आपको बचपन की तितलियाँ याद होंगीं. बिना तितलियों के बचपन क्या. यहाँ तक कि कोर्स में भी तितलियों की कविता पढने को मिलती थी. कभी ये तितलियाँ परी लगतीं तो कभी उनके साथ उड़ जाने का मन करता. पर अब तो जल्दी कोई तितली नहीं दिखती। तितली देखते ही बचपन में खुश होकर ताली बजाने और फिर उसके पीछे दौड़ने की यादें धीरे-धीरे धुंधली पड़ रही हैं. हम लोग बचपन में तितलियाँ पकड़ने के लिए घंटों बगीचे में दौड़ा करते थे। उनके रंग-बिरंगे पंखों को देखकर खूब खुश हुआ करते थे। पर अब तो लगता है कि फिजाओं में उड़ते ये रंग ठहर से गए हैं। अब रंगों से भरी तितलियाँ सिर्फ किस्से-कहानियों और किताबों तक सिमट गई हैं। जो तितली घर-घर के आसपास दिखती थी वह न जाने कहाँ विलुप्त होती गई और बड़े होने के साथ ही हम लोगों ने भी इस ओर गौर नहीं किया।
वस्तुतः तितलियों के कम होने के पीछे दिन पर दिन कम होते पेड़-पौधे काफी हद तक जिम्मेदार हैं। यही नहीं, घरों के बगीचों में फूलों पर कीटनाशक का प्रयोग तितलियों के लिए बहुत घातक साबित हो रहा है। तितलियों का फिजा से गायब होना बड़ा शोचनीय है। यह बिगड़ते पर्यावरण की तस्वीर है। ऐसा माना जाता है कि जहाँ तितलियाँ दिखती हैं वहाँ का पर्यावरण संतुलित होता है। अगर बात तितलियों के विभिन्न स्वरूपों की तो डफर बैंडेड, डफर टाइगर, क्रो स्पाटेड, डार्की क्रिमलेट, एंगल डार्किन, लीज ब्लू, ओक ब्लू, ब्लू फूजी, टिट आरकिड, क्यूपिट मूर, सफायर, बटरलाई मूथ, रायल चेस्टनेट, पीकाक हेयर स्ट्रीक, राजा चेस्टनट, इम्परर गोल्डन और मोनार्क जैसी तितलियाँ पर्यावरण को संतुलित रखने में खासा योगदान देती हैं। पर ये सभी धीरे-धीरे खत्म होती जा रही हैं।
ऐसे में आज के बच्चों से पूछिए तो उन्हें तितलियों के रंग किताबों में या फिर किसी श्रृंगार रस की कविता में ही दिखाई देते हैं। न उन्हें तितलियाँ दिखाई देती हैं न उन्हें पकड़ने के लिए वे लालायित रहते हैं। क्रिकेट, मूवी, कंप्यूटर गेम और इंटरनेट ही उनकी रंगीन दुनिया है। आखिर बच्चे भी क्या करें, शहर में कम होते पेड़ --पौधों की वजह से तितलियों को अपना भोजन नहीं मिल पा रहा। घरों में जो लोग बागवानी करते हैं वो अपने पौधों को कीटों से बचाने के लिए उसके ऊपर कीटनाशक स्प्रे कर देते हैं। इससे फूल जहरीला बन जाता है और जब तितली पेस्टीसाइड ग्रस्त इस फूल का परागण करती है तो मर जाती है। आखिर इन सबके बीच तितलियाँ कहाँ से आयेंगीं !!
वस्तुतः तितलियों के कम होने के पीछे दिन पर दिन कम होते पेड़-पौधे काफी हद तक जिम्मेदार हैं। यही नहीं, घरों के बगीचों में फूलों पर कीटनाशक का प्रयोग तितलियों के लिए बहुत घातक साबित हो रहा है। तितलियों का फिजा से गायब होना बड़ा शोचनीय है। यह बिगड़ते पर्यावरण की तस्वीर है। ऐसा माना जाता है कि जहाँ तितलियाँ दिखती हैं वहाँ का पर्यावरण संतुलित होता है। अगर बात तितलियों के विभिन्न स्वरूपों की तो डफर बैंडेड, डफर टाइगर, क्रो स्पाटेड, डार्की क्रिमलेट, एंगल डार्किन, लीज ब्लू, ओक ब्लू, ब्लू फूजी, टिट आरकिड, क्यूपिट मूर, सफायर, बटरलाई मूथ, रायल चेस्टनेट, पीकाक हेयर स्ट्रीक, राजा चेस्टनट, इम्परर गोल्डन और मोनार्क जैसी तितलियाँ पर्यावरण को संतुलित रखने में खासा योगदान देती हैं। पर ये सभी धीरे-धीरे खत्म होती जा रही हैं।
ऐसे में आज के बच्चों से पूछिए तो उन्हें तितलियों के रंग किताबों में या फिर किसी श्रृंगार रस की कविता में ही दिखाई देते हैं। न उन्हें तितलियाँ दिखाई देती हैं न उन्हें पकड़ने के लिए वे लालायित रहते हैं। क्रिकेट, मूवी, कंप्यूटर गेम और इंटरनेट ही उनकी रंगीन दुनिया है। आखिर बच्चे भी क्या करें, शहर में कम होते पेड़ --पौधों की वजह से तितलियों को अपना भोजन नहीं मिल पा रहा। घरों में जो लोग बागवानी करते हैं वो अपने पौधों को कीटों से बचाने के लिए उसके ऊपर कीटनाशक स्प्रे कर देते हैं। इससे फूल जहरीला बन जाता है और जब तितली पेस्टीसाइड ग्रस्त इस फूल का परागण करती है तो मर जाती है। आखिर इन सबके बीच तितलियाँ कहाँ से आयेंगीं !!
16 टिप्पणियां:
जो मजे हमने किये बचपन उस मजे से आज कल के बच्चे वंचित रह गए हैं...
तितलियों की बात भी बहुत सही है, अब कहाँ देखने को मिलती है तितली...
शायद बाद में ऐसा भी हो की बच्चे सिर्फ किताबों में और फिल्मों में ही तितली देख पायेंगे..
तितली तो मुझे भी बहुत प्यारी लगती है...
तितलियों पर इतनी सुन्दर पोस्ट देखकर मन प्रसन्न हो गया. सही कहा आपने, तितलियाँ देखे बहुत दिन हो गया..बचपन की यादें ताजा हो आईं. आपका बहुत-बहुत आभार.
तितलियों पर इतनी सुन्दर पोस्ट देखकर मन प्रसन्न हो गया. सही कहा आपने, तितलियाँ देखे बहुत दिन हो गया..बचपन की यादें ताजा हो आईं. आपका बहुत-बहुत आभार.
तितलियों पर इतनी सुन्दर पोस्ट देखकर मन प्रसन्न हो गया. सही कहा आपने, तितलियाँ देखे बहुत दिन हो गया..बचपन की यादें ताजा हो आईं. आपका बहुत-बहुत आभार.
a big question?
तितलियों के बिना तो जग ही सूना...
अब तो दिखती ही नहीं हैं, प्यारी प्यारी तितलियाँ।
अरे ये क्या याद दिला दिया आपने . वो रंगीन तितलिया. उनके पीछे भागते बच्चे , हम्म कहा गए वो दिन . आज के बच्चे इन बातों से महरूम है और गलती है बड़ो की.आभार
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आपने मेरे जिन बालवैज्ञानिकों को बधाई दी थी,
उनमें से एक के शोध-प्रपत्र में
इस जानकारी को शामिल करवा दिया है!
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मेरा ध्यान इस ओर नहीं जा पाया था!
यह जानकर बहुत मेरे मन को बहुत कष्ट हुआ!
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इसके लिए आपका आभार!
चारुबेटा की भूमि व जन-जीवन पर कीटनाशकों का प्रभाव!
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बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.............मन को छू गई............
न उन्हें तितलियाँ दिखाई देती हैं न उन्हें पकड़ने के लिए वे लालायित रहते हैं।
-बहुत विचारणीय आलेख है..बचपन भी याद आया.
तितलियों के विविध रंग जीवन के रंग हैं. सदा आकर्षक और निर्मल. तितलियों की रक्षा जीवन के रंगों की ही रक्षा है.
Olá!
Passei para uma visitinha...
Precisamos cuidar melhor do nosso planeta... somos nós que destruimos tudo...
Bom fim de semana!
Beijinhos.
Brasil
एक कविता कई साल पहले लिखी थी , जो मेरे संग्रह मे भी है ....
तितलियाँ कहाँ गईं
किसी पुरानी किताब के पन्नों के बीच दबा बचपन
अचानक पूछ लेता है
कहाँ खो गये
रंगबिरंगे फूल और तितलियाँ
जब नहीं होते थे कागज़ के फूल
तितलियाँ तब भी होती थीं
खेला करती थीं आंगन में
बच्चों के साथ
और थकती नहीं थीं
काँच के बन्द कमरों में
व्याप्त हैं चिंतायें
ओज़ोन की घटती परत पर
पृथ्वी के बढ़ते तापमान
समुद्र के बढ़ते जलस्तर और
हिमालय की पिघलती बर्फ पर
कमरे के बाहर
रोटी की नमीं सोख रहा है
किसान के पेट पर ऊगा
यूकेलिप्टस का पेड़
सुविधा की छत पर चढ़े
कुछ बच्चे
हँस रहे हैं
ऋतुओं की झूठी कहानी पर
आकाश की आँखों के सामने लगातार ज़ारी है साजिश
प्रकृति को
अजायब घरों में क़ैद कर देने की ।
शरद कोकास
तितलियों की बात करके आपने बचपने को जगा दिया...सुन्दर पोस्ट.
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