अटल बिहारी वाजपेयी और मदन मोहन मालवीय को भारत रत्न की घोषणा पर मन में एक सवाल जरूर कौंधा कि आखिर सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न इतना जल्दी मिल गया और अटल जी व मालवीय जी जैसे लोगों को इतना इंतज़ार क्यों करना पड़ा ? मालवीय जी की चौथी पीढ़ी जन्म ले चुकी है और अटल जी अपनी अस्वस्थता के चलते शायद ही कोई प्रतिक्रिया दे सकें। यह सवाल बार-बार उठता है कि आखिर भारत रत्न के लिए किसी के अंतिम दिनों का इंतज़ार क्यों किया जाता है। अभी भी देश में तमाम ऐसी विभूतियाँ हैं और कई तो इस लोक को छोड़ चुकी हैं, जिन्हें भारत रत्न मिलना चाहिए …पर उन्हें इस सर्वोच्च सम्मान से विभूषित करने में या तो राजनीति आड़े आ जाती है या उनकी पैरवी करने वाला कोई नहीं है। बेहतर होगा कि हम देश के इस शीर्षस्थ नागरिक सम्मान को राजनीति और संकुचित आयामों से परे ले जाकर सोचें ताकि वास्तविक भारत 'रत्नों' को इसके लिए तरसना न पड़े !!
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