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मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

शाहों के शाह, हमारे नौकरशाह! (कवि-मन कपिल सिब्बल जी की व्यथा)

(कहते हैं जब अपनी व्यथा किसी से न कह पायें तो कविता में उतार दें. यही कारण है कि आज तमाम नामचीन लोग कवितायेँ लिखते हैं, कोई चोरी-छुपे डायरी में तो कोई सभी के सामने अभिव्यक्त करता है. इन कवियों में अब मानव संसाधन मंत्री और संचार मंत्री कपिल सिब्बल जी का नाम भी शामिल हो गया है. उनकी इस कविता को पढ़ें, उनका दर्द समझें और कवि-मन से लुत्फ़ उठायें )

शाहों के शाह,
हमारे नौकरशाह!
पता नहीं इन्होंने
कहां से कौन सा ज्ञान
उधार लिया है,
कि न्यूटन के
प्रसिद्ध गति के नियम को भी
सुधार लिया है।
पाॅजिटिव कामों का
जरूर होना चाहिए विरोध,
ताकतवर निगेटिव प्रतिक्रिया से
बनाते हैं नए-नए अवरोध।
हर समस्या के लिए
सरकार के पास नीति है,
मंत्री के पास भी ज्ञान है
नीति को समझाने की रीति है।
जब उन्हें साफ-साफ अल्पफाज में
रास्ता बताया जाता है,
तो कुछ न कुछ
ऐसा लाया जाता है
जिससे दिखती है
उस कार्रवाई की सीमा,
और इस तरह
वे फाइलों की गति को
कर देते हैं धीमा।
शायद पड़ जाते हैं
गुरुत्वाकर्षण के
सिद्धांत के फेर में,
जिन फाइलों पर
तुरंत कार्रवाई की जरूरत हो
उन्हें सबसे नीचे जगह मिलती है
ढेर में।

(कपिल सिब्बल जी की पुस्तक ‘किस-किस की जय हो’से साभार)

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

तुम्हारी ख़ामोशी


तुम हो
मैं हूँ
और एक खामोशी
तुम कुछ कहते क्यूँ नहीं
तुम्हारे एक-एक शब्द
मेरे वजूद का
अहसास कराते हैं
तुम्हारी पलकों का
उठना व गिरना
तुम्हारा होठों में ही
मंद-मंद मुस्कुराना
तुम्हारा बेकाबू होती
साँसों की धड़कनें
तुम्हारे शरीर की खुशबू
तुम्हारी छुअन का अहसास
सब कुछ
इस खामोशी को
झुठलाता है।

कृष्ण कुमार यादव

शुक्रवार, 11 फ़रवरी 2011

प्रिया आ...


वेलेण्टाइन डे का असर अभी से दिखने लगा है. चारों तरफ प्यार की धूम मची है. अब तो यह पूरा व्यवसाय हो गया है. हर कोई इसे अपने ढंग से यादगार बनाना चाह रहा है. फ़िलहाल प्यार की इस फिजा में वसंत के अहसास के बीच वेलेण्टाइन डे पर अथर्ववेद में समाहित दो प्रेम गीतों का हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत है-


प्रिया आमत दूर जा
लिपट मेरी देह से
लता लतरती ज्यों पेड़ से
मेरे तन के तने पर
तू आ टिक जा
अंक लगा मुझे
कभी न दूर जा
पंछी के पंख कतर
ज़मीं पर उतार लाते ज्यों
छेदन करता मैं तेरे दिल का
प्रिया आ, मत दूर जा।
धरती और अंबर को
सूरज ढक लेता ज्यों
तुझे अपनी बीज भूमि बना
आच्छादित कर लूंगा तुरंत
प्रिया आ, मन में छा
कभी न दूर जा
आ प्रिया!


हे अश्विन!
ज्यों घोड़ा दौड़ता आता
प्रिया-चित्त आए मेरी
ओर
ज्यों घुड़सवार कस
लगाम
रखता अश्व वश में
रहे तेरा मन
मेरे वश में
करे अनुकरण सर्वदा
मैं खींचता तेरा चित्त
ज्यों राजअश्व खींचता
घुड़सवार
अथित करूं तेरा हृदय
आंधी में भ्रमित तिनके जैसा
कोमल स्पर्श से कर
उबटन तन पर
मधुर औषधियों से
जो बना
थाम लूं मैं हाथ
भाग्य का कस के।

- आकांक्षा यादव

मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

सखि वसंत आया...

''सखि वसंत आया
भरा हर्ष वन के मन
नवोत्कर्ष छाया.'' (निराला)


वसंत पंचमी का आगमन हो चुका है. एक तरफ वसंत का सुहाना आगमन, वहीँ निराला जी की जयंती..सब कुछ कितना सुहाना लग रहा है. वसंत पंचमी एक ओर जहां ऋतुराज के आगमन का दिन है, वहीं यह विद्या की देवी और वीणावादिनी सरस्वती की पूजा का भी दिन है। इस ऋतु में मन में उल्लास और मस्ती छा जाती है और उमंग भर देने वाले कई तरह के परिवर्तन देखने को मिलते हैं।

इससे शरद ऋतु की विदाई के साथ ही पेड़-पौधों और प्राणियों में नवजीवन का संचार होता है। प्रकृति नख से शिख तक सजी नजर आती है और तितलियां तथा भंवरे फूलों पर मंडराकर मस्ती का गुंजन गान करते दिखाई देते हैं। हर ओर मादकता का आलम रहता है। आयुर्वेद में वसंत को स्वास्थ्य के लिए हितकर माना गया है। हालांकि इस दौरान हवा में उड़ते पराग कणों से एलर्जी खासकर आंखों की एलर्जी से पीड़ित लोगों की समस्या बढ़ भी जाती है।

वसंत पंचमी को त्योहार के रूप में मनाए जाने के पीछे कई तरह की मान्यताएं हैं। ऐसा माना जाता है कि वसंत पंचमी के दिन ही देवी सरस्वती का अवतरण हुआ था। इसीलिए इस दिन विद्या तथा संगीत की देवी की पूजा की जाती है। इस दिन पीले रंग के कपड़े पहनने का चलन है, क्योंकि वसंत में सरसों पर आने वाले पीले फूलों से समूची धरती पीली नजर आती है।

वसंत पंचमी के पीछे एक मान्यता यह भी है कि इसी दिन भागीरथ की तपस्या के चलते गंगा का अवतरण हुआ था, जिससे समूची धरती खुशहाल हो गई। माघ माह के शुक्ल पक्ष में पड़ने वाली पंचमी पर गंगा स्नान का काफी महत्व है। पुराणों के अनुसार एक मान्यता यह भी है कि वसंत पंचमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण ने पहली बार सरस्वती की पूजा की थी और तब से वसंत पंचमी के दिन सरस्वती की पूजा करने का विधान हो गया।

प्राचीन काल में वसंत पंचमी का दिन मदनोत्सव और वसंतोत्सव के रूप में मनाया जाता था। इस दिन स्त्रियां अपने पति की पूजा कामदेव के रूप में करती थीं। वसंत पंचमी के दिन ही कामदेव और रति ने पहली बार मानव हदय में प्रेम एवं आकर्षण का संचार किया था और तभी से यह दिन वसंतोत्सव तथा मदनोत्सव के रूप में मनाया जाने लगा। वसंत पंचमी इस बात का संकेत देती है कि धरती से अब शरद की विदाई हो चुकी है और ऐसी ऋतु आ चुकी है जो जीव जंतुओं तथा पेड़ पौधों में नवजीवन का संचार कर देगी।

वसंत में मादकता और कामुकता संबंधी कई तरह के शारीरिक परिवर्तन देखने को मिलते हैं जिसका आयुर्वेद में व्यापक वर्णन है। महर्षियों और मनीषियों ने कहा है कि वसंत पंचमी को पूरी श्रद्धा से सरस्वती की पूजा करनी चाहिए। बच्चों को इस दिन अक्षर ज्ञान कराना और बोलना सिखाना शुभ माना जाता है। वसंत पंचमी को श्री पंचमी भी कहा जाता है जो सुख, समृद्धि और उत्तम स्वास्थ्य प्रदान करने का परिचायक है। इस दिन पतंग उड़ाने की भी परंपरा है जो मनुष्य के मन में भरे उल्लास को प्रकट करने का माध्यम है।

सोमवार, 7 फ़रवरी 2011

क्या आप जानते हैं..

क्या आप जानते है इंडिया का वह स्थान जहाँ सबसे सस्ता भोजन उपलब्ध है ? ............
चाय = 1 रूपया प्रति चाय
सूप = 5.50 रुपये
दाल = 1.50 रूपया
शाकाहारी थाली (जिसमे दाल, सब्जी 4 चपाती चावल/पुलाव, दही, सलाद ) = 12.50 रुपये
मांसाहारी थाली = 22 रुपये
दही चावल = 11 रुपये
शाकाहारी पुलाव = 8 रुपये
चिकेन बिरयानी = 34 रुपये
फिश कर्री और चावल = 13 रुपये
राजमा चावल = 7 रुपये
टमाटर चावल = 7 रुपये
फिश करी = 17 रुपये
चिकन करी = 20 .50 रुपये
चिकन मसाला = 24 .50 रुपये
बटर चिकन = 27 रुपये
चपाती = 1 रूपया प्रति चपाती
एक पलते चावल = 2 रुपये
डोसा = 4 रुपये
खीर = 5.50 रुपये प्रति कटोरी
फ्रूट केक = 9 .50 रुपये
फ्रूट सलाद = 7 रुपये
यह वास्तविक मूल्य सूची है
ऊपर बताई गई सारी मदें " गरीब लोगों "केवल और केवल के लिए है जो कि भारत के संसद की केन्टीन में ही उपलब्ध है. ............. और इन गरीब लोगों की तनख्वाह 80,000 रुपये प्रति माह है . ......................... इसके अलावा इन्हें बोनस के रूप में भारी से भारी घोटाले करके अरबों - खरबों रुपये हडपने की खुल्ली छूट है .
.............. और ये सारा का सारा पैसा पब्लिक की जेब से जाता है जिसे हम और आप टैक्स के रूप में चुकाते है.....................................
जागो (जनता) ग्राहक जागो !!

शुक्रवार, 28 जनवरी 2011

बिटिया रानी तीन माह की..

वक़्त कितनी तेजी से बीतता है, पता ही नहीं चलता है. देखते ही देखते हमारी दूसरी बिटिया रानी तन्वी कल तीन माह की हो गईं. इनका ख्याल रखने के चक्कर में ही आजकल ब्लागिंग से भी थोडा कटी हुई हूँ. जीवन में व्यस्तताएं बढती जा रही हैं..खैर यह सब जीवन के अभिन्न पहलू हैं. ये देखिये हमारी प्यारी तन्वी को और अपना आशीष भी दीजिये-

बुधवार, 26 जनवरी 2011

गणतंत्र दिवस की बधाईयाँ

!! गणतंत्र दिवस की हार्दिक बधाईयाँ !!

सोमवार, 24 जनवरी 2011

मैं अजन्मी...


मेरी यह कविता 'इण्डिया टुडे' पत्रिका के परिशिष्ट 'इण्डिया टुडे स्त्री' (3 मार्च, 2010) में प्रकाशित हुई थी। आज 'राष्ट्रीय बालिका दिवस' (24 जनवरी) पर उसे ही यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ-

मैं अजन्मी
हूँ अंश तुम्हारा
फिर क्यों गैर बनाते हो
है मेरा क्या दोष
जो, ईश्वर की मर्जी झुठलाते हो

मै माँस-मज्जा का पिण्ड नहीं
दुर्गा, लक्ष्मी औ‘ भवानी हूँ
भावों के पुंज से रची
नित्य रचती सृजन कहानी हूँ

लड़की होना किसी पाप की
निशानी तो नहीं
फिर
मैं तो अभी अजन्मी हूँ
मत सहना मेरे लिए क्लेश
मत सहेजना मेरे लिए दहेज
मैं दिखा दूँगी
कि लड़कों से कमतर नहीं
माद्दा रखती हूँ
श्मशान घाट में भी अग्नि देने का

बस विनती मेरी है
मुझे दुनिया में आने तो दो !!!

सोमवार, 17 जनवरी 2011

मत ढूंढो कविता इसमें : वंदना गुप्ता

आज शब्द-शिखर पर प्रस्तुत है वंदना गुप्ता जी की एक कविता. वंदना अंतर्जाल पर जिंदगी एक खामोश सफ़र के माध्यम से सक्रिय हैं।



दिल से निकले उदगारों का नाम कविता है

मत बंधो इसे गद्य या पद्य में

मत ढूंढो इसमें छंदों को

जो भी दिल की हो आवाज़

उसी का नाम कविता है

क्यूँ ढूंढें हम छंदों को

जब छंद बसे हों दिल में

क्यूँ जाने हम गद्य को

जब हर लफ्ज़ में हों भाव भरे

मत रोको इन हवाओं को

जो किसी के मन में बह रही हैं

चाहे हों कविता रूपी

चाहे हों ग़ज़लों रूपी

या न भी हों मगर

साँस साँस की आवाज़ को

मत बांधो तुम पद्यों में

मत ढूंढो साहित्य इसमें

मत ढूंढो काव्य इसमें

ये तो दिलों की धड़कन हैं

जो भाव रूप में उभरी हैं

भावों में जीने वाले

क्या जाने काव्यात्मकता को

वो तो भावों को ही पीते हैं

और भावों में ही जीते हैं

बस भावाव्यक्ति के सहारे ही

दिल के दर्द को लिखते हैं

कभी पास जाओ उनके

तो जानोगे उनके दर्द को

कभी कुछ पल ठहरो

तो जानोगे उनकी गहराई को

वो तो इस महासमुद्र की

तलहटी में दबे वो रत्न हैं

जिन्हें न किसी ने देखा है

जिन्हें न किसी ने जाना है

अभी तुम क्या जानो

सागर की गहराई को

एक बार उतरो तो सही

फिर जानोगे इस आशनाई को

किसी के दिल के भावों को

मत तोड़ो व्यंग्य बाणों से

ये तो दिल की बातें हैं

दिलवाले ही समझते हैं

तुम मत ढूंढो कविता इसमें

तुम मत ढूंढो कविता इसमें !!



वंदना गुप्ता

बुधवार, 12 जनवरी 2011

काश कि युवा पीढ़ी स्वामी विवेकानंद से कुछ सीखती...

आज 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद जी की जयंती है. इस शुभ दिन पर उनका पुनीत स्मरण. स्वामी जी के बारे में हम सभी बचपन से ही पढ़ते आ रहे हैं. स्वामी विवेकानंद का व्यक्तित्व और कृतित्व सदैव से अनुकरणीय रहा है और आदर्शों की स्थापना करता है. यही कारण है कि स्वामी विवेकानंद जी की जयंती राष्ट्रीय युवा दिवस के रूप में मनाई जाती है..काश कि आज की युवा पीढ़ी स्वामी विवेकानंद जी के जीवन से कुछ सीखती...हमारे राजनेता नेतृत्व का कोई पाठ स्वामी जी से भी सीखने की प्रेरणा लेते तो वाकई सुखद लगता.... स्वामी विवेकानंद जी की जयंती पर पुनीत स्मरण और नमन !!

सोमवार, 10 जनवरी 2011

प्रेम गीत : यशोधरा यादव ‘यशो‘

आपके दामन से मेरा, जन्म का नाता रहा है ,
प्यार की गहराइयों का, राज बतलाता रहा है।

मौन मत बैठो कहो कुछ, आज मौसम है सुहाना,
कलखी धुन ने बजाया, प्यार का मीठा तराना।
एक सम्मोहन धरा की, मूक भाषा बोलती है,
और नभ दे दुंदुभी, नवरागिनी गाता रहा है।
आपके दामन......................।

प्यार का मकरन्द भरकर, बादलों का टोल आया,
आम की अमराइयों में, हरित ने आँचल बिछाया।
सूर्य का लुक-छुप निकलना, मुस्कराना देखकर,
मन मयूरी नृत्य कर, कर मान इतराता रहा है।
आपके दमन......................।

भाव का कोई शब्द ही तो, मेरे उर को भेदता है,
गीत की हर पंक्ति बनकर, नव सुगंध बिखेरता है।
बंसुरी की धुन बजाता है, कहीं कान्हा सुरीली,
और चितवन राधिका का, पाँव थिरकाता रहा है।
आपके दामन......................।

दीप तेरा प्यार बनकर, झिलमिलाते द्वार मेरे,
आज कोयल गीत प्रियवर, गा रही उपवन सवेरे।
मन समुंदर की हिलोरे, चूमती बेताब तट की,
रूख हवाओं का विहंस कर, गुनगुनाता जा रहा है।
आपके दामन......................।


यशोधरा यादव 'यशो'

गुरुवार, 6 जनवरी 2011

‘अहसास’ हूँ मैं

आज 'शब्द-शिखर' पर प्रस्तुत है सुमन मीत जी की एक कविता. मीत, अंतर्जाल पर बावरा मन के माध्यम से सक्रिय हैं।










एक अबोध शिशु

माँ के आँचल में

लेता है जब

गहरी नींद

माँ उसको

अपलक निहारती

बलाऐं लेती

महसूस है करती

अपने ममत्व को

वो आगाज़ हूँ मैं .........


विरह में निष्प्राण तन

लौट है आता

चौराहे के छोर से

लिये साथ

अतीत की परछाई

भविष्य की रुसवाई

पथरीली आँखों में

सिवाय तड़प के

कुछ नहीं

वो टूटन हूँ मैं ...........


कोमल हृदय में

देते हैं जब दस्तक

अनकहे शब्द

उलझे विचार

मानसपटल पर

करके द्वन्द

जो उतरता है

लेखनी से पट पर

वो जज़्बात हूँ मैं .........


थकी बूढ़ी आँखें

जीवन की कड़वाहट का

बोझ लिए

सारी रात खंगालती हैं

निद्रा के आशियाने को

या फिर

बाट जोहती हैं

अपने अगले पड़ाव का

वो अभिप्राय हूँ मैं ...........


वो आगाज़ में पनपा

टूटन में बिखरा

जज़्बात में डूबा

अभिप्राय में जन्मा

‘अहसास’ हूँ मैं !!

सुमन ‘मीत’

सोमवार, 3 जनवरी 2011

मंथन

आज शब्द-शिखर पर प्रस्तुत है वंदना गुप्ता जी की एक कविता. वंदना अंतर्जाल पर जिंदगी एक खामोश सफ़र के माध्यम से सक्रिय हैं।

मंथन किसी का भी करो
मगर पहले तो
विष ही निकलता है
शुद्धिकरण के बाद ही
अमृत बरसता है
सागर के मंथन पर भी
विष ही पहले
निकला था
विष के बाद ही
अमृत बरसा था
विष को पीने वाला
महादेव कहलाया
अमृत को पीने वालों ने भी
देवता का पद पाया
आत्म मंथन करके देखो
लोभ , मोह , राग ,द्वेष
इर्ष्या , अंहकार रुपी
विष ही पहले निकलेगा
इस विष को पीना
किसी को आता नही
इसीलिए कोई
महादेव कहलाता नही
आत्म मंथन के बाद ही
सुधा बरसता है
इस गरल के निकलते ही
जीवन बदलता है
पूर्ण शुद्धता पाओगे जब
तब अमृत्व स्वयं मिल जाएगा
उसे खोजने कहाँ जाओगे
अन्दर ही पा जाओगे
आत्म मंथन के बाद ही
स्वयं को पाओगे
मंथन किसी का भी करो
पहले विष तो फिर
अमृत को भी
पाना ही होगा
लेकिन मंथन तो करना ही होगा !!

वंदना गुप्ता

शुक्रवार, 31 दिसंबर 2010

'उल्लास'....नव वर्ष का

नव वर्ष की बेला सामने आकर खड़ी है. न जाने कितने विचार आते हैं, जाते हैं. कुछ खोया तो कुछ पाया. नए साल को लेकर तमाम आकांक्षाएं उभरने लगती हैं, उत्साह मानो दूना हो जाता है, प्रेम की सुनहली किरणें चारों तरफ अपनी रश्मियाँ बिखेरने लगती हैं. ऐसे में याद आती है सुभद्रा कुमारी चौहान की इक कविता- उल्लास. सुभद्रा कुमारी चौहान के नाम से भला कौन अपरिचित होगा. झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई पर लिखी उनकी अमर रचना ''बुंदेले हरबोलों के मुंह हमने सुनी कहानी थी..." ने उन्हें जग प्रसिद्ध बना दिया. पर आज उनकी कविता उल्लास बार-बार मन में गूंज रही है. आप भी इसका आनंद लें और नव वर्ष का उल्लास के साथ स्वागत करें-

शैशव के सुन्दर प्रभात का
मैंने नव विकास देखा।
यौवन की मादक लाली में
जीवन का हुलास देखा।

जग-झंझा-झकोर में
आशा-लतिका का विलास देखा।
आकांक्षा, उत्साह, प्रेम का
क्रम-क्रम से प्रकाश देखा

जीवन में न निराशा मुझको
कभी रुलाने को आई।
जग झूठा है यह विरक्ति भी
नहीं सिखाने को आई।

अरिदल की पहिचान कराने
नहीं घृणा आने पाई।
नहीं अशान्ति हृदय तक अपनी
भीषणता लाने पाई !!

शुक्रवार, 24 दिसंबर 2010

क्रिसमस की धूम...

क्रिसमस त्यौहार बड़ा अलबेला है.यहाँ अंडमान में तो इसे खूब धूम धाम के साथ मनाया जा रहा है. पहली बार इस त्यौहार को इतने नजदीक से महसूस कर रही हूँ. पूरी दुनिया में धूमधाम से मनाया जाने वाला क्रिसमस प्रभु ईसा मसीह या यीशु के जन्म की खुशी में हर साल 25 दिसंबर को मनाया जाने वाला पर्व है। यह ईसाइयों के सबसे महत्वपूर्ण त्यौहारों में से एक है। इस दिन को बड़ा दिन भी कहते हैं. दुनिया भर के अधिकतर देशों में यह 25 दिसम्बर को मनाया जाता है, पर नव वर्ष के आगमन तक क्रिसमस उत्सव का माहौल कायम रखता है. उत्सवी परंपरा के अनुसार क्रिसमस से 12 दिन के उत्सव क्रिसमसटाइड की भी शुरुआत होती है। एन्नो डोमिनी काल प्रणाली के आधार पर यीशु का जन्म, 7 से 2 ई.पू. के बीच हुआ था। विभिन्न देश इसे अपनी परम्परानुसार मानते हैं. जर्मनी तथा कुछ अन्य देशों में क्रिसमस की पूर्व संध्या यानि 24 दिसंबर को ही इससे जुड़े समारोह शुरु हो जाते हैं जबकि ब्रिटेन और अन्य राष्ट्रमंडल देशों में क्रिसमस से अगला दिन यानि 26 दिसंबर बॉक्सिंग डे के रूप में मनाया जाता है। कुछ कैथोलिक देशों में इसे सेंट स्टीफेंस डे या फीस्ट ऑफ़ सेंट स्टीफेंस भी कहते हैं। आर्मीनियाई अपोस्टोलिक चर्च 6 जनवरी को क्रिसमस मनाता है, वहीँ पूर्वी परंपरागत गिरिजा जो जुलियन कैलेंडर को मानता है वो जुलियन वेर्सिओं के अनुसार 25 दिसम्बर को क्रिसमस मनाता है, जो ज्यादा काम में आने वाले ग्रेगोरियन कैलेंडर में 7 जनवरी का दिन होता है क्योंकि इन दोनों कैलेंडरों में 13 दिनों का अन्तर होता है।

क्रिसमस शब्द का जन्म क्राईस्टेस माइसे अथवा ‘क्राइस्टस् मास’ शब्द से हुआ है। ऐसी मान्यता है कि पहला क्रिसमस रोम में 336 ई. में मनाया गया था। क्राइस्ट के जन्म के संबंध में नए टेस्टामेंट के अनुसार व्यापक रूप से स्वीकार्य ईसाई पौराणिक कथा है। इस कथा के अनुसार प्रभु ने मैरी नामक एक कुंवारी लड़की के पास गैब्रियल नामक देवदूत भेजा। गैब्रियल ने मैरी को बताया कि वह प्रभु के पुत्र को जन्म देगी तथा बच्चे का नाम जीसस रखा जाएगा। वह बड़ा होकर राजा बनेगा, तथा उसके राज्य की कोई सीमाएं नहीं होंगी। देवदूत गैब्रियल, जोसफ के पास भी गया और उसे बताया कि मैरी एक बच्चे को जन्म देगी, और उसे सलाह दी कि वह मैरी की देखभाल करे व उसका परित्याग न करे। जिस रात को जीसस का जन्म हुआ, उस समय लागू नियमों के अनुसार अपने नाम पंजीकृत कराने के लिए मैरी और जोसफ बेथलेहेम जाने के लिए रास्ते में थे। उन्होंने एक अस्तबल में शरण ली, जहां मैरी ने आधी रात को जीसस को जन्म दिया तथा उसे एक नांद में लिटा दिया। इस प्रकार प्रभु के पुत्र जीसस का जन्म हुआ।

आजकल क्रिसमस पर्व धर्म की बंदिशों से परे पूरी दुनिया में बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है.क्रिसमस के दौरान एक दूसरे को आत्मीयता के साथ उपहार देना, चर्च में समारोह, और विभिन्न सजावट करना शामिल है। सजावट के दौरान क्रिसमस ट्री, रंग बिरंगी रोशनियाँ, बंडा, जन्म के झाँकी और हॉली आदि शामिल हैं। क्रिसमस ट्री तो अपने वैभव के लिए पूरे विश्व में लोकप्रिय है। लोग अपने घरों को पेड़ों से सजाते हैं तथा हर कोने में मिसलटों को टांगते हैं। चर्च मास के बाद, लोग मित्रवत् रूप से एक दूसरे के घर जाते हैं तथा दावत करते हैं और एक दूसरे को शुभकामनाएं व उपहार देते हैं। वे शांति व भाईचारे का संदेश फैलाते हैं।

सेंट बेनेडिक्ट उर्फ सान्ता क्लाज़, क्रिसमस से जुड़ी एक लोकप्रिय पौराणिक परंतु कल्पित शख्सियत है, जिसे अक्सर क्रिसमस पर बच्चों के लिए तोहफे लाने के साथ जोड़ा जाता है. मूलत: यह लाल व सफेद ड्रेस पहने हुए, एक वृद्ध मोटा पौराणिक चरित्र है, जो रेन्डियर पर सवार होता है, तथा समारोहों में, विशेष कर बच्चों के लिए एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। वह बच्चों को प्यार करता है तथा उनके लिए चाकलेट, उपहार व अन्य वांछित वस्तुएं लाता है, जिन्हें वह संभवत: रात के समय उनके जुराबों में रख देता है।

आप सभी लोगों को क्रिसमस पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !!

रविवार, 19 दिसंबर 2010

वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण की अनुपम 'परिकल्पना'

हिंदी ब्लागिंग में नित नए प्रयोग हो रहे हैं. कोई रचनाधर्मिता के स्तर पर तो कहीं विश्लेषण के स्तर पर. इन सबके बीच लखनऊ के ब्लागर रवीन्द्र प्रभात ने ब्लागोत्सव-2010 और परिकल्पना के माध्यम से नई पहचान बनाई है। आजकल परिकल्पना ब्लॉग के माध्यम से रवीन्द्र जी वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण-2010 पर ध्यान लगाये हुए हैं. बड़ी खूबसूरती से साल-भर चली गतिविधियों, ब्लॉग जगत की हलचलों, नए-पुराने चेहरों को आत्मसात करते हुए रवीन्द्र जी का यह व्यापक विश्लेषण यथासंभव हर सक्रिय हिंदी ब्लागर को सहेजने की कोशिश करता है. यह विश्लेषण नए ब्लागरों के लिए प्राण-वायु का कार्य करता है, तो पुरानों के लिए पीछे मुड़कर देखने का एक मौका देता है. यह हिंदी ब्लाग-जगत को आत्मविश्लेषण की शक्ति देता है तो शोधपरक रूप में प्रस्तुत सभी पोस्ट महत्वपूर्ण पोस्टों को इतिहास के गर्त में जाने से बचाते भी हैं. मुझे लगता है कि हर हिंदी ब्लागर को परिकल्पना पर प्रस्तुत इस वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण-2010 पर एक चौकन्नी नजर जरुर डालनी चाहिए और इसे प्रोत्साहित करना चाहिए. फ़िलहाल रवीन्द्र प्रभात जी को लगातार दूसरे वर्ष इस अनुपम ब्लॉग-विश्लेषण के लिए बधाइयाँ और साधुवाद !!

वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण-2010 (भाग-5) की शुरुआत रवीन्द्र प्रभात जी ने हमारे ब्लॉगों के विश्लेषण से ही की है, तो लगता है कि हम भी कुछ ठीक-ठाक कर रहे हैं. अन्यथा हम तो अपने को इस क्षेत्र में घुसपैठिया ही मानते थे. बकौल रवीन्द्र प्रभात- पिछले भाग में जो साहित्य सृजन की बात चली थी उसे आगे बढाते हुए मैं सबसे पहले जिक्र करना चाहूंगा एक ऐसे परिवार का जो पद-प्रतिष्ठा-प्रशंसा और प्रसिद्धि में काफी आगे होते हुए भी हिंदी ब्लोगिंग में सार्थक हस्तक्षेप रखता है । साहित्य को समर्पित व्यक्तिगत ब्लॉग के क्रम में एक महत्वपूर्ण नाम उभरकर सामने आया है वह शब्द सृजन की ओर , जिसके संचालक है इस परिवार के मुखिया के के यादव । ये जून -२००८ से सक्रिय ब्लोगिंग से जुड़े हैं । इनका एक और ब्लॉग है डाकिया डाक लाया । यह ब्लॉग विषय आधारित है तथा डाक विभाग के अनेकानेक सुखद संस्मरणों से जुडा है।

आकांक्षा यादव इनकी धर्मपत्नी है और ये हिंदी के चार प्रमुख क्रमश: शब्द शिखर, उत्सव के रंग, सप्तरंगी प्रेम और बाल दुनिया ब्लॉग की संचालिका हैं औरइनकी एक नन्ही बिटिया है जिसे पूरा ब्लॉग जगत अक्षिता पाखी (ब्लॉग : पाखी की दुनिया) के नाम से जानता है, इस वर्ष के श्रेष्ठ नन्हा ब्लोगर का अलंकरण पा चुकी है , चुलबुली और प्यारी सी इस ब्लोगर को कोटिश: शुभकामनाएं ! इनसे जुड़े हुए दो नाम और है एक राम शिवमूर्ति यादव और दूसरा नाम अमित कुमार यादव , जिन्होनें वर्ष -२०१० में अपनी सार्थक और सकारात्मक गतिविधियों से हिंदी ब्लॉगजगत का ध्यान खींचने में सफल रहे हैं । ये एक सामूहिक ब्लॉग भी संचालित करते हैं जिसका नाम है युवा जगत । यह ब्लॉग दिसंबर-२००८ में शुरू हुआ और इसके प्रमुख सदस्य हैं अमित कुमार यादव, कृष्ण कुमार यादव, आकांक्षा यादव, रश्मि प्रभा, रजनीश परिहार, राज यादव, शरद कुमार, निर्मेश, रत्नेश कुमार मौर्या, सियाराम भारती, राघवेन्द्र बाजपेयी आदि।

इसी प्रकार वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण-2010 (भाग-2) के आरंभ में लिखे वाक्य कि- वर्ष-२०१० की शुरुआत में जिस ब्लॉग पर मेरी नज़र सबसे पहले ठिठकी वह है शब्द शिखर , जिस पर हरिवंशराय बच्चन का नव-वर्ष बधाई पत्र !! प्रस्तुत किया गया ।

वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण-2010 (भाग-1) में भी रवीन्द्र जी ने हमारे ब्लॉगों की चर्चा की है. जून-२००८ से हिंदी ब्लॉगजगत में सक्रिय के. के. यादव का वर्ष-२०१० में प्रकाशित एक आलेख अस्तित्व के लिए जूझते अंडमान के आदिवासी ,वर्ष-२००८ से दस ब्लोगरों क्रमश: अमित कुमार यादव, कृष्ण कुमार यादव, आकांक्षा यादव, रश्मि प्रभा, रजनीश परिहार, राज यादव, शरद कुमार, निर्मेश, रत्नेश कुमार मौर्या, सियाराम भारती, राघवेन्द्र बाजपेयी के द्वारा संचालित सामूहिक ब्लॉग युवा जगत पर इस वर्ष प्रकाशित एक आलेख हिंदी ब्लागिंग से लोगों का मोहभंग ,२४ जून २००९ से सक्रीय और लोकसंघर्ष परिकल्पना सम्मान से सम्मानित वर्ष की श्रेष्ठ नन्ही ब्लोगर अक्षिता पाखी के ब्लॉग पर प्रकाशित आलेख डाटर्स-डे पर पाखी की ड्राइंग... १० नवम्बर-२००८ से सक्रीय राम शिव मूर्ति यादव का इस वर्ष प्रकाशित आलेख मानवता को नई राह दिखाती कैंसर सर्जन डॉ. सुनीता यादव, .............................आदि को पाठकों की सर्वाधिक सराहना प्राप्त हुयी है .यहाँ मुझे याद है, जब पिछले वर्ष 21 दिसंबर, 2009 को प्रस्तुत वर्ष 2009 : हिंदी ब्लाग विश्लेषण श्रृंखला (क्रम-21) में भी रवीन्द्र जी ने डाकिया डाक लाया ब्लॉग के माध्यम से हमें भी हिंदी ब्लॉग जगत के 9 उपरत्नों में दूसरे स्थान पर शामिल किया था। यह हमारे लिए बेहद प्रसन्नता का क्षण था.रवीन्द्र प्रभात जी द्वारा प्रस्तुत ब्लॉगों के विश्लेषण से कम से कम हमें भी ब्लागर होने का अहसास हुआ है और लगता है कि हम भी कुछ ठीक-ठाक सा कर रहे हैं. अन्यथा हम तो अपने को इस क्षेत्र में घुसपैठिया ही मानते थे. खैर इसी बहाने सुदूर अंडमान-निकोबार की चर्चा भी ब्लागिंग में हो रही है, जो काफी उपेक्षित माना जाता है. एक बार पुन: रवीन्द्र प्रभात जी को लगातार दूसरे वर्ष इस अनुपम ब्लॉग-विश्लेषण के लिए बधाइयाँ और साधुवाद और रवीन्द्र प्रभात जी व उन सभी स्नेही ब्लोगर्स-पाठकों का आभार जिनकी बदौलत हम आज यहाँ पर हैं !!

...तो आप भी एक बार रवीन्द्र प्रभात जी की परिकल्पना में शामिल हों, और वार्षिक हिंदी ब्लॉग विश्लेषण-2010 की सैर कर अपने विचार वहां जरुर दें। आखिर कोई तो है जो लखनऊ की नज़ाकत, नफ़ासत,तहज़ीव और तमद्दून की जीवंतता को ब्लागिंग में भी बरकरार रखकर अपने-पराये के भेद से परे सबकी सोच रहा है !!

सोमवार, 13 दिसंबर 2010

भारत में फैलता एन0 जी0 ओ0 का बाजार

आजकल भारत में एन0जी0ओ0 खोलना एक व्यवसाय हो गया है। हर व्यक्ति किसी-न-किसी बहाने एन0जी0ओ0 खोलता है और फंडिंग के लिए बड़े-बड़े दावे करता है। हाल के दिनों में देश भर में एन0जी0ओ0 संस्थाओं की संख्या बेतहाशा बढ़ी है। मार्च 2005 की रिपोर्ट के अनुसार इनकी संख्या 15 लाख थी। ये सब मिलकर 30 हजार करोड़ रुपये हैंडल कर रहे थे। यह राशि विभिन्न कार्यक्रमों के लिए संस्थाओं को सरकारी, गैर सरकारी एवं अंतरराष्ट्रीय स्रोतों से मिलती हैं। इस आधार पर देखा जाय तो भारत को एक सुखी एवं समृद्ध राष्ट्र होना चाहिए। पर यदि ऐसा नहीं है तो जरूर दाल में कुछ काला है। गरीबी-उन्मूलन, शिक्षा-प्रसार, स्वास्थ्य-सेवाओं, धार्मिक कार्यों सहित तमाम कल्याणकारी योजनाओं के नाम पर चल रहे इन एन0जी0ओ0 का नेटवर्क सिर्फ देश ही नहीं विदेशों में भी फैला है, जहाँ से उन्हें धमार्थ-कल्याणार्थ-परोपकरार्थ डाॅलरों में सहायता मिलती है। इन संस्थाओं पर आर्थिक कृपा करने वालों में व्यक्तिगत दानियों का नाम सबसे ऊपर है। ब्रिटेन में एक विदेशी एनजीओ की ओर से किए गए एक आंतरिक अध्ययन के मुताबिकए निजी तौर पर दिया दान सबसे बडा़ आर्थिक सा्रेत रहा है। इन दाताओं के बूते सन 2005 में 2,200 करोड़ से 8,100 करोड़ रुपए संस्थाओं पर न्यौछावर किए जाने का अनुमान लगाया गया । फिलहाल जो अनुमान मिल रहे हैं उसके अनुसार एन0जी0ओ0 और गैर-लाभान्वित संस्थाओं ने सालाना 40 हजार करोड़ से 80 हजार करोड़ रुपए इमदाद के जरिए जुटाए हैं। इनके लिए सबसे बडी़ दानदाता सरकार है जिसने ग्या़रहवीं पंचवर्षीय योजना में सामाजिक क्षेत्र के लिए 18 हजार करोड़ रुपए रखे। इसके बाद विदेशी दानदाताओं का नंबर आता है। सन 2007-08 में इन एन0जी0ओ0 ने 9,700 करोड़ दान से जुटाए। तकरीबन 1600-2000 करोड़ रुपए धार्मिक संस्थाएं खोलने के लिए दान में दिए गए। ऐसी संस्थाओं में तिरुमला तिरुपति देवास्थानम का नाम भी लिया जाता है, जिन्हें दान में प्रचुर धन ही नहीं हीरे-जवाहरात भी मिलते हैं।

यह आश्चर्यजनक पर सच है कि दुनिया भर में सबसे ज्यादा सक्रिय गैर-सरकारी, गैर-लाभन्वित संगठन भारत में हैं। पीपुल्स रिसर्च इन एशिया (पी॰आर॰आइ॰ए॰) ने अपने एक अध्ययन के बाद देश भर में 12 लाख एन॰ जी॰ ओ॰ को सूचीबद्ध किया था, जिनके बीच करीब 18 हजार करोड़ रुपये का मोबलाइजेशन हुआ। इन संस्थाओं में से 26.5 फीसदी धार्मिक गतिविधियों में, 21.3 फीसदी सामुदायिक व सामाजिक सेवा कार्यों में, 20.4 फीसदी शिक्षा के क्षेत्र में, 18 फीसदी खेलकूद एवं कला-संस्कृति में तथा 6.6 फीसदी स्वास्थ्य के क्षेत्र में व शेष अन्य क्षेत्रों में कार्यरत थीं। भारत सरकार के योजना आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश भर में केंद्र एवं राज्य सरकार के विभिन्न मंत्रालयों से संबद्ध 30 हजार एन॰जी॰ ओ॰ सूचीबद्ध हैं। सरकार की ओर से कराए गए एक अन्य अध्ययन में बीते साल तक इन संस्थाओं की संख्या 30,30,000 (तीस लाख तीस हजार) तक पहुँच चुकी थी अर्थात 400 से भी कम भारतीयों के पीछे एक एन0जी0ओ0। यह तादाद देश में प्राथमिक विद्यालयों और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों से कई गुना ज्यादा है। इस अध्ययन के मुताबिक महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 4.8 लाख, आंध्रप्रदेश (4.6 लाख), उत्तर प्रदेश (4.3 लाख), केरल (3.3 लाख), कर्नाटक (1.9 लाख), तमिलनाडु (1.4 लाख), ओडीशा (1.3 लाख) और राजस्थान में 1 लाख एन0जी0ओ0 पंजीकृत हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि अस्सी फीसदी से ज्यादा पंजीकरण दस राज्यों से हैं। इन संगठनों की असली संख्या और भी ज्यादा हो सकती है क्योंकि यह ब्यौरा तो मात्र उन संस्थाओं का है जो सोसाइटीज रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1860 या मुंबई पब्लिक ट्रस्ट एक्ट या दूसरे राज्यों में समकक्ष एक्ट के तहत पंजीकृत की जा चुकी हैं। गौरतलब है कि ये संस्थाएं कई कानूनों के तहत पंजीकृत की जा सकती हैं। इनमें से प्रमुख हैं- सोसाइटीज एक्ट 1860, रिलिजियस इनडाउमेंट एक्ट 1863, इंडियन ट्रस्ट एक्ट 1882, द चैरिटेबल एंड रिलिजियस ट्रस्ट एक्ट 1920, द मुसलमान वक्फ एक्ट 1923, पब्लिक ट्रस्ट एक्ट 1950, इंडियन कंपनीज एक्ट 1956 ;दफा 25द्ध इत्यादि।

पिछले दशकों में जिस तरह से गैर-सरकारी संगठनों यानी एन0जी0ओ0 की तादाद बढी़ हैए उसी अनुपात में दानी बढे़ हैं। स्पष्ट है कि भारत में एन0 जी0 ओ0 खोलने और उसके नाम पर वारे-न्यारे करने का बाजार भी बढ़ रहा है। सरकार से पैसे मिलने लगे तो संस्थाएं भी बनने लगीं। एन॰ जी॰ ओ॰ की संख्या बढ़ाने में सेवानिवृत लोगों का बड़ा हाथ है। इनमें ज्यादातर संस्थाएं कागजी हैं, जो न तो काम करने वाली हैं और न ही टिकाऊ। दुर्भाग्यवश सरकार सिर्फ निबंधन करती है, संस्थाएं क्या कर रही है, इससे मतलब नहीं होता। ऐसे में इन एन॰ जी॰ ओ॰ में प्रतिबद्धता की भी कमी झलकती है। आँकडों पर गौर करें तो सन 1970 तक महज 1.44 लाख पंजीकृत संस्थाएँ थीं वहीँ अगले तीन दशकों में बढ़कर क्रमश: 1.79, 5.52 और 11.22 लाख हो गईं । वर्ष 2000 में सबसे ज्यादा संस्थाएँ पंजीकृत हुईं । हालांकि अपने देश भारत में निजी क्षेत्र की कंपनियाँ बडे़ दानियों के रुप में सामने नहीं आई हैं। वे इस तरह के सामाजिक कामों के लिए अपने मुनाफे का एक फीसदी से भी कम दान में देती हैं। जबकि ब्रिटेन और अमेरिका में निजी क्षेत्र की कंपनियाँ मुनाफे का डेढ़ से दो फीसदी तक भलाई और धर्मार्थ काम के लिए दान देती हैं। ऐसे में भारत में निजी क्षेत्र की कंपनियों को जनकल्याण के लिए अभी जागना है। वहीं यह भी जरूरी हो गया है कि इन तमाम एन0जी0ओ0 इत्यादि की सोशल-आडिटिंग भी कायदे से सुनिश्चित किया जाय ताकि जनकल्याण के नाम पर एन0जी0ओ0 खोलकर अपना कल्याण करने की प्रवृति दूर हो सके।

गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

जनसत्ता में 'शब्द-शिखर' की तितलियाँ

'शब्द शिखर' पर 21 अक्तूबर, 2010 को प्रस्तुत पोस्ट 'कहाँ गईं वो तितलियाँ' को प्रतिष्ठित दैनिक अख़बार जनसत्ता के नियमित स्तंभ ‘समांतर’ में 7 दिसंबर जून, 2010 को 'गुम होती तितली' शीर्षक से स्थान दिया गया है. जनसत्ता में पहली बार मेरी किसी पोस्ट की चर्चा हुई है और समग्र रूप में प्रिंट-मीडिया में 23वीं बार मेरी किसी पोस्ट की चर्चा हुई है.. आभार !!

इससे पहले शब्द-शिखर और अन्य ब्लॉग पर प्रकाशित मेरी पोस्ट की चर्चा दैनिक जागरण, अमर उजाला,राष्ट्रीय सहारा,राजस्थान पत्रिका, आज समाज, गजरौला टाईम्स, डेली न्यूज़ एक्टिविस्ट, दस्तक, आई-नेक्स्ट, IANS द्वारा जारी फीचर में की जा चुकी है. आप सभी का इस समर्थन व सहयोग के लिए आभार! यूँ ही अपना सहयोग व स्नेह बनाये रखें !!

(चित्र Hindi Blogs In Media से साभार)

बुधवार, 1 दिसंबर 2010

जीवन पुन: अपने रौब में....

आखिरकार एक लम्बे अन्तराल पश्चात् पुन: सपरिवार पोर्टब्लेयर में. इस अन्तराल के दौरान जहाँ एक बार पुन: मत्रितव सुख का सौभाग्य प्राप्त हुआ, वहीँ हमारी शादी की छठवीं सालगिरह भी पूरी हो गई. 27 अक्तूबर, 2010 की रात्रि 11: 10 पर बनारस के हेरिटेज हास्पिटल में बिटिया का जन्म हुआ और 27 नवम्बर को वह एक माह की हो गई. ठीक उसके अगले दिन 28 नवम्बर को हमारी शादी की की सालगिरह थी और अब हमारी शादी के छ: साल पूरे हो गए। 28 नवम्बर को ही हम लोग आजमगढ़ से बनारस पहुंचे और फिर विमान द्वारा सीधे कोलकाता. यह भी एक सौभाग्य रहा की सालगिरह विमान में ही सेलिब्रेट हो गया. खैर अगले दिन, 29 नवम्बर की सुबह हम पोर्टब्लेयर में थे. इक सुखद और खुशनुमा एहसास. ठण्ड का नामलेवा नहीं, तापमान 32 डिग्री सेल्सियस. पर्यटकों के लिए अंडमान का यह समय किसी जन्नत से कम नहीं होता है. इस समय पोर्टब्लेयर में जितनी हलचल दिखती है, वह वाकई देखने लायक होती है. एक लम्बे अन्तराल पश्चात् जीवन पुन: अपने रौब में लौट कर आ गया है. इस बीच बिटिया के जन्म और शादी की सालगिरह पर आप सभी की शुभकामनाओं, बधाई और स्नेह के लिए हार्दिक आभार. अब ब्लॉग पर निरंतरता बनी रहेगी....!!

रविवार, 28 नवंबर 2010

आज हमारी शादी की सालगिरह है..


28 नवम्बर का दिन हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण है. आज हमारी शादी की सालगिरह है. इस वर्ष हमारी शादी के छ: साल पूरे हो गए। 28 नवम्बर, 2004 (रविवार) को मैं और कृष्ण कुमार जी जीवन के इस अनमोल पवित्र बंधन में बंधे थे. पर वक़्त कितनी तेजी से करवटें बदलता रहा, पता ही नहीं चला. फ़िलहाल आज हम लोग बनारस से कोलकात्ता पहुंचेंगें और अगले दिन पोर्टब्लेयर. सालगिरह का इससे अच्छा तोहफा क्या हो सकता है कि इक लम्बे समय बाद हम एक साथ होंगें !!

मंगलवार, 23 नवंबर 2010

कुँवारी किरणें


सद्यःस्नात सी लगती हैं
हर रोज सूरज की किरणें।

खिड़कियों के झरोखों से
चुपके से अन्दर आकर
छा जाती हैं पूरे शरीर पर
अठखेलियाँ करते हुये।

आगोश में भर शरीर को
दिखाती हैं अपनी अल्हड़ता के जलवे
और मजबूर कर देती हैं
अंगड़ाईयाँ लेने के लिए
मानो सज धज कर
तैयार बैठी हों
अपना कौमार्यपन लुटाने के लिए।

कृष्ण कुमार यादव

गुरुवार, 18 नवंबर 2010

खूब लड़ी मरदानी, अरे झांसी वारी रानी (जन्मतिथि 19 नवम्बर पर विशेष)

स्वतंत्रता और स्वाधीनता प्राणिमात्र का जन्मसिद्ध अधिकार है। इसी से आत्मसम्मान और आत्मउत्कर्ष का मार्ग प्रशस्त होता है। भारतीय राष्ट्रीयता को दीर्घावधि विदेशी शासन और सत्ता की कुटिल-उपनिवेशवादी नीतियों के चलते परतंत्रता का दंश झेलने को मजबूर होना पड़ा था और जब इस क्रूरतम कृत्यों से भरी अपमानजनक स्थिति की चरम सीमा हो गई तब जनमानस उद्वेलित हो उठा था। अपनी राजनैतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक-आर्थिक पराधीनता से मुक्ति के लिए क्रान्ति यज्ञ की बलिवेदी पर अनेक राष्ट्रभक्तों ने तन-मन जीवन अर्पित कर दिया था।

क्रान्ति की ज्वाला सिर्फ पुरुषों को ही नहीं आकृष्ट करती बल्कि वीरांगनाओं को भी उसी आवेग से आकृष्ट करती है। भारत में सदैव से नारी को श्रद्धा की देवी माना गया है, पर यही नारी जरूरत पड़ने पर चंडी बनने से परहेज नहीं करती। ‘स्त्रियों की दुनिया घर के भीतर है, शासन-सूत्र का सहज स्वामी तो पुरूष ही है‘ अथवा ‘शासन व समर से स्त्रियों का सरोकार नहीं‘ जैसी तमाम पुरूषवादी स्थापनाओं को ध्वस्त करती इन वीरांगनाओं के बिना स्वाधीनता की दास्तान अधूरी है, जिन्होंने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिया। 1857 की क्रान्ति में जहाँ रानी लक्ष्मीबाई, बेगम हजरत महल, बेगम जीनत महल, रानी अवन्तीबाई, रानी राजेश्वरी देवी, झलकारी बाई, ऊदा देवी, अजीजनबाई जैसी वीरांगनाओं ने अंग्रेजों को लोहे के चने चबवा दिये, वहीं 1857 के बाद अनवरत चले स्वाधीनता आन्दोलन में भी नारियों ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। इन वीरांगनाओं में से अधिकतर की सबसे बड़ी विशेषता यह थी कि वे किसी रजवाड़े में पैदा नहीं हुईं बल्कि अपनी योग्यता की बदौलत उच्चतर मुकाम तक पहुँचीं।

1857 की क्रान्ति की अनुगूँज में जिस वीरांगना का नाम प्रमुखता से लिया जाता है, वह झांसी में क्रान्ति का नेतृत्व करने वाली रानी लक्ष्मीबाई हैं। 19 नवम्बर 1835 को बनारस में मोरोपंत तांबे व भगीरथी बाई की पुत्री रूप मे लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ। उनका बचपन का नाम मणिकर्णिका था, पर प्यार से लोग उन्हंे मनु कहकर पुकारते थें। काशी में रानी लक्ष्मीबाई के जन्म पर प्रथम वीरांगना रानी चेनम्मा को याद करना लाजिमी है। 1824 में कित्तूर (कर्नाटक) की रानी चेनम्मा ने अंगेजों को मार भगाने के लिए ’फिरंगियों भारत छोड़ो’ की ध्वनि गुंजित की थी और रणचण्डी का रूप धर कर अपने अदम्य साहस व फौलादी संकल्प की बदौलत अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये थे। कहते हैं कि मृत्यु से पूर्व रानी चेनम्मा काशीवास करना चाहती थीं पर उनकी यह चाह पूरी न हो सकी थी। यह संयोग ही था कि रानी चेनम्मा की मौत के 6 साल बाद काशी में ही लक्ष्मीबाई का जन्म हुआ।

बचपन में ही लक्ष्मीबाई अपने पिता के साथ बिठूर आ गईं। वस्तुतः 1818 में तृतीय मराठा युद्ध में अंतिम पेशवा बाजीराव द्वितीय की पराजय पश्चात उनको 8 लाख रूपये की वार्षिक पंेशन मुकर्रर कर बिठूर भेज दिया गया। पेशवा बाजीराव द्वितीय के साथ उनके सरदार मोरोपंत तांबे भी अपनी पुत्री लक्ष्मीबाई के साथ बिठूर आ गये। लक्ष्मीबाई का बचपन नाना साहब के साथ कानपुर के बिठूर में ही बीता। लक्ष्मीबाई की शादी झांसी के राजा गंगाधर राव से हुई। 1853 में अपने पति राजा गंगाधर राव की मौत पश्चात् रानी लक्ष्मीबाई ने झाँसी का शासन सँभाला पर अंग्रेजों ने उन्हें और उनके दत्तक पुत्र को शासक मानने से इन्कार कर दिया। अंग्रेजी सरकार ने रानी लक्ष्मीबाई को पांच हजार रूपये मासिक पेंशन लेने को कहा पर महारानी ने इसे लेने से मना कर दिया। पर बाद में उन्होंने इसे लेना स्वीकार किया तो अंग्रेजी हुकूमत ने यह शर्त जोड़ दी कि उन्हें अपने स्वर्गीय पति के कर्ज को भी इसी पेंशन से अदा करना पड़ेगा, अन्यथा यह पेंशन नहीं मिलेगी। इतना सुनते ही महारानी का स्वाभिमान ललकार उठा और अंग्रेजी हुकूमत को उन्होंने संदेश भिजवाया कि जब मेरे पति का उत्तराधिकारी न मुझे माना गया और न ही मेरे पुत्र को, तो फिर इस कर्ज के उत्तराधिकारी हम कैसे हो सकते हैं। उन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को स्पष्टतया बता दिया कि कर्ज अदा करने की बारी अब अंग्रेजों की है न कि भारतीयों की। इसके बाद घुड़सवारी व हथियार चलाने में माहिर रानी लक्ष्मीबाई ने ब्रिटिश सेना को कड़ी टक्कर देने की तैयारी आरंभ कर दी और उद्घोषणा की कि-‘‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी।”

रानी लक्ष्मीबाई द्वारा गठित सैनिक दल में तमाम महिलायें शामिल थीं। उन्होंने महिलाओं की एक अलग ही टुकड़ी ‘दुर्गा दल’ नाम से बनायी थी। इसका नेतृत्व कुश्ती, घुड़सवारी और धनुर्विद्या में माहिर झलकारीबाई के हाथों में था। झलकारीबाई ने कसम उठायी थी कि जब तक झांसी स्वतंत्र नहीं होगी, न ही मैं श्रृंगार करूंगी और न ही सिन्दूर लगाऊँगी। अंग्रेजों ने जब झांसी का किला घेरा तो झलकारीबाई जोशो-खरोश के साथ लड़ी। चूँकि उसका चेहरा और कद-काठी रानी लक्ष्मीबाई से काफी मिलता-जुलता था, सो जब उसने रानी लक्ष्मीबाई को घिरते देखा तो उन्हें महल से बाहर निकल जाने को कहा और स्वयं घायल सिहंनी की तरह अंग्रेजों पर टूट पड़ी और शहीद हो गई। रानी लक्ष्मीबाई अपने बेटे को कमर में बाॅंध घोडे़ पर सवार किले से बाहर निकल गई और कालपी पहॅंुची, जहाॅं तात्या टोपे के साथ मिलकर ग्वालियर के किले पर कब्जा कर लिया।....अन्ततः 18 जून 1858 को भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम की इस अद्भुत वीरांगना ने अन्तिम सांस ली पर अंग्रेजों को अपने पराक्रम का लोहा मनवा दिया। तभी तो उनकी मौत पर जनरल ह्यूगरोज ने कहा- ‘‘यहाँ वह औरत सोयी हुयी है, जो व्रिदोहियों में एकमात्र मर्द थी।”

इतिहास अपनी गाथा खुद कहता है। सिर्फ पन्नों पर ही नहीं बल्कि लोकमानस के कंठ में, गीतों और किवदंतियों इत्यादि के माध्यम से यह पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रवाहित होता रहता है। वैसे भी इतिहास की वही लिपिबद्धता सार्थक और शाश्वत होती है जो बीते हुये कल को उपलब्ध साक्ष्यों और प्रमाणों के आधार पर यथावत प्रस्तुत करती है। बुंदेलखण्ड की वादियों में आज भी दूर-दूर तक लोक लय सुनाई देती है- ''खूब लड़ी मरदानी, अरे झाँसी वारी रानी/पुरजन पुरजन तोपें लगा दई, गोला चलाए असमानी/ अरे झाँसी वारी रानी, खूब लड़ी मरदानी/सबरे सिपाइन को पैरा जलेबी, अपन चलाई गुरधानी/......छोड़ मोरचा जसकर कों दौरी, ढूढ़ेहूँ मिले नहीं पानी/अरे झाँसी वारी रानी, खूब लड़ी मरदानी।'' माना जाता है कि इसी से प्रेरित होकर ‘झाँसी की रानी’ नामक अपनी कविता में सुभद्राकुमारी चैहान ने 1857 की उनकी वीरता का बखान किया हैं- ''चमक उठी सन् सत्तावन में/वह तलवार पुरानी थी/बुन्देले हरबोलों के मुँह/हमने सुनी कहानी थी/खूब लड़ी मर्दानी वह तो/झाँसी वाली रानी थी।''

सोमवार, 15 नवंबर 2010

भारत की प्रथम महिला बैरिस्टर कार्नेलिया सोराबजी

15 नवम्बर की तिथि नारी-सशक्तीकरण की दिशा में काफी मायने रखती है। 15 नवम्बर 1866 को ही भारत की पहली महिला बैरिस्टर कार्नेलिया सोराबजी का जन्म हुआ था. नासिक में जन्मीं कार्नेलिया 1892 में नागरिक कानून की पढ़ाई के लिए विदेश गयीं और 1894 में भारत लौटीं. उस समय समाज में महिलाएं मुखर नहीं थीं और न ही महिलाओं को वकालत का अधिकार था. पर कार्नेलिया तो एक जुनून का नाम था. अपनी प्रतिभा की बदौलत उन्होंने महिलाओं को कानूनी परामर्श देना आरंभ किया और महिलाओं के लिए वकालत का पेशा खोलने की माँग उठाई. अंतत: 1907 के बाद कार्नेलिया को बंगाल, बिहार, उड़ीसा और असम की अदालतों में सहायक महिला वकील का पद दिया गया. एक लम्बी जद्दोजहद के बाद 1924 में महिलाओं को वकालत से रोकने वाले कानून को शिथिल कर उनके लिए भी यह पेशा खोल दिया गया....1929 में कार्नेलिया हाईकोर्ट की वरिष्ठ वकील के तौर पर सेवानिवृत्त हुयीं पर उसके बाद महिलाओं में इतनी जागृति आ चुकी थी कि वे वकालत को एक पेशे के तौर पर अपनाकर अपनी आवाज मुखर करने लगी थीं. यद्यपि 1954 में कार्नेलिया का देहावसान हो गया, पर आज भी उनका नाम वकालत जैसे जटिल और प्रतिष्ठित पेशे में महिलाओं की बुनियाद है. कार्नेलिया सोराबजी की जन्म-तिथि पर उन्हें शत-शत नमन !!

रविवार, 14 नवंबर 2010

नेहरु जी की सीख : बचपन के करीब, प्रकृति के करीब

पं0 नेहरू से मिलने एक व्यक्ति आये। बातचीत के दौरान उन्होंने पूछा-’’पंडित जी आप 70 साल के हो गये हैं लेकिन फिर भी हमेशा गुलाब की तरह तरोताजा दिखते हैं। जबकि मैं उम्र में आपसे छोटा होते हुए भी बूढ़ा दिखता हूँ।’’ इस पर हँसते हुए नेहरू जी ने कहा-’’इसके पीछे तीन कारण हैं।’’ उस व्यक्ति ने आश्चर्यमिश्रित उत्सुकता से पूछा, वह क्या ? नेहरू जी बोले-’’पहला कारण तो यह है कि मैं बच्चों को बहुत प्यार करता हूँ। उनके साथ खेलने की कोशिश करता हूँ, जिससे मुझे लगता है कि मैं भी उनके जैसा हूँ। दूसरा कि मैं प्रकृति प्रेमी हूँ और पेड़-पौधों, पक्षी, पहाड़, नदी, झरना, चाँद, सितारे सभी से मेरा एक अटूट रिश्ता है। मैं इनके साथ जीता हूँ और ये मुझे तरोताजा रखते हैं।’’ नेहरू जी ने तीसरा कारण दुनियादारी और उसमें अपने नजरिये को बताया-’’दरअसल अधिकतर लोग सदैव छोटी-छोटी बातों में उलझे रहते हैं और उसी के बारे में सोचकर अपना दिमाग खराब कर लेते हैं। पर इन सबसे मेरा नजरिया बिल्कुल अलग है और छोटी-छोटी बातों का मुझ पर कोई असर नहीं पड़ता।’’ इसके बाद नेहरू जी खुलकर बच्चों की तरह हँस पड़े।

सोचिये , क्या हम भी इस ओर प्रेरित हो सकते हैं- बचपन के करीब, प्रकृति के करीब और छोटी-छोटी बातों में उलझने की बजाय थोडा व्यापक सोच !!

(यह पोस्ट शब्द-शिखर पर पूर्व प्रकाशित है, पर आज नेहरु जी के जन्म दिवस पर 'बाल-दिवस' के बहाने पुन: प्रस्तुत है...आप भी सोचें-विचारें !)

बुधवार, 10 नवंबर 2010

मेरे घर आई इक नन्हीं परी...

इक लम्बे समय बाद आप सभी से रु-ब-रु हूँ. सर्वप्रथम आप सभी को देर से दीपावली की ढेरों शुभकामनायें. इस बीच हमारे घर इक नए मेहमान का आगमन हुआ है. बिटिया अक्षिता (पाखी) और पापा दोनों खुश हैं. देखिये पाखी इस नए मेहमान के बारे में क्या बता रही हैं !!*********************************************************
मैं दीदी बन गई हूँ. मेरे घर में मेरी प्यारी सी बहना जो आ गई है. ये रही नन्हीं-मुन्नी प्यारी सी मेरी सिस्टर, जो अब मुझे दीदी कहकर बुलाएगी.इसका जन्म 27 अक्तूबर, 2010 की रात्रि 11: 10 पर बनारस के हेरिटेज हास्पिटल में हुआ. पहले हम लोग पोर्टब्लेयर से अपने ददिहाल आजमगढ़ गए और फिर ननिहाल सैदपुर (गाजीपुर). और पापा पहुँचे 24 अक्तूबर की रात में. तब तक तो ममा बनारस के हेरिटेज हास्पिटल में एडमिट हो चुकी थीं. साथ में नानी और मौसी भी थीं. ..और हाँ डाक्टर आंटी तो हम लोगों का खूब ख्याल रखती थीं. थीं. उनका नाम था मेजर (डा0) अंजली रानी. दीदी बनने के बाद तो मैं बहुत खुश हूँ. मुझे लगता है कि कोई प्यारा सा ट्वॉय मिल गया, जिसके साथ खूब खेलूँगी...मस्ती करुँगी. आज तो यह पूरे 15 दिन की हो गई. अभी तो सारा दिन कोशिश करती हूँ कि मेरा ट्वॉय मेरी गोद में रहे. अब बस इंतजार है कि कब हम लोग पोर्टब्लेयर पहुंचेंगे. यहाँ तो ठंडी आ चुकी है, वहाँ तो मौसम अभी बहुत प्यारा होगा...अले, मेरा ट्वॉय रो रहा है, मैं तो चली उसे चुप कराने...अब तो उसके बारे में आपको ढेर सारी बातें बताऊन्गी !!