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गुरुवार, 30 अक्टूबर 2025

इंस्टाग्राम पर आपत्तिजनक कंटेंट नहीं देख सकेंगे किशोर

डिजिटल युग में सोशल मीडिया आज जीवन का अभिन्न हिस्सा बन चुका है। बच्चा हो या बड़ा, सबकी दिनचर्या का एक अहम समय इंस्टाग्राम, फेसबुक, यूट्यूब और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर बीतता है। लेकिन जैसे-जैसे इस आभासी दुनिया की चमक बढ़ी है, वैसे-वैसे इससे जुड़े खतरे भी गहराते गए हैं। सबसे अधिक प्रभावित हो रहे हैं किशोर, जिनकी सोच, मनोवृत्ति और व्यवहार अभी विकसित हो ही रहे हैं। सोशल मीडिया की चकाचौंध में खोए किशोरों के लिए यह प्लेटफॉर्म कभी-कभी सीख का माध्यम तो बनता है, परंतु कई बार यह मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक असंतुलन का कारण भी बन जाता है। इन्हीं चिंताओं को देखते हुए इंस्टाग्राम की मूल कंपनी मेटा ने एक बड़ा कदम उठाया है। कंपनी ने घोषणा की है कि अब 18 वर्ष से कम आयु के किशोर अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर आपत्तिजनक या अनुचित कंटेंट नहीं देख पाएंगे।

यह फैसला केवल तकनीकी नहीं बल्कि सामाजिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है। किशोरावस्था वह समय है जब व्यक्ति का मन सबसे संवेदनशील होता है। इस उम्र में जो कुछ देखा, सुना और महसूस किया जाता है, वही आने वाले जीवन की दिशा तय करता है। सोशल मीडिया पर हिंसक, यौन संकेतक या अवसादपूर्ण सामग्री तक आसान पहुँच बच्चों को अनजाने में ऐसे रास्ते पर ले जाती है जहाँ से लौटना कठिन हो जाता है। आत्महत्या की प्रवृत्ति, अवसाद, असुरक्षा और आत्मसम्मान की कमी जैसी मानसिक समस्याएँ सोशल मीडिया की असंयमित दुनिया से गहराई तक जुड़ी हुई हैं। ऐसे में मेटा का यह निर्णय निश्चय ही एक जिम्मेदार पहल है।

मेटा ने यह नीति ऐसे समय में बनाई है जब दुनिया भर में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर बच्चों की सुरक्षा को लेकर गंभीर बहस चल रही है। कई देशों की संसदों और अदालतों में सोशल मीडिया कंपनियों से यह पूछा गया कि वे नाबालिगों की मानसिक सुरक्षा के लिए क्या कदम उठा रही हैं। इंस्टाग्राम पर किशोरों की ऑनलाइन सुरक्षा को लेकर कंपनी पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं। अमेरिकी कांग्रेस से लेकर ब्रिटिश संसदीय समितियों तक में यह मुद्दा गूंज चुका है। मेटा के पूर्व कर्मचारियों ने भी यह खुलासा किया था कि इंस्टाग्राम का एल्गोरिद्म किशोरों को अधिक समय तक प्लेटफॉर्म से जोड़ने के लिए जानबूझकर ऐसे कंटेंट सुझाता है जो मानसिक रूप से अस्थिर कर सकता है। आलोचनाओं के बाद कंपनी ने ‘पैरेंटल सुपरविजन टूल्स’ शुरू किए थे, लेकिन वे सीमित थे। अब कंपनी ने इससे एक कदम आगे बढ़ते हुए “PG-13 आधारित कंटेंट फ़िल्टरिंग सिस्टम” लागू करने का निर्णय लिया है।

इस नई व्यवस्था के तहत माता-पिता को यह अधिकार होगा कि वे अपने बच्चों की गतिविधियों पर निगरानी रख सकें। 18 वर्ष से कम आयु के यूजर्स को इंस्टाग्राम पर वह सामग्री स्वतः ही नहीं दिखाई देगी जो हिंसक, यौन या आत्मघाती प्रवृत्ति वाली हो। यह प्रणाली फ़िल्टर के माध्यम से काम करेगी जो हॉलीवुड फिल्मों की PG-13 रेटिंग प्रणाली की तरह होगी। जैसे किसी फिल्म को यह रेटिंग तब दी जाती है जब वह 13 वर्ष से ऊपर के बच्चों के लिए उपयुक्त मानी जाती है, वैसे ही अब इंस्टाग्राम पर भी कंटेंट की उपयुक्तता उसी मानक से तय की जाएगी। कंपनी का दावा है कि यह फीचर पहले अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में लागू होगा और वर्ष के अंत तक भारत सहित दुनिया भर में लागू कर दिया जाएगा।

यह कदम इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि भारत सोशल मीडिया यूजर्स के मामले में दुनिया के शीर्ष देशों में है। लाखों किशोर रोजाना इंस्टाग्राम पर सक्रिय हैं। स्कूल जाने वाले बच्चे सेल्फी पोस्ट करने, रील्स बनाने और लाइक्स पाने की दौड़ में इतने उलझ गए हैं कि वास्तविक जीवन की संवेदनाएं और प्राथमिकताएं पीछे छूटती जा रही हैं। किशोरों का आत्ममूल्य अब इस बात से तय होने लगा है कि उन्हें कितने फॉलोअर्स मिले, कितने लोगों ने उनकी पोस्ट को पसंद किया। यह सामाजिक स्वीकृति का नया और खतरनाक रूप है। जब किसी पोस्ट पर अपेक्षित प्रतिक्रिया नहीं मिलती, तो किशोर आत्मग्लानि और अवसाद में डूबने लगते हैं। कई बार इसी निराशा में वे आत्मघाती कदम तक उठा लेते हैं। ऐसे में अगर इंस्टाग्राम किशोरों को आपत्तिजनक सामग्री से दूर रख सके तो यह उनके मानसिक संतुलन और भावनात्मक विकास के लिए अत्यंत लाभकारी होगा।

माता-पिता भी इस कदम से राहत महसूस करेंगे। अब उन्हें यह डर नहीं रहेगा कि उनका बच्चा गलती से किसी गलत दिशा में जा रहा है या अश्लील सामग्री के प्रभाव में आ रहा है। “सीमित कंटेंट सेटिंग्स” के ज़रिए वे यह तय कर पाएंगे कि उनके बच्चे को क्या दिखना चाहिए और क्या नहीं। इससे पारिवारिक संवाद भी बेहतर होगा क्योंकि अभिभावक अब निगरानी के साथ-साथ मार्गदर्शन की भूमिका निभा सकेंगे। बच्चों को भी यह एहसास होगा कि सोशल मीडिया केवल मनोरंजन का माध्यम नहीं बल्कि ज़िम्मेदारी से इस्तेमाल करने का प्लेटफॉर्म है।

फिर भी यह नीति तभी सफल होगी जब तकनीकी सुरक्षा के साथ-साथ सामाजिक जागरूकता भी बढ़े। केवल फिल्टर लगाने से समस्या पूरी तरह समाप्त नहीं होगी। बच्चे हमेशा तकनीक से एक कदम आगे रहते हैं। वे प्रतिबंधों को पार करने के तरीके खोज लेते हैं। इसलिए आवश्यक है कि स्कूलों, परिवारों और समाज में डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा दिया जाए। बच्चों को यह समझाया जाए कि क्या सही है, क्या गलत है और क्यों कुछ चीज़ें सीमित की जा रही हैं। जब तक उन्हें कारणों की समझ नहीं होगी, वे प्रतिबंधों को नियंत्रण नहीं बल्कि विरोध के रूप में देखेंगे।

यह भी विचारणीय है कि “आपत्तिजनक सामग्री” की परिभाषा हर समाज और संस्कृति में अलग-अलग हो सकती है। जो एक देश में अनुचित माना जाता है, वह दूसरे में सामान्य हो सकता है। इसलिए वैश्विक स्तर पर लागू होने वाले ऐसे नियमों के लिए सांस्कृतिक विविधता और स्थानीय भावनाओं का ध्यान रखना आवश्यक है। मेटा को यह सुनिश्चित करना होगा कि उसके एल्गोरिद्म स्थानीय भाषाओं और समाज की संवेदनशीलता को समझ सकें। भारत जैसे बहुभाषी देश में यह एक बड़ी चुनौती होगी।

दूसरा महत्वपूर्ण पहलू यह है कि सोशल मीडिया कंपनियों की प्राथमिकता प्रायः मुनाफा होती है, न कि नैतिकता। अधिक यूजर्स का मतलब अधिक विज्ञापन और अधिक राजस्व। ऐसे में किशोरों को प्लेटफॉर्म से दूर रखना या उनके कंटेंट को सीमित करना कंपनी के आर्थिक हितों के विपरीत जा सकता है। इसलिए यह देखना दिलचस्प होगा कि मेटा इस नई नीति को कितनी गंभीरता से लागू करता है। यदि यह केवल दिखावटी कदम साबित हुआ तो इसका उद्देश्य ही विफल हो जाएगा।

सोशल मीडिया के नियमन की यह वैश्विक पहल सरकारों के लिए भी एक संकेत है। डिजिटल दुनिया इतनी प्रभावशाली हो चुकी है कि अब केवल नैतिक अपीलों से काम नहीं चलेगा। जैसे फिल्मों, विज्ञापनों और टीवी कार्यक्रमों पर सेंसरशिप की एक व्यवस्था होती है, वैसे ही सोशल मीडिया के लिए भी संतुलित और स्वतंत्र निगरानी संस्थान आवश्यक हैं। सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि कंपनियां केवल नीतियां घोषित न करें बल्कि उनके पालन के लिए पारदर्शी तंत्र भी बनाएं। अभिभावकों को भी सशक्त किया जाए कि वे अपने बच्चों की डिजिटल आदतों पर नज़र रख सकें।

किशोरों को यह समझाने की ज़रूरत है कि इंस्टाग्राम पर लाइक्स या फॉलोअर्स से उनकी असली पहचान तय नहीं होती। आत्मसम्मान, आत्मविश्वास और सामाजिक सहयोग ही जीवन के सच्चे मूल्य हैं। डिजिटल दुनिया असली दुनिया का विकल्प नहीं हो सकती। अगर बच्चे यह समझ जाएँ कि सोशल मीडिया एक साधन है, साध्य नहीं, तो उसकी सकारात्मक क्षमता अपार है।

मेटा का यह निर्णय केवल तकनीकी सुधार नहीं बल्कि एक मानव-केंद्रित दृष्टिकोण की ओर संकेत करता है। आज जब दुनिया के कई हिस्सों में किशोर आत्महत्या, साइबर बुलिंग और ऑनलाइन शोषण के शिकार हो रहे हैं, तब ऐसी पहलें उम्मीद की किरण बनती हैं। लेकिन इसके साथ यह भी ज़रूरी है कि सोशल मीडिया कंपनियाँ पारदर्शिता बरतें। माता-पिता को नियमित रिपोर्ट्स मिलें, बच्चे स्वयं अपने डिजिटल व्यवहार का मूल्यांकन करें और शिक्षण संस्थान इस विषय को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाएं।

कई अध्ययनों में यह साबित हुआ है कि सोशल मीडिया की अधिकता से किशोरों में चिंता, नींद की कमी और आत्मसंतुष्टि में गिरावट आती है। लगातार दूसरों से तुलना करने की प्रवृत्ति उन्हें हीनभावना की ओर धकेल देती है। “परफेक्ट बॉडी”, “ग्लैमरस लाइफस्टाइल” और “फिल्टर की दुनिया” में वे असलियत से कटते चले जाते हैं। मेटा यदि अपने नए सिस्टम के ज़रिए इन खतरों को कम कर सके तो यह समाज के लिए बड़ी उपलब्धि होगी।

हालाँकि, इसे केवल किशोरों तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए। वयस्कों के लिए भी सोशल मीडिया पर नियंत्रण आवश्यक है। फेक न्यूज़, घृणास्पद भाषण और गलत सूचनाएँ अब लोकतंत्र के लिए चुनौती बन चुकी हैं। इसलिए इस दिशा में मेटा की पहल अन्य प्लेटफॉर्म्स के लिए भी मिसाल बन सकती है।

अंततः कहा जा सकता है कि यह निर्णय किशोरों की सुरक्षा, मानसिक स्वास्थ्य और नैतिक विकास के लिए अत्यंत सराहनीय कदम है। तकनीक तभी सार्थक होती है जब वह मानवता की भलाई के लिए काम करे। मेटा का यह कदम इसी भावना का विस्तार है। आने वाले समय में यदि यह नीति पूरी गंभीरता और पारदर्शिता से लागू होती है, तो यह न केवल किशोरों बल्कि समाज के हर वर्ग के लिए एक स्वस्थ डिजिटल संस्कृति की दिशा में महत्वपूर्ण परिवर्तन साबित होगी।

 ✍️ डॉ सत्यवान सौरभ


 

मंगलवार, 28 अक्टूबर 2025

छठ मइया व भगवान सूर्य की स्तुति का महापर्व "छठ पूजा"

 ॐ ऐहि सूर्य सहस्त्रांशों तेजो राशे जगत्पते, 
अनुकंपयेमां भक्त्या, गृहाणार्घय दिवाकर:।


छठ पूजा सिर्फ एक अनुष्ठान नहीं, बल्कि पर्यावरण के साथ सद्भाव में रहने का एक अनूठा उदाहरण है। यह हमें याद दिलाता है कि प्रकृति का सम्मान करके ही हम एक स्वस्थ और समृद्ध जीवन जी सकते हैं, साथ ही यह हमें मातृ शक्ति के त्याग, समर्पण और प्रेम के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर प्रदान करता है। भोर की शीतल किरणों संग जब श्रद्धालु माताएँ और बहनें आस्था के सागर में खड़ी होती हैं, तो लगता है मानो पूरी प्रकृति भी उनके संकल्प में सहभागी हो गई हो। छठ मइया के इस पावन पर्व पर हर अर्घ्य, हर दीपक, और हर व्रती की भक्ति, सूर्य भगवान तक पहुँचकर सबके जीवन में नई ऊर्जा और प्रकाश भर देती है।


उदयमान सूर्य को नमन करने वाले संपूर्ण धरा में भारत ही एकमात्र देश है जहाँ अस्तांचलगामी भगवान् भास्कर को भी पूर्ण कृतज्ञतापूर्वक अर्घ्य समर्पित करने की परंपरा है। जीवन भर दिन भर अपने तेज़ से सम्पूर्ण पृथ्वी को दीप्त करने के पश्चात् जब भगवान भास्कर निस्तेज होकर पश्चिम दिशा की ओर प्रवर्तित होते हैं, तब उन्हें प्रकृति तत्वों सहित प्रणाम करना हमारे संस्कारों में निहित कृतज्ञता के अनुपम दर्शन का साक्षात् उदाहरण है। 

दुनिया कहती है - जिसका उदय होता है, उसका अस्त होना तय है।
पर छठ महापर्व सिखाता है कि प्रकृति के सान्निध्य में, आस्था, परिवार और एकता जब साथ हों,
तो अस्त होता सूरज भी केवल उदय की तैयारी करता है।
छठ महापर्व हमें याद दिलाता है कि हर अंत एक नई शुरुआत का संकेत है - 
जब डूबते सूरज को भी श्रद्धा से नमन किया जाए,
तो जीवन की हर कठिनाई भी नई रोशनी का मार्ग बना देती है।
यह पर्व केवल उपवास नहीं,
बल्कि संयम, समर्पण और सकारात्मकता की वह शक्ति है
जो हमें सिखाती है - 
कि जिसका “अस्त” होता है, उसका “उदय” होना निश्चित है। 

एक ऐसी पूजा
जिसमें कोई पुजारी नहीं होता
जिसमें देवता प्रत्यक्ष हैं
जिसमें डूबते सूर्य को भी पूजते हैं
जिसमें व्रती जाति समुदाय से परे होता है
जिसमें लोकगीत गाये जाते हैं
पकवान घर में ही बनाये जाते हैं
जिसमें घाट पर कोई ऊँच-नीच नहीं है
जिसका प्रसाद अमीर-गरीब सब श्रद्धा से ग्रहण करते हैं
ऐसे सामाजिक सौहार्द, सद्भाव, शांति-समृद्धि और सादगी का महापर्व है ये छठ। 

 "संपूर्ण धरा के शक्ति पुंज एवं जीवन आधार भगवान भास्कर को नमन, सूर्य देव से प्रार्थना है वो हम सब को अपनी तरह गतिमान रखे, अपनी लालिमा और ऊर्जा से हमें सिंचित करते रहे, धरती मां के परिक्रमा एवं हमारी माताओं के त्याग और व्रत का फल इस प्रकार हमें प्राप्त हो कि धरती मां के साथ - साथ हमारी माताओं को कोई कष्ट ना हो, वो हर प्रकार से स्वस्थ वा प्रसन्न रहें। सायंकालीन जलाराधना में प्रविष्ट होकर अस्तसन्न भगवान् भास्कर से कल्याण-कामना में सहभागी समस्त व्रतियों का सौभाग्य अक्षुण्ण रहे,अनुष्ठान का फल समस्त प्रियजन और इष्टमित्रों तक अभिलषित रूप में पहुँचे। छठ मइया व भगवान् सूर्य की स्तुति के महापर्व "छठ पूजा" की हार्दिक शुभकामनाएं। लोक आस्था, आत्मिक शुद्धि व प्रकृति के साथ जुड़ाव के इस महापर्व पर माता छठी सभी को पारिवारिक सुख समृद्धि, यश वैभव व दीर्घायु प्रदान करें। छठी मैया के साथ - साथ विश्व के संपूर्ण मातृ शक्ति को नमन!"

 - आकांक्षा यादव-
 

मंगलवार, 14 अक्टूबर 2025

राजा हरिश्चंद्र की विवाह स्थली : 'हरिश्चंद्र चोरी' शामलाजी, गुजरात

राजा हरिश्चन्द्र  के बारे में हम सभी ने स्कूल के दिनों में खूब पढ़ा है। राजा हरिश्चन्द्र की कहानी सत्य, निष्ठा और धर्म के पालन पर आधारित है। अयोध्या के राजा हरिश्चन्द्र को महर्षि विश्वामित्र ने स्वप्न में राज्य दान करने की प्रतिज्ञा पूरी करवाने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद, उन्होंने अपने परिवार के साथ राज्य छोड़ दिया और जब उन्हें विश्वामित्र ने दक्षिणा के रूप में सोने के सिक्के माँगे तो वे उस दक्षिणा को चुकाने के लिए अपना राज्य, पत्नी और पुत्र सब कुछ बेच देते हैं। राजा हरिश्चन्द्र को श्मशान में कर वसूलने का काम मिलता है और वहाँ वे अपने पुत्र रोहिताश्व की मृत्यु होने पर भी रानी तारामती से कर मांगते हैं। उनकी इस परीक्षा में सफल होने के बाद, भगवान और विश्वामित्र प्रसन्न होकर उन्हें उनका राज्य और परिवार वापस कर देते हैं।  

पिछले दिनों गुजरात स्थित शामला जी सपरिवार जाना हुआ तो स्थानीय लोगों ने बताया कि 'हरिश्चंद्र चोरी' अवश्य जाइएगा। फिर क्या था, हम सभी वहां पहुँच गए।  प्रकृति की खूबसूरती के बीच शाम को यहाँ का दृश्य देखते ही बनता है। आँखों के सामने राजा हरिश्चंद्र और रानी तारामती की कहानी चलचित्र की तरह घूम गई।पुरातत्व विभाग, गुजरात ने इसे बखूबी सहेज कर रखा है। बचपन के वे दिन याद आ गए जब हम बाइस्कोप में सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र की कहानी चलचित्र रूप में देखा करते थे। इसी बहाने बच्चों को भी उन पौराणिक और ऐतिहासिक व्यक्तित्वों/घटनाओं से रूबरू कराने का सुअवसर मिलता है। 



बहुत ही कम लोगों को पता है कि गुजरात और राजस्थान सीमा पर स्थित शामलाजी में एक ऐसी जगह 'हरिश्चंद्र चोरी' है, जहाँ राजा हरिश्चंद्र का रानी तारामती से विवाह हुआ था – और वो जगह आज भी मौजूद है! गुजराती भाषा में ‘चोरी’ का अर्थ विवाह मंडप होता है, जहाँ दंपत्ति विवाह के समय पवित्र अग्नि के चारों ओर फेरे लगाते हैं। 

 






  
 



यहाँ स्थित उत्कृष्ट 10वीं शताब्दी का तोरण गुजरात का सबसे प्राचीन तोरण माना जाता है। यह मंदिर भी उसी काल का है और यह विश्वास किया जाता है कि यहीं पर पौराणिक राजा हरिश्चंद्र का विवाह हुआ था। मंदिर के गर्भगृह के द्वार को बेल-बूटों, कमलपत्रों और एक ऐसी पवित्र लता से सजाया गया है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह मनोकामनाएँ पूरी करती है। द्वार के आधार पर बनी दो स्त्री मूर्तियाँ गंगा और यमुना नदियों का प्रतीक हैं।

  

(Harishchandra Chori, Shamlaji (Associated with legend): The exquisite 10th century torana here is the oldest in Gujarat. The temple, attributed to the same period, is named in the belief that the legendary king Harishchandra was married here.The sanctum doorway is adorned with bands comprising a creeper, lotus leaves and the vine which is supposed to grant wishes. The two female figures at its base represent Ganga and Yamuna. 'Chori' in Gujarati means the marriage pavilion where a couple goes around the ritual fire during the wedding ceremony.)