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बुधवार, 31 अगस्त 2011

बार-बार लौटकर आने वाली खुशी है ईद

यूं तो रमजान का पूरा महीना रहमत, मगफिरत और नर्क से छुटकारे का है, लेकिन जो लोग शराबी हैं, माता-पिता का कहना नहीं मानते हैं, आपस में लड़ते हैं और दिल में कीना रखते हैं, उनकी इस महीने में भी मगफिरत व बख्शिस नहीं होती है। हर्ष के मैदान में रोजेदारों को पुकार कर कहा जाता है कि उठो और जन्नत के आठ दरवाजों में से एक खास दरवाजे [रैय्यान] से जन्नत में दाखिल हो जाओ। यह वह दरवाजा है जिसमें मगफिरत व बख्शिस नहीं दिए जाने वाले प्रवेश नहीं कर सकते हैं।

रमजान वो महीना है जिसमें इंसानों की सारी मनुष्यता के लिए हिदायत बनाकर रौशनी हासिल करने के लिए कुरान नाजील फरमाया गया है। कुरान वो किताब है जिसके द्वारा इंसान सच और झूठ में, न्याय और अन्याय में, हक व बातिल में, कुर्फ में इमान में, इंसानियत और शैतानियत में फर्क करना सीखते हैं। रमजान के अंदर अल्लाह की तरफ से तमाम मुसलमानों के ऊपर रोजा फर्ज किया गया है। कुराण कहता है-ऐ इमान वालों, तुम पर जिस तरह रोजा फर्ज किया गया है ठीक उसी तरह उन्मतों पर भी रोजा फरमाया गया है ताकि तुम परहेजगार बन सको। रमजान का सबसे अहम अमल रोजा है। सूर्योदय के पूर्व से सूर्यास्त होने तक अपने बनाने वाले अल्लाह की एक इच्छा के अनुसार जायज खाने-पीने से और दिल की ख्वाइश से बच-बचाकर इंसान यह अभ्यास करता है कि वे पूरी जिंदगी में अपने अल्लाह के कहने के मुताबिक ही चले।

रमजान में रोजे के साथ-साथ रात में मुसलमान रोजाना तराबीह की बीस रकत नमाज में पूरा कुरान सुनते हैं। ये दुनिया भर की हर मज्जिद में अमल सुन्नत जानकर अदा की जाती है। इसकी फजीलत हदीस में आई है कि जो ईमान व ऐहतसाब के साथ ये नमाज तरबीह की अदा करेगा उसके पिछले तमाम गुनाहों को माफ कर दिया जाता है।

आमतौर पर आम मुसलमान ईद की पूर्व रात को चांद की रात के नाम से जानते हैं लेकिन कुरान में इस रात की बड़ी अहमियत होती है। हदीस के अनुसार इसका अर्थ है कि फरिश्ते आसमान पर इस रात को बातें करते हैं कि लैलतुल जाइजा [इनाम की रात] यानी पूरे रमजान जो अल्लाह के बंदों ने दिनों में रोजा रखकर और रातों में तराबीह पढ़कर अपने अल्लाह का हुकूम पूरा किया है, आज की रात उन्हें इनाम और बदले में अल्लाहताला उनकी बख्शिस व मगफिरत फरमाता है।

ईद अरबी शब्द है जिसका अर्थ है कि बार-बार लौटकर आने वाली खुशी। ईद में दो रकत नमाज वाजिब शुक्राने के तौर पर तमाम मुसलमान अदा करते हैं। वैसे मुसलमान से अल्लाहताला खुश हो जाते हैं और रमजान के दौरान अच्छी तरह नमाज अदा करने वाले रोजदार को अल्लाहताला से रजा व खुशी हासिल हो जाती है। इसी शुक्राने में ईद की नमाज अदा की जाती है। ईद वाले दिन सदक-ए-फितर हर साहिबे हैसियत मुसलमानों पर वाजिब है। अपने तमाम घर वालों की तरफ से पौने दो किलो गेहूं या उसकी कीमत के बराबर रकम गरीब, मिस्कीन, नादार में तकसीत कर दें ताकि हर मुसलमान खुशी और मुसर्रत के साथ ईद की खुशियों में अपना हिस्सा भी हासिल कर सकें। ईद के दिन आसमान में फरिश्ते आपस में बातें करते है कि अल्लाह ताला ने सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की उम्मत के साथ क्या मामला किया? उन्हें जबाव मिलता है, मेहनत करने वाले को उनकी पूरी-पूरी मजदूरी दे दी जाती है जो अल्लाह की रजा व खुशनुदी की शक्ल में उस दिन लोगों को अता की जाती है।

पूरे महीने के रोजे के बाद अल्लाह का शुक्र अदा करने और अपनी अदा अजरत अल्लाहताला से लेने के लिए ईद की नमाज अदा की जाती है क्योंकि अल्लाह ईद के दिन सारे रोजदारों की मगफिरत फरमाकर निजात का परवाना अताए फरमाता है। ईद की नमाज हमारे रसूल सल्लल्लाहो अलैहे वसल्लम की सुन्नत है और हमसब पर वाजिब है। इस दिन एक दूसरे से मुहब्बत व प्यार एवं कौमी मकजहती और खुशी का इजहार किया जाता है।

[प्रस्तुति-ब्रजेश नंदन माधुर्य]

सोमवार, 22 अगस्त 2011

श्रीकृष्ण के विराट चरित्र के बृहद अध्ययन की जरूरत

विगत पांच हजार वर्षों में श्रीकृष्ण जैसा अद्भुत व्यक्तित्व भारत क्या, विश्व मंच पर नहीं हुआ और न होने की संभावना है। यह सौभाग्य व पुण्य भारत भूमि को ही मिला है कि यहाँ एक से बढकर एक दिव्य पुरूषों ने जन्म लिया। इनमें श्रीकृष्ण का व्यक्तित्व अनूठा, अपूर्व और अनुपमेय है। हजारों वर्ष बीत जाने पर भी भारत वर्ष के कोने-कोने में श्रीकृष्ण का पावन जन्मदिन अपार श्रद्धा, उल्लास व प्रेम से मनाया जाता है। श्रीकृष्ण अतीत के होते हुए भी भविष्य की अमूल्य धरोहर हैं। उनका व्यक्तित्व इतना बहुआयामी है कि उन्हें पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है। मुमकिन है कि भविष्य में उन्हें समझा जा सकेगा। हमारे अध्यात्म के विराट आकाश में श्रीकृष्ण ही अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जो धर्म की परम गहराइयों व ऊंचाइयों पर जाकर भी गंभीर या उदास नहीं हैं। श्रीकृष्ण उस ज्योतिर्मयी लपट का नाम है जिसमें नृत्य है, गीत है, प्रीति है, समर्पण है, हास्य है, रास है, और है जरूरत पड़ने पर युद्ध का महास्वीकार। धर्म व सत्य के रक्षार्थ महायुद्ध का उद्घोष। एक हाथ में वेणु और दूसरे में सुदर्शन चक्र लेकर महाइतिहास रचने वाला दूसरा व्यक्तित्व नहीं हुआ संसार में।

कृष्ण ने कभी कोई निषेध नहीं किया। उन्होंने पूरे जीवन को समग्रता के साथ स्वीकारा है। प्रेम भी किया तो पूरी शिद्दत के साथ, मैत्री की तो सौ प्रतिशत निष्ठा के साथ और युद्ध के मैदान में उतरे तो पूरी स्वीकृति के साथ। हाथ में हथियार न लेकर भी विजयश्री प्राप्त की। भले ही वो साइड में रहे। सारथी की जिम्मेदारी संभाली पर कौन नहीं जानता कि अर्जुन के पल-पल के प्रेरणा स्त्रोत और दिशा निर्देशक कृष्ण थे।

अल्बर्ट श्वाइत्जर ने भारतीय धर्म की आलोचना में एक बात बड़ी मूल्यवान कही। वह यह कि भारत का धर्म जीवन निषेधक है। यह बात एकदम सत्य है, यदि कृष्ण का नाम भुला दिया जाए तो ओशो के शब्दों में कृष्ण अकेले दुख के महासागर में नाचते हुए एक छोटे से द्वीप हैं। यानी कि उदासी, दमन, नकारात्मकता और निंदा के मरूस्थल में नाचते-गाते मरू-उद्यान हैं।

कुछ लोग कहते हैं कि कृष्ण केवल रास रचैया भर थे। इन लोगों ने रास का अर्थ व मर्म ही नहीं समझा है। कृष्ण का गोपियों के साथ नाचना साधारण नृत्य नहीं है। संपूर्ण ब्राह्मांड में जो विराट नृत्य चल रहा है प्रकृति और पुरूष (परमात्मा) का, श्रीकृष्ण का गोपियों के साथ नृत्य उस विराट नृत्य की एक झलक मात्र है। उस रास का कोई सामान्य या सेक्सुअल मीनिंग नहीं है। कृष्ण पुरूष तत्व है और गोपिकाएं प्रकृति। प्रकृति और पुरूष का महानृत्य है यह। विराट प्रकृति और विराट पुरूष का महारस है यह, तभी तो हर गोपी को महसूस होता है कि कृष्ण उसी के साथ नृत्यलीन हैं। यह कोई मनोरंजन नहीं, पारमार्थिक है।

कृष्ण एक महासागर हैं। वे कोई एक नदी या लहर नहीं, जिसे पकड़ा जा सके। कोई उन्हें बाल रूप से मानता है, कोई सखा रूप में तो कोई आराध्य के रूप में। किसी को उनका मोर मुकुट, पीतांबर भूषा, कदंब वृक्ष तले, यमुना के तट पर भुवनमोहिनी वंशी बजाने वाला, प्राण वल्लभा राधा के संग साथ वाला प्रेम रूप प्रिय है, तो किसी को उनका महाभारत का महापराक्रमी रणनीति विशारद योद्धा का रूप प्रिय है। एक ओर हैं-

वंशीविभूषित करान्नवनीरदाभात्,
पीताम्बरादरूण बिम्बफला धरोष्ठात्,
पूर्णेंदु संुदर मुखादरविंदनेत्रात्,
कृष्णात्परं किमपि तत्वमहं न जाने।।

तो दूसरी ओर-

सर्वधर्मान् परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज।।

वस्तुतः श्रीकृष्ण पूर्ण पुरूष हैं। पूर्णावतार सोलह कलाओं से युक्त उनको योगयोगेश्वर कहा जाता है और हरि हजार नाम वाला भी।

आज देश के युवाओं को श्रीकृष्ण के विराट चरित्र के बृहद अध्ययन की जरूरत है। राजनेताओं को उनकी विलक्षण राजनीति समझने की दरकार है और धर्म के प्रणेताओं, उपदेशकों को यह समझने की आवश्यकता है कि श्रीकृष्ण ने जीवन से भागने या पलायन करने या निषेध का संदेश कभी नहीं दिया। वे महान योगी थे तो ऋषि शिरोमणि भी। उन्होंने वासना को नहीं, जीवन रस को महत्व दिया। वे मीरा के गोपाल हैं तो राधा के प्राण बल्लभ और द्रोपदी के उदात्त सखा मित्र। वे सर्वज्ञ और सर्वशक्तिमान और सर्व का कल्याण व शुभ चाहने वाले हैं। अति रूपवान, असीम यशस्वी और सत् असत् के ज्ञाता हैं। जिसने भी श्रीकृष्ण को प्रेम किया या उनकी भक्ति में लीन हो गया, उसका जन्म सफल हो गया। धर्म, शौय और प्रेम के दैदीप्यमान चंद्रमा श्रीकृष्ण को कोटि कोटि नमन।

यतो सत्यं यतो धर्मों यतो हीरार्जव यतः !
ततो भवति गोविंदो यतः श्रीकृष्णस्ततो जयः !!


कृष्ण जन्माष्टमी पर्व की शुभकामनायें और बधाइयाँ....

सत्या सक्सेना

सोमवार, 15 अगस्त 2011

क्या है आजादी का मतलब ??

आज स्वतंत्रता दिवस है. पर क्या वाकई हम इसका अर्थ समझते हैं या यह छलावा मात्र है. सवाल दृष्टिकोण का है. इसे समझने के लिए एक वाकये को उद्धृत करना चाहूँगीं-

देश को स्वतंत्रता मिलने के बाद प्रथम प्रधानमंत्री पं0 जवाहर लाल नेहरू इलाहाबाद में कुम्भ मेले में घूम रहे थे। उनके चारों तरफ लोग जय-जयकारे लगाते चल रहे थे। गाँधी जी के राजनैतिक उत्तराधिकारी एवं विश्व के सबसे बड़े लोकतन्त्र के मुखिया को देखने हेतु भीड़ उमड़ पड़ी थी। अचानक एक बूढ़ी औरत भीड़ को तेजी से चीरती हुयी नेहरू के समक्ष आ खड़ी हुयी-’’नेहरू! तू कहता है देश आजाद हो गया है, क्योंकि तू बड़ी-बड़ी गाड़ियों के काफिले में चलने लगा है। पर मैं कैसे मानूं कि देश आजाद हो गया है? मेरा बेटा अंग्रेजों के समय में भी बेरोजगार था और आज भी है, फिर आजादी का फायदा क्या? मैं कैसे मानूं कि आजादी के बाद हमारा शासन स्थापित हो गया हैं।‘‘ नेहरू अपने चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुराये और बोले-’’ माता! आज तुम अपने देश के मुखिया को बीच रास्ते में रोककर और ’तू‘ कहकर बुला रही हो, क्या यह इस बात का परिचायक नहीं है कि देश आजाद हो गया है एवं जनता का शासन स्थापित हो गया है।‘‘ इतना कहकर नेहरू जी अपनी गाड़ी में बैठे और आजादी के पहरूओं का काफिला उस बूढ़ी औरत के शरीर पर धूल उड़ाता चला गया।

आजादी की यही विडंबना है कि हम नेहरू अर्थात आजादी व लोकतंत्र के पहरूए एवं बूढ़ी औरत अर्थात जनता दोनों में से किसी को भी गलत नहीं कह सकते। दोनों ही अपनी जगहों पर सही हैं, अन्तर मात्र दृष्टिकोण का है। गरीब व भूखे व्यक्ति हेतु आजादी और लोकतंत्र का वजूद रोटी के एक टुकड़े में छुपा हुआ है तो अमीर व्यक्ति हेतु आजादी और लोकतंत्र का वजूद अपनी शानो-शौकत, चुनावों में अपनी सीट सुनिश्चित करने और अंततः मंत्री या किसी अन्य प्रतिष्ठित संस्था की चेयरमैनशिप पाने में है। यह एक सच्चायी है कि दोनों ही अपनी वजूद को पाने हेतु कुछ भी कर सकते हैं। भूखा और बेरोजगार व्यक्ति रोटी न पाने पर चोरी की राह पकड़ सकता है या समाज के दुश्मनों की सोहबत में आकर आतंकवादी भी बन सकता है। इसी प्रकार अमीर व्यक्ति धन-बल और भुजबल का प्रयोग करके चुनावों में अपनी जीत सुनिश्चित कर सकता है। यह दोनों ही लोकतान्त्रिक आजादी के दो विपरीत लेकिन कटु सत्य हैं।


परन्तु इन दोनों कटु सत्यों के बीच आजादी कहाँ है, संभवतः यह आज भी एक अनुत्तरित प्रश्न है ?...फ़िलहाल आप सभी को स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें !!

शनिवार, 13 अगस्त 2011

वृक्षों को रक्षा-सूत्र बाँधकर रक्षाबंधन मनाएं...

आज रक्षाबंधन का पर्व है. यह सिर्फ भाई -बहन से जुड़ा नहीं बल्कि मानवता की रक्षा से भी जुड़ा हुआ है. हममें से तमाम लोग अपने स्तर पर मानवता को बचने हेतु पर्यावरण संरक्षण में जुटे हुए हैं। इन्हीं में से एक हैं- जीवन के समानांतर ही जल, जमीन और जंगल को देखने वाली ग्रीन गार्जियन सोसाइटी की एक्जीक्यूटिव डायरेक्टर सुनीति यादव। पिछले कई वर्षों से पर्यावरण संरक्षण की दिशा में कार्य कर रही एवं छत्तीसगढ़ में एक वन अधिकारी के0एस0 यादव की पत्नी सुनीति यादव सार्थक पहल करते हुए वृक्षों को राखी बाँधकर वृक्ष रक्षा-सूत्र कार्यक्रम का सफल संचालन कर नाम रोशन कर रही हैं। इस सराहनीय कार्य के लिए उन्हें ‘महाराणा उदय सिंह पर्यावरण पुरस्कार, स्त्री शक्ति पुरस्कार 2002, जी अस्तित्व अवार्ड इत्यादि पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। सुनीति यादव द्वारा वृक्ष रक्षा-सूत्र कार्यक्रम चलाये जाने के पीछे एक रोचक वाकया है। वर्ष 1992 में उनके पति जशपुर में डी0एफ0ओ0 थे। वहां प्राइवेट जमीन में पांच बहुत ही सुन्दर वृक्ष थे, जिन्हें भूस्वामी काटकर वहां दुकान बनाना चाहता था। उसने इन पेड़ों को काटने के लिए जिलाधिकारी को आवेदन कर रखा था। अपने पति द्वारा जब यह बात सुनीति यादव को पता चली तो उनके दिमाग में एक विचार कौंध गया। राखी पर्व पर कुछ महिलाओं के साथ जाकर उन्होंने उन पांच वृक्षों की विधिवत पूजा की और रक्षा सूत्र बांध दिया। देखा-देखी शाम तक आस-पास के लोगों द्वारा उन वृक्षों पर ढेर सारी राखियां बंध गई। फिर भूस्वामी को इन वृक्षों का काटने का इरादा ही छोड़ना पड़ा और गांव वाले इन पेड़ों को पांच भाई के रूप में मानने लगे। इससे उत्साहित होकर सुनीति यादव ने हर गांव में एक या दो विशिष्ट वृक्षों का चयन कराया तथा वर्ष 1993 में राखी के पर्व पर 17000 से अधिक लोगों ने 1340 वृक्षों को राखी बांधकर वनों की सुरक्षा का संकल्प लिया और इस प्रकार वृक्ष रक्षा सूत्र कार्यक्रम चल निकला। बस्तर के कोंडागांव इलाके में वृक्ष रक्षा सूत्र अभियान के तहत एक वृक्ष को नौ मीटर की राखी बांधी गई।



याद कीजिए 70 के दशक का चिपको आन्दोलन। सुनीति का मानना है कि चिपको आन्दोलन वन विभाग की नीतियों के विरूद्ध चलाया गया था जबकि वृक्ष रक्षा सूत्र वन विभाग एवं जनता का सामूहिक अभियान है, जिसे समाज के हर वर्ग का समर्थन प्राप्त है। यह सुनीति यादव की प्रतिबद्वता ही है कि वृक्ष रक्षा सूत्र कार्यक्रम अब देश के नौ राज्यों तक फैल चुका है। सुनीति इसे और भी व्यापक आयाम देते हुए ‘‘पौध प्रसाद कार्यक्रम‘‘ से जोड़ रही हैं। इसके लिए वे देश के सभी छोटे-बड़े धार्मिक प्रतिष्ठानों से सम्पर्क कर रही हैं कि वे भक्तों को प्रसाद के रूप में पौधे बांटे, ताकि वे उन पौधों को श्रद्धा के साथ लगायें, पालें-पोसें और बड़ा करें। यही नहीं आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण वृक्ष प्रजातियों, वनौषधियों के बीज पैकेट भी प्रसाद के रूप में बांटे जा रहे हैं। सुनीति यादव का मानना है कि वृक्ष भगवान के ही दूसरे रूप हैं। जब वह कहती हैं कि भगवान शिव की तरह वृक्ष सारा विषमयी कार्बन डाई आक्साइड पी जाते हैं और बदले में जीवन के लिए जरूरी आक्सीजन देते हैं, तो लोग दंग रह जाते हैं। सुनीति यादव का स्पष्ट मानना है कि-‘‘ईश्वर ने हम सभी को पृथ्वी पर किसी न किसी उद्देश्य के लिए भेजा है। आइए, उसके सपनों को साकार करें। धरती पर हरियाली को सुरक्षित रखकर हम जिन्दगी को और भी खूबसूरत बनाएंगे, कच्चे धागों से हरितिमा को बचाएंगे। ताज और मीनार हमारे किस काम के, जब पृथ्वी की धड़कन ही न बच सके। कल आने वाली पीढ़ी को हम क्या सौगात दे सकेंगे? आइए, रक्षाबंधन के इस पर्व पर हम भी ढेर सारे पौधे लगाएं और लगे हुए वृक्षों को रक्षा-सूत्र बंधकर उन्हें बचाएं।‘‘
आप सभी को रक्षा-बंधन पर्व पर ढेरों शुभकामनायें !!



बुधवार, 10 अगस्त 2011

वह अहसास, मेरा पहला प्यार...


आज पतिदेव कृष्ण कुमार जी का जन्म-दिवस है. जन्म-दिवस के शुभ अवसर पर हार्दिक बधाई और प्यार. कभी यह कविता कृष्ण जी के लिए लिखी थी, आज फिर से-



पहली बार 
इन आँखों ने महसूस किया
हसरत भरी निगाहों को

ऐसा लगा
जैसे किसी ने देखा हो
इस नाजुक दिल को
प्यार भरी आँखों से

न जाने कितनी
कोमल और अनकही भावनायें
उमड़ने लगीं दिल में

एक अनछुये अहसास के
आगोश में समाते हुए
महसूस किया प्यार को

कितना अनमोल था
वह अहसास
मेरा पहला प्यार।




रविवार, 7 अगस्त 2011

फ्रेण्डशिप-डे: ये दोस्ती हम नहीं तोडेंगे

मित्रता किसे नहीं भाती। यह अनोखा रिश्ता ही ऐसा है जो जाति, धर्म, लिंग, हैसियत कुछ नहीं देखता, बस देखता है तो आपसी समझदारी और भावों का अटूट बन्धन। कृष्ण-सुदामा की मित्रता को कौन नहीं जानता। ऐसे ही तमाम उदाहरण हमारे सामने हैं जहाँ मित्रता ने हार जीत के अर्थ तक बदल दिये। सिकन्दर-पोरस का संवाद इसका जीवंत उदाहरण है। मित्रता या दोस्ती का दायरा इतना व्यापक है कि इसे शब्दों में बांधा नहीं जा सकता। दोस्ती वह प्यारा सा रिश्ता है जिसे हम अपने विवेक से बनाते हैं। अगर दो दोस्तों के बीच इस जिम्मेदारी को निभाने में जरा सी चूक हो जाए तो दोस्ती में दरार आने में भी ज्यादा देर नहीं लगती। सच्चा दोस्त जीवन की अमूल्य निधि होता है। दोस्ती को लेकर तमाम फिल्में भी बनी और कई गाने भी मशहूर हुए-ये तेरी मेरी यारी/ये दोस्ती हमारी/भगवान को पसन्द है/अल्लाह को है प्यारी। ऐसे ही एक अन्य गीत है-ये दोस्ती हम नहीं तोडेंगे/छोड़ेंगे दम मगर/तेरा साथ न छोड़ेंगे। हाल ही में रिलीज हुई एक अन्य फिल्म के गीतों पर गौर करें- आजा मैं हवाओं में बिठा के ले चलूँ/ तू ही-तू ही मेरा दोस्त है।

दोस्ती की बात पर याद आया कि आज ‘फ्रेण्डशिप-डे‘ है। यद्यपि मैं इस बात से इत्तफाक नहीं रखती कि किसी संबंध को दिन विशेष के लिए बांध दिया जाय, पर उस दिन को इन्ज्वाय करने में कोई हर्ज भी नहीं दिखता। फ्रेण्डशिप कार्ड, क्यूट गिफ्ट्स और फ्रेण्डशिप बैण्ड से इस समय सारा बाजार पटा पड़ा है। हर कोई एक अदद अच्छे दोस्त की तलाश में है, जिससे वह अपने दिल की बातें शेयर कर सके। पर अच्छा दोस्त मिलना वाकई एक मुश्किल कार्य है। दोस्ती की कस्में खाना तो आसान है पर निभाना उतना ही कठिन। आजकल तो लोग दोस्ती में भी गिरगिटों की तरह रंग बदलते रहते हैं। पर किसी शायर ने भी खूब लिखा है-दुश्मनी जमकर करो/लेकिन ये गुंजाइश रहे/कि जब कभी हम दोस्त बनें/तो शर्मिन्दा न हों।


फिलहाल, फ्रेण्डशिप-डे की बात करें तो यह अगस्त माह के प्रथम रविवार को सेलीबे्रट किया जाता है। अमेरिकी कांग्रेस द्वारा 1935 में अगस्त माह के प्रथम रविवार को दोस्तों के सम्मान में ‘राष्ट्रीय मित्रता दिवस‘ के रूप में मनाने का फैसला लिया गया था। इस अहम दिन की शुरूआत का उद्देश्य प्रथम विश्वयुद्ध के दौरान उपजी कटुता को खत्म कर सबके साथ मैत्रीपूर्ण भाव कायम करना था। पर कालान्तर में यह सर्वव्यापक होता चला गया। दोस्ती का दायरा समाज और राष्ट्रों के बीच ज्यादा से ज्यादा बढ़े, इसके मद्देनजर संयुक्त राष्ट्र संघ ने बकायदा 1997 में लोकप्रिय कार्टून कैरेक्टर विन्नी और पूह को पूरी दुनिया के लिए दोस्ती के राजदूत के रूप में पेश किया।

इस फ्रेण्डशिप-डे पर बस यही कहूंगी कि सच्चा दोस्त वही होता है जो अपने दोस्त का सही मायनों में विश्वासपात्र होता है। अगर आप सच्चे दोस्त बनना चाहते हैं तो अपने दोस्त की तमाम छोटी-बड़ी, अच्छी-बुरी बातों को उसके साथ तो शेयर करो लेकिन लोगों के सामने उसकी कमजोरी या कमी का बखान कभी न करो। नही तो आपके दोस्त का विश्वास उठ जाएगा क्योंकि दोस्ती की सबसे पहली शर्त होती है विश्वास। हाँ, एक बात और। उन पुराने दोस्तों को विश करना न भूलें जो हमारे दिलों के तो करीब हैं, पर रहते दूरियों पर हैं।

शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

जरा सोचिए...




जिस तरह से राजनीति में अपराधीकरण बढ़ रहा है और भ्रष्टाचार व अपराध के चलते धडाधड राजनेता जेल में जा रहे हैं. ऐसे स्थिति में आने वाला समय और भी ज्यादा संक्रमण काल का होगा. तब शायद ऐसे ही कुछ फार्म भरे जायेंगें.

1. उम्मीदवार का नाम:————————–

2.वर्तमान पता:
(१) जेल का नाम: ————————–
(२) सेल नंबर:—————————-
(३) कैदी नंबर ——————————

3.राजनैतिक पार्टी: ____________ _________
* आप अभी तक जिन दलों में शामिल थे उनमें से केवल पिछले पांच दलों का नाम दें
१ ———————– २ ———————– ३ ———————– ४ ————————- ५ ————————

4.राष्ट्रीयता { गोल चक्कर करे )
१ इतालियन
२ भारतीय
३ पाकिस्तानी
४ बांग्लादेसी

5 पिछली पार्टी छोड़ने के कारण (एक या अधिक को सर्कल करें )

१-भीतरघात
२- निष्कासित
३-खरीद लिये गये
४ कोई कुर्सी नहीं मिली
५ घोटाले के कारण
६ मलाई की कमी

6.चुनाव लड़ने के लिए कारण (एक या अधिक को सर्कल करें ) :

१-पैसा बनाने के लिए
२- अदालत के मुकदमे से बचने के लिए
३- सत्ता का घोर दुरुपयोग करने के लिए
४-गरीबो को मिटाने के लिए
५-घोटाले करने के लिए
६ मैं नहीं जानता
(यदि आपका उत्तर ६ है तो अपनी विवेकशीलता के लिये एक गैर मान्यता प्राप्त गैर सरकारी रिश्वत खोर मनोचिकत्सक का प्रमाणपत्र संलग्न करें)

7 आपको कितने साल का जन सेवा का अनुभव है?
१ – 1-2 साल
२ – 2-6 साल
३ – 6-15 साल
४ – 15 + साल

8. आप के खिलाफ लंबित किसी भी आपराधिक मामले का विवरण दें (पूरी जानकारी देने के लिये आप जितने चाहे उतने अतिरिक्त पृष्ट जोड़ सकते हैं)
——————————————————————————————————————————-
9.आपने कितने वर्ष जेल में बिताए हैं?
(कृप्या प्रश्न 7 से भ्रमित न हों)
१ – 1-2 साल
२ – 2-6 साल
३ – 6-15 साल
४ – 15- 20 साल
५ – बीस साल से ज्यादा

10.आप किसी वित्तीय घोटाले में शामिल हैं?
१ -क्यों नहीं
२ – बेशक
३ – निश्चित रूप से
४ -खानदानी धंधा
५ -मैं इस सब से इनकार करता हूं
६ – मुझे इसमें एक विदेशी हाथ दि

11. आपकी वार्षिक भ्रष्टाचार आय क्या है?
१ -100-500 करोड़
२ -500-1000 करोड़
३ -कोई गिनती नहीं …
(हवाला में डालर से की गयी कमाई को रुपयों में कनवर्ट करने के बाद शामिल करें)

12. क्या आपके मन में भारत के लिए कोई भी विकास योजना है?
उतर ————————————————————————————————————————————————–

13 नीचे दिये गये स्थान में अपनी उपलब्धियों का बखान करें:
उत्तर ——————————————————————————————————————————–१४.इनमे से कोनसे धंधे में आपकी रूचि सबसे ज्यादा है .
१.रिश्वेत लेने में ———————
२.हेरा फैरी में ————————-
३.हवाला के धंधे में ———————-
४.दलाली करने में —————————
५ सुपारी लेने में ———————
६ अपहरण करने में ———————————–
७.उपरोक्त सभी में ———————————–
१५. आपने कितने गुंडे पाल रखे हे.
उतर ——————————————–
—————————————————-
यदि आप में ये सारी खूबिया है तो ही यह फॉर्म भर सकते है अन्यथा चुनाव आयोग आपका फॉर्म रद्द कर सकता है और यदि पेज कम पड़े तो सादे पेपर में लिख सकते हो और इसको भरने के बाद चुनाव अधिकारी को भारतीय डाक द्वारा भेज दे पत्ता आप को मालूम होगा !!

(यह फार्म एक सज्जन ने मेरे मेल पर भेजा था. आप भी गौर फरमाएं और सोचें की क्या वाकई हम इस स्थिति की ओर बढ़ रहे हैं...??)


चित्र साभार : गूगल महाराज

सोमवार, 1 अगस्त 2011

स्लट-वाक और बे-शर्म लोग

कनाडा की तर्ज पर भारत में भी स्लट-वाक निकला. नाम दिया गया बेशर्मी मोर्चा. कनाडा में एक कांस्टेबल ने टिपण्णी की कि महिलाओं के कपड़े उनके प्रति हो रहे अपराध के कारण हैं और तूफान मच गया. फिर तो इसके प्रति दुनिया भर में प्रतिरोध उठा. फिर तो इसके प्रति दुनिया भर में प्रतिरोध उठा की आखिर महिलाओं के कपड़ों में बे-शर्मी देख रहे लोग अपनी आँखों की बेशर्मी से क्यों मुँह चुरा रहे हैं ? आखिर बार-बार ये बे-शर्म निगाहें महिलाओं को सेक्स-आब्जेक्ट के रूप में ही क्यों देखना चाहती हैं ? खैर दिल्ली में निकले बेशर्मी-मोर्चा ने इस ओर लोगों का ध्यान खींचा है, और इसकी सफलता-असफलता और प्रासंगिकता को लेकर सवाल-जवाब खड़े हो सकते हैं.

पर जहाँ तक भारत का सवाल है यहाँ महिलाओं के पहनावों और उसको लेकर कि जा रही टिप्पणियां नई नहीं हैं. लगभग हर लड़की को किसी-न-किसी रूप में इससे एक बार रु-ब-रु हुआ होना होगा. कभी परिवारजनों की टोका-टोकी तो कभी स्कूल में बंदिशें. अभी कुछ महीनों पूर्व जिलाधिकारी, लखनऊ ने राजधानी के छात्र-छात्राओं को स्कूल/कालेज यूनिफार्म में सार्वजनिक स्थानों यथा-सिनेमा घर, मॉल, पार्क, रेस्टोरेन्ट, होटलों में स्कूल/कालेज टाइम में स्कूली ड्रेस में जाने से प्रतिबन्धित कर दिया और यह भी कहा कि स्कूली ड्रेस में इन स्थानों पर पाये जाने पर छात्र-छात्राओं के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की जायेगी। उनका कहना था कि छात्र छात्राएं स्कूल यूनिफार्म में स्कूल-कॉलेज छोड़कर घूमते पाए जाते हैं, जिससे अभद्रता छेड़खानी, अपराधी और आत्महत्या की घटनाएं बढ़ रही हैं। यानी फिर से वही सवाल- ईव-टीजिंग और ड्रेस कोड.

कभी जींस पर प्रतिबन्ध तो कभी मॉल व थियेटर में स्कूली ड्रेस में घूमने पर प्रतिबन्ध. दिलोदिमाग में ख्याल उठने लगता है कि क्या यह सब हमारी संस्कृति के विपरीत है। क्या हमारी शिक्षा व्यवस्था इतनी कमजोर है कि वह ऐसी चीजों से प्रभावित होने लगती है? फिर तालिबानी हुक्म और इनमें अंतर क्या ? पहले लोग कहेंगें कि स्कूली यूनिफ़ॉर्म में न जाओ, फिर कहेंगे कि जींस में न जाओ... क्या इन सब फतवों से लड़कियां ईव-टीजिंग की पीड़ा से निजात पा लेंगीं। एक बार तो कानपुर के कई नामी-गिरामी कालेजों ने सत्र प्रारम्भ होने से पहले ही छात्राओं को उनके ड्रेस कोड के बारे में बकायदा प्रास्पेक्टस में ही फरमान जारी कर दिया कि वे जींस और टाप पहन कर कालेज न आयें। इसके पीछे निहितार्थ यह है कि अक्सर लड़कियाँ तंग कपड़ों में कालेज आती हैं और नतीजन ईव-टीजिंग को बढ़ावा मिलता है। स्पष्ट है कि कालेजों में मारल पुलिसिंग की भूमिका निभाते हुए प्रबंधन ईव-टीजिंग का सारा दोष लड़कियों पर मढ़ देता है। और यही कम पुलिस और प्रशासन के लोग भी करते हैं. अतः यह लड़कियों की जिम्मेदारी है कि वे अपने को दरिंदों की निगाहों से बचाएं।

क्या अपने देश में राजधानियों और महानगरों की कानून-व्यवस्था इतनी बिगड़ चुकी है कि लडकियाँ घरों में कैद हो जाएँ. लड़कियों के दिलोदिमाग में उनके पहनावे को लेकर इतनी दहशत भर दी जा रही है कि वे पलटकर पूछती हैं-’’ड्रेस कोड उनके लिए ही क्यों ?'' अभी ज्यादा दिन नहीं बीते होंगे जब मध्यप्रदेश के विदिशा जिले में एक स्कूल शिक्षक ने ड्रेस की नाप लेने के बहाने बच्चियों के कपड़े उतरवा लिए थे. फिर भी सारा दोष लड़कियों पर ही क्यों ? यही नहीं तमाम काॅलेजों ने तो टाइट फिटिंग वाले सलवार सूट एवं अध्यापिकाओं को स्लीवलेस ब्लाउज पहनने पर प्रतिबंध लगा दिया है। शायद यहीं कहीं लड़कियों-महिलाओं को अहसास कराया जाता है कि वे अभी भी पितृसत्तात्मक समाज में रह रही हैं। देश में सत्ता शीर्ष पर भले ही एक महिला विराजमान हो, संसद की स्पीकर एक महिला हो, सरकार के नियंत्रण की चाबी एक महिला के हाथ में हो, लोकसभा में विपक्ष की नेता महिला हो, यहाँ तक कि तीन राज्यों में महिला मुख्यमंत्री है, पर इन सबसे बेपरवाह पितृसत्तात्मक समाज अपनी मानसिकता से नहीं उबर पाता।

सवाल अभी भी अपनी जगह है। क्या महिलाओं या लड़कियों का पहनावा ईव-टीजिंग का कारण हैं ? यदि ऐसा है तो माना जाना चाहिए कि पारंपरिक परिधानों से सुसज्जित महिलाएं ज्यादा सुरक्षित हैं। पर दुर्भाग्यवश ऐसा नहीं है। ग्रामीण अंचलों में छेड़खानी व बलात्कार की घटनाएं तो किसी पहनावे के कारण नहीं होतीं बल्कि अक्सर इनके पीछे पुरुषवादी एवं जातिवादी मानसिकता छुपी होती है। बहुचर्चित भंवरी देवी बलात्कार भला किसे नहीं याद होगा? रोज बाबाओं के किस्से सामने आ रहे हैं कि किस तरह वह लोगों को अपने जाल में फंसकर उनका शोषण कर रहे हैं. घरेलू महिला अधिनियम के लागू होने के बाद भी घरेलू हिंसा में कमी नहीं आई है. बात-बात पर महिलाओं के प्रति अपशब्द, पुरुषों द्वारा सामान्य संवाद में भी उनके अंगों की लानत-मलानत क्या सिर्फ कपड़ों से उपजती है ?

हाल ही में दिल्ली की एक संस्था ’साक्षी’ ने जब ऐसे प्रकरणों की तह में जाने के लिए बलात्कार के दर्ज मुकदमों के पिछले 40 वर्षों का रिकार्ड खंगाला तो पाया कि बलात्कार से शिकार हुई 70 प्रतिशत महिलाएं पारंपरिक पोशाक पहनीं थीं। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के मुताबिक भारत में प्रति 51वें मिनट में एक महिला यौन शोषण का शिकार, हर 54वें मिनट पर एक बलात्कार और हर 102वें मिनट पर एक दहेज हत्या होती है। देश में बलात्कार के मामले 2005 में 18,349 के मुकाबले बढ़कर 2009 में 22,000 हो गए। महिलाओं के उत्पीड़न के मामले भी इस अवधि में 34,000 से बढ़कर 39,000 हो गए जबकि दहेज हत्याओं के मामले 2005 में 6,000 के मुकाबले 2009 में 9,000 हो गए। यही नहीं विश्व में सर्वाधिक बाल वेश्यावृत्ति भी भारत में है, जहाँ 4 लाख में अधिकतर लड़कियाँ हैं। क्या इन सब अपराधों का कारण महिलाएं या उनका पहनावा हैं ??

स्पष्ट है कि मारल-पुलिसिंग के नाम पर नैतिकता का समस्त ठीकरा लड़कियों-महिलाओं के सिर पर थोप दिया जाता है। समाज उनकी मानसिकता को विचारों से नहीं कपड़ों से तौलता है। कई बार तो सुनने को भी मिलता है कि लड़कियां अपने पहनावे से ईव-टीजिंग को आमंत्रण देती हैं। मानों लड़कियां सेक्स आब्जेक्ट हों। क्या समाज के पहरुये अपनी अंतरात्मा से पूछकर बतायेंगे कि उनकी अपनी बहन-बेटियाँ जींस-टाप य स्कूली स्कर्ट में होती हैं तो उनका नजरिया क्या होता है और जींस-टाप य स्कूली स्कर्ट में चल रही अन्य लड़की को देखकर क्या सोचते हैं। यह नजरिया ही समाज की प्रगतिशीलता को निर्धारित करता है। जरूरत है कि समाज अपना नजरिया बदले न कि तालिबानी फरमानों द्वारा लड़कियों की चेतना को नियंत्रित करने का प्रयास करें। तभी एक स्वस्थ मानसिकता वाले स्वस्थ समाज का निर्माण संभव है।

किसी भी सभ्य समाज में लड़कियों/महिलाओं के प्रति अपशब्द, बात-बात पर उनकी लानत-मलानत, उनको सेक्स आब्जेक्ट मानने की प्रवृत्ति, आपसी संवाद में भी महिलाओं को घसीटना और उनके साथ दुष्कर्म जैसे घटनाएँ न सिर्फ आपत्तिजनक हैं बल्कि अपराध है. जरुरत सच्चाई को स्वीकार कर उसका हल निकालने की है. मात्र शोशेबाजी से कोई हल नहीं निकलने वाला और न ही महिलाओं के कपड़ों को उनके प्रति बढ़ रहे अपराध का कारण माना जा सकता है. समाज और प्रशासन अपनी कमजोरियों को छुपाने के लिए कब तक महिलाओं पर प्रश्नचिन्ह लगता रहेगा ??