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शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

संघर्षों से भरा रहा महाश्वेता देवी का जीवन

कुछ नाम किसी परिचय के मोहताज़ नहीं होते। उन्हीं में से एक नाम है - मशहूर लेखिका, साहित्यकार,  समाजसेविका और आंदोलनधर्मी और  महाश्‍वेता देवी का।  साहित्‍य अकादमी, ज्ञानपीठ अवार्ड, रेमन मैग्‍सेसे और पद्म विभूषण जैसे प्रतिष्ठित सम्मानों से सम्मानित महाश्‍वेता देवी को आदिवासी लोगों के लिए काम करने के लिए भी जाना जाता है। 

महाश्वेता देवी का जन्म 14 जनवरी  1926 को उस समय के पूर्वी  बंगाल (अब बांग्लादेश) के ढाका शहर में हुआ था। उनके पिता मनीष घटक भी कवि और उपन्यासकार थे। उनकी माँ धारित्री लेखिका और समाजसेविका थीं। तभी तो महाश्वेता देवी को साहित्य और समाज सेवा विरासत में मिली थी। 1944 में महाश्वेता देवी ने कोलकाता (तब कलकत्ता) के आशुतोष कॉलेज से इंटरमीडिएट किया। 1946 में  शांतिनिकेतन से अंग्रेजी में बीए (ऑनर्स) और कोलकाता यूनिवर्सिटी से एमए करने के बाद उन्होंने एक अध्यापक और पत्रकार के रूप में करियर शुरू किया। वे कोलकाता यूनिवर्सिटी में अंग्रेजी की लेक्चरर रहीं। 1984 में उन्होंने यहां से इस्तीफा दे दिया और लेखन में सक्रिय हो गईं।

महाश्वेता देवी की पहली रचना 'झांसी की रानी' थी । उनकी शुरुआती तीन कृतियां स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित थीं। उनकी लघुकथाओं में मीलू के लिए, मास्टर साब, कहानियों में  स्वाहा, रिपोर्टर, वॉन्टेड, उपन्यास में नटी, अग्निगर्भ, झांसी की रानी, हजार चौरासी की मां, मातृछवि, जली थी अग्निशिखा, जकड़न
और आलेख विधा में अमृत संचय, घहराती घटाएं, भारत में बंधुआ मजदूर, ग्राम बांग्ला, जंगल के दावेदार कृतियाँ चर्चित हैं। 

महाश्वेता देवी को दौलत से जरा भी लगाव नहीं था। सम्मान में मिली राशि भी वे समाज सेवा के लिए ही खर्च करतीं। नेल्सन मंडेला के हाथों प्रतिष्ठित ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त करने के बाद इसके साथ मिले पांच लाख रुपए का चेक उन्होंने पुरुलिया आदिवासी समिति को दे दिया था। पश्चिम बंगाल की 'लोधास' और 'शबर' जनजातियों के लिए उन्होंने काफी काम किया। महाश्वेता देवी की नौ में से आठ कहानियां आदिवासियों पर ही लिखी गई हैं। झारखंड (पूर्व में बिहार का हिस्सा रहे) में बंधुआ मजूदरी के खिलाफ आवाज उठाने के लिए वे आदिवासी क्षेत्रों में बार-बार जाती थीं। झारखंड के आदिवासियों की हालत में सुधार दिखा तो उन्होंने पुरुलिया के आदिवासियों के लिए संघर्ष शुरू कर दिया। वहां उन्होंने कई गांवों में कम्युनिटी सेंटर और आदिवासी सेंटर बनाए। गुजरात के गणेश देवी और महाराष्ट्र के लक्ष्मण गायगवाड़ के साथ मिलकर देशभर में घुमंतू जनजाति के लिए DNT-RAG (डिनोटिफाइड एंड नोमेडिक ट्राइब्स राइट्स एंड एक्शन ग्रुप) बनाया।

महाश्वेता देवी को साहित्य और समाज सेवा के लिए तमाम पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। उन्हें 1979 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1986 में पद्मश्री, 1996 में ज्ञानपीठ पुरस्कार, 1997 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार और 2006 में पद्मविभूषण मिला। उनकी कई कृतियों पर फिल्मों का भी निर्माण हुआ। अमिताभ बच्चन और रेखा के साथ 1981 में रिलीज हुई 'सिलसिला' के 17 साल बाद जया बच्चन ने महाश्वेती देवी के उपन्यास 'हजार चौरासी की मां' पर बनी फिल्म  के जरिए ही बॉलीवुड में वापसी की थी। गौरतलब है कि  मार्च 1998 में जारी  हुई इस फिल्म का निर्देशन गोविंद निहलानी ने किया था। इसमें जया बच्चन के अलावा अनुपम खेर और नंदिता दास भी थे।

महाश्वेता देवी का खुद का जीवन भी झंझावतों और संघर्षों से भरा रहा।  की दो शादियाँ हुईं। 1947 में मशहूर रंगकर्मी विजन भट्टाचार्य से उनकी शादी हुई। विजन से शादी के बाद महाश्वेता देवी के परिवार को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ा। दरअसल, विजन कम्युनिस्ट थे और उस समय कम्युनिस्टों को रोजगार मुश्किल से मिलता था। तब 1948 में महाश्वेता देवी ने पदमपुकुर इंस्टीट्यूशन में अध्यापन  करके घर का खर्च चलाया। 1949 में महाश्वेता देवी को केंद्र सरकार के डिप्टी अकाउंटेंट जनरल, पोस्ट एंड टेलिग्राफ ऑफिस में अपर डिवीजन क्लर्क की नौकरी मिली, लेकिन पति कम्युनिस्ट थे, इसलिए उन्हें नौकरी से निकाल दिया गया। इसके बाद महाश्वेता देवी ने साबुन बेचकर और ट्यूशन पढ़ाकर घर का खर्च चलाया। बाद में 1957 में स्कूल में टीचर की नौकरी लगी।
शादी के 15 साल बाद 1962 में विजन भट्टाचार्य से उनका तलाक हो गया। विजन से उन्हें एक बेटा नवारुण भट्टाचार्य है। असीत गुप्त से दूसरी शादी हुई, लेकिन 1975 में उनसे भी तलाक हो गया।

इसमें कोई शक नहीं कि महाश्वेता देवी का पूरा जीवन ही संघर्षों से भरा रहा।  यही कारण था कि संघर्षों से वे कभी घबराई नहीं और समाज के निचले समाज के लिए सदैव संघर्षरत भी रहीं। 28 जुलाई, 2016  को उन्होंने अंतिम सास ली। अपने ही अंदाज में जीने वालीं महाश्वेता सिर्फ पन्नों पर ही शब्द नहीं उकेरती थीं बल्कि उसे आंदोलन की भावभूमि देने का सत्साहस भी रखती थीं। ऐसे में उनका जाना न सिर्फ साहित्य बल्कि समाज के लिए भी एक गहरी क्षति है। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे .... विनम्र श्रद्धांजलि !!

गुरुवार, 28 जुलाई 2016

राजस्थानी पत्रिका 'माणक' में अनूदित हिन्दी कविताएँ



अब हमारी कविताएँ राजस्थानी भाषा में भी। राजस्थानी मासिक पत्रिका ''माणक'' (जुलाई-2016) में प्रकाशित हमारी कुछेक कविताएँ ( मैं अजन्मी, अस्तित्व और एस.एम.एस) जिनका हिंदी से राजस्थानी में अनुवाद जुगल परिहार ने किया है।  आभार !!


 राजस्थानी पत्रिका ''माणक'' (मई 2016) में प्रकाशित पतिदेव कृष्ण कुमार यादव जी की कुछेक कविताएँ, जिन्हें त्रुटिवश हमारे नाम से प्रकाशित कर दिया गया था। जुलाई, 2016 में त्रुटि-सुधार के साथ संपादक ने हमारी कविताएँ प्रकाशित कीं......आभार !!

संपर्क -
माणक (पारिवारिक राजस्थानी मासिक) :  संपादक - पदम मेहता
माणक प्रकाशन, जालोरी गेट, जोधपुर (राजस्थान) -342003  

शनिवार, 23 जुलाई 2016

क्रन्तिकारी चन्द्रशेखर 'आजाद' और इलाहाबाद से जुड़ी उनकी यादें


भारत की फिजाओं को सदा याद रहूँगा 
आज़ाद था, आज़ाद हूँ, आज़ाद रहूँगा !


आज चन्द्रशेखर 'आजाद' (23 जुलाई, 1906 - 27 फरवरी, 1931) की आज 110 वीं जयंती है। ऐतिहासिक दृष्टि से भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के अत्यन्त सम्मानित और लोकप्रिय स्वतंत्रता सेनानी रहे आज़ाद पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल व सरदार भगत सिंह सरीखे महान क्रान्तिकारियों के अनन्यतम साथियों में से थे। इलाहाबाद में उनका अंतिम समय गुजरा और यहीं की मिट्टी में उन्होंने अंतिम साँस ली। आज भी कंपनी गार्डेन में लगी उनकी भव्य मूर्ति उनके जीवन को प्रतिबिंबित करती है। वाकई वो अंत तक आज़ाद ही रहे। 

चन्द्रशेखर 'आजाद' की जयंती पर शत-शत नमन !!


अमर शहीद चन्द्र शेखर आजाद की 27 फरवरी, 1931 की अल्फ्रेड पार्क, इलाहाबाद में पुलिस से हुई मुठभेड़ में प्रयुक्त पिस्तौल जो तत्कालीन पुलिस अधीक्षक, इलाहाबाद सर जॉन नाट बावर के सौजन्य से प्राप्त हुई थी। इसे इलाहाबाद संग्रहालय में सुरक्षित रखा गया है। 

!! स्वतंत्रता संग्राम के क्रन्तिकारी नायक चन्द्रशेखर आज़ाद जी की 110वीं जयंती पर उन्हें शत-शत नमन !!


शनिवार, 16 जुलाई 2016

नेपाल की पहली महिला मुख्‍य न्‍यायाधीश बनीं सुशीला कार्की

भारत में सर्वोच्च न्यायालय के शीर्ष पद पर भले ही कोई महिला अब तक नहीं पहुँची हो, पर पड़ोसी देश नेपाल में भारत के ही बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से राजनीति शास्त्र में मास्‍टर डिग्री लेने वाली सुशीला कार्की मुख्य न्यायाधीश के पद पर आसीन हुई हैं । पहली महिला राष्ट्रपति के रूप में विद्या देवी भंडारी और पहली महिला लोकसभा अध्यक्ष ओनसारी घरती के बाद शीर्ष पद पर किसी महिला की यह तीसरी नियुक्ति है। इसी के साथ नेपाल में राष्ट्रपति, संसद की स्पीकर और सर्वोच्च न्यायालय के प्रधान न्यायाधीश, इन तीनों महत्वपूर्ण पद पर महिलाएं आसीन हैं, जो कि नारी-सशक्तिकरण के लिहाज से भी ऐतिहासिक पल है।

नेपाल की न्यायपालिका के 64 साल के इतिहास में पहली बार किसी महिला ने मुख्य न्यायाधीश का पद संभाला है। 64 वर्षीय सुशीला कार्की ने 11 जुलाई, 2016 को देश के 25वें मुख्य न्यायाधीश के तौर पर शपथ ली। कार्की के नाम की सिफारिश 10 अप्रैल को प्रधानमंत्री केपी ओली की अध्यक्षता वाली संवैधानिक परिषद ने की थी। कार्की को राष्ट्रपति ने पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई। वह पिछले तीन महीने से कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश के तौर पर काम कर रही थीं। विशेष संसदीय समिति ने 10 जुलाई, 2016  को उनके नाम पर मुहर लगाई। नेपाल में किसी संवैधानिक पद पर नियुक्ति के लिए इस समिति की मंजूरी जरूरी होती है। कार्की न्यायपालिका में भ्रष्टाचार के खिलाफ शून्य सहिष्णुता के लिए जानी जाती हैं।

7 जून 1952 को बिराटनगर के पास एक गांव में जन्मीं कार्की की पहचान भ्रष्टाचार को बर्दाश्त नहीं करने वाली और बिना किसी दबाव के फैसला सुनाने वाले जज के तौर पर रही है। कार्की अपने पिता की सात संतानों में सबसे बड़ी हैं। इनका सम्बन्ध किसान परिवार से है। उनका भारत से भी गहरा नाता रहा है। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) से सन 1975 में राजनीति शास्त्र में मास्‍टर डिग्री लेने वाली सुशीला कार्की ने वर्ष 1978 में त्रिभुवन विश्वविद्यालय, नेपाल से विधि स्नातक की उपाधि प्राप्त की। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी में अध्ययन के दौरान ही  नेपाली कांग्रेस के प्रसिद्ध युवा नेता दुर्गा प्रसाद सुवेदी से मिलने के पश्चात इनका विवाह दुर्गा प्रसाद सुवेदी से हुआ। प्रारम्भ में कार्की ने शिक्षण कार्य किया। 1979 में यह वकालत पेशे में आईं। सुप्रीम कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश नियुक्ति होने पहले कार्की सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठतम् न्यायाधीश थीं। 22 जनवरी 2009 को सुप्रीम कोर्ट की अस्थायी जज बनीं और 18 नवंबर 2010 को स्थायी जज बन गईं। 

- आकांक्षा यादव : Akanksha Yadav @ शब्द-शिखर : http://shabdshikhar.blogspot.in/