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शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

फिर से हाज़िर...

लीजिए जी, हमारा जन्मदिन फिर से हाज़िर हो गया. कल 30 जुलाई को हम अपना जन्म-दिन सेलिब्रेट करेंगें. वैसे, अभी तो पिछले साल ही मनाया था, पर यह तो पीछा ही नहीं छोड़ता. हर साल आ जाता है यह बताने के लिए आपकी उम्र एक साल और कम हो गई. फिर से मजबूर कर देता है पीछे मुड़कर देखने के लिए कि इस एक साल में क्या खोया-क्या पाया ? फ़िलहाल हमारी छोटी बिटिया तान्या (तन्वी, आइमा, अस्मिता भी कहते हैं...) पहली बार हमारे जन्म-दिन पर शरीक हो रही हैं. अच्छा लगता है उसका बचपना. अभी तो 27 जुलाई को 9 माह की हुई है. अभी तो सारा समय उसी के साथ निकल जाता है. कुछ ज्यादा लिखना-पढना भी नहीं हो पा रहा है. इस बीच यह प्रयास जरूर रहा है कि बाल-गीतों पर मेरी पहली पुस्तक शीघ्र प्रकाशित होकर हाथ में आ जाए. इस बीच हमारे (आकांक्षा-कृष्ण कुमार) व्यक्तित्व-कृतित्व पर भी एक प्रकाशन ने पुस्तक जारी करने की योजना बनाई है. वह भी कार्य प्रगति पर है.

...कल हमारा जन्म-दिन है. सबसे अच्छी बात यह है कि शनिवार के चलते कृष्ण कुमार जी का आफिस नहीं है और बिटिया पाखी का स्कूल भी बंद है. अंडमान में बारिश भी जोरों पर है, सो बाहर किसी द्वीप पर निकलने का भी स्कोप नहीं है. तो फिर पोर्टब्लेयर में ही जन्म-दिन सेलिब्रेट करेंगें...घूमेंगें-फिरेंगें, पार्टी करेंगें, केक काटेंगें और सपरिवार मस्ती करेंगें.
ब्लागिंग जगत में आप सभी के स्नेह से सदैव अभिभूत रही हूँ. जीवन के हर पड़ाव पर आप सभी की शुभकामनायें और स्नेह की धार बनी रहेगी, इसी विश्वास के साथ.... !!

शुक्रवार, 24 जून 2011

भारत में एक द्वीप सिर्फ तोतों के लिए

अंडमान में बहुत सी ऐसी चीजें हैं, जो प्राय: बहुत कम ही लोगों को पता होती हैं. इन्हीं में से एक है-पैरट-आइलैंड. पोर्टब्लेयर से बाराटांग की यात्रा में बहुत कुछ देखने को मिलता है. रास्ते में पाषाण कालीन सभ्यता में रह रहे तीर-धनुष से लैस जारवा आदिवासी, बाराटांग में कीचड़ के ज्वालामुखी, लाइम स्टोन केव. चारों तरफ घने वृक्षों से आच्छादित हरे-भरे जंगल और समुद्र की अठखेलियाँ. समुद्र का सीना चीरते हमारी स्टीमर-बोट शाम को साढ़े चार बजे आगे बढती है, साथ में मेरा परिवार और कुछेक स्टाफ के लोग.


मैन्ग्रोव-क्रीक के बीच से गुजरते हुए शाम की समुद्री हवाएँ ठण्ड का अहसास कराती हैं. जैसे-जैसे हम आगे बढ़ते हैं, आस-पास दसियों छोटे-छोटे द्वीप दिखने लगते हैं. मौसम सुहाना सा हो चला है. गंतव्य नजदीक है. आखिर हम पैरट-आइलैंड के करीब पहुँच ही जाते हैं. बोट को धीमे-धीमे वह किनारे लगाता है. उतरने की कोई जगह नहीं, बोट में बैठकर ही नजारा लेना है.



बिटिया पाखी चारों तरफ टक-टकी सी निगाह लगाए हुए है. बार-बार पूछती है कि तोते कब दिखेंगें. कानपुर में हमारे आवास-प्रांगन में एक विशाल वट वृक्ष था, शाम को उस पर अक्सर ढेर सारे तोते आते थे. तोतों की टें-टें सुनना मनोरंजक लगता था.



...चारों तरफ ठहरी हुई शांति, समुद्र भी मानो थक कर आराम कर रहो हो. एक-दो मछुहारे नाव के साथ मछली पकड़ते दिख जाते हैं. अचानक एक चीख सी पूरे माहौल का सन्नाटा तोड़ती है. हम चौंकते हैं कि क्या हुआ ? नाविक ने बताया कि जंगल में किसी ने हिरण का शिकार कर पकड़ लिया है. यद्यपि यहाँ हिरण को मारना जुर्म है, पर ये तथाकथित शिकारी जंगलों में कुत्तों के साथ जाते हैं और कुत्ते दौड़कर हिरण को पकड़ लेते हैं. अंडमान में अवैध रूप से हिरण के मांस की बिक्री कई बार सुनने को मिलती है. यह भी एक अजीब बात है की यहाँ के आदिवासी हिरणों को पवित्र आत्मा मानते हैं और उनका शिकार नहीं करते, पर बाहर से आकर बसे लोग हिरणों के शिकार में अवैध रूप से लिप्त हैं.



पैरट आईलैंड वास्तव में समुद्र के बीच मैंग्रोव की झाड़ियों पर अवस्थित है. यहाँ कोई जमीन नहीं, इसीलिए चाहकर भी बोट से नहीं उतर सकते. इन मैंग्रोव की झाड़ियों को तोतों ने कुतर-कुतर कर सम बना दिया है, ताकि उन्हें किसी प्रकार की असुविधा न हो. दूर से देखने पर यह हरे रंग का गलीचा लगता है. न तो एक पत्ती ऊपर, न एक पत्ती नीचे. वाकई, प्रकृति का अद्भुत नजारा.

...तभी एक तोते की टें-टें सुनाई दी. वह चारों तरफ एक चक्कर मरता है, फिर आवाज़ देता है-टें-टें. यह इशारा था सभी तोतों को बुलाने का. तभी दूसरी दिशा से आते दो तोते दिखाई दिए..टें-टें. फिर तो देखते ही देखते चारों तरफ से तोतों का झुण्ड दिखने लगा. बमुश्किल 15 मिनट के भीतर हजारों तोते आसमान में दिखने लगे. आसमान में कलाबाजियाँ करते, विभिन्न तरह की आकृति बनाते, एक झुण्ड से दुसरे झुण्ड में मिलते और फिर बड़ा झुण्ड बनाते तोते मानो अपनी एकता और कला का जीवंत प्रदर्शन कर रहे हों.

सबसे बड़ा अजूबा तो यह था कि कोई भी तोता मैंग्रोव पर नहीं बैठता, बस उसके चारों तरफ चक्कर लगाता और फिर आसमान में कलाबाजियाँ, मानो सब एक अनुशासन से बंधे हुए हों...और देखते ही देखते सारे तोते मैंग्रोव की झाड़ियों पर उतर गए. हरे रंग के मैंग्रोव पर हरे -हरे तोते, सब एकाकार से हो गए थे. चूँकि हमने उन्हें वहाँ उतरते देखा था, अत: उनकी उपस्थिति का भान हो रहा था. कोई सोच भी नहीं सकता कि मैंग्रोव की इन झाड़ियों पर हजारों तोते उपस्थित हैं. न जाने कितने द्वीपों से और दूर-दूर से ये तोते आते हैं और पूरी रात एक साथ बिताने के बाद फिर अगली सुबह मोती की तरह बिखरे द्वीपों की सैर पर निकल जाते हैं.

-कृष्ण कुमार यादव

सोमवार, 2 मई 2011

हिंदी ब्लागिंग से आशाएं बढ़ा गया दिल्ली में हुआ ब्लागर्स सम्मलेन

ब्लागिंग को एक स्वतंत्र विधा के रूप में स्थापित करने में तमाम प्रक्रियाएं परिलक्षित हो रही हैं, इसी क्रम में हिंदी ब्लागिंग ने भी वर्ष 2003 में आरंभ होकर लगभग 8 वर्ष का सफ़र पूरा कार लिया है. आज 30,000 से ज्यादा लोग हिंदी ब्लागिंग से जुड़े हुए हैं. इनमें प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रानिक मीडिया से लेकर समाज के हर वर्ग, पेशे से जुड़े लोग अपनी भावनाओं को न सिर्फ चिट्ठों पर अभिव्यक्त कर रहे हैं, बल्कि उसे लोगों के साथ बाकायदा साझा करके नए विमर्शों को भी जन्म दे रहे हैं. ब्लागिंग और सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट्स का क्रेज इतना बढ़ चुका है कि वह तमाम देशों में चल रहे क्रांति और आंदोलनों को भी गंभीर धार दे रही है. हाल ही में भारत में अन्ना हजारे के आन्दोलन के दौरान भी इसकी प्रखर भूमिका देखने को मिली. ऐसे में ब्लागिंग से जुड़ा कोई भी कार्यक्रम अपने आप में महत्वपूर्ण हो जाता है.



हिंदी साहित्य निकेतन की स्वर्ण जयंती पर हिंदी साहित्‍य निकेतन, परिकल्‍पना डॉट कॉम और नुक्‍कड़ डॉट कॉम की त्रिवेणी द्वारा हिंदी भवन, नई दिल्ली में 30 अप्रैल, 2011 को आयोजित कार्यक्रम को इसी सन्दर्भ में देखा जाना चाहिए. बतौर मुख्यमंत्री उत्‍तराखंड के मुख्‍यमंत्री डा0 रमेश पोखरियाल ‘निशंक’ ने जब अपने उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि, हिंदी भाषा जब चहुं ओर से तमाम थपेड़े खा रही हो, अपने ही घर में अपमानित हो रही हो और हिंदी में सृजन करने वाला अपने आप को उपेक्षित महसूस कर रहा हो, ऐसे में इस प्रकार के कार्यक्रम की प्रासंगिकता और बढ़ जाती है, तो मुख्यमंत्री से परे वे एक साहित्यकार के रूप में ही अपना दुःख व्यक्त कर रहे थे. आखिर वे भी साहित्य में उसी भावभूमि के पोषक हैं, जिसका मानना है कि, कल्‍पना स्‍वर्ग की तरंगों का अहसास कराती है, वहीं सृजन हमारे सामाजिक सरोकार को मजबूती देता है। ऐसे में एक प्रभावी मंच से निशंक जी ने उक्त उद्गार व्यक्त कर हिंदी ब्लागिंग से नई आशाएं भी व्यक्त की हैं, जिनका कि सम्मान किया जाना चाहिए.




इस अवसर पर अविनाश वाचस्‍पति और रवीन्‍द्र प्रभात द्वारा संपादित हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग की पहली मूल्‍यांकनपरक पुस्‍तक ‘हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग : अभिव्‍यक्ति की नई क्रांति’, का लोकार्पण जहाँ हिंदी ब्लागिंग को नए आयाम दिखता है, वहीँ यह भी सचेत करता है कि अभिव्यक्ति की इस नई क्रांति को अपने दलदलों से भी बचकर रहना होगा. क्योंकि इस विधा के उन्नयन के साथ ही इस पर हमले भी तेज हो रहे हैं. फ़िलहाल रवीन्द्र प्रभात जी की पुस्तक ''हिंदी ब्लागिंग का इतिहास'' का भी लोगों को इंतजार बना रहेगा, जिसके इस कार्यक्रम में दिखने की सम्भावना थी.



दो सत्रों में संपन्‍न इस कार्यक्रम का सशक्त पक्ष रहा, परिकल्‍पना डॉट कॉम की ओर से देश विदेश के 51 चर्चित और श्रेष्‍ठ तथा नुक्‍कड़ डॉट कॉम की ओर से हिंदी ब्‍लॉगिंग में विशिष्‍टता हासिल करने वाले 13 ब्‍लॉगरों को सारस्‍वत सम्‍मान प्रदान किया जाना. इससे यह कार्यक्रम और भी समावेशी और भागीदारीपूर्ण हो गया. जहाँ पहले सत्र की अध्‍यक्षता हास्‍य व्‍यंग्‍य के लोकप्रिय हस्‍ताक्षर एवं चर्चित ब्लागर अशोक चक्रधर ने की वहीँ मुख्‍य अतिथि का गुरुतर दायित्व संभाला वरिष्‍ठ साहित्‍यकार डॉ. रामदरश मिश्र ने और विशिष्‍ट अतिथि रहे प्रभाकर श्रोत्रिय। प्रमुख समाजसेवी विश्‍वबंधु गुप्‍ता और डायमंड बुक्‍स के संचालक नरेन्‍द्र कुमार वर्मा ने भी मंचासीन होकर कार्यक्रम की शोभा बढाई.



इस अवसर पर ब्लागिंग के बारे में भी गंभीर विमर्श हुआ. बकौल अशोक चक्रधर -''हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग ने सचमुच समाज में एक नई क्रांति का सूत्रपात किया है क्‍योंकि पत्रिकाओं और समाचार पत्रों में साहित्‍य और संस्‍कृति के पेज संकुचित होते जा रहे हैं और उनकी अभिव्‍यक्ति को धार दे रही है हिन्‍दी ब्‍लॅगिंग। ऐसे कार्यक्रमों से निश्चित रूप से हिंदी का विकास होगा और हिन्‍दी अंतरराष्‍ट्रीय फलक पर अग्रणी भाषा के रूप में प्रतिस्‍थापित होगी।'' वहीँ डॉ. रामदरश मिश्र इस विधा के प्रति आशान्वित होते दिखे-''जब मैंने साहित्य सृजन करना शुरु किया था तो मैं यह महसूस करता था कि कलम सोचती है और आज़ हिन्दी ब्लोगिंग के इस महत्वपूर्ण दौर मे यह कहने पर विवश हो गया हूँ कि उंगलिया भी सोचती है।'' हिंदी के प्रखर साहित्यकार प्रभाकर श्रोत्रिय ने तो अभिव्यक्ति के इस नए माध्यम 'ब्लागिंग' को वर्तमान परिवेश और घटना क्रम में लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति से जोड़कर देखा और कहा कि हिंदी ब्लॉगिंग का तेजी से विकास हो रहा है, तमाम साधन और सूचना की न्यूनता के बावजूद यह माध्यम प्रगति पथ पर तीब्र गति से अग्रसर है, तकनीक और विचारों का यह साझा मंच कुछ बेहतर करने हेतु प्रतिबद्ध दिखाई दे रहा है । पूरे विमर्श के दौरान यह बात खुलकर सामने आई कि, हिंदी ब्‍लॉगिंग में सामाजिक स्‍वर और सरोकार पूरी तरह परिलक्षित हो रहा है। कई ऐसे ब्‍लॉगर हैं जो सामाजिक जनचेतना को हिंदी ब्‍लॉगिंग से जोड़ने का महत्‍वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। वस्तुत: यह दुनिया विचारों की दुनिया है और सभी ब्लागर्स की कोशिश होनी चाहिए कि विचार शून्य में नहीं, बल्कि आम आदमी से जुड़कर आगे आएं।

इस कार्यक्रम के लिए परिकल्पना और ब्लागोत्सव जैसी कल्पनाओं को मूर्त रूप देकर 'अनेक ब्लॉग नेक हृदय' की बात कहने वाले लखनऊ शहर के ब्लागर रवीन्द्र प्रभात और नुक्कड़ सहित तमाम ब्लॉगों के कर्ता-धर्ता अविनाश वाचस्पति और हिंदी साहित्य निकेतन के मालिक और 'शोध-दिशा' पत्रिका के संपादक डा. गिरिजा शरण अग्रवाल सहित उनकी पूरी टीम को साधुवाद ! आशा की जानी चाहिए कि इस तरह के कार्यक्रम/सम्मलेन भविष्य में भी होते रहेंगें और हिंदी ब्लागिंग को नए आयामों के साथ नई दिशा भी दिखाएंगें !!

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इस अवसर पर हिन्दी ब्लॉगिंग के उत्‍थान में अविस्मरणीय योगदान हेतु 51 हिंदी ब्लॉगरों को ''हिंदी साहित्य निकेतन परिकल्पना सम्मान-2010'' से सम्मानित किया गया, जिसके अंतर्गत स्मृति चिन्ह, सम्मान पत्र, पुस्तकें और एक निश्चित धनराशि भी दी गई.

1. वर्ष का श्रेष्ठ नन्हा ब्लॉगर – अक्षिता (पाखी), पोर्टब्लेयर
2. वर्ष के श्रेष्ठ कार्टूनिस्ट – श्री काजल कुमार, दिल्ली
3. वर्ष की श्रेष्ठ कथा लेखिका – श्रीमती निर्मला कपिला, नांगल (पंजाब)
4. वर्ष के श्रेष्ठ विज्ञान कथा लेखक – डॉ. अरविन्द मिश्र, वाराणसी
5. वर्ष की श्रेष्ठ संस्मरण लेखिका – श्रीमती सरस्वती प्रसाद, पुणे
6. वर्ष के श्रेष्ठ लेखक – श्री रवि रतलामी, भोपाल
7. वर्ष की श्रेष्ठ लेखिका (यात्रा वृतान्त) – श्रीमती शिखा वार्ष्णेय, लंदन
8. वर्ष के श्रेष्ठ लेखक (यात्रा वृतान्त) – श्री मनोज कुमार, कोलकाता
9. वर्ष के श्रेष्ठ चित्रकार – श्रीमती अल्पना देशपांडे, रायपुर
10. वर्ष के श्रेष्ठ हिन्दी प्रचारक – श्री शास्त्री जे.सी. फिलिप, कोच्ची, केरल
11. वर्ष की श्रेष्ठ कवयित्री – श्रीमती रश्मि प्रभा, पुणे
12. वर्ष के श्रेष्ठ कवि – श्री दिवि‍क रमेश, दिल्ली
13. वर्ष की श्रेष्ठ सह लेखिका – सुश्री शमा कश्यप, पुणे
14. वर्ष के श्रेष्ठ व्यंग्यकार – श्री अविनाश वाचस्पति, दिल्ली
15. वर्ष की श्रेष्ठ युवा गायिका – सुश्री मालविका, बैंगलोर
16. वर्ष के श्रेष्ठ क्षेत्रीय लेखक – श्री संजीव तिवारी, दुर्ग (म.प्र.)
17. वर्ष के श्रेष्ठ क्षेत्रीय कवि – श्री एम. वर्मा, वाराणसी
18. वर्ष के श्रेष्ठ गजलकार – श्री दिगम्बर नासवा, दुबई
19. वर्ष के श्रेष्ठ कवि (वाचन) – श्री अनुराग शर्मा, पिट्सबर्ग अमेरिका
20. वर्ष की श्रेष्ठ परिचर्चा लेखिका – श्रीमती प्रीति मेहता, सूरत
21. वर्ष के श्रेष्ठ परिचर्चा लेखक – श्री दीपक मशाल, लंदन
22. वर्ष की श्रेष्ठ महिला टिप्पणीकार – श्रीमती संगीता स्वरूप, दिल्ली
23. वर्ष के श्रेष्ठ टिप्पणीकार – श्री हिमांशु पाण्डेय, सकलडीहा (यू.पी.)
24-25-26. वर्ष की श्रेष्ठ उदीयमान गायिका – खुशबू/अपराजिता/इशिता, पटना (संयुक्त रूप से)
27. वर्ष के श्रेष्ठ बाल साहित्यकार – श्री जाकिर अली ‘रजनीश’, लखनऊ
28. वर्ष के श्रेष्ठ गीतकार (आंचलिक) – श्री ललित शर्मा, रायपुर
29. वर्ष के श्रेष्ठ गीतकार (गायन) – श्री राजेन्द्र स्वर्णकार, बीकानेर, राजस्थान
30-31. वर्ष के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार – डॉ. रूपचंद्र शास्त्री ‘मयंक’, खटीमा एवं आचार्य संजीव वर्मा सलिल, भोपाल (संयुक्त रूप से)
32. वर्ष की श्रेष्ठ देशभक्ति पोस्ट – कारगिल के शहीदों के प्रति ( श्री पवन चंदन)
33. वर्ष की श्रेष्ठ व्यंग्य पोस्ट – झोलाछाप डॉक्टर (श्री राजीव तनेजा)
34. वर्ष के श्रेष्ठ युवा कवि – श्री ओम आर्य, सीतामढ़ी बिहार
35. वर्ष के श्रेष्ठ विचारक – श्री जी.के. अवधिया, रायपुर
36. वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग विचारक – श्री गिरीश पंकज, रायपुर
37. वर्ष की श्रेष्ठ महिला चिन्तक – श्रीमती नीलम प्रभा, पटना
38. वर्ष के श्रेष्ठ सहयोगी – श्री रणधीर सिंह सुमन, बाराबंकी
39. वर्ष के श्रेष्ठ सकारात्मक ब्लॉगर (पुरूष) – डॉ. सुभाष राय, लखनऊ (उ0प्र0)
40. वर्ष की श्रेष्ठ सकारात्मक ब्लॉगर (महिला) – श्रीमती संगीता पुरी, धनबाद
41. वर्ष के श्रेष्ठ तकनीकी ब्लॉगर – श्री विनय प्रजापति, अहमदाबाद
42. वर्ष के चर्चित उदीयमान ब्लॉगर – श्री खुशदीप सहगल, दिल्ली
43. वर्ष के श्रेष्ठ नवोदित ब्लॉगर – श्री राम त्यागी, शिकागो अमेरिका
44. वर्ष के श्रेष्ठ युवा पत्रकार – श्री मुकेश चन्द्र, दिल्ली
45. वर्ष के श्रेष्ठ आदर्श ब्लॉगर – श्री ज्ञानदत्त पांडेय, इलाहाबाद
46. वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉग शुभचिंतक – श्री सुमन सिन्हा, पटना
47. वर्ष की श्रेष्ठ महिला ब्लॉगर – श्रीमती स्वप्न मंजूषा ‘अदा’, अटोरियो कनाडा
48. वर्ष के श्रेष्ठ ब्लॉगर – श्री समीर लाल ‘समीर’, टोरंटो कनाडा
49. वर्ष की श्रेष्ठ विज्ञान पोस्ट – भविष्य का यथार्थ (लेखक – जिशान हैदर जैदी)
50. वर्ष की श्रेष्ठ प्रस्तुति – कैप्टन मृगांक नंदन एण्ड टीम, पुणे
51. वर्ष के श्रेष्ठ लेखक (हिन्दी चिट्ठाकारी विषयक पोस्ट) – श्री प्रमोद ताम्बट, भोपाल

इसके अलावा नुक्कड़ डाट काम की तरफ से भी 'हिन्‍दी ब्‍लॉग प्रतिभा सम्‍मान-2011' के अंतर्गत 13 विशिष्ट ब्लॉगरों को हिंदी ब्लॉगिंग में दिए जा रहे विशेष योगदान के लिए सम्मानित किया गया-

(1) श्री श्रीश शर्मा (ई-पंडित), तकनीकी विशेषज्ञ, यमुनानगर (हरियाणा)
(2) श्री कनिष्क कश्यप, संचालक ब्लॉगप्रहरी, दिल्ली
(3) श्री शाहनवाज़ सिद्दिकी, तकनीकी संपादक, हमारीवाणी, दिल्ली
(4) श्री जय कुमार झा, सामाजिक जन चेतना को ब्लॉगिंग से जोड़ने वाले ब्लॉगर, दिल्ली
(5) श्री सिद्दार्थ शंकर त्रिपाठी, महात्मा गांधी हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा
(6) श्री अजय कुमार झा, मीडिया चर्चा से रूबरू कराने वाले ब्लॉगर, दिल्ली
(7) श्री रविन्द्र पुंज, तकनीकी विशेषज्ञ, यमुनानगर (हरियाणा)
(8) श्री रतन सिंह शेखावत, तकनीकी विशेषज्ञ, फरीदाबाद (हरियाणा )
(9) श्री गिरीश बिल्लौरे ‘मुकुल’, वेबकास्ट एवं पॉडकास्‍ट विशेषज्ञ, जबलपुर
(10) श्री पद्म सिंह, तकनीकी विशेषज्ञ, दिल्ली
(11) सुश्री गीताश्री, नारी विषयक लेखिका, दि‍ल्ली
(12) श्री बी एस पावला,ब्लॉग संरक्षक, भिलाई (म.प्र.)
(13) श्री अरविन्द श्रीवास्तव, समालोचना, मधेपुरा (बिहार)

................सभी सम्मानित ब्लॉगरों को बधाई !!

(चित्र में : वर्ष का श्रेष्ठ नन्हा ब्लॉगर के तहत बिटिया अक्षिता (पाखी) की तरफ से सम्मान ग्रहण करते उनके चाचू श्री अमित कुमार यादव, जो की 'युवा-मन' ब्लॉग के संयोजक भी हैं.पायलटों की हड़ताल के चलते ऐन वक़्त पर अंडमान से फ्लाईट कैंसिल हो जाने के चलते हम कार्यक्रम में शामिल न हो सके. अत: अक्षिता की तरफ से यह सम्मान उनके चाचू श्री अमित कुमार ने ग्रहण किया.)



(अन्य फोटोग्राफ का नजारा यहाँ लें)

गुरुवार, 10 मार्च 2011

105 साल का हो गया सेलुलर जेल


यह तीर्थ महातीर्थों का है.
मत कहो इसे काला-पानी.
तुम सुनो, यहाँ की धरती के
कण-कण से गाथा बलिदानी (गणेश दामोदर सावरकर)

आजकल अंडमान-निकोबार दीप समूह में हूँ. वही अंडमान, जो काला पानी के लिए प्रसिद्द है. आप भी सोचते होंगे कि भला काला-पानी का क्या रहस्य है. तो आइये आज आपको उसी काला पानी की सैर कराते हैं-

भारत का सबसे बड़ा केंद्रशासित प्रदेश अंडमान-निकोबार द्वीपसमूह सुंदरता का प्रतिमान है और सुंदर दृश्यावली के साथ सभी को आकर्षित करता है। बंगाल कि खाड़ी के मध्य प्रकृति के खूबसूरत आगोश में 8249 वर्ग कि0मी0 में विस्तृत 572 द्वीपों (अंडमान-550, निकोबार-22) के अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भले ही मात्र 38 द्वीपों (अंडमान-28, निकोबार-10) पर जन-जीवन है, पर इसका यही अनछुआपन ही आज इसे 'प्रकृति के स्वर्ग' रूप में परिभाषित करता है। निकोबार द्वीप समूह के ग्रेट निकोबार द्वीप में ही भारत का सबसे दक्षिणी छोर 'इंदिरा प्वाइंट' भी अवस्थित है, जो कि इंडोनेशिया से लगभग 150 कि0मी0 दूर है। यहीं अंडमान में ही ऐतिहासिक सेलुलर जेल है. सेलुलर जेल का निर्माण कार्य 1896 में आरम्भ हुआ तथा 10 साल बाद 10 मार्च 1906 को पूरा हुआ. सेलुलर जेल के नाम से प्रसिद्ध इस कारागार में 698 बैरक (सेल) तथा 7 खण्ड थे, जो सात दिशाओं में फैल कर पंखुडीदार फूल की आकृति का एहसास कराते थे। इसके मध्य में बुर्जयुक्त मीनार थी, और हर खण्ड में तीन मंजिलें थीं।

(इस दृश्य के माध्यम से इसे समझा जा सकता है) अंडमान को काला पानी कहा जाता रहा है तो इसके पीछे बंगाल की खाड़ी और जेल की ही भूमिका है. अंग्रेजों के दमन का यह एक काला अध्याय था, जिसके बारे में सोचकर अभी भी रोंगटे खड़े हो जाते हैं. कहते हैं कि अंडमान का नाम हनुमान जी के नाम पर पड़ा. पहले भगवान राम ने लंका पर चढ़ाई इधर से ही करने की सोची पर बाद में यह विचार त्याग दिया. अंडमान शब्द की उत्पत्ति मलय भाषा के 'हांदुमन' शब्द से हुई है जो भगवान हनुमान शब्द का ही परिवर्तित रुप है। निकोबार शब्द भी इसी भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ होता है नग्न लोगों की भूमि। (वीर सावरकर को इसी काल-कोठरी में बंदी रखा गया. यह काल-कोठरी सबसे किनारे और अन्य कोठरियों से ज्यादा सुरक्षित बने गई है. गौरतलब है कि सावरकर जी के एक भाई भी काला-पानी की यहाँ सजा काट रहे थे, पर तीन सालों तक उन्हें एक-दूसरे के बारे में पता तक नहीं चला. इससे समझा जा सकता है कि अंग्रेजों ने यहाँ क्रांतिकारियों को कितना एकाकी बनाकर रखा था.)

वीर सावरकर और अन्य क्रांतिकारियों को यहीं सेलुलर जेल की काल-कोठरियों में कैद रखा गया और यातनाएं दी गईं. सेलुलर जेल अपनी शताब्दी मना चुका है पर इसके प्रांगन में रोज शाम को लाइट-साउंड प्रोग्राम उन दिनों की यादों को ताजा करता है, जब हमारे वीरों ने काला पानी की सजा काटते हुए भी देश-भक्ति का जज्बा नहीं छोड़ा. गन्दगी और सीलन के बीच समुद्री हवाएं और उस पर से अंग्रेजों के दनादन बरसते कोड़े मानव-शरीर को काट डालती थीं. पर इन सबके बीच से ही हमारी आजादी का जज्बा निकला. दूर दिल्ली या मेट्रो शहरों में वातानुकूलित कमरों में बैठकर हम आजादी के नाम पर कितने भी व्याख्यान दे डालें, पर बिना इस क्रांतिकारी धरती के दर्शन और यहाँ रहकर उन क्रांतिवीरों के दर्द को महसूस किये बिना हम आजादी का अर्थ नहीं समझ सकते.

सेलुलर जेल में अंग्रेजी शासन ने देशभक्त क्रांतिकारियों को प्रताड़ित करने का कोई उपाय न छोड़ा. यातना भरा काम और पूरा न करने पर कठोर दंड दिया जाता था. पशुतुल्य भोजन व्यवस्था, जंग या काई लगे टूटे-फूटे लोहे के बर्तनों में गन्दा भोजन, जिसमें कीड़े-मकोड़े होते, पीने के लिए बस दिन भर दो डिब्बा गन्दा पानी, पेशाब-शौच तक पर बंदिशें कि एक बर्तन से ज्यादा नहीं हो सकती. ऐसे में किन परिस्थितियों में इन देश-भक्त क्रांतिकारियों ने यातनाएं सहकर आजादी की अलख जगाई, वह सोचकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. सेलुलर जेल में बंदियों को प्रतिदिन कोल्हू (घानी) में बैल की भाँति घूम-घूम कर 20 पौंड नारियल का तेल निकालना पड़ता था. इसके अलावा प्रतिदिन 30 पौंड नारियल की जटा कूटने का भी कार्य करना होता. काम पूरा न होने पर बेंतों की मार पड़ती और टाट का घुटन्ना और बनियान पहनने को दिए जाते, जिससे पूरा बदन रगड़ खाकर और भी चोटिल हो जाता. अंग्रेजों की जबरदस्ती नाराजगी पर नंगे बदन पर कोड़े बरसाए जाते. जब भी किसी को फांसी दी जाती तो क्रांतिकारी बंदियों में दहशत पैदा करने के लिए तीसरी मंजिल पर बने गुम्बद से घंटा बजाया जाता, जिसकी आवाज़ 8 मील की परिधि तक सुनाई देती थी.
भय पैदा करने के लिए क्रांतिकारी बंदियों को फांसी के लिए ले जाते हुए व्यक्ति को और फांसी पर लटकते देखने के लिए विवश किया जाता था।वीर सावरकर को तो जान-बूझकर फांसी-घर के सामने वाले कमरे में ही रखा गया था.फांसी के बाद मृत शरीर को समुद्र में फेंक दिया जाता था.
अब आप समझ सकते हैं कि इस जगह को काला-पानी क्यों कहा जाता था. एक तरफ हमारे धर्म समुद्र पार यात्रा की मनाही करते थे, वहीँ यहाँ मुख्यभूमि से हजार से भी ज्यादा किलोमीटर दूर लाकर देशभक्तों को प्रताड़ित किया जाता था. आजादी का अर्थ सिर्फ अच्छा खाना, घूमना य मौज-मस्ती ही परिचायक नहीं है, बल्कि इसके लिए हमें उन मूल्यों की भी रक्षा करनी होगी जिसके लिए देशभक्तों ने अपनी कुर्बानियां दे दी !!
सेलुलर जेल की 105 वीं वर्षगाँठ पर उन सभी नाम-अनाम शहीदों और कैद में रहकर आजादी का बिगुल बजाने वालों को नमन !!

[ चित्रों में : कृष्ण कुमार, आकांक्षा एवं अक्षिता (पाखी) ]

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

जीवन पुन: अपने रौब में....

आखिरकार एक लम्बे अन्तराल पश्चात् पुन: सपरिवार पोर्टब्लेयर में. इस अन्तराल के दौरान जहाँ एक बार पुन: मत्रितव सुख का सौभाग्य प्राप्त हुआ, वहीँ हमारी शादी की छठवीं सालगिरह भी पूरी हो गई. 27 अक्तूबर, 2010 की रात्रि 11: 10 पर बनारस के हेरिटेज हास्पिटल में बिटिया का जन्म हुआ और 27 नवम्बर को वह एक माह की हो गई. ठीक उसके अगले दिन 28 नवम्बर को हमारी शादी की की सालगिरह थी और अब हमारी शादी के छ: साल पूरे हो गए। 28 नवम्बर को ही हम लोग आजमगढ़ से बनारस पहुंचे और फिर विमान द्वारा सीधे कोलकाता. यह भी एक सौभाग्य रहा की सालगिरह विमान में ही सेलिब्रेट हो गया. खैर अगले दिन, 29 नवम्बर की सुबह हम पोर्टब्लेयर में थे. इक सुखद और खुशनुमा एहसास. ठण्ड का नामलेवा नहीं, तापमान 32 डिग्री सेल्सियस. पर्यटकों के लिए अंडमान का यह समय किसी जन्नत से कम नहीं होता है. इस समय पोर्टब्लेयर में जितनी हलचल दिखती है, वह वाकई देखने लायक होती है. एक लम्बे अन्तराल पश्चात् जीवन पुन: अपने रौब में लौट कर आ गया है. इस बीच बिटिया के जन्म और शादी की सालगिरह पर आप सभी की शुभकामनाओं, बधाई और स्नेह के लिए हार्दिक आभार. अब ब्लॉग पर निरंतरता बनी रहेगी....!!

सोमवार, 19 जुलाई 2010

आज मन कुछ उदास सा है...

आज मन कुछ उदास सा है। पोर्टब्लेयर आए करीब छह महीने होने जा रहे हैं और इस बीच मैंने अपने अपने पति व बिटिया पाखी के अलावा किसी परिवारीजन का चेहरा नहीं देखा. कल तक जो लोग हमारे करीब थे, वे हमसे दूर कहीं बैठे हैं. टेकनालजी के इतने विकास के बाद भी, फ़ोन, मेल, चैटिंग, कितना भी कर लीजिये, वह अहसास नहीं पैदा होता. जब भी अपनी मम्मी से बात करती हूँ, अक्सर कहती हैं कि कितनी दूर चली गई हो. जब मैं कहती हूँ क़ि यह दूरी मात्र एक छलावा है, भला कानपुर में ही रहकर कितनी बार मायके गई हूँ, पर माँ को कौन समझाये. वे तो यही सोचती हैं क़ि बिटिया दूर चली गई. कानपुर में थी तो वे आ भी जाती थीं, किसी-न-किसी बहाने. पर यहाँ तो अरसा बीत गया. मुझे भी पता है, हमारे लिए दूरी के कोई मायने नहीं हैं. यहाँ से सुबह चलें तो शाम को लखनऊ फ्लाईट से पहुँच जाएँ. पर सम्बन्ध एकतरफा तो नहीं होते. यह सुविधा सामने वाले के साथ भी तो होनी चाहिए. उम्र के इस दौर में बीमारियाँ हमारे बुजुर्गों को अनायास ही घेर लेती हैं. हर मर्ज का इलाज दवा ही नहीं होती, कई बार नजदीकियां और प्यार के दो-शब्द भी काम आते हैं. दुनिया में माँ अपने बच्चों के लिए बहुत कुछ सहती है, पर बड़े होते बच्चे अपनी दुनिया में रमते जाते हैं.

मैं अपने ही परिवार में देखूं तो तीन भाई और दो बहनों के बीच मैं चौथे नंबर पर हूँ। भरा-पूरा परिवार है हमारा, पर घर पर कोई नहीं. एक भाई IAS हैं, दूसरे पुलिस अधिकारी, तीसरे मल्टीनेशनल कंपनी में. दो बहनों में मैं कृष्ण कुमार जी से ब्याही हूँ, जो भारतीय डाक सेवा के अधिकारी हैं तो छोटी बहन के पति कस्टम-विभाग में असिस्टेंट कमिश्नर हैं. हम सब चाहते हैं क़ि अपने मम्मी-पापा को वो खुशियाँ दें, जो उन्होंने बचपन में हमें दीं. मुझे याद है, जब मम्मी टाउन एरिया चेयरपर्सन थीं तो भी व्यस्तताओं के बीच हमारी हर छोटी जरूरतें पूरी करती थीं. कभी यहाँ सम्मलेन तो कभी मीटिंग का दौर, पर उनकी प्राथमिकता हम बच्चे ही रहे. पिता जी भी टाउन एरिया के चेयरमैन रहे, साथ में एक राष्ट्रीय पार्टी के जिलाध्यक्ष और फिर राष्ट्रीय कार्य परिषद् के सदस्य. लोग कहते क़ि आप विधायकी/संसदी का चुनाव लड़िये और दिल्ली में रहिये.कई बार टिकट देने की बात भी हुई, पर पिता जी को भी हम बच्चों की चिंता थी क़ि इनकी देखभाल कौन करेगा. नौकर-चाकर आपकी सहायता कर सकते हैं, पर माँ-बाप का स्थान तो नहीं ले सकते. एक भाई IIT में तो दूसरे रूडकी में, तीसरे लखनऊ विश्वविद्यालय में...घर पर थीं हम दोनों बहनें. हमेशा माँ के अंचल से चिपटी यही कहती थीं कि उन्हें कभी भी छोड़कर नहीं जायेंगीं. ॥पर दुनिया का दस्तूर यही है, हर लड़की ब्याहकर अपने घर चली जाती है. फिर अपनी जिम्मेदारियां माँ-बाप को खुद उठानी पड़ती हैं.

कानपुर में देश के एक लब्ध-प्रतिष्ठ लेखक रहते हैं. भरा-पूरा परिवार, पर साथ में सिर्फ पति-पत्नी. जब भी उनके यहाँ जाइये, अहसास ही नहीं होगा कि वे इतने बड़े लेखक हैं. बड़ी सादगी से उनकी पत्नी चाय बनाकर लाती हैं, फिर दो-तीन प्लेट में नमकीन और मिठाई. साथ बैठकर जिद करेंगीं कि इसे आप पूरा ख़त्म कर देना. अच्छा लगता है यह ममत्व भाव. एक बार उनसे कहा कि आप किसी नौकर को क्यों नहीं रख लेतीं. वह ध्यान से मेरा चेहरा देखने लगीं, मानो कोई गलती कर दी हो. फिर कभी उनसे नहीं पूछा. यही बात एक बार माँ से भी कहने की सोची कि घर में नौकर-चाकरों के होते हुए आपको काम करने की क्या जरुरत है.पलटकर जवाब दिया- मुझे समय से पहले बूढ़ा नहीं होना. हाथ-पांव सक्रिय रहेंगें तो बुढ़ापे में भी काम आयेंगें, किसी के मोहताज नहीं बनाना पड़ेगा. आज सोचती हूँ कि यह उनका स्वाभिमान बोल रहा था या जीवन का एक कटु सच. पर आज वही हाथ-पांव बुढ़ापे में भी तरसते हैं कि बेटा-बहू-बिटिया-दामाद आयें तो फिर ये सक्रिय हों. नाती-पोतों को देखते ही सारा रोग छू-मंतर हो जाता है, हाथ-पांव के सारे दर्द भूल जाती हैं...न जाने कितनी बातें उनसे करती हैं. कई बार हम लोग भले ही बच्चों के व्यव्हार पर चिडचिडे हो जाएँ. पर उन्हें तो इसी में ख़ुशी मिलती है कि उनका कोई पास में है. ये अहसास फोन पर बातें करके तो पूरा नहीं हो सकता.....फिर मेरी उदासी भी जायज है. मम्मी-पापा के पास जाऊगीं तो एक बार फिर वही भरा-पूरा संसार उनको लौटा पाऊँगी. हमारी ख़ुशी के कुछ हिस्से पाकर ही हमारे माँ-बाप कितने खुश हो जाते हैं. ..बस अब इंतजार है एक लम्बे समय बाद मायके लौटने का. ताकि फिर से मम्मी-पापा के चेहरे पर अपनों के पास होने की रौनक देख सकूँ.

शुक्रवार, 14 मई 2010

अंडमान-निकोबार ब्लॉगर्स एसोसिएशन

आजकल एसोसिएशन की बड़ी माँग है. जिसे देखो वही एसोसिएशन बनाकर पदाधिकारी बना जा रहा है. अपने देश में तो इतने राजनैतिक दल हैं कि चुनाव आयोग को भी कहना पड़ता है कि कई तो मात्र कागज पर खानापूर्ति के लिए हैं. कुछ सक्रिय राजनैतिक दल तो ऐसे भी हैं कि उनके सारे महत्वपूर्ण पदाधिकारी घर के ही सदस्य हैं. फिर भी वे मुख्यमंत्री-प्रधानमंत्री की दौड़ में हैं. देश-विदेश में तमाम राजनैतिक-सामाजिक-साहित्यिक-आर्थिक-सांस्कृतिक-भाषाई-प्रांतीय-बुद्धिजीवी से लेकर हर वर्ग के अपने संगठन या एसोसिएशन हैं. सरकारी नौकरी वालों के संगठन हैं तो फिर निजी कंपनी वाले पीछे कैसे रहें. और जब सभी के संगठन हैं तो बेरोजगारों के भी होंगे. जाति-धर्म-व्यवसाय-लिंग हर किसी के संगठन हैं और उनके बकायदा पदाधिकारी हैं. कई बार सोचती हूँ कि यदि इन सबकी गिनती की जाय तो वाकई तारे गिनने वाली ही बात होगी.

खैर, अब संगठन और एसोसिएशन ब्लॉग जगत में भी अपने पाँव पसार रहा है. जिस वर्चुअल दुनिया में माना जाता है कि कोई दूरी या भेदभाव नहीं होता वहाँ भी विभिन्न प्रमुख स्थानों या जातियों के ब्लोगर्स अपना एसोसिएशन बनाने लग गए हैं. सो, इस भेड़चाल में हमारे भी दिमाग में विचार आया कि भारत के इस दक्षिणतम क्षोर पर अवस्थित अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में भी ब्लोगर्स को क्यों न इकठ्ठा किया जाय. पहले अपना ख्याल राजधानी पोर्टब्लेयर तक सीमित रखा तो जोड़-घटाकर मात्र 06 ब्लोगर्स दिखे. संख्या कम लगी तो पूरे अंडमान-निकोबार द्वीप समूह को कवर करने की सोची तो वहाँ भी मामला कुछ खास नहीं जमा.

पूरे द्वीप समूह में सर्च किया तो मात्र 08 ब्लॉगर्स दिखे. इनमें से 03 हमारे ही परिवार के हैं- पतिदेव कृष्ण कुमार यादव, पुत्री अक्षिता और स्वयं मैं. शेष 05 ब्लॉगर्स-जन में से संतोष दयारकर (पोर्टब्लेयर, अपने पर्यटन व्यवसाय के लिए मात्र एक पोस्ट), साईं संदीप(पोर्टब्लेयर, मात्र प्रोफाइल उपलब्ध), अकबर (पोर्टब्लेयर, पर्यटन के लिए दो ब्लॉग, जिनमें कुल जमा मात्र दो पोस्ट), आर. आर. मायाबंदर (मायाबंदर, अंडमान-निकोबार प्रशासन के लोअर ग्रेड क्लर्क्स के लिए ब्लॉग), राघवेन्द्र (हैदराबाद, अपनी कोचिंग के प्रचार के लिए एक पोस्ट) हैं. यानी कुल मिलाकर इन 05 ब्लॉगर्स के ब्लॉग पर जो भी एक-दो पोस्ट हैं, वे आंग्लभाषा में हैं और व्यावसायिक हितों की पूर्ति के लिए हैं.

खैर अब अंडमान-निकोबार ब्लॉगर्स एसोसिएशन का गठन हम तीन लोगों से ही होना है. ज्यादा मुश्किल कार्य भी नहीं है, घर की बात घर में. एक संरक्षक, एक अध्यक्ष, एक सचिव....हो गया अंडमान-निकोबार ब्लॉगर्स एसोसिएशन का गठन. जब तमाम राजनैतिक दलों के पदाधिकारी एक ही घर से हो सकते हैं तो इस एसोसिएशन में क्यों नहीं हो सकते. हमारे पास कोई विकल्प भी नहीं है....है न मजेदार बात. जहाँ भी बैठ गए एसोसिएशन अपने आप प्रभावी हो गया.

खैर,गंभीर होने की जरुरत नहीं है और डरने की भी जरुरत नहीं है. और न ही हमें किसी एसोसिएशन की जरुरत है...इस सबका उद्देश्य मात्र अंडमान-निकोबार में ब्लागिंग की स्थिति से रु-ब-रु करना था. अंडमान-निकोबार में हमारी कोशिश है कि जब तक हैं, कुछ रचनात्मक कार्य करें. यहाँ के अख़बारों में ब्लॉग और उसकी प्रक्रिया पर आधारित लेख भी दिए हैं, जो प्रकाशित हो रहे हैं. अब देखिये कितने लोगों को रचनात्मक व सक्रिय ब्लागिंग की तरफ प्रवृत्त कर पाते हैं.

रविवार, 9 मई 2010

मदर्स डे पर : माँ की याद में


आज सुबह कुछ पहले ही नींद खुल गई. मन किया कि बाहर जाकर बैठूं. अभी सूर्य देवता ने दर्शन नहीं दिए थे पर ढेर सारी चिड़िया कलरव कर रही थीं. मौसम में हलकी सी ठण्ड थी, शायद रात में बारिश हुई थी. अचानक दिमाग में ख्याल आया कि हम लोग भी घर से कितने दूर हैं. एक ऐसी जगह जहाँ सारे रिश्ते बेगाने हैं. एक-दो साल बाद हम लोग भी यहाँ से चले जायेंगे. इन सबके बीच घर की याद आई तो मम्मी का चेहरा आँखों के सामने घूम गया. कभी सोचा भी ना था की मम्मी से एक दिन इतने दूर जायेंगे, पर दुनिया का रिवाज है. शादी के बाद सबको अपनी नई दुनिया में जाना होता है, बस रह जाती हैं यादें. पर यादें जीवन भर नहीं छूटतीं , हमें अपने आगोश में लिए रहती हैं. ..पर आज पता नहीं क्यों सुबह-सुबह मम्मी की खूब याद आ रही थी. सोचा कि फोन करूँ तो याद आया कि वहाँ तो अभी सभी लोग सो रहे होंगे. सामने नजर दौडाई तो पतिदेव कृष्ण कुमार जी का काव्य-संग्रह 'अभिलाषा' दिखी. पहला पन्ना पलटते ही 'माँ' कविता पर निगाहें ठहर गईं. एक बार नहीं कई बार पढ़ा. वाकई यह कविता दिल के बहुत करीब लगी. अंतर्मन के मनोभावों को बखूबी संजोया गया है इस अनुपम कविता में. सौभाग्यवश आज मई माह का दूसरा रविवार है और इसे दुनिया में मदर्स डे के रूप में मनाया जाता है. तो आज इस विशिष्ट दिवस पर माँ को समर्पित यही कविता आप लोगों के साथ शेयर कर रही हूँ-



मेरा प्यारा सा बच्चा
गोद में भर लेती है बच्चे को
चेहरे पर नजर न लगे
माथे पर काजल का टीका लगाती है
कोई बुरी आत्मा न छू सके
बाँहों में ताबीज बाँध देती है।

बच्चा स्कूल जाने लगा है
सुबह से ही माँ जुट जाती है
चैके-बर्तन में
कहीं बेटा भूखा न चला जाये।
लड़कर आता है पड़ोसियों के बच्चों से
माँ के आँचल में छुप जाता है
अब उसे कुछ नहीं हो सकता।

बच्चा बड़ा होता जाता है
माँ मन्नतें माँगती है
देवी-देवताओं से
बेटे के सुनहरे भविष्य की खातिर
बेटा कामयाबी पाता है
माँ भर लेती है उसे बाँहों में
अब बेटा नजरों से दूर हो जायेगा।

फिर एक दिन आता है
शहनाईयाँ गूँज उठती हैं
माँ के कदम आज जमीं पर नहीं
कभी इधर दौड़ती है, कभी उधर
बहू के कदमों का इंतजार है उसे
आशीर्वाद देती है दोनों को
एक नई जिन्दगी की शुरूआत के लिए।

माँ सिखाती है बहू को
परिवार की परम्परायें व संस्कार
बेटे का हाथ बहू के हाथों में रख
बोलती है
बहुत नाजों से पाला है इसे
अब तुम्हें ही देखना है।

माँ की खुशी भरी आँखों से
आँसू की एक गरम बूँद
गिरती है बहू की हथेली पर।

गुरुवार, 6 मई 2010

आलू के पराठे को तरस गए...

पिछले 15 दिनों तक अंडमान में आलू की किल्लत बनी रही. रोज न्यूज चैनलों पर हम देखते रहे कि देश के विभिन्न भागों में आलू सड़ रहे हैं, पर यहाँ अंडमान में सड़ना छोडिये, देखने को तरस गए. जेब में पैसे होकर भी क्या करेंगे, जब चीज मयस्सर ही न हो. आलू के अभाव में सब्जियों को लेकर रोज नए प्रयोग किये. दो-चार दिन तक तो आलू के बिना सब्जियाँ चल जाती हैं, पर उसके बाद कब तक पनीर, राजमा, छोले, सोयाबीन या भिन्डी, मटर, लौकी इत्यादि खाते रहेंगें. आलू की बजाय मटर के बने समोसे कई दिन तक स्वाद नहीं बना पते. आखिरकार आलू न चाहते हुए भी हमारे स्वाद का अभिन्न अंग बन चुका है. इसे तभी तो सब्जियों का राजा भी कहा जाता है.

खैर इसी बहाने पहली बार आलू की महिमा भी पता चली. कभी सोचा भी न था की आलू के बिना जीवन कैसा होगा क्योंकि आलू को तो सर्वत्र व्याप्त माना जाता है. घर में कुछ भी न हो तो आलू जरुर होता है. अधिकतर सब्जियाँ आलू के बिना सूनी हैं और फिर आलू के समोसे, आलू के भरते (चोखा) और आलू के पराठों के बिना तो स्वाद ही नहीं आता. पिछले 15 दिनों से अंडमान के लोग आलू के लिए तरस गए थे. रोज सुनाई देता कि मेन लैंड से जलयान द्वारा आलू चल चुका है, बस यहाँ पहुँचने भर की देरी है. सब्जियाँ और फल वैसे भी अंडमान में महँगे हैं. यहाँ के समुद्री खरे पानी द्वारा उनकी पैदाइश संभव भी नहीं. कई बार आश्चर्य होता है कि हर तरफ पानी ही पानी, पर वह किस काम का. न आप उसे पी सकते हैं, न उससे सिंचाई कर सकते हैं, न बिजली बना सकते हैं...!

फ़िलहाल, आज सुबह आलू महाराज के दर्शन हुए तो पहले तो उन्हें जी भरकर निहारा कि महाराज कहाँ चले गए थे. फिर सुबह नाश्ते में आलू के पराठे...शायद ही इतना स्वादिष्ट व चटपटा कभी लगा हो. वाकई जब चीजें हमें आसानी से मिलती हैं तो हमें उनकी महत्ता समझ में नहीं आती. जब हम लोग पढने जाते थे और किसी दिन सुबह कोई सब्जी घर में नहीं होती तो आलू की भुजिया या आलू के पराठों से उम्दा कुछ भी नहीं हो सकता था. ..पर यहाँ अंडमान में 20 रूपये किलो आलू भी अब सस्ता लगने लगा है.सब समय व जगह का फेर है !!

बुधवार, 21 अप्रैल 2010

गुणों की खान है नारियल

नारियल भला किसे नहीं भाता. फिर समुद्र के किनारे रहने वालों की तो बल्ले-बल्ले है. जब जी में आया नारियल का भोग लगा लिया.नारियल के कच्चे फल को डाभ कहते हैं जिसके अन्दर का पानी स्वास्थ्य और जायके की दृष्टि से अच्छा माना जाता है. किसी को नारियल का पानी अच्छा लगता है तो किसी को इसकी मलाई. यदि आपको इसकी मलाई अच्छी लगती है तो दुकानदार को विशेष रूप से बताना पड़ेगा कि मलाई वाला नारियल चाहिए. फिर नारियल के कवच का चम्मच और मजेदार मलाई. नारियल का गूदा, पानी और तेल इस्तेमाल में लाया जाता है। नारियल न सिर्फ खाने में स्वादिष्ट होता है, इसे बेहद पौष्टिक भी माना गया है। इसमें प्रचुर मात्रा में फाइबर, विटामिन और खनिज होता है। रसोई, स्वास्थ्य, खूबसूरती और धार्मिक चारों मामलों में इसका जवाब नहीं. बाहर से कड़ा पर अन्दर से मुलायम नारियल को यूँ ही श्रीफल नहीं कहा जाता है. नारियल को संस्कृत में नालिकेरः कहते हैं। "नल्यते केन वायुना ईर्यते इति नालिकेर:"। वर्णभ्रंश के कारण, सामान्य भाषा में यह नारिकेल तथा बाद में नारियल बन गया. आइये आज नारियल के पानी का मजा लेते हुए ये पोस्ट नारियल को ही समर्पित करते हैं और इसके भरपूर गुणों की चर्चा करते हैं.

-नारियल इंफ्लूएंजा, दाद, चेचक, हेपेटाइटिस सी, एड्स जैसे बीमारियों के लिए जिम्मेदार वायरस को खत्म कर देता है।
-नारियल उन बैक्टीरिया को भी खत्म करता है जो अल्सर, गले का संक्रमण, दांतों की बीमारी और निमोनिया पैदा करते हैं।
-नारियल शरीर को तुरंत ऊर्जा प्रदान करता है।
-नारियल इंसुलिन के स्राव को बेहतर करता है रक्त में ग्लूकोज की मात्रा को संतुलित बनाए रखता है। यह डायबिटीज का खतरा भी घटाता है।
-नारियल के सेवन से शरीर द्वारा कैल्शियम और मैग्नीशियम के अवशोषण की प्रक्रिया बेहतर हो जाती है। यह हड्डियों और दांतों को भी मजबूत बनाता है।
-नारियल आस्टियोपोरोसिस [हड्डियों का कमजोर हो जाना] के खतरे से बचाता है।
-नारियल पाचन क्रिया को बेहतर बनाता है। -नारियल बवासीर में होने वाले दर्द को घटाने में कारगर है।
-नारियल ब्रेस्ट, कोलन [बड़ी आंत] और लिवर कैंसर के खतरे से बचाता है।
-नारियल दिल के मरीजों के लिए काफी फायदेमंद है। यह कोलेस्ट्राल के अनुपात को सुधारता है और दिल की बीमारी के खतरे को कम करता है।
-नारियल पित्ताशय से संबंधित बीमारी के लक्षणों से छुटकारा दिलाने में मदद करता है।
-नारियल किडनी के स्टोन को गलाने में मदद करता है।
-नारियल में कैलोरी काफी मात्रा में पाई जाती हैं।
-नारियल मोटापे से बचाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार एक स्वस्थ वयस्क के भोजन में प्रतिदिन 15 मिग्रा जिंक होना जरूरी है जिससे मोटापे से बचा जा सके। ताजा नारियल में जिंक भरपूर मात्रा में होता है।
-नारियल सूर्य की पराबैगनी किरणों के दुष्प्रभाव से शरीर की रक्षा करता है।
-नारियल शरीर पर पड़ने वाली झुर्रियों और शिथिल पड़ती त्वचा के लिए उपयोगी होता है।
- नारियल से हैजे की उल्टियाँ भी बंद हो जाती हैं. हैजे में यदि उल्टियाँ बंद न हो पा रही हों तो रोगी को तुरंत नारियल पानी पिलाना चाहिए।-स्वस्थ सुंदर संतान प्राप्ति के लिए गर्भवती महिला को 3-4 टुकड़े नारियल प्रतिदिन चबा-चबाकर खाने चाहिए। इसके साथ एक चम्मच मक्खन, मिसरी तथा थोड़ी सी पिसी कालीमिर्च मिलाकर चाटें। बाद में थोड़ी सी सौंफ चबाएँ। इसके आधे घंटे बाद तक कुछ भी खाना-पीना नहीं चाहिए। पुराने सूजाक और मूत्रकृच्छ में भी इससे आश्चर्यजनक लाभ होता है।
-नारियल का तेल किसी दवा से कम नहीं। स्वास्थ्य के लिहाज से इसे सबसे अच्छा तेल माना गया है।सूखे नारियल से तेल निकाला जाता है। इस तेल की मालिश त्वचा तथा बालों के लिए बहुत अच्छी होती है। नारियल तेल की मालिश से मस्तिष्क भी ठंडा रहता है। गर्मी में लगने वाले दस्तों में एक कप नारियल पानी में पिसा जीरा मिलाकर पिलाने से दस्तों में तुरंत आराम मिलता है।
-नारियल से बर्फी, लड्डू, केक इत्यादि तमाम मिठाइयों सहित जायकेदार चटनी भी बनती है.

बुधवार, 31 मार्च 2010

भूकम्प का पहला अनुभव

भूकम्प का नाम सुना था और खूब पढ़ा भी था, पर कल पहली बार महसूस किया. अंडमान में कल रात्रि 10:27 बजे करीब डेढ़ मिनट भूकंप के झटके महसूस हुए. इसकी तीव्रता रिक्टर स्केल पर पोर्टब्लेयर में 6.3 और मायाबंदर में 6.9 आंकी गई. जब भूकंप आया तो उस समय अधिकतर भाग में बिजली नहीं थी और लोग सोने की तैयारी में थे. अचानक हमें महसूस हुआ की बेड, ए. सी. और खिड़कियाँ जोर-जोर से हिल रही हैं, चूँकि ईधर भूत-प्रेत की बातें उतनी प्रचलित नहीं हैं, सो उधर ध्यान ही नहीं गया. फिर लगा कि घर की पेंटिंग हो रही है और पीछे मजदूर सीढ़ी लगाकर छोड़ गए हैं. उसे ही कोई हिला रहा है. उस समय बिटिया पाखी बिस्तर पर खूब कूद रही थीं, सो एक बार यह भी दिमाग में आया कि बेड इसी के चलते हिल रहा है. अगले ही क्षण जब दिमाग में आया कि यह भूकम्प हो सकता है तो हम सब बेड पर एकदम बीचों-बीच में इस तरह बैठ गए कि कोई चीज गिरे भी तो हम लोगों के ऊपर न गिरे. लगभग डेढ़ मिनट तक हम लोग भूकम्प के हिचकोले खाते रहे. शरीर के रोंगटे खड़े हो गए थे. फिर शांत हुआ तो अन्य लोगों से फोन करके कन्फर्म किया कि वाकई ये भूकम्प ही था. क्योंकि यह हम लोगों का पहला भूकम्प-अनुभव था. फ़िलहाल बात आई और गई हो गई और हम लोग सो गए.

रात को साढ़े ग्यारह-बारह के बीच हम लोगों के लैंड-लाइन और मोबाईल फोन बजने आरंभ हुए तो झटके में उठे कि क्या मुसीबत आ गई. पता चला टी.वी. पर न्यूज रोल हो रहा है कि पोर्टब्लेयर में भूकम्प के झटके, जिसकी तीव्रता लगभग 8 है. जिसने भी देखा, वो फोन करके कुशल-क्षेम पूछने लगा. लगभग आधे घंटे यह सिलसिला चला. अभी तक हम जितना नहीं डरे थे, उससे ज्यादा अब डर गए कि पढ़ा था कि वो भूकम्प जिसकी तीव्रता लगभग 8 है, वह खतरनाक होता है. हँसी भी आ रही थी कि हम लोगों ने भूकम्प को कितना नार्मल लिया. हम लोग 5 का अनुमान लगा रहे थे. खैर आज सुबह यहाँ के अख़बारों से भूकम्प की वास्तविक तीव्रता का अहसास हुआ. कई बार मीडिया भी चीजों को इतना बढ़ा-चढ़ाकर पेश करता है की लोग डर ही जाएँ. खैर यहाँ तो इस तरह की घटनाएँ होती रहती हैं, पर पहले भूकम्प का अनुभव अभी तक दिलो-दिमाग में कंपित हो रहा है.

गुरुवार, 25 मार्च 2010

हैप्पी बर्थडे टू पाखी

आज 25 मार्च को हमारी बिटिया रानी अक्षिता (पाखी) का जन्म-दिन है. आज पाखी 4 साल की हो जाएँगी. पिछला जन्म-दिन कानपुर में तो इस बार अंडमान में. नौ दिन के नवरात्र-व्रत पश्चात् आज ही मेरा फलाहार-व्रत भी टूट रहा है. सो पाखी का जन्म-दिन जी भर कर इंजॉय करेंगे और हैप्पी बर्थडे टू यू पाखी भी गायेंगे.

इस बार की पोस्ट हैप्पी बर्थडे टू यू को लेकर. कई बार उत्सुकता होती है कि आखिर ये प्यारी सी पैरोडी आरम्भ कहां से हुई। आखिरकार हमने इसका राज ढूंढ ही लिया। वस्तुतः ‘हैप्पी बर्थडे टू यू‘ की मधुर धुन ‘गुड मार्निंग टू आॅल‘ गीत से ली गयी है, जिसे दो अमेरिकन बहनों पैटी हिल तथा माइल्ड्रेड हिल ने 1993 में बनाया था। ये दोनों बहनें किंडर गार्टन स्कूल की शिक्षिकाएं थीं। इन्होंने ‘गुड मार्निंग टू आॅल‘ गीत की यह धुन इसलिए बनायी ताकि बच्चों को इसे गाने में आसानी हो और मजा आये। फिलहाल दुनिया भर में इस गीत का 18 भाषाओं में अनुवाद किया गया है। इस गाने की धुन और बोल पहली बार 1912 में लिखित रूप से प्रकाश में आये। इस गाने पर सुम्मी कंपनी चैपल ने इस कंपनी को 15 अमेरिकी मिलियन डाॅलर में खरीद लिया। उस वक्त इस धुन की कीमत करीब 5 अमेरिकी मिलियन डालर थी। गीत की सबसे प्रसिद्ध व भव्य प्रस्तुति मई 1962 में विख्यात हाॅलीवुड अभिनेत्री मारिलियन मोनरोर्ड ने अमेरिकी राष्ट्रपति जान एफ केनेडी को समर्पित की थी। इस गीत को 8 मार्च 1969 को अपालो 9 दल के सदस्यों ने भी गया था। हजारों की संख्या में लोगों ने पोप बेनेडिक्ट सोलहवें के 81वें जन्मदिवस पर 16 अप्रैल 2008 को इसे व्हाइट हाउस में पेश किया था। 27 जून 2007 को लंदन के हाइड पार्क में सैकड़ों लोगों ने नेल्सन मंडेला के 90वें जन्मदिवस पर भी इसे गाया गया था। अब भी ‘हैप्पी बर्थडे टू यू‘ गीत प्रतिवर्ष 2 मिलियन डाॅलर की कमाई कर रहा है। गिनीज बुक आॅफ वल्र्ड रिकार्ड के मुताबिक ‘हैप्पी बर्थडे टू यू‘ अंग्रेजी भाषा का सबसे परिचित गीत है।... तो आप भी गाइये- ‘हैप्पी बर्थडे टू पाखी‘।

सोमवार, 22 मार्च 2010

'पानी' को 'काला-पानी' होने से बचाएं

अंडमान में आजकल पानी की किल्लत जोरों पर है. चारों तरफ पानी ही पानी, पर पीने को एक बूंद नहीं, यह कहावत यहाँ भली-भांति चरितार्थ होती है. सुनामी के बाद यहाँ मौसम पहले जैसा नहीं रहा, अभी से जबरदस्त गर्मी का असर दिखने लगा है. जहाँ बारिश आम बात होती थी, वहीँ अब तक हमने यहाँ मात्र एक दिन पाँच मिनट की बारिश के दर्शन किये. हर साल मई में बारिश आरंभ हो जाती है, पर इस साल लगता है वो भी जून-जुलाई तक जाएगी. तीन दिन में एक बार पानी की आपूर्ति होती है, सो पानी की महत्ता समझ में आने लगी है. बूंद-बूंद इकटठा कर रखने लगे हैं. पानी के महत्व का अहसास प्यास लगने पर ही होता है। पानी का कोई विकल्प नहीं है। इसकी एक-एक बूंद अमृत है। ऐसी में आज 'विश्व जल दिवस'(22 मार्च) की प्रासंगिकता स्वमेव समझ में आती है. इस बार विश्व जल दिवस की विषय-वस्तु भी पेय जल की गुणवत्ता है.

गौरतलब है कि वर्ष 1992 में पर्यावरण और विकास पर संयुक्त राष्ट्र के सम्मेलन में स्वच्छ पानी के लिए एक अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाने की बात कही गयी। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 22 मार्च 1993 को पहला जल दिवस मनाने की घोषणा की, तभी से यह हर वर्ष मनाया जाता है.

आंकड़ों पर गौर करें तो संयुक्त राष्ट्र के अनुसार हर साल हम 1500 घन किमी पानी बर्बाद कर देते है. आज भी हर दिन दुनिया भर के पानी में 20 लाख टन सीवेज, औद्योगिक और कृषि कचरा डाला जाता है. यही कारण है कि दुनिया भर में 2.5 अरब लोग पर्याप्त सफाई के बिना रह रहे हैं. अभी भी इस सभ्य-सुसंस्कृत समाज में दुनिया की आबादी का 18 फीसदी या 1.2 अरब लोगों को खुले में शौच के लिए जाना पड़ता है. इन सबका बेहद बुरा असर पूरी मानव जाती पर पद रहा है. जानकर आश्चर्य होगा कि युद्ध सहित सभी तरह की हिंसाओं से मरने वाले लोगों से कहीं ज्यादा लोग हर साल असुरक्षित पानी पीने से मर जाते हैं. 70 देशों के 14 करोड़ लोग आर्सेनिक युक्त पानी पीने को विवश हैं . दुनिया में सालाना होने वाली कुल मौतों में से 3.1 फीसदी पर्याप्त जल साफ-सफाई न होने से होती हैं. असुरक्षित पानी से हर साल डायरिया के चार अरब मामलों में 22 लाख मौतें होती है। भारत में बच्चों की मौत का सबसे बड़ा कारण यह बीमारी है। हर साल करीब पांच लाख बच्चे इसका शिकार बनते हैं. जरा सोचिये पानी और साफ-सफाई के अभाव में अफ्रीका को होने वाला आर्थिक नुकसान 28.5 अरब डालर या सकल घरेलू उत्पाद का पांच फीसदी है. भूजल पर आश्रित दुनिया में 24 फीसदी स्तनधारियों और 12 फीसदी पक्षी प्रजातियों की विलुप्ति का खतरा है, जबकि एक तिहाई उभयचरों पर भी यह खतरा बरकरार है.

जल-प्रदूषण और जल कि कमी को दूर करने के लिए आज पूरी दुनिया में यत्न हो रहे है।पेय जल और इसकी साफ-सफाई पर किए जाने वाले निवेश की रिटर्न दर काफी ऊंची है। हर एक रुपये निवेश पर 3 रुपये से 34 रुपये आर्थिक विकास रिटर्न का अनुमान लगाया जाता है. इन परिस्थितियों में विश्व में पानी की गुणवत्ता बनाए रखना मानव स्वास्थ्य और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए अति अवश्यकहो गया है। पानी की गुणवत्ता की जिम्मेदारी सरकारों और समुदायों के साथ हमारी निजी तौर पर भी है. लोगों को जल की गुणवत्ता और सेहत के बीच रिश्ते पर जागरूक कर जल की गुणवत्ता सुधारने के लिए हम भी पहल कर सकते हैं। खेती के लिए भूमि कटाव नियंत्रण और पोषक तत्व प्रबंधन योजनाओं वाली तकनीक का प्रयोग करने के साथ-साथ विषैले रसायनों का कम से कम प्रयोग होना चाहिए. यही नहीं शहरी क्षेत्रों में ज्यादातर हिस्सों में पक्के फर्श होने से पानी जमीन के अंदर न जाकर किसी जल स्त्रोत की तरफ बह जाता है। रास्ते में यह अपने साथ हमारे द्वारा बिखेरे खतरनाक रसायनों, तेल, ग्रीस, कीटनाशकों एवं उर्वरकों जैसे कई प्रदूषक तत्वों को ले जाकर पूरे जलस्त्रोत को प्रदूषित कर देता है। इसलिए इन रसायनों से जलस्त्रोतों को बचाने के लिए पक्के फर्श के विकल्पों का चुनाव करें। संभव हो तो छिद्रित फर्श बनाए जा सकते हैं। स्थानीय पौधे भी लगाए जा सकते हैं.

वाकई जल ही जीवन है. अगर अमृत कहीं है, तो यही है। अत: पेय जल की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए हम-आप अपने स्तर पर भी पहल कर सकते हैं। इसी में हमारा-आपका और आने वाली पीढ़ियों का भविष्य सुरक्षित है. तो इस विश्व जल दिवस से ही ये शुरुआत क्यों न की जाय अन्यथा काला-पानी की कहानी फिर से चरितार्थ हो जाएगी, जहाँ सब ओर पानी तो दिखता है, पर पीने को लोग तरसते हैं !!
 
-आकांक्षा यादव

रविवार, 14 मार्च 2010

सम्पूर्ण आहार के रूप में केला

नवरात्र का त्यौहार मंगलवार से आरंभ हो रहा है. विशेषकर नारियों के लिए यह बहुत महत्वपूर्ण समय होता है. घर-आफिस की जिम्मेदारियों के साथ व्रत-पालन वाकई एक दुष्कर कार्य होता है. पर व्रत कोई भी हो, फलों का अपना महत्त्व है. फलों में भी केला का विशेष महत्त्व है. केले की महिमा सा भला कौन अपरिचित होगा.केला विश्व का सबसे अहम फल माना जाता है। यह हर जगह आसानी से उपलब्ध रहता है। यहाँ अंडमान में तो केला बहुतायत में आसानी से मिलने वाला फल है.विश्व में प्रति एकड़ सबसे अधिक फल देने वाली केले की फसल रहती है। इसे एक संपूर्ण आहार माना जाता है.अगर आप दुबले हैं और मोटा होना चाहते हैं तो प्रतिदिन रोज जमकर केले खांए। इसमें प्रचुर मात्रा में फैट मिलता है। केले में शरीर को लाभ पहुंचाने के और भी कई गुण हैं इसमें प्रोटीन 13 प्रतिशत, चर्बी 2 प्रतिशत, खनिज पदार्थ 7 प्रतिशत, कार्बोहाइड्रेट 36.4 प्रतिशत, कैल्शियम 1 प्रतिशत, फासफोरस 5 प्रतिशत, लोहा 4 प्रतिशत पाया जाता है।

सर्वप्रथम केले का पौधा दक्षिण-पूर्व एशिया और इंडोनेशिया के जंगलों से मिला था और संभवतः पपुआ न्यूगिनी में इन्हें सबसे पहले उपजाया गया था. 16वीं शताब्दी में स्पेन के लोग इसे अमेरिका ले गए वहां इसकी खूब खेती की जाने लगी। अब इसकी खेती अमेरिका, मलाया, ब्राजील, कोलंबिया, थाईलैण्ड, इंडोचीन और भारत में होती है।

केला जहां एक संपूर्ण आहार है वहीं इसके औषधीय गुण भी कम नहीं हैं। केला स्वादिष्ट, शीतल तथा स्वास्थ्यवर्धक फल है। एक सौ ग्राम केले से अनुमानतः 153 कैलोरी शक्ति मिलती है। आयुर्वेद में बताया गया है कि पका केला ठंडा, रूचिकर, पुष्टिकारक, शरीर पर मांस बढ़ाने वाला, रक्त-विहार नाशक, पथरी, रक्तपित्त दूर करने वाला प्रदर तथा नेत्ररोग मिटाने वाला होता है। केला कच्चे और पके दोनों तरह से इस्तेमाल में आता है। मंदाग्नि, गुर्दे के रोगों ग्रंथि रोग, गठिया आदि रोगों के लिए लाभकारी साबित होता है। अम्लहीन होने के कारैष्टिक अल्सर के रागियों को सरलता से पच जाता है। केला आंत की कमियों को समूल समाप्त करता हे। दस्त और पेचिश में पके हुए केले का प्रयोग बहुत गुणकारी है। मधुमेह के रोगियों के लिए भी केला हानिकारक नहीं होता है। कमजोर पाचन शक्ति वाले मरीज के लिए केला वरदान है। वजन बढ़ाने के इच्छुक लोगों के लिए केला सर्वोत्तम भोजन है। केला खूब पका हुआ ही खाना चाहिए। कच्चे केले में 20-25% स्टार्च मिलता है, जो आसानी से सुपाच्य शर्करा में बदलता है। कच्चे केले को तलकर भी खाया जात है और इससे स्वादिष्ट मिठाइयां भी बनती हैं। दक्षिण भारत में कच्चे केले के टुकड़े काटकर सुखकर पीसकर पाउडर बना लेते हैं। केले का यह पाउडर दूध के साथ देने से बच्चों के विकास में सहायक रहता है।

केले में लोहा होने के कारण यह एनीमिया के रोगी में खून की वृद्धि करता है। अगर किसी को खाज व गंजापन की बराबर शिकायत है तो केले के गूदे में नीबू का रस मिलाकर लगाने से लाभ होता है। दस्तों की स्थिति अधिक बनने पर दही के साथ पका केला खाना लाभदायक है। केला पेट के लिए इतना अधिक लाभदायक साबित हुआ है कि आंत के रोगों को बिना आपरेशन ठीक कर सकता है। पेचिश में केले को दही में मथ कर थोड़ा सा जीरा व काला नमक मिलाकर खाना उचित रहता है। कुत्ते के काटने की जगह पर केले के बीच को पीसकर लगाने से लाभ रहता है। केले के सेवन से आंतों में विजातीय द्रव्यों की सड़न क्रिया नहीं होती है। जलने पर केले के पत्तों का रस लगाने से फफोले नहीं पड़ते। केला खने से बच्चों व कमजोर व्यक्तियों की पाचन शक्ति ठीक रहती है। भूख ज्यादा लगती है। केला उच्च रक्त चाप को रोकने में सार्थक और हृदय रोगों में उपयोगी है। अपच में केले की सब्जी बनाकर खाएं। केले में पेक्टिन नामक पदार्थ होता है, जो मल को मुलायम और साफ करके पेट से बाहर निकालने में सहायक हैं। एक केला, एक कप नारियल का पानी व एक चम्मच शहद मिलाकर सेवन करने से पीलिया, टायफाइड, खसरा में लाभप्रद रहता है। केले में सिरोटीन नामक क्षरीय रसायन मिलता है जोकि खून की क्षरीयता को बढ़ाता है तथा अमाशय की अम्लता को कम करता है।
 
-आकांक्षा यादव

बुधवार, 10 मार्च 2010

धर्म का लबादा ओढ़े ये मानवता के भक्षक

 
कानपुर भले ही छूट गया हो, पर अभी भी वहाँ की ख़बरें देख-पढ़ लेती हूँ. चार साल से ज्यादा का रिश्ता इतनी जल्दी छोड़ भी तो नहीं पाती. कानपुर भले ही कभी उत्तर प्रदेश की औद्योगिक राजधानी रहा हो, पर आज का कानपुर अपराध के लिए कुख्यात है, वो भी मूलत: महिलाओं के सम्बन्ध में. यहाँ पोर्टब्लेयर में जब लोगों को बेरोकटोक भारी गहने पहने देखती हूँ तो कानपुर का वो मंजर याद आता है जहाँ रोज गले से चेन की छिनैती, महिलाओं से छेड़-छाड़ आम बात है. कभी गौर करें तो कानपुर से सबसे ज्यादा अख़बार प्रकाशित होते हैं और स्थानीय ख़बरों में ऐसी ही समाचारों की भरमार रहती है.

अभी एक खबर पर निगाह गई कि कानपुर में लड्डू खिलाने के बहाने घर से ले जाकर एक पुजारी के बेटे ने सात साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म किया और बाद में उसकी गला दबाकर हत्या कर दी। पुजारी का यह बेटा कुछ दिनों से पिता के बीमार होने के कारण पूजा-पाठ का काम खुद ही कर रहा था। और इसी दौरान उसने यह कु-कृत्य किया.
 
पता नहीं ऐसे लोग किस विकृत मानसिकता में पले-बढे होते हैं, जो कभी ढोंगी बाबा का रूप धारण करते हैं तो कभी पुजारी का. उन्होंने आवरण कितना भी बढ़िया ओढ़ रखा हो, पर मानसिकता कुत्सित ही होती है. मंदिर में बैठे पुजारी से लेकर बड़े-बड़े धर्माचार्य तक सब लम्बे-लम्बे उपदेश देते हैं, पर खुद के ऊपर इनका कोई संयम नहीं होता. ऐसे लोग समाज के नाम पर कोढ़ ही कहे जायेंगें. सात साल की बच्ची से बलात्कार..सोचकर ही दिल दहल जाता है.
 
अभी कुछ दिनों पहले कोलकाता एयरपोर्ट पर थी, तो पता चला कि 7-8 साल की बच्ची के साथ वहाँ के एक स्टाफ ने छेड़खानी की, जिसके चलते वहाँ सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है. अपने चारों तरफ देखें तो ऐसी घटनाएँ रोज घटती हैं, जिनसे मानवता शर्मसार होती है. पर धर्म के पहरुये ही जब मानवता के भक्षक बन जाएँ तो क्या कहा जाय...?
 
-आकांक्षा यादव

गुरुवार, 4 मार्च 2010

बोआ सीनियर के निधन के साथ 65,000 साल पुरानी भाषा विलुप्त

सुनकर अजीब लगता है, पर यह सच है. हाल ही में अंडमान निकोबार द्वीप समूह की तकरीबन 65000 साल से बोली जाने वाली एक आदिवासी भाषा हमेशा के लिए विलुप्त हो गई । वस्तुत: कुछ दिन पहले अंडमान में रहने वाले बो कबीले की आखिरी सदस्य 85 वर्षीय बोआ सीनियर के निधन के साथ ही इस आदिवासी समुदाय द्वारा बोली जाने वाली बो भाषा भी लुप्त हो गई। ग्रेट अंडमान में कुल 10 मूल आदिवासी समुदायों में से एक बो समुदाय की इस अंतिम सदस्य ने 2004 की विनाशकारी सुनामी में अपने घर-बार को खो दिया था और सरकार द्वारा बनाए गए कांक्रीट के शेल्टर में स्ट्रैट द्वीप पर गुजर-बसर कर रही थी। 'बो' भाषा के बारे में भाषाई विशेषज्ञों का मानना है कि यह भाषा अंडमान में प्री-नियोलोथिक समय से इस समुदाय द्वारा उपयोग में लाई जा रही थी।

अंडमान में रहने वाले आदिवासियों को मुख्यतः चार भागों में बाँटा जा सकता है-द ग्रेट अंडमानी, जारवा, ओंग और सेंटिनीलीस। लगभग 10 भाषाई समूहों में बँटे ग्रेट अंडमान के मूल निवासियों की जनसंख्या 1858 में द्वीप पर ब्रिटिश कॉलोनी बनने तक 5500 से भी ज्यादा थी, पर इनमें से बहुत से मारे गए या 'बाहरी' दुनिया के लोगों द्वारा लाई गई संक्रमित बीमारियों का शिकार बन गए। वर्तमान में ग्रेटर अंडमान में केवल 52 मूल निवासी लोग बचे हैं, जिनके भविष्य पर भी अब संशय बना है। दरअसल, ये भाषाएँ शहरीकरण के चलते दूर-दराज के इलाकों में अंग्रेजी और हिंदी के बढ़ते प्रभाव के कारण हाशिए पर जा रही हैं।

गौरतलब है कि कुछ ही दिन पहले संयुक्त राष्ट्र की पहली ‘स्टेट ऑफ द वर्ल्ड्स इंडीजीनस पीपुल्स’ रिपोर्ट में भी इस बात का उल्लेख किया गया है कि दुनियाभर में छह से सात हजार तक भाषाएँ बोली जाती हैं, इनमें से बहुत सी भाषाओं पर लुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि इनमें से अधिकतर भाषाएँ बहुत कम लोग बोलते हैं, जबकि बहुत थोड़ी सी भाषाएँ बहुत सारे लोगों द्वारा बोली जाती हैं। सभी मौजूदा भाषाओं में से लगभग 90 फीसदी अगले 100 सालों में लुप्त हो सकती हैं, क्योंकि दुनिया की लगभग 97 फीसदी आबादी इनमें से सिर्फ चार फीसदी भाषाएँ बोलती हैं। यूनेस्को द्वारा किए गए अध्ययन के मुताबिक ठेठ आदिवासी भाषाओं पर विलुप्ति का खतरा बढ़ता ही जा रहा है और इन्हें बचाने की आपात स्तर पर कोशिशें करना होंगी।

वस्तुत: यह सिर्फ किसी भाषा के खत्म होने का ही सवाल नहीं है, बल्कि इसी के साथ उस समुदाय के नष्ट होने का अहसास भी होता है। इस तरफ सभी देशों को ध्यान देने की जरुरत है, अन्यथा हम अपनी विरसत को यूँ ही खोते रहेंगे !!

-आकांक्षा यादव

गुरुवार, 25 फ़रवरी 2010

काला पानी में सरपट दौड़ेगी ट्रेन

अंडमान के लोगों के लिए यह भारत द्वारा किसी मैच के जीतने सरीखा था. कल शाम को पोर्टब्लेयर की सड़कों पर पटाखे फूट रहे थे, कारण जानना चाही तो पता चला कि रेल मंत्री ममता बनर्जी ने रेलवे बजट में अंडमान में भी ट्रेन चलाने की बात प्रस्तावित की है. यहाँ राजधानी पोर्टब्लेयर और नार्थ अंडमान के सबसे दूर अवस्थित कस्बे डिगलीपुर के मध्य ट्रेन सेवा आरंभ करने के प्रस्ताव की घोषणा की गई है.

कभी काला-पानी के लिए मशहूर अंडमान के लिए यह इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि आजादी के बाद से आज तक किसी भी रेल बजट में अंडमान के बारे में लोकसभा में जिक्र नहीं किया गया. यह पहली बार है कि रेल बजट में अंडमान का जिक्र है. फ़िलहाल यह प्रस्ताव है और इसे फलीभूत होने में समय भी लगेगा, पर भारत के सबसे बड़े सरकारी विभाग की इसी बहाने अंडमान में उपस्थिति भी दिखेगी. अन्यथा रेलवे के लिए अभी तक तो अंडमान काला-पानी से शापित ही नजर आता था.

इस ट्रेन सेवा से जहाँ पूरा अंडमान जुड़ जायेगा, वहीँ रोजगार की संभावनाएं भी बढ़ जायेंगीं. समय की बचत के अलावा किसानों को इसका सीधा लाभ मिलेगा और वे अपने उत्पादों को राजधानी पोर्टब्लेयर के बाजारों में आसानी से ला सकेंगें. इसके अभाव में यहाँ सब्जियां बहुत महगीं हैं, इससे उनकी कीमतें भी नियंत्रित हो जायेंगीं. चूँकि ममता बनर्जी पडोसी राज्य पश्चिम बंगाल की हैं, सो वे स्वयं अंडमान का दौरा आसानी से कर सकती हैं.

कभी काला-पानी के लिए कुख्यात अंडमान में ट्रेन सेवा मीडिया के लिए भी महत्वपूर्ण खबर बनी. तमाम राष्ट्रीय चैनल बाकायदा इसे हाईलाइट करके दिखा रहे थे. फ़िलहाल अंडमान के लोग खुश हैं और उनके साथ ही किसान, व्यवसायी, अधिकारी और पर्यटक भी खुश हैं...पर डर इस बात का भी है की यह सिर्फ घोषणा तक ही न रह जाय. अन्यथा रेलवे विभाग के लिए अंडमान काला-पानी ही बनकर रह जायेगा, जहाँ आज तक उन्होंने कदम ही नहीं रखा !!

शुक्रवार, 19 फ़रवरी 2010

'शब्द-शिखर' के बहाने 'अमर उजाला' में अंडमान के आम

'शब्द शिखर' पर 18 फरवरी, 2010 को प्रस्तुत पोस्ट अंडमान में आम की बहार को प्रतिष्ठित हिन्दी दैनिक पत्र 'अमर उजाला' ने 19 फरवरी, 2010 को अपने सम्पादकीय पृष्ठ पर 'ब्लॉग कोना' में स्थान दिया! 'अमर उजाला' के ब्लॉग कोना में नौवीं बार 'शब्द-शिखर' की चर्चा हुई है. फ़िलहाल अंडमान आने के बाद पहली बार किसी पत्र-पत्रिका ने इस ब्लॉग की चर्चा की है, सुखद अनुभूति होती है. यहाँ पर अधिकतर पत्र-पत्रिकाएं नहीं मिलती हैं, पर स्नेही-जन फोन कर सूचनाएं जरुर देते रहते हैं...आप सभी का पुन: आभार !!

इससे पहले शब्द-शिखर ब्लॉग पर प्रकाशित रचनाओं की चर्चा अमर उजाला, राष्ट्रीय सहारा,राजस्थान पत्रिका,गजरौला टाईम्स, दस्तक, आई-नेक्स्ट, IANS द्वारा जारी फीचर में की जा चुकी है. आप सभी का इस समर्थन व सहयोग के लिए आभार! यूँ ही अपना सहयोग व स्नेह बनाये रखें !!

गुरुवार, 18 फ़रवरी 2010

अंडमान में आम की बहार

आम का फल विश्वप्रसिद्ध स्वादिष्ट फल है। इसे फलों का राजा कहा गया हैं। वेदों में आम को विलास का प्रतीक कहा गया है। इसका रसदार फल विटामिन ए, सी तथा डी का एक समृद्ध स्रोत है। कवि कालीदास ने इसकी प्रशंसा में गीत लिखे हैं। अलेक्‍सेंडर ने इसका स्‍वाद चखा है और साथ ही चीनी धर्म यात्री व्‍हेनसांग ने भी। मुग़ल सम्राट अकबर ने तो दरभंगा में आम के एक लाख पौधे लगाए और उस बाग़ को आज भी लाखी बाग़ के नाम से जाना जाता है। कालांतर में तमाम कविताओं में इसका ज़िक्र हुआ और कलाकारों ने बखूबी इसे अपने कैनवास पर उतारा। अपने देश में गर्मियों के आरंभ से ही आम पकने का इंतज़ार होने लगता है।

भारतीय प्रायद्वीप में आम की कृषि हजारों वर्षों से हो रही है। यह ४-५ ईसा पूर्व पूर्वी एशिया में पहुँचा। १० वीं शताब्दी तक यह पूर्वी अफ्रीका पहुँच चुका था। उसके बाद आम ब्राजील,वेस्टइंडीज और मैक्सिको पहुँचा क्योंकि वहाँ की जलवायु में यह अच्छी तरह उग सकता था। १४वीं शताब्दी में मुस्लिम यात्री इब्नबतूता ने इसकी सोमालिया में मिलने की पुष्टि की है। तमिलनाडु के कृष्णगिरि के आम बहुत ही स्वादिष्ट होते हैं और दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं।

जब हम लखनऊ में थे तो अक्सर आम के इस शौक में मलिहाबाद जाते थे. उत्तर भारत में गौरजीत, बाम्बेग्रीन, दशहरी, लंगड़ा, चौसा एवं लखनऊ सफेदा प्रजातियाँ तो खूब उगायी जाती हैं।देखा जाय तो आम की किस्मों में दशहरी, लंगड़ा, चौसा, फज़ली, बम्बई ग्रीन, बम्बई, अलफ़ॉन्ज़ो, बैंगन पल्ली, हिम सागर, केशर, किशन भोग, मलगोवा, नीलम, सुर्वन रेखा,वनराज, जरदालू प्रसिद्द हैं। अब तो तमाम नई किस्में- मल्लिका, आम्रपाली, रत्ना, अर्का अरुण, अर्मा पुनीत, अर्का अनमोल तथा दशहरी-51 इत्यादि भी दिखने लगी हैं.

आम को तो वैज्ञानिकों ने ब्रेस्ट कैंसर से बचाव में दूसरे फलों के मुकाबले भी ज्यादा फायदेमंद माना है। वस्तुत: आम में ब्लूबेरी (नीबदरी), अंगूर, अनार जैसे दूसरे फलों से कम एंटीऑक्सिडेंट होने के कारण यह शरीर में एंटी कैंसर एक्टिविटीज को बढाता है। इसलिए कैंसर से बचने के लिए आम को रेग्यूलर डाइट में शामिल करना फायदेमंद है।पर यहाँ चर्चा अंडमान के आमों की...!!

आम खाना किसे नहीं अच्छा लगता, और वो भी मौसम से पहले. फ़िलहाल यहाँ अंडमान में तो हमारे लिए यही स्थिति है. अपने उत्तर-प्रदेश में रहते तो आम के लिए जून-जुलाई का इंतजार करते, पर यहाँ तो अभी से फलों के राजा आम की बहार है. पेड़ों पर आम सिर्फ दिखने ही नहीं लगे हैं बल्कि अब तो पककर पीले और लाल भी हो रहे हैं.

जब हम यहाँ आये थे तो आम के पेड़ों में बौर देखकर बड़ा अपनापन सा लगा था. पहले दाल में आम डालकर इसका स्वाद लिया, अब पर अब तो इन रसीले पीले-पीले आमों को खाने का मजा ही दुगुना हो गया है. वही स्वाद, वही अंदाज़..अजी क्या कहने. यहाँ के लोग बताते हैं कि अंडमान में बारहों महीने आम की फसल होती है और हर तीन माह बाद आम के फल पेड़ों पर दिखने लगते हैं. काश ऐसा ही हो और हम मस्ती से आम खाएं. फ़िलहाल अगले एक-दो सालों तक तो आम के लिए गर्मियों का इंतजार नहीं करना पड़ेगा. वक़्त से पहले आम को प्राकृतिक रूप में खाने के इस उत्साह ने बैठे-बैठे ये पोस्ट भी लिखवा दी. आप भी अंडमान आयें तो छककर आम खाएं और उसके बाद तो नारियल का पानी पियें ही... !!

बुधवार, 17 फ़रवरी 2010

प्रकृति प्रेमियों का स्‍वर्ग : अंडमान-निकोबार

फ़िलहाल अंडमान-निकोबार में हूँ, सो यहाँ की बहुत सी चीजें समझने की कोशिश भी कर रही हूँ. अंडमान निकोबार द्वीप प्रकृति प्रेमियों का स्‍वर्ग और गार्डन ऑफ इडन कहा जाता है। यहां का स्‍वच्‍छ परिवेश, सड़कें, हरियाली और प्रदूषण रहित ताजी हवा सभी प्रकृति प्रेमियों को अपनी ओर अकार्षित करते हैं। यहाँ स्थित कुल 572 दीपों में मात्र 38 पर जन-जीवन है और उनमें भी बमुश्किल आप लगभग 15 दीपों की सैर कर सकते हैं.

8,249 वर्ग कि.मी. में फैले अंडमान और निकोबार द्वीप समूह को पारिस्थितिकी के अनुकूल पर्यटक क्षेत्र के रूप में मान्‍यता दी गई हैं। इन द्वीपों के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 7,171 वर्ग किलोमीटर भाग वनों से ढका हुआ है। इन द्वीपों पर लगभग सभी प्रकार के वन जैसे उष्‍णकटिबंधीय आर्द्र सदाबहार वन, उष्‍णकटिबंधीय अर्द्ध सदाबहार वन, आर्द्र पर्णपाती, गिरि शिखर पर होने वाले तथा तटवर्ती और दलदली बन पाए जाते हैं। अंडमान निकोबार में विभिन्‍न प्रकार की लकडियां पाई जाती हैं। सबसे बहुमूल्‍य लकडियां पाडोक तथा गरजन की हैं। ये निकोबार में नहीं मिलतीं। यहाँ उष्‍ण कटिबंधीय सदाबहार वर्षा वन, रजताभ बालू-तट, मैन्‍ग्रोव की घुमावदार पंक्तियां, संकरी खाडियां, पादपों, प्राणियों, प्रवालों आदि की दुर्लभ जातियों से भरपूर समुद्री जीवन पर्यटकों के लिए स्‍वर्ग हैं। इन द्वीपों में 96 वन्‍यजीव अभयारण्‍य, नौ राष्‍ट्रीय पार्क तथा एक जैव संरक्षित क्षेत्र (बायोरिजर्व) हैं।

अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह की 1912 किमी की लंबी तटरेखा पर मात्स्यिकी के विकास के लिए बहुत संभावना हैं। इसका 6 लाख वर्ग किमी का अनन्‍य आर्थिक क्षेत्र (ईईजेड) है जो भारत के कुल अनन्‍य आर्थित क्षेत्र का 30 हैं। अंडमान और निकोबार द्वीप समूह के समुद्र में मछलियों की 1100 से अधिक जातियों की पहचान की गई है जिनमें से अभी लगभग 30 जातियों का ही वाणिज्यिक उपयोग किया जा रहा है। इस द्वीप के वनों में रहने वाले मूल अधिवासी अभी भी शिकार और मछली पकड़ने का कार्य करते हैं। इनकी चार नेग्रीटो जनजातियां हैं, जो हैं ग्रेट अंडमानी, ओंज, जरावा और सेंटीनेलेस जो द्वीप समूहों के अंडमान समूह में पाई जाती हैं तथा दो मंगोली जनजातियां अर्थात निकोबारी और शाम्‍पेन्‍स द्वीप के निकोबार समूह में पाई जाती हैं।

अंडमान द्वीप समूह की मुख्‍य खाद्य फसल धान है और निकोबार द्वीप समूह की मुख्‍य नकदी फ़सलें नारियल तथा सुपारी हैं। यहां के किसान पहाडी जमीन पर भिन्‍न-भिन्‍न प्रकार के फल, जैसे आम, सेपोटा, संतरा, केला, पपीता, अनन्‍नास और कंदमूल आदि उगाते हैं। यहां बहुफसल व्‍यवस्‍था के अंतर्गत मसाले, जैसे - मिर्च, लौंग, जायफल तथा दालचीनी आदि भी उगाए जाते हैं। इन द्वीपों में रबड, रेड आयल, ताड़ तथा काजू आदि भी थोडी-बहुत मात्रा में उगाए जाते हैं।

वाकई प्रकृति का सबसे अधिक कीमती उपहार माना जाने वाला अंडमान और निकोबार द्वीप जीवन भर याद रहने वाला अवकाश अनुभव है। तभी तो कीट्स ने यहाँ के लिए लिखा था कि-''यहाँ का संगमरमरी सफेद तट अपने किनारों पर पाम वृक्षों के साथ अचल खड़ा रहकर समुद्र की ताल पर नृत्‍य करता है। जनजातीय तबलों की ताल पर यहाँ की वीरानी और रंग- बिरंगी मछलियां साफ स्‍वच्‍छ चमकीले पानी में अपने रास्‍ते चलती हैं।''