त्यौहार हमारी सदाशयता, उत्सवधर्मिता और पर्यावरण के प्रति अनुराग के परिचायक होते हैं, पर वास्तव में इसका विपरीत हो रहा है। दीपावली के इस पावन पर्व पर जरुरी है कि हम इको-फ्रेंडली दीपावली को तरजीह दें। पारम्परिक सरसों के तेल की दीपमालायें न सिर्फ प्रकाश व उल्लास का प्रतीक होती हैं बल्कि उनकी टिमटिमाती रोशनी के मोह में घरों के आसपास के तमाम कीट-पतंगे भी मर जाते हैं, जिससे बीमारियों पर अंकुश लगता है। इसके अलावा देशी घी और सरसों के तेल के दीपकों का जलाया जाना वातावरण के लिए वैसे ही उत्तम है जैसे जड़ी-बूटियां युक्त हवन सामग्री से किया गया हवन। ऐसे में सजावटी झालर, पटाखों और कृत्रिम रोशनी की बजाय दीपों को महत्ता दिया जाना जरुरी है और हमें इसके लिए संकल्पबद्ध होना होगा।
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