आपका समर्थन, हमारी शक्ति

बुधवार, 20 मार्च 2013

लौट आओ नन्ही गौरैया

याद कीजिये, अंतिम बार आपने गौरैया को अपने आंगन या आसपास कब चीं-चीं करते देखा था। कब वो आपके पैरों के पास फुदक कर उड़ गई थी। सवाल जटिल है, पर जवाब तो देना ही पड़ेगा। गौरैया व तमाम पक्षी हमारी संस्कृति और परंपराओं का हिस्सा रहे हैं, लोकजीवन में इनसे जुड़ी कहानियां व गीत लोक साहित्य में देखने-सुनने को मिलते हैं। कभी सुबह की पहली किरण के साथ घर की दालानों में ढेरों गौरैया के झुंड अपनी चहक से सुबह को खुशगंवार बना देते थे। नन्ही गौरैया के सानिध्य भर से बच्चों को चेहरे पर मुस्कान खिल उठती थी, पर अब वही नन्ही गौरैया विलुप्त होती पक्षियों में शामिल हो चुकी है और उसका कारण भी हमीं ही हैं। गौरैया का कम होना संक्रमण वाली बीमारियों और परिस्थितिकी तंत्र बदलाव का संकेत है। बीते कुछ सालों से बढ़ते शहरीकरण, रहन-सहन में बदलाव, मोबाइल टॉवरों से निकलने वाले रेडिएशन, हरियाली कम होने जैसे कई कारणों से गौरैया की संख्या कम होती जा रही है।
बचपन में घर के बड़ों द्वारा चिड़ियों के लिए दाना-पानी रखने की हिदायत सुनी थी, पर अब तो हमें उसकी फिक्र ही नहीं। नन्ही परी गौरैया अब कम ही नजर आती है। दिखे भी कैसे, हमने उसके घर ही नहीं छीन लिए बल्कि उसकी मौत का इंतजाम भी कर दिया। हरियाली खत्म कर कंक्रीट के जंगल खड़े किए, खेतों में कीटनाशकों का अंधाधुंध इस्तेमाल कर उसका कुदरती भोजन खत्म कर दिया और अब मोबाइल टावरों से उनकी जान लेने पर तुले हुए हैं। फिर क्यों गौरैया हमारे आंगन में फुदकेगी, क्यों वह मां के हाथ की अनाज की थाली से अधिकार के साथ दाना चुराएगी?

कुछेक साल पहले तक गौरेया घर-परिवार का एक अहम हिस्सा होती थी। घर के आंगन में फुदकती गौरैया, उनके पीछे नन्हे-नन्हे कदमों से भागते बच्चे। अनाज साफ करती मां के पहलू में दुबक कर नन्हे परिंदों का दाना चुगना और और फिर फुर्र से उड़कर झरोखों में बैठ जाना। ये नजारे अब नगरों में ही नहीं गांवों में भी नहीं दिखाई देते।

भौतिकवादी जीवन शैली ने बहुत कुछ बदल दिया है। फसलों में कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से परिंदों की दुनिया ही उजड़ गई है। गौरैया का भोजन अनाज के दाने और मुलायम कीड़े हैं। गौरैया के चूजे तो केवल कीड़ों के लार्वा खाकर ही जीते हैं। कीटनाशकों से कीड़ों के लार्वा मर जाते हैं। ऐसे में चूजों के लिए तो भोजन ही खत्म हो गया है। फिर गौरैया कहाँ से आयेगी ?

गौरैया आम तौर पर पेड़ों पर अपने घोंसले बनाती है। पर अब तो वृक्षों की अंधाधुंध कटाई के चलते पेड़-पौधे लगातार कम होते जा रहे हैं। गौरैया घर के झरोखों में भी घोंसले बना लेती है। अब घरों में झरोखे ही नहीं तो गौरैया घोंसला कहां बनाए। मोबाइल टावर से निकलने वाली तरंगें, अनलेडेड पेट्रोल के इस्तेमाल से निकलने वाली जहरीली गैस भी गौरैयों और अन्य परिंदों के लिए जानलेवा साबित हो रही है। ऐसे में गौरैया की घटती संख्या पर्यावरण प्रेमियों के लिए चिंता और चिंतन दोनों का विषय है। इधर कुछ वर्षों से पक्षी वैज्ञानिकों एंव सरंक्षणवादियों का ध्यान घट रही गौरैया की तरफ़ गया। नतीजतन इसके अध्ययन व सरंक्षण की बात शुरू हुई, जैसे की पूर्व में गिद्धों व सारस के लिए हुआ। गौरैया के संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करने हेतु तमाम कदम उठाये जा रहे हैं।

जैव-विविधता के संरक्षण के लिए भी गौरैया का होना निहायत जरुरी है। हॉउस स्पैरो के नाम से मशहूर गौरैया परिवार की चिड़िया है, जो विश्व के अधिकांशत: भागों में पाई जाती है। इसके अलावा सोमाली, सैक्सुएल, स्पेनिश, इटेलियन, ग्रेट, पेगु, डैड सी स्पैरो इसके अन्य प्रकार हैं। भारत में असम घाटी, दक्षिणी असम के निचले पहाड़ी इलाकों के अलावा सिक्किम और देश के प्रायद्वीपीय भागों में बहुतायत से पाई जाती है। गौरैया पूरे वर्ष प्रजनन करती है, विशेषत: अप्रैल से अगस्त तक। दो से पांच अंडे वह एक दिन में अलग-अलग अंतराल पर देती है। नर और मादा दोनों मिलकर अंडे की देखभाल करते हैं। अनाज, बीजों, बैरी, फल, चैरी के अलावा बीटल्स, कैटरपीलर्स, दिपंखी कीट, साफ्लाइ, बग्स के साथ ही कोवाही फूल का रस उसके भोजन में शामिल होते हैं। गौरैया आठ से दस फीट की ऊंचाई पर, घरों की दरारों और छेदों के अलावा छोटी झाड़ियों में अपना घोसला बनाती हैं।
गौरैया को बचाने के लिए भारत की 'नेचर्स फोरएवर सोसायटी ऑफ इंडिया' और 'इको सिस एक्शन फाउंडेशन फ्रांस' के साथ ही अन्य तमाम अंतरराष्ट्रीय संस्थानों ने मिलकर 20 मार्च को 'विश्व गौरैया दिवस' मनाने की घोषणा की और वर्ष 2010 में पहली बार 'विश्व गौरैया दिवस' मनाया गया। इस दिन को गौरैया के अस्तित्व और उसके सम्मान में रेड लेटर डे (अति महत्वपूर्ण दिन) भी कहा गया। इसी क्रम में भारतीय डाक विभाग ने 9 जुलाई 2010 को गौरैया पर डाक टिकट जारी किए। कम होती गौरैया की संख्या को देखते हुए अक्टूबर 2012 में दिल्ली सरकार ने इसे राज्य पक्षी घोषित किया। वहीं गौरैया के संरक्षण के लिए 'बम्बई नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी' ने इंडियन बर्ड कंजरवेशन नेटवर्क के तहत ऑन लाइन सर्वे भी आरंभ किया हुआ है। कई एनजीओ गौरैया को सहेजने की मुहिम में जुट गए हैं, ताकि इस बेहतरीन पक्षी की प्रजातियों से आने वाली पीढियाँ भी रूबरू हो सके। देश के ग्रामीण क्षेत्र में गौरैया बचाओ के अभियान के बारे जागरूकता फैलाने के लिए रेडियो, समाचारपत्रों का उपयोग किया जा रहा है। कुछेक संस्थाएं गौरैया के लिए घोंसले बनाने के लिए भी आगे आई हैं। इसके तहत हरे नारियल में छेद कर, अख़बार से नमी सोखकर उस पर कूलर की घास लगाकर बच्चों को घोसला बनाने का हुनर सिखाया जा रहा है । ये घोसले पेड़ों के वी शेप वाली जगह पर गौरैया के लिए लगाए जा रहे हैं।
वाकई आज समय की जरुरत है कि गौरैया के संरक्षण के लिए हम अपने स्तर पर ही प्रयास करें। कुछेक पहलें गौरैया को फिर से वापस ला सकती हैं। मसलन, घरों में कुछ ऐसे झरोखे रखें, जहां गौरैया घोंसले बना सकें। छत और आंगन पर अनाज के दाने बिखेरने के साथ-साथ गर्मियों में अपने घरों के पास पक्षियों के पीने के लिए पानी रखने, उन्हें आकर्षित करने हेतु आंगन और छतों पर पौधे लगाने, जल चढ़ाने में चावल के दाने डालने की परंपरा जैसे कदम भी इस नन्ही पक्षी को सलामत रख सकते हैं। इसके अलावा जिनके घरों में गौरैया ने अपने घोसलें बनाए हैं, उन्हें नहीं तोड़ने के संबंध में आग्रह किया जा सकता है। फसलों में कीटनाशकों का उपयोग नहीं करने और वाहनों में अनलेडेड पेट्रोल का इस्तेमाल न करने जैसी पहलें भी आवश्यक हैं।

गौरैया सिर्फ एक चिड़िया का नाम नहीं है, बल्कि हमारे परिवेश, साहित्य, कला, संस्कृति से भी उसका अभिन्न सम्बन्ध रहा है। आज भी बच्चों को चिड़िया के रूप में पहला नाम गौरैया का ही बताया जाता है। साहित्य, कला के कई पक्ष इस नन्ही गौरैया को सहेजते हैं, उसके साथ तादात्म्य स्थापित करते हैं। गौरैया की कहानी, बड़ों की जुबानी सुनते-सुनते आज उसे हमने विलुप्त पक्षियों में खड़ा कर दिया है। नई पीढ़ी गौरैया और उसकी चीं-चीं को इंटरनेट पर खंगालती नजर आती है, ऐसा लगता है जैसे गौरैया रूठकर कहीं दूर चली गई हो। जरुरत है कि गौरैया को हम मनाएँ, उसके जीवनयापन के लिए प्रबंध करें और एक बार फिर से उसे अपनी जीवन-शैली में शामिल करें, ताकि हमारे बच्चे उसके साथ किलकारी मार सकें और वह उनके साथ फुदक सके !!

- आकांक्षा यादव

गुरुवार, 7 मार्च 2013

मेरा भी स्वतंत्र अस्तित्व है...




मुझे नहीं चाहिए
प्यार भरी बातें
चाँद की चाँदनी
चाँद से तोड़कर
लाए हुए सितारे।
मुझे नहीं चाहिए
रत्नजडि़त उपहार
मनुहार कर लाया
हीरों का हार
शरीर का श्रृंगार।
मुझे चाहिए
बस अपना वजूद
जहाँ किसी दहेज, बलात्कार
भ्रूण हत्या का भय
नहीं सताए मुझे।
मैं उन्मुक्त उड़ान
भर सकूँ अपने सपनों की
और कह सकूँ
मेरा भी स्वतंत्र अस्तित्व है।
-आकांक्षा यादव-