प्रतिभा उम्र की मोहताज़ नहीं होती, इसे सच कर दिखाया है अमेरिका के मिशिगन में पोर्ट ह्यूरो नार्दर्न में हाईस्कूल में पढ़ने वाली भारतीय मूल की दो बहनों एलिना और मेधा कृष्ण ने, जिन्होंने चिकित्सा क्षेत्र में बड़ा काम किया है। उन्होंने ऐसा यंत्र बनाया, जो शुरुआती दौर में ही फेफड़े और दिल की बीमारियों का पता लगा लेता है। इसे इलेक्ट्राॅनिक स्टेथोस्कोप की मदद से बनाया गया है। हानिकारक वायु प्रदूषण से फेफड़ों को होने वाले नुकसान का समय से पहले पता लगाने के लिए उन्होंने इलेक्ट्राॅनिक स्टेथोस्कोप का उपयोग कर एक स्क्रीनिंग यंत्र विकसित किया।
मेधा ने बताया, "जब मैं कक्षा पांचवीं की छात्रा थी, तब हमारे एक पारिवारिक मित्र की व्यायाम के बाद मौत हो गई। तभी से मैं ऐसी घटनाओं को रोकने का तरीका खोजना चाहती थी।" छात्रा ने कहा, "मेरा अध्ययन दिल की ध्वनि आवृत्तियों का विश्लेषण एक उपयोगी तकनीक साबित हो सकता है। हाइपरट्रोफिक कार्डियोमायोपैथी (एचसीएम) की जांच में इसका उपयोग किया जा सकता है।"
एथलीटों का अध्ययन किया
मेधा ने 13 एथलीटों पर अध्ययन किया। इसमें दस सामान्य दिल वाले और तीन एचसीएम पीड़ित शामिल थे। एथलीटों के व्यायाम, खड़े रहने और सोने के दौरान दिल की ध्वनियों को रिकाॅर्ड किया गया। फिर आवृत्तियों का विश्लेषण किया। इससे सोने और व्यायाम के बाद की स्थितियों में महत्वपूर्ण अंतर का पता चला।
धूम्रपान करने वालों को परखा
एलिना ने 16 धूमपान करने वाले, 13 दमकलकर्मियों और 25 धूमपान नहीं करने वालों का परीक्षण किया। एलिना ने प्रतिभागियों के श्वसन चक्र को रिकॉर्ड करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक स्टेथोस्कोप का उपयोग किया। फिर सर्वाधिक आवृत्ति का विश्लेषण किया। इसमें सर्वाधिक ऊंची आवृत्तियां धूमपान करने वालों और दमकलकर्मियों में पाई गईं।
अध्ययन का दूरगामी प्रभाव
इलेक्ट्राॅनिक स्टेथोस्कोप के साथ जांच से फेफड़ों की कार्यप्रणाली में बदलाव का पता लगाया जा सकता है। वो भी फेफड़े में बीमारी के लक्षण के बगैर भी संभव हो सकता है।
अगले सप्ताह निष्कर्ष पेश करेंगी
दोनों बहनें अध्ययन के निष्कर्षों को अमेरिकी कॉलेज आफ चेस्ट फिजीशियन की सालाना बैठक सीएचईएसटी 2014 में पेश करेंगी। यह बैठक अगले सप्ताह ऑस्टीन में होनी है।
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