ने का शौक तो पहले से ही था, पर बात कभी डायरी के पन्नों से आगे नहीं बढ़ी। संयोगवश, पति कृष्ण कुमार अच्छे साहित्यकार भी हैं, ऐसे में जोड़ी अच्छी जमी। लखनऊ तो शुरू से ही साहित्य और संस्कृति का केंद्र रहा है, ऐसे में यहाँ का प्रभाव पड़ना लाजिमी भी था। लखनऊ में रहते हुए ही मेरी आरम्भिक कविताएँ दैनिक जागरण, कादम्बिनी, गृह शोभा इत्यादि में प्रकाशित हुईं और फिर तो ये सिलसिला बढ़ता गया। 

भावों और विचारों का वैविध्य, विभिन्न विधाओं में लेखन के साथ अग्रणी ब्लॉगर भी 
शब्दों में भावों की आकांक्षा 

("कलम और कला" के अंतर्गत प्रतिष्ठित अख़बार 'दैनिक जागरण', 9 मार्च 2019  में चर्चा) 

मंगलवार, 1 मई 2018

क्या वाकई श्रमिक दिवस को ये महिलाएँ सेलिब्रेट करती होंगी...

क्या वाकई श्रमिक दिवस को ये महिलाएँ सेलिब्रेट करती होंगी। सिर्फ महिलाएँ ही क्यों हमारे आस-पास काम करते बाल श्रमिक से लेकर पुरुष श्रमिक तक क्या इस खास दिवस का कोई लुत्फ़ उठा पाते होंगे। 

क्या जितनी कवायद इस दिन अख़बारों के पन्ने भरने से लेकर इलेक्ट्रानिक मीडिया या सोशल मीडिया तक पर होती है, उसका एक भी अंश इन मजदूरों/ श्रमिकों के पास पहुँचता होगा। 

....... किसी कवि की पंक्तियाँ याद आ रही हैं-

मजदूर दिवस की छुट्टी मुबारक,
आप घर पर हैं और मजदूर काम पर.

बुधवार, 7 मार्च 2018

महिलाओं के सपनों को पंख लगा दिए फ्लाइंग ऑफिसर अवनी चतुर्वेदी ने

देश में महिलाओं का कद आसमान छू रहा है। अकेले फाइटर प्लेन उड़ाकर भारतीय वायुसेना की फ्लाइंग ऑफिसर अवनी चतुर्वेदी ने महिलाओं के सपने को पंख लगा दिए हैं। अकेले मिग-21 फाइटर प्लेन उड़ाने वाली अवनी देश की पहली महिला बन गईं हैं। अवनी ने यह इतिहास 19 फरवरी, 2018  की सुबह ही रच दिया। अवनी ने गुजरात के जामनगर एयरबेस से उड़ान भरी और सफलतापूर्वक अपना मिशन पूरा किया। यह भारतीय वायुसेना और पूरे देश के लिए एक विशेष उपलब्धि है।' दुनिया के चुनिंदा देशों जैसे ब्रिटेन, अमेरिका, इजरायल और पाकिस्तान में ही महिलाएं फाइटर पायलट बन सकीं हैं। 
अवनी चतुर्वेदी के इस मिशन से पहले ही पूरी तरह मिग-21 बाइसन एयरक्राफ्ट की जांच की। जिस समय अवनी मिग में सवार हुई अनुभवी फ्लायर्स और प्रशिक्षकों ने जामनगर एयरबेस के एयर ट्रैफिक कंट्रोल और रन-वे पर अपनी आंख गड़ाए रखी। 2016 में ही तीन भारतीय महिलाएं फाइटर पायलट बनने के अपने उद्देश्य पर निकली थीं। फाइटर पायलट बनने वाली यह महिला अधिकारी अवनी चतुर्वेदी, मोहना सिंह और भावना को वायुसेना में कमिशन किया गया था। अवनी का यह प्रयास इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि 'बाइसन' की तकनीकि लैंडिंग और टेक-ऑफ में काफी स्पीड रखती हैं। 

भारत में अक्टूबर 2015 में सरकार ने महिलाओं के फाइटर पायलट बनने की राह प्रशस्त कर दी थी। जिसके बाद अवनी, मोहना और भावना ने वो सीखा जिससे देश में महिलाओं की साख यकीनन आसमान छू रही है। 

मंगलवार, 6 मार्च 2018

पाकिस्तान में पहली हिन्दू दलित महिला सांसद बनीं कृष्णा कुमारी कोलही

पाकिस्तान में एक हिन्दू दलित किसान की बेटी ने उच्च सदन में सीनेटर (राज्य सभा सदस्य) का चुनाव जीतकर इतिहास रच दिया है। सिंध प्रान्त के थार में रहने वाली 39 वर्षीया कृष्णा कुमारी कोलही पाकिस्तानी संसद में चुने जाने वाली पहली हिन्दू-दलित महिला बनी हैं। कृष्णा बिलावल भुट्टो जरदारी के नेतृत्व वाले पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी की तरफ से चुनी गई हैं। पीपीपी ने कोलही  को सिंध की अल्पसंख्यक आरक्षित सीट से टिकट दिया था, जिस पर वह सांसद चुनी गईं। उनका चुना जाना पाकिस्तान में महिलाओं और अल्पसंख्यक अधिकारों के लिए एक महत्वपूर्ण मील के पत्थर का प्रतिनिधित्व करता है। 

कृष्णा कुमारी कोलही  सिंध प्रांत के नागरपारकर जिले के दूर-दराज के एक गांव से ताल्लुक रखती हैं। गरीब किसान जुग्नो कोल्ही के यहां फरवरी 1979 में जन्मी कोलही और उनके परिवार के लोगों को उमरकोट जिले के कुनरी के जमीदार के निजी जेल में करीब तीन साल गुजारने  पड़े थे। जब वह बंदी बनाई गई थीं तब कक्षा  3 की छात्रा थीं। 16 वर्ष की उम्र में जब वह 9वीं कक्षा  में पढ़ रही थीं तब लालचंद नाम के शख्स के साथ उनकी शादी हो गई। हालांकि उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और सिंध विश्वविद्यालय से 2013 में समाजशास्त्र विषय में मास्टर डिग्री की। उन्होंने अपने भाई के साथ एक सामाजिक कार्यकर्ता के तौर पर पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी को ज्वाइन किया था, जो कि बाद में यूनियन काउंसिल बेरानो के  चेयरमैन चुने गए। 

कृष्णा कुमारी कोलही ने थार और अन्य जगहों पर हाशिये पर रहने वाले दलित समुदाय के लोगों के अधिकारों के लिए सक्रिय तौर पर काम किया। वह बहादुर स्वतंत्रता सेनानी रूपलो कोल्ही के परिवार से हैं, जिन्होंने 1857 में नागरपारकर से सिंध में आक्रमणकारी ब्रिटिश उपनिवेशवादी बलों के हमला करने पर उनके खिलाफ युद्ध किया था। इसके बाद, 22 अगस्त 1858 को उन्हें अंग्रेजों के द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी दे दी गई थी।

गौरतलब है कि पाकिस्तान की ‘पहली महिला हिन्दू’ मेंबर ऑफ़ नेशनल एसेंबली (लोकसभा सांसद) रीता ईश्वर लाल हैं, जो 2013 में महिलाओं के लिए रिज़र्व सिंध की NA-319 सीट से चुनी गईं। रत्ना भगवान दास चावला पाकिस्तान की पहली महिला हिन्दू सीनेटर (2006-2012) रह चुकी हैं पर वे दलित हिन्दू नहीं थीं।  इन्हें भी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी  ने ही सीनेटर बनाया था। 

गुरुवार, 21 दिसंबर 2017

आकांक्षा यादव को मौन तीर्थ सेवार्थ फाउण्डेशन, उज्जैन द्वारा मानसश्री सम्मान

हिंदी साहित्य और लेखन के क्षेत्र में उत्कृष्ट सेवाओं के लिए युवा साहित्यकार व ब्लॉगर सुश्री आकांक्षा यादव को मौन तीर्थ सेवार्थ फाउण्डेशन, उज्जैन द्वारा "मानसश्री  सम्मान -2017" से सम्मानित किया गया। उन्हें सम्मानस्वरुप स्मृति चिन्ह, प्रशस्ति पत्र, शाल और पाँच हजार एक सौ रूपये की राशि दी गई।  
सामाजिक और साहित्यिक विषयों के साथ-साथ नारी-सशक्तिकरण पर प्रभावी लेखन करने वाली  आकांक्षा यादव  की  तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।  प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में लेखन के साथ वे ब्लॉग और सोशल मीडिया के माध्यम से भी अपनी रचनाधर्मिता को प्रस्फुटित करते हुये व्यापक पहचान बना चुकी  हैं। भारत के अलावा जर्मनी, श्रीलंका और नेपाल इत्यादि देशों में भी सम्मानित हो चुकी हैं। आकांक्षा यादव राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर के निदेशक डाक सेवाएँ श्री कृष्ण कुमार यादव की पत्नी हैं, जो कि स्वयं चर्चित साहित्यकार और ब्लॉगर हैं।  
इससे पूर्व भी उत्कृष्ट साहित्य लेखन हेतु आकांक्षा  यादव को राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पचास से अधिक सम्मानों से विभूषित किया जा चुका है। इनमें उ.प्र. के मुख्यमंत्री  द्वारा ’’अवध सम्मान’’,  विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, भागलपुर, बिहार द्वारा डाक्टरेट (विद्यावाचस्पति) की मानद उपाधि, भारतीय दलित साहित्य अकादमी द्वारा ‘’डॉ. अम्बेडकर फेलोशिप राष्ट्रीय सम्मान‘‘, साहित्य मंडल, श्रीनाथद्वारा, राजस्थान द्वारा ”हिंदी भाषा भूषण”, राष्ट्रीय राजभाषा पीठ इलाहाबाद द्वारा ‘‘भारती ज्योति‘‘, ’’दशक के श्रेष्ठ हिन्दी ब्लॉगर दम्पति’’ सम्मान, अन्तर्राष्ट्रीय हिंदी ब्लॉगर सम्मेलन, काठमांडू में ’’परिकल्पना ब्लाग विभूषण’’ सम्मान,  अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्री लंका में ’’परिकल्पना सार्क शिखर सम्मान’’,  ‘‘एस.एम.एस.‘‘ कविता पर प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली द्वारा पुरस्कार, निराला स्मृति संस्थान, रायबरेली द्वारा ‘‘मनोहरा देवी सम्मान‘‘, साहित्य भूषण सम्मान, भाषा भारती रत्न, राष्ट्रीय भाषा रत्न सम्मान, साहित्य गौरव इत्यादि शामिल हैं।
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सोमवार, 20 नवंबर 2017

भारत की मानुषी छिल्लर बनीं मिस वर्ल्ड 2017, भारत के पास 17 साल बाद आया यह खिताब

भारत की सुंदरियों ने दुनिया में एक बार फिर अपनी खूबसूरती का लोहा मनवा लिया है। चीन के सनाया में आयोजित की गई मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में भारत की मिस इंडिया मानुषी छिल्लर को मिस वर्ल्ड 2017 घोषित किया गया। इस प्रतियोगिता में दुनियाभर की 118 सुंदरियों ने हिस्सा लिया था जिसमें मानुषी ने सभी को पीछे छोड़ते हुए मिस वर्ल्ड का खिताब जीता। इस प्रतियोगिता में दूसरे नंबर पर मिस मेक्सिको रहीं जबकि तीसरे नंबर पर मिस इंग्लैंड रहीं है। 20 साल की मानुषी छिल्लर 67वीं मिस वर्ल्ड हैं। 
हरियाणा के सोनीपत की रहने वाली मानुषी  मेडिकल की छात्रा  हैं और कार्डिएक सर्जन बनना चाहती हैं। दिल्ली के सेंट थॉमस स्कूल से  पढ़ाई करने वाली मानुषी सोनीपत के भगत फूल सिंह गवर्नमेंट मेडिकल कॉलेज फॉर वूमन से पढ़ाई कर रही हैं। मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता में हिस्सा लेने ले लिए नाम देते वक्त मानुषी मेडिसिन एंड सर्जरी में अपनी डिग्री पूरी कर रही थीं। मानुषी के पिता डॉ मित्रा बसु छिल्लर डीआरडीओ में वैज्ञानिक हैं और  मां नीलम छिल्लर इंस्टीट्यूट ऑफ ह्मूमन बिहेवियर एंड एलीड साइंस के डिपार्टमेंट की हेड हैं। 
मानुषी ने जाने माने डांसर राजा और राधा रेड्डी से कुचिपुड़ी डांस की ट्रेनिंग ली हुई है। छिल्लर ने नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा से भी ट्रेनिंग ली है, उन्हें खाली वक्त में पैराग्लाइडिंग, बंजी जंपिंग और स्कूबा डाइविंग जैसे स्पोर्ट्सपसंद है। छिल्लर को कविता और चित्रकारी का भी शौक है। मानुषी की इंग्लिश काफी अच्छी है, 12वीं क्लास में वह इंग्लिश में ऑल इंडिया सीबीएसई टॉपर थीं।

 मिस इंडिया मानुषी छिल्लर से फाइनल राउंड में जूरी ने सवाल पूछा था कि किस प्रोफेशन में सबसे ज्यादा सैलरी मिलनी चाहिए और क्यों? इसके जवाब में मानुषी ने कहा, 'मां को सबसे ज्यादा सम्मान मिलना चाहिए। इसके लिए उन्हें कैश में सैलरी नहीं बल्कि सम्मान और प्यार मिलना चाहिए।' 
किसी भी एशियन महिला ने वर्ष  1966 तक मिस वर्ल्ड का खिताब नहीं जीता था। 1966 में  रीता फारिया भारत से पहली मिस वर्ल्ड बनीं थीं। उसके बाद ऐश्वर्या राय ने 1994, डायना हेडन ने 1997 में, युक्ता मुखी ने 1999 में और प्रियंका चोपड़ा ने साल 2000 में मिस वर्ल्ड का खिताब जीता था।  मानुषी छिल्लर से पहले वर्ष 2000 में बॉलिवुड और हॉलिवुड की सफल अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा भारत की तरफ से मिस वर्ल्ड बनीं थी। 
मिस वर्ल्ड बनना मानुषी के बचपन का सपना था। एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा, 'बचपन में, मैं हमेशा से इस कॉम्पिटिशन में हिस्सा लेना चाहती थी और मुझे यह कभी नहीं पता था कि मैं यहां तक पहुंच जाऊंगी। अब मिस वर्ल्ड का खिताब जीतना केवल मेरा ही नहीं बल्कि मेरे परिवार और दोस्तों का भी सपना बन गया था।' मिस वर्ल्ड में जाने से पहले मानुषी समाजसेवा के कार्यों से भी जुड़ी रही हैं। उन्होंने महिलाओं की माहवारी के दौरान हाइजीन से संबंधित एक कैंपेन में करीब 5,000 महिलाओं को जागरूक किया है। 

यह भी सोचने वाली बात  है कि मिस वर्ल्ड मानुषी उसी हरियाणा राज्य से हैं, जहाँ बेटियों के प्रति भेदभाव की स्थिति चलते लिंगानुपात चिंता का विषय है। पर उसी हरियाणा की बेटियाँ आज दुनिया भर में खेलों से लेकर सौंदर्य के क्षेत्र में अपना परचम फहरा रही हैं। आशा की जानी चाहिए कि इससे हरियाणा जैसे  राज्यों में बेटियों के प्रति लोगों के दृष्टिकोण में भी परिवर्तन आएगा।