दिल्ली में हुए 'गैंग रेप' के विरुद्ध जनाक्रोश चरम पर है। हर शहर में लोगों का आक्रोश दिख रहा है, जुलूस निकल रहे हैं। पर ऐसी घटनाये रोज किसी-न-किसी रूप में घटित हो रही हैं। कल इलाहाबाद में एक इंजीनियरिंग कालेज के स्टूडेंट्स ने चलती बस से बाइक पर जा रहे जोड़े के साथ बद्तमीजी की। विरोध करने पर बस से उतरकर इन भावी इंजीनियरों ने लड़के को जमकर पीटा और लड़की के साथ सरेआम बदसलूकी की। प्रशासन ने इस घटना के लिए बस चालक और परिचालक के विरुद्ध कार्यवाही की है। पर 'भावी इंजीनियर्स' का क्या करेंगें। ऐसे इंजीनियर्स के हाथ में देश का भविष्य कहाँ तक सुरक्षित है ?
एक तरफ देश के कोने-कोने में गैंग-रेप जैसी घटनाओं के विरुद्ध जनाक्रोश है, वहीँ इस तरह की सरेआम घटनाएँ। क्या वाकई हुकूमत का भय लोगों के दिलोदिमाग से निकल गया है। प्रधानमंत्री जी अपनी तीन बेटियों और गृहमंत्री जी अपनी दो बेटियों की बात कर रहे हैं। पुलिस अफसर टी. वी. चैनल्स पर बता रहे हैं कि हमारी भी बेटियां हैं, अत: हमारी भी संवेदनाएं हैं। पर इन संवेदनाओं का आम आदमी क्या करे। कब तक मात्र सहानभूति और संवेदनाओं की बदौलत हम घटनाओं को विस्मृत करते रहेंगें।
लडकियाँ सड़कों पर असुरक्षित हैं, मानो वे कोई 'सेक्स आब्जेक्ट' हों। ऐसे में अब लड़कियों / महिलाओं को भी अपनी आत्मरक्षा के लिए खुद उपाय करने होंगें। अपने को कमजोर मानने की बजाय बदसलूकी करने वालों से भिड़ना होगा। पिछले दिनों इलाहबाद की ही एक लड़की आरती ने बदसलूकी करने वाले लड़के का वो हाल किया कि कुछेक दिनों तक शहर में इस तरह की घटनाये जल्दी नहीं दिखीं।
दुर्भाग्यवश, दिल्ली में शोर है, बड़ी-बड़ी बातें हो रही हैं पर इन सबके बीच भय किसी के चेहरे पर भी नहीं है। तभी तो ऐसी घटनाओं की बारम्बार पुनरावृत्ति हो रही है। संसद मात्र बहस और प्रस्ताव पास करके रह जाती है, प्रधानमंत्री जी कह रहे हैं हिंसा नहीं जायज है, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री कह रहे हैं कि, तो क्या हम कानून-व्यवस्था सुधारने हेतु वर्दी पहन लें।.......जब देश के जिम्मेदार पद पर बैठे लोगों का यह रवैया है तो भला कानून और शासन-प्रशासन का भय लोगों के मन में कहाँ से आयेगा। फांसी पर तो चढाने की बात दूर है, समाज में वो माहौल क्यों नहीं पैदा हो पा रहा है कि लड़कियां अपने को सुरक्षित समझें।
8 टिप्पणियां:
बेहतर लेखन,
जारी रहिये,
बधाई !!
Behad Prabhavi lekhan..Congts. Mam.
शासन और प्रशासन द्वारा महिलाओँ की सुरक्षा के प्रति बरती जा रही उदासीनता,बहाये जा रहे घडियाली आंसुओँ एवम देश की युवा पीढी की बदसलूकी पर आपका बेबाक आलेख काबिले तारीफ.
गुंडागर्दी इतनी आम हो गयी है कि कोई किसी को डाटने से भी डरने लगा है।
जब देश के जिम्मेदार पद पर बैठे लोगों का यह रवैया है तो भला कानून और शासन-प्रशासन का भय लोगों के मन में कहाँ से आयेगा। फांसी पर तो चढाने की बात दूर है, समाज में वो माहौल क्यों नहीं पैदा हो पा रहा है कि लड़कियां अपने को सुरक्षित समझें...Well said.
बहुत ही अच्छा और सामयिक आलेख |
आकांक्षा जी, बेहद धारदार लेखनी है। अपने तो दुखती रग पर हाथ रख दिया
bahut achha likha Muma.
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