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बुधवार, 26 अप्रैल 2017

ब्लॉगिंग : न्यू मीडिया के दौर का सशक्त माध्यम

(हिन्दी ब्लॉगिंग अपने सफर के डेढ़ दशक पूरा करने की ओर अग्रसर है। 21 अप्रैल 2003 को हिंदी का  प्रथम ब्लॉग ’नौ दो ग्यारह’ बना था, तबसे इसने कई पड़ावों को पार किया है। न्यू मीडिया के एक स्तंभ के रूप में इसने कई नई इबारतें भी लिखी हैं तो सोशल मीडिया के तमाम माध्यमों, विशेषकर फेसबुक के आने के बाद हिन्दी ब्लॉगिंग के प्रति लोगों का मोहभंग भी हुआ है। पर इसके बावजूद आज एक लाख से ज्यादा हिन्दी ब्लॉग देश-दुनिया में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर मौजूद हैं। कुछ अभी भी लिखे जा रहे हैं, कुछ कभी-कभी.......और कुछ सिर्फ नाम के लिए। 21 अप्रैल 2017 को हिन्दी ब्लॉगिंग ने 14 सालों का सफर पूरा कर लिया है। 14 सालों बाद भगवान श्रीराम का वनवास पूरा हुआ था, पर लगता है कि हिन्दी ब्लॉग 14 सालों के बाद अपने वनवास की ओर अग्रसर है। खैर, इन सबके बीच भी ब्लॉगिंग का अपना आनंद और जुनून है और हम तो सपरिवार इससे जुड़े हुये हैं। हिन्दी ब्लॉगिंग के 14 सालों और हमारे परिवार की तीन पीढ़ियों के इससे लगाव पर विभिन्न समाचार-पत्रों में प्रकाशित रिपोर्ताज आप सभी के साथ शेयर कर रही हूँ)
न्यू मीडिया के इस दौर में ब्लॉगिंग लोगों के लिए अपनी बात कहने का सशक्त माध्यम बन चुका है। राजनीति की दुनिया से लेकर फिल्म जगत, साहित्य से लेकर कला और संस्कृति से जुड़े तमाम नाम ब्लॉगिंग से जुडे हुए हैं।  21 अप्रैल 2003 को हिंदी का  प्रथम ब्लॉग ’नौ दो ग्यारह’ बना था, तबसे इसने कई पड़ावों को पार किया है। हिंदी ब्लॉगिंग के क्षेत्र में एक ऐसा भी परिवार है, जिसकी तीन पीढ़ियाँ ब्लॉगिंग से जुडी हैं। राजस्थान पश्चिमी क्षेत्र, जोधपुर के निदेशक डाक सेवाएं कृष्ण कुमार यादव, उनकी पत्नी आकांक्षा यादव और बिटिया अक्षिता ब्लॉगिंग के क्षेत्र में नित नए आयाम रच रहे हैं। उनके परिवार में पिताश्री राम शिव मूर्ति यादव भी ब्लॉगिंग से जुड़े हुए हैं।  सार्क देशों के सर्वोच्च 'परिकल्पना ब्लॉगिंग सार्क शिखर सम्मान' से सम्मानित एवं नेपाल, भूटान और श्रीलंका सहित तमाम देशों में आयोजित अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर्स सम्मेलन में सक्रिय भागीदारी निभाने वाले श्री यादव जहाँ अपने साहित्यिक रचनाधर्मिता हेतु "शब्द-सृजन की ओर" (http://kkyadav.blogspot.in/) ब्लॉग लिखते हैं, वहीं डाक विभाग को लेकर "डाकिया डाक लाया" (http://dakbabu.blogspot.in/) नामक उनका ब्लॉग भी चर्चित है।
 वर्ष 2015 में हिन्दी का सबसे लोकप्रिय ब्लॉग 'शब्द-शिखर' (http://shabdshikhar.blogspot.com) को चुना गया और इसकी मॉडरेटर  आकांक्षा यादव को  हिन्दी में ब्लॉग लिखने वाली शुरूआती महिलाओं में गिना जाता है। ब्लॉगर दम्पति कृष्ण कुमार यादव और आकांक्षा यादव को  'दशक के श्रेष्ठ ब्लॉगर दम्पति',  'परिकल्पना ब्लॉगिंग सार्क शिखर सम्मान' के अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री द्वारा नवम्बर, 2012 में ”न्यू मीडिया एवं ब्लॉगिंग” में उत्कृष्टता के लिए ”अवध सम्मान से भी विभूषित किया जा  चुका  है। इस दंपती ने वर्ष 2008 में ब्लॉग जगत में कदम रखा और  विभिन्न विषयों पर आधारित दसियों ब्लॉग का संचालन-सम्पादन करके कई लोगों को ब्लॉगिंग की तरफ प्रवृत्त किया और अपनी साहित्यिक रचनाधर्मिता के साथ-साथ ब्लॉगिंग को भी नये आयाम दिये। नारी सम्बन्धी मुद्दों पर प्रखरता से लिखने वालीं आकांक्षा यादव का मानना है कि न्यू मीडिया के रूप में उभरी ब्लॉगिंग ने नारी-मन की आकांक्षाओं को मुक्ताकाश दे दिया है। आज एक लाख  से भी ज्यादा हिंदी ब्लॉग में लगभग एक तिहाई ब्लॉग महिलाओं द्वारा लिखे जा रहे  हैं।
ब्लॉगर दम्पति यादव की 10  वर्षीया सुपुत्री अक्षिता (पाखी) को भारत की सबसे कम उम्र की ब्लॉगर माना जाता है। अक्षिता की प्रतिभा को देखते हुए भारत सरकार ने  वर्ष 2011 में उसे "राष्ट्रीय बाल पुरस्कार" से सम्मानित किया, वहीं अंतर्राष्ट्रीय ब्लॉगर सम्मेलन, श्री लंका में उसे  "परिकल्पना कनिष्ठ सार्क ब्लॉगर सम्मान" से भी सम्मानित किया गया। उसका ब्लॉग  'पाखी की दुनिया'  (http://pakhi-akshita.blogspot.in/)  को 100 से ज्यादा देशों में देखा-पढा जाता है।
हिंदी ब्लॉगिंग की दशा और दिशा पर पुस्तक लिख रहे चर्चित ब्लॉगर कृष्ण कुमार यादव ने कहा कि,  आज ब्लाॅग सिर्फ जानकारी देने का माध्यम नहीं बल्कि संवाद, प्रतिसंवाद, सूचना विचार और अभिव्यक्ति का भी सशक्त ग्लोबल मंच है। आज हर आयु-वर्ग के लोग इसमें सक्रिय हैं, शर्त सिर्फ इतनी है कि की-बोर्ड पर अंगुलियाँ चलाने का हुनर हो।

शुक्रवार, 14 अप्रैल 2017

गरीबों, वंचितों, दलितों और महिलाओं के जीवन में सकारात्मक बदलाव के लिए सतत संघर्ष करते रहे डॉ. भीमराव अम्बेडकर


मैं एक समुदाय की प्रगति का माप महिलाओं द्वारा हासिल प्रगति की डिग्री द्वारा करता हूँ 
-बाबा साहेब डॉ. भीमराव अम्बेडकर 

हमारे देश का सौभाग्य है कि हमें एक से बढ़कर एक महापुरुष मिले हैं। बाबा साहेब डॉ. भीम राव अम्बेडकर ऐसे ही महान और प्रभावशाली महापुरुषों में हैं। बाबा साहेब डॉ. अम्बेडकर गरीबों, वंचितों, दलितों और महिलाओं के जीवन में सकारात्मक बदलाव के लिए सतत संघर्ष करते रहे और अपना जीवन इस काम में समर्पित कर दिया। डॉ. अम्बेडकर ने संविधान शिल्पी के रूप में  जितनी बड़ी संख्या में गरीबों और खासकर वंचित तबके को समाज में ऊपर उठाने का काम किया है, इतिहास में ऐसा कोई उदाहरण नहीं मिलता कि किसी एक काम ने इतना असर दिखाया हो। बाबा साहेब का कमजोर लोगों को सशक्त बनाना अनुकरणीय था। 

गरीबों और वंचितों को साथ ले चलने पर उनका जोर हमारे लिए प्रेरणादायी है। सतत संघर्ष, निरंतर कठिन परिश्रम, श्रमशील अध्ययन, सामाजिक समरसता, एकजुट संगठन, सर्व धर्म संभाव, सर्व जाति प्रेमभाव और प्रबुद्ध समाज का विकास बहुत कुछ  सिखा गये बाबा साहेब । 

विश्व के सबसे बड़े संविधान  के निर्माता,  प्रथम विधि मंत्री, सामाजिक समरसता की स्थापना के लिए जीवनपर्यन्त  संघर्ष करने वाले  डॉ. भीमराव अम्बेडकर की जयंती के अवसर पर बधाई। 


It's day of Celebrations, a day to value a special person who taught world the lesson of Self Confidence and Dignity, who turned the Wheel of Justice towards Social justice of all. Its Bharat Ratna, Dr. B. R. Ambedkar, first Law Minister of India, Architect of Indian Constitution. Our politicians should learn from Baba Ambedkar Ji. We are enjoying our freedom under our great constitution provided by him. Nation Salutes you...!!

-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

शुक्रवार, 7 अप्रैल 2017

सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की पहली महिला अफसर बनी बीकानेर की तनुश्री

नारी-सशक्तिकरण की दिशा में एक कदम तब और जुड़ गया, जब देश की सीमा की हिफाजत करने वाले सबसे बड़े सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) को अपने 51 साल के इतिहास में पहली बार पहली महिला अधिकारी (फील्ड ऑफिसर) मिली ।  राजस्‍थान के बीकानेर की बेटी तनुश्री पारीक ने देश की पहली सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) की महिला अधिकारी बनकर देश का गौरव बढ़ाया. मध्य प्रदेश के ग्वालियर में टेकनपुर स्थित बीएसएफ अकादमी में 25 मार्च, 2017 को आयोजित पासिंग आउट परेड के बाद वह असिस्टेंट कमांडेंट बन गईं. इस मौके पर 25 वर्षीय तनुश्री ने 67 ट्रैनी ऑफिसर की दीक्षांत परेड का नेतृत्व भी किया और उन्हें सम्मानित भी किया गया. तनुश्री ने यहां बीएसएफ अकादमी में अधिकारियों के 40वें बैच में बतौर सहायक कमांटेंड 52 हफ्तों का प्रशिक्षण लिया था.


केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने तनुश्री के बीएसएफ की पहली महिला अधिकारी बनने पर शुभकामनाएं दी. गृहमंत्री ने कहा कि इस बात की खुशी है कि बीएसएफ को पहली फील्ड ऑफिसर मिली है. मैं उम्मीद करता हूं कि इनसे प्रेरित होकर और भी महिला अधिकारी अर्द्धसैनिक बलों से जुड़ेंगी, और देश की सीमाओं की सुरक्षा करेंगी. सेना और अर्द्धसैनिक बलों में महिला अधिकारी भी अपनी जिम्मेदारी का बेहतर तरीके से निर्वहन कर रही हैं.

बॉर्डर फिल्‍म से ली बीएसएफ में जाने की प्रेरणा

 बीकानेर में जब बॉर्डर फिल्म की शूटिंग हो रही थी, तब तनुश्री स्‍कूल जाने लगी थीं. उस फिल्म में बीएसएफ का अहम रोल था. फिल्‍म से प्रेरणा लेकर उन्‍होंने बीएसएफ में जाकर देश सेवा का मन बनाया था. जो आज एक गौरव के रूप में सामने आया है. वहीं तनुश्री पारीक का कहा था कि उन्‍होंने बीकानेर में करीब से बीएसएफ के कामकाज के तरीके को देखा. मैंने नौकरी के लिए नहीं बल्कि पैशन के लिए बीएसएफ को चुना. तनुश्री स्कूल और कॉलेज के दौरान एनसीसी कैडेट भी रह चुकी हैं.

असिस्टेंट कमांडेंड के रूप में तनुश्री को अब भारत-पाक सीमा पर पंजाब में तैनात किया जाएगा, जहां वे एक यूनिट की कमांड संभालेंगी। गौरतलब है कि 1965 में स्थापना के बाद से बीएसएफ ने वर्ष 2013 से महिला ऑफिसर की भर्ती शुरू की थी। बीएसएफ में फिलहाल 2.5 लाख जवान हैं।
Rajasthan's Tanushree becomes the first woman combat officer of the BSF

आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर
Akanksha Yadav @ http://shabdshikhar.blogspot.in/