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गुरुवार, 25 दिसंबर 2014

वास्तविक भारत 'रत्नों' की पहचान जरुरी

अटल बिहारी वाजपेयी  और मदन मोहन मालवीय  को भारत रत्न की घोषणा पर मन में एक सवाल जरूर कौंधा कि आखिर सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न इतना जल्दी मिल गया और अटल जी व मालवीय जी जैसे लोगों को इतना इंतज़ार क्यों करना पड़ा ? मालवीय जी की चौथी पीढ़ी जन्म ले चुकी है और अटल जी अपनी अस्वस्थता के चलते शायद ही कोई प्रतिक्रिया दे सकें। यह सवाल बार-बार उठता है कि आखिर भारत रत्न के लिए किसी के अंतिम दिनों का इंतज़ार क्यों किया जाता है।  अभी भी देश में तमाम ऐसी विभूतियाँ हैं और कई तो इस लोक को छोड़ चुकी हैं, जिन्हें भारत रत्न मिलना चाहिए …पर उन्हें इस सर्वोच्च सम्मान से विभूषित करने में या तो राजनीति आड़े आ जाती है या उनकी पैरवी करने वाला कोई नहीं है।  बेहतर होगा कि हम देश के इस शीर्षस्थ नागरिक सम्मान को राजनीति और संकुचित आयामों से परे ले जाकर सोचें ताकि वास्तविक भारत 'रत्नों' को इसके लिए तरसना न पड़े !!

शुक्रवार, 28 नवंबर 2014

काश समय एक बार मुड़कर फिर वहीँ चला जाये


शादी की दसवीं सालगिरह। काश समय एक बार मुड़कर फिर वहीँ चला जाये, जहाँ से हमने शुरुआत की थी। एक बार फिर से उन दिनों को जीने का जी चाहता है। 






जीवन-साथी कृष्ण कुमार जी के विचार अच्छे लगे। इन्होंने लिखा -''जीवन में एक और महत्वपूर्ण पड़ाव। दाम्पत्य जीवन का एक दशक आज पूरा हुआ। यहाँ पाश्चात्य विचारक फ्रैंज स्कूबर्ट के शब्द याद आ रहे हैं, ’’जिसने सच्चा दोस्त पा लिया, वह सुखी है। लेकिन उससे भी सुखी वह है जिसने अपनी पत्नी में सच्चा मित्र पा लिया है।’’ हमारा यह प्यार, यह साथ यूँ ही चलता रहे।  

आप सभी की शुभकामनाओं और स्नेह के लिए आभार। 

मंगलवार, 18 नवंबर 2014

अपने व्यक्तित्व को नाम के पहले अक्षर से पहचानें

आपके नाम का पहला अक्षर बताएगा की आपका व्यक्तित्व कैसा है-

A
A- अक्षर से नाम वाले लोग काफी मेहनती और धैर्य वाले होते हैं। इन्हें अट्रैक्टिव दिखना और अट्रैक्टिव दिखने वाले लोग ज्यादा पसंद होते हैं। ये खुद को किसी भी परिस्थिति में ढाल लेने की गजब की क्षमता रखते हैं। इन्हें वैसी चीज ही भाती है, जो भीड़ से अलग दिखता हो।A- अध्ययन या करियर की बात करें तो किसी भी काम को अंजाम देने के लिए चाहे जो करना पड़े ये करते हैं, लेकिन लक्ष्य तक पहुंचने से पहले ये कभी हारकर बैठते नहीं। A- ए से नाम वाले लोग रोमांस के मामले में जरा पीछे रहना ही पसंद करते हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि वे प्यार और अपने करीबी रिश्तों को अहमियत नहीं देते। बस, इन्हें इन चीजों का इजहार करना अच्छा नहीं लगता।A- चाहे बात रिश्तों की हो या फिर काम की, इनका विचार बिल्कुल खुला होता है। सच और कड़वी बात भी इन्हें खुलकर कह दी जाए तो ये मान लेते हैं, लेकिन इशारों में या घुमाकर कुछ कहना-सुनना इन्हें पसंद नहीं।A- ए से नाम वाले लोग हिम्मती भी काफी होते हैं, लेकिन यदि इनमें मौजूद कमियों की बात करें तो इन्हें बात-बात पर गुस्सा भी आ जाता है।
B
B- जिनका नाम बी अक्षर से शुरू होता है वे अपनी जिंदगी में नए-नए रास्ते तलाशने में यकीन रखते हैं। अपने लिए कोई एक रास्ता चुनकर उसपर आगे बढ़ना इन्हें अच्छा नहीं लगता। B- बी अक्षर वाले लोग ज़रा संकोची स्वभाव के होते हैं। काफी सेंसिटिव नेचर के होते हैं ये। जल्दी अपने मित्रों से भी नहीं घुलते-मिलते। इनकी लाइफ में कई राज होते हैं, जो इनके करीबी को भी नहीं पता होता। ये ज्यादा दोस्त नहीं बनाते, लेकिन जिन्हें बनाते हैं उनके साथ सच्चे होते हैं।B- रोमांस के मामले में ये थोड़े खुले होते हैं। प्यार का इजहार ये कर लेते हैं। प्यार को लेकर ये धोखा भी खूब खाते हैं। इन्हें खुद पर कंट्रोल रखना आता है। खूबसूरत चीजों के ये दीवाने होते हैं।
C
c- सी नाम के लोगों को हर क्षेत्र में खूब सफलता मिलती है। एक तो इनका चेहरा-मोहरा भी काफी आकर्षक होता है और दूसरा कि काम के मामले में भी लक इनके साथ हमेशा रहता है। इन्हें आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता है। अच्छी सूरत तो भगवान देते ही हैं इन्हें, अच्छे दिखने में ये खुद भी कभी कोई कसर नहीं छोड़ते।C- सी नाम वाले दूसरों के दुख-दर्द के साथ-साथ चलते हैं। खुशी में ये शरीक हों या न हों, लेकिन किसी के ग़म में आगे बढ़कर ये उनकी मदद करते हैं।C- सी नाम वालों के लिए प्यार के महत्व की बात करें तो ये जिन्हें पसंद करते हैं उनके बेहद करीब हो जाते हैं। यदि इन्हें अपने हिसाब के कोई न मिले तो मस्त होकर अकेले भी रह लेते हैं। वैसे स्वभाव से ये काफी इमोशनल होते हैं।
D
D- डी नाम वाले लोगों को हर मामले में अपार सफलता हाथ लगती है। कभी भाग्य साथ न भी दे तो उन्हें विचलित नहीं होना चाहिए, क्योंकि उनकी जिंदगी में आगे चलकर सारी खुशियां लिखी होती हैं। लोगों की बात पर ध्यान न देकर अपने मन की करना ही इन्हें भाता है। जो ठान लेते हैं ये, उसे कहके ही मानते हैं। इन्हें सुंदर या आकर्षक दिखने के लिए बनने-संवरने की जरूरत नहीं होती। ये लोग बॉर्न स्मार्ट होते हैं। D- किसी की मदद करने में ये कभी पीछे नहीं रहते। यहां तक ये भी नहीं देखते कि जिनकी मदद के लिए उन्होंने अपना हाथ आगे बढ़ाया है वह उनके दुश्मन की लिस्ट में हैं या दोस्त की लिस्ट में।D- डी नाम के लोग प्यार को लेकर काफी जिद्दी होते हैं। जो इन्हें पसंद हो, उन्हें पाने के लिए या फिर उनसे रिश्ता निभाने में कोई कसर नहीं छोड़ते। रिश्तों के मामले में इनपर अविश्वास करना बेवकूफी होगी।
E
E- ई या इ से नाम वाले मुंहफट किस्म के होते हैं। हंसी-मजाक की जिंदगी जीना इन्हें पसंद है। इन्हें अपने इच्छा अनुरूप सारी चीजें मिल जाती हैं। जो इन्हें टोका टाकी करे, उनसे किनारा भी तुरंत हो लेते हैं।E- ई या इ नाम वाले लोग जिंदगी को बेतरतीव जीना पसंद नहीं करते। इन्हें सारी चीजें सलीके और सुव्यवस्थित रखना ही पसंद है। E- ई या इ से नाम वाले लोग प्यार को लेकर उतने संजीदा नहीं रहते, इसलिए इनसे रिश्ते पीछे छूटने का किस्सा लगा ही रहता है। शुरुआत में ये दिलफेंक आशिक की तरह व्यवहार करते हैं, क्योंकि इनका दिल कब किसपर आ जाए कह नहीं सकते। लेकिन एक सच यह भी है कि जिन्हें ये फाइनली दिल में बिठा लेते हैं उनके प्रति पूरी तरह से सच्चे हो जाते हैं।
F
F नाम वाले लोग काफी जिम्मेदार किस्म के होते हैं। हां, इन्हें अकेले रहना काफी भाता है। ये स्वभाव से काफी भावुक होते हैं। हर चीज को लेकर ये बेहद कॉन्फिडेंट होते हैं। सोच-समझकर ही खर्च करना चाहते हैं ये। जीवन में हर चीज इनका काफी बैलेंस्ड होता है।
F से शुरू होने वाले नाम के लोगों के लिए प्यार की काफी अहमियत होती है। ये खुद भी सेक्सी और आकर्षक होते हैं और ऐसे लोगों को पसंद भी करते हैं। रोमांस तो समझिए कूट-कूटकर इनमें भरा होता है।
G
G से शुरू होनेवाले नाम वाले लोग दूसरों की मदद के लिए हमेशा ही खड़े होते हैं। ये खुद को हर परिस्थितियों में ढाल लेते हैं। ये चीजों को गोलमोल करके पेश करना पसंद नहीं करते, क्योंकि इनका दिल बिल्कुल साफ होता है। अपने किए से जल्द सबक लेते हैं और फूंत-फूंककर कदम आगे बढ़ाते हैं ये।G से नाम वाले प्यार को लेकर ईमानदार होते हैं। प्यार के मामले में ये समझदारी और धैर्य से काम लेते हैं। कमिटमेंट से पहले किसी पर बेवजह खर्च करना इनके लिए बेकार का काम है।
H
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H से नाम वाले लोगों के लिए पैसे काफी मायने रखते हैं। ये काफी हंसमुख स्वभाव के होते हैं और अपने आसपास का माहौल भी एकदम हल्का-फुल्का बनाए रखते हैं। ये लोग दिल के सच्चे होते हैं। काफी रॉयल नेचर के होते हैं और मस्त मौला होकर जीवन गुजारना पसंद करते हैं। झटपट निर्णय लेना इनकी काबिलियत है और दूसरों की मदद के लिए आधी रात को भी ये तैयार होते हैं।प्यार का इजहार करना इन्हें नहीं आता, लेकिन जब ये प्यार में पड़ते हैं तो जी जीन से प्यार करते हैं। उनके लिए कुछ भी कर गुजरते हैं ये। इन्हें अपने मान-सम्मान की भी खबह चिंता होती है।
I
I से शुरू होने वाले नाम के लोग कलाकार किस्म के होते हैं। न चाहते हुए भी ये लोगों के आकर्षण का केन्द्र बने रहते हैं। हालांकि मौका पड़े तो इन्हें अपनी बात पलटने में पल भर भी नहीं लगता और इसके लिए वे यह नहीं देखते कि सही का साथ दे रहे हैं या फिर गलत का। इनके हाथ तो काफी कुछ लगता है, लेकिन उन चीजों के हाथ से फिसलने में भी देर नहीं लगती। I से नाम वाले लोग प्यार के भूखे होते हैं। आपको वैसे लोग अपनी ओर खींच पाते हैं जो हर काम को काफी सोच-विचार के बाद ही करते हैं। स्वभाव से संवेदनशील और दिखने में बेहद सेक्सी होते हैं।
J
J से नाम वाले लोगों की बात करें तो ये स्वभाव से काफी चंचल होते हैं। लोग इनसे काफी चिढ़ते हैं, क्योंकि इनमें अच्छे गुणों के साथ-साथ खूबसूरती का भी सामंजस्य होता है। जो करने की ठान लेते हैं, उसे करके ही मानते हैं ये। पढ़ने-लिखने में थोड़ा पीछे ही रहते हैं, लेकिन जिम्मेदारी की बात करें तो सबसे आगे खड़े रहेंगे ये। j से नाम वाले लोगों के चाहने वाले कई होते हैं। हमसफर के रूप में ये जिन्हें मिल जाएं समझिए खुशनसीब हैं वह। जीवन के हर मोड़ पर ये साथ निभानेवाले होते हैं।
K
K से नाम वाले लोगों को हर चीज में परफेक्शन चाहिए। चाहे बेडशीट के बिछाने का तरीका हो या फिर ऑफिस की फाइलें, सारी चीजें इन्हें सेट चाहिए। दूसरों से हटकर चलना बेहद भाता है इन्हें। ये अपने बारे में पहले सोचते हैं। पैसे कमाने के मामले में भी ये काफी आगे चलते हैं।स्वभाव से ये रोमांटिक होते हैं। अपने प्यार का इजहार खुलकर करना इन्हें खूब आता है। इन्हें स्मार्ट और समझदार साथी चाहिए और जबतक ऐसा कोई न मिले तब तक किसी एक पर टिकते नहीं ये।
L
L से शुरू होने वाले नाम के लोग काफी चार्मिंग होते हैं। इन्हें बहुत ज्य़ादा पाने की तमन्ना नहीं होती, बल्कि छोटी-मोटी खुशियों से ये खुश रहते हैं। पैसों को लेकर समस्या बनती है, लेकिन किसी न किसी रास्ते इन्हें हल भी मिल जाता है। लोगों के साथ प्यार से पेश आते हैं ये। कल्पनाओं में जीते हैं और फैमिली को अहम हिस्सा मानकर चलते हैं ये।प्यार की बात करें तो इनके लिए इस शब्द के मायने ही सबकुछ हैं। बेहद ही रोमांटिक होते हैं ये। वैसे सच तो यह है कि अपनी काल्पनिक दुनिया का जिक्र ये अपने हमसफर तक से करना नहीं चाहते। प्यार के मामले में भी ये आदर्शवादी किस्म के होते हैं।
M
M नाम से शुरू होनेवाले लोग बातों को मन में दबाने वाली प्रवृत्ति के होते हैं। कहते हैं ऐसा नेचर कभी-कभी दूसरों के लिए खतरनाक भी साबित हो जाता है। चाहे बात कड़वी हो, यदि खुलकर कोई कह दे तो बात वहीं खत्म हो जाती है, लेकिन बातों को मन रखकर उस चलने से नतीजा अच्छा नहीं रहता। ऐसे लोगों से उचित दूरी बनाए रखना बेहतर है। इनका जिद्दी स्वभाव कभी-कभार इन्हें खुद परेशानी में डाल देता है। वैसे अपनी फैमिली को ये बेहद प्यार करते हैं। खर्च करने से पहले ज्यादा सोच-विचार नहीं करते। सबसे बेहतर की ओर ये ज्यादा आकर्षित होते हैं।प्यार की बात करें तो ये संवेदनशील होते हैं और जिस रिश्ते में पड़ते हैं उसमें डूबते चले जाते हैं और इन्हें ऐसा ही साथी भी चाहिए जो इनसे जी जीन से प्यार करे।
N
N से शुरू होनेवाले नाम के लोग खुले विचारों के होते हैं। ये कब क्या करेंगे इसके बारे में ये खुद भी नहीं जानते। बेहद महत्वाकांक्षी होते हैं। काम के मामले में परफेक्शन की चाहत इनमें होती है। आपके व्यक्तित्व में ऐसा आकर्षण होता है, जो सामने वालों को खींच लाता है। ये दूसरों से पंगे लेने में ज्यादा देर नहीं लगाते। इन्हें आधारभूत चीजों की कभी कोई कमी नहीं रहती और आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न होते हैं ये।कभी-कभार फ्लर्ट चलता है, लेकिन प्यार में वफादारी करना इन्हें आता है। स्वभाव से रोमांटिक और रिश्तों को लेकर बेहद संवेदनशील होते हैं ये।
O
O अक्षर से नाम के लोगों के स्वभाव की बात करें तो बता दें कि इनका दिमाग काफी तेज दौड़ता है। ये बोलते कम हैं और करते ज्यादा हैं, शायद यही वजह है कि ये जल्दी ही उन हर ऊंचाइयों को छू लेते हैं जिनका ख्वाब ये देखा करते हैं। इन सबके बावजूद समाज के साथ चलना इन्हें पसंद है। जीवन के हर क्षेत्र में सफल होते हैं।प्यार की बात करें तो ये ईमानदार किस्म के होते हैं। साथी को धोखा देना इन्हें पसंद नहीं और ऐसा ही उनसे भी अपेक्षा रखते हैं। जिससे कमिटमेंट हो गया, बस पूरी जिंदगी उसपर न्योछावर करने को तैयार रहते हैं ये।
P
P से शुरू होनेवाले नाम के लोग उलझनों में फंसे रहते हैं। वैसे, ये चाहते कुछ हैं और होता कुछ अलग ही है। काम को परफेक्शन के साथ करते हैं। इनके काम में सफाई और खरापन साफ झलकती है। खुले विचार के होते हैं ये। अपने आसपास के सभी लोगों का ख्याल रखते हैं और सबको साथ लेकर चलना चाहते हैं। हां, कभी-कभार अपने विचारों के घोड़े सबपर दौड़ाने की इनकी कोशिश इन्हें नुकसान भी पहुंचाती है।प्यार की बात करें तो सबसे पहले ये अपनी छवि से प्यार करते हैं। इन्हें खूबसूरत साथी खूब भाता है। कभी-कभार अपने साथी से ही दुश्मनी भी पाल लेते हैं, लेकिन चाहे लड़ते-झगड़ते सही साथ उनका कभी नहीं छोड़ते।
Q
Q से नाम वाले लोगों को जीवन में ज्यादा कुछ पाने की इच्छा नहीं होती, लेकिन नसीब इन्हें देता सब है। ये स्वभाव से सच्चे और ईमानदार होते हैं। नेचर से काफी क्रिएटिव होते हैं। अपनी ही दुनिया में खोए रहना इन्हें अच्छा लगता है।प्यार की बात करें तो ये अपने साथी के साथ नहीं चल पाते। कभी विचारों में तो कभी काम में असमानता इन्हें झेलना ही पड़ता है। वैसे, आपके प्रति आकर्षण आसानी से हो जाता है।
R
R से नाम वाले लोग ज्यादा सोशल लाइफ जीना पसंद नहीं करते। हालांकि, फैमिली इनके लिए मायने रखती है और पढ़ना-लिखना इन्हें नहीं भाता। जो भीड़ करे, उसे करने में इन्हें मजा नहीं आता। ये तो वह काम करना चाहते हैं, जिसे कोई नहीं कर सकता। R से नाम वाले लोग काफी तेजी से आगे बढ़ते हैं और धन-दौलत की कोई कमी नहीं रहती।अपने से ऊपर सोच-समझ और बुद्धि वाले लोग इन्हें आकर्षित करते हैं। दिखने में खूबसूरत और कोई ऐसा जिसपर आपको गर्व हो उनकी ओर आप खिंचे चले जाते हैं। वैसे वैवाहिक जीवन में उठा-पटक लगा ही रहता है।
S
S से नाम वाले लोग काफी मेहनती होते हैं। ये बातों के इतने धनी होते हैं कि सामने वाला इनकी ओर आकर्षित हो ही जाता है। दिमाग से तेज और सोच-विचार कर काम करते हैं ये। इन्हें अपनी चीजें शेयर करना पसंद नहीं। ये दिल से बुरे नहीं होते, लेकिन उनके बातचीत का अंदाज़ इन्हें लोगों के सामने बुरा बना देती है। प्यार के मामले में ये शर्मीले होते हैं। आप सोचते बहुत हैं, लेकिन प्यार के लिए कोई पहल करना नहीं आता। प्यार के मामले में ये सबसे ज्यादा गंभीर होते हैं।
T
T से शुरू होनेवाले नाम के लोग खर्च के मामले में एकदम खुले हाथ वाले होते हैं। चार्मिंग दिखने वाले ये लोग खुशमिजाज भी खूब रहते हैं। मेहनत करना इन्हें उतना अच्छा नहीं लगता, लेकिन पैसों की कभी कमी नहीं होती इन्हें। अपने दिल की बात किसी से जल्दी शेयर नहीं करते ये।प्यार की बात करें तो रिश्तों को लेकर काफी रोमांटिक होते हैं। लेकिन बातों को गुप्त रखने की आदत भी इनमें होती है।
U
U से शुरू होनेवाले नाम के लोग कोशिश तो बहुत-कुछ करने की करते हैं, लेकिन इनका काम बिगड़ते भी देर नहीं लगती। किसी का दिल कैसे जीतना है, वह इनसे सीखना चाहिए। दूसरों के लिए किसी भी तरह ये वक्त निकाल ही लेते हैं। ये बेहद होशियार किस्म के होते हैं। तरक्की के मार्ग आगे बढ़ने पर ये पीछे मुड़कर नहीं देखते।आप चाहते हैं कि आपका साथी हमेशी भीड़ में अलग नज़र आए। वह साथ न भी हो तो आप हर वक्त उन्ही के ख्यालों में डूबे रहना पसंद करते हैं। अपनी खुशी से पहले साथी की खुशियों का ध्यान रखते हैं ये।
V
V से शुरू वाले नाम के व्यक्ति स्वभाव से थोड़े ढीले होते हैं। इन्हें जो मन को भाता है वही काम करते हैं। दिल के साफ होते हैं, लेकिन अपनी बातें किसी से शेयर करना इन्हें अच्छा भी नहीं लगता। बंदिशों में रखकर इनसे आप कुछ नहीं करा सकते।बात प्यार की करें तो ये ये अपने प्यार का इजहार कभी नहीं करते। जिन बातों का कोई अर्थ नहीं या यूं कहिए कि हंसी-ठहाके में कही गई बातों से भी आप काफी गहरी बातें निकाल ही लेते हैं। कभी-कभीर ये बाते आपके लिए ही मुसीबत खड़ी कर देती हैं।
W
W से शुरू होनेवाले नाम के लोग संकुचित दिल के होते हैं। एक ही ढर्रे पर चलते हुए ये बोर भी नहीं होते। ईगो वाली भावना तो इनमें कूट-कूटकर भरी होती है। ये जहां रहते हैं वहीं अपनी सुनाने लग जाते हैं, जिससे सामने वाला इंसान इनसे दूर भागने लगता है। हालांकि, हर मामले में सफलता इनकी मुट्ठी तक पहुंच ही जाती है।प्यार की बात करें तो ये न न करते हुए ही आगे बढ़ते हैं। हालांकि, इन्हें ज्यादा दिखावा पसंद नहीं और अपने साथी को उसी रूप में स्वीकार करते हैं जैसा वह वास्तव में है।
X
X से नाम वाले लोग जरा अलग स्वभाव के होते हैं। ये हर मामले में परफेक्ट होते हैं, लेकिन न चाहते हुए भी गुस्से के शिकार हो ही जाते हैं ये। इन्हें काम को स्लो करना पसंद नहीं, फटाफट निपटाने में ही यकीन रखते हैं ये। बहुत जल्दी चीजों से बोरियत हो जाती है इन्हें। ये क्या करने वाले हैं इस बात का पता इन्हें खुद भी नहीं होता।प्यार के मामले में फ्लर्ट करना इन्हें ज्यादा पसंद है। कई रिश्तों को एकसाथ लेकर आगे चलने की हिम्मत इनमें होती है।
Y
Y से शुरू होनेवाले नाम के लोगों से कभी भी सलाह लें, आपकी सही रास्ता दिखाएंगे वह। खर्च के लिए कभी सोचते नहीं, बस खाना अच्छा मिले तो हमेशा खुश रहेंगे। अच्छी पर्सनैलिटी के बादशाह होते हैं। लोगों को दूर से ही पढ़ लेते हैं ये। इन्हें ज्यादा बातचीत करना पसंद नहीं। धन-दौलत नसीब तो होती है, लेकिन इन्हें पाने में वक्त लग जाता है।
बात प्यार की करें तो इन्हें अपने साथी की कोई बात याद नहीं रहती। हालांकि सच्चे, खुले दिल और रोमांटिक नेचर के होने के कारण इनकी हर गलती माफ भी हो जाती है।
Z
Z से नाम वाले लोग दूसरों से काफी जल्दी घुल-मिल जाते हैं। गंभीरता इनके स्वभाव में है, लेकिन बड़े ही कूल अंदाज में ये सारे काम करते हैं। जो बोलते हैं साफ बोलते हैं और जिंदगी को इंजॉय करना इन्हें आता है। न मिलने वाली चीजों पर रोने की बजाय उसे छोड़कर आगे बढ़ना इन्हें पसंद है। इन्हें दिखावा नहीं पसंद। इनकी सादगी को देख इन्हें बेवकूफ समझना बहुत बड़ी बेवकूफी होगी। स्वभाव से ये रोमांटिक होते हैं। आपकी ओर कोई भी बड़ी आसानी से अट्रैक्ट हो जाता है। अपने प्यार के सामने आप किसी को अहमियत नहीं देते।

( एक सज्जन ने हमें मेल पर भेजा और इसे आप सबके साथ शेयर कर रही हूँ।  आप भी पढ़कर बताईएगा कि यह कितना खरा उतरता है )

रविवार, 26 अक्तूबर 2014

नोबेल के बाद यूएस लिबर्टी मेडल से सम्मानित हुईं मलाला यूसुफजई

हाल ही में नोबेल शांति पुरस्कार के लिए चयनित पाकिस्तान की किशोर मानवाधिकार कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई को यूएस लिबर्टी मेडल से सम्मानित किया गया है। लिबर्टी मेडल हर साल पुरुषों एवं महिलाओं को साहस व दृढ़ निश्चय के लिए दिया जाता है। यह मेडल वर्ष 1989 के बाद से हर वर्ष दिया जाता है। पहली बार यह पोलिश सॉलिडेरिटी के संस्थापक एल वालेसा को दिया गया था। उसके बाद से यह पुरस्कार हासिल करने वालों में मुहम्मद अली, अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर आदि शामिल हैं। पिछले साल यह तत्कालीन अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन को दिया गया था।मलाला को यूएस लिबर्टी मेडल से सम्मानित करने वाले  फिलाडेल्फिया में अमेरिकी नेशनल कंस्टीट्यूशन सेंटर ने कहा कि उन्होंने प्रतिकूल परिस्थितियों के बावजूद लोगों की स्वतंत्रता एवं मानवाधिकारों के लिए आवाज उठाने की अपनी हिम्मत व सहिष्णुता के लिए यह पुरस्कार जीता है। मलाला ने 21 अक्टूबर को एक समारोह में यह पुरस्कार स्वीकार किया। 

 पाकिस्तान में लड़कियों की शिक्षा की वकालत करने वाली  मलाला यूसुफजई अक्टूबर 2012 में सिर्फ 15 साल की थी, जब तालिबान उग्रवादियों ने पाकिस्तान के मिंगोरा स्थित स्कूल से लौटते समय उनके सिर में गोली मार दी थी। मलाला ने तालिबान के शासन के दौरान की जिंदगी के बारे में बीबीसी के लिए लिखा और लड़कियों की शिक्षा के लिए आवाज उठाई थी जिससे चरमपंथी मुस्लिम समूह की त्यौरियां तन गई थीं। मलाला इस वक्त ब्रिटेन में रह रही हैं। अब 17 साल की हो चुकी मलाला ने  कहा, ‘लिबर्टी मेडल से नवाजा जाना सम्मान की बात है। मैं दुनिया भर के उन सभी बच्चों की ओर से इस पुरस्कार को स्वीकार करती हूं, जो शिक्षा हासिल करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।’ मलाला ने  पुरस्कार स्वरूप जीती गई एक लाख डॉलर की राशि पाकिस्तान में शिक्षा के लिए समर्पित कर दी है।

शनिवार, 25 अक्तूबर 2014

भारतीय मूल की दो बेटियों ने चिकित्सा क्षेत्र में किया कमाल


प्रतिभा उम्र की मोहताज़ नहीं होती, इसे सच कर दिखाया है अमेरिका के मिशिगन में पोर्ट ह्यूरो नार्दर्न में हाईस्कूल में पढ़ने वाली भारतीय मूल की दो बहनों एलिना और मेधा कृष्ण ने, जिन्होंने चिकित्सा क्षेत्र में बड़ा काम किया है।  उन्होंने ऐसा यंत्र बनाया, जो शुरुआती दौर में ही फेफड़े और दिल की बीमारियों का पता लगा लेता है। इसे इलेक्ट्राॅनिक स्टेथोस्कोप की मदद से बनाया गया है। हानिकारक वायु प्रदूषण से फेफड़ों को होने वाले नुकसान का समय से पहले पता लगाने के लिए उन्होंने इलेक्ट्राॅनिक स्टेथोस्कोप का उपयोग कर एक स्क्रीनिंग यंत्र विकसित किया।

मेधा ने बताया, "जब मैं कक्षा पांचवीं की छात्रा थी, तब हमारे एक पारिवारिक मित्र की व्यायाम के बाद मौत हो गई। तभी से मैं ऐसी घटनाओं को रोकने का तरीका खोजना चाहती थी।" छात्रा ने कहा, "मेरा अध्ययन दिल की ध्वनि आवृत्तियों का विश्लेषण एक उपयोगी तकनीक साबित हो सकता है। हाइपरट्रोफिक कार्डियोमायोपैथी (एचसीएम) की जांच में इसका उपयोग किया जा सकता है।"

एथलीटों का अध्ययन किया

मेधा ने 13 एथलीटों पर अध्ययन किया। इसमें दस सामान्य दिल वाले और तीन एचसीएम पीड़ित शामिल थे। एथलीटों के व्यायाम, खड़े रहने और सोने के दौरान दिल की ध्वनियों को रिकाॅर्ड किया गया। फिर आवृत्तियों का विश्लेषण किया। इससे सोने और व्यायाम के बाद की स्थितियों में महत्वपूर्ण अंतर का पता चला।

धूम्रपान करने वालों को परखा

एलिना ने 16 धूमपान करने वाले, 13 दमकलकर्मियों और 25 धूमपान नहीं करने वालों का परीक्षण किया। एलिना ने प्रतिभागियों के श्वसन चक्र को रिकॉर्ड करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक स्टेथोस्कोप का उपयोग किया। फिर सर्वाधिक आवृत्ति का विश्लेषण किया। इसमें सर्वाधिक ऊंची आवृत्तियां धूमपान करने वालों और दमकलकर्मियों में पाई गईं।

अध्ययन का दूरगामी प्रभाव

इलेक्ट्राॅनिक स्टेथोस्कोप के साथ जांच से फेफड़ों की कार्यप्रणाली में बदलाव का पता लगाया जा सकता है। वो भी फेफड़े में बीमारी के लक्षण के बगैर भी संभव हो सकता है।

अगले सप्ताह निष्कर्ष पेश करेंगी

दोनों बहनें अध्ययन के निष्कर्षों को अमेरिकी कॉलेज आफ चेस्ट फिजीशियन की सालाना बैठक सीएचईएसटी 2014 में पेश करेंगी। यह बैठक अगले सप्ताह ऑस्टीन में होनी है।


बुधवार, 22 अक्तूबर 2014

इको-फ्रेंडली दीपावली मनाएँ


त्यौहार हमारी सदाशयता, उत्सवधर्मिता और पर्यावरण के प्रति अनुराग के परिचायक होते हैं, पर वास्तव में इसका विपरीत हो रहा है।  दीपावली के इस पावन पर्व पर जरुरी है कि हम इको-फ्रेंडली दीपावली को तरजीह दें।  पारम्परिक सरसों के तेल की दीपमालायें न सिर्फ प्रकाश व उल्लास का प्रतीक होती हैं बल्कि उनकी टिमटिमाती रोशनी के मोह में घरों के आसपास के तमाम कीट-पतंगे भी मर जाते हैं, जिससे बीमारियों पर अंकुश लगता है। इसके अलावा देशी घी और सरसों के तेल के दीपकों का जलाया जाना वातावरण के लिए वैसे ही उत्तम है जैसे जड़ी-बूटियां युक्त हवन सामग्री से किया गया हवन। ऐसे में सजावटी झालर, पटाखों  और कृत्रिम रोशनी की बजाय दीपों को महत्ता दिया जाना जरुरी है और हमें इसके लिए संकल्पबद्ध होना होगा। 



शुक्रवार, 17 अक्तूबर 2014

'शक्ति' देवी को 'शांति' के लिए किया संयुक्त राष्ट्र ने सम्मानित

अपने भारत देश की नारियाँ सिर्फ देश में ही नहीं, बाहर भी अपने कार्यों से देश को गौरवान्वित कर रही हैं। भारत की  महिला पुलिस इंस्पेक्टर  शक्ति देवी को संयुक्त राष्ट्र ने विशेष सम्मान से नवाजा है। जम्मू-कश्मीर पुलिस में इंस्पेक्टर शक्ति देवी को अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र मिशन की ड्यूटी में असाधारण उपलब्धियां अर्जित करने और यौन व लिंग आधारित हिंसा के पीड़ितों की मदद की खातिर यूएन की पुलिस शाखा ने प्रतिष्ठित इंटरनैशनल फीमेल पुलिस पीसकीपर अवॉर्ड 2014 से सम्मानित किया है। जम्मू-कश्मीर पुलिस में इंस्पेक्टर शक्ति देवी फिलहाल अफगानिस्तान में संयुक्त राष्ट्र मिशन में तैनात हैं।

यूएन पुलिस डिविजन की ओर से भारतीय दूतावास को भेजे पत्र में कहा गया है कि इंस्पेक्टर शक्ति देवी को अफगानिस्तान के विभिन्न हिस्सों में वुमन पुलिस काउंसिल का नेतृत्व करने के लिए सम्मानित किया गया। इस पत्र में कहा गया है कि देवी ने महिला पुलिस के स्तर में सुधार में योगदान दिया है और पुलिसिंग के लोकतांत्रिक सिद्धांतों के लक्ष्य को ग्रहण करने में अफगान पुलिस की मदद की है।

कनाडा के विनिपेग में इस महीने के शुरू में आयोजित इंटरनेशनल असोसिएशन ऑफ वुमन पुलिस (आईएडब्ल्यूपी) के सम्मेलन के दौरान यह सम्मान दिया गया। यह पुरस्कार संयुक्त राष्ट्र के किसी शांति अभियान में सेवा देने वाली किसी असाधारण महिला पुलिस शांतिरक्षक को दिया जाता है। 

गौरतलब है कि भारत संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में सर्वाधिक योगदान देने वाला देश है। अब तक भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के समर्थन से चलाए गए 69 शांति रक्षा अभियानों में से 43 अभियानों में 170,000 से अधिक सैनिकों को भेजा है। शांति रक्षा अभियानों और सैनिकों से संबंधित लागत के लिए संयुक्त राष्ट्र भारत का 11 करोड़ डॉलर का देनदार है।
-- आकांक्षा यादव @ शब्द-शिखर 

मंगलवार, 14 अक्तूबर 2014

कैलाश सत्यार्थी और मलाला युसुफजाई के बहाने नोबेल शांति पुरस्कार की भारत-पाकिस्तान की साझा विरासत

बचपन एक ऐसी अवस्था है, जो हर किसी का भविष्य निर्धारित करती है। आज जरूरत इस बचपन को बचाने की है। बचपन का न तो कोई जाति होती है, न धर्म और न ही इसे देशों की परिधि से बाँधा जा सकता है।  तभी तो नोबेल समिति ने जब इस साल के लिए नोबेल शांति पुरस्कार की घोषणा की तो बच्चों के अधिकारों के लिए काम करने वाले भारत के कैलाश सत्यार्थी और बालिकाओं की शिक्षा के लिए कार्य करने वाली पाकिस्तान की सामाजिक कार्यकर्ता मलाला यूसुफजई को संयुक्त रूप से चुना। बचपन बचाओ आन्दोलन से जुड़े सत्यार्थी ने कईयों का बचपन बचाने के लिए कार्य किया वहीं मलाला ने बचपन के कटु अनुभवों और हादसे का शिकार होने के बावजूद लडकियों की शिक्षा के लिए अलख जगाई रखी। सत्यार्थी नोबेल शांति पुरस्कार पाने वाले दूसरे और नोबेल पाने वाले सातवें भारतीय हैं। इससे पहले मदर टेरेसा को यह अवॉर्ड मिला था। वहीं 17 साल की मलाला सबसे कम उम्र में यह अवॉर्ड पाने वाली शख्सियत बनी हैं। यह अजब संयोग है कि भारतीय और पाकिस्तानी को संयुक्त रूप से शांति के नोबेल की घोषणा ऐसे वक्त में हुई है जब दोनों देशों की सीमा पर भारी तनाव है। पुरस्कार समिति के जूरी ने कहा, ‘नार्वे की नोबेल समिति ने निर्णय किया है कि 2014 के लिए शांति का नोबेल पुरस्कार कैलाश सत्यार्थी और मलाला यूसुफजई को बच्चों और युवाओं के दमन के खिलाफ उनके संघर्ष तथा सभी बच्चों की शिक्षा के अधिकार के लिए उनके प्रयासों के लिए दिया जाए। नोबेल समिति ने कहा कि एनजीओ ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ चलाने वाले सत्यार्थी ने महात्मा गांधी की परंपरा को बरकरार रखा और ‘वित्तीय लाभ के लिए होने वाले बच्चों के गंभीर शोषण के खिलाफ विभिन्न प्रकार के शांतिपूर्ण प्रदर्शनों का नेतृत्व किया है।’ समिति ने कहा कि वह ‘एक हिंदू और एक मुस्लिम, एक भारतीय और एक पाकिस्तानी के शिक्षा और आतंकवाद के खिलाफ साझा संघर्ष में शामिल होने को महत्वपूर्ण बिंदु  मानते हैं।’

कैलाश सत्यार्थी का नोबेल के लिए नाम भारत में भले ही कइयों को चौंका गया हो पर विदेशों में उनके कार्यों की अक्सर चर्चा और सराहना होती रहती है। वस्तुत: यह पुरस्कार बच्चों के अधिकारों के लिए उनके संघर्ष की जीत है। सत्यार्थी ने  नोबेल कमेटी  का आभार व्यक्त करते हुए कहा भी कि, कि उसने आज के आधुनिक युग में भी दुर्दशा के शिकार लाखों बच्चों की दर्द को पहचाना है। मूलत: मध्य प्रदेश के विदिशा जनपद के  निवासी कैलाश सत्यार्थी ने वर्ष 1983 में बालश्रम के खिलाफ 'बचपन बचाओ आंदोलन' की स्थापना की थी।  उनका यह संगठन अब तक 80,000 से ज़्यादा बच्चों को बंधुआ मजदूरी, मानव तस्करी और बालश्रम के चंगुल से छुड़ा चुका है। गैर-सरकारी संगठनों तथा कार्यकर्ताओं की सहायता से कैलाश सत्यार्थी ने हज़ारों ऐसी फैकटरियों तथा गोदामों पर छापे पड़वाए, जिनमें बच्चों से काम करवाया जा रहा था। मूलत : कैलाश सत्यार्थी एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर थे, जो 26 वर्ष की आयु में बाल अधिकारों के लिए काम करने लगे। कैलाश सत्यार्थी ने 'रगमार्क' (Rugmark) की भी शुरुआत की, जो इस बात को प्रमाणित करता है कि तैयार कारपेट (कालीनों) तथा अन्य कपड़ों के निर्माण में बच्चों से काम नहीं करवाया गया है।  उनकी इस पहल से अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बाल अधिकारों के प्रति जागरूकता पैदा करने में काफी सफलता मिली। कैलाश सत्यार्थी ने विभिन्न रूपों में प्रदर्शनों तथा विरोध-प्रदर्शनों की परिकल्पना और नेतृत्व को अंजाम दिया, जो सभी शांतिपूर्ण ढंग से पूरे किए गए।  इन सभी का मुख्य उद्देश्य आर्थिक लाभ के लिए बच्चों के शोषण के खिलाफ काम करना था।

पूरी दुनिया में सबसे कम उम्र  में नोबेल पुरस्कार हेतु चयनित होने वाली मलाला यूसुफजई भी पाकिस्तान में बच्चों की शिक्षा से जुड़ी हैं। मलाला का जीवन संघर्ष और साहस की दास्तां है। 17 वर्षीय मलाला तब सुर्खियों में आईं जब  बालिकाओं की शिक्षा की हिमायत करने को लेकर अक्टूबर, 2012 में पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर इलाके में स्कूल से घर जाते समय तालिबान के बंदूकधारियों ने मलाला को गोली मार दी थी। हमले के बाद उन्हें  विशेष इलाज के लिए ब्रिटेन भेजा गया था। मलाला  इस पुरस्कार को पाने वाली प्रथम पाकिस्तानी और सबसे कम उम्र की होंगी। उन्होंने यह पुरस्कार उन बच्चों को समर्पित किया जिनकी आवाज सुने जाने की जरूरत है।  मलाला की मासूमियत और शिक्षा के प्रति अनुराग को इसी से समझा जा सकता है कि उन्हें भले ही दुनिया के सबसे प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए चुना गया हो, लेकिन उनकी मुख्य चिंता आने वाले समय में उनकी स्कूली परीक्षाओं को लेकर बनी हुई है।  उन्हें इस बात की चिंता है कि पुरस्कार ग्रहण करने के वक्त की उनकी पढ़ाई छूट जाएगी। सबसे कम उम्र की नोबेल पुरस्कार विजेता के रूप में मलाला ने बर्मिंघम के मकान में अपनी पहली शाम अपने पिता के साथ पाकिस्तानी टीवी देखते हुए बिताया। उन्होंने कहा, 'मुझे जुकाम हो गया है और अच्छा महससू नहीं हो रहा है।' इस पाकिस्तानी किशोरी के लिए दुनिया भर से संदेशों का अंबार लग गया, जिन्हें तालिबान हमले के बाद मस्तिष्क की सर्जरी के लिए विमान से बर्मिंघम लाया गया था, ताकि उनकी जान बच सके। मलाला ने कहा, 'मैं बहुत सम्मानित महसूस कर रही हूं और खुश हूं। लोगों के प्रेम ने सचमुच में मुझे गोलीबारी से उबरने में और मजबूत होने में मदद की। इसलिए मैं वह सब कुछ करना चाहती हूं जिससे समाज को योगदान मिल सके।'

मलाला इस बात से अवगत थी कि उन्हें नोबेल पुरस्कार मिल सकता है। पुरस्कार की घोषणा होने के बाद उनके रसायन विज्ञान के क्लास में शुक्रवार को सुबह 10 बजे के बाद शिक्षक के आने की व्यवस्था की गई थी। उन्होंने बताया, 'हम तांबे की इलेक्ट्रोलाइसिस के बारे में पढ़ रहे हैं। मेरे पास मोबाइल फोन नहीं है, इसलिए मेरी शिक्षक ने कहा था कि अगर ऐसी कोई खबर होगी तो वह आएगी। लेकिन सवा दस बज गए और वह नहीं आई। इसलिए मैंने सोचा कि मुझे पुरस्कार नहीं मिला। मैं बहुत छोटी हूं और मैं अपने काम के शुरुआती दौर में हूं।' पर कुछ ही मिनट बाद शिक्षक आ गईं और यह खबर दी। मलाला ने बताया, 'मुझे लगता है कि मेरे शिक्षक मुझसे ज्यादा उत्साहित थे। उनके चेहरों की मुस्कान मुझसे ज्यादा थी। मैं फिर अपने भौतिक विज्ञान की क्लास के लिए गई।'


एक तरफ बचपन और बालिका शिक्षा को लेकर दुनिया  का सबसे बड़ा पुरस्कार, वहीं दोनों देशों के संबंधों की बिसात पर कुछ लोग इसे कूटनीतिक नजरिये से भी देखते हैं। पर इसके बावजूद  सीमा पर बढ़ते तनाव के बीच नोबेल शांति पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई दोनों देशों के बीच मजबूत संबंध बनाने के लिए संयुक्त रूप से काम करने को राजी हैं। मलाला ने कहा, 'हम साथ काम करेंगे और भारत एवं पाकिस्तान के बीच मजबूत संबंध बनाने की कोशिश करेंगे। लड़ाई के बजाय प्रगति और विकास के लिए काम करना जरूरी है।' फ़िलहाल लोगों की निगाहें एक बार फिर से बचपन पर हैं और साथ ही भारत-पाकिस्तान संबंधों पर।  सत्यार्थी और मलाला की संयुक्त मुहिम इसमें कितना रंग लाएगी, यह तो वक़्त ही बताएगा पर इन दोनों को सम्मान मिलने से एक बार फिर लोगों का ध्यान बाल श्रम, बाल दासता, बच्चों के यौन शोषण, बालिका शिक्षा जैसे अहम मुद्दों पर गया है। वाकई आज जरूरत बचपन को सहेजने की है और यही इस पुरस्कार की सबसे बड़ी उपलब्धि  होगी।

रविवार, 12 अक्तूबर 2014

करवा चौथ के मर्म और मूल को समझने की जरूरत

करवा चौथ सिर्फ एक त्यौहार ही नहीं है, बल्कि इसके पीछे एक सन्देश भी छिपा हुआ है।  आज समाज में जब रिश्तों के मायने बदलते जा रहे हैं, भौतिकता की चकाचौंध में हमारे पर्व और त्यौहार भी उपभोक्तावादी संस्कृति तक सिमट गए हैं, ऐसे में करवा चौथ के मर्म और मूल को समझने की जरूरत है। 

करवा चौथ (करक चतुर्थी) अर्थात भारतीय नारी के समर्पण, शीलता, सहजता, त्याग, महानता एवं पतिपरायणता  को व्यक्त करता एक पर्व। दिन भर स्वयं भूखा प्यासा रहकर रात्रि को जब मांगने का अवसर आया तो अपने पति देव के मंगलमय, सुखमय और दीर्घायु जीवन की ही याचना करना यह नारी का त्याग और समर्पण नहीं  तो और क्या है ?

करवा चौथ का वास्तविक संदेश दिन भर भूखे रहना ही नहीं अपितु यह है नारी अपने पति की प्रसन्नता के लिए, सलामती के लिए इस हद तक जा सकती है कि पूरा दिन भूखी - प्यासी भी रह सकती है। करवा चौथ नारी के लिए एक व्रत है और पुरुष के लिए एक शर्त। 

-शर्त केवल इतनी कि जो नारी आपके लिए इतना कष्ट सहती है उसे कष्ट न दिया जाए। जो नारी आपके लिए समर्पित है उसको और संतप्त न किया जाए। जो नारी प्राणों से बढ़कर आपका सम्मान करती है जीवन भर उसके सम्मान की रक्षा का प्रण आप भी लो। उसे उपहार नहीं आपका प्यार चाहिए !!

शुक्रवार, 10 अक्तूबर 2014

जब हौसलों की उड़ान बना तबस्सुम का ई-रिक्शा

जीवन में मनुष्य यदि कुछ कर गुजरने की ठान ले तो परिस्थितियाँ आड़े नहीं आती।  इसे सच कर दिखाया है तबस्सुम ने। हरे रंग के बैटरी वाले रिक्शे पर सवार खाकी रंग के पैंट शर्ट और सिर से लेकर कंधे तक चेकदार रुमाल पहने तबस्सुम जब इलाहाबाद शहर की सड़कों और गलियों से गुजरती हैं, तो हर कोई उन्हें अचरज भरी नजरों से देखता है। अचरज लाजिमी भी है क्योंकि रिक्शा चलाते हुए अमूमन पुरुषों को ही देखा जाता है। लेकिन तबस्सुम ने खुद को आत्मनिर्भर बनाने और बेटे को बेहतर शिक्षा देने के लिए झिझक तोड़ी और बैटरी रिक्शा चलाने का निर्णय लिया। झिझक छोड़ अब वे अपने बेटे, मां और भाई की बेटियों का खर्च बैटरी वाला रिक्शा चलाकर उठा रही हैं । तबस्सुम का आत्मनिर्भरता के लिए यह फैसला उन्हें भीड़ में तो अलग पहचान दिला ही रहा है, उन महिलाओं के लिए भी मिसाल है जो जरूरत होने पर भी घर की चहारदीवारी से बाहर नहीं निकल पाती सिर्फ इसलिए कि ‘हमारा समाज क्या कहेगा’।

रोजगार का यह रास्ता अपना कर तबस्सुम न केवल अपने बेटे अब्दुल्ला को पढ़ा रही हैं बल्कि अपनी मां और भाई की बेटियों का भी खर्च उठा रही है। तबस्सुम अपने बेटे को सीआईडी में भेजना चाहती हैं। जिंदगी में तमाम मुसीबतों झेल चुकी तबस्सुम कहती हैं कि प्रतापगढ़ से वह अपने बेटे के साथ अकेले यहां आईं थी। उस वक्त सिस्टर शीबा ने उनकी मदद की और जिंदगी शुरू करने की राह दिखाई। उन्हीं के साथ रहते हुए तबस्सुम ने कई काम किए। इसके बाद लोगों की मदद से उन्होंने बैटरी रिक्शा चलाना शुरू किया। सुबह से देर रात तक वह रिक्शा चलाती हैं। रेलवे स्टेशन से लेकर नैनी तक का रास्ता वह तय करती हैं। 

तबस्सुम कहती हैं कि कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, बस उसे करने की लगन होनी चाहिए। काम तो सिर्फ काम होता है। इसका पुरुष या महिला होने से कोई लेना देना नहीं है। इसलिए महिलाओं को इस पिछड़ी मानसिकता को छोड़कर आत्मनिर्भर होने के रास्ते खुद तय करने चाहिए। सिस्टर शीबा का कहना है कि तबस्सुम जब शहर आई थी, तो परेशानियों से घिरी थी। उसको हमने बेटे के साथ अपने शेल्टर होम में रखा। तबस्सुम को पढ़ाने लिखाने के साथ ही गाड़ी चलाना भी सिखाया। यह बहुत खुशी की बात है कि तबस्सुम आत्मनिर्भर होने के लिए ई-रिक्शा चला रही है। अपनी एक अलग पहचान बना रही है।


बुधवार, 8 अक्तूबर 2014

नोबेल पाने वाले पाँचवें दम्पति : मोजर दम्पति ने खोज दिमाग का 'जीपीएस' सिस्टम

साहित्य-कला-संस्कृति में ऐसे तमाम दम्पति हैं, जो ऊँचाइयों को छू रहे हैं।  पर विज्ञानं के क्षेत्र में ऐसे दम्पति विरले ही देखने को मिलते हैं। इस बार चिकित्सा क्षेत्र के नोबेल पुरस्कार के लिए आपको अपने इर्द-गिर्द के माहौल की पल-पल की जानकारी देने वाले दिमाग की जटिल संचालन प्रणाली यानी एक तरह के जीपीएस सिस्टम के अध्ययन के लिए तीन वैज्ञानिकों ब्रिटिश अमेरिकी वैज्ञानिक जॉन ओ कीफ के साथ नॉर्वे के दंपति एडवर्ड मोजर व मेई-ब्रिट मोजर को  यह प्रतिष्ठित पुरस्कार देने का ऐलान किया गया। वैसे मेई ब्रिट मोजर नोबेल पाने वाली 45 वीं महिला हैं। पुरस्कार के ऐलान के साथ ही मोजर दम्पति नोबेल पाने वाले पाँचवें  दम्पति बन गए हैं। दम्पत्तियों के इस क्लब में महान वैज्ञानिक दम्पति मेरी क्यूरी व पियरे क्यूरी एवं अल्वा मिर्डल व गुन्नार मिर्डल शामिल हैं। दंपति का मानना है कि शादी ने पुरस्कार जीतने में अहम भूमिका निभाई।

पुरस्कार का ऐलान करते हुए ज्यूरी ने कहा, ‘दिमाग की उस जीपीएस प्रणाली की खोज के लिए तीनों को पुरस्कार के लिए चुना गया है, जो हमें अपने इर्द-गिर्द के माहौल के प्रति सजग रहने को संभव बनाता है। कीफ और मोजर दंपति ने उस समस्या का हल ढूंढ निकाला है, जिस पर सदियों से दार्शनिकों और वैज्ञानिकों का कब्जा था। जैसे कि हमारा दिमाग हमारे चारों ओर के माहौल का खाका कैसे तैयार करता है और इस जटिल वातावरण के बीच हम अपना रास्ता कैसे तलाशते हैं?’ पुरस्कार के तहत विजेताओं को अस्सी लाख स्वीडिश क्रोनर (11 लाख अमेरिकी डॉलर यानी पौने सात करोड़ रुपये) दिए जाएंगे। पुरस्कार राशि का आधा हिस्सा जहां कीफ को, वहीं बाकी आधा हिस्सा मोजर दंपति को दिया जाएगा। पिछले साल यह पुरस्कार तीन अमेरिकियों को कोशिकाओं की परिवहन प्रणाली के अध्ययन के लिए दिया गया था। वैज्ञानिकों को यह पुरस्कार अल्फ्रेड नोबेल की पुण्यतिथि पर हर साल की तरह दस दिसंबर को दिया जाएगा।

यूनिवर्सिटी आफ लंदन में सैन्सबरी वेलकम सेंटर इन न्यूरल सर्किट एंड बिहैवियर के निदेशक कीफ ने 1971 में पहली बार दिमाग के इस जीपीएस के एक सिरे की खोज की थी। उन्होंने दिमाग के हिप्पोकैंपस वाले हिस्से में खास किस्म की तंत्रिका कोशिकाओं का पता लगाया। प्रयोग के दौरान लैब में जब एक चूहे को किसी खास जगह पर रखा गया, तो उसका हिप्पोकैंपस वाला यह हिस्सा खास तौर पर सक्रिय हो उठा। कीफ ने इन्हें प्लेस सेल या स्थान कोशिका का नाम दिया। इससे चूहे के दिमाग में कमरे के भीतर उसे जहां रखा गया था, उस जगह का नक्शा बन गया।

2005 में दंपति मेई ब्रिट और एडवर्ड मोजर ने दिमाग की जीपीएस के एक और प्रमुख हिस्से की खोज की। उन्होंने खास तंत्रिका कोशिकाओं का पता लगाया, जो समन्वय प्रणाली के तहत काम करती हैं। ये कोशिकाएं जीव की स्थिति और उसको रास्ता तलाशने में मदद करती हैं। पता चला कि दिमाग में मौजूद प्लेस सेल को कॉर्टेक्स की खास कोशिकाएं सक्रिय करती हैं। मोजर दंपति ने इन्हें ग्रिड सेल नाम दिया। दिमाग में इनका जाल बिछा होता है जैसे शहर में सड़कों का। दंपति का मानना है कि शादी ने पुरस्कार जीतने में अहम भूमिका निभाई।

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रविवार, 14 सितंबर 2014

भारतीय भाषाओं से ही अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है 'हिन्दी'

अंग्रेज जाते-जाते 'बाँटो और राज करो' की नीति  भारतीय भाषाओं पर भी लागू कर गए।  तभी तो आजादी के छः दशकों के बाद भी हिंदी को अपना गौरव नहीं मिला। आज भी हिंदी का सबसे अधिक विरोध अपने देश भारत में ही होता है। आजादी के दौरान हिंदी का सबसे अधिक समर्थन गैर-हिंदी भाषियों मसलन-महात्मा गाँधी, डा. अम्बेडकर, चक्रवर्ती राज गोपालाचारी और काका कालेलकर जैसे लोगों ने किया, पर दुर्भाग्य देखिये कि आजादी के बाद अ-हिन्दी राज्य अभी भी अपनी भाषाई लड़ाई हिंदी से  ही मानते हैं और इन सबके बीच अंग्रेजी आराम से राज कर रही है। अंग्रेजी की 'बाँटो और राज करो' नीति  ने कभी भी भारतीय भाषाओं  को यह सोचने का मौका नहीं दिया कि, वे एक हैं और उन्हें मिलकर अंग्रेजी को बाहर करना है।  संविधान में भी किन्तु-परन्तु के साथ अंग्रेजी को ही बढ़ावा दिया गया है।  हम एक सम्प्रभु राष्ट्र होने का दावा करते हैं पर हमारा संविधान कहीं भी 'राष्ट्रभाषा' का जिक्र नहीं करता। यहाँ तक कि अब सी-सैट के बहाने देश के भावी प्रशासकों को भी हिंदी और अन्य भारतीय भाषाओं से दूर किया जा रहा है। साठ करोड़ लोगों की भाषा हिंदी अपने ही अस्तित्व के लिए अपनी सहोदर भारतीय भाषाओं से अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है और सात समुद्र पार की भाषा अंग्रेजी 'बाँटो और राज करो' की नीति की अपनी सफलता को देखते हुए मन ही मन मुस्कुरा रही है !! 




(विदेशों में भी पताका फहरा रही है हिंदी - कृष्ण कुमार यादव का डेली न्यूज एक्टिविस्ट, 14 सितम्बर 2014(हिंदी दिवस)  के अंक में प्रकाशित लेख)

(विदेशों में भी हिंदी की पताका  - कृष्ण कुमार यादव का जनसंदेश टाइम्स, 14 सितम्बर 2014 (हिंदी दिवस) के अंक में प्रकाशित लेख)



बुधवार, 10 सितंबर 2014

क्या अब फ़िल्मी नायक-नायिकाओं से प्रेरणा लेंगे पुलिस अधिकारी

सिंघम, मर्दानी, कटियामार.......आजकल पुलिस से लेकर बिजली अधिकारी तक इन फिल्मों से प्रेरणा ले रहे हैं।  मंत्री से लेकर सीनियर आफिसर्स तक अपने अधीनस्थों को इन फिल्मों को देखने की सलाह दे रहे हैं।  यहाँ तक कि कुछेक जगहों पर सरकारी खर्च पर इन फिल्मों  को अधिकारियों-कर्मचारियों को दिखाने का प्रबन्ध भी किया गया। 

कभी फिल्में समाज का आइना होती थीं। प्रशासन या समाज के वास्तविक चरित्र कहीं न कहीं इन फिल्मों में दिख जाते थे। पर यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब प्रशासन  फिल्मों के नायक-नायिकाओं से प्रेरणा ले रहा है। क्या वास्तविक जीवन के पुलिस या प्रशासनिक अधिकारियों में ऐसा कोई नहीं हैं जो फिल्मी नायक-नायिकाओं की बजाय वास्तविक जीवन में प्रेरणा बन सके।

 बेहतर तो यही होता कि फिल्मी परदे पर नायक-नायिकाओं को देखकर उत्साहित होने कीे बजाय हम अपने बीच में से वास्तविक नायक-नायिकाओं की पहचान करते व उन्हें पूरा समर्थन देते। पिक्चर हाल में फिल्में देखते समय साधारण मनुष्य भी अपने को इन नायक-नायिकाओं से एकाकर लेता है। परंतु बाहर कदम रखते ही सारे जज्बात हवा हो जाते हैं।

 इस संबंध में ’मैरी काॅम’ जैसी फिल्म की सराहना होनी चाहिए जो कि वास्तविक जीवन की मुक्केबाज खिलाड़ी पर आधारित है, जिसने तमाम परंपरागत लकीरों को ठुकराकर नये आयाम रचे। काश प्रशासन मणिपुर में इस फिल्म को दिखाने की हिम्मत कर पाता !!

मंगलवार, 26 अगस्त 2014

असली जीवन की 'मर्दानी'


'मर्दानी' फिल्म आजकल चर्चा में है। झाँसी की रानी लक्ष्मीबाई के ऊपर लिखी सुभद्रा कुमारी चौहान की पंक्तियाँ  'खूब लड़ी मर्दानी, वह तो झाँसी वाली रानी थी' भला किसे न याद होंगी। बदलते वक़्त और परिप्रेक्ष्य के साथ इस प्रकार की तमाम घटनाएँ सामने आती हैं तो अनायास ही लोगों के मुँह से निकला पड़ता है -खूब लड़ी मर्दानी।


अपने देश भारत के तमाम अंचलों  में महिलाओं पर हो रहे जुल्म-ओ-सितम के बीच भय और आतंक के साए में सांस ले रही महिलाओं ने खुद पर भरोसा करना सीख लिया है। इन सबके बीच मेरठ की एक दिलेर महिला ममता यादव नई मिसाल बनकर उभरी हैं। मेरठ के  सिविल लाइन क्षेत्र में 19 अगस्त, 2014 को कचहरी पुल के पास  अपनी अस्मिता और पति की रक्षा के लिए ममता ने हमलावर युवकों की पिटाई कर डाली थी। इस दौरान पुलिस  तमाशबीन बनी रही तो कुछ लोग नैतिकता का प्रवचन झाड़ रहे थे। जब वह लोगों से अपील कर रही थी, तो इन युवकों में से कुछ युवक अश्लील टिप्पणियां भी कर रहे थे और कुछ उनकी फोटो और वीडियो उतारने में लगे हुए थे।  

वस्तुत:  कार में सवार कुछ मनचले, बाइक पर पति के साथ जा रही युवती ममता यादव पर छींटाकशी करते चल रहे थे। इसी दौरान मनचलों ने कार बाइक में भिड़ा दी। जब बाइक सवार पति-पत्नी ने इसका विरोध किया तो मनचलों ने गाली- गलौज करते हुए पति पर हमला बोल दिया। यह सब देख युवती असहज हो गई। आसपास नजर घुमाकर देखा, तो पूरी भीड़ बेजान नजर आई। बुजदिल जमाने में उसे कोई अपना नहीं लगा। पास में खड़े पुलिस के जवानों में भी कोई हरकत नहीं हुई। लफंगों के हाथ से पिट रहे अधेड़ व्यक्ति को छुड़ाने के लिए कोई हाथ आगे नहीं बढ़ा। बेशर्मी की हद तो तब पार हो गई जब कइयों ने मारपीट सीन पर अपने मोबाइल के कैमरे की फ्लैश डालनी शुरू कर दी। ऐसे में भय की आबोहवा में कायर होते जा रहे समाज का घिनौने चेहरे ने युवती के अंदर हौसला भर दिया। उसने ताल ठोंकी और आधा दर्जन लड़कों से अकेले मुकाबला करते हुए उन्हें भागने पर मजबूर किया। लफंगे युवाओं ने ममता यादव  पर काबू जमाने की भरपूर कोशिश की, किंतु नारी की शक्ति और स्वाभिमान ने उनके पैर उखाड़ दिए। मामला बिगड़ता देख जब भी युवाओं ने भागने का प्रयास किया तो ममता  ने उनका रास्ता रोक लिया। तमाशबीन व जड़ हो चुकी भीड़ भी दृश्य को देख शर्मसार हो गई। कइयों ने बाद में ममता  के समर्थन में आवाज ऊंची करने की कोशिश की, जिसे उन्होंने  ने डांटकर चुप करा दिया। तमाशबीन लोगों के बीच घायल अवस्था में ही वे घर लौट आए। ममता ने कहा कि वे विक्टोरिया पार्क स्थित बिजली विभाग कार्यालय में बिल जमा कराने के लिए 23 हजार रुपये लेकर जा रहीं थीं। पैसे तो बच गए, लेकिन पति को बचाने की जद्दोजहद में उनकी चेन टूट गई। ममता यादव एलआइसी की एजेंट है और उनके पति कपड़े का व्यवसाय करते हैं। बहरहाल, लफंगों के आतंक से भयभीत भीड़ को ममता ने बहादुरी से अन्याय के खिलाफ लडऩे का संदेश दिया। लगे हाथ पुलिस को आइना दिखाया।

इस घटना के समय ममता ने हिम्मत तो दिखाई, पर इससे  वह बेहद घबराई भी हुई थीं। उन्हें  डर था कि उनके सामने आने के बाद हमलावर उनके घर तक नहीं पहुंच जाए। इसलिए वह तीन दिन से घर में चुप बैठी थीं। ममता की बड़ी बहन शशि यादव को जब पूरी घटना का पता चला तो वे दिल्ली से मेरठ पहुंचीं और ममता को मीडिया के सामने आने व पुलिस में अपनी ओर से शिकायत देने के लिए तैयार कराया। घटना के तीन दिन बाद 23 अगस्त को अंतत : तमाम झिझक को ताक पर रखकर ममता  मीडिया से मुखातिब हुई और पूरे वाकये को दोहराया। ऐसे में  अकेले दम कई युवाओं को धूल चटाने वाली ममता यादव के जज्बे की खबर राष्ट्रीय स्तर पर अख़बारों और तमाम  टीवी चैनलों की सुर्खियां बन गई।  ममता ने इस मामले की लिखित शिकायत पुलिस में की है। सामान्य सी जिंदगी जी रही ममता हाल-फिलहाल कैमरे की चकाचौंध और अखबारनवीसों के सवालों से घिरी हैं। यहाँ तक कि मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के आदेश पर जिले के आला अफसरान ने ममता यादव के घर जाकर उन्हें एक लाख रुपये का चेक सौंपा। ममता का कहना है कि वह चाहती है कि हमलावरों को कड़ी से कड़ी सजा मिले, जिससे समाज में संदेश जाए कि ऐसे बदमाशों के सामने हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने की बजाए उनका सामना करना चाहिए।

हमलावरों के ग्रुप से अकेली लड़ने वाली साहसी महिला ममता यादव ने रविवार को साफ कहा है कि मुझे इनाम नहीं, न्याय चाहिए।ममता ने कहा कि मैं किसी व्यक्ति या पार्टी विशेष नहीं बल्कि व्यवस्था के खिलाफ बोल रही हूं। रविवार को महिला की तरफ से भी पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर ली है और उसका मेडिकल भी करा दिया है। ममता ने कहा कि यदि मुझे तीन दिनों में न्याय नहीं मिला तो जान देने से भी नहीं हिचकूंगी। मीडिया से बातचीत में  ममता यादव ने पुलिस पर आरोप लगाते हुए कहा कि तीन दिन के बाद रविवार शाम को उनकी तहरीर रिसीव की गई। इसके बाद सीओ ने उनका मेडिकल परीक्षण कराया जिसमें उनके हाथ में फैक्चर आया है।ममता ने कहा कि मैं और मेरा परिवार खौफ में जी रहे हैं। चार आरोपियों में से अभी केवल एक ही आरोपी गिरफ्तार हुआ है।  ऐसे में मैं कैसे खुद को सुरक्षित महसूस कर सकती हूं। ममता ने कहा कि मैं किसी भी पार्टी पर अंगुली नहीं उठा रही हूं। बस न्याय मांग रही हूं। ममता ने कहा कि मेरे पति की जिंदगी पर खतरा मंडराया तो मैं हमलावरों से जा भिड़ी। मैंने भीड़ से मदद मांगी लेकिन कोई आगे नहीं आया था। मुझे सरकारी इनाम नहीं बल्कि न्याय चाहिए।अपने सम्मान की रक्षा करना अपराध नहीं है। ममता ने कहा कि मैंने जो किया, वह वक्त की नजाकत थी। हर इज्जतदार महिला को वही करना चाहिए जो मैंने किया। 

 .............पर यह लड़ाई तो अभी अधूरी है क्योंकि अब ममता यादव इंसाफ के लिए व्यवस्था से लड़ रही हैं !!


  

सोमवार, 18 अगस्त 2014

कृष्ण की बाँसुरी की मिठास


प्रेम की बाँसुरी की मिठास वाकई बहुत सुरीली और अनुपम होती है। बांसुरी भगवान श्री कृष्ण को अति प्रिय है, क्योंकि बांसुरी में तीन गुण हैं :

पहला
बांसुरी में गांठ नहीं है।
जो संकेत देता है
कि
अपने अंदर
किसी भी प्रकार की
गांठ मत रखो।
मन में
बदले की भावना मत रखो।

दूसरा गुण
बिना बजाये ये बजती नहीं है।
मानो बता रही है कि
जब तक ना कहा जाए
तब तक
मत बोलो।
और

तीसरा
जब भी बजती है
मधुर ही बजती है।
अर्थात
जब भी बोलो, मीठा ही बोलो।

जय श्रीकृष्ण !!
कृष्ण जन्माष्टमी पर हार्दिक बधाइयाँ !!

मुरलीधर मथुराधिपति माधव मदनकिशोर. 
मेरे मन मन्दिर बसो मोहन माखनचोर. 

कृष्ण जन्माष्टमी पर हार्दिक बधाइयाँ !!

शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

नरेंद्र मोदी ने स्वतंत्रता दिवस पर लालकिले से उठाई भारत में बेटियों की व्यथा

स्वतंत्रता दिवस पर  प्रधानमंत्री मोदी जी ने लालकिले से अपने भाषण में राजनैतिक कम, सामाजिक मुद्दों को ज्यादा तरजीह दी। समाज और परिवार पर  कटाक्ष करते हुए उन्होंने एक अहम  बात कही कि आखिर सवालों और बंदिशों के घेरे  में बेटियाँ ही क्यों, बेटे क्यों नहीं रखे जाते ? बेटा-बेटी  के प्रति समाज का  दोहरापन ही तमाम बुराईयों की जड़ है और जिसका प्रतिबिम्ब आज नारी से दुर्व्यवहार और रेप जैसी घटनाओं  में साफ दिख रहा है। आखिर बेटों से यह सवाल क्यों नहीं पूछे जाते कि उनके दोस्त कौन हैं, वे कहाँ जा रहे हैं, उनकी गतिविधियाँ क्या हैं जबकि बेटियों से ये सारे सवाल बार-बार पूछे जाते हैं। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सारे फरमान भी बेटियों पर ही बंदिश लगाते हैं। रेप जैसी घटनाओं के लिए सिर्फ बेटों ही नहीं उनके माँ-बाप भी उतने ही जिम्मेदार हैं।  मोदी जी ने जोर देकर कहा कि बलात्कार की घटनाओं के बारे में सुनकर सिर शर्म से झुक जाता है। माता-पिता बेटियों पर बंधन डालते हैं, लेकिन उन्हें बेटों से भी पूछना चाहिए, वे कहां जा रहे हैं, क्या करने जा रहे हैं ? कानून के साथ समाज को भी जिम्मेदार बनना होगा। 

भ्रूण हत्या पर मोदी जी ने बेहद तल्खी से कहा कि,  हमने हमारा लिंगानुपात देखा है...? समाज में यह असंतुलन कौन बना रहा है...? भगवान नहीं बना रहे...! मैं डॉक्टरों से अपील करता हूं कि वे अपनी तिजोरियां भरने के लिए किसी मां की कोख में पल रही बेटी को न मारें... बेटियों को मत मारो, यह 21वीं सदी के भारत के माथे पर कलंक है। 

मोदी जी ने कहा कि ऐसे परिवार देखे हैं, जहां बड़े मकानों में रहने वाले पांच-पांच बेटों के बावजूद बूढ़े मां-बाप वृद्धाश्रम में रहते हैं... और ऐसे भी परिवार हैं, जहां इकलौती बेटी ने माता-पिता की देखभाल करने के लिए शादी तक नहीं की... सो, एक बेटी पांच-पांच बेटों से भी ज़्यादा सेवा कर सकती है...

मोदी जी ने लाल किले से इस बात को उठाया है तो आवाज़ भी दूर तक जानी चाहिये। 

लाल किले की प्राचीर से जब तिरंगा बुलंदी से फहरा रहा था तो इसी के साथ लोगों की आशाएं भी जगीं। आने वाले दिनों में विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के मुखिया से आधी आबादी सकारात्मक और सख्त क़दमों की आशा तो कर ही सकती है, आखिर इसके बिना तो भारत को सुदृढ़, सशक्त और विकसित नहीं बनाया जा सकता  !!

रविवार, 10 अगस्त 2014

पत्नी द्वारा पति को रक्षासूत्र बाँधने से आरम्भ हुआ रक्षाबंधन का

भारतीय संस्कृति में त्यौहारों का आदि काल से ही महत्व रहा है। हर त्यौहार के साथ धार्मिक मान्यताओं, मिथकों, सामाजिक व ऐतिहासिक घटनाओं और परम्परागत विश्वासों का अद्भुत संयोग प्रदर्शित होता है। त्यौहार सिर्फ एक अनुष्ठान मात्र नहीं हैं, वरन् इनके साथ सामाजिक समरसता, सांस्कृतिक तारतम्य, सभ्यताओं की खोज एवं अपने अतीत से जुडे रहने का सुखद अहसास भी जुड़ा होता है। त्यौहारों को मनाने के तरीके अलग हो सकते हैं पर उद्देश्य अंतत: एक ही है। यहाँ तक कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भी अपनी बात लोगों तक पहुँचाने के लिए त्यौहारों व मेलों का एक मंच के रूप में प्रयोग होता था।

रक्षाबन्धन भारतीय सभ्यता का एक प्रमुख त्यौहार है जो कि श्रावण मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है। इस दिन बहन अपनी रक्षा के लिए भाई को राखी बाँधती है। भारतीय परम्परा में विश्वास का बन्धन ही मूल है और रक्षाबन्धन इसी विश्वास का बन्धन है। यह पर्व मात्र रक्षा-सूत्र के रूप में राखी बाँधकर रक्षा का वचन ही नहीं देता वरन् प्रेम, समर्पण, निष्ठा व संकल्प के जरिए हृदयों को बाँधने का भी वचन देता है। पहले रक्षा बन्धन बहन-भाई तक ही सीमित नहीं था, अपितु आपत्ति आने पर अपनी रक्षा के लिए अथवा किसी की आयु और आरोग्य की वृद्धि के लिये किसी को भी रक्षा-सूत्र (राखी) बांधा या भेजा जाता था। भगवान कृष्ण ने गीता में कहा है कि- ‘मयि सर्वमिदं प्रोतं सूत्रे मणिगणा इव’- अर्थात ‘सूत्र’ अविच्छिन्नता का प्रतीक है, क्योंकि सूत्र (धागा) बिखरे हुए मोतियों को अपने में पिरोकर एक माला के रूप में एकाकार बनाता है। माला के सूत्र की तरह रक्षा-सूत्र (राखी) भी लोगों को जोड़ता है। गीता में ही लिखा गया है कि जब संसार में नैतिक मूल्यों में कमी आने लगती है, तब ज्योतिर्लिंगम भगवान शिव प्रजापति ब्रह्मा द्वारा धरती पर पवित्र धागे भेजते हैं, जिन्हें बहनें मंगलकामना करते हुए भाइयों को बाँधती हैं और भगवान शिव उन्हें नकारात्मक विचारों से दूर रखते हुए दुख और पीड़ा से निजात दिलाते हैं।

राखी का सर्वप्रथम उल्लेख पुराणों में प्राप्त होता है जिसके अनुसार असुरों के हाथ देवताओं की पराजय पश्चात अपनी रक्षा के निमित्त सभी देवता इंद्र के नेतृत्व में गुरू वृहस्पति के पास पहुँचे तो इन्द्र ने दुखी होकर कहा- ‘‘अच्छा होगा कि अब मैं अपना जीवन समाप्त कर दूँ।’’ इन्द्र के इस नैराश्य भाव को सुनकर गुरू वृहस्पति के दिशा-निर्देश पर रक्षा-विधान हेतु इंद्राणी ने श्रावण पूर्णिमा के दिन इन्द्र सहित समस्त देवताओं की कलाई पर रक्षा-सूत्र बाँधा और अंतत: इंद्र ने युद्ध में विजय पाई। इस प्रकार कहा जा सकता है कि रक्षाबंधन की शुरुआत पत्नी द्वारा पति को राखी बाँधने से हुई। एक अन्य कथानुसार राजा बलि को दिये गये वचनानुसार भगवान विष्णु बैकुण्ठ छोड़कर बलि के राज्य की रक्षा के लिये चले गय। तब देवी लक्ष्मी ने ब्राह्मणी का रूप धर श्रावण पूर्णिमा के दिन राजा बलि की कलाई पर पवित्र धागा बाँधा और उसके लिए मंगलकामना की। इससे प्रभावित हो बलि ने देवी को अपनी बहन मानते हुए उसकी रक्षा की कसम खायी। तत्पश्चात देवी लक्ष्मी अपने असली रूप में प्रकट हो गयीं और उनके कहने से बलि ने भगवान विष्णु से बैकुण्ठ वापस लौटने की विनती की। त्रेता युग में रावण की बहन शूर्पणखा लक्ष्मण द्वारा नाक कटने के पश्चात रावण के पास पहुँची और रक्त से सनी साड़ी का एक छोर फाड़कर रावण की कलाई में बाँध दिया और कहा कि- ‘‘भैया! जब-जब तुम अपनी कलाई को देखोगे, तुम्हें अपनी बहन का अपमान याद आएगा और मेरी नाक काटनेवालों से तुम बदला ले सकोगे।’’ इसी प्रकार महाभारत काल में भगवान कृष्ण के हाथ में एक बार चोट लगने व फिर खून की धारा फूट पड़ने पर द्रौपदी ने तत्काल अपनी कंचुकी का किनारा फाड़कर भगवान कृष्ण के घाव पर बाँध दिया। कालांतर में दु:शासन द्वारा द्रौपदी-चीर-हरण के प्रयास को विफल कर उन्होंने इस रक्षा-सूत्र की लाज बचायी। द्वापर युग में ही एक बार युधिष्ठिर ने भगवान श्री कृष्ण से पूछा कि वह महाभारत के युद्ध में कैसे बचेंगे तो उन्होंने तपाक से जवाब दिया- ‘‘राखी का धागा ही तुम्हारी रक्षा करेगा।’’

ऐतिहासिक युग में भी सिंकदर व पोरस ने युद्ध से पूर्व रक्षा-सूत्र की अदला-बदली की थी। युद्ध के दौरान पोरस ने जब सिकंदर पर घातक प्रहार हेतु अपना हाथ उठाया तो रक्षा-सूत्र को देखकर उसके हाथ रूक गए और वह बंदी बना लिया गया। सिकंदर ने भी पोरस के रक्षा-सूत्र की लाज रखते हुए और एक योद्धा की तरह व्यवहार करते हुए उसका राज्य वापस लौटा दिया। मुगल काल के दौर में जब मुगल सम्राट हुमायूँ चितौड़ पर आक्रमण करने बढ़ा तो राणा सांगा की विधवा कर्मवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर अपनी रक्षा का वचन लिया। हुमायूँ ने इसे स्वीकार करके चितौड़ पर आक्रमण का ख्याल दिल से निकाल दिया और कालांतर में राखी की लाज निभाने के लिए चितौड़ की रक्षा हेतु गुजरात के बादशाह से भी युद्ध किया। इसी प्रकार न जाने कितनी मान्यतायें रक्षा बन्धन से जुड़ी हुयी हैं।

लोक परम्परा में रक्षाबन्धन के दिन परिवार के पुरोहित द्वारा राजाओं और अपने यजमानों के घर जाकर सभी सदस्यों की कलाई पर मौली बाँधकर तिलक लगाने की परम्परा रही है। पुरोहित द्वारा दरवाजों, खिड़कियों, तथा नये बर्तनों पर भी पवित्र धागा बाँधा जाता है और तिलक लगाया जाता है। यही नहीं बहन-भानजों द्वारा एवं गुरूओं द्वारा स्त्रियों को रक्षा सूत्र बाँधने की भी परम्परा रही है। राखी ने स्वतंत्रता-आन्दोलन में भी प्रमुख भूमिका निभाई। कई बहनों ने अपने भाइयों की कलाई पर राखी बाँधकर देश की लाज रखने का वचन लिया। 1905 में बंग-भंग आंदोलन की शुरूआत लोगों द्वारा एक-दूसरे को रक्षा-सूत्र बाँधकर हुयी। राखी से जुड़ी एक मार्मिक घटना क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद के जीवन की है। आजाद एक बार तूफानी रात में शरण लेने हेतु एक विधवा के घर पहुँचे। पहले तो उसने उन्हें डाकू समझकर शरण देने से मना कर दिया पर यह पता चलने पर कि वह क्रांतिकारी आजाद है, ससम्मान उन्हें घर के अंदर ले गई। बातचीत के दौरान आजाद को पता चला कि उस विधवा को गरीबी के कारण जवान बेटी की शादी हेतु काफी परेशानियाँ उठानी पड़ रही हैं तो उन्होंने द्रवित होकर उससे कहा- “मेरी गिरफ्तारी पर 5000 रूपये का इनाम है, तुम मुझे अंग्रेजों को पकड़वा दो और उस इनाम से बेटी की शादी कर लो।” यह सुन विधवा रो पड़ी व कहा- “भैया! तुम देश की आजादी हेतु अपनी जान हथेली पर रखकर चल रहे हो और न जाने कितनी बहू-बेटियों की इज्जत तुम्हारे भरोसे है। अत: मै ऐसा हरगिज नहीं कर सकती।” यह कहते हुए उसने एक रक्षा-सूत्र आजाद के हाथों में बाँधकर देश-सेवा का वचन लिया। सुबह जब विधवा की आँखें खुली तो आजाद जा चुके थे और तकिए के नीचे 5000 रूपये पड़े थे। उसके साथ एक पर्ची पर लिखा था- “अपनी प्यारी बहन हेतु एक छोटी सी भेंट- आजाद।”

देश के विभिन्न अंचलों में राखी पर्व को भाई-बहन के त्यौहार के अलावा भी भिन्न-भिन्न तरीकों से मनाया जाता है। मुम्बई के कई समुद्री इलाकों में इसे नारियल-पूर्णिमा या कोकोनट-फुलमून के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन विशेष रूप से समुद्र देवता पर नारियल चढ़ाकर उपासना की जाती है और नारियल की तीन आँखों को शिव के तीन नेत्रों की उपमा दी जाती है। बुन्देलखण्ड में राखी को कजरी-पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन कटोरे में जौ व धान बोया जाता है तथा सात दिन तक पानी देते हुए माँ भगवती की वन्दना की जाती है। उत्तरांचल के चम्पावत जिले के देवीधूरा में राखी-पर्व पर बाराही देवी को प्रसन्न करने के लिए पाषाणकाल से ही पत्थर युद्ध का आयोजन किया जाता रहा है, जिसे स्थानीय भाषा में ‘बग्वाल’ कहते हैं। सबसे आश्चर्यजनक तो यह है कि इस युद्ध में आज तक कोई भी गम्भीर रूप से घायल नहीं हुआ और न ही किसी की मृत्यु हुई। इस युद्ध में घायल होने वाला योद्धा सर्वाधिक भाग्यवान माना जाता है एवं युद्ध समाप्ति के पश्चात पुरोहित पीले वस्त्र धारण कर रणक्षेत्र में आकर योद्धाओं पर पुष्प व अक्षत् की वर्षा कर आशीर्वाद देते हैं। इसके बाद युद्ध बन्द हो जाता है और योद्धाओं का मिलन समारोह होता है। एक रोचक घटनाक्रम में हरियाणा राज्य में अवस्थित कैथल जनपद के फतेहपुर गाँव में सन् 1857 में एक युवक गिरधर लाल को रक्षाबन्धन के दिन अंग्रेजों ने तोप से बाँधकर उड़ा दिया, इसके बाद से गाँव के लोगों ने गिरधर लाल को शहीद का दर्जा देते हुए रक्षाबन्धन पर्व मनाना ही बंद कर दिया। प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के 150 वर्ष पूरे होने पर सन् 2006 में जाकर इस गाँव के लोगों ने इस पर्व को पुन: मनाने का संकल्प लिया।

रक्षाबन्धन हमारे सामाजिक परिवेश एवं मानवीय रिश्तों का अंग है। आज जरुरत है कि आडम्बर की बजाय इस त्यौहार के पीछे छुपे हुए संस्कारों और जीवन मूल्यों को अहमियत दी जाए तभी व्यक्ति, परिवार, समाज और राष्ट्र सभी का कल्याण सम्भव होगा।


( जीवन साथी कृष्ण कुमार यादव जी द्वारा लिखित आलेख, डेली न्यूज एक्टिविस्ट ( 10  अगस्त, 2014) में भी पढ़ सकते हैं )