वक़्त कितनी तेजी से बीतता है, पता ही नहीं चलता है. देखते ही देखते हमारी दूसरी बिटिया रानी तन्वी कल तीन माह की हो गईं. इनका ख्याल रखने के चक्कर में ही आजकल ब्लागिंग से भी थोडा कटी हुई हूँ. जीवन में व्यस्तताएं बढती जा रही हैं..खैर यह सब जीवन के अभिन्न पहलू हैं. ये देखिये हमारी प्यारी तन्वी को और अपना आशीष भी दीजिये-
आपका समर्थन, हमारी शक्ति
शुक्रवार, 28 जनवरी 2011
बुधवार, 26 जनवरी 2011
सोमवार, 24 जनवरी 2011
मैं अजन्मी...
मेरी यह कविता 'इण्डिया टुडे' पत्रिका के परिशिष्ट 'इण्डिया टुडे स्त्री' (3 मार्च, 2010) में प्रकाशित हुई थी। आज 'राष्ट्रीय बालिका दिवस' (24 जनवरी) पर उसे ही यहाँ प्रस्तुत कर रही हूँ-
मैं अजन्मी
हूँ अंश तुम्हारा
फिर क्यों गैर बनाते हो
है मेरा क्या दोष
जो, ईश्वर की मर्जी झुठलाते हो
मै माँस-मज्जा का पिण्ड नहीं
दुर्गा, लक्ष्मी औ‘ भवानी हूँ
भावों के पुंज से रची
नित्य रचती सृजन कहानी हूँ
लड़की होना किसी पाप की
निशानी तो नहीं
फिर
मैं तो अभी अजन्मी हूँ
मत सहना मेरे लिए क्लेश
मत सहेजना मेरे लिए दहेज
मैं दिखा दूँगी
कि लड़कों से कमतर नहीं
माद्दा रखती हूँ
श्मशान घाट में भी अग्नि देने का
बस विनती मेरी है
मुझे दुनिया में आने तो दो !!!
सोमवार, 17 जनवरी 2011
मत ढूंढो कविता इसमें : वंदना गुप्ता
आज शब्द-शिखर पर प्रस्तुत है वंदना गुप्ता जी की एक कविता. वंदना अंतर्जाल पर जिंदगी एक खामोश सफ़र के माध्यम से सक्रिय हैं।
दिल से निकले उदगारों का नाम कविता है
मत बंधो इसे गद्य या पद्य में
मत ढूंढो इसमें छंदों को
जो भी दिल की हो आवाज़
उसी का नाम कविता है
क्यूँ ढूंढें हम छंदों को
जब छंद बसे हों दिल में
क्यूँ जाने हम गद्य को
जब हर लफ्ज़ में हों भाव भरे
मत रोको इन हवाओं को
जो किसी के मन में बह रही हैं
चाहे हों कविता रूपी
चाहे हों ग़ज़लों रूपी
या न भी हों मगर
साँस साँस की आवाज़ को
मत बांधो तुम पद्यों में
मत ढूंढो साहित्य इसमें
मत ढूंढो काव्य इसमें
ये तो दिलों की धड़कन हैं
जो भाव रूप में उभरी हैं
भावों में जीने वाले
क्या जाने काव्यात्मकता को
वो तो भावों को ही पीते हैं
और भावों में ही जीते हैं
बस भावाव्यक्ति के सहारे ही
दिल के दर्द को लिखते हैं
कभी पास जाओ उनके
तो जानोगे उनके दर्द को
कभी कुछ पल ठहरो
तो जानोगे उनकी गहराई को
वो तो इस महासमुद्र की
तलहटी में दबे वो रत्न हैं
जिन्हें न किसी ने देखा है
जिन्हें न किसी ने जाना है
अभी तुम क्या जानो
सागर की गहराई को
एक बार उतरो तो सही
फिर जानोगे इस आशनाई को
किसी के दिल के भावों को
मत तोड़ो व्यंग्य बाणों से
ये तो दिल की बातें हैं
दिलवाले ही समझते हैं
तुम मत ढूंढो कविता इसमें
तुम मत ढूंढो कविता इसमें !!
वंदना गुप्ता
दिल से निकले उदगारों का नाम कविता है
मत बंधो इसे गद्य या पद्य में
मत ढूंढो इसमें छंदों को
जो भी दिल की हो आवाज़
उसी का नाम कविता है
क्यूँ ढूंढें हम छंदों को
जब छंद बसे हों दिल में
क्यूँ जाने हम गद्य को
जब हर लफ्ज़ में हों भाव भरे
मत रोको इन हवाओं को
जो किसी के मन में बह रही हैं
चाहे हों कविता रूपी
चाहे हों ग़ज़लों रूपी
या न भी हों मगर
साँस साँस की आवाज़ को
मत बांधो तुम पद्यों में
मत ढूंढो साहित्य इसमें
मत ढूंढो काव्य इसमें
ये तो दिलों की धड़कन हैं
जो भाव रूप में उभरी हैं
भावों में जीने वाले
क्या जाने काव्यात्मकता को
वो तो भावों को ही पीते हैं
और भावों में ही जीते हैं
बस भावाव्यक्ति के सहारे ही
दिल के दर्द को लिखते हैं
कभी पास जाओ उनके
तो जानोगे उनके दर्द को
कभी कुछ पल ठहरो
तो जानोगे उनकी गहराई को
वो तो इस महासमुद्र की
तलहटी में दबे वो रत्न हैं
जिन्हें न किसी ने देखा है
जिन्हें न किसी ने जाना है
अभी तुम क्या जानो
सागर की गहराई को
एक बार उतरो तो सही
फिर जानोगे इस आशनाई को
किसी के दिल के भावों को
मत तोड़ो व्यंग्य बाणों से
ये तो दिल की बातें हैं
दिलवाले ही समझते हैं
तुम मत ढूंढो कविता इसमें
तुम मत ढूंढो कविता इसमें !!
वंदना गुप्ता
बुधवार, 12 जनवरी 2011
काश कि युवा पीढ़ी स्वामी विवेकानंद से कुछ सीखती...

सोमवार, 10 जनवरी 2011
प्रेम गीत : यशोधरा यादव ‘यशो‘
आपके दामन से मेरा, जन्म का नाता रहा है ,
प्यार की गहराइयों का, राज बतलाता रहा है।
मौन मत बैठो कहो कुछ, आज मौसम है सुहाना,
कलखी धुन ने बजाया, प्यार का मीठा तराना।
एक सम्मोहन धरा की, मूक भाषा बोलती है,
और नभ दे दुंदुभी, नवरागिनी गाता रहा है।
आपके दामन......................।
प्यार का मकरन्द भरकर, बादलों का टोल आया,
आम की अमराइयों में, हरित ने आँचल बिछाया।
सूर्य का लुक-छुप निकलना, मुस्कराना देखकर,
मन मयूरी नृत्य कर, कर मान इतराता रहा है।
आपके दमन......................।
भाव का कोई शब्द ही तो, मेरे उर को भेदता है,
गीत की हर पंक्ति बनकर, नव सुगंध बिखेरता है।
बंसुरी की धुन बजाता है, कहीं कान्हा सुरीली,
और चितवन राधिका का, पाँव थिरकाता रहा है।
आपके दामन......................।
दीप तेरा प्यार बनकर, झिलमिलाते द्वार मेरे,
आज कोयल गीत प्रियवर, गा रही उपवन सवेरे।
मन समुंदर की हिलोरे, चूमती बेताब तट की,
रूख हवाओं का विहंस कर, गुनगुनाता जा रहा है।
आपके दामन......................।
यशोधरा यादव 'यशो'
प्यार की गहराइयों का, राज बतलाता रहा है।
मौन मत बैठो कहो कुछ, आज मौसम है सुहाना,
कलखी धुन ने बजाया, प्यार का मीठा तराना।
एक सम्मोहन धरा की, मूक भाषा बोलती है,
और नभ दे दुंदुभी, नवरागिनी गाता रहा है।
आपके दामन......................।
प्यार का मकरन्द भरकर, बादलों का टोल आया,
आम की अमराइयों में, हरित ने आँचल बिछाया।
सूर्य का लुक-छुप निकलना, मुस्कराना देखकर,
मन मयूरी नृत्य कर, कर मान इतराता रहा है।
आपके दमन......................।
भाव का कोई शब्द ही तो, मेरे उर को भेदता है,
गीत की हर पंक्ति बनकर, नव सुगंध बिखेरता है।
बंसुरी की धुन बजाता है, कहीं कान्हा सुरीली,
और चितवन राधिका का, पाँव थिरकाता रहा है।
आपके दामन......................।
दीप तेरा प्यार बनकर, झिलमिलाते द्वार मेरे,
आज कोयल गीत प्रियवर, गा रही उपवन सवेरे।
मन समुंदर की हिलोरे, चूमती बेताब तट की,
रूख हवाओं का विहंस कर, गुनगुनाता जा रहा है।
आपके दामन......................।
यशोधरा यादव 'यशो'
गुरुवार, 6 जनवरी 2011
‘अहसास’ हूँ मैं
आज 'शब्द-शिखर' पर प्रस्तुत है सुमन मीत जी की एक कविता. मीत, अंतर्जाल पर बावरा मन के माध्यम से सक्रिय हैं।
एक अबोध शिशु
माँ के आँचल में
लेता है जब
गहरी नींद
माँ उसको
अपलक निहारती
बलाऐं लेती
महसूस है करती
अपने ममत्व को
वो आगाज़ हूँ मैं .........
विरह में निष्प्राण तन
लौट है आता
चौराहे के छोर से
लिये साथ
अतीत की परछाई
भविष्य की रुसवाई
पथरीली आँखों में
सिवाय तड़प के
कुछ नहीं
वो टूटन हूँ मैं ...........
कोमल हृदय में
देते हैं जब दस्तक
अनकहे शब्द
उलझे विचार
मानसपटल पर
करके द्वन्द
जो उतरता है
लेखनी से पट पर
वो जज़्बात हूँ मैं .........
थकी बूढ़ी आँखें
जीवन की कड़वाहट का
बोझ लिए
सारी रात खंगालती हैं
निद्रा के आशियाने को
या फिर
बाट जोहती हैं
अपने अगले पड़ाव का
वो अभिप्राय हूँ मैं ...........
वो आगाज़ में पनपा
टूटन में बिखरा
जज़्बात में डूबा
अभिप्राय में जन्मा
‘अहसास’ हूँ मैं !!
सुमन ‘मीत’
सोमवार, 3 जनवरी 2011
मंथन
आज शब्द-शिखर पर प्रस्तुत है वंदना गुप्ता जी की एक कविता. वंदना अंतर्जाल पर जिंदगी एक खामोश सफ़र के माध्यम से सक्रिय हैं।
मंथन किसी का भी करो
मगर पहले तो
विष ही निकलता है
शुद्धिकरण के बाद ही
अमृत बरसता है
सागर के मंथन पर भी
विष ही पहले
निकला था
विष के बाद ही
अमृत बरसा था
विष को पीने वाला
महादेव कहलाया
अमृत को पीने वालों ने भी
देवता का पद पाया
आत्म मंथन करके देखो
लोभ , मोह , राग ,द्वेष
इर्ष्या , अंहकार रुपी
विष ही पहले निकलेगा
इस विष को पीना
किसी को आता नही
इसीलिए कोई
महादेव कहलाता नही
आत्म मंथन के बाद ही
सुधा बरसता है
इस गरल के निकलते ही
जीवन बदलता है
पूर्ण शुद्धता पाओगे जब
तब अमृत्व स्वयं मिल जाएगा
उसे खोजने कहाँ जाओगे
अन्दर ही पा जाओगे
आत्म मंथन के बाद ही
स्वयं को पाओगे
मंथन किसी का भी करो
पहले विष तो फिर
अमृत को भी
पाना ही होगा
लेकिन मंथन तो करना ही होगा !!
वंदना गुप्ता
मंथन किसी का भी करो
मगर पहले तो
विष ही निकलता है
शुद्धिकरण के बाद ही
अमृत बरसता है
सागर के मंथन पर भी
विष ही पहले
निकला था
विष के बाद ही
अमृत बरसा था
विष को पीने वाला
महादेव कहलाया
अमृत को पीने वालों ने भी
देवता का पद पाया
आत्म मंथन करके देखो
लोभ , मोह , राग ,द्वेष
इर्ष्या , अंहकार रुपी
विष ही पहले निकलेगा
इस विष को पीना
किसी को आता नही
इसीलिए कोई
महादेव कहलाता नही
आत्म मंथन के बाद ही
सुधा बरसता है
इस गरल के निकलते ही
जीवन बदलता है
पूर्ण शुद्धता पाओगे जब
तब अमृत्व स्वयं मिल जाएगा
उसे खोजने कहाँ जाओगे
अन्दर ही पा जाओगे
आत्म मंथन के बाद ही
स्वयं को पाओगे
मंथन किसी का भी करो
पहले विष तो फिर
अमृत को भी
पाना ही होगा
लेकिन मंथन तो करना ही होगा !!
वंदना गुप्ता
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