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शनिवार, 31 अक्तूबर 2015

राजनीति में बढ़ती महिलाओं की भागीदारी : विद्या भंडारी बनीं नेपाल की पहली महिला राष्ट्रपति

भारतीय उपमहाद्वीप में विद्या भंडारी के नेपाल की राष्ट्रपति निर्वाचित होते ही एक नया रिकार्ड बन गया। राजशाही वाले भूटान को छोड़ दें तो यहाँ के हर देश में राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के रूप में महिलाएँ नेतृत्व के शीर्ष पर विराजमान होने का सौभाग्य प्राप्त कर चुकी। इनमें भारत में  इंदिरा गांधी (प्रधानमंत्री), प्रतिभा पाटील (राष्ट्रपति),  पाकिस्तान में  बेनजीर भुट्टो (प्रधानमंत्री), बांग्लादेश में  शेख हसीना वाजेद, खालिदा जिया (दोनों प्रधानमंत्री) श्रीलंका में  सिरिमाओ भंडारनायके (प्रधानमंत्री), चंद्रिका कुमारतुंगा (प्रधानमंत्री व राष्ट्रपति) और अब नेपाल में विद्या देवी भंडारी (राष्ट्रपति) हैं। 

कौन हैं विद्या भंडारी : 

नेपाल की संसद ने बुधवार को CPN-UML पार्टी की लीडर विद्या भंडारी को अपना नया राष्ट्रपति चुना। देश में राजशाही खत्म होने के बाद भंडारी लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गईं दूसरी राष्ट्रपति हैं, जबकि नया संविधान लागू होने के बाद वह देश की पहली राष्ट्रपति हैं। किसी समय हिंदू राष्ट्र नेपाल में महिला अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करने वाली विद्या देवी का जन्म जून 1961 में भोजपुर के पांडे परिवार में हुआ। भंडारी कम्युनिस्ट लीडर मदन भंडारी की विधवा हैं। मदन की 1993 में संदिग्ध हालात में एक रोड एक्सीडेंट में मौत हो गई थी। भंडारी CPN-UML पार्टी की डिप्टी लीडर हैं। नेपाल के नए प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली पार्टी के अध्यक्ष हैं। गौरतलब है कि नेपाल के लोकतंत्र की राह पर बढ़ने के बाद यह दूसरा राष्ट्रपति चुनाव था। इससे पहले 2008 में संविधान सभा के चुनाव के बाद राम बरन यादव राष्ट्रपति चुने गए थे।


दुनिया की महाशक्तियों की बात करें तो आज तक अमेरिका, रूस, फ्रांस में कोई महिला राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री नहीं बनी। ब्रिटन में मार्गरेट थैचर लौह महिला के रूप में प्रधानमंत्री रहीं, जबकि चीन में 1981 में केवल 12 दिन के लिए सोंग किंगलिंग मानद राष्ट्रपति रहीं। अमेरिका के 226 साल के इतिहास में कोई महिला राष्ट्रपति नहीं रही।  हिलेरी क्लिंटन 2008 में राष्ट्रपति पद का टिकट हासिल करने में नाकाम रहीं, वे 2016 में फिर टिकट पाने की दौड़ में हैं।

दुनिया के अन्य देशों की बात करें तो, अभी ये हैं कुछ प्रमुख महिला राष्ट्रपति - 

दक्षिण कोरिया: पार्क गुन हे
मॉरीशस: बीवी अमीना गरीब
क्रोएशिया: कोलिंडा ग्रैबर
माल्टा: मैरी लुइसी कोलेरो
चिली: मिशेल ब्लैंचेट
ब्राजील: डिल्मा रूसेफ
मध्य अफ्रीकी गणराज्य: कैथरीन सैंबा पेंजा
लाइबेरिया: एलन जॉनसन सरलीफ
कोसोवो: अतीफेत जहजागा

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

करवा चौथ के बहाने...

करवाचौथ तो बहाना है,
असली मकसद तो पति को याद दिलाना है...

कि कोई है,
जो उसके इंतजार में दरवाजे पर
टकटकी लगाए रहती है,
पति के इंतज़ार में.
सदा आँखें बिछाए रहती है...

वैलेंटाईन ड़े, रोज़ ड़े
इन सब को वो समझ नहीं पाती है....
प्यार करती है दिल की गहराईयों से,
पर कह नहीं पाती है....

सुबह से भूखी है,
उसका गला भी सूखा जाता है....
इस पर उसका कोई ज़ोर नहीं,
उसे प्यार जताने का
बस यही तरीका आता है....

खुलेआम किस करना हमारी संस्कृति में नहीं,
'आई लव यू' कहने में वो शर्माती है....
वो चाहती है बहुत कुछ कहना,
पर 'जल्दी घर आ जाना'
बस यही कह पाती है....

फेसबुक, ट्वीटर से मतलब नहीं उसे,
ना फोन पे वाट्सैप चलाना आता है....
यूँ तो कोई जिद नहीं करती,
पर प्यार से रूठ जाना आता है...

उसका समर्पण,
और हमारे परिवार पर लुटाया हुआ प्यार....
ऐसी प्रिया को,
है सम्मान का, प्यार का अधिकार !!

-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर : Akanksha Yadav @ www.shabdshikhar.blogspot.com/

करवा चौथ के मर्म और मूल को समझने की जरूरत

करवा चौथ का पर्व हर साल आता है और पूरे जोशो खरोश के साथ सेलिब्रेट किया जाता है। करवा चौथ  सिर्फ एक त्यौहार ही नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक सन्देश भी छिपा हुआ है।  आज समाज में जब रिश्तों के मायने बदलते जा रहे हैं, भौतिकता की चकाचौंध में हमारे पर्व और त्यौहार भी उपभोक्तावादी संस्कृति तक सिमट गए हैं, ऐसे में करवा चौथ के मर्म और मूल को समझने की जरूरत है। 

करवा चौथ (करक चतुर्थी) अर्थात भारतीय नारी के समर्पण, शीलता, सहजता, त्याग, महानता एवं पतिपरायणता  को व्यक्त करता एक पर्व। दिन भर स्वयं भूखा प्यासा रहकर रात्रि को जब मांगने का अवसर आया तो अपने पति देव के मंगलमय, सुखमय और दीर्घायु जीवन की ही याचना करना यह नारी का त्याग और समर्पण नहीं  तो और क्या है ?

करवा चौथ का वास्तविक संदेश दिन भर भूखे रहना ही नहीं अपितु यह है नारी अपने पति की प्रसन्नता के लिए, सलामती के लिए इस हद तक जा सकती है कि पूरा दिन भूखी - प्यासी भी रह सकती है। करवा चौथ नारी के लिए एक व्रत है और पुरुष के लिए एक शर्त। 

-शर्त केवल इतनी कि जो नारी आपके लिए इतना कष्ट सहती है उसे कष्ट न दिया जाए। जो नारी आपके लिए समर्पित है उसको और संतप्त न किया जाए। जो नारी प्राणों से बढ़कर आपका सम्मान करती है जीवन भर उसके सम्मान की रक्षा का प्रण आप भी लो। उसे उपहार नहीं आपका प्यार चाहिए !!

सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

हैप्पी बर्थ-डे टू यू


हमारी प्यारी बिटिया अपूर्वा 27 अक्टूबर को पूरे पाँच साल की हो जाएँगी।
 इनके हैप्पी बर्थ-डे पर आप सबका आशीष, स्नेह और प्यार तो मिलना ही चाहिये !!








रविवार, 25 अक्तूबर 2015

अब महिलाएं भी उड़ाएंगी लड़ाकू विमान

महिलाओं ने एक और उपलब्धि की ओर कदम बढ़ा दिए हैं। वायुसेना में अब महिलाएं हर क्षेत्र में पुरुषों के बराबर होंगी। वह भी लड़ाकू विमान उड़ा सकेंगी। रक्षा मंत्रालय ने 24 अक्टूबर, 2015 को इस संबंध में प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। पहली बार सशस्त्र सेनाओं में महिलाओं को युद्धक भूमिकाओं में रखा जाएगा। 

मंत्रालय के फैसले के मुताबिक लड़ाकू विमान उड़ाने वाली पायलटों का चयन वायुसेना अकादमी में प्रशिक्षण ले रही अधिकारियों में से होगा। प्रारंभिक प्रशिक्षण के बाद इन्हें जून-2016 में लड़ाकू दस्ते में कमीशन दिया जाएगा। एक और वर्ष का गहन प्रशिक्षण देने के बाद जून-2017 से महिला अधिकारी भी लड़ाकू विमान उडाना शुरू करेंगी। वायुसेना में लड़ाकू दस्ते को छोड़कर सभी शाखाओं में 1,500 महिलाएं हैं। इनमें 94 पायलट हैं, जो परिवहन विमान हेलिकॉप्टर उड़ा रही हैं। अन्य में करीब 14 महिला नेविगेटर्स हैं। हाल ही में वायुसेना दिवस पर वायु सेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल अरूप राहा ने कहा था कि महिलाओं को लड़ाकू विमान उड़ाने की मंजूरी देने पर विचार चल रहा है। इसके बाद रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर ने भी कहा था कि जल्द ही इस पर फैसला होगा। उन्होंने तो आईएसआईएस के ठिकानों पर निशाना साध रही यूएई की एयरफोर्स की महिला पायलटों का जिक्र भी किया था। 

गौरतलब है कि महिलाओं के लिए वायुसेना का दरवाजा जून 1993 में पहली बार खुला था। पूरे 24 साल बाद जून 2017 में लड़ाकू विमानों का कॉकपिट भी खुलेगा। 1993 में जब पहली बार महिलाओं की भर्ती वायुसेना में हुई थी, तब पांच साल के लिए प्रायोगिक तौर पर नॉन-टेक्निकल ग्राउंड ड्यूटी दी गई थी। प्रयोग सफल रहा। अब लड़ाकू विमानों को छोड़कर वायुसेना की सभी शाखाओं में शॉर्ट सर्विस कमीशन में महिलाएं भर्ती होती हैं। वायुसेना की तर्ज पर नौसेना और सेना में भी महिलाओं को युद्धक भूमिकाएं देने की मांग है। इस पर भी जल्द फैसला हो सकता है। 

अभी सेना में महिलाएं सिग्नल्स, इंजीनियर्स, आर्मी एविएशन (एयर ट्रैफिक कंट्रोल), आर्मी एयर डिफेंस, इलेक्ट्रॉनिक्स और मैकेनिकल इंजीनियर्स, आर्मी सर्विस कॉर्प्स, आर्मी ऑर्डिनेंस कॉर्प्स, इंटेलीजेंस कॉर्प्स, आर्मी एजुकेशन कॉर्प्स और जज एडवोकेट जनरल्स ब्रांच/कैडर में हैं, युद्धक भूमिकाओं में नहीं। नौसेना में महिलाएं जज एडवोकेट जनरल, लॉजिस्टिक्स, ऑब्जर्वर, एयर ट्रैफिक कंट्रोलर, नेवल कंस्ट्रक्टर और एजुकेशन ब्रांच/कैडर में काम कर रही हैं। हालांकि, हाल ही में महिला पायलटों को निगरानी विमानों के बेड़े में रखने का प्रस्ताव बना है। वायुसेना में महिलाएं फ्लाइंग ब्रांच की ट्रांसपोर्ट और हेलिकॉप्टर स्ट्रीम के साथ ही नेविगेशन, एरोनॉटिकल इंजीनियरिंग, एडमिनिस्ट्रेशन, लॉजिस्टिक्स, अकाउंट्स, एजुकेशन और मौसम से जुड़ी शाखाओं में काम कर रही हैं। 

भारतीय वायुसेना इससे पहले महिलाओं को लड़ाकू विमान पायलट बनाने से ये कहते हुए मना करती रही थी कि लड़ाई के दौरान विमान मार गिराने की सूरत में पकड़े जाने पर उन्हें प्रताड़ना और उत्पीड़न का शिकार बनाया जा सकता है। 

वायुसेना में महिलाओं को लड़ाकू विमान उड़ाने हेतु मंजूरी देने के बाद अब सेना और नौसेना के लिए भी  फैसला जल्द होने की सम्भावना है। रक्षा मंत्रालय ने सशस्त्र सेनाओं में महिलाओं की नियुक्ति की समीक्षा करने का फैसला किया है। शॉर्ट सर्विस कमीशन और परमानेंट कमीशन दोनों में ही अन्य शाखाओं को भी महिलाओं के लिए खोला जाएगा। वायुसेना की तर्ज पर नौसेना और सेना में भी महिलाओं को युद्धक भूमिकाएं देने की मांग कई बरस पुरानी है। इस पर भी जल्द फैसला हो सकता है। 

- आकांक्षा यादव : Akanksha Yadav @ शब्द-शिखर : http://shabdshikhar.blogspot.com/

गुरुवार, 22 अक्तूबर 2015

मैं उदास हूँ स्त्री अस्मिता के लिए...

मर चुका है रावण का शरीर
स्तब्ध है सारी लंका
सुनसान है किले का परकोटा
कहीं कोई उत्साह नहीं
किसी घर में नहीं जल रहा है दिया
विभीषण के घर को छोड़ कर।

सागर के किनारे बैठे हैं विजयी राम
विभीषण को लंका का राज्य सौंपते हुए
ताकि सुबह हो सके उनका राज्याभिषेक
बार-बार लक्ष्मण से पूछते हैं
अपने सहयोगियों की कुशल-क्षेम
चरणों के निकट बैठे हैं हनुमान !

मन में क्षुब्ध हैं लक्ष्मण
कि राम क्यों नहीं लेने जाते हैं सीता को
अशोक वाटिका से
पर कुछ कह नहीं पाते हैं ।

धीरे-धीरे सिमट जाते हैं सभी काम
हो जाता है विभीषण का राज्याभिषेक
और राम प्रवेश करते हैं लंका में
ठहरते हैं एक उच्च भवन में।

भेजते हैं हनुमान को अशोक-वाटिका
यह समाचार देने के लिए
कि मारा गया है रावण
और अब लंकाधिपति हैं विभीषण ।

सीता सुनती हैं इस समाचार को
और रहती हैं ख़ामोश
कुछ नहीं कहती
बस निहारती है रास्ता।

रावण का वध करते ही
वनवासी राम बन गए हैं सम्राट ?
लंका पहुँच कर भी भेजते हैं अपना दूत
नहीं जानना चाहते एक वर्ष कहाँ रही सीता
कैसे रही सीता ?
नयनों से बहती है अश्रुधार
जिसे समझ नहीं पाते हनुमान
कह नहीं पाते वाल्मीकि।

राम अगर आते तो मैं उन्हें मिलवाती
इन परिचारिकाओं से
जिन्होंने मुझे भयभीत करते हुए भी
स्त्री की पूर्ण गरिमा प्रदान की
वे रावण की अनुचरी तो थीं
पर मेरे लिए माताओं के समान थीं।

राम अगर आते तो मैं उन्हें मिलवाती
इन अशोक वृक्षों से
इन माधवी लताओं से
जिन्होंने मेरे आँसुओं को
ओस के कणों की तरह सहेजा अपने शरीर पर
पर राम तो अब राजा हैं
वह कैसे आते सीता को लेने ?

विभीषण करवाते हैं सीता का शृंगार
और पालकी में बिठा कर पहुँचाते है राम के भवन पर
पालकी में बैठे हुए सीता सोचती हैं
जनक ने भी तो उसे विदा किया था इसी तरह !

वहीं रोक दो पालकी,
गूँजता है राम का स्वर
सीता को पैदल चल कर आने दो मेरे समीप !

ज़मीन पर चलते हुए काँपती है भूमिसुता
क्या देखना चाहते हैं
मर्यादा पुरुषोत्तम, कारावास में रह कर
चलना भी भूल जाती हैं स्त्रियाँ ?

अपमान और उपेक्षा के बोझ से दबी सीता
भूल जाती है पति-मिलन का उत्साह
खड़ी हो जाती है किसी युद्ध-बन्दिनी की तरह !

कुठाराघात करते हैं राम
सीते! कौन होगा वह पुरुष
जो वर्ष भर पर-पुरुष के घर में रही स्त्री को
करेगा स्वीकार ?

मैं तुम्हें मुक्त करता हूँ,
तुम चाहे जहाँ जा सकती हो ।
उसने तुम्हें अंक में भर कर उठाया
और मृत्युपर्यंत तुम्हें देख कर जीता रहा
मेरा दायित्व था तुम्हें मुक्त कराना
पर अब नहीं स्वीकार कर सकता
तुम्हें पत्नी की तरह !

वाल्मीकि के नायक तो राम थे
वे क्यों लिखते सीता का रुदन
और उसकी मनोदशा ?
उन क्षणों में क्या नहीं सोचा होगा सीता ने
कि क्या यह वही पुरुष है
जिसका किया था मैंने स्वयंवर में वरण
क्या यह वही पुरुष है जिसके प्रेम में
मैं छोड़ आई थी अयोध्या का महल
और भटकी थी वन-वन !

हाँ, रावण ने उठाया था मुझे गोद में
हाँ, रावण ने किया था मुझसे प्रणय निवेदन
वह राजा था चाहता तो बलात ले जाता अपने रनिवास में
पर रावण पुरुष था,
उसने मेरे स्त्रीत्व का अपमान कभी नहीं किया
भले ही वह मर्यादा पुरुषोत्तम न कहलाए इतिहास में !

यह सब कहला नहीं सकते थे वाल्मीकि
क्योंकि उन्हें तो रामकथा ही कहनी थी !
आगे की कथा आप जानते हैं
सीता ने अग्नि-परीक्षा दी
कवि को कथा समेटने की जल्दी थी
राम, सीता और लक्ष्मण अयोध्या लौट आए
नगरवासियों ने दीपावली मनाई
जिसमें शहर के धोबी शामिल नहीं हुए।

आज इस दशहरे की रात
मैं उदास हूँ उस रावण के लिए
जिसकी मर्यादा
किसी मर्यादा पुरुषोत्तम से कम नहीं थी ।
मैं उदास हूँ कवि वाल्मीकि के लिए
जो राम के समक्ष सीता के भाव लिख न सके।
आज इस दशहरे की रात
मैं उदास हूँ स्त्री अस्मिता के लिए
उसकी शाश्वत प्रतीक जानकी के लिए!
-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर : www.shabdshikhar.blogspot.com/
(वाट्सएप पर यह सन्देश मिला। मन को छू गया, सो आप सब के साथ शेयर कर रही हूँ)

बुधवार, 21 अक्तूबर 2015

नवरात्र और बेटियाँ

नवरात्र हर साल आता है।  इस पर्व के बहाने बहुत सी बातें होती हैं, संकल्प उठाये जाते हैं।   इन नौ दिनों में हम मातृ शक्ति की आराधना करते। नवरात्र मातृ-शक्ति और नारी-सशक्तिकरण का प्रतीक है। आदिशक्ति को पूजने वाले भारत में नारी को शक्तिपुंज के रूप में माना जाता है। नारी सृजन की प्रतीक है. हमारे यहाँ साहित्य और कला में नारी के 'कोमल' रूप की कल्पना की गई है. कभी उसे 'कनक-कामिनी' तो कभी 'अबला' कहकर उसके रूपों को प्रकट किया गया है. पर आज की नारी इससे आगे है. वह न तो सिर्फ 'कनक-कामिनी' है और न ही 'अबला', इससे परे वह दुष्टों की संहारिणी भी बनकर उभरी है. यह अलग बात है कि समाज उसके इस रूप को नहीं पचा पता. वह उसे घर की छुई-मुई के रूप में ही देखना चाहता है. बेटियाँ कितनी भी प्रगति कर लें, पुरुषवादी समाज को संतोष नहीं होता. उसकी हर सफलता और ख़ुशी बेटों की सफलता और सम्मान पर ही टिकी होती है. तभी तो आज भी गर्भवती स्त्रियों को ' बेटा हो' का ही आशीर्वाद दिया जाता है. पता नहीं यह स्त्री-शक्ति के प्रति पुरुष-सत्तात्मक समाज का भय है या दकियानूसी सोच. 

नवरात्र पर देवियों की पूजा करने वाले समाज में यह अक्सर सुनने को मिलता है कि 'बेटा' न होने पर बहू की प्रताड़ना की गई. विज्ञान सिद्ध कर चुका है कि बेटा-बेटी का पैदा होना पुरुष-शुक्राणु पर निर्भर करता है, न कि स्त्री के अन्दर कोई ऐसी शक्ति है जो बेटा या बेटी क़ी पैदाइश करती है. पर पुरुष-सत्तात्मक समाज अपनी कमजोरी छुपाने के लिए हमेशा सारा दोष स्त्रियों पर ही मढ़ देता है. ऐसे में सवाल उठाना वाजिब है क़ी आखिर आज भी महिलाओं के प्रति पूर्वाग्रह से क्यों ग्रस्त है पुरुष मानसिकता ? कभी लड़कियों के जल्दी ब्याह क़ी बात, कभी उन्हें जींस-टॉप से दूर रहने क़ी सलाह, कभी रात्रि में बाहर न निकलने क़ी हिदायत, कभी सह-शिक्षा को दोष तो कभी मोबाईल या फेसबुक से दूर रहने क़ी सलाह....ऐसी एक नहीं हजार बिन-मांगी सलाहें हैं, जो समाज के आलमबरदार रोज सुनाते हैं. उन्हें दोष महिलाओं क़ी जीवन-शैली में दिखता है, वे यह स्वीकारने को तैयार ही नहीं हैं कि दोष समाज की मानसिकता में है.

'नवरात्र' के दौरान अष्टमी के दिन नौ कन्याओं को भोजन कराने की परंपरा रही है. लोग उन्हें ढूढ़ने के लिए गलियों की खाक छानते हैं, पर यह कोई नहीं सोचता कि अन्य दिनों में लड़कियों के प्रति समाज का क्या व्यवहार होता है। आश्चर्य होता है कि यह वही समाज है जहाँ भ्रूण-हत्या, दहेज हत्या, बलात्कार जैसे मामले रोज सुनने को मिलते है पर नवरात्र की बेला पर लोग नौ कन्याओं का पेट भरकर, उनके चरण स्पर्श कर अपनी इतिश्री कर लेना चाहते हैं। आखिर यह दोहरापन क्यों? इसे समाज की संवेदनहीनता माना जाय या कुछ और? आज बेटियां धरा से आसमां तक परचम फहरा रही हैं, पर उनके जन्म के नाम पर ही समाज में लोग नाकभौं सिकोड़ने लगते हैं। यही नहीं लोग यह संवेदना भी जताने लगते हैं कि अगली बार बेटा ही होगा। इनमें महिलाएं भी शामिल होती हैं। वे स्वयं भूल जाती हैं कि वे स्वयं एक महिला हैं। आखिर यह दोहरापन किसके लिए ?

समाज बदल रहा है। अभी तक बेटियों द्वारा पिता की चिता को मुखाग्नि देने के वाकये सुनाई देते थे, हाल के दिनों में पत्नी द्वारा पति की चिता को मुखाग्नि देने और बेटी द्वारा पितृ पक्ष में श्राद्ध कर पिता का पिण्डदान करने जैसे मामले भी प्रकाश में आये हैं। फिर पुरूषों को यह चिन्ता क्यों है कि उनकी मौत के बाद मुखाग्नि कौन देगा। अब तो ऐसा कोई बिन्दु बचता भी नहीं, जहाँ महिलाएं पुरूषों से पीछे हैं। फिर भी समाज उनकी शक्ति को क्यों नहीं पहचानता? समाज इस शक्ति की आराधना तो करता है पर वास्तविक जीवन में उसे वह दर्जा नहीं देना चाहता। ऐसे में नवरात्र पर नौ कन्याओं को भोजन मात्र कराकर क्या सभी के कर्तव्यों की इतिश्री हो गई ....??

बुधवार, 14 अक्तूबर 2015

नवरात्रि का पर्व और मेहरानगढ़ स्थित चामुण्डा देवी का मंदिर


नवरात्रि का पर्व समाज में मातृ-शक्ति और नारी-सशक्तिकरण का प्रतीक है। इन नौ दिनों में माँ के विभिन्न रूपों की पूजा-आराधना की जाएगी।  इस बार हम लोग नवरात्रि का  त्यौहार जोधपुर में मना रहे हैं।  यहाँ पर मेहरानगढ़ स्थित चामुण्डा देवी का मंदिर काफी प्रसिद्ध है, जो किले के दक्षिणी भाग में सबसे ऊंची प्राचीर पर स्थित है। श्री चामुंडा देवी का यह मंदिर जोधपुर राज परिवार का इष्ट देवी मंदिर तो है ही, पर लगभग सारा जोधपुर ही इस मंदिर की देवी को अपनी इष्ट अथवा कुल देवी मानता है।

मेहरानगढ़ किले की छत पर विराजमान यह मंदिर अपनी मूर्ति कला तथा उत्तम भवन निर्माण कला की एक अनूठी मिसाल है।  यहाँ से सारे शहर का विहंगम दृश्य साफ नजर आता है। मेहरानगढ़ किले में प्रवेश मार्ग से सूर्य की आभा का आभास देते श्री चामुंडा देवी मंदिर में प्रवेश करने का मार्ग आसपास बनी आकर्षक मूर्तियों से सुसज्जित है। मंदिर में स्थापित मां भवानी की मूर्ति मगन बैठी मुद्रा की बजाय चलने की मुद्रा में नजर आती है। मां चामुंडा देवी को अब से करीब 550 साल पहले मंडोर के परिहारों की कुल देवी के रूप में पूजा जाता था |

इस मंदिर में देवी की मूर्ति 1460 ई. में चामुंडा देवी के एक परमभक्त मंडोर के तत्कालीन राजपूत शासक राव जोधा द्वारा अपनी नवनिर्मित राजधानी जोधपुर में बनाए गए किले में ही स्थापित की गई। पहले मां चामुंडा को जोधपुर और आस-पास के लोग ही मानते थे और इनकी पूजा अर्चना किया करते थे | लेकिन मां चामुंडा में लोगों का विश्वास 1965 के युद्ध के बाद बढ़ता चला गया | लोगों की आस्था बढ़ने के पीछे की वजह के बारे में कहा जाता है कि जब 1965 का युद्ध हुआ था, तब सबसे पहले जोधपुर को टारगेट बनाया गया था और मां चामुंडा ने चील के रूप में प्रकट होकर जोधपुरवासियों की जान बचाई थी और किसी भी तरह का कोई नुकसान जोधपुर को नहीं होने दिया था। तब से जोधपुर वासियों में मां चामुंडा के प्रति अटूट विश्वास है। शत्रुओं से अपने भक्तों की रक्षा करने वाली देवी का यह रौद्र रूप है जो सांसारिक शत्रुओं से उनकी रक्षा के साथ-साथ उनके भौतिक (शारीरिक) दुखों तथा मानसिक त्रासदियों को दूर करके उनमें आत्मविश्वास एवं वीरता का संचार कर जीवन को एक गति प्रदान करता है। नवरात्रों में तो सारे प्रदेश से यहां भक्तों का आवागमन होता है। 30 सितम्बर 2008  को नवरात्रि के पहले दिन इस मंदिर-परिसर में भगदड़ मचने से काफी लोगों की मौत हुई थी और लोग घायल हुए थे।  उस समय चामुण्डा देवी का यह मंदिर राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्ख़ियों में रहा था। 


चामुण्डा देवी के प्रताप व वैभव का वर्णन श्री मत्स्य पुराण तथा श्री मार्कंडेय पुराण में भी मिलता है। महाभारत के वन पर्व तथा श्री विष्णु पुराण के धर्मोत्तर में भी आदिशक्ति की स्तुति की गई है। एक पौराणिक मान्यता के अनुसार देवासुर संग्राम में जब शिवा (मां शक्ति) ने राक्षस सेनापति चंड तथा मुंड नामक दो शक्तिशाली असुरों का वध कर दिया तो मां दुर्गा द्वारा देवी के इस ‘शत्रु नाशिनी’ रूप को चामुंडा का नाम दिया गया। जैन धर्म में भी देवी मां चामुंडा को मान्यता प्राप्त है तथा मां देवी का यह रूप पूर्णत: सात्विक रूप में पूजा जाता है। 

Akanksha Yadav आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर