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बुधवार, 31 दिसंबर 2008

नव वर्ष का प्रथम प्रभात

 
नव वर्ष तुम्हारा स्वागत है,
खुशियों की बस इक चाहत है।
 
नया जोश, नया उल्लास,
खुशियाँ फैले, करे उजास।
 
नैतिकता के मूल्य गढ़ें,
अच्छी-अच्छी बातें पढें।
 
कोई भूखा पेट न सोए,
संपन्नता के बीज बोए।
 
ऐ नव वर्ष के प्रथम प्रभात,
दो सबको अच्छी सौगात।
 

गुरुवार, 4 दिसंबर 2008

21वीं सदी की बेटी

यूँ ही डायरी में अपने मनोभावों को लिखना मेरा शगल रहा है। ऐसे ही किसी क्षण में इन मनोभावों ने कब कविता का रूप ले लिया, पता ही नहीं चला। पर यह शगल डायरी तक ही सीमित रहा, कभी इनके प्रकाशन की नहीं सोची। फिलहाल तो देश की तमाम प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में मेरी कविताएं प्रकाशित हो रही हैं, पर मेरी प्रथम कविता कादम्बिनी पत्रिका में 'युवा बेटी' शीर्षक 'नये पत्ते' स्तम्भ के अन्तर्गत दिसम्बर 2005 में प्रकाशित हुई थी। आज उसे ही यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ-
21वीं सदी की बेटी
जवानी की दहलीज पर
कदम रख चुकी बेटी को
माँ ने सिखाये उसके कर्तव्य
ठीक वैसे ही
जैसे सिखाया था उनकी माँ ने

पर उन्हें क्या पता
ये इक्कीसवीं सदी की बेटी है
जो कर्तव्यों की गठरी ढोते-ढोते
अपने आँसुओं को
चुपचाप पीना नहीं जानती है

वह उतनी ही सचेत है
अपने अधिकारों को लेकर
जानती है
स्वयं अपनी राह बनाना
और उस पर चलने के
मानदण्ड निर्धारित करना।

-आकांक्षा यादव-