21वीं सदी में जब हम लिंग-समता, नारी-सशक्तिकरण, मानवीय सौहार्द और सहिष्णुता की बात करते हैं और दूसरी तरफ कुछेक मन्दिरों में अभी भी महिलाओं के प्रवेश और पूजा-पाठ करने पर तमाम बंदिशें देखते हैं तो सवाल उठना लाजिमी है कि ईश्वर के दरवाजे पर अभी भी भेदभाव और छुआछूत क्यों ? देश के सबसे बड़े शनि मंदिर शिंगणापुर धाम में एक महिला द्वारा शनिदेव को तेल चढाने के बाद शुद्धिकरण किया गया. आखिर यह दोहरापन क्यों ? ऐसा नहीं है कि यह अकेला मंदिर है जो महिलाओं में प्रवेश और पूजा-पाठ करने पर तमाम बंदिशें लगाता है, बल्कि देश में तमाम ऐसे मंदिर हैं, जहाँ इस प्रकार की रोक है.

यह विचारणीय है कि एक तरफ हमारे धर्मग्रन्थ 'यत्र नारी पूजयंते रमंते तत्र देवता' की बात कहते हैं, वहीँ उसी नारी के प्रवेश से मंदिर और मूर्तियाँ अपवित्र हो जाती हैं, भला ऐसे कैसे सम्भव है. इस प्रकार के दोहरे मानदंडों को ख़त्म करने की जरूरत है. अन्यथा नारी-समता और नारी-सशक्तिकरण जैसी बातें पन्नों में ही रह जाएँगी।
-आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर
Akanksha Yadav @ http://shabdshikhar.blogspot.com/