नवरात्र मातृ-शक्ति का प्रतीक है। एक तरफ इससे जुड़ी तमाम धार्मिक मान्यतायें हैं, वहीं अष्टमी के दिन नौ कन्याओं को भोजन कराकर इसे व्यवहारिक रूप भी दिया जाता है। लोग नौ कन्याओं को ढूढ़ने के लिए गलियों की खाक छान मारते हैं, पर यह कोई नहीं सोचता कि अन्य दिनों में लड़कियों के प्रति समाज का क्या व्यवहार होता है। आश्चर्य होता है कि यह वही समाज है जहाँ भ्रूण-हत्या, दहेज हत्या, बलात्कार जैसे मामले रोज सुनने को मिलते है पर नवरात्र की बेला पर लोग नौ कन्याओं का पेट भरकर, उनके चरण स्पर्श कर अपनी इतिश्री कर लेना चाहते हैं। आखिर यह दोहरापन क्यों? इसे समाज की संवेदनहीनता माना जाय या कुछ और? आज बेटियां धरा से आसमां तक परचम फहरा रही हैं, पर उनके जन्म के नाम पर ही समाज में लोग नाकभौं सिकोड़ने लगते हैं। यही नहीं लोग यह संवेदना भी जताने लगते हैं कि अगली बार बेटा ही होगा। इनमें महिलाएं भी शामिल होती हैं। वे स्वयं भूल जाती हैं कि वे स्वयं एक महिला हैं। आखिर यह दोहरापन किसके लिए ??
समाज बदल रहा है। अभी तक बेटियों द्वारा पिता की चिता को मुखाग्नि देने के वाकये सुनाई देते थे, हाल ही में पत्नी द्वारा पति की चिता को मुखाग्नि देने और बेटी द्वारा पितृ पक्ष में श्राद्ध कर पिता का पिण्डदान करने जैसे मामले भी प्रकाश में आये हैं। फिर पुरूषों को यह चिन्ता क्यों है कि उनकी मौत के बाद मुखाग्नि कौन देगा। अब तो ऐसा कोई बिन्दु बचता भी नहीं, जहां महिलाएं पुरूषों से पीछे हैं। फिर भी समाज उनकी शक्ति को क्यों नहीं पहचानता? समाज इस शक्ति की आराधना तो करता है पर वास्तविक जीवन में उसे वह दर्जा नहीं देना चाहता। ऐसे में नवरात्र पर नौ कन्याओं को भोजन मात्र कराकर क्या सभी के कर्तव्यों की इतिश्री हो गई ....???
समाज बदल रहा है। अभी तक बेटियों द्वारा पिता की चिता को मुखाग्नि देने के वाकये सुनाई देते थे, हाल ही में पत्नी द्वारा पति की चिता को मुखाग्नि देने और बेटी द्वारा पितृ पक्ष में श्राद्ध कर पिता का पिण्डदान करने जैसे मामले भी प्रकाश में आये हैं। फिर पुरूषों को यह चिन्ता क्यों है कि उनकी मौत के बाद मुखाग्नि कौन देगा। अब तो ऐसा कोई बिन्दु बचता भी नहीं, जहां महिलाएं पुरूषों से पीछे हैं। फिर भी समाज उनकी शक्ति को क्यों नहीं पहचानता? समाज इस शक्ति की आराधना तो करता है पर वास्तविक जीवन में उसे वह दर्जा नहीं देना चाहता। ऐसे में नवरात्र पर नौ कन्याओं को भोजन मात्र कराकर क्या सभी के कर्तव्यों की इतिश्री हो गई ....???
42 टिप्पणियां:
यही तो समाज का दोगलापन है.नवरात्र के बहाने अपने एक कुरीति की तरफ भी ध्यान आकृष्ट किया.आभार.
चित्र काफी मनमोहक लगाया...
sundar post badhai
समाज इस शक्ति की आराधना तो करता है पर वास्तविक जीवन में उसे वह दर्जा नहीं देना चाहता...यही तो विडंबना है. सशक्त पोस्ट की बधाई.
बदलते दौर का चित्रण करता बहुत उम्दा आलेख. आपके विचारों से सहमत हूँ. इस ओर ध्यान देने की जरुरत है.
पाखी बिटिया के ब्लॉग पर भी गया. पाखी को देख ख्याल आया-
अगर इतनी प्यारी सोच तुम्हारी न होती
मुलाकात तुमसे हमारी न होती
तड़पते रहते सच्चे दोस्त के लिए
अगर दोस्ती तुम से हमारी न होती.
समाज बहुत स्वार्थी है ...
nari panna ki mamta saheje hue tyag-balidan ka saty pratiroop hai
padmini banke jauhar dikhaya kabhi nari bharat ke gaurav ki stoop hai
vastavik jeevan me nari shakti ko sweekaren aur samman den dikhawa karne se koi fayda nahi
achchhe vishay par achchhi pahal prashansniy hai
इसी विषय पर एक कविता अभी राष्ट्र भाषा पर पढकर आ रही हूँ.
वाकई कितना दोगला स्वरुप है हमारे समाज का. एक रूप को पूजते हैं जो पत्थर का है ..और जीते जागते एक रूप का क़त्ल ...उफ़.
समाज को झकझोरने के लिए आपने बहुत ही महत्वपूर्म विषय पर कलम चलाई है!
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बहुत-बहुत आभार!
7/10
प्रशंसनीय
कर्मकांड का जो उद्देश्य था .. उसे लोग भूल चुके हैं .. कर्मकांड समाज की भलाई के लिए बनाया गया था .. आज स्वार्थ सिद्ध करने के लिए लोग इसका सहारा लेते हैं .. बहुत अच्छी पोस्ट !!
बहुत अच्छा सवाल है .पता नहीँ किस मानसिकता से लोग ऐसा करते हैँ . भगवान उन्हे सद्बुदिध देँ.
सामयिक विषय उठाया। लोगों को समझना होगा।
अगर बेटा नालायक निकले ओर उम्र भर तो मां बाप को दुखी रके तो क्या उस के हाथो चिता को मुखाग्नि देने से स्वर्ग मिल जायेगा, जिस ने जीते जी तो जीवन नरक बना दिया, मेरे हिसाब से यह **चिता को मुखाग्नि ** तो एक बहाना हे, लोग कन्या को जन्म से पहले इस लिये मार देते हे कि कही उस की शादी मै पेसा ना खर्चना पडे, ओर सच मे यह दोगला पन ही हे, इन के बेटे भी इन के बाप निकलते हे, एक जागरुक करती पोस्ट धन्यवाद
हमारे इस बयान को हमेशा विवाद का विषय बना लिया जाता है की सबसे ज्यादा ढोंगी ही सबसे ज्यादा पूजा करने में व्यस्त रहता है.
इस तरह की मानसिकता यही दर्शाती है कि आदमी क्या सोचता है और करता क्या है?
जय हिन्द, जय बुन्देलखण्ड
संवेदनहीन समाज को झकझोरने का प्रयास आपने किया है. ऐसे लेखन के लिए बधाई.
कुल मिला कर बात ढोंगियो पर ही आ जाती है, आज कल भारतीय रिचुअल्स के रिप्रजेंटेटिव ये ही है
इस देश में दोगलों और ढोंगियो की संख्या बहुत ज्यादा है, आश्चर्य की बात ये है की युवा पीडी खुद भी आधुनिकता के नए ढोंग में फंस गयी है
इन ढोंगियो को सुधारे कौन ?? युवा पीडी तो खुद दोगली है , इसके नतीजे और भी बुरे होंगे
@ Ratnesh,
धन्यवाद...कुरीतियों का उन्मूलन भी जरुरी है.
@ Tushar Ji,
Thanks a lot.
@ Bhanvar,
धन्यवाद..पाखी बिटिया के ब्लॉग की सराहना के लिए आभार.
@ Dr. Brajesh,
@ M. Verma ji,
@ Surendra ji,
यही समाज का स्वार्थ और विडंबना है..पधारने के लिए आभार.
@ Shikha,
धन्यवाद..सही कहा आपने. समाज नारी को पूजनीय बनाकर भी पत्थरों में कैद कर देता है.
@ Mayank ji,
@ Ustad,
Thanks al ot.
@ Sangita ji,
@ Upendra ,
@ Bhatiya ji,
@ Sengar ji,
यही तो विडंबना है.
@ Pravin ji,
@ Bhushan ji,
Thanks a lot.
@ Gourav,
..युवा पीढ़ी में सभी गलत ही हों, ऐसा नहीं कहा जा सकता.
लोगों को कन्याओं के बारे में सोचने का समय ही नहीं ...और यही चरित्र है आधुनिक समाज का ...
तारीफ करे इसकी !
मनुष्य के इस दोहरे स्वभाव का कारण दो तरह का भय है- इहलोक का भय और परलोक का भय- पहली कुरीति का कारण इहलोक का भय अर्थात सामाजिक कुत्सित रूढ़ियों का भय है और दूसरा, परलोक का भय, जिसके कारण वह नवरात्रि में नो कन्याओं को भोज करवाता है। समाज के इस दोहरे व्यवहार की विडंबना की ओर ध्यान आकर्षित करने के लिए आपको साधुवाद।
आप मेरे ब्लॉग पर आईं, इसके लिए आभार।
सामयिक विषय उठाया।
बहुत सार्थक लेख ...यही दोगलापन रह गया है ...जागरूक करने वाला लेख
यह पंक्ति एक अहम सवाल खड़ा कर जाती है,बहुत ही गहन एवं सोचनीय प्रस्तुति के साथ सुन्दर लेखन ।
बहुत अच्छे विषय पर सवाल किया है । यह समाज का दोहरा चरित्र है ।
आपके अंतिम प्रश्न वाक्य का जवाब -जी नहीं बिलकुल नहीं !
आपके अंतिम प्रश्न वाक्य का जवाब -जी नहीं बिलकुल नहीं !
अले कित्ते लोग यहाँ पर आए हैं...
एक समय था जब लोग बेटियों के होने पर दुख मनाते थे और बेटे होने पर खुशी वो थे जो मुखाग्नि की बात सोचते है पर भ्रूण हत्या करने वाला आज का समाज ये बात नहीं सोचता उसे बेटी की आवश्यकता नहीं है वो उनके लिए जीवन भर का बोझा है जिसको पालने पोसने पढ़ाने से उन्हें कोई फायदा नहीं होने वाला है उलटा दहेज़ का खर्च अलग से है तो ना रहे यही अच्छा है | पहली बेटी तो मज़बूरी में झेल लेते है पर दूसरी नहीं आने देते है |
मै तो कहती हूँ कि मुखाग्नि देने या न देने से क्या होगा ………………पंचतत्व का शरीर है उसी मे मिलना है तो मरने के बाद किसे पता कि इसका क्या किया…………॥आज तक कौन आया है ये जानने कि उसका क्या हुआ और कैसे हुआ……………ये सब कोरे वहम हैं आज लड्किया कहाँ कम हैं ……………।बस ये समाजिक कुरीति है जिसे हम सबको आगे आकर जड से मिटाने मे सहयोग करना चाहिये।
@आकांक्षा जी
आपकी बात से सहमत हूँ , लेकिन परेशानी गलत लोगों से उतनी नहीं होती जितनी को पूवाग्रही + अल्पज्ञानी + अतिआत्मविश्वासधारियों से क्योंकि अभी मैं भी युवापीढी में ही आता हूँ , और इसीलिए मेरे अनुभव से मुझे पता लगा की युवाओं को ना तो महाभारत ठीक से पता है ना रामायण और न कोई और ग्रन्थ .. और उस पर आत्मविश्वास देखिये राम और कृष्ण की सारी कमियाँ मुह जबानी याद है [जो की उनमें नहीं थी] पता नहीं किस कचरे में से दो चार बकवास आर्टिकल पढ़ के ज्ञानी बन बैठे हैं , अगर आज संस्कृति का ये हाल है तो जिम्मेदार कौनसी पीढी है ?? , ये अपने आप को आधुनिक बताने वाली पीढी तो इन ढोंगियों से ज्यादा पाखंडी है , ये नए जमाने के पाखंडी हैं वो पुराने जमाने के थे|
अज्ञान कोई बुराई नहीं है.......... किसी ज्ञान को सिरे से नकार देना बुराई है , पूर्वाग्रह दूरदृष्टि की दीमक है
@ सभी से
अगर कोई मेरी बात का विरोध करने की इच्छा रखता / रखती हो तो ध्यान दें ... मैंने ये नहीं कहा की मैं ज्ञानी हूँ ... दरअसल मैं ज्ञान की खोज में हूँ [ये मानता हूँ] , जब खुद को ज्ञानी मानूंगा उसी दिन सबसे पहले ज्ञान के दरवाजे ही बंद होंगे
@ आकांक्षा जी
आप चाहें तो मेरे कमेन्ट हटा भी सकती हैं, "@ सभी से " वाला कमेन्ट आपके लिए नहीं है, आप जो भी कहें मेरे लिए सुनने और चिंतन करने योग्य ही होगा
आदर सहित
गौरव
एक और स्पष्टीकरण :
युवाओं से मेरा मतलब स्त्री और पुरुष दोनों से है ... कोई भी इसे व्यक्तिगत स्तर पर ना लें
समाज के दोगलेपन पर अच्छा कटाक्ष ...आज के समाज में स्वार्थ पर आधारित संबंधों के बीच एक बेटी का ही प्यार है जो सच्चा और निस्वार्थ है...बहुत अच्छी पोस्ट..आभार..
सार्थक विमर्श को बढ़ावा देती पोस्ट...आकांक्षा जी आपकी लेखनी यूँ ही नहीं हर जगह दिखती है.
इस तरह की मानसिकता यही दर्शाती है कि आदमी क्या सोचता है और करता क्या है?
..........लेखन के लिए बधाई.
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