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सोमवार, 22 फ़रवरी 2016

रचनाधर्मी का 'शब्द-शिखर'

जब से ब्लॉग राइटिंग का ट्रेंड  शुरू हुआ है, लोगों की लेखन में दिलचस्पी बढ़ गई है। कुछ लोग कभी-कभार अपने ब्लॉग पर पोस्ट करते हैं तो कुछ ऐसे भी हैं, जो ब्लॉग को नियमित रूप से अपडेट करते रहते हैं । इसमें  कोई दो राय नहीं हैं कि  ब्लॉग ने उन लोगों को लिखने का मंच दिया हैं, जिनके मन में विचार तो कुलबुलाते रहते थे, लेकिन उन्हें अभिव्यक्त करने का कोई जरिया उनके पास नहीं था । ऐसे में ब्लॉग उनके लिए एक वरदान के रूप में सामने आया । यही वजह है कि अब वे ब्लॉग पर रोजमर्रा के छोटे–मोटे अनुभवों को साझा करने से लेकर अंतर्राष्ट्रीय, राजनीतिक, सामाजिक मुद्दों पर भी बेबाक राय प्रकट कर रहे हैं । जिन्हें कहानी, कविताएँ, गीत, गज़ल, नज़्म, आदि लिखने का शौक है, वे भी अपनी रचनाओं को ब्लॉग के माध्यम  से दूसरों तक पहुँचा रहे हैं । 

आज जो ब्लॉग चुना है, उसकी ब्लॉगर आकांक्षा यादव भी ब्लॉगिंग में काफी सक्रिय हैं। वे अपने ब्लॉग ‘शब्द-शिखर’ पर हर छोटे-बड़े फ़ेस्टिवल्स  पर कविताएँ लिखती हैं तो समाज से जुड़े विषयों पर भी अपनी राय प्रकट करती हैं। यही नहीं, देश-विदेश की कई छोटी-बड़ी खबरों को भी ब्लॉग पर साझा करती हैं। ब्लॉग पर नज़र डालें तो ‘वे कैसे लोग होते  हैं, जो बम बनाते हैं, उनसे बेहतर तो वो कीड़े होते हैं, जो रेशम बनाते हैं !!’ जैसी पंक्तियाँ लोगों को एक नई राह दिखाती हैं और भाईचारे से रहने का संदेश देती हैं।  फ़ेसबुक के सीईओ मार्क जकरबर्ग के बेटी के जन्म की खुशी में  शेयर्स दान करने की घोषणा, राजनीति में बढ़ती महिलाओं की भागीदारी, अब महिलाएं भी उड़ाएंगी लड़ाकू विमान जैसी खबरों को भी ब्लॉगर ने प्रमुखता से साझा किया है। बिना लाग–लपेट के सुलभ भाव-भंगिमा से जीवन की सच्चाई को बयां करने को वे अपनी लेखनी की शक्ति मानती हैं। 

ब्लॉग का पता है - http://shabdshikhar.blogspot.in/
-आर्यन शर्मा

(21 फ़रवरी, 2016 को राजस्थान पत्रिका के साप्ताहिक स्तंभ me.next के नियमित स्तंभ web blog में 'शब्द शिखर' की चर्चा। इससे पूर्व भी इसी कॉलम में  6 जुलाई 2013 को  'बदलाव की एक लहर' शीर्ष से 'शब्द-शिखर' ब्लॉग की चर्चा की जा चुकी है। .... आभार !!)

रविवार, 14 फ़रवरी 2016

यही प्यार है......



दो अजनबी निगाहों का मिलना 
मन ही मन में गुलों का खिलना 
हाँ, यही प्यार है............ !! 

आँखों ने आपस में ही कुछ इजहार किया 
हरेक मोड़ पर एक दूसरे का इंतजार किया 
हाँ, यही प्यार है............ !! 

आँखों की बातें दिलों में उतरती गई 
रातों की करवटें और लम्बी होती गई 
हाँ, यही प्यार है............ !! 

सूनी आँखों में किसी का चेहरा चमकने लगा 
हर पल उनसे मिलने को दिल मचलने लगा 
हाँ, यही प्यार है............ !! 

चाँद व तारे रात के साथी बन गये 
न जाने कब वो मेरी जिन्दगी के बाती बन गये 
हाँ, यही प्यार है............ !!


(डायरी के पुराने पन्नों को पलटिये तो बहुत कुछ सामने आकर घूमने लगता है. ऐसे ही इलाहाबाद विश्विद्यालय में अध्ययन के दौरान प्यार को लेकर यह कविता जीवन साथी कृष्ण कुमार यादव जी ने लिखी थी. यहाँ पर आप सभी के साथ शेयर कर रही  हूँ)



शनिवार, 6 फ़रवरी 2016

अब घर की बड़ी बिटिया होगी परिवार की मुखिया

नारी सशक्तिकरण अब सिर्फ एक जुमला भर नहीं है, बल्कि व्यवहारिक जीवन में भी इसे प्रभावी माना जाने लगा है। जब महिलाएं घर से लेकर बाहर तक के कार्यों को करने से नहीं हिचकतीं और तमाम प्रतिष्ठित पदों पर विराजमान होकर नेतृत्व कर रही हैं, फिर भला उन्हें घर में कैसे रोक जा सकता है। इसी तर्ज पर सामाजिक बदलाव की दिशा में बेमिसाल फैसला देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि, जिस घर में बड़ी बेटी होगी, वही घर की 'कर्ता धर्ता' होगी। कोर्ट ने कहा- 'मुखिया की गैर मौजूदगी में घर में जो सबसे बड़ा होगा वही उस घर का कर्ता होगा। फिर चाहे वह बेटी ही क्यों न हो.' कोर्ट ने अपने फैसले में 'कर्ता' यानी मुखिया शब्द का इस्तेमाल किया है.

बराबरी का हक
सामाजिक बदलाव का फैसला जस्टिस नाजमी वजीरी ने सुनाया.  कोर्ट ने कहा, 'यदि पहले पैदा होने पर कोई पुरुष मुखिया के कामकाज संभाल सकता है तो ठीक ऐसा ही औरत भी कर सकती है. हिंदू संयुक्त परिवार की किसी महिला को ऐसा करने से रोकने वाला कोई कानून भी नहीं है.'

पुरुष सत्ता पर चोट
कोर्ट ने माना कि मुखिया की भूमिका में रहते हुए पुरुषों के जिम्मे बड़े-बड़े काम आ जाते हैं. इतना ही नहीं, वे प्रॉपर्टी, रीति-रिवाज और मान्यताओं से लेकर परिवार के जटिल और अहम मुद्दों पर भी अपने फैसले लागू करने लगते हैं. इस लिहाज से यह फैसला पितृसत्तात्मक समाज की उस धारा पर चोट करता है और उसे तोड़ने वाला है.

बड़ी बेटी ने ही किया था केस
हाई कोर्ट ने यह फैसला दिल्ली के एक कारोबारी परिवार की बड़ी बेटी की ओर से दाखिल केस पर सुनाया. उसने पिता और तीन चाचाओं की मौत के बाद केस दायर कर दावा किया था कि वह घर की बड़ी बेटी है. इस लिहाज से मुखिया वही हो. उसने याचिका में अपने बड़े चचेरे भाई के दावे को चुनौती दी थी, जिसने खुद को कर्ता घोषित कर दिया था.

क्यों अहम है यह फैसला?

2005 में हिंदू उत्तराधिकार कानून  में संशोधन कर धारा 6 जोड़ी गई थी. इसके जरिए महिलाओं को पैतृक संपत्ति में बराबर का हक दिया गया था. पर घर के फैसले करने का हक अब मिला.

फैसले के बाद अब बड़ी बेटी के हाथ में न सिर्फ पैतृक संपत्ति और प्रॉपर्टी से जुड़े हक होंगे, बल्कि वह घर-परिवार के तमाम मुद्दों पर अपनी बात कानूनी हक के साथ रख पाएगी.

फैसला सामाजिक बदलाव का प्रतीक है, मिसाल है. बताता है कि जो बेटी पिता को कंधा दे सकती है, वह पिता की भूमिका में भी हो सकती है और किसी बेटे से कमतर नहीं है.

पुराने जमाने से ही परंपरा रही है कि घर का कर्ता यानी मुखिया पुरुष रहता आया है. फिर चाहे वह घर में सबसे छोटा ही क्यों न हो. यह फैसला इस परंपरा को तोड़ने वाला है.

'आत्मनिर्भरता की मिसाल है औरत'

फैसला सुनाते वक्त जस्टिस वजीरी ने कहा कि कानून के मुताबिक सभी को समान अधिकार प्राप्त हैं. फिर न जाने अब तक महिलाओं को 'कर्ता' बनने लायक क्यों नहीं समझा गया? जबकि आजकल की महिलाएं हर क्षेत्र में कदम से कदम मिलाकर चल रही हैं और आत्मनिर्भता की मिसाल हैं. ऐसी कोई वजह नहीं है कि महिलाओं को घर की मुखिया बनने से रोका जाए. 1956 का पुराना कानून 2005 में ही बदल चुका है. अब जब कानून बराबरी का हक देता है तो अदालतों को भी ऐसे मामलों में सतर्कता बरतते हुए फैसला करना चाहिए.



शुक्रवार, 5 फ़रवरी 2016

भारत में अर्द्धसैनिक बल की कमान पहली बार महिला को : अर्चना रामासुंदरम बनीं सशस्त्र सीमा बल की डायरेक्टर जनरल


 देश में पहली बार किसी अर्द्धसैनिक बल की कमान किसी महिला को सौंपी गयी है। तमिलनाडु कैडर की वरिष्ठ महिला आईपीएस अधिकारी अर्चना रामासुंदरम को 1 फरवरी, 2016  को सशस्त्र सीमा बल (एसएसबी) का डायरेक्टर जनरल  नियुक्त किया गया है। गौरतलब है कि देश में पांच अर्द्धसैनिक बल- एसएसबी, केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ), सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) और भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) हैं। इनमें कभी कोई महिला प्रमुख नहीं रहीं।

कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) द्वारा जारी आदेश के अनुसार, 58 वर्षीय अर्चना रामासुंदरम फिलहाल राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की निदेशक हैं। उन्हें अगले साल 30 सितंबर को उनके सेवानिवृत्त होने तक एसएसबी प्रमुख के तौर पर नियुक्त किया गया है। एसएसबी पर नेपाल और भूटान से लगे देश के सीमावर्ती क्षेत्रों की सुरक्षा की जिम्मेदारी है।

तमिलनाडु कैडर की अधिकारी अर्चना रामासुंदरम 2014 में उस समय खबरों में रहीं थीं, जब उन्हें सीबीआई में अतिरिक्त निदेशक नियुक्त किया गया था। उनकी नियुक्ति को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गयी थी, जिसके बाद उन्हें एनसीआरबी का प्रमुख बना दिया गया था।

अर्चना रामासुंदरम मूल रूप से उत्तर प्रदेश के  बलिया जनपद की रहने वाली हैं। उनके पिता जयपुर में न्यायिक सेवा में कार्यरत थे। अर्चना के मुताबिक अगर वह एक साधारण परिवार से उठकर पुलिस के शीर्ष पद तक पहुंच सकती हैं तो कोई भी लड़की यह काम कर सकती है।अर्चना का मानना है कि यह एक सच्चाई है कि वह इस स्तर तक पहुंचने वाली पहली महिला अधिकारी हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि सिर्फ महिला होने के नाते वह इस स्तर तक पहुंची हैं। इसके लिए वह पूरे कैरियर में कठिन समय से भी
गुजरी हैं। उनके पति तमिलनाडु से हैं और उसी कैडर में आईएसएस अधिकारी रहे हैं। रामसुंदरम 1980 बैच की केरल कैडर की आईपीएस अधिकारी हैं। अर्चना रामासुंदरम ने कहा कि अब हरेक स्तर पर आम राय है कि सभी क्षेत्रों में महिलाओं की भागेदारी बढ़े। यह युवा लड़कियों के आगे आने का सुनहरा दौर है। उन्हें उनके पिता ने आईपीएस बनने के लिए खूब प्रोत्साहित किया था। अपने पुश्तैनी शहर बलिया का जिक्र करते हुए रामसुंदरम के कहा कि वहां की आज की लड़कियों को देख कर लगता है कि उन्हें भी कैरियर के सभी विकल्प आजमाने का पूरा मौका मिलना चाहिए।